"अब आज़ादी के 100वें वर्ष तक का जो हमारा सफर है, वो नई आवश्यकताओं, नई चुनौतियों के अनुसार अपनी खेती को ढालने का है"
“हमें अपनी खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना ही होगा। जब मैं प्रकृति की प्रयोगशाला की बात करता हूं तो ये पूरी तरह से विज्ञान आधारित ही है"
"कृषि से जुड़े हमारे इस प्राचीन ज्ञान को हमें न सिर्फ फिर से सीखने की ज़रूरत है, बल्कि उसे आधुनिक समय के हिसाब से तराशने की भी ज़रूरत है। इस दिशा में हमें नए सिरे से शोध करने होंगे, प्राचीन ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक फ्रेम में ढालना होगा"
"प्राकृतिक खेती से जिन्हें सबसे अधिक फायदा होगा, वो हैं देश के 80 प्रतिशत किसान"
"21वीं सदी में भारत और भारत के किसान 'लाइफ स्टाइल फॉर एनवायरमेंट' के वैश्विक मिशन का नेतृत्व करेंगे"
"इस अमृत महोत्सव में हर पंचायत का कम से कम एक गांव ज़रूर प्राकृतिक खेती से जुड़े, ये प्रयास हम कर सकते हैं"
"आइये, आजादी के अमृत महोत्सव में मां भारती की धरा को रासायनिक खाद और कीटनाशकों से मुक्त करने का संकल्प लें"

नमस्कार,

गुजरात के गवर्नर श्री आचार्य देवव्रत जी, गृह और सहकारिता मंत्री श्री अमित भाई शाह, केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर जी, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल जी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी, अन्य सभी महानुभाव, देश के कोने-कोने से हजारों की संख्या में जुड़े मेरे किसान भाई-बहन, देश के कृषि सेक्टर, खेती किसानी के लिए आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। मैंने देशभर के किसान साथियों से आग्रह किया था, कि नैचुरल फार्मिंग के नेशनल कॉन्क्लेव से जरूर जुड़ें।और जैसा अभी कृषि मंत्री तोमर जी ने बताया करीब करीब 8 करोड़ किसान टेक्नॉलाजी के माध्यम से देश के हर कोने से हमारे साथ जुड़े हुएहैं।मैंसभी किसानभाई-बहनों का स्वागत करता हूं, अभिनंदन करता हूं।मैं आचार्य देवद्रत जी का भी हदृय से अभिनंदन करता हूँ। मैं बहुत ध्यान से एक विद्धयार्थी की तरह आज मैं उनकी बातें सुन रहा था। मैं स्वंय तो किसान नहीं हूँ, लेकिन बहुत आसानी से मैं समझ पा रहा था, कि प्राकृतिक कृषि के लिए क्या चाहिए, क्या करना है बहुत ही सरल शब्दों में उन्होंने समझाया और मुझे पक्का विश्वास है आज का उनका यह मार्गदर्शन और मैं जानबूझ करके आज पूरा समय उनको सुनने के लिए बैठा था। क्योंकि मुझे मालूम था, कि उन्होंने जो सिद्धि प्राप्त की है, प्रयोग सफलतापूर्वक आगे बढ़ाएं है। हमारे देश के किसान भी उनके फायदे की इस बात को कभी भी कम नहीं आंकेगें, कभी भी भूलेंगे नहीं।

साथियों,

ये कॉन्क्लेव गुजरात मेंभलेहो रहा है लेकिन इसका दायरा, इसका प्रभाव, पूरे भारत के लिए है, भारत के हर किसान के लिए है। एग्रीकल्चर के अलग-अलग आयाम हों, फूड प्रोसेसिंग हो, नैचुरल फार्मिंग हो, ये विषय 21वीं सदी में भारतीय कृषि का कायाकल्प करने में बहुत मदद करेंगे। इस कॉन्क्लेव के दौरान यहां हज़ारों करोड़ रुपए के समझौतेउसकी भी चर्चा हुई, उसकी भी प्रगृति हुईहैं। इनमें भी इथेनॉल, ऑर्गेनिक फार्मिंग और फूड प्रोसेसिंग को लेकर जो उत्साह दिखा है, नई संभावनाओं को विस्तार देता है। मुझे इस बात का भी संतोष है कि गुजरात में हमने टेक्नॉलॉजी और नैचुरल फार्मिंग में तालमेल के जो प्रयोग किए थे, वो पूरे देश को दिशा दिखा रहे हैं। मैंफिर एक बारगुजरात के गवर्नर, आचार्य देवव्रत जी का विशेष आभार व्यक्त करना चाहता हूं, जिन्होंने देश के किसानों को, नैचुरल फार्मिंग के बारे में इतनासरल शब्दों में स्वंअनुभव की बातों के द्वारा बड़े विस्तार से समझाया है।

