Quoteप्रधानमंत्री ने आईआईटी गांधीनगर के नए भवन का उद्घाटन किया और ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान की शुरुआत की
Quoteसमाज की समरसता के लिए विकास के मूलभूत बिंदुओं को समावेशित करने के लिए ग्रामीण भारत में डिजिटल साक्षरता अभियान चलाया गया है: पीएम मोदी
Quoteआज के दौर में हम डिजिटल डिवाइड बर्दाश्त नहीं कर सकते: प्रधानमंत्री मोदी
Quoteडिजिटल इंडिया से पारदर्शिता आएगी और सुशासन की दिशा में कदम आगे बढ़ेंगे: प्रधानमंत्री

प्‍यारे नौजवान साथियों आप IIT-ians हैं। लेकिन मैं ऐसा इंसान हूं जिसको वो डबल आई नहीं जुड़ा। आप सब IIT-ians हैं मैं बचपन से सिर्फ टीएन रहा। टी इ ए वाला टीएन चाय वाला। मैं सोच रहा था कि कॉलेज के नौजवान बड़े sharp होते हैं इतनी देर नहीं लगाते। फिर वही हुआ। आज 7 अक्‍टूबर है। 2001 में 26 जनवरी को भंयकर भुकंप आया था। और उसके बाद स्थिति ऐसी बनी कि जो मेरे जीवन की कभी राह नहीं थी। और मुझे अचानक 7 अक्‍टूबर 2001 को इसी गांधीनगर में मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेकर के जिम्‍मेवारी का निर्वाह शुरू हुआ। न शासन व्‍यवस्‍था जानता था न कभी विधानसभा देखी थी। लेकिन एक नया दायित्‍व आ गया था। लेकिन मन में तय किया था कि मेहनत करने में कोई कमी नहीं रखूंगा और आज देश ने मुझे हर बार कोई-कोई नई जिम्‍मेवारी दी है। और इस नई जिम्‍मेवारी के तहत आज आपके बीच में हूं।

आज यहां हिन्‍दुस्‍तान के अलग-अलग भू-भाग से आए हुए ग्रामीण क्षेत्र के युवक-युवतियां हैं कुछ बुर्जुग भी है। जिनको मैंने सबसे पहले प्रमाणपत्र दिया। मैं उनसे सारी बाते पूछ रहा था और मैं हैरान था। उनको सब पता था वो गांव में क्‍या कर रही है, लोगों को कैसे मदद कर रही है, उन्‍होंने क्‍या ट्रेनिंग ली है। उस ट्रेनिंग का क्‍या उपयोग करेगी। सारे सवालों के वो मुझे जवाब दे रही थी। मैं समझता हूं यही revolution है। देश और दुनिया शायद पिछले तीन सौ साल में जितना technology का revolution नहीं देखा है। गत 50 साल में अक्‍ल पर technology का revolution आया। technology जिंदगी का हिस्‍सा बन गई है। technology अपने आप में driving force बन गई है। और ऐसे समय किसी भी देश को अगर प्रगति करनी है तो हिन्‍दुस्‍तान के सभी स्‍तर के लोगो को शहर हो गांव शिक्षित हो अशिक्षित हो, बुर्जुग हो नौजवान हो, इस technology के साथ उसको जोड़ना एक उज्‍ज्‍वल भविष्‍य के लिए अनिवार्य है। 

आजादी के आंदोलन के समय महात्‍मा गांधी जिस प्रकार से साक्षरता पर बल दे रहे थे। अगर स्‍वराज के आंदोलन में साक्षरता की एक ताकत थी। तो सुराज के आंदोलन में digital literacy एक बहुत बड़ी अहम ताकत है। और इसलिए भारत सरकार का प्रयास है कि हिन्‍दुस्‍तान का हर गांव, वहां की हर पीढ़ी उनको digital literate करने की दिशा कदम उठाए। आज ये जो कार्यक्रम है भारत के ग्रामीण भारत में छ: करोड़ परिवार रहते हैं इन छ: करोड़ परिवारों को परिवार के कम से कम एक व्‍यक्ति को digitally literate करने का बीढ़ा उठाया है। बीस घंटे का कैप्सूल है उसको पढ़ाया जाता है। आनलाइन एग्‍जाम ली जाती है वीडियो कैमरा के सामने बैठकर के उसको एग्‍जाम देनी होती है। और वहां से उसको certify किया जाता है। और अनुभव ये आया है। कि digital literacy के लिए आप कितने शिक्षित है, आप किस उम्र के हैं, वो गौण बन जाता है वो मायने नहीं रखता है।

एक जमाना था जब कार्ल मार्क्‍स की philosophy चलती थी दुनिया में लोग quote करते थे कार्ल मार्क्‍स की बातों को have and have not वो लोग जिनके पास है और लोग जिनके पास कुछ नहीं है। इस divide के आधार पर उन्‍होंने अपनी राजनीतिक विचारधारा को develop किया था। वो कारगर हुआ कि नहीं हुआ वो विद्वान लोग उसकी चर्चा करेंगे। सिकुड़ते-सिकुड़ते वो विचार अब कहीं नजर नहीं आ रहा है। नाम मात्र के बोर्ड लगे पड़े हैं लेकिन technology के संबंध में अगर भारत के उज्‍ज्‍वल भविष्‍य के लिए हम लोगों को सतर्क रहकर के प्रयास करना होगा कि देश में digital divide पैदा न हो। कुछ लोग digital technology में माहिर हो और कुछ लोग पूरी तरह अछूत हो तो आने वाले युग में जिस प्रकार से बदलाव नजर आ रहा है। ये digital divide सामाजिक संरचना के लिए बहुत बड़ा संकट पैदा कर सकता है। और इसलिए सामाजिक समरसता के लिए विकास के मूलभूत बिंदुओं को समाहित करते हुए ये digital divide से मुक्ति पाने की दिशा में ये ग्रामीण भारत में digital literacy का अभियान चलाया। हम जानते हैं घर में कितना ही बढि़या टीवी आ जाए। रिमोट से चलता हो। शुरू में सबको लगता है क्‍या है। लेकिन घर में जब दो-तीन साल का बच्‍चा अपने आप जरूरत चैनल बदल देता है। VCR चालू कर देता है। बंद कब करना है चालू करना सीख लेता है। तो घर के बुजुर्गों को भी लगता है कि हमें भी सीखना पड़ेगा। और फिर वो भी switch on switch off करना सीख जाता है। क्‍या किसी ने whatsapp कैसे forward होता है। उसका क्‍लासरूम देखा है क्‍या? क्‍या whatsapp forward करने के लिए हिन्‍दुस्‍तान में कोई institute है क्‍या? लेकिन आप देखते है कि लोगो को whatsapp forward आ गया कि नहीं आ गया। कहने का तात्‍पर्य ये है कि अगर user friendly technology के रास्‍ते से हम जाते हैं तो हम आसानी से digital literacy की दिशा में देश को ले जाते है। digital literacy, digital technology, digital India एक good governess की गांरटी है। transparency की गारंटी है। 

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भारत सरकार ने एक JAM trinity के द्वारा विकास की एक कल्‍पना की हुई है। JAM J-Jandhan Account, A- Aadhaar, M-Mobile Phone इन तीनों को जोड़कर के सामान्‍य मानवी की आवश्‍यकता के अनुसार सरकार उसके मोबाइल फोन पर मौजूद हो इस प्रकार की हमारी विकास यात्रा के कदम चल रहे हैं। देश में एक बहुत बड़ा अभियान चला है। optical fiber network का बहुत तेजी से लाखों गांवों में optical fiber network को पहुंचाने की दिशा में प्रयास हुआ है। और आज दूर से दूर इलाकों में हमारी भावी पीढ़ी को हमारे गरीब बच्‍चों को अच्‍छी शिक्षा देने में long distance education digital के माध्‍यम से देना संभव हुआ है। और जैसे-जैसे optical fiber network हिन्‍दुस्‍तान के हर गांव तक पहुंच जाएगा। उस गांव की शिक्षा में उस गांव की आरोगी की व्‍यवस्‍थाओं में, उस गांव की सरकार की जनसुविधा की सेवाओं में आमूल चूल परिवर्तन आने वाला है। और उसी डिजाईन को लेकर के हम जो चल रहे हैं। उसी का हिस्‍सा है कि आज देश के अलग-अलग कोने से आए हुए community service centre के लोग जिन्‍होंने कोर्स किए हैं। और कुछ लोग करने वाले है और आने वाले दिनों में छ: करोड़ परिवारों में एक-एक व्‍यक्ति को ये शिक्षा दी जाएगी वो उसकी रोजी-रोटी का एक साधन बनने वाला है। क्‍योंकि अब services उसके द्वारा हो रही हैं। और उस दिशा में हमें प्रयास करना चाहिए। कभी-कभार अनुभव ऐसा आता है। कि बहुत लोग आपने देखे होंगे। कि बढि़या से बढि़या मोबाइल का अगर मॉडल आया। टीवी में advertisement देखी, अखबार में मैगजीन में पढ़ लिया या गूगल गुरू ने बता दिया तो सबसे पहले वो काम करता है उस मोबाइल को खरीदना। आपको 80 प्रतिशत लोग ऐसे मिलेगें जिनको मोबाइल के अंदर इतनी सारी चीजे हैं लेकिन न उसका अता-पता है न उसको उपयोग करने की आदत है। शायद यहां आई आई टी में भी कुछ लोग मिल जाएंगे जिनको पूरी तरह मोबाइल उपयोग करने की आदत नहीं होगी। अच्‍छे से अच्‍छे मॉडल का मोबाइल रखते होंगे और इसलिए अगर digital literacy है तो जो हमने खर्च किया है उसका भी हम सर्वाधिक उपयोग कर सकते हैं। और हम एक प्रकार से value edition कर सकते हैं। और इसलिए ये digital literacy का digital India का अभियान चलाया है। less cash society बनाने में भी ये digital literacy का काम बहुत बड़ा रोल प्‍ले करेगा। 

