आदरणीय श्री डॉ. ऍम. एस. स्वामीनाथन जी मंत्री परिषद् में मेरे साथी श्रीमान राधा मोहन सिंह जी और उपस्थित सभी महानुभव,
जब मैं गुजरात में मुख्यमंत्री के नाते कार्यभार संभाल रहा था तब डॉ स्वामीनाथन जी से मेरा परिचय आया और उस समय हमने एक soil health card योजना को प्रारम्भ किया था। जब उस विचार को मैं कर रहा था तो मेरे यंहा से भी काफी bureaucratic resistance रहता था कि क्या कर रहे हो, क्या कर रहे हो वगैहरा-वगैहरा लेकिन जब स्वामीनाथन जी ने Public के लिए एक बयान दिया शायद Chennai से दिया था और ये कितना बड़ा महत्वपूर्ण कदम हमने उठाया हैं और इससे आगे चल के कितना लाभ होगा और एक दम मेरी सरकार में मेरे साथियों को जो चीज़ मैं समझा नहीं पा रहा था मुझे बड़ी मेहनत करनी पड़ रही थी कि नहीं नहीं भई इसको करना है कैसे करना है लेकिन जैसे ही डॉ. स्वामीनाथन जी का Statement आया अखबार में सारे Bureaucracy का मूड बदल गया सब को लगा अरे यह तो बड़ा महत्वपूर्ण काम कर रहा है अब करना है। यह मैं इसलिए कह रहा हूं कि उनकी जो तपस्या है साधना है इसका कितना मूल्य है वो वहां मैंने खुद ने अनुभव किया अब तो वो योजना पूरे देश मे लागू करने का हमारा प्रयास है और अब वैसे वो कहे जाते है कृषि वैज्ञानिक लेकिन कभी-कभी मुझे लगता है वो किसान वैज्ञानिक है उनके भीतर एक किसान जिंदा है सिर्फ Laboratory वाला कृषि, Production, Quality इससे ज्यादा उनके जो Papers वगैहरा देखे तो भारतीय संदर्भ में है। भारत की कृषि के संदर्भ मे हैं। भारत के किसान केंद्रित है यह जब चीज़े आती है तो वो relevant हो जाती है वरना कभी-कभार जमीन से काफी ऊपर बहुत सी चीजे आती हैं लेकिन फिर वो बीच का Gap पूरा नहीं होता है डॉ. स्वामीनाथन जी की विशेषता रही है कि उन्होने जो चीजे जब भी प्रस्तुत की वो जमीन से जुडी हुई थी और उसका परिणाम यह हुआ कि बहुत ही relevant लगी और ज्यादातर उसका उपयोग भी हुआ।
आज के यूवा को डॉ. स्वामीनाथन कैसे प्रेरणा दे सकते हैं हमारे देश का एक problem है की राज नेताओ को सब जानते हैं वैज्ञानिक को बहुत कम लोग जानते है हर गली मोहल्ले में राज नेताओ के नाम जाने जाते हैं लेकिन इतना बड़ा Contribution करने वाले लोगो की पहचान हमारे यहां होती नही है शायद व्यवस्था का दोष होगा या स्वभाव का दोष होगा जो भी होगा लेकिन लम्बे अरसे से कमी महसुस हो रही है और उसके कारण शायद आज के यूवा पीढ़ी को भी एक खिलाडी से Inspiration मिल सकता होगा एक senior कलाकार से मिल सकता होगा, किसी राज नेता से मिल सकता होगा, किसी बड़े उद्योगी घराने से मिल सकता होगा लेकिन mass Level पर यूवा को वैज्ञानिको की तरफ ध्यान नहीं जाता।
आप कल्पना कीजिये कि एक वैज्ञानिक अपनी यूवा अवस्था मे दुनिया की एक कल्पना के भारत तो भूखा मरेगा भारत तो खत्म होगा निराशा का माहौल हो भारत को बिलकुल या मान लिया गया कि ये तो गया ऐसे समय एक यूवा वैज्ञानिक संकल्प पकड़ कर कहे नहीं स्थिति बदली जा सकती है और हम बदल के रहेंगे पुरे Green Revolution के मुड में एक यूवा वैज्ञानिक का वो संकल्प है जो डॉ. स्वामीनाथन के रूप मे हमारे सामने दौड़ रही है ये चीजे आज की यूवा पीढ़ी को पता नहीं है आज के यूवा के सामने भी अगर ये विशाए हैं start-up की दुनिया है उनके सामने आये हुए Malnutrition एक चुनौती है। तिलहन, दलहन pulses हमारे pulses मे productivity भी कम है उसमे protein contained value भी बढ़ाने की आवश्यकता हैं। अब यह चुनौतिया आज की यूवा पीढ़ी अगर मन में दम मान के चले के malnutrition की अवस्था में बदल के रहेंगे हम देश के Agriculture Revolution में इस प्रकार की चीजे लायेंगे और महात्मा गाँधी भी कहा करते थे भूखे का भगवान तो रोटी होता है और यही बात हम वैज्ञानिक तौर-तरीके से कैसे आगे बढ़ाये, मुझे कुछ चीजे व्यक्तिगत जीवन मे बड़ी अपील हो जाती है जैसे मैं मानता हूं शायद हिन्दुस्तान के सभी प्रधानमंत्रीयों के साथ आपने काम किया है पहले से लेकर के मेरे तक आपने दुनिया में देखा है किसी एक प्रधानमंत्री के पास पुरानी भी फोटो खड़ी हो तो आदमी 2 ft. ऊपर चलता है यह इतनी सादगी इतनी सरलता कभी यह चीजे स्वामीनाथन जी में reflect नहीं देखी मैंने और यह चीजे मैं किताब के आधार पर नहीं कह रहा हूं अपने अनुभव से कह रहा हूं। मैं गुजरात में था ऐसे ही simple way में आते थे मिलते थे और जब मिलते थे तो पता भी नहीं चलता था कि ये इतने बड़े आदमी है, पता ही नहीं चलता था जी, यह अपने आप में सावर्जनिक रूप मे सफलता को पचाना कैसे यह बहुत सीखने जैसी चीजें हैं। एक व्यक्ति के रूप में चेहरे पर प्रसन्नता शायद ही किसी ने उनको चेहरे पर अप्रसन्न देखा हो वरना ज़्यादातर वैज्ञानिक (मुझे माफ़ करना) यहां बैठे हुए हैं, वो 21वीं सदी में भी ऐसे जीते है जैसे 18वीं शताब्दी मे रहते हों सारी दुनिया का बोझ उनके ऊपर होता है खोये से रहते है परिवार के लोग भी परेशान रहते हैं कि यह बोलते क्यों नहीं है इनके जीवन में बड़ा उल्टा है सदा प्रसन्नचीत यह अपने आप में बड़ी और यह तब होता है कि जब जीवन की कुछ चीजों को internalize किया हो दिमागी ज्ञान से संभव नहीं है रगो में वो बातें जब दौड़ती हैं तब यह संभव होता है और मैं मानता हूं कोई न कोई ईश्वर कृपा रही होगी कोई न कोई उनकी मात-पिता के संस्कारो के कारण रहा हो, यह उन्हे जीवन में पहुंचाया है।
हमारे देश में कृषि क्षेत्र को लेकर आज भी चुनौतिया वैसे की वैसे हैं Green Revolution से 2nd Green Revolution की चर्चा होती हैं लेकिन Evergreen revolution भारत जैसे देश के सामने लक्ष्य हैं और Evergreen Revolution ही हमारा लक्ष्य हैं तो हमने भारत का Potential कहा है उसको पहले एक बार mapping करने की आवश्यकता हैं कुछ मात्रा में होता है अब हिन्दुस्तान का पूर्वी हिस्सा आर्थिक रूप से हमें बहुत imbalance दिखता है पश्चिमी भारत की आर्थिक स्थिति एक पूर्वी भारत की आर्थिक स्थिति दूसरी कोई भी देश ऐसे imbalance अवस्था में लम्बी दौड़ नहीं दौड़ सकता है कही ना कही तो वो लड़खड़ा जायेगा जब की दोनों पैरो में सामान ताकत हो दोनों हाथो में सामान ताकत हो यह आवशयक है अब पूर्वी हिंदुस्तान में जैसे पश्चिमी भारत में गेहूं के द्वारा धान के द्वारा 1st Agro Revolution को Lead किया Evergreen Revolution को lead की ताकत पूर्वी हिंदुस्तान के Rice में है चावल में है और मैं मानता हूं पानी है जमीन है मेहनती लोग हैं वैज्ञानिक Intervention की आवश्यकता हैं Technology Intervention की आवश्यकता हैं यह अगर हम करने में हैं और सरकार इन उस दिशा में काम कर रही है डॉ. साहब से भी हम काफी सुझाव लेते रहते हैं अभी पिछले दिनों मैं मिला तो इसी विषय पर मेंने उनसे चर्चायें की हैं मुझे ज़रा इसमें ज़रा आप Guide कीजिये। आज वो आये और हमारे Team को काफी दिन पुरे दिन सुबह उनको पढ़ाया भी कि देखो भई देखो यह हो सकता है, यह हो सकता है तो कोशिश यह है कि हमारी के इस क्षेत्र में कैसे काम करें अब यह बात सही है कि जनसंख्या बढ़ रही हैं ज़मीन बढ़ने वाली नहीं हैं कम होने वाली है तब Soil management ये अहम आवश्यकताएं होती है।
Holistic approach कैसे हो इसके लिए हमारी productivity कैसे बढे हमारे पास marginal farmers 85% हैं देश में ऐसी स्थिति में हमारे किसान कम जमीन में भी ज्यादा उत्पादन और उत्पादिक चीजें भी सिर्फ खुद के पेट भरने के लिए नहीं उसके अपने इसकी अपनी market value ऐसे हो quality ऐसी हो ताकि वो अपनी रोजी रोटी कमा सके हम इस दिशा में किस तरह बल दे सकते हैं उसी प्रकार से पानी का संकट सारी दुनिया में इसकी चर्चा है हम recycling करें हम water conservation करे यह सारा करने के बावजूद भी पानी एक चुनौती है ऐसा मान के चलना चाहिए और पानी एक ऐसा विषय नहीं है की जब आयेगा तब देखा जाएगा जी नहीं अगर 20 साल 50 साल पहले सोच करके एक-एक चीज़ को अभी से करना शुरू करेंगे तब जा कर के अब इस विषय पर समाज में वो sensitivity तुरंत नहीं आती हैं जैसे air pollution even कितने ही पढ़े लिखे व्यक्ति होंगे इसका कितना संकट होगा समझते समझते देर चली जाती है।
पानी के संकट को भी सामान्य मानवीय को संकट के रूप में अनुभूति कराना बड़ा कठिन है और इसलिए water conservation के साथ-साथ हम पानी का उपयोग किस प्रकार से वैज्ञानिक तरीके से करे per drop more crop इस philosophy को लेकर के काम करने का प्रयास वर्तमान में चल रहा हैं नदियों को जोड़ने का एक अभियान अगर cost effective farming की और जाना है तो हमें पानी पहुचाना पड़ेगा उसी प्रकार से soil management ही मैं एक हिस्सा मानता हूं की हम अनाप शनाप जो chemical का उपयोग कर रहें हैं fertilizer का उपयोग कर रहें हैं जो हमारी ज़मीन को तबाह कर रहें हैं। नदी तट पर जो खेत हैं वहां पर लोगो को लगता है Pollution Industries से होता हैं। कभी-कभी चिंता का विषय हैं उसके 2 चार Km के रेंज में जो खेत है जहां chemical उपयोग होता हैं और वो पानी बारिश के बाद जब ज़मीन को धोकर कर के नदी में जाता है तो कैसे भयंकर chemical लेके जाता हैं और इसलिए हमारी नदियों को बचाना नदियों के पानी को maximum उपयोग करना तो एक प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना एक बहुत बड़ा mission mode में काम शुरू किया है उसी प्रकार से एक आवशयक है हमारे यहां कभी-कभार कुछ न कुछ कारण से जो बोलचाल में जो विषय होते हैं उसे हम neglect करते हैं यह बहुत आवश्यक है कि समाज जीवन में दशकों से सदियों से जो बोलचाल के विषय होते है उसके अन्दर एक बहुत बड़ी ताकत होती हैं और laboratory में ले जाकर के उस बोलचाल की चीजों को सिद्ध करने का कोशिश करना चाहिए मेरा इसलिए अनुभव है गुजरात में एक क्षेत्र हैं जिसको भाल कहते हैं समुंद्री तट के पास में हैं खम्भात की खाड़ी के इलाके मे अब हम बचपन से सुनते आये हुए थे भालिया गेंहू कहते थे उसको और upper class के लोग रहते हैं वो भालिया गांव गेंहू खरीदना और preserve करना यह उनका स्वभाव था और बड़े मंहगें दाम से लेते थे तो हमारे मन में रहता था यह भालिया गांव भालिया गांव इसका क्या कारण होगा कुछ तो होगा तो मैं मुख्यमंत्री बना तो मैंने उसमे रूचि लेना शुरू किया और यह पाया गया कि normally गेहूं Carbon-rich छोड़ता है surprising यह गेहूं Protein-rich है और बहुत ही कम इलाके में हैं तो मैं कभी Switzerland गया था तो मैं वह Nestle वगैहरा के लोगो से मिला था मैंने कहा भई nutrition की समस्या का समाधान करने के लिए इसको कैसे उपयोग हो सकता हैं मेरे यहां मैंने एक university को इसका काम दिया इसके जीन के विषय में research किया काफी काम हुआ है जैसे Basmati शब्द हम जानते थे लेकिन हमने देखा इसकी ताक़त क्या है मुझे याद है अमरेली District गुजरात मे एक इलाका ऐसा है सामूहिक समुद्र तट से हर कोई अमीर व्यक्ति अगर बाजरा चाहे तो वही से खरीदना चाहता है तो मैंने पूछा भई और मुझे भी जब मुख्यमंत्री बना तो वहां के जो MLA थे वो मेरे लिए बाजरे एक थेले मे भरकर एक gift के रूप मे लाये थे तब तो मुझे भी मालूम नहीं था उस इलाके की बाजरे की ताक़त तो बाद में मैंने कुछ वैज्ञानिको को कहा ज़रा इसको सोचिये हिन्दुस्तान के कई कोने में ऐसी कोई ना कोई variety की चर्चा लोग जीभ पर होगी हम उसको कैसे identify करे और उसकी genetic value क्या हैं।
उसको हम और अगर वो सचमुच में कोई extra ताकत वाली चीज़े हैं या उसकी productivity की ताकत हो या कोई ना कोई ऐसा शरीर के लिए उपयोगी हो या मानव जात के लिए उपयोगी तो उसका research यह परंपरागत चीजे और विज्ञान दोनों का मेल हम जितना जल्दी करेंगे और इसलिए मैंने अभी हमारे विभाग के लोगो को कहा भई हर जिले की अपनी एक कृषि लती पहचान कौन होते हैं उस district में enter कर रहें हो के यह जिला चावल का जिला है और चावल की नाम हो पहचान हो यह जिला इसाब्गुल का जिला है यह जिला जीरा पैदा करता है हमारे इलाको की पहचान कृषि से identify हम कैसे करे यह हम लोगो की आदत नहीं है इससे एक awareness आती हैं यह district अब जैसे मुझे याद है हमारे यहां धूमल जी की सरकार है हिमाचल, मैं उस समय हिमाचल में रहता था उस समय मैंने कहा यह सोलन में मशरूम के लिए इतना काम होता है हम इसको capture क्यों नहीं कर पाते इसका branding क्यूं नहीं करते और आज आप देखते होंगे कभी सोलन जायेंगे तो वहां board लगे हुए हैं की मशरूम City में आपका स्वागत है अब धीरे धीरे उन्होने शायद और शुरू किया है apple का board लगाया है Kiwi का board लगाया है हमारे देश मे समान्यजन को इन चीजों से कैसे जोड़ा जा सकता है इससे एक पहचान बनती हैं और वो किसान भी identify होता है और जो market से जुडे लोग है और उनको भी ध्यान रखना भई यह 16 जिले हैं जिसकी चावल के लिए पहचान हैं तो व्यापार करना हैं खरीद के लिए तो यह 20 जिले है तिल्हन के लिए famous है वहीं की पहचान हैं और एक Agriculture cluster एक concept develop होगा जैसे industrial cluster का concept है वैसे Agriculture cluster को हमने विकसित करना जरुरी हैं उसके कारण है product, product के साथ उसका processing और processing से value edition इसकी संभावना बढ़ जाती हैं अगर यह हम चैन व्यवस्था खडी करते हैं उसी प्रकार से फल होंगे तो उसके storage अलग प्रकार कें होगें, धान होंगे अलग प्रकार के होंगे फल होगा तो transformation अलग होगा packaging धान होगा packaging transportation होगा एक specialisation भीतर भीतर आयेगा हमारे इतने बड़े विशाल देश को अगर इन चीजों के अन्दर हम जितना जल्दी से ले जायेंगे हम क्यूंकि हमारा सपना है 2022 जब देश की आजादी के 75 साल हो हमारे देश की किसान की income double होनी चाहिए किसान की income double हो सकती हैं कुछ दिन पहले मैं जब स्वामीनाथन जी से मिला था तो मैंने उनसे कहा था तो मैंने कहा था कुछ Agro economists से बुलाइए और चर्चा कीजिये उन्होने मुझे एक paper पर लिख कर कर भेजा कि यह यह चीजे है जिसपर ध्यान दीजिये तो मैं काम कर रहा हूं उस पर मेरे कहने का तात्पर्य यह है हम एक target के साथ काम करें एक तो cost कैसे कम हो और उत्पादन कैसे बड़े और उत्पादन का value edition कैसे हो इन 3 चीजों की ओर अब जैसे Neem coating urea अब कोई आसमान से टपका हुआ कोई विज्ञान नहीं था लेकिन हम इन चीजों को लागू करना महत्व नहीं देते थे आज Neem coating urea का परिणाम यह आया है कि यूरिया की चोरी तो खत्म हुई हुई बेईमानी तो खत्म हुई लेकिन साथ-साथ urea की खपत भी कम हो रही है और तुरंत नज़र में आया है गेंहू और चावल के उत्पादन बढ़ा है कम यूरिया का उपयोग करते हुए भी उत्पादन बढ़ा है तो यह अपने आप में ऐसी चीजें हम जितनी सरलता से प्रचारित करेंगे उतना उसका लाभ होगा भारत सरकार का इस दिशा में प्रयास है स्वामीनाथन जी की सक्रियता उनका यह प्रयास और भारत को evergreen revolution की और एक sustainable agriculture system की ओर ले जाने की दिशा में हम लोगो को वैज्ञानिक प्रयोगों को क्यूंकि सबसे बड़ी जो एक हमारी समस्या है lab to land उसमें बहुत बड़ी खायी हैं lab to land, यह हमारे टारगेट होना चाहिए वैज्ञानिक जो जिंदगी खपा देता हैं एक चीज़ देश को देने के लिए वो खेत तक नहीं पहुंचती हैं खेत तक कैसे पहुंचती और खेत तक तो तब तक नहीं पहुचती जब तक की वो किसान के दिमाग में पहले नहीं पहुंचती यह एक ऐसा उद्योगपति के दिमाग में कुछ हो जाये जेब में पैसा आ जाना चाहिए वो करेगा किसान का ऐसा नहीं है किसान जल्दी risk नहीं लेता हैं इन दिनों प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जो लाये हैं उसने एक बहुत बड़ा contribution किया है इसके पुर्व कृषि मे फसल बीमा योजना में जितने लोग आते थे इस नई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के कारण 7 गुना लोग उसके cover में रहें अभी तो शुरुआत है प्रचार भी उतना नहीं हुआ है किसान में भी ifs and buts रहते हैं लेकिन एक दम से 7 गुना एक ही साल में jump लगाना यह हमारे farmers को security का एहसास दिलाता है और एक बार security का एहसास हो गया तो उसकी risk taking capacity बढ़ जाती है और जब risk taking capacity बढ़ जाती है तो वो वैज्ञानिकों के द्वारा कहे हुए प्रयोग करने के लिए तैयार हो होता हैं एक chain शुरू हो जाती है तो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना उसमे एक बहुत बड़ी ताकत है lab to land process को आगे बढ़ाने की उस दिशा में काम चल रहा है।
मैं फिर एक बार स्वमिनाथान जी को ह्द्य से बहुत-बहुत बधाई देता हूं देश की बहुत सेवा की है देश के किसानो की बहुत सेवा की है देश के गरीब के पेट को भरने के लिए एक तपस्वी की तरह काम किया है।
बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद्