मंत्री परिषद के मेरे साथी श्री राधा मोहन सिंह जी, डाक्टर संजय जी, मंच पर विराजमान सभी महानुभाव, और कृषि और विज्ञान के क्षेत्र से जुड़े हुए सभी तपस्वीजन.
हम standing ovation उन महानुभावों को दें, जिन्होने आज award भी प्राप्त किया है, और देश में इस प्रकार की गतिविधि से जुड़े हुए हैं.जिनका सम्मान करने का मुझे सौभाग्य मिला है.उन सबको मैं हृदय से अभिनंदन करता हूँ.
अयप्पन जी को मैं सुन रहा था, superfast train चल रही थी. इसी तेज गति से कृषि विकास भी होगा, ऐसा मुझे भरोसा है. जब उन्होने सबको standing ovation के लिए खड़ा किया तो ये कला मेरे ध्यान में आ गयी की लंबी देर तक सुनते समय नींद आ जाती है. तो बीच बीच में standing ovation अच्छा रहता है. लेकिन मैने standing ovation इसके लिए नहीं करवाया था - मैं हृदय से मानता हूँ की देश के कोटि-कोटि किसानों ने भारत के भाग्य को बदलने में बहुत बड़ा योगदान दिया है.
और इसी लिए वैज्ञानिक कितनी ही खोज क्यों न करें, लेकिन अगर उसपर भरोसा करके किसान अपना एक साल खपा नही देता हैं, दो साल खपा नही देता है, तो सिद्धि संभव नही होती है. कभी lab में, कभी छोटी-सी प्रायोगिक व्यवस्था में, सिद्धि प्राप्त करने में expert को सफलता मिल जाती है, लेकिन जब तक उसका सरलीकरण नहीं हो, जाता, सामान्य किसान को पल्ले पड़े, भाषा, परिभाषा और प्रयोगों से उसे जोड़ा नहीं जाता है, तब तक इसका व्याप्त बढ़ता नहीं है.
हमारे देश में कृषि ज़्यादातर पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में दी जाती है. और इसमें परंपराओं को बदलने का साहस बहुत कम लोग रखते हैं. जब तक उसको ये भरोसा ना हो, हाँ भाई, ‘this is the way, ये कुछ होगा, और इसके लिए भी दो, चार, पाँच साल तक सोचता रहता है, क्योंकि उसे मालूम है, कहीं मैं प्रयोग कर गया और मेरी जिंदगी अटक गयी तो क्या होगा, वो हिम्मत नहीं करता. और इसलिए भारत के विज्ञान जगत को, और ख़ास करके कृषि क्षेत्र में अनुसंधान करने वाले महानुभावों के सामने, सरकार के सामने, सामान्य किसान समुदाय के सामने, ये नितांत आवश्यक है के हम बदलते हुए युग में, बदलते हुए परिवेश में, climate change के माहौल में और वैज्ञानिकों के द्वारा किए गये संशोधनो के मध्यम से, progressive farmers के द्वारा किए गये प्रयोगों के मध्यम से ,बदलते हुए climatic zones …. Climatic zones ही बदल रहें हैं हमारे सारे …. … agro-climatic zones जो पहले बनाएँ होंगें आज शायद agro-climatic zones में काफ़ी बदलाव आ रहा है,… उन सारे पाश्र्वभूमि में, हमारा किसान भरोसा करके प्रयोग करने की हिम्मत करे, और इस दिशा में हम कैसे आगे बढ़ें ?
आज इस अनुसंधान केंद्र को 86 साल हो गये. मैं चाहूँगा की आप सब मिलकर के, इसका शताब्दी वर्ष कैसे मनाया जाए उसका planning आज ही करें. और institutional celebration planning नहीं, हम इस अनुसंधान के मध्यम से किसानों तक कैसे पहुचेगें, किन- किन विषयों में पहुँचेगें, किन किन बातों में हम कोई goal set करके acheive करेंगें. और सारी franternity ,all the universities, all the agricultural colleges, इस शताब्दी के साथ research के नये आयाम और उनके साथ सामान्य किसान को जोड़ने का प्रयास, इस दिशा में हम कुछ goal तय करके आनेवाले 14-15 साल जो भी हमें मिलते हैं, और एक century का mission goal बना करके, मैं समझता हूँ , शायद हम 86 साल में जितना कर पाए हैं उसे ज़्यादा 14 साल में कर सकतें हैं. क्योंकि अब ,86 साल पहले हमारी ताक़त थी, 86 साल में वो ताक़त सैंकड़ों गुणा ज़यादा है. विज्ञान ने भी भारी प्रगति की है, वैश्विक संबंधों का वातावरण भी, ज्ञान का आदान-प्रदान भी, बहुत तेज़ी से हुआ हैं, और इसलिए हम अगर ये goal ले कर चलें तो हम कुछ कर सकतें हैं.
हमारे देश के सामने, क्योंकि यह सारी जो हमारी मेहनत है, उसमें हमे दो चीज़ों को सिद्ध करना है – एक, हमारा किसान, देश और दुनिया का पेट भरने में सामर्थ्यवान हो, और दूसरा, हमारी कृषि, किसान का जेब भरने में सामर्थ्यवान हो. दुनिया का पेट तो भरे लेकिन किसान की अगर जेब नही भरेगी तो शायद हम जो चाहते हैं उन स्थितियों को प्राप्त नहीं कर सकते. हमारी दिशा, हमारी योजना, उस तरफ कैसे रहे?
