मंचस्त सभी महानुभाव और विशाल संख्या में पधारे हुए सभी पुणे के भाइयों और बहनों।
हमारे देश में बहुत तेजी से urbanization हो रहा है। आप कितनी ही व्यवस्था करें लेकिन जिस गति से शहरीकरण हो रहा है। हमारे लिए बहुत अनिवार्य हो गया है कि हम दो दिशा में काम करें। गांव में हम उस प्रकार से कार्य विकसित करें। रोजगार के अवसर पैदा करें। Quality of life इसमें गुणात्म परिवर्तन करें। जो सुविधा शहर में है। वो सुविधाएं गांव को मिलें। जो संभावनाएं शहर में है वो संभावनाएं गांव में भी हो। जो अवसर शहर को उपलब्ध है, वो अवसर गांव को भी उपलब्ध हो। तब जाकर के गांव से शहर की तरफ जोदौड़ है। उसमें हम कुछ कमी ला सकते हैं। दूसरी तरफ अगर हम टुकड़ों में सोचेंगे, अभी-अभी जीतकर के आए हैं। पांच साल में कैसे फिर से चुनाव जीतना इसी दायरे में अगर सोचेंगे, तो हम कभी भी शहरों के सामने जो चुनौतियां खड़ी हो रही है। उन चुनौतियों को कभी भी पार नहीं कर पाएंगे। और इसीलिये तत्कालिक राजनीतिक लाभ हो या न हो पच्चीस साल तीस साल के बाद हमारा शहर कैसा होगा। कितनी मात्रा में पानी की जरूरत होगी। कितने स्कूल लगेंगे कितने अस्पताल लगेंगे। ट्राफिक कितना बढ़ेगा उसकी क्या व्यवस्था होगी। इस लंबी सोच के साथ अगर हम शहर का विकास प्लानिंग करेंगे, तब जाकर के ये तेज़ गति से जो शहरीकरण हो रहा है। उस चुनौतियों को हम पार कर सकते हैं। दिल्ली में जो सरकार है उसने जिसे आपने जिम्मेवारी दी है। और इसलिये हमने हमारी कार्यशैली तत्कालीन लाभ के बजाय एक स्थायी परिवर्तन की ओर बल देने वाली बनाई है। हमनें गांवों के लिये योजना बनाई है। RurbanMission। ये RurbanMissionऐसा है, जिसमें वो गांव जो धीरे-धीरे शहर बनते चले जा रहे हैं। देखते ही देखते जनसंख्या बढ़ रही है। बड़े शहरों के बीस पच्चीस किलोमीटर के रेडियस में है। हमनें देश भर में सभी राज्यों को कहा कि ऐसे गांव छानीय निकालिये। और उन गांव को Rurban योजना के तहत विकसित करने का एक डीटेल काम चल रहा है। जिस RurbanMissionका सीधा-साधा अर्थ है आत्मा गांव की हो सुविधा शहर की हो। गांव की आत्मा मरनी नहीं चाहिए। वो सुरक्षित रहनी चाहिए, पनपनी चाहिए, लेकिन गांव वालों को 18वीं शताब्दी में जीने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। और इसलिये हमनें RurbanMission के तहत देश भर में सैकड़ों गांव उन पर फोकस किया है सुविधाएं बढ़ाने का प्रयास किया है। ताकि शहरों पर बोझ कम किया जा सके। दूसरी तरफ शहरों में बड़ा बदलाव लाने का काम और बदलाव की पहली आवश्यकता होती है, Infrastructure ज्यादातर हमारे देश में Infrastructure के प्रति उदासीनता रही है। अभी इतने से चल जाएगा तो अभी इतना सा ही रोड बनाओ। और बाद में जब रोड चौड़ा करना है तब लोगों ने Encroachmentकर लिया होता है। और फिर कोर्ट कचहरी का मसला चलता है पच्चीस तीस साल तक कोई मेल ही नहीं बैठता है। हमने ऐसे ही चलाया। पानी का नल डालेंगे, जब तक पानी के नल डालने का पूरा हो जाएगा पाइपलाइन का तब तक वहां जनसंख्या इतनी बढ़ जाएगी की वो पाइपलाइन का साइज छोटी पड़ जाएगी। फिर प्रश्न आएगा की बड़ी पाइपलाइन कैसे डाले। यानी हम विकास के उस मॉडल को लेकर चलेंहै, जिसके कारण हम तत्कालीन लाभ वो तो अनुभव करते हैं। लेकिन ऐसी व्यवस्थाएं विकसित नहीं करते के आने वाले दिनों में कितना बोझ होने वाला है उसका भी हम सोल्यूशन निकाल लें।
हमारी कोशिश है आज पूरे देश में एक साथ पचास से ज्यादा शहरों में मेट्रों की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास है। आप कल्पना कर सकते हैं कितना बड़ा आर्थिक बोझ उठाने का हमने फैसला किया है। लेकिन अगर हम टुकड़ों में करते बातों को टाल देते तो एक तो प्रोजैक्ट महंगे हो जाते, उस शहर की समस्या बढ़ती जाती, और पैसे लगाने के बाद भी वो आवश्यकता की पूर्ति करे इस स्थिति में नहीं होते। और इसलिये हमारा दूसरा प्रयास है कि जो भी काम हम हाथ में लें उसको समय सीमा में पूरा करें। हो सके तो पच्चीस तीस साल के बाद की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर के प्लानिंग करने का प्रयास करें। आज वो शायद Economically viableहो या न हो लेकिन एक बार जब बात चल पड़ी, तो Economically viable होना भी दो चार साल में हम अनुभव करने लग जाएंगे। हम क्वालीटी ऑफ लाइफ में चैंज लाना चाहते हैं।
आज पूरे देश में ढाई लाख पंचायत उनको ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोड़ने का एक बहुत बड़ा काम चल रहा है। ये डिजिटल इंडिया ये सिर्फ शहरों के लिये नहीं है। सम्पूर्ण हिन्दुस्तान को जब तक हम आधुनिक व्यवस्था और विज्ञान के साथ नहीं जोड़ेंगे, तो हम देश को आगे नहीं बढ़ा सकते। एक जमाना था जब Infrastructure की चर्चा आती थी, तो रोड, रेल, ज्यादा से ज्यादा एयरपोर्ट अब वक्त बदल चुका है। लोगों को हाईवे भी चाहिए, आईवे भी चाहिए। हाईवेज Information base हाईवे भी चाहिए, आईवे भी चाहिए। अगर आईवेज चाहिए तो ऑप्टीकल फाइबर हमें पूरे देश में खड़ा करना पड़ेगा। पहले पानी का नल लग रहा है। पानी का पाइपलाइन लग जाए तो खुश हो जाते हैं। आज लोगों का कहना है कि साहब हमारे यहां गैस की पाइपलाइन भी चाहिए वक्त बदल चुका है, तो बदले हुए वक्त में हमने विकास केअवधारणाओं को भी आधुनिक करना होगा। और तब जाकर के सामान्य मानवी को आने वाले दिनों में क्या जरूरत रहने वाली है। इसको हम परिपूर्ण कर सकते हैं। वर्तमान में सरकार infrastructure के दायरे को रेल और रोड से भी बढ़ाकर के Water grid, डिजिटल नेटवर्क, गैस ग्रीड, space के साथ सीधा संपर्क अगर हमारा किसान इंशोरेंस निकालता है, तो उसकी फसल कितनी थी उसकी फसल को कितना नुकसान हुआ। वो space technology से पता चलना चाहिए और किसान को उसके हक का पैसा मिलना चाहिए। इस प्रकार का नेटवर्क ये समय की मांग है। और उस रूप में भारत आधूनिक भारत बनें। व्यवस्थाओं और सुविधाओं से सवर हो उस सपने को लेकर के हम चल रहे हैं।