भारत सरकार ने जो bheem app बनाई है। दुनिया के देशों को अजूबा हो रहा है। हमारे पास जो Aadhaar digitally biometric system से जो डाटा बैंक है हिन्‍दुस्‍तान के पास पूरे विश्‍व के लिए अचरज है। इसको जोड़कर के हम विकास को empowerment को जोड़ने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। और उसका मैं मानता हूं एक बहुत बढ़ा उपयोग होने वाला है। आज मेरे लिए सौभाग्‍य का विषय है। कि आज यहां इस IIT के नए कैंपस का लोकार्पण करने का अवसर मिला है। अगर चुनाव के दिन होते और मैंने उस समय ये जमीन देने का निर्णय किया होता। करीब-करीब 400 एकड़ भूमि और वो भी गांधीनगर में और वो भी साबरमती नदी के तट पर ये जमीन कितनी महंगी हुई उसका आप अंदाज कर सकते हैं। और जिस दिन ये 400 एकड़ भूमि देने का निर्णय किया तो कुछ लोग अगर चुनाव होता तो निकल पड़ते। जैसे इन दिनों बुलेट ट्रेन के खिलाफ बोलते रहते हैं। उस समय भी बोलते, उस समय भी बोलते कि मोदी अरे गुजरात के गांव में प्राथमिक शिक्षा का मकान है वो तो ढीला-ढाला है। और तुम IIT बनाने में पैसे लगा रहे हो। जरूर आलोचना करते। लेकिन अच्‍छा था जिस समय मैंने जमीन का निर्णय किया उस वक्‍त चुनाव का मौसम नहीं था। लेकिन अब आपको पता चलता होगा कि ये कैसा दीर्ध दृष्टि पूर्ण निर्णय था और मैंने उस दिन कहा था कि सुधीर जैन जी को और हमारे डिर्पाटमेंट के लोगों को याद होगा मैंने कहा था IIT एक brand है। हिन्‍दुस्‍तान में IIT एक brand बन चुका है। लेकिन IIT के बीच में अंदर कैंपस ब्रांड ज्‍यादा ताकतवर पूरवार होगा। किस IIT का कैंपस कैसा है। ये आने वाले दिनों में चर्चा का विषय रहेगा। और इसलिए मैंने कहा था कि मुझे गुजरात में ऐसा कैंपस चाहिए जो हिन्‍दुस्‍तान के top most IIT campus का अंदर शिरोमोर ये कैसे बन सके। और आज मुझे देखकर के खुशी हुई। कि कैंपस हिन्‍दुस्‍तान की प्रमुख IIT की बराबरी में आकर आज खड़ा हो गया है। कैंपस की अपनी एक ताकत होती है। दूसरी ताकत होती है faculty मुझे खुशी है मुझे बताया गया कि आज गांधीनगर IIT में 75 प्रतिशत faculty वो हैं जो विदेशों में trained होकर के आई हैं। expertise करके आई हुए हैं। और उन्‍होंने अपना समय शक्ति इस IIT के students को dedicate करने का निर्णय किया है। मैं उनके इस निर्णय का स्‍वागत करता हूं। लेकिन भारत सरकार ने चुनौती दी है देश की शिक्षा संस्‍थाओं को। मैं चाहता हूं कि IIT गांधीनगर इस चुनौती के लिए मैदान में आएं। आएंगे। क्‍या हो गया सारे IIT-ians को आवाज तो वहां से आ रही है। पहली बार हिन्‍दुस्‍तान में शिक्षा संस्‍थान क्षेत्र में ऐसा reform हुआ है। जिसकी सालों से अपेक्षा थी लेकिन कोई हिम्‍मत नहीं करता था। 

आज दुनिया में 500 top universities आजादी के 70 साल बाद भी इन 500 top universities में हम कहीं नजर नहीं आते। क्‍या ये कलंक मिटना चाहिए कि नहीं मिटना चाहिए। क्‍या आज आप 2022 भारत की आजादी के 75 साल हों तब तक हम हमारी universities को उस ऊंचाई पर ले जा सकते ताकि हम भी दुनिया के अंदर ये कह सके कि हम भी कुछ कम नही है। कर सकते हैं कि नहीं कर सकते हैं। भारत सरकार ने पहली बार निर्णय किया है कि दस private universities और दस public universities, challenge रूट पर उनको select किया जाएगा। करीब एक हजार करोड़ रूपया लगाया जाएगा। और जो ऐसी दस universities जो हैं दस private और दस public वे challenge रूट से अगर जीतती जीतती ऊपर आती हैं। और global standard को establish करती हैं। तो आज भारत सरकार के और राज्‍य सरकारों के जितने नियम हैं उन नियमों से उनको मुक्‍त करके वही उनकी दुनिया वही उनका देश वो ताकत दिखाए और कुछ करके दिखाए इतनी स्‍वतंत्रता उनको दी जाए। syllabus में campus में faculty में खर्च करने में वे अपना फैसला करें सरकार कहीं आएगी नहीं और आपको परिणाम लाकर के देना होगा। सरकार एक हजार करोड़ रूपया लगाने के लिए इन 20 यूनिवर्सिटी के लिए तैयार हुई है। गांधीनगर IIT के पास इतना बड़ा 400 एकड़ का कैंपस हो 1700 करोड़ रूपये की लागत से सारी व्‍यवस्‍था खड़ी हुई हो। मुझे विश्‍वास है कि सुधीर जैन और उनकी टीम और ये पूरे हमारे नौजवान मिलकर के बीढ़ा उठाएं और आगे आएं। किसी भी देश में विकास करने के लिए institutions को जितना हम समय समय पर निर्माण करे वो आवश्‍यक है। गुजरात इस बात के लिए गर्व कर सकता है। कि पिछले दस साल के भीतर भीतर गुजरात ने global level के institutions देश को दिए हैं। आज भी दुनिया में कहीं पर भी forensic science university नहीं है। दुनियां में कहीं नहीं है। गुजरात अकेला है। जिसकी अपनी forensic science university है। दुनिया की एकमात्र यूनिवर्सिटी है। आज भी हिन्‍दुस्‍तान में Indian institute of teacher education IITE ऐसी कोई university नहीं है जो best quality के टीचर तैयार करे। teaching में उनका graduation हो, teaching में उनका post graduation हो। और उत्‍तम से उत्‍तम टीचर वहां से निकले। गुजरात पहला देश का राज्‍य है। जिसने Indian Institute of Teacher Education ऐसी एक university बनाई है। गुजरात पहला राज्‍य है। जिसने children university बनाई है। दुनिया में कहीं पर भी children university नहीं है। आज micro family की दिशा में दुनिया आगे बढ़ रही है। मां भी अपने व्‍यस्‍त है बाप भी अपने में व्‍यस्‍त है। बच्‍चा परिवार में जो काम करने वाले लोग हैं उनके भरोसे छोड़ दिया जाता है। समय की मांग है हमें एक ऐसी institution arrangement करनी होगी। कि हमारे छोटे-छोटे बालक उनका सही development हो उनकी सही खातिरदारी हो। उनका विकास एक उत्‍तम नागरिक के लिए जो जड़े जमानी हों वो बचपन में हो। और उसके लिए research का काम ये children university करें। बच्‍चों के खिलौने कैसे हों, बच्‍चे जिस कमरे में हो उनके दीवारों के कलर कैसे हों। बच्‍चों को किस प्रकार के गीत सुनाए जाएं। बच्‍चों को nutrition value वाले खाना कैसा होना चाहिए। बच्‍चों को पढ़ने की modern technique क्‍या हो ताकि आसानी से वो पकड़ पाएं। ये सारे research की आवश्‍यकता है।

पहले तो परिवार संयुक्‍त हुआ करता था। और परिवार अपने आप में एक university हुआ करती थी। और बालक दादी मां से एक सीखता था, दादा से दूसरा सीखता था, चाचा से तीसरा सीखता था। मां से एक सीखता था, फूफा से एक सीखता था। आज micro परिवार के अंदर उसके लिए ये शिक्षा का दाम बंद हो चुका है, तब जाकर के ये विचार आया था। कि दुनिया को आने वाली पीढि़यों के बच्‍चों कि चिंता करने के लिए और उसमें से children university का जन्‍म हुआ था। जो इसी गुजरात की धरती पर पैदा हुआ था। crime की दुनिया में तीन महत्‍वपूर्ण क्षेत्र हैं। एक legal faculty, दूसरी पुलिस और तीसरी crime detection के लिए forensic गुजरात ने इन तीनों पर काम किया। national law university बनाई। जो उत्‍तम से उत्‍तम lawyer तैयार करेगी। उत्‍तम जज तैयार करेगी। और judiciary के पार्ट को संभालेगी। police academy university बनाई है हिन्‍दुस्‍तान में चंद university है जो policing के लिए है। गुजरात उसमें से एक राज्‍य है। गुजरात देश का दूसरा राज्‍य था। जिसने ये police university बनाई रक्षा शक्ति यूनिवर्सिटी और जहां जो uniform forces में जाना चाहता है वो uniform forces में जाने वाला दसवीं, बारहवीं कक्षा के बाद ही उस धारा में आ जाए सारी पढ़ाई वहीं हो जाए। communication deal आ जाए crowd management आ जाए, crowd physiology management आ जाए। हिन्‍दुस्‍तान के IPC धाराओं का उसको पता हो जाए। और पढ़ लिखकर के कहीं भी police recruitment के लिए जाए। तो एक qualitative change भारत की सुरक्षा क्षेत्र लाने की दिशा में गुजरात ने पहल की है। और फॉरेसिंक सांइस यूनिवर्सिटी आज सारे criminal घटनाएं आप देखते होंगे। technology के द्वारा crime पकड़े जा रहे है। अगर फॉरेसिंक सांइस यूनिवर्सिटी की ताकत जितने फॉरेसिंक सांइस यूनिवर्सिटी के स्‍टूडेंट तैयार होंगे। साइबर क्राइम हो या और क्राइम हो उसको उसमें से बचने के लिए उसमें से detect करने के लिए, गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए फॉरेसिंक वर्ल्‍ड सबसे ज्‍यादा बढ़ा रोल पैदा करने वाला है। ऐसी तीनों विधाओं को इसी गुजरात की धरती पर एक साथ develop किया गया है। जो आने वाले दिनों में हिन्‍दुस्‍तान का बहुत बड़ा contribution करने वाला है। और आज देश और दुनिया के लोग जो नये प्रयोग किए हैं यूनिवर्सिटी के उनके साथ जुड़ रहे हैं। और इसलिए आज जब IIT-ians के बीच बैठा हूं तब मैं जानता हूं आपका काफी समय लैब में जाता है। आप कुछ न कुछ नया करते रहते हैं। लेकिन ज्‍यादातर Exam oriented innovation, Exam oriented projects, मैं नहीं चाहता हूं कि मेरे देश का नौजवान इसी एक गलियारे में बंध करके रह जाए। समय की मांग है हम innovation को बल दें। 

भारत सरकार ने नीति आयोग में AIM नाम के institute develop किए हैं। Atal innovation mission, AIM और उसके द्वारा हम देश की जो challenge route से select होती हैं। ऐसी स्‍कूलों को increasing lab के लिए पैसे दे रहे हैं। और पांचवी, सातवीं, आठवीं, दसवीं, बारहवीं के बच्‍चों को innovation के प्रेरित करते हैं। हिन्‍दुस्‍तान का भाग्‍य बदलने के लिए हमारे पास जो natural talent है हमें innovation में जाना पड़ेगा। जिस देश के अंदर IT की महारथ हो लेकिन गूगल किसी और देश में पैदा हो। जिस देश में IT की महारथ वाले नौजवान हों लेकिन फेसबुक कहीं ओर हो। जिस देश में IT की महारथ वाले नौजवान हों लेकिन यूटयूब कहीं ओर हो। मैं चाहता हूं, मैं देश के नौजवानों को चुनौती देता हूं। आइए हम दुनिया का भाग्‍य बदलने के लिए, भारत का बदलने के लिए innovation के रास्‍ते को पकड़े। और ऐसा नहीं कि बुद्धि किसी की बपौती होती है। अरे एक बार आप उलझ जाओगे तो आप भी नई चीजे खोजकर के रहोगे। और देश और दुनिया को बहुत कुछ देकर जाओगे। लेकिन कभी-कभार हमें कुछ नया करने का जो मूड रहता है। लेकिन अच्‍छा innovation का तरीका दूसरा होता है। और मैं आपको गाइड करना चाहता हूं आज मैं आशा करता हूं कि मेरी इस बात को आप गौर से सुनेगें। आप जो academic knowledge है आपने भी सरकीट को पढ़ा होगा। basic structural engineering पढ़ा होगा। उसके आधार पर innovation करना एक तरीका है। दूसरा तरीका है आप अपने अगल-बगल में समस्‍याओं को देखिए, कठिनाईयों को देखिए और फिर सोचिए। कि मैं इसका समाधान दे सकता हूं क्‍या। वो तो बेचारा एक भला व्‍यक्ति है तकलीफ से जी रहा है। मैं IIT-ians हूं मैं कुछ करूंगा ताकि इसकी जिंदगी में सुधार आए और वही innovation बन जाएगा। और वो कभी इतना बड़ा स्केल पर हो सकता है। कि एक बहुत बड़ा business model बन सकता है। हमारे देश में ऐसी ढेर सारी समस्‍याएं हैं। अब जैसे स्‍वच्‍छता का अभियान चल रहा है। कियूं न innovation करने वाले मेरे नौजवान waste में से wealth create करने वाले innovation के नए नए project कियूं न करे। 

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आज solar energy पर काम चल रहा है। आज solar energy, wind energy, renewable energy, climate change ये सब तो हमारे काम पर आ रहे हैं। हम भारत के स्‍वभाव के अनुसार हम ऐसे क्‍या innovation करें कि हर घर के अंदर एक चीज आसानी से हम पहुंचा सकें। अगर भारत जहां इतनी बढ़ी solar energy उपलब्‍ध है। हम कुकिंग के लिए हर परिवार को खर्च से मुक्‍त कर सकते हैं क्‍या। हम solar energy से चलने वाली energy generate करके energy से चलने वाले कुकिंग equipment क्‍यों न बनाएं, खाना उसी पर पके न उसको गैस लेने के लिए जाना पड़ा, न उसको चूल्‍हा जलाना पड़े। खुद का ही solar plant हो छत के ऊपर दो solar panel लगी हो। घर में आवश्‍यक खाना पक जाता हो। गरीब के घर में मध्‍यम वर्ग के परिवार का, कीचन के अंदर फ्यूल का जो खर्चा होता है। बच जाएगा कि नहीं बच जाएगा। छोटी-छोटी चीजे हम देख रहें हैं। उन्‍हीं को innovation के रूप में क्‍यों न पकड़े। हम समाधान क्‍यों न खोजे मुझे विश्‍वास है IIT गांधीनगर एक कल्‍चर पैदा करेगा innovation का कल्‍चर पैदा करेगा। और वो कल्‍चर need based होना चाहिए। knowledge base नहीं need based होगा तो वो innovation sustain कर जाता है। वो स्‍केलेबल हो जाता है। वो commercial उसको अवसर भी मिल जाता है। और बहुत बड़ी कंपनियां इसको purchase करने के लिए भी आगे आती हैं। और इसलिए मैं चाहता हूं कि IIT इस दिशा में काम करे। 

मैं IIT नौजवानों से एक और बात बताना चाहता हूं। शायद हिन्‍दुस्‍तान में गुजरात पहला राज्‍य है। जिसने I creat नाम की एक institute पैदा किया है। बहुत कम लोगों ने ये नाम सुना होगा। अब उसकी उम्र भी मेरे हिसाब से करीब तीन-चार साल हो गई है। अभी उसके भवन का लोकार्पण बाकी है। मैं समय दे नहीं पा रहा हूं। लेकिन दे दूंगा। ये I create राज्‍य के और देश के जो innovation में interest रखते हैं। इनको incubation provide करने का काम करती है। वहां रहने की व्‍यवस्‍था है। लैब है। आपके idea सरकार वहां अवसर देने को तैयार है। आप ऐसे innovation कीजिए जो भारत के जीवन में बदलाव लाने के लिए सरलता से व्‍यवस्‍थाओं को विकसित कर सके। ये I create अपने आप में हिन्‍दुस्‍तान में इकलौता ऐसा होता है और दुनिया की अच्‍छी से अच्‍छी innovation करने वाली institution के साथ उसका collaboration किया हुआ है। ये मैं ऐसी जानकारी आपको दे रहा हूं। जो सामान्‍य अखबार की सुर्खियों में रहने वाली नहीं है। लेकिन देश का भविष्‍य जो युवा पीढ़ी बनाती है। उनके लिए बहुत महत्‍वपूर्ण है। और इसलिए मैं दोस्‍तों आपसे अपेक्षा करता हूं। ये 2022 भारत की आजादी के 75 साल, पांच साल हमारे पास हैं। 

1942 में महात्‍मा गांधी ने कहा था। हिंद छोड़ो क्‍वीट इंडिया पांच साल के भीतर-भीतर देश ऐसा खड़ा हो गया। अंग्रेजों को बोरिया-बिस्‍तर उठाकर के जाना पड़ा। मेरे देशवासी अगर पांच साल हम भी अगर खड़े हो जाएं कि देश से गरीबी जानी चाहिए, देश से जातिवाद जाना चाहिए, देश से भ्रष्‍टाचार जाना चाहिए, देश से भाई-भतीजावाद जाना चाहिए। ये सब हो के रह सकता है देश में दोस्‍तों आइए मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर के चलिए। ये हम करके रहने का संकल्‍प लेकर के चल पड़े हैं। 

मैं IT के नौजवानों से एक और बात भी बताना चाहता हूं। जब convocation होता होगा तब आपको बहुत सलाह दी जाती होगी, बहुत कुछ बताया जाता होगा। इतने बड़े भव्‍य भवन में आप रह रहे हैं। भव्‍य भवन के अंदर शिक्षा दीक्षा प्राप्‍त कर रहे हैं। क्‍या इसलिए संभव हुआ है। कि आपके पास तेज दिमाग है। क्‍या इसलिए संभव हुआ है। कि आपके माता-पिता संपन्न थे और उनकी स्थिति अच्‍छी थी इसलिए उन्‍होंने आपको यहां तक पहुंचाया है। ये सब सच होने के बाद भी मेरे नौजवान साथियों आप इस भव्‍य कैंपस में इसलिए हैं। आप इतनी बढि़या से बढि़या शिक्षा प्राप्‍त में भाग्‍यशाली इसलिए हुए हैं कि किसी न किसी गरीब ने इसके लिए contribute किया है। किसी गरीब के हक का आपको मिला है। ये चार एकड़ भूमि अगर सरकार ने उसको बेचकर के पैसे लाकर के गांव के अंदर प्राथमिक शिक्षा के मकान बनाए होते तो कितने सारे मकान बन जाते। PSE centre बनाए होते तो कितने सारे बन जाते। लेकिन देश के उज्‍ज्‍वल भविष्‍य के लिए ये चार सौ एकड़ भूमि मेरे देश के भविष्‍य के लिए यहां लगाई गई है। समाज के किसी गरीब तबके ने अपना छोड़ा है तब हमने पाया है। अगर ये भाव मन के अंदर रहा तो IIT-ians होने के बावजूद भी समाज के प्रति मेरी जो संवेदना है वो कभी कम नहीं होगी। समाज के लिए करने का मेरा कुछ इरादा है। उसमें कभी भी कहीं कमी नहीं आएंगी। और जीऊंगा तो भी मेरे देश के सामान्‍य मानवी के लिए जीऊंगा कुछ पाऊंगा करूंगा, करके रहूंगा तो भी मेरे देश के सामान्‍य मानवी के लिए करके रहूंगा। इस भाव को लेकर के इस नए भवन के लोकार्पण के समय आप भी ह्दय से संकल्‍प करे। इसी एक आशा के साथ आप सबको मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं। बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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भारत माता की जय! भारत माता की जय!

क्यों ये सब तिरंगे नीचे हो गए हैं?

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

मंच पर विराजमान गुजरात के गवर्नर आचार्य देवव्रत जी, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्रीमान भूपेंद्र भाई पटेल, केंद्र में मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी मनोहर लाल जी, सी आर पाटिल जी, गुजरात सरकार के अन्य मंत्री गण, सांसदगण, विधायक गण और गुजरात के कोने-कोने से यहां उपस्थित मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,

मैं दो दिन से गुजरात में हूं। कल मुझे वडोदरा, दाहोद, भुज, अहमदाबाद और आज सुबह-सुबह गांधी नगर, मैं जहां-जहां गया, ऐसा लग रहा है, देशभक्ति का जवाब गर्जना करता सिंदुरिया सागर, सिंदुरिया सागर की गर्जना और लहराता तिरंगा, जन-मन के हृदय में मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम, एक ऐसा नजारा था, एक ऐसा दृश्य था और ये सिर्फ गुजरात में नहीं, हिन्‍दुस्‍तान के कोने-कोने में है। हर हिन्दुस्तानी के दिल में है। शरीर कितना ही स्वस्थ क्यों न हो, लेकिन अगर एक कांटा चुभता है, तो पूरा शरीर परेशान रहता है। अब हमने तय कर लिया है, उस कांटे को निकाल के रहेंगे।

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साथियों,

1947 में जब मां भारती के टुकड़े हुए, कटनी चाहिए तो ये तो जंजीरे लेकिन कांट दी गई भुजाएं। देश के तीन टुकड़े कर दिए गए। और उसी रात पहला आतंकवादी हमला कश्मीर की धरती पर हुआ। मां भारती का एक हिस्सा आतंकवादियों के बलबूते पर, मुजाहिदों के नाम पर पाकिस्तान ने हड़प लिया। अगर उसी दिन इन मुजाहिदों को मौत के घाट उतार दिया गया होता और सरदार पटेल की इच्छा थी कि पीओके वापस नहीं आता है, तब तक सेना रूकनी नहीं चाहिए। लेकिन सरदार साहब की बात मानी नहीं गई और ये मुजाहिदीन जो लहू चख गए थे, वो सिलसिला 75 साल से चला है। पहलगाम में भी उसी का विकृत रूप था। 75 साल तक हम झेलते रहे हैं और पाकिस्तान के साथ जब युद्ध की नौबत आई, तीनों बार भारत की सैन्य शक्ति ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। और पाकिस्तान समझ गया कि लड़ाई में वो भारत से जीत नहीं सकते हैं और इसलिए उसने प्रॉक्सी वार चालू किया। सैन्‍य प्रशिक्षण होता है, सैन्‍य प्रशिक्षित आतंकवादी भारत भेजे जाते हैं और निर्दोष-निहत्थे लोग कोई यात्रा करने गया है, कोई बस में जा रहा है, कोई होटल में बैठा है, कोई टूरिस्‍ट बन कर जा रहा है। जहां मौका मिला, वह मारते रहे, मारते रहे, मारते रहे और हम सहते रहे। आप मुझे बताइए, क्या यह अब सहना चाहिए? क्या गोली का जवाब गोले से देना चाहिए? ईट का जवाब पत्थर से देना चाहिए? इस कांटे को जड़ से उखाड़ देना चाहिए?

साथियों,

यह देश उस महान संस्कृति-परंपरा को लेकर चला है, वसुधैव कुटुंबकम, ये हमारे संस्कार हैं, ये हमारा चरित्र है, सदियों से हमने इसे जिया है। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। हम अपने पड़ोसियों का भी सुख चाहते हैं। वह भी सुख-चैन से जिये, हमें भी सुख-चैन से जीने दें। ये हमारा हजारों साल से चिंतन रहा है। लेकिन जब बार-बार हमारे सामर्थ्य को ललकारा जाए, तो यह देश वीरों की भी भूमि है। आज तक जिसे हम प्रॉक्सी वॉर कहते थे, 6 मई के बाद जो दृश्य देखे गए, उसके बाद हम इसे प्रॉक्सी वॉर कहने की गलती नहीं कर सकते हैं। और इसका कारण है, जब आतंकवाद के 9 ठिकाने तय करके 22 मिनट में साथियों, 22 मिनट में, उनको ध्वस्त कर दिया। और इस बार तो सब कैमरा के सामने किया, सारी व्यवस्था रखी थी। ताकि हमारे घर में कोई सबूत ना मांगे। अब हमें सबूत नहीं देना पड़ रहा है, वो उस तरफ वाला दे रहा है। और मैं इसलिए कहता हूं, अब यह प्रॉक्सी वॉर नहीं कह सकते इसको क्योंकि जो आतंकवादियों के जनाजे निकले, 6 मई के बाद जिन का कत्ल हुआ, उस जनाजे को स्टेट ऑनर दिया गया पाकिस्तान में, उनके कॉफिन पर पाकिस्तान के झंडे लगाए गए, उनकी सेना ने उनको सैल्यूट दी, यह सिद्ध करता है कि आतंकवादी गतिविधियां, ये प्रॉक्सी वॉर नहीं है। यह आप की सोची समझी युद्ध की रणनीति है। आप वॉर ही कर रहे हैं, तो उसका जवाब भी वैसे ही मिलेगा। हम अपने काम में लगे थे, प्रगति की राह पर चले थे। हम सबका भला चाहते हैं और मुसीबत में मदद भी करते हैं। लेकिन बदले में खून की नदियां बहती हैं। मैं नई पीढ़ी को कहना चाहता हूं, देश को कैसे बर्बाद किया गया है? 1960 में जो इंडस वॉटर ट्रीटी हुई है। अगर उसकी बारीकी में जाएंगे, तो आप चौक जाएंगे। यहाँ तक तय हुआ है उसमें, कि जो जम्मू कश्मीर की अन्‍य नदियों पर डैम बने हैं, उन डैम का सफाई का काम नहीं किया जाएगा। डिसिल्टिंग नहीं किया जाएगा। सफाई के लिए जो नीचे की तरफ गेट हैं, वह नहीं खोले जाएंगे। 60 साल तक यह गेट नहीं खोले गए और जिसमें शत प्रतिशत पानी भरना चाहिए था, धीरे-धीरे इसकी कैपेसिटी काम हो गई, 2 परसेंट 3 परसेंट रह गया। क्या मेरे देशवासियों को पानी पर अधिकार नहीं है क्या? उनको उनके हक का पानी मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए क्या? और अभी तो मैंने कुछ ज्यादा किया नहीं है। अभी तो हमने कहा है कि हमने इसको abeyance में रखा है। वहां पसीना छूट रहा है और हमने डैम थोड़े खोल करके सफाई शुरू की, जो कूड़ा कचरा था, वह निकाल रहे हैं। इतने से वहां flood आ जाता है।

साथियों,

हम किसी से दुश्मनी नहीं चाहते हैं। हम सुख-चैन की जिंदगी जीना चाहते हैं। हम प्रगति भी इसलिए करना चाहते हैं कि विश्व की भलाई में हम भी कुछ योगदान कर सकें। और इसलिए हम एकनिष्ठ भाव से कोटि-कोटि भारतीयों के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहे हैं। कल 26 मई था, 2014 में 26 मई, मुझे पहली बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने का अवसर मिला। और तब भारत की इकोनॉमी, दुनिया में 11 नंबर पर थी। हमने कोरोना से लड़ाई लड़ी, हमने पड़ोसियों से भी मुसीबतें झेली, हमने प्राकृतिक आपदा भी झेली। इन सब के बावजूद भी इतने कम समय में हम 11 नंबर की इकोनॉमी से चार 4 नंबर की इकोनॉमी पर पहुंच गए क्योंकि हमारा ये लक्ष्य है, हम विकास चाहते हैं, हम प्रगति चाहते हैं।

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और साथियों,

मैं गुजरात का ऋणी हूं। इस मिट्टी ने मुझे बड़ा किया है। यहां से मुझे जो शिक्षा मिली, दीक्षा मिली, यहां से जो मैं आप सबके बीच रहकर के सीख पाया, जो मंत्र आपने मुझे दिए, जो सपने आपने मेरे में संजोए, मैं उसे देशवासियों के काम आए, इसके लिए कोशिश कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि आज गुजरात सरकार ने शहरी विकास वर्ष, 2005 में इस कार्यक्रम को किया था। 20 वर्ष मनाने का और मुझे खुशी इस बात की हुई कि यह 20 साल के शहरी विकास की यात्रा का जय गान करने का कार्यक्रम नहीं बनाया। गुजरात सरकार ने उन 20 वर्ष में से जो हमने पाया है, जो सीखा है, उसके आधार पर आने वाले शहरी विकास को next generation के लिए उन्होंने उसका रोडमैप बनाया और आज वो रोड मैप गुजरात के लोगों के सामने रखा है। मैं इसके लिए गुजरात सरकार को, मुख्यमंत्री जी को, उनकी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

हम आज दुनिया की चौथी इकोनॉमी बने हैं। किसी को भी संतोष होगा कि अब जापान को भी पीछे छोड़ कर के हम आगे निकल गए हैं और मुझे याद है, हम जब 6 से 5 बने थे, तो देश में एक और ही उमंग था, बड़ा उत्साह था, खासकर के नौजवानों में और उसका कारण यह था कि ढाई सौ सालों तक जिन्होंने हम पर राज किया था ना, उस यूके को पीछे छोड़ करके हम 5 बने थे। लेकिन अब चार बनने का आनंद जितना होना चाहिए उससे ज्यादा तीन कब बनोगे, उसका दबाव बढ़ रहा है। अब देश इंतजार करने को तैयार नहीं है और अगर किसी ने इंतजार करने के लिए कहा, तो पीछे से नारा आता है, मोदी है तो मुमकिन है।

और इसलिए साथियों,

एक तो हमारा लक्ष्य है 2047, हिंदुस्तान विकसित होना ही चाहिए, no compromise… आजादी के 100 साल हम ऐसे ही नहीं बिताएंगे, आजादी के 100 साल ऐसे मनाएंगे, ऐसे मनाएंगे कि दुनिया में विकसित भारत का झंडा फहरता होगा। आप कल्पना कीजिए, 1920, 1925, 1930, 1940, 1942, उस कालखंड में चाहे भगत सिंह हो, सुखदेव हो, राजगुरु हो, नेताजी सुभाष बाबू हो, वीर सावरकर हो, श्यामजी कृष्ण वर्मा हो, महात्मा गांधी हो, सरदार पटेल हो, इन सबने जो भाव पैदा किया था और देश की जन-मन में आजादी की ललक ना होती, आजादी के लिए जीने-मरने की प्रतिबद्धता ना होती, आजादी के लिए सहन करने की इच्छा शक्ति ना होती, तो शायद 1947 में आजादी नहीं मिलती। यह इसलिए मिली कि उस समय जो 25-30 करोड़ आबादी थी, वह बलिदान के लिए तैयार हो चुकी थी। अगर 25-30 करोड़ लोग संकल्पबद्ध हो करके 20 साल, 25 साल के भीतर-भीतर अंग्रेजों को यहां से निकाल सकते हैं, तो आने वाले 25 साल में 140 करोड़ लोग विकसित भारत बना भी सकते हैं दोस्तों। और इसलिए 2030 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, मैं समझता हूं कि हमने अभी से 30 में होंगे, 35… 35 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, हमने अभी से नेक्स्ट 10 ईयर का पहले एक प्लान बनाना चाहिए कि जब गुजरात के 75 होंगे, तब गुजरात यहां पहुंचेगा। उद्योग में यहां होगा, खेती में यहां होगा, शिक्षा में यहां होगा, खेलकूद में यहां होगा, हमें एक संकल्प ले लेना चाहिए और जब गुजरात 75 का हो, उसके 1 साल के बाद जो ओलंपिक होने वाला है, देश चाहता है कि वो ओलंपिक हिंदुस्तान में हो।

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और इसलिए साथियों,

जिस प्रकार से हमारा यह एक लक्ष्य है कि हम जब गुजरात के 75 साल हो जाए। और आप देखिए कि जब गुजरात बना, उस समय के अखबार निकाल दीजिए, उस समय की चर्चाएं निकाल लीजिए। क्या चर्चाएं होती थी कि गुजरात महाराष्ट्र से अलग होकर क्या करेगा? गुजरात के पास क्या है? समंदर है, खारा पाठ है, इधर रेगिस्तान है, उधर पाकिस्तान है, क्या करेगा? गुजरात के पास कोई मिनरल्स नहीं, गुजरात कैसे प्रगति करेगा? यह ट्रेडर हैं सारे… इधर से माल लेते हैं, उधर बेचते हैं। बीच में दलाली से रोजी-रोटी कमा करके गुजारा करते हैं। क्‍या करेंगे ऐसी चर्चा थी। वही गुजरात जिसके पास एक जमाने में नमक से ऊपर कुछ नहीं था, आज दुनिया को हीरे के लिए गुजरात जाना जाता है। कहां नमक, कहां हीरे! यह यात्रा हमने काटी है। और इसके पीछे सुविचारित रूप से प्रयास हुआ है। योजनाबद्ध तरीके से कदम उठाएं हैं। हमारे यहां आमतौर पर गवर्नमेंट के मॉडल की चर्चा होती है कि सरकार में साइलोज, यह सबसे बड़ा संकट है। एक डिपार्टमेंट दूसरे से बात नहीं करता है। एक टेबल वाला दूसरे टेबल वाले से बात नहीं करता है, ऐसी चर्चा होती है। कुछ बातों में सही भी होगा, लेकिन उसका कोई सॉल्यूशन है क्या? मैं आज आपको बैकग्राउंड बताता हूं, यह शहरी विकास वर्ष अकेला नहीं, हमने उस समय हर वर्ष को किसी न किसी एक विशेष काम के लिए डेडिकेट करते थे, जैसे 2005 में शहरी विकास वर्ष माना गया। एक साल ऐसा था, जब हमने कन्या शिक्षा के लिए डेडिकेट किया था, एक वर्ष ऐसा था, जब हमने पूरा टूरिज्म के लिए डेडिकेट किया था। इसका मतलब ये नहीं कि बाकी सब काम बंद करते थे, लेकिन सरकार के सभी विभागों को उस वर्ष अगर forest department है, तो उसको भी अर्बन डेवलपमेंट में वो contribute क्या कर सकता है? हेल्थ विभाग है, तो अर्बन डेवलपमेंट ईयर में वो contribute क्या कर सकता है? जल संरक्षण मंत्रालय है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? टूरिज्म डिपार्टमेंट है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? यानी एक प्रकार से whole of the government approach, इस भूमिका से ये वर्ष मनाया और आपको याद होगा, जब हमने टूरिज्म ईयर मनाया, तो पूरे राज्य में उसके पहले गुजरात में टूरिज्म की कल्पना ही कोई नहीं कर सकता था। विशेष प्रयास किया गया, उसी समय ऐड कैंपेन चलाया, कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में, एक-एक चीज उसमें से निकली। उसी में से रण उत्‍सव निकला, उसी में से स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बना। उसी में से आज सोमनाथ का विकास हो रहा है, गिर का विकास हो रहा है, अंबाजी जी का विकास हो रहा है। एडवेंचर स्पोर्ट्स आ रही हैं। यानी एक के बाद एक चीजें डेवलप होने लगीं। वैसे ही जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया।

और मुझे याद है, मैं राजनीति में नया-नया आया था। और कुछ समय के बाद हम अहमदाबाद municipal कॉरपोरेशन सबसे पहले जीते, तब तक हमारे पास एक राजकोट municipality हुआ करती थी, तब वो कारपोरेशन नहीं थी। और हमारे एक प्रहलादभाई पटेल थे, पार्टी के बड़े वरिष्ठ नेता थे। बहुत ही इनोवेटिव थे, नई-नई चीजें सोचना उनका स्वभाव था। मैं नया राजनीति में आया था, तो प्रहलाद भाई एक दिन आए मिलने के लिए, उन्होंने कहा ये हमें जरा, उस समय चिमनभाई पटेल की सरकार थी, तो हमने चिमनभाई और भाजपा के लोग छोटे पार्टनर थे। तो हमें चिमनभाई को मिलकर के समझना चाहिए कि यह जो लाल बस अहमदाबाद की है, उसको जरा अहमदाबाद के बाहर जाने दिया जाए। तो उन्होंने मुझे समझाया कि मैं और प्रहलाद भाई चिमनभाई को मिलने गए। हमने बहुत माथापच्ची की, हमने कहा यह सोचने जैसा है कि लाल बस अहमदाबाद के बाहर गोरा, गुम्‍मा, लांबा, उधर नरोरा की तरफ आगे दहेगाम की तरफ, उधर कलोल की तरफ आगे उसको जाने देना चाहिए। ट्रांसपोर्टेशन का विस्तार करना चाहिए, तो सरकार के जैसे सचिवों का स्वभाव रहता है, यहां बैठे हैं सारे, उस समय वाले तो रिटायर हो गए। एक बार एक कांग्रेसी नेता को पूछा गया था कि देश की समस्याओं का समाधान करना है तो दो वाक्य में बताइए। कांग्रेस के एक नेता ने जवाब दिया था, वो मुझे आज भी अच्छा लगता है। यह कोई 40 साल पहले की बात है। उन्होंने कहा, देश में दो चीजें होनी चाहिए। एक पॉलीटिशियंस ना कहना सीखें और ब्यूरोक्रेट हां कहना सीखे! तो उससे सारी समस्या का समाधान हो जाएगा। पॉलीटिशियंस किसी को ना नहीं कहता और ब्यूरोक्रेट किसी को हां नहीं कहता। तो उस समय चिमनभाई के पास गए, तो उन्‍होंने पूछा सबसे, हम दोबारा गए, तीसरी बार गए, नहीं-नहीं एसटी को नुकसान हो जाएगा, एसटी को कमाई बंद हो जाएगी, एसटी बंद पड़ जाएगी, एसटी घाटे में चल रही है। लाल बस वहां नहीं भेज सकते हैं, यह बहुत दिन चला। तीन-चार महीने तक हमारी माथापच्ची चली। खैर, हमारा दबाव इतना था कि आखिर लाल बस को लांबा, गोरा, गुम्‍मा, ऐसा एक्सटेंशन मिला, उसका परिणाम है कि अहमदाबाद का विस्तार तेजी से उधर सारण की तरफ हुआ, इधर दहेगाम की तरफ हुआ, उधर कलोल की तरह हुआ, उधर अहमदाबाद की तरह हुआ, तो अहमदाबाद की तरफ जो प्रेशर, एकदम तेजी से बढ़ने वाला था, उसमें तेजी आई, बच गए छोटी सी बात थी, तब जाकर के, मैं तो उस समय राजनीति में नया था। मुझे कोई ज्यादा इन चीजों को मैं जानता भी नहीं था। लेकिन तब समझ में आता था कि हम तत्कालीन लाभ से ऊपर उठ करके सचमुच में राज्य की और राज्य के लोगों की भलाई के लिए हिम्मत के साथ लंबी सोच के साथ चलेंगे, तो बहुत लाभ होगा। और मुझे याद है जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया, तो पहला काम आया, यह एंक्रोचमेंट हटाने का, अब जब एंक्रोचमेंट हटाने की बात आती हे, तो सबसे पहले रुकावट बनता है पॉलिटिकल आदमी, किसी भी दल का हो, वो आकर खड़ा हो जाता है क्योंकि उसको लगता है, मेरे वोटर है, तुम तोड़ रहे हो। और अफसर लोग भी बड़े चतुर होते हैं। जब उनको कहते हैं कि भई यह सब तोड़ना है, तो पहले जाकर वो हनुमान जी का मंदिर तोड़ते हैं। तो ऐसा तूफान खड़ा हो जाता है कि कोई भी पॉलिटिशयन डर जाता है, उसको लगता है कि हनुमान जी का मंदिर तोड़ दिया तो हो… हमने बड़ी हिम्मत दिखाई। उस समय हमारे …..(नाम स्पष्ट नहीं) अर्बन मिनिस्टर थे। और उसका परिणाम यह आया कि रास्ते चौड़े होने लगे, तो जिसका 2 फुट 4 फुट कटता था, वह चिल्लाता था, लेकिन पूरा शहर खुश हो जाता था। इसमें एक स्थिति ऐसी बनी, बड़ी interesting है। अब मैंने तो 2005 अर्बन डेवलपमेंट ईयर घोषित कर दिया। उसके लिए कोई 80-90 पॉइंट निकाले थे, बडे interesting पॉइंट थे। तो पार्टी से ऐसी मेरी बात हुई थी कि भाई ऐसा एक अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा, जरा सफाई वगैरह के कामों में सब को जोड़ना पड़ेगा ऐसा, लेकिन जब ये तोड़ना शुरू हुआ, तो मेरी पार्टी के लोग आए, ये बड़ा सीक्रेट बता रहा हूं मैं, उन्होंने कहा साहब ये 2005 में तो अर्बन बॉडी के चुनाव है, हमारी हालत खराब हो जाएगी। यह सब तो चारों तरफ तोड़-फोड़ चल रही है। मैंने कहा यार भई यह तो मेरे ध्यान में नहीं रहा और सच में मेरे ध्यान में वो चुनाव था ही नहीं। अब मैंने कार्यक्रम बना दिया, अब साहब मेरा भी एक स्वभाव है। हम तो बचपन से पढ़ते आए हैं- कदम उठाया है तो पीछे नहीं हटना है। तो मैंने मैंने कहा देखो भाई आपकी चिंता सही है, लेकिन अब पीछे नहीं हट सकते। अब तो ये अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा। हार जाएंगे, चुनाव क्या है? जो भी होगा हम किसी का बुरा करना नहीं चाहते, लेकिन गुजरात में शहरों का रूप रंग बदलना बहुत जरूरी है।

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साथियों,

हम लोग लगे रहे। काफी विरोध भी हुआ, काफी आंदोलन हुए बहुत परेशानी हुई। यहां मीडिया वालों को भी बड़ा मजा आ गया कि मोदी अब शिकार आ गया हाथ में, तो वह भी बड़ी पूरी ताकत से लग गए थे। और उसके बाद जब चुनाव हुआ, देखिए मैं राजनेताओं को कहता हूं, मैं देश भर के राजनेता मुझे सुनते हैं, तो देखना कहता हूं, अगर आपने सत्यनिष्ठा से, ईमानदारी से लोगों की भलाई के लिए निर्णय करते हैं, तत्कालीन भले ही बुरा लगे, लोग साथ चलते हैं। और उस समय जो चुनाव हुआ 90 परसेंट विक्ट्री बीजेपी की हुई थी, 90 परसेंट यानी लोग जो मानते हैं कि जनता ये नहीं और मुझे याद है। अब यह जो यहां अटल ब्रिज बना है ना तो मुझे, यह साबरमती रिवर फ्रंट पर, तो पता नहीं क्यों मुझे उद्घाटन के लिए बुलाया था। कई कार्यक्रम थे, तो मैंने कहा चलो भई हम भी देखने जाते हैं, तो मैं जरा वो अटल ब्रिज पर टहलने गया, तो वहां मैंने देखा कुछ लोगों ने पान की पिचकारियां लगाई हुई थी। अभी तो उद्घाटन होना था, लेकिन कार्यक्रम हो गया था। तो मेरा दिमाग, मैंने कहा इस पर टिकट लगाओ। तो ये सारे लोग आ गए साहब चुनाव है, उसी के बाद चुनाव था, बोले टिकट नहीं लगा सकते मैंने कहा टिकट लगाओ वरना यह तुम्हारा अटल ब्रिज बेकार हो जाएगा। फिर मैं दिल्ली गया, मैंने दूसरे दिन फोन करके पूछा, मैंने कहा क्या हुआ टिकट लगाने का एक दिन भी बिना टिकट नहीं चलना चाहिए।

साथियों,

खैर मेरा मान-सम्मान रखते हैं सब लोग, आखिर के हमारे लोगों ने ब्रिज पर टिकट लगा दिया। आज टिकट भी हुआ, चुनाव भी जीते दोस्तों और वो अटल ब्रिज चल रहा है। मैंने कांकरिया का पुनर्निर्माण का कार्यक्रम लिया, उस पर टिकट लगाया तो कांग्रेस ने बड़ा आंदोलन किया। कोर्ट में चले गए, लेकिन वह छोटा सा प्रयास पूरे कांकरिया को बचा कर रखा हुआ है और आज समाज का हर वर्ग बड़ी सुख-चैन से वहां जाता है। कभी-कभी राजनेताओं को बहुत छोटी चीजें डर जाते हैं। समाज विरोधी नहीं होता है, उसको समझाना होता है। वह सहयोग करता है और अच्छे परिणाम भी मिलते हैं। देखिए शहरी शहरी विकास की एक-एक चीज इतनी बारीकी से बनाई गई और उसी का परिणाम था और मैं आपको बताता हूं। यह जो अब मुझ पर दबाव बढ़ने वाला है, वो already शुरू हो गया कि मोदी ठीक है, 4 नंबर तो पहुंच गए, बताओ 3 कब पहुंचोगे? इसकी एक जड़ी-बूटी आपके पास है। अब जो हमारे ग्रोथ सेंटर हैं, वो अर्बन एरिया हैं। हमें अर्बन बॉडीज को इकोनॉमिक के ग्रोथ सेंटर बनाने का प्लान करना होगा। अपने आप जनसंख्या के कारण वृद्धि होती चले, ऐसे शहर नहीं हो सकते हैं। शहर आर्थिक गतिविधि के तेजतर्रार केंद्र होने चाहिए और अब तो हमने टीयर 2, टीयर 3 सीटीज पर भी बल देना चाहिए और वह इकोनॉमिक एक्टिविटी के सेंटर बनने चाहिए और मैं तो पूरे देश की नगरपालिका, महानगरपालिका के लोगों को कहना चाहूंगा। अर्बन बॉडी से जुड़े हुए सब लोगों से कहना चाहूंगा कि वे टारगेट करें कि 1 साल में उस नगर की इकोनॉमी कहां से कहां पहुंचाएंगे? वहां की अर्थव्यवस्था का कद कैसे बढ़ाएंगे? वहां जो चीजें मैन्युफैक्चर हो रही हैं, उसमें क्वालिटी इंप्रूव कैसे करेंगे? वहां नए-नए इकोनॉमिक एक्टिविटी के रास्ते कौन से खोलेंगे। ज्यादातर मैंने देखा नगर पालिका की जो नई-नई बनती हैं, तो क्या करते हैं, एक बड़ा शॉपिंग सेंटर बना देते हैं। पॉलिटिशनों को भी जरा सूट करता है वह, 30-40 दुकानें बना देंगे और 10 साल तक लेने वाला नहीं आता है। इतने से काम नहीं चलेगा। स्टडी करके और खास करके जो एग्रो प्रोडक्ट हैं। मैं तो टीयर 2, टीयर 3 सीटी के लिए कहूंगा, जो किसान पैदावार करता है, उसका वैल्यू एडिशन, यह नगर पालिकाओं में शुरू हो, आस-पास से खेती की चीजें आएं, उसमें से कुछ वैल्यू एडिशन हो, गांव का भी भला होगा, शहर का भी भला होगा।

उसी प्रकार से आपने देखा होगा इन दिनों स्टार्टअप, स्टार्टअप में भी आपके ध्यान में आया होगा कि पहले स्‍टार्टअप बड़े शहर के बड़े उद्योग घरानों के आसपास चलते थे, आज देश में करीब दो लाख स्टार्टअप हैं। और ज्यादातर टीयर 2, टीयर 3 सीटीज में है और इसमें भी गर्व की बात है कि उसमें काफी नेतृत्व हमारी बेटियों के पास है। स्‍टार्टअप की लीडरशिप बेटियों के पास है। ये बहुत बड़ी क्रांति की संभावनाओं को जन्म देता है और इसलिए मैं चाहूंगा कि अर्बन डेवलपमेंट ईयर के जब 20 साल मना रहे हैं और एक सफल प्रयोग को हम याद करके आगे की दिशा तय करते हैं तब हम टीयर 2, टीयर 3 सीटीज को बल दें। शिक्षा में भी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज काफी आगे रहा, इस साल देख लीजिए। पहले एक जमाना था कि 10 और 12 के रिजल्ट आते थे, तो जो नामी स्कूल रहते थे बड़े, उसी के बच्चे फर्स्ट 10 में रहते थे। इन दिनों शहरों की बड़ी-बड़ी स्कूलों का नामोनिशान नहीं होता है, टीयर 2, टीयर 3 सीटीज के स्कूल के बच्चे पहले 10 में आते हैं। देखा होगा आपने गुजरात में भी यही हो रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि हमारे छोटे शहरों के पोटेंशियल, उसकी ताकत बढ़ रही है। खेल का देखिए, पहले क्रिकेट देखिए आप, क्रिकेट तो हिंदुस्तान में हम गली-मोहल्ले में खेला जाता है। लेकिन बड़े शहर के बड़े रहीसी परिवारों से ही खेलकूद क्रिकेट अटका हुआ था। आज सारे खिलाड़ी में से आधे से ज्यादा खिलाड़ी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज गांव के बच्चे हैं जो खेल में इंटरनेशनल खेल खेल कर कमाल करते हैं। यानी हम समझें कि हमारे शहरों में बहुत पोटेंशियल है। और जैसा मनोहर जी ने भी कहां और यहां वीडियो में भी दिखाया गया, यह हमारे लिए बहुत बड़ी opportunity है जी, 4 में से 3 नंबर की इकोनॉमी पहुंचने के लिए हम हिंदुस्तान के शहरों की अर्थव्यवस्था पर अगर फोकस करेंगे, तो हम बहुत तेजी से वहां भी पहुंच पाएंगे।

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साथियों,

ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। दुर्भाग्य से हमारे देश में एक ऐसे ही इकोसिस्टम ने जमीनों में अपनी जड़े ऐसी जमा हुई हैं कि भारत के सामर्थ्य को हमेशा नीचा दिखाने में लगी हैं। वैचारिक विरोध के कारण व्यवस्थाओं के विकास का अस्वीकार करने का उनका स्वभाव बन गया है। व्यक्ति के प्रति पसंद-नापसंद के कारण उसके द्वारा किये गए हर काम को बुरा बता देना एक फैशन का तरीका चल पड़ा है और उसके कारण देश की अच्‍छी चीजों का नुकसान हुआ है। ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। अब आप देखिए, हमने शहरी विकास पर तो बल दिया, लेकिन वैसा ही जब आपने दिल्‍ली भेजा, तो हमने एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट, एस्पिरेशनल ब्लॉक पर विचार किया कि हर राज्य में एकाध जिला, एकाध तहसील ऐसी होती है, जो इतना पीछे होता है, कि वो स्‍टेट की सारी एवरेज को पीछे खींच ले जाता है। आप जंप लगा ही नहीं सकते, वो बेड़ियों की तरह होता है। मैंने कहा, पहले इन बेड़ियों को तोड़ना है और देश में 100 के करीब एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट उनको identify किया गया। 40 पैरामीटर से देखा गया कि यहां क्या जरूरत है। अब 500 ब्‍लॉक्‍स identify किए हैं, whole of the government approach के साथ फोकस किया गया। यंग अफसरों को लगाया गया, फुल टैन्‍यूर के साथ काम करें, ऐसा लगाया। आज दुनिया के लिए एक मॉडल बन चुका है और जो डेवलपिंग कंट्रीज हैं उनको भी लग रहा है कि हमारे यहां विकास के इस मॉडल की ओर हमें चलना चाहिए। हमारा academic world भारत के इन प्रयासों और सफल प्रयासों के विषय में सोचे और जब academic world इस पर सोचता है तो दुनिया के लिए भी वो एक अनुकरणीय उदाहरण के रूप में काम आता है।

साथियों,

आने वाले दिनों में टूरिज्म पर हमें बल देना चाहिए। गुजरात ने कमाल कर दिया है जी, कोई सोच सकता है। कच्छ के रेगिस्तान में जहां कोई जाने का नाम नहीं लेता था, वहां आज जाने के लिए बुकिंग नहीं मिलती है। चीजों को बदला जा सकता है, दुनिया का सबसे बड़ा ऊंचा स्टैच्यू, ये अपने आप में अद्भुत है। मुझे बताया गया कि वडनगर में जो म्यूजियम बना है। कल मुझे एक यूके के एक सज्‍जन मिले थे। उन्होंने कहा, मैं वडनगर का म्यूजियम देखने जा रहा हूं। यह इंटरनेशनल लेवल में इतने global standard का कोई म्यूजियम बना है और भारत में काशी जैसे बहुत कम जगह है कि जो अविनाशी हैं। जो कभी भी मृतप्राय नहीं हुए, जहां हर पल जीवन रहा है, उसमें एक वडनगर हैं, जिसमें 2800 साल तक के सबूत मिले हैं। अभी हमारा काम है कि वह इंटरनेशनल टूरिस्ट मैप पर कैसे आए? हमारा लोथल जहां हम एक म्यूजियम बना रहे हैं, मैरीटाइम म्यूजियम, 5 हजार साल पहले मैरीटाइम में दुनिया में हमारा डंका बजता था। धीरे-धीरे हम भूल गए, लोथल उसका जीता-जागता उदाहरण है। लोथल में दुनिया का सबसे बड़ा मैरीटाइम म्यूजियम बन रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि इन चीजों का कितना लाभ होने वाला है और इसलिए मैं कहता हूं दोस्तों, 2005 का वो समय था, जब पहली बार गिफ्ट सिटी के आईडिया को कंसीव किया गया और मुझे याद है, शायद हमने इसका launching Tagore Hall में किया था। तो उसके बड़े-बड़े जो हमारे मन में डिजाइन थे, उसके चित्र लगाए थे, तो मेरे अपने ही लोग पूछ रहे थे। यह होगा, इतने बड़े बिल्डिंग टावर बनेंगे? मुझे बराबर याद है, यानी जब मैं उसका मैप वगैरह और उसका प्रेजेंटेशन दिखाता था केंद्र के कुछ नेताओं को, तो वह भी मुझे कह रहे थे अरे भारत जैसे देश में ये क्या कर रहे हो तुम? मैं सुनता था आज वो गिफ्ट सिटी हिंदुस्तान का हर राज्य कह रहा है कि हमारे यहां भी एक गिफ्ट सिटी होना चाहिए।

साथियों,

एक बार कल्पना करते हुए उसको जमीन पर, धरातल पर उतारने का अगर हम प्रयास करें, तो कितने बड़े अच्छे परिणाम मिल सकते हैं, ये हम भली भांति देख रहे हैं। वही काल खंड था, रिवरफ्रंट को कंसीव किया, वहीं कालखंड था जब दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम बनाने का सपना देखा, पूरा किया। वही कालखंड था, दुनिया का सबसे ऊंचा स्टैच्यू बनाने के लिए सोचा, पूरा किया।

भाइयों और बहनों,

एक बार हम मान के चले, हमारे देश में potential बहुत हैं, बहुत सामर्थ्‍य है।

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साथियों,

मुझे पता नहीं क्यों, निराशा जैसी चीज मेरे मन में आती ही नहीं है। मैं इतना आशावादी हूं और मैं उस सामर्थ्य को देख पाता हूं, मैं दीवारों के उस पार देख सकता हूं। मेरे देश के सामर्थ्य को देख सकता हूं। मेरे देशवासियों के सामर्थ्य को देख सकता हूं और इसी के भरोसे हम बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं और इसलिए आज मैं गुजरात सरकार का बहुत आभारी हूं कि आपने मुझे यहां आने का मौका दिया है। कुछ ऐसी पुरानी-पुरानी बातें ज्यादातर ताजा करने का मौका मिल गया। लेकिन आप विश्वास करिए दोस्तों, गुजरात की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हम देने वाले लोग हैं, हमें देश को हमेशा देना चाहिए। और हम इतनी ऊंचाई पर गुजरात को ले जाए, इतनी ऊंचाई पर ले जाएं कि देशवासियों के लिए गुजरात काम आना चाहिए दोस्तों, इस महान परंपरा को हमें आगे बढ़ाना चाहिए। मुझे विश्वास है, गुजरात एक नए सामर्थ्य के साथ अनेक विद नई कल्पनाओं के साथ, अनेक विद नए इनीशिएटिव्स के साथ आगे बढ़ेगा मुझे मालूम है। मेरा भाषण शायद कितना लंबा हो गया होगा, पता नहीं क्या हुआ? लेकिन कल मीडिया में दो-तीन चीजें आएंगी। वो भी मैं बता देता हूं, मोदी ने अफसरों को डांटा, मोदी ने अफसरों की धुलाई की, वगैरह-वगैरह-वगैरह, खैर वो तो कभी-कभी चटनी होती है ना इतना ही समझ लेना चाहिए, लेकिन जो बाकी बातें मैंने याद की है, उसको याद कर करके जाइए और ये सिंदुरिया मिजाज! ये सिंदुरिया स्पिरिट, दोस्‍तों 6 मई को, 6 मई की रात। ऑपरेशन सिंदूर सैन्य बल से प्रारंभ हुआ था। लेकिन अब ये ऑपरेशन सिंदूर जन-बल से आगे बढ़ेगा और जब मैं सैन्य बल और जन-बल की बात करता हूं तब, ऑपरेशन सिंदूर जन बल का मतलब मेरा होता है जन-जन देश के विकास के लिए भागीदार बने, दायित्‍व संभाले।

हम इतना तय कर लें कि 2047, जब भारत के आजादी के 100 साल होंगे। विकसित भारत बनाने के लिए तत्काल भारत की इकोनॉमी को 4 नंबर से 3 नंबर पर ले जाने के लिए अब हम कोई विदेशी चीज का उपयोग नहीं करेंगे। हम गांव-गांव व्यापारियों को शपथ दिलवाएं, व्यापारियों को कितना ही मुनाफा क्यों ना हो, आप विदेशी माल नहीं बेचोगे। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, गणेश जी भी विदेशी आ जाते हैं। छोटी आंख वाले गणेश जी आएंगे। गणेश जी की आंख भी नहीं खुल रही है। होली, होली रंग छिड़कना है, बोले विदेशी, हमें पता था आप भी अपने घर जाकर के सूची बनाना। सचमुच में ऑपरेशन सिंदूर के लिए एक नागरिक के नाते मुझे एक काम करना है। आप घर में जाकर सूची बनाइए कि आपके घर में 24 घंटे में सुबह से दूसरे दिन सुबह तक कितनी विदेशी चीजों का उपयोग होता है। आपको पता ही नहीं होता है, आप hairpin भी विदेशी उपयोग कर लेते हैं, कंघा भी विदेशी होता है, दांत में लगाने वाली जो पिन होती है, वो भी विदेशी घुस गई है, हमें मालूम तक नहीं है। पता ही नहीं है दोस्‍तों। देश को अगर बचाना है, देश को बनाना है, देश को बढ़ाना है, तो ऑपरेशन सिंदूर यह सिर्फ सैनिकों के जिम्‍मे नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर 140 करोड़ नागरिकों की जिम्‍मे है। देश सशक्त होना चाहिए, देश सामर्थ्‍य होना चाहिए, देश का नागरिक सामर्थ्यवान होना चाहिए और इसके लिए हमने वोकल फॉर लोकल, वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट, मैं मेरे यहां, जो आपके पास है फेंक देने के लिए मैं नहीं कह रहा हूं। लेकिन अब नया नहीं लेंगे और शायद एकाध दो परसेंट चीजें ऐसी हैं, जो शायद आपको बाहर की लेनी पड़े, जो हमारे यहां उपलब्ध ना हो, बाकि आज हिंदुस्तान में ऐसा कुछ नहीं। आपने देखा होगा, आज से पहले 25 साल 30 साल पहले विदेश से कोई आता था, तो लोग लिस्ट भेजते थे कि ये ले आना, ये ले आना। आज विदेश से आते हैं, वो पूछते हैं कि कुछ लाना है, तो यहां वाले कहते हैं कि नहीं-नहीं यहां सब है, मत लाओ। सब कुछ है, हमें अपनी ब्रांड पर गर्व होना चाहिए। मेड इन इंडिया पर गर्व होना चाहिए। ऑपरेशन सिंदूर सैन्‍य बल से नहीं, जन बल से जीतना है दोस्तों और जन बल आता है मातृभूमि की मिट्टी में पैदा हुई हर पैदावार से आता है। इस मिट्टी की जिसमें सुगंध हो, इस देश के नागरिक के पसीने की जिसमें सुगंध हो, उन चीजों का मैं इस्तेमाल करूंगा, अगर मैं ऑपरेशन सिंदूर को जन-जन तक, घर-घर तक लेकर जाता हूं। आप देखिए हिंदुस्तान को 2047 के पहले विकसित राष्ट्र बनाकर रहेंगे और अपनी आंखों के सामने देखकर जाएंगे दोस्तों, इसी इसी अपेक्षा के साथ मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए,

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

भारत माता की जय! जरा तिरंगे ऊपर लहराने चाहिए।

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

धन्यवाद!