हमारी ज़मीन तो बढ़ने वाली नहीं है, परिवार बढ़ते चले जा रहें हैं, माँग बढ़ती चली जा रही है. और इस समय हमें उन challenges को address करना पड़ेगा, और हमारा focus, soil fertility. हमारी soil में सदियों पहले, ज़मीन को सुधारने के प्रयोग होते थे, ऐसा नहीं है की आज ही हो रहे हैं. लेकिन समय के अभाव से आर्थिक दौड़ में किसान अब वो समय नहीं देता है. ज़मीन सुधार के लिए बीच में time देना चाहिए, कुछ प्रक्रियाएँ करनी चाहिए, उसको जानकारी है, लेकिन वो कर नही पता है. तब वैज्ञानिक intervention आवश्यक हो जाता है. उसकी परंपराएँ, पद्यतियाँ, scientific intervention, दोनो की जोड़ करके हम हमारी ज़मीन की fertility के संबंध में, कोई निश्चित goal के साथ कैसे आगे बढ़ सकतें हैं? क्योंकि हमारे सामने आवश्यक हैं - प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाए बिना हमारा कोई चारा ही नहीं हैं. उसी प्रकार से, जो फसल 45 दिन में होती है वो फसल 35 दिन में कैसे हो. वो कौन सी वैज्ञानिक पद्यतियाँ हों , किस प्रकार का time frame हो, और फिर भी quality erosion ना हो. जैसे मूँग में प्रयोग हुआ है, कुछ time तो बचा, लेकिन उसकी साइज़ बदल दी गयी है, साइज़ छोटी कर दी गयी है. और जब साइज़ छोटी होती है, तो मार्केट गिर जाता है, क्योंकि सामान्य मानव ने… मूँग की एक साइज़ set है उसके मन में ,एक छवि तैयार है … उसी में अगर आँखफेर हो गया तो? उसके मन में जो रहता है ठीक है .. उससे अगर थोड़ा इधर- उधर हो गया तो, उसके मन में रहता है अरे भाई शायद ये अच्छा नहीं होगा, और इसलिए quality erosion ना हो, उसके बावजूद भी productivity बढ़ाएँ और time reduce हो. इसपर हम कैसे काम कर सकतें हैं?
हम जानते हैं की विश्व के सामने पानी का संकट है, water-cycle, weather-cycle, दोनो के बीच में clash हो रहा है, contradiction खड़ी हो गयी है. अब हमारे सामने challenge है, इस weather-cycle के साथ, हमारे water-cycle का scientific management हमकैसे करें. हम नये-नये तरीके से उससे कैसे जोड़ें. चाहे rain harvesting हो, या जल संचय के नये-नये अभियान हों, और हम जन सामान्य को जल संचय के बारें में जितना जागरूक बनाएँगें, जितना भागीदार बनाएँगे, उतना ही फ़ायदा मिलेगा.
Global warming, environment के five star hotel में होने वाले seminar अपनी जगह है, उसका भी एक positive है, लेकिन आख़िर तो ये काम करने वाला सामान्य मानव है. उसके मन में ये भाव कैसे जगे और जब तक ये विश्वास पैदा नहीं होता, की ये पानी परमात्मा का दिया हुआ प्रसाद है. आज जब हम मंदिर में जातें हैं … प्रसाद का एक दाना नीचे ना गिर जाए, इतनी care करते हैं, बहुत सजग रहते हैं कि प्रसाद है, गिरना नहीं चाहिए. ये पानी भी परमात्मा का प्रसाद है, एक बूँद भी बर्बाद नहीं होनी चाहिए …. ये भाव सामान्य व्यक्ति तक कैसे पहुँचे. जब साबरमती नदी लबालब भारी रहती थी, पानी भरपूर बहता था, महात्मा गाँधी साबरमती आश्रम में रहते थे … 1930 का वो कालखंड था … 30 के पहले का कालखंड था, लेकिन कोई अगर, पानी का पूरा ग्लास देता था, तो बापू कहते थे, आधा पीना है, आधा ही ले आओ … आधा पानी वापस करो, पानी बर्बाद मत करो. सामने नदी थी लबालब पानी से भरी थी, लेकिन वो, एक घूँट भी पानी बर्बाद होने से उन्हें पीड़ा हो जाती. ये level of consciousness और ultimately , common man का ये level of consciousness जितना बढ़ता है, उतनी ही success की संभावनाएँ बढ़ती हैं. और इसलिए हम उस दिशा में कैसे आगे बढ़ें.
'per drop more crop', ये हमारा mission statement हो सकता हैI जैसे कम ज़मीन, कम समय, ज़यादा ऊपज …. ‘per drop more crop’ ….. किसान का पेट भी भरे, और किसान को जेब भी भरे. कम भूमि में ज़यादा ऊपज हो.
इसी के साथ हमारी animal husbandry, हमारे पास जितनी मात्रा में पशु हैं, उसकी तुलना में दूध बहुत कम है. दूध की माँग ज़यादा है …… requirement भी ज़यादा है. हमारे पशु ज़्यादा दूध उत्पादन करें, यह हमारे लिए एक सहज, सरल प्रक्रिया होनी चाहिए. ये एक सहज, सामान्य, व्यवस्था का हिस्सा बनाना चाहिए. ऐसा नहीं कि universities , labs, veterinary colleges ने काम नहीं किया है, लेकिन जब तक ये काम, जो पशु-पालक है, उस तक नहीं पहुँचता है, तब तक हमें परिणाम नहीं मिलता. सारे विश्व में ये जो बदलाव आया है, वो scientific intervention से आया है. technology upgradation, और technology के involvement से आया है. हम जब तक उस दिशा में नहीं जातें, हम देश और दुनिया की माँग की पूर्ति के लिए, असक्षम महसूस करेंगे. स्थिति ऐसी है, माँग बहुत बढ़ी है, और ये हमारे लिए तो opportunity है. उस opportunity को कैसे भरें?
हमारे सामने एक सबसे बड़ा challenge है, ‘lab- to- land’, जो lab में है वो land पर कैसे आए, जो universities में है, वो कृषक के पास कैसे पहुचे? जो श्रधा universities के lab में बैठकर एक scientist को है, वो श्रधा एक कृषक के मन मैं कैसे आए? और उसके लिए progressive farmers …. यही हमारी सबसे बड़ी agency होती है. progressive farmer, mentally risk लेने के लिए तैयार होता है … उसके DNA में होता है ये. वो चाहता है, चलो मैं करूँगा . लेकिन ये हमारा कोई संबंध है क्या?
Universities के पास और agricultural colleges के पास अपने इलाक़े के progressive farmers, उनकी expertise, 35 age group के अच्छे पढ़े लिखे farmers, इनका कोई data है क्या? जो पढ़े लिखे हैं, young हैं, progressive हैं, क्या agricultural universities अपने इलाक़े के दो सौ, चार सौ , गाँवों के ऐसे लोग को एक information-bank बना सकता है? एक talent-pool बना सकता है ….they are a real talent …. talent pool बना सकता है क्या? और उस talent-pool के लोगों को address करके, उनके मध्यम से dissemination कार्यक्रम बना सकतें हैं क्या?
हमारे agricultural colleges जो हैं, उस इकाई को एक nodal agency मान कर, कम से कम हम, हिन्दुस्तान के 500-600 districts में आराम से अपना network खड़ा कर सकतें हैं. हमारे तो अनुसंधान होते रहें हैं, हमारी universities हैं, हमारी colleges हैं, और students है, और फिर एक identity है …. उन सबकी एक chain बना करके एक व्यवस्था करी जाए, और एक timeframe पर काम कैसे हो? और एक सहज प्रक्रिया के रूप में कैसे हो?
जितने हमारे agricultural colleges हैं, उनका अपना कोई radio station हो सकता है? Agricultural colleges का radio station है. और मैं इसलिए कहता हूँ agricultural colleges का radio station …. क्योंकि किसान radio बहुत सुनता है.
agriculture college जहां है, उसको उस इलाके की कृषि का पता है। वहां कॉलेज के students को भी --- ज़्यादातर उसी परिवार के बच्चे हैं जो कृषि क्षेत्र से आते हैं। वो परम्परा से भी जानता है। agricultural radio - कॉलेज चलाये, आजकल रेडियो के लिए यह सुविधा है, permission मिलती है। इन-हाउस students को काम दिया जाए - research करो और रेडियो पर आ कर talk दो। एक सहज रूप से ऐसी प्रक्रिया बन सकती है। हमारे agricultural colleges रेडियो के माध्यम से लगातार किसानों को उसी इलाके के किसानों की समस्या - बारिश देर से आये तो क्या करना है, बारिश कम आयी तो क्या करना है, फलाने प्रकार का रोग नज़र आ रहा है तो क्या करना है ? आप देखिये। अरबों खरबों रुपयों के investment से बनी हुई मीडिया वर्ल्ड के सामने एक कॉलेज के बच्चोँ के द्वारा चलाया गया किसान के उपयोग का कार्यक्रम ज़्यादा ताक़तवर होगा, credible होगा, popular होगा.
हम इस बदलाव की दिशा में जाने को तैयार हैं क्या? अगर हम बदलाव की दिशा में जाने को तैयार हैं तो हम बहुत कुछ दे सकते हैं.
ऐसा नहीं है कि हमारे students ने कोई research नहीं किया, creative काम नहीं किया है। क्या हम तय कर सकते हैं - within 4-5 years - सभी universities में अब तक agriculture में जितनी भी research हुई है, चाहे PhD हुआ हो या research paper लिखा गया हो - उन सब को digital करके compile कर सकतें हैं. पूरे हिन्दुस्तान में हमारे नौजवानो ने क्या research किया है , अगर मान लीजिए किसी ने गेहूँ पर research किया है, देश की 25 universities में 200 के करीब छात्रों ने पिछले 50 साल में research किया होगा, आज वो खजाना कहाँ पर है? क्या किसी ने इक्कठा करके दोबारा उसे देखा है, किसी university ने देखा है, की पिछले 50 साल में इस-इस प्रकार के research हुए. इन 50 साल के research को compile करके, पूरा एक digital platform तैयार हो सकता है. PhD कर ली नौकरी कर ली, retire भी हो गये, कहने के लिए हो गया कि बचपन में PhD कर ली थी.
देश को क्या मिला ? और उसका कारण है, हम चीज़ों को उसकी मलकियत बना देते हैं, जो राष्ट्र की धरोहर है. उस गौरव गान के साथ उसे जोड़ते नहीं हैं.
मैं वो चीज़ें बता रहा हूँ आपको , जिसके लिए कोई बहुत बड़ा बजट नहीं लगता है. बहुत बड़ा एकदम कोई सूर्य-चंद्र पर से विज्ञान उतारने की ज़रूरत नही पड़ती, सहज व्यवहार की बातें हैं. और आप देखिए, ये ताक़त इतनी बढ जाएगी…
आज भी हमारे यहाँ pulses and oilseeds बहुत बड़े challenge हैं . Pulses का उत्पादन - जिसमें प्रोटीन content, ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति के लिए प्रोटीन का source ही , उस ग़रीब आदमी का भला करना है तो उसे वो pulses मिलें , प्रोटीन जिसमे ज़्यादा हो. ताकि उसकी जिंदगी में वो काम आए, हम उसको priority दे सकतें हैं. Oilseeds, भारत कृषि प्रधान देश है, और हमे तेल बाहर से मंगवाना पड़ता है. अगर लाल बहादुर शास्त्री कहें 'जय जवान, जय किसान', और हिन्दुस्तान का किसान खड़ा हो जाए, हिन्दुस्तान का पेट भरने के लिए सामर्थ्य पैदा कर दे, तो क्या हमारे हिन्दुस्तान के किसान के सामने ये challenge नही रख सकते कि हमें कुछ करना है ? खाने का तेल हम बाहर से नहीं लाएँगे. आइए हम सब मिलकर मेहनत करें. देश की आवश्यकतायें हैं, और ये उन आवश्यकतयों की पूर्ति के लिए उठाए गये कदम हैं. हम goal set कर सकतें हैं, goal achieve कर सकतें हैं क्या ? जब तक हम सामान्य मानव की और देश की आवश्यकतयों का अनुसंधान नहीं करते, design strategy workout नहीं करते, resource mobilise नहीं करते, और उसके अनुसार human resource को develop करने की कोशिश नहीं करते, हमें जो चाहिए वो परिणाम प्राप्त नहीं कर सकतें. और इसलिए मैं आज ,जो इस प्रकार के प्रमुख लोग यहाँ बैठे हैं, "नही होता है" उसका analysis छोड़ कर, "कैसे हो" उसका analysis करना है. इसपर हम कैसे काम कर सकते हैं.
Blue revolution. भारत के तिरंगे झंडे में हम White revolution की बात करतें हैं, Green revolution की बात करतें हैं, लेकिन जो blue colour का अशोक चक्र है उसको भी देखने की ज़रूरत है. और वो blue revolution है हमारी सामुद्रिक संपत्ति. Fisheries, उसके क्षेत्र में development, बहुत बड़ा global market पड़ा हुआ है. हमारे fisherman की जिंदगी बदले. बहुत प्रकार की बातें हो रहीं हैं, fisheries में एक बहुत बड़ा क्षेत्र खुल गया है, अब मोती का खेती हो रही है. बहुत बड़ा काम हो रहा है, हमारी science faculty, हमारे मछुआरे, और हमारे समुद्र तट पर रहने वाले नागरिक, seaweed की खेती, scientific ढंग से कैसे हो, seaweed इन दिनों Pharmaceutical world के लिए सबसे बड़ा raw material input है, global market है seaweed का. पर हमारे समुद्र तट पर हम seaweed की खेती का उतना साहस नहीं कर पा रहे. और seaweed में भी इतनी variety है, और इतना potential है उसके अंदर ,seaweed मनुष्य के काम आए या ना आए, ऐसे ही crush करके उसका रस खेत में छींट दिया जाए तो खेती के लिए वो बहुत बड़ी दवाई, और fertilizer दोनो का काम कर देता है.
क्या कारण है की हिमालय हमारे पास हो और चीन के पास भी हिमालय का कुछ भाग हो, चीन Herbal medicine में बहुत आगे है, और हम medicinal plants के संबंध में धीरे धीरे चिंता के क्षेत्र में चले जाएँ. Medicinal plants के क्षेत्र में हमारी कोशिश क्या है, हम क्या नया दें सकतें हैं, हमारे medicinal plants का maximum utilisation कैसे हो. Pharmaceutical industry, Pharmaceutical department और Agriculture department and research institution, ये चार मिल करके, इस विषय में क्या कर सकतें हैं?
मैं समझता हूँ इतना सारा बड़ा, sky is the limit, इस प्रकार का क्षेत्र हमारे सामने खुला पड़ा है, अगर हम सब मिलकर इस नयी सोच के साथ इस दिशा में आगे बढ़ें, हम आनेवाले दिनो में ना सिर्फ़ भारत को बल्कि विश्व को बहुत कुछ दें सकतें हैं.
जिन महानुभावों ने इस काम में योगदान दिया है, उनका अभिनंदन करने का मुझे अवसर मिला. इसके लिए मैं उन्हे बहुत बहुत बधाई देता हूँ. मुझे आप सबके बीच आने का अवसर मिला, मेरा सौभाग्य है, मेरी बहुत बहुत सुभकामनायें हैं.
बहुत बहुत धन्यवाद.