साथियों,

आज़ादी के अमृत महोत्सव में आज समय अतीत के अवलोकन का और उनके अनुभवों से सीख लेकर नए मार्ग बनाने का भी है। आजादी के बाद के दशकों में जिस तरह देश में खेती हुई, जिस दिशा में बढ़ी, वो हमसबने बहुत बारीकी से देखा है।अब आज़ादी के 100वें वर्ष तक का जो हमारा सफर है, आने वाले 25 साल का जो सफर है,वो नई आवश्यकताओं, नई चुनौतियों के अनुसार अपनी खेती को ढालने का है। बीते 6-7 साल में बीज से लेकर बाज़ार तक, किसान की आय को बढ़ाने के लिए एक के बाद एक अनेक कदम उठाए गए हैं। मिट्टी की जांच से लेकर सैकड़ों नए बीजतैयार करनेतक, पीएम किसान सम्मान निधि से लेकर लागत का डेढ़ गुणा एमएसपीकरनेतक, सिंचाई के सशक्त नेटवर्क से लेकर किसान रेल तक, अनेक कदम उठाए हैं।और श्रीमान तोमर जी ने इसका कुछ जिक्र भी अपने भाषण में किया है।खेती के साथ-साथ पशुपालन, मधुमखी पालन, मत्स्यपालनऔरसौर ऊर्जा, बायोफ्यूल्स जैसे आय के अनेक वैकल्पिक साधनों से किसानों को निरंतर जोड़ा जा रहा है। गांवों में भंडारण, कोल्ड चेन और फूड प्रोसेसिंग को बल देने के लिए लाखों करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। ये तमाम प्रयास किसान को संसाधन दे रहे हैं, किसान को उसकी पसंद काविकल्प दे रहे हैं। लेकिन इन सबके साथ एक महत्वपूर्ण प्रश्न हमारे सामने है। जब मिट्टी ही जवाब दे जाएगी तब क्या होगा? जब मौसम ही साथ नहीं देगा, जब धरती माता के गर्भ में पानी सीमित रह जाएगा तब क्या होगा? आज दुनिया भर में खेती को इन चुनौतियों से दोचार होना पड़ रहा है। ये सही है कि केमिकल और फर्टिलाइज़र ने हरित क्रांति में अहम रोल निभाया है। लेकिन ये भी उतना ही सच है कि हमें इसके विकल्पों पर भी साथ ही साथ काम करते रहना होगाऔर अधिक ध्यान देना होगा। खेती में उपयोग होने वाले कीटनाशक और केमिकल फर्टिलाइजर हमें बड़ी मात्रा में इंपोर्ट करना पड़ता है।बाहर से दुनिया के देशों से अरबों- खरबों रुपया खर्च करके लाना पड़ता है।इस वजह से खेती की लागत भी बढ़ती है, किसान का खर्च बढ़ता है और गरीब की रसोई भी महंगी होती है। ये समस्या किसानों और सभी देशवासियों की सेहत से जुड़ी हुई भी है। इसलिए सतर्क रहने की आवश्यकता है, जागरूक रहने की आवश्यकता है।

साथियों,

गुजराती में एक कहावत है, हर घर में बोली जाती है ''पानी आवे ते पहेला पाल बांधे। पानी पहला बांध बांधो, यह हमारे यहां हर कोई कहता है... इसका तात्पर्य ये कि इलाज से परहेज़ बेहतर। इससे पहले की खेती से जुड़ी समस्याएं भी विकराल हो जाएं, उससे पहले बड़े कदम उठाने का ये सही समय है। हमें अपनी खेती कोकैमिस्ट्री की लैबसे निकालकरनेचर यानि प्रकृति की प्रयोगशालासे जोड़ना ही होगा। जब मैं प्रकृति की प्रयोगशाला की बात करता हूं तो ये पूरी तरह से विज्ञान आधारित ही है। ये कैसे होता है, इसके बारे में अभी आचार्य देवव्रत जी ने विस्तार से बताया भी है।हमने एक छोटी सी फिल्म में भी देखा है। और जैसा उन्होंने कहा उनकी किताब प्राप्त करके भी यूट्यूब पर आचार्य देवद्रत जी के नाम से ढूढ़ेंगें उनके भाषण भी मिल जाएंगे।जो ताकत खाद में, फर्टिलाइजर में है, वोबीज, वो तत्व प्रकृति में भी मौजूद है। हमें बस उन जीवाणुओं की मात्रा धरती में बढ़ानी है, जो उसकी उपजाऊ शक्ति को बढ़ाती है। कई एक्सपर्ट कहते हैं कि इसमें देसी गायों की भी अहम भूमिका है। जानकार कहते हैं कि गोबर हो, गोमूत्रहो, इससे आप ऐसा समाधान तैयार कर सकते हैं, जो फसल की रक्षा भी करेगा और उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाएगा। बीज से लेकर मिट्टी तक सबका इलाज आप प्राकृतिक तरीके से कर सकते हैं। इस खेती में ना तो खाद पर खर्च करना है, ना कीटनाशक पर। इसमें सिंचाई की आवश्यकता भी कम होती है और बाढ़-सूखे से निपटने में भी ये सक्षम होती है। चाहे कम सिंचाई वाली ज़मीन हो या फिर अधिक पानी वाली भूमि, प्राकृतिक खेती से किसान साल में कई फसलें ले सकता है। यही नहीं, जो गेहूं-धान-दाल या जो भी खेत से कचरा निकलता है, जो पराली निकलती है, उसका भी इसमें सदुपयोग किया जाता है। यानी, कम लागत, ज्यादा मुनाफा।यही तोप्राकृतिक खेतीहै।

साथियों,

आज दुनिया जितना आधुनिक हो रही है, उतना ही 'back to basic' की ओर बढ़ रही है। इस Back to basic का मतलब क्या है? इसका मतलब है अपनी जड़ों से जुड़ना! इस बात को आप सब किसान साथियों से बेहतर कौन समझता है? हम जितना जड़ों को सींचते हैं, उतना ही पौधे का विकास होता है। भारत तो एक कृषि प्रधान देश है। खेती-किसानी के इर्द-गिर्द ही हमारा समाज विकसित हुआ है, परम्पराएँ पोषित हुई हैं, पर्व-त्योहार बने हैं। यहाँ देश के कोने कोने से किसान साथी जुड़े हैं। आप मुझे बताइये, आपके इलाके का खान-पान, रहन-सहन, त्योहार-परम्पराएँ कुछ भी ऐसा है जिस पर हमारी खेती का, फसलों का प्रभाव न हो? जब हमारी सभ्यता किसानी के साथ इतना फली-फूली है, तो कृषि को लेकर, हमारा ज्ञान-विज्ञान कितना समृद्ध रहा होगा? कितना वैज्ञानिक रहा होगा? इसीलिए भाइयों बहनों, आज जब दुनिया organic की बात करती है, नैचुरल की बात करती है, आज जब बैक टु बेसिक की बात होती है, तो उसकी जड़ें भारत से जुड़ती दिखाई पड़ती हैं।

साथियों,

यहाँ पर कृषि से जुड़े कई विद्वान लोग उपस्थित हैं जिन्होंने इस विषय पर व्यापक शोध किया है। आप लोग जानते ही हैं, हमारे यहाँ ऋग्वेद और अथर्ववेद से लेकर हमारे पुराणों तक, कृषि-पाराशर और काश्यपीय कृषि सूक्त जैसे प्राचीन ग्रन्थों तक, और दक्षिण में तमिलनाडू के संत तिरुवल्लुवर जी से लेकर उत्तर में कृषक कवि घाघ तक, हमारी कृषि पर कितनी बारीकियों से शोध हुआ है। जैसे एक श्लोक है-

गोहितः क्षेत्रगामी च,

कालज्ञो बीज-तत्परः।

वितन्द्रः सर्व शस्याढ्यः,

कृषको न अवसीदति॥

अर्थात्,

जो गोधन का, पशुधन का हित जानता हो, मौसम-समय के बारे में जानता हो, बीज के बारे में जानकारी रखता हो, और आलस न करता हो, ऐसा किसान कभी परेशान नहीं हो सकता, गरीब नहीं हो सकता। ये एक श्लोक नैचुरल फ़ार्मिंग का सूत्र भी है, और नैचुरल फ़ार्मिंग की ताकत भी बताता है। इसमें जितने भी संसाधनों का ज़िक्र है, सारे प्राकृतिक रूप से उपलब्ध हैं। इसी तरह, कैसे मिट्टी को उर्वरा बनाएं, कब कौन सी फसल में पानी लगाएँ, कैसे पानी बचाएं, इसके कितने ही सूत्र दिये गए हैं। एक और बड़ा प्रचलित श्लोक है-