पुणे में मेट्रो का ये प्रकल्प यहां के लोगों की नाराजगी बहुत स्वाभाविक है। अगर यही काम बहुत पहले हुआ होता, कम खर्चे में हुआ होता। इतने साल तक जो परेशानी हुई। वो न होती कई लोगों ने मुसीबत के कारण गाड़ियां खरीदी वो गाड़ियां नहीं खरीदते वो मानलेते कि मेट्रो आ गया है गाड़ी खरीदने का खर्चा क्यूं करूं। पार्किंग के लिए जगह नहीं है। लेकिन देर आए दुरुस्त आए। और मेरे पुणे के भाई-बहनों पहली की सरकारें बहुत अच्छे – अच्छे काम मेरे लिये बाकी रख कर गई है। और इसलिये ये अच्छे काम करने का मुझे अवसर मिल रहा है। मुझे आज पुणे में इस कार्य हेतु आपके बीच आने का सौभाग्य मिला। मुझे मालूम नहीं है कि ये जगताप जी कितने खुश हैं। क्योंकि पोलिटीकल कारणों से कभी खुशी हो तो भी जाहिर करना जरा मुश्किल हो जाता है। अभी वेंकैया जी बता रहे थे कि पुणे को 28 करोड़ की बजाय 160 करोड़ मिल गया। अब चुनाव आने वाले हों, मुनसी पाल्टी के पास 160 करोड़ रुपया आ जाए क्या कुछ नहीं कर सकते वो। लेकिन ये सब हुआ इसलिये कि आठ नवम्बर को रात को आठ बजे जो मैंने घोषणा की इसके कारण हुआ है। और ये सिर्फ पुणे में नहीं हिन्दुस्तान की हर सरकारों के पास अकेले अरबन बोडीज़ में 200 से 300 प्रतिशत इनकम बढ़ी है। क्योंकि हर किसी को लगा कि मोदी ले जाएगा इससे अच्छा है यहां डाल दो। ये भी अच्छा हुआ वरना कभी अरबन बोडीज़ में टैक्स 50 प्रसेंट, 60 प्रसेंट, 70 प्रसेंट से आगे बढ़ नहीं पाता था। और देने वाले कौन थे। सामान्य व्यक्ति तो दे देता था और नहीं देने वाले कौन होते थे। जो कभी-कभी हमारे अगल-बगल में दिखाई देते थे वो भी नहीं होते थे। अब क्योंकि जिनकीज्यादा पहुंच होती है। वो कानून नियम तोड़ने का आदि हो जाता है। लेकिन इन सबको लाइन में लगा दिया है। देश में हर कोई समान होता है जी। हर किसी को कानून का पालन करना चाहिए। हर किसी ने नियमों का पालन करना चाहिए। और मैं बताऊं देशवासियों हमारे देश में सरकारें कैसे चली हैं। ये मैं किसी की बुराई करने के लिये नहीं कह रहा हूं। दिल में दर्द होता है पीड़ा होती है। क्या कर के रख दिया हमारे देश को। आप हैरान होंगे भारत की संसद ने 1988 में बेनामी संपत्ति का कानून पास किया। संसद में बहस हुई पक्ष विपक्ष चर्चा हुई। कानून पास हुआ अखबारों में हैडलाइन छप गई। जिनको जय जयकार होना था जय जयकार होगया मालाएं पहन ली। कि बड़ा ईमानदारी का काम किया। लेकिन संसद से वो जो कागज निकला वो फाइल के ढेर में खो गया। मेरे आने के बाद निकला। उसका नोटीफिकेशन नहीं हुआ। कानून लागू नहीं किया गया। अगर 1988 में उस समय जो संसद में बैठे थे।जिन्होंने इतना बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय किया अगर उस सरकार ने लागू किया होता तो आज बेनामी संपत्ति के नाम पर जो देश में जो पाप बढ़ा है वो बढ़ता क्या। देश बचता कि नहीं बचता। ऐसा ऐसा पाप कर के गए हैं। अब आप मुझे बताइये मैं भी ऐसे ही चलने दूं कि ठीक करूं। जरा जोर से बताओ ठीक करूं। तो जैसे अभी देवेन्द्र जी ने आपसे लाइट करवाई थी न फिर से वैसे लाइट करके बताइए। ठीक करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए। देश को तबाह होने की जो बातें चल रही है उसको रोकना चाहिए कि नहीं रोकनी चाहिए। और इसलिये भाइयों बहनों अगर समय पर देश में बीमारियों का उपचार किया होता तो आज मुझे ऐसे कठोर कदम नहीं उठाने पड़ते। आज से चालीस साल पहले जो काम करने चाहिए थे। वो काम किये होते तो आज मेरे देश के सवा सौ करोड़ ईमानदार लोगों को कतार में खड़ा नहीं रहना पड़ता। देशवासियों को जो लाइन में खड़े रहकर के कठिनाइयां झेलनी पड़ी हैं, जितनी पीड़ा देशवासियों को है उतनी ही पीड़ा मुझे भी है। लेकिन ये निर्णय देश के लिए करना पड़ रहा है। जिन लोगों ने निर्णय नहीं किया उन लोगों ने देश का भारी नुकशान किया है। मैंने देश को बचाने का वादा आपको किया था। और इसीलिये मैं आपके आशीर्वाद से आज ये कठोर कदम उठा रहा हूं।
भाइयों बहनों मैं पुणे से विशेष अपेक्षा करता हूं। ये देश की औद्योगिक विरासत वाली नगरी है। ये शिक्षा का भी धामहै। बहुत जमाने से अगर काशी में विदवान होते थे, तो पुणे भी विदवत्ता के लिये जाना जाता था। आईटी प्रोफेशन पुणे के जीवन के साथ जुड़ा हुआ है। क्या ये पुणे नगरी ऑनलाइन पेमेंट की दिशा में और तेज गति से बढ़ सकती है कि नहीं बढ़ सकती है। क्या हमारा मोबाइल फोन मोबाइल फोन बैंक बन सकता है कि नहीं बन सकता है। ये बैंक हमारी हथेली में हो सकती है कि नहीं हो सकती है। जब चाहे जी चाहे अपना कारोबार चला सकते हैं कि नहीं चला सकते हैं। क्या बैंक के कतार में खड़ा रहने की जरूरत है। क्या एटीएम के बाहर खड़े रहने की जरूरत है। सारी व्यवस्था उपलब्ध है कि नहीं है। क्या पुणे वासी मेरी मदद कर सकते हैं कि नहीं कर सकते। करोगे पक्का करोगे। हम तय करें कि हम e-wallet के द्वारा या डेबिट कार्ड के द्वारा अब तो आधार सर्विसिज भी एनेबल है। सिर्फ आपका आधार नंबर हो अकाउन्ट नंबर हो सिर्फ अंगूठा लगाइये आपका पैमेंट हो जाता है। इतनी व्यवस्था हो गई है। और ये बात मान कर चलिये। यहां शरद राव बैठे हैं किसान नेता हैं। मुझे बताइये गन्ना की पैदावार ज्यादा हो तो गन्ने का दाम कम हो जाता है कि नहीं हो जाता है। बताइये ना प्याज की पैदावार ज्यादा हो तो प्याज का दाम कम होता है कि नहीं होता। आलू की पैदावार ज्यादा हो तो आलू का दाम कम होता है कि नहीं होता है। ऐसे ही नोट ज्यादा पैदा होता है तो नोट का दाम भी कम हो जाता है। ये जितनी ज्यादा नोटें छापीं नोट की कीमत खत्म हो गई। आप आठ नवम्बर के पहले सौ रुपये को कोई पूछता था। उसकी तरफ कोई देखता था घर में कोई बच्चा हजार पांच सौ सौ का तो हजार की तरफ जाता था सौ की तरफ नहीं मुड़ता था। कोई कीमत ही नहीं बची थी। आठ तारीख के बाद सौ रुपये की शान बढ़ गई की नहीं बढ़ गई। छोटी currency की ताकत बढ़ गई कि नहीं बढ़ गई। देशवासियो आठ नवम्बर के बात हिन्दुस्तान में भी बड़ों की नहीं छोटों की ताकत बढ़ गई है दोस्तों। छोटों की ताकत बढ़ गई है। और ये मेरी लड़ाई छोटों की ताकत बढ़ाने के लिए है। गरीबों को सामर्थ देने के लिये है।
लेकिन आपने देखा होगा। कुछ लोगों को लगा कि सब सरकारें तो ऐसी होती हैं। पहले थी वैसे ये होगी। ठीक है मोदी दो चार दिन बोल देंगे फिर क्या होगा। फिर तो हम ही हम हैं। सालों से करते आए हैं कर लेंगे। इसी मिजाज में उनको लगा बैंक में डाल दो सब काला सफेद हो जाएगा। नोट तो काले की सफेद नहीं हुई लेकिन चेहरा काला हो गया। चेहरा काला हो गया। कुछ बैंक वालों को पटा कर के और हिस्सेदारी कर के खेल खेलने गए अब कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे। आज टैक्नॉलॉजी इतनी उत्तम है कि वो घर से निकला है न वहां तक पूंछ पहुंचने वाली है। महीना दो महीना तीन महीने के बाद भी ये हरेक को पीछा किया जाएगा बताओ भाई। पहले तो नहीं था कहां से आया। बताना पड़ेगा। जिन्होंने सोचा है कि अब बैंक में गए अब काला सफेद हो गया उनसे मैं कहता हूं संभल जाइए। अभी भी मौका है कानून का पालन कीजिए। गरीबों के हक का जो है वो लौटा दीजिए। अब बचने की संभावना बची नहीं है। और इसलिए ये पुणे की धरती से मैं हर किसी को कहना चाहता हूं। अभी भी वक्त है आज भी नियम ऐसे हैं जिससे आपकी मदद हो सकती है। सही रास्ते पर आ जाइए जिंदगी भर चैन की नींद सो जाइए कोई चिंता का विषय नहीं रहेगा। और अगर नहीं आए तो मैं कम से कम सोने वाला नहीं हूं। भाइयों बहनों ये भ्रष्टाचार कालाधन जाली नोट ये आतंकवाद ये नक्सलवाद इसके खिलाफ लड़ाई कहने को नहीं कह रहा हूं दोस्तों बड़े जिगर के साथ लड़ाई को छेड़ा है। और सवा सौ करोड़ देशवासियों का मिजाज देखकर के मैं विश्वास से कहता हूं। ये मुट्ठी भर ताकतें जो देश को बान में रखकर अपनी जो चाहे मरजी करते थे। वो वक्त चला गया है। अभी देश में बात चलेगी तो सवा सौ करोड़ देशवासियों की चलेगी। अगर इस देश में आवाज उठेगी तो देश के सवा सौ करोड़ देशवासियों की आवाज उठेगी। उस आवाज को मुट्ठी भर लोग अब दबा नहीं पाएंगे। इस बात को लेकर के मैं निकला हूं दोस्तों। और इसलिये मैं देशवासियों का आभारी हूं। और मैं बताऊं मैंने पहले दिन कहा था। पचास दिन तक तकलीफ होने ही वाली है। और मैंने तो यह भी कहा था बढ़ने वाली है। लेकिन पचास दिन के बाद ईमानदार लोगों की तकलीफ कम होना शुरू हो जाएगा और बेईमान लोगों की तकलीफ बढ़ना शुरू हो जाएगा। आप देखेंगे आपको पता चलेगा वैसे भी अभी देख रहे हो। बड़े बड़े बाबू जेल जा रहे हैं। बड़े बड़े लोग जेल जा रहे हैं। बैंकों के अनेक लोग घर चले गए। छुट्टी हो गई और कुछ जेल भी चले गए। भाइयों बहनों बड़ी सोच समझकर के देशवासियों के प्रति पूरा विश्वास रखते हुए जो कदम उठाए हैं देश सफल हो के रहेगा। ये मेरा विश्वास है। मेट्रो का काम तेज गति से आगे बढ़े और जब महाराष्ट्र का चुनाव चल रहा था तब मैंने महाराष्ट्र को कहा था मैं कहा देखिये 15 वर्ष से ये महाराष्ट्र की गाड़ी गड्ढे में फंसी हुई है। अगर उसको निकालना है तो डबल इंजन की जरूरत पड़ेगी। एक दिल्ली का इंजन एक महाराष्ट्र सरकार का इंजन और आपने हम पर भरोसा किया। डबल इंजन लग गए हैं। मेट्रो की आई कि नहीं आई। तो ये डबल इंजन की ताकत है। तो आपने डबल इंजन का अवसर दिया तो इसकेलिए भी आपका बहुत बहुत आभार धन्यवाद !