मंच पर विराजमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी, वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी जी, यहां उपस्थित, नाबार्ड के वरिष्ठ मैनेजमेंट के सदस्य, सेल्फ हेल्प ग्रुप के सदस्य,कॉपरेटिव बैंक्स के सदस्य, किसान उत्पाद संघ- FPO’s के सदस्य, अन्य सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनों,
आप सभी को वर्ष 2025 की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। वर्ष 2025 की शुरुआत में ग्रामीण भारत महोत्सव का ये भव्य आयोजन भारत की विकास यात्रा का परिचय दे रहा है, एक पहचान बना रहा है। मैं इस आयोजन के लिए नाबार्ड को, अन्य सहयोगियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।
साथियों,
हममें से जो लोग गाँव से जुड़े हैं, गाँव में पले बढ़े हैं, वो जानते हैं कि भारत के गाँवों की ताकत क्या है। जो गाँव में बसा है, गाँव भी उसके भीतर बस जाता है। जो गाँव में जिया है, वो गाँव को जीना भी जानता है। मेरा ये सौभाग्य रहा कि मेरा बचपन भी एक छोटे से कस्बे में एक साधारण परिवेश में बीता! और, बाद में जब मैं घर से निकला, तो भी अधिकांश समय देश के गाँव-देहात में ही गुजरा। और इसलिए, मैंने गाँव की समस्याओं को भी जिया है, और गाँव की संभावनाओं को भी जाना है। मैंने बचपन से देखा है, कि गाँव में लोग कितनी मेहनत करते रहे हैं, लेकिन, पूंजी की कमी के कारण उन्हें पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाते थे। मैंने देखा है, गाँव में लोगों की कितने यानी इतनी विविधताओं से भरा सामर्थ्य होता है! लेकिन, वो सामर्थ्य जीवन की मूलभूत लड़ाइयों में ही खप जाता है। कभी प्राकृतिक आपदा के कारण फसल नहीं होती थी, कभी बाज़ार तक पहुँच न होने के कारण फसल फेंकनी पड़ती थी, इन परेशानियों को इतने करीब से देखने के कारण मेरे मन में गाँव-गरीब की सेवा का संकल्प जगा, उनकी समस्याओं के समाधान की प्रेरणा आई।
आज देश के ग्रामीण इलाकों में जो काम हो रहे हैं, उनमें गाँवों के सिखाये अनुभवों की भी भूमिका है। 2014 से मैं लगातार हर पल ग्रामीण भारत की सेवा में लगा हूँ। गाँव के लोगों को गरिमापूर्ण जीवन देना, ये सरकार की प्राथमिकता है। हमारा विज़न है भारत के गाँव के लोग सशक्त बने, उन्हें गाँव में ही आगे बढ़ने के ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलें, उन्हें पलायन ना करना पड़े, गांव के लोगों का जीवन आसान हो और इसीलिए, हमने गाँव-गाँव में मूलभूत सुविधाओं की गारंटी का अभियान चलाया। स्वच्छ भारत अभियान के जरिए हमने घर-घर में शौचालय बनवाए। पीएम आवास योजना के तहत हमने ग्रामीण इलाकों में करोड़ों परिवारों को पक्के घर दिए। आज जल जीवन मिशन से लाखों गांवों के हर घर तक पीने का साफ पानी पहुँच रहा है।
साथियों,
आज डेढ़ लाख से ज्यादा आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के बेहतर विकल्प मिल रहे हैं। हमने डिजिटल टेक्नालजी की मदद से देश के बेस्ट डॉक्टर्स और हॉस्पिटल्स को भी गाँवों से जोड़ा है। telemedicine का लाभ लिया है। ग्रामीण इलाकों में करोड़ों लोग ई-संजीवनी के माध्यम से telemedicine का लाभ उठा चुके हैं। कोविड के समय दुनिया को लग रहा था कि भारत के गाँव इस महामारी से कैसे निपटेंगे! लेकिन, हमने हर गाँव में आखिरी व्यक्ति तक वैक्सीन पहुंचाई।
साथियों,
ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए बहुत आवश्यक है कि गांव में हर वर्ग को ध्यान में रखते हुए आर्थिक नीतियां बनें। मुझे खुशी है कि पिछले 10 साल में हमारी सरकार ने गांव के हर वर्ग के लिए विशेष नीतियां बनाई हैं, निर्णय लिए हैं। दो-तीन दिन पहले ही कैबिनेट ने पीएम फसल बीमा योजना को एक वर्ष अधिक तक जारी रखने को मंजूरी दे दी। DAP दुनिया, में उसका दाम बढ़ता ही चला जा रहा है, आसमान को छू रहा है। अगर वो दुनिया में जो दाम चल रहे हैं, अगर उस हिसाब से हमारे देश के किसान को खरीदना पड़ता तो वो बोझ में ऐसा दब जाता, ऐसा दब जाता, किसान कभी खड़ा ही नहीं हो सकता। लेकिन हमने निर्णय किया कि दुनिया में जो भी परिस्थिति हो, कितना ही बोझ न क्यों बढ़े, लेकिन हम किसान के सर पर बोझ नहीं आने देंगे। और DAP में अगर सब्सिडी बढ़ानी पड़ी तो बढ़ाकर के भी उसके काम को स्थिर रखा है। हमारी सरकार की नीयत, नीति और निर्णय ग्रामीण भारत को नई ऊर्जा से भर रहे हैं। हमारा मकसद है कि गांव के लोगों को गांव में ही ज्यादा से ज्यादा आर्थिक मदद मिले। गांव में वो खेती भी कर पाएं और गांवों में रोजगार-स्वरोजगार के नए मौके भी बनें। इसी सोच के साथ पीएम किसान सम्मान निधि से किसानों को करीब 3 लाख करोड़ रुपए की आर्थिक मदद दी गई है। पिछले 10 वर्षों में कृषि लोन की राशि साढ़े 3 गुना हो गई है। अब पशुपालकों और मत्स्य पालकों को भी किसान क्रेडिट कार्ड दिया जा रहा है। देश में मौजूद 9 हजार से ज्यादा FPO, किसान उत्पाद संघ, उन्हें भी आर्थिक मदद दी जा रही है। हमने पिछले 10 सालों में कई फसलों पर निरंतर MSP भी बढ़ाई है।
साथियों,
हमने स्वामित्व योजना जैसे अभियान भी शुरू किए हैं, जिनके जरिए गांव के लोगों को प्रॉपर्टी के पेपर्स मिल रहे हैं। पिछले 10 वर्षों में, MSME को भी बढ़ावा देने वाली कई नीतियां लागू की गई हैं। उन्हें क्रेडिट लिंक गारंटी स्कीम का लाभ दिया गया है। इसका फायदा एक करोड़ से ज्यादा ग्रामीण MSME को भी मिला है। आज गांव के युवाओं को मुद्रा योजना, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाओं से ज्यादा से ज्यादा मदद मिल रही है।
साथियों,
गांवों की तस्वीर बदलने में को-ऑपरेटिव्स का बहुत बड़ा योगदान रहा है। आज भारत सहकार से समृद्धि का रास्ता तय करने में जुटा है। इसी उद्देश्य से 2021 में अलग से नया सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया। देश के करीब 70 हजार पैक्स को कंप्यूटराइज्ड भी किया जा रहा है। मकसद यही है कि किसानों को, गांव के लोगों को अपने उत्पादों का बेहतर मूल्य मिले, ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो।
साथियों,
कृषि के अलावा भी हमारे गाँवों में अलग-अलग तरह की पारंपरिक कला और कौशल से जुड़े हुए कितने ही लोग काम करते हैं। अब जैसे लोहार है, सुथार है, कुम्हार है, ये सब काम करने वाले ज़्यादातर लोग गाँवों में ही रहते आए हैं। रुरल इकॉनमी, और लोकल इकॉनमी में इनका बहुत बड़ा contribution रहा है। लेकिन पहले इनकी भी लगातार उपेक्षा हुई। अब हम उन्हें नई नई skill, उसमे ट्रेन करने के लिए, नए नए उत्पाद तैयार करने के लिए, उनका सामर्थ्य बढ़ाने के लिए, सस्ती दरों पर मदद देने के लिए विश्वकर्मा योजना चला रहे हैं। ये योजना देश के लाखों विश्वकर्मा साथियों को आगे बढ़ने का मौका दे रही है।
साथियों,
जब इरादे नेक होते हैं, नतीजे भी संतोष देने वाले होते हैं। बीते 10 वर्षों की मेहनत का परिणाम देश को मिलने लगा है। अभी कुछ दिन पहले ही देश में एक बहुत बड़ा सर्वे हुआ है और इस सर्वे में कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं। साल 2011 की तुलना में अब ग्रामीण भारत में Consumption खपत, यानी गांव के लोगों की खरीद शक्ति पहले से लगभग तीन गुना बढ़ गई है। यानी लोग, गांव के लोग अपने पसंद की चीजें खरीदने में पहले से ज़्यादा खर्च कर रहे हैं। पहले स्थिति ये थी कि गांव के लोगों को अपनी कमाई का 50 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा, आधे से भी ज्यादा हिस्सा खाने-पीने पर खर्च करना पड़ता था। लेकिन आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि ग्रामीण इलाकों में भी खाने-पीने का खर्च 50 प्रतिशत से कम हुआ है, और, और जीवन की चीजें खरीदने ती तरफ खर्चा बढ़ा है। इसका मतलब लोग अपने शौक की, अपनी इच्छा की, अपनी आवश्यकता जी जरूरत की और चीजें भी खरीद रहे हैं, अपना जीवन बेहतर बनाने पर खर्च कर रहे हैं।
साथियों,
इसी सर्वे में एक और बड़ी अहम बात सामने आई है। सर्वे के अनुसार शहर और गाँव में होने वाली खपत का अंतर कम हुआ है। पहले शहर का एक प्रति परिवार जितना खर्च करके खरीद करता था और गांव का व्यक्ति जो कहते है बहुत फासला था, अब धीरे-धीरे गांव वाला भी शहर वालो की बराबरी करने में लग गया है। हमारे निरंतर प्रयासों से अब गाँवों और शहरों का ये अंतर भी कम हो रहा है। ग्रामीण भारत में सफलता की ऐसी अनेक गाथाएं हैं, जो हमें प्रेरित करती हैं।
साथियों,
आज जब मैं इन सफलताओं को देखता हूं, तो ये भी सोचता हूं कि ये सारे काम पहले की सरकारों के समय भी तो हो सकते थे, मोदी का इंतजार करना पड़ा क्या। लेकिन, आजादी के बाद दशकों तक देश के लाखो गाँव बुनियादी जरूरतों से वंचित रहे हैं। आप मुझे बताइये, देश में सबसे ज्यादा SC कहां रहते हैं गांव में, ST कहां रहते हैं गांव में, OBC कहां रहते हैं गांव में। SC हो, ST हो, OBC हो, सामज के इस तबके के लोग ज्यादा से ज्यादा गांव में ही अपना गुजारा करते हैं। पहले की सरकारों ने इन सभी की आवश्यकताओं की तरफ ध्यान नहीं दिया। गांवों से पलायन होता रहा, गरीबी बढ़ती रही, गांव-शहर की खाई भी बढ़ती रही। मैं आपको एक और उदाहरण देता हूं। आप जानते हैं, पहले हमारे सीमावर्ती गांवों को लेकर क्या सोच होती थी! उन्हें देश का आखिरी गाँव कहा जाता था। हमने उन्हें आखिरी गाँव कहना बंद करवा दिया, हमने कहा सूरज की पहली किरण जब निकलती है ना, तो उस पहले गांव में आती है, वो आखिरी गांव नहीं है और जब सूरज डूबता है तो डूबते सूरज की आखिरी किरण भी उस गांव को आती है जो हमारी उस दिशा का पहला गांव होता है। और इसलिए हमारे लिए गांव आखिरी नहीं है, हमारे लिए प्रथम गांव है। हमने उसको प्रथम गाँव का दर्जा दिया। सीमांत गांवों के विकास के लिए Vibrant विलेज स्कीम शुरू की गई। आज सीमांत गांवों का विकास वहां के लोगों की आय बढ़ा रहा है। यानि जिन्हें किसी ने नहीं पूछा, उन्हें मोदी ने पूजा है। हमने आदिवासी आबादी वाले इलाकों के विकास के लिए पीएम जनमन योजना भी शुरू की है। जो इलाके दशकों से विकास से वंचित थे, उन्हें अब बराबरी का हक मिल रहा है। पिछले 10 साल में हमारी सरकार द्वारा पहले की सरकारों की अनेक गलतियों को सुधारा गया है। आज हम गाँव के विकास से राष्ट्र के विकास के मंत्र को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि, 10 साल में देश के करीब 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं। और इनमें सबसे बड़ी संख्या हमारे गांवों के लोगों की है।
अभी कल ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की भी एक अहम स्टडी आई है। उनका एक बड़ा अध्ययन किया हुआ रिपोर्ट आया है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट क्या कह रही है, वो कहते हैं 2012 में भारत में ग्रामीण गरीबी रूरल पावर्टी, यानि गांवों में गरीबी करीब 26 परसेंट थी। 2024 में भारत में रूरल पावर्टी, यानि गांवों में गरीबी घटकर के पहले जो 26 पर्सेंट गरीबी थी, वो गरीबी घटकर के 5 परसेंट से भी कम हो गई है। हमारे यहां कुछ लोग दशकों तक गरीबी हटाओ के नारे देते रहे, आपके गांव में जो 70- 80 साल के लोग होंगे, उनको पूछना, जब वो 15-20 साल के थे तब से सुनते आए हैं, गरीबी हटाओ, गरीबी हटाओ, वो 80 साल के हो गए हैं। आज स्थिति बदल गई है। अब देश में वास्तविक रूप से गरीबी कम होना शुरू हो गई है।
साथियों,
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं का हमेशा से बहुत बड़ा स्थान रहा है। हमारी सरकार इस भूमिका का और विस्तार कर रही है। आज हम देख रहे हैं गाँव में बैंक सखी और बीमा सखी के रूप में महिलाएं ग्रामीण जीवन को नए सिरे से परिभाषित कर रही हैं। मैं एक बार एक बैंक सखी से मिला, सब बैंक सखियों से बात कर रहा था। तो एक बैंक सखी ने कहा वो गांव के अंदर रोजाना 50 लाख, 60 लाख, 70 लाख रुपये का कारोबार करती है। तो मैंने कहा कैसे? बोली सुबह 50 लाख रुपये लेकर निकलती हूं। मेरे देश के गांव में एक बेटी अपने थैले में 50 लाख रुपया लेकर के घूम रही है, ये भी तो मेरे देश का नया रूप है। गाँव-गाँव में महिलाएं सेल्फ हेल्प ग्रुप्स के जरिए नई क्रांति कर रही हैं। हमने गांवों की 1 करोड़ 15 लाख महिलाओं को लखपति दीदी बनाया है। और लखपति दीदी का मतलब ये नहीं कि एक बार एक लाख रुपया, हर वर्ष एक लाख रुपया से ज्यादा कमाई करने वाली मेरी लखपति दीदी। हमारा संकल्प है कि हम 3 करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाएंगे। दलित, वंचित, आदिवासी समाज की महिलाओं के लिए हम विशेष योजनाएँ भी चला रहे हैं।
साथियों,
आज देश में जितना rural infrastructure पर फोकस किया जा रहा है, उतना पहले कभी नहीं हुआ। आज देश के ज़्यादातर गाँव हाइवेज, एक्सप्रेसवेज और रेलवेज के नेटवर्क से जुड़े हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 10 साल में ग्रामीण इलाकों में करीब चार लाख किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई गई है। डिजिटल इनफ्रास्ट्रक्चर के मामले में भी हमारे गाँव 21वीं सदी के आधुनिक गाँव बन रहे हैं। हमारे गांव के लोगों ने उन लोगों को झुठला दिया है जो सोचते थे कि गांव के लोग डिजिटल टेक्नोलॉजी अपना नहीं पाएंगे। मैं यहां देख रहा हूं, सब लोग मोबाइल फोन से वीडियो उतार रहे हैं, सब गांव के लोग हैं। आज देश में 94 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण परिवारों में टेलीफोन या मोबाइल की सुविधा है। गाँव में ही बैंकिंग सेवाएँ और UPI जैसी वर्ल्ड क्लास टेक्नालजी उपलब्ध है। 2014 से पहले हमारे देश में एक लाख से भी कम कॉमन सर्विस सेंटर्स थे। आज इनकी संख्या 5 लाख से भी ज्यादा हो गई है। इन कॉमन सर्विस सेंटर्स पर सरकार की दर्जनों सुविधाएं ऑनलाइन मिल रही हैं। ये इनफ्रास्ट्रक्चर गाँवों को गति दे रहा है, वहां के रोजगार के मौके बना रहा है और हमारे गाँवों को देश की प्रगति का हिस्सा बना रहा है।
साथियों,
यहां नाबार्ड का वरिष्ठ मैनेजमेंट है। आपने सेल्फ हेल्प ग्रुप्स से लेकर किसान क्रेडिट कार्ड जैसे कितने ही अभियानों की सफलता में अहम रोल निभाया है। आगे भी देश के संकल्पों को पूरा करने में आपकी अहम भूमिका होगी। आप सभी FPO’s- किसान उत्पाद संघ की ताकत से परिचित हैं। FPO’s की व्यवस्था बनने से हमारे किसानों को अपनी फसलों का अच्छा दाम मिल रहा है। हमें ऐसे और FPOs बनाने के बारे में सोचना चाहिए, उस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। आज दूध का उत्पादन,किसानों को सबसे ज्यादा रिटर्न दे रहा है। हमें अमूल के जैसे 5-6 और को-ऑपरेटिव्स बनाने के लिए काम करना होगा, जिनकी पहुंच पूरे भारत में हो। इस समय देश प्राकृतिक खेती, नेचुरल फ़ार्मिंग, उसको मिशन मोड में आगे बढ़ा रहा है। हमें नेचुरल फ़ार्मिंग के इस अभियान से ज्यादा से ज्यादा किसानों को जोड़ना होगा। हमें हमारे सेल्फ हेल्प ग्रुप्स को लघु और सूक्ष्म उद्योगों को MSME से जोड़ना होगा। उनके सामानों की जरूरत सारे देश में है, लेकिन हमें इनकी ब्रांडिंग के लिए, इनकी सही मार्केटिंग के लिए काम करना होगा। हमें अपने GI प्रॉडक्ट्स की क्वालिटी, उनकी पैकेजिंग और ब्राडिंग पर भी ध्यान देना होगा।
साथियों,
हमें रुरल income को diversify करने के तरीकों पर काम करना है। गाँव में सिंचाई कैसे affordable बने, माइक्रो इरिगेशन का ज्यादा से ज्यादा से प्रसार हो, वन ड्रॉप मोर क्रॉप इस मंत्र को हम कैसे साकार करें, हमारे यहां ज्यादा से ज्यादा सरल ग्रामीण क्षेत्र के रुरल एंटरप्राइजेज़ create हों, नेचुरल फ़ार्मिंग के अवसरों का ज्यादा से ज्यादा लाभ रुरल इकॉनमी को मिले, आप इस दिशा में time bound manner में काम करें।
साथियों,
आपके गाँव में जो अमृत सरोवर बना है, तो उसकी देखभाल भी पूरे गाँव को मिलकर करनी चाहिए। इन दिनों देश में ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान भी चल रहा है। गाँव में हर व्यक्ति इस अभियान का हिस्सा बने, हमारे गाँव में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगें, ऐसी भावना जगानी जरूरी है। एक और सबसे महत्वपूर्ण बात, हमारे गाँव की पहचान गाँव के सौहार्द और प्रेम से जुड़ी होती है। इन दिनों कई लोग जाति के नाम पर समाज में जहर घोलना चाहते हैं। हमारे सामाजिक ताने बाने को कमजोर बनाना चाहते हैं। हमें इन षडयंत्रों को विफल बनाकर गाँव की सांझी विरासत, गांव की सांझी संस्कृति को हमें जीवंत रखना है, उसको सश्क्त करना है।
भाइयों बहनों,
हमारे ये संकल्प गाँव-गाँव पहुंचे, ग्रामीण भारत का ये उत्सव गांव-गांव पहुंचे, हमारे गांव निरंतर सशक्त हों, इसके लिए हम सबको मिलकर के लगातार काम करना है। मुझे विश्वास है, गांवों के विकास से विकसित भारत का संकल्प जरूर साकार होगा। मैं अभी यहां GI Tag वाले जो लोग अपने अपने प्रोडक्ट लेकर के आए हैं, उसे देखने गया था। मैं आज इस समारोह के माध्यम से दिल्लीवासियों से आग्रह करूंगा कि आपको शायद गांव देखने का मौका न मिलता हो, गांव जाने का मौका न मिलता हो, कम से कम यहां एक बार आइये और मेरे गांव में सामर्थ्य क्या है जरा देखिये। कितनी विविधताएं हैं, और मुझे पक्का विश्वास है जिन्होंने कभी गांव नहीं देखा है, उनके लिए ये एक बहुत बड़ा अचरज बन जाएगा। इस कार्य को आप लोगों ने किया है, आप लोग बधाई के पात्र हैं। मेरी तरफ से आप सब को बहुत बहुत शुभकामनाएं, बहुत-बहुत धन्यवाद।