नैरुत्यार्थं हि धान्यानां जलं भाद्रे विमोचयेत्।

मूल मात्रन्तु संस्थाप्य कारयेज्जज-मोक्षणम्॥

यानी, फसल को बीमारी से बचाकर पुष्ट करने के लिए भादौ के महीने में पानी को निकाल देना चाहिए।केवल जड़ों के लिए ही पानी खेत में रहना चाहिए। इसी तरह कवि घाघ ने भी लिखा है-

गेहूं बाहें, चना दलाये।

धान गाहें, मक्का निराये।

ऊख कसाये।

यानी, खूब बांह करने से गेहूं, खोंटने से चना, बार-बार पानी मिलने से धान, निराने से मक्का और पानी में छोड़कर बाद में गन्ना बोने से उसकी फसल अच्छी होती है। आप कल्पना कर सकते हैं, करीब-करीब दो हजार वर्ष पूर्व, तमिलनाडु में संत तिरुवल्लुवर जी ने भी खेती से जुड़े कितने ही सूत्र दिये थे। उन्होंने कहा था-

तोड़ि-पुड़ुडी कछ्चा उणक्किन,

पिड़िथेरुवुम वेंडाद् सालप पडुम

अर्थात, If the land is dried, so as to reduce one ounce of earth to a quarter, it will grow plentifully even without a handful of manure.

साथियों,

कृषि से जुड़े हमारे इस प्राचीन ज्ञान को हमें न सिर्फ फिर से सीखने की ज़रूरत है, बल्कि उसे आधुनिक समय के हिसाब से तराशने की भी ज़रूरत है। इस दिशा में हमें नए सिरे से शोध करने होंगे, प्राचीन ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक फ्रेम में ढालना होगा। इस दिशा में हमारे ICAR जैसे संस्थानों की, कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विश्वविद्यालयों की बड़ी भूमिका हो सकती है। हमें जानकारियों को केवल रिसर्च पेपर्स और theories तक ही सीमित नहीं रखना है, हमें उसे एक प्रैक्टिकल सक्सेस में बदलना होगा। Lab to land यही हमारी यात्रा होगी।इसकी शुरुआत भी हमारे ये संस्थान कर सकते हैं। आप ये संकल्प ले सकते हैं कि आप नैचुरल फार्मिंग कोप्राकृतिक खेती कोज्यादा से ज्यादा किसानों तक ले जाएंगे। आप जब ये करके दिखाएंगे कि ये सफलता के साथ संभव है, तो सामान्य मानवी भी इससे जल्द से जल्द जुड़ेगें।

साथियों,

नया सीखने के साथ हमें उन गलतियों को भुलाना भी पड़ेगा जो खेती के तौर-तरीकों में आ गई हैं।जानकार ये बताते हैं कि खेत में आग लगाने से धरती अपनी उपजाऊक्षमताखोती जाती है। हम देखते हैं कि जिस प्रकार मिट्टी कोऔर यह बात समझने जैसी है जिस प्रकार मिट्टी कोजब तपाया जाता है, तो वो ईंट का रूप ले लेती है।और ईंट इतनी मजबूत बन जाती है कि इमारत बन जाती है। लेकिन फसल के अवशेषों को जलाने की हमारे यहां परंपरा सी पड़ गई है।पता है कि मिट्टी जलती है तो ईट बन जाती है फिर भी हम मिट्टी तपाते रहते हैं। इसी तरह, एक भ्रम ये भी पैदा हो गया है कि बिना केमिकल के फसल अच्छी नहीं होगी। जबकि सच्चाई इसके बिलकुल उलट है। पहले केमिकल नहीं होते थे, लेकिन फसल अच्छी होती थी। मानवता के विकास का इतिहास इसका साक्षी है। तमाम चुनौतियों के बावजूद कृषि युग में मानवता सबसे तेजी से फली फूली, आगे बढ़ी। क्योंकि तब सही तरीके से प्राकृतिक खेती की जाती थी, लगातार लोग सीखते थे। आज औद्योगिक युग में तो हमारे पास टेक्नालजी की ताकत है, कितने साधन हैं, मौसम की भी जानकारी है! अब तो हमकिसान मिलकर के एक नया इतिहास बना सकते हैं। दुनिया जब ग्लोबल वार्मिंग को लेकर परेशान है उसका रास्ता खोजने में भारत का किसान अपनी परंपरागत ज्ञान के द्वारा उपाय दे सकता है। हम मिलकर के कुछ कर सकते हैं।

भाइयों और बहनों,

नैचुरल फार्मिंग से जिन्हें सबसे अधिक फायदा होगा, वो हैंहमारे देशके 80 प्रतिशतछोटेकिसान। वो छोटे किसान, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है। इनमें से अधिकांश किसानों का काफी खर्च, केमिकल फर्टिलाइजर पर होता है। अगर वो प्राकृतिक खेती की तरफ मुड़ेंगे तो उनकी स्थिति और बेहतर होगी।

भाइयों और बहनों,

प्राकृतिक खेती पर गांधी जी की कही ये बात बिल्कुल सटीक बैठती है जहां शोषण होगा, वहां पोषण नहीं होगा। गांधी जी कहते थे, कि मिट्टी को अलटना-पटलना भूल जाना, खेत की गुड़ाई भूल जाना, एक तरह से खुद को भूल जाने की तरह है। मुझे संतोष है कि बीते कुछ सालों में देश के अनेक राज्यों में इसे सुधारा आ रहा है। हाल के बरसों में हजारों किसान प्राकृतिक खेती को अपना चुके हैं। इनमें से कई तो स्टार्ट-अप्स हैं, नौजवानों के हैं। केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई परंपरागत कृषि विकास योजना से भी उन्हें लाभ मिला है। इसमें किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है और इस खेती की तरफ बढ़ने के लिए मदद भी की जा रही है।

भाइयों और बहनों,

जिन राज्यों के लाखों किसान प्राकृतिक खेती से जुड़ चुके हैं, उनके अनुभव उत्साहवर्धक हैं। गुजरात में प्राकृतिक खेती को लेकर हमने बहुत पहले प्रयास शुरु कर दिए थे। आज गुजरात के अनेक हिस्सों में इसके सकारात्मक असर दिखने को मिल रहे हैं। इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश में भी तेज़ी से इस खेती के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। मैं आज देश के हर राज्य से, हर राज्य सरकार से, ये आग्रह करुंगा कि वो प्राकृतिक खेती को जन आंदोलन बनाने के लिए आगे आएं। इस अमृत महोत्सव में हर पंचायत का कम से कम एक गांव ज़रूर प्राकृतिक खेती से जुड़े, ये प्रयास हमसबकर सकते हैं।और मैं किसान भाईयों को भी कहना चाहता हूँ।मैं ये नहीं कहता किआपकी अगर 2 एकड़ भूमि है या 5 एकड़ भूमि है तो पूरी जमीन पर ही प्रयोग करो। आप थोड़ा खुद अनुभव करो। चलिए उसमें से एक छोटा हिस्सा ले लो, आधा खेत ले लो, एक चौथाई खेत ले लो, एक हिस्सा तयकरो उसमें यह प्रयोग करो। अगर फायदा दिखता है तो फिर थोड़ा विस्तार बढ़ाओं। एक दो साल में आप फिर धीरे- धीरे पूरे खेत में इस तरफ चले जाओगे। दायरा बढ़ाते जाओगे। मेरा सभी निवेश साथियों से भी आग्रह है कि ये समय ऑर्गेनिक और प्राकृतिक खेती में, इनके उत्पादों की प्रोसेसिंग में जमकर निवेश का है। इसके लिए देश में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व का बाज़ार हमारा इंतजार कर रहा है। हमें आने वाली संभावनाओं के लिए आज ही काम करना है।

साथियों,

इस अमृतकाल में दुनिया के लिए फूड सिक्योरिटी और प्रकृति से समन्वय का बेहतरीन समाधान हमें भारत से देना है। क्लाइमेट चैंज समिट में मैंने दुनिया से Life style for environment यानि LIFE को ग्लोबल मिशन बनाने का आह्वान किया था। 21वीं सदी में इसका नेतृत्व भारत करने वाला है, भारत का किसान करने वाला है। इसलिए आइये, आइये, आजादी के अमृत महोत्सव में मां भारती की धरा को रासायनिक खाद और कीटनाशकों से मुक्त करने का संकल्प लें। दुनिया को स्वस्थ धरती, स्वस्थ जीवन का रास्ता दिखाएँ। आज देश ने आत्मनिर्भर भारत का सपना संजोया है। आत्मनिर्भर भारत तब ही बन सकता है जब उसकी कृषि आत्मनिर्भर बने, एक एक किसान आत्मनिर्भर बने। और ऐसा तभी हो सकता है जब अप्राकृतिक खाद और दवाइयों के बदले, हम मां भारती की मिट्टी का संवर्धन, गोबर-धन से करें, प्राकृतिक तत्वों से करें। हर देशवासी, हर चीज के हित में,हर जीव के हित में प्राकृतिक खेती को हम जनांदोलन बनाएंगे, इसी विश्वास के साथमैं गुजरात सरकार का गुजरात के मुख्यमंत्री जी का उनकी पूरी टीम का इसinitiative के लिए पूरे गुजरात में इसको जन आंदोलन का रुप देने के लिए और आज पूरे देश के किसानों को जोड़ने के लिए मैं संबंधित सभी का हदृय से बहुत- बहुत अभिनंदन करता हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद !

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Text of PM Modi's address at the Parliament of Guyana
November 21, 2024

Hon’ble Speaker, मंज़ूर नादिर जी,
Hon’ble Prime Minister,मार्क एंथनी फिलिप्स जी,
Hon’ble, वाइस प्रेसिडेंट भरत जगदेव जी,
Hon’ble Leader of the Opposition,
Hon’ble Ministers,
Members of the Parliament,
Hon’ble The चांसलर ऑफ द ज्यूडिशियरी,
अन्य महानुभाव,
देवियों और सज्जनों,

गयाना की इस ऐतिहासिक पार्लियामेंट में, आप सभी ने मुझे अपने बीच आने के लिए निमंत्रित किया, मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। कल ही गयाना ने मुझे अपना सर्वोच्च सम्मान दिया है। मैं इस सम्मान के लिए भी आप सभी का, गयाना के हर नागरिक का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। गयाना का हर नागरिक मेरे लिए ‘स्टार बाई’ है। यहां के सभी नागरिकों को धन्यवाद! ये सम्मान मैं भारत के प्रत्येक नागरिक को समर्पित करता हूं।

साथियों,

भारत और गयाना का नाता बहुत गहरा है। ये रिश्ता, मिट्टी का है, पसीने का है,परिश्रम का है करीब 180 साल पहले, किसी भारतीय का पहली बार गयाना की धरती पर कदम पड़ा था। उसके बाद दुख में,सुख में,कोई भी परिस्थिति हो, भारत और गयाना का रिश्ता, आत्मीयता से भरा रहा है। India Arrival Monument इसी आत्मीय जुड़ाव का प्रतीक है। अब से कुछ देर बाद, मैं वहां जाने वाला हूं,

साथियों,

आज मैं भारत के प्रधानमंत्री के रूप में आपके बीच हूं, लेकिन 24 साल पहले एक जिज्ञासु के रूप में मुझे इस खूबसूरत देश में आने का अवसर मिला था। आमतौर पर लोग ऐसे देशों में जाना पसंद करते हैं, जहां तामझाम हो, चकाचौंध हो। लेकिन मुझे गयाना की विरासत को, यहां के इतिहास को जानना था,समझना था, आज भी गयाना में कई लोग मिल जाएंगे, जिन्हें मुझसे हुई मुलाकातें याद होंगीं, मेरी तब की यात्रा से बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं, यहां क्रिकेट का पैशन, यहां का गीत-संगीत, और जो बात मैं कभी नहीं भूल सकता, वो है चटनी, चटनी भारत की हो या फिर गयाना की, वाकई कमाल की होती है,

साथियों,

बहुत कम ऐसा होता है, जब आप किसी दूसरे देश में जाएं,और वहां का इतिहास आपको अपने देश के इतिहास जैसा लगे,पिछले दो-ढाई सौ साल में भारत और गयाना ने एक जैसी गुलामी देखी, एक जैसा संघर्ष देखा, दोनों ही देशों में गुलामी से मुक्ति की एक जैसी ही छटपटाहट भी थी, आजादी की लड़ाई में यहां भी,औऱ वहां भी, कितने ही लोगों ने अपना जीवन समर्पित कर दिया, यहां गांधी जी के करीबी सी एफ एंड्रूज हों, ईस्ट इंडियन एसोसिएशन के अध्यक्ष जंग बहादुर सिंह हों, सभी ने गुलामी से मुक्ति की ये लड़ाई मिलकर लड़ी,आजादी पाई। औऱ आज हम दोनों ही देश,दुनिया में डेमोक्रेसी को मज़बूत कर रहे हैं। इसलिए आज गयाना की संसद में, मैं आप सभी का,140 करोड़ भारतवासियों की तरफ से अभिनंदन करता हूं, मैं गयाना संसद के हर प्रतिनिधि को बधाई देता हूं। गयाना में डेमोक्रेसी को मजबूत करने के लिए आपका हर प्रयास, दुनिया के विकास को मजबूत कर रहा है।

साथियों,

डेमोक्रेसी को मजबूत बनाने के प्रयासों के बीच, हमें आज वैश्विक परिस्थितियों पर भी लगातार नजर ऱखनी है। जब भारत और गयाना आजाद हुए थे, तो दुनिया के सामने अलग तरह की चुनौतियां थीं। आज 21वीं सदी की दुनिया के सामने, अलग तरह की चुनौतियां हैं।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनी व्यवस्थाएं और संस्थाएं,ध्वस्त हो रही हैं, कोरोना के बाद जहां एक नए वर्ल्ड ऑर्डर की तरफ बढ़ना था, दुनिया दूसरी ही चीजों में उलझ गई, इन परिस्थितियों में,आज विश्व के सामने, आगे बढ़ने का सबसे मजबूत मंत्र है-"Democracy First- Humanity First” "Democracy First की भावना हमें सिखाती है कि सबको साथ लेकर चलो,सबको साथ लेकर सबके विकास में सहभागी बनो। Humanity First” की भावना हमारे निर्णयों की दिशा तय करती है, जब हम Humanity First को अपने निर्णयों का आधार बनाते हैं, तो नतीजे भी मानवता का हित करने वाले होते हैं।

साथियों,

हमारी डेमोक्रेटिक वैल्यूज इतनी मजबूत हैं कि विकास के रास्ते पर चलते हुए हर उतार-चढ़ाव में हमारा संबल बनती हैं। एक इंक्लूसिव सोसायटी के निर्माण में डेमोक्रेसी से बड़ा कोई माध्यम नहीं। नागरिकों का कोई भी मत-पंथ हो, उसका कोई भी बैकग्राउंड हो, डेमोक्रेसी हर नागरिक को उसके अधिकारों की रक्षा की,उसके उज्जवल भविष्य की गारंटी देती है। और हम दोनों देशों ने मिलकर दिखाया है कि डेमोक्रेसी सिर्फ एक कानून नहीं है,सिर्फ एक व्यवस्था नहीं है, हमने दिखाया है कि डेमोक्रेसी हमारे DNA में है, हमारे विजन में है, हमारे आचार-व्यवहार में है।

साथियों,

हमारी ह्यूमन सेंट्रिक अप्रोच,हमें सिखाती है कि हर देश,हर देश के नागरिक उतने ही अहम हैं, इसलिए, जब विश्व को एकजुट करने की बात आई, तब भारत ने अपनी G-20 प्रेसीडेंसी के दौरान One Earth, One Family, One Future का मंत्र दिया। जब कोरोना का संकट आया, पूरी मानवता के सामने चुनौती आई, तब भारत ने One Earth, One Health का संदेश दिया। जब क्लाइमेट से जुड़े challenges में हर देश के प्रयासों को जोड़ना था, तब भारत ने वन वर्ल्ड, वन सन, वन ग्रिड का विजन रखा, जब दुनिया को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हुए, तब भारत ने CDRI यानि कोएलिशन फॉर डिज़ास्टर रज़ीलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर का initiative लिया। जब दुनिया में pro-planet people का एक बड़ा नेटवर्क तैयार करना था, तब भारत ने मिशन LiFE जैसा एक global movement शुरु किया,

साथियों,

"Democracy First- Humanity First” की इसी भावना पर चलते हुए, आज भारत विश्वबंधु के रूप में विश्व के प्रति अपना कर्तव्य निभा रहा है। दुनिया के किसी भी देश में कोई भी संकट हो, हमारा ईमानदार प्रयास होता है कि हम फर्स्ट रिस्पॉन्डर बनकर वहां पहुंचे। आपने कोरोना का वो दौर देखा है, जब हर देश अपने-अपने बचाव में ही जुटा था। तब भारत ने दुनिया के डेढ़ सौ से अधिक देशों के साथ दवाएं और वैक्सीन्स शेयर कीं। मुझे संतोष है कि भारत, उस मुश्किल दौर में गयाना की जनता को भी मदद पहुंचा सका। दुनिया में जहां-जहां युद्ध की स्थिति आई,भारत राहत और बचाव के लिए आगे आया। श्रीलंका हो, मालदीव हो, जिन भी देशों में संकट आया, भारत ने आगे बढ़कर बिना स्वार्थ के मदद की, नेपाल से लेकर तुर्की और सीरिया तक, जहां-जहां भूकंप आए, भारत सबसे पहले पहुंचा है। यही तो हमारे संस्कार हैं, हम कभी भी स्वार्थ के साथ आगे नहीं बढ़े, हम कभी भी विस्तारवाद की भावना से आगे नहीं बढ़े। हम Resources पर कब्जे की, Resources को हड़पने की भावना से हमेशा दूर रहे हैं। मैं मानता हूं,स्पेस हो,Sea हो, ये यूनीवर्सल कन्फ्लिक्ट के नहीं बल्कि यूनिवर्सल को-ऑपरेशन के विषय होने चाहिए। दुनिया के लिए भी ये समय,Conflict का नहीं है, ये समय, Conflict पैदा करने वाली Conditions को पहचानने और उनको दूर करने का है। आज टेरेरिज्म, ड्रग्स, सायबर क्राइम, ऐसी कितनी ही चुनौतियां हैं, जिनसे मुकाबला करके ही हम अपनी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य संवार पाएंगे। और ये तभी संभव है, जब हम Democracy First- Humanity First को सेंटर स्टेज देंगे।

साथियों,

भारत ने हमेशा principles के आधार पर, trust और transparency के आधार पर ही अपनी बात की है। एक भी देश, एक भी रीजन पीछे रह गया, तो हमारे global goals कभी हासिल नहीं हो पाएंगे। तभी भारत कहता है – Every Nation Matters ! इसलिए भारत, आयलैंड नेशन्स को Small Island Nations नहीं बल्कि Large ओशिन कंट्रीज़ मानता है। इसी भाव के तहत हमने इंडियन ओशन से जुड़े आयलैंड देशों के लिए सागर Platform बनाया। हमने पैसिफिक ओशन के देशों को जोड़ने के लिए भी विशेष फोरम बनाया है। इसी नेक नीयत से भारत ने जी-20 की प्रेसिडेंसी के दौरान अफ्रीकन यूनियन को जी-20 में शामिल कराकर अपना कर्तव्य निभाया।

साथियों,

आज भारत, हर तरह से वैश्विक विकास के पक्ष में खड़ा है,शांति के पक्ष में खड़ा है, इसी भावना के साथ आज भारत, ग्लोबल साउथ की भी आवाज बना है। भारत का मत है कि ग्लोबल साउथ ने अतीत में बहुत कुछ भुगता है। हमने अतीत में अपने स्वभाव औऱ संस्कारों के मुताबिक प्रकृति को सुरक्षित रखते हुए प्रगति की। लेकिन कई देशों ने Environment को नुकसान पहुंचाते हुए अपना विकास किया। आज क्लाइमेट चेंज की सबसे बड़ी कीमत, ग्लोबल साउथ के देशों को चुकानी पड़ रही है। इस असंतुलन से दुनिया को निकालना बहुत आवश्यक है।

साथियों,

भारत हो, गयाना हो, हमारी भी विकास की आकांक्षाएं हैं, हमारे सामने अपने लोगों के लिए बेहतर जीवन देने के सपने हैं। इसके लिए ग्लोबल साउथ की एकजुट आवाज़ बहुत ज़रूरी है। ये समय ग्लोबल साउथ के देशों की Awakening का समय है। ये समय हमें एक Opportunity दे रहा है कि हम एक साथ मिलकर एक नया ग्लोबल ऑर्डर बनाएं। और मैं इसमें गयाना की,आप सभी जनप्रतिनिधियों की भी बड़ी भूमिका देख रहा हूं।

साथियों,

यहां अनेक women members मौजूद हैं। दुनिया के फ्यूचर को, फ्यूचर ग्रोथ को, प्रभावित करने वाला एक बहुत बड़ा फैक्टर दुनिया की आधी आबादी है। बीती सदियों में महिलाओं को Global growth में कंट्रीब्यूट करने का पूरा मौका नहीं मिल पाया। इसके कई कारण रहे हैं। ये किसी एक देश की नहीं,सिर्फ ग्लोबल साउथ की नहीं,बल्कि ये पूरी दुनिया की कहानी है।
लेकिन 21st सेंचुरी में, global prosperity सुनिश्चित करने में महिलाओं की बहुत बड़ी भूमिका होने वाली है। इसलिए, अपनी G-20 प्रेसीडेंसी के दौरान, भारत ने Women Led Development को एक बड़ा एजेंडा बनाया था।

साथियों,

भारत में हमने हर सेक्टर में, हर स्तर पर, लीडरशिप की भूमिका देने का एक बड़ा अभियान चलाया है। भारत में हर सेक्टर में आज महिलाएं आगे आ रही हैं। पूरी दुनिया में जितने पायलट्स हैं, उनमें से सिर्फ 5 परसेंट महिलाएं हैं। जबकि भारत में जितने पायलट्स हैं, उनमें से 15 परसेंट महिलाएं हैं। भारत में बड़ी संख्या में फाइटर पायलट्स महिलाएं हैं। दुनिया के विकसित देशों में भी साइंस, टेक्नॉलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथ्स यानि STEM graduates में 30-35 परसेंट ही women हैं। भारत में ये संख्या फोर्टी परसेंट से भी ऊपर पहुंच चुकी है। आज भारत के बड़े-बड़े स्पेस मिशन की कमान महिला वैज्ञानिक संभाल रही हैं। आपको ये जानकर भी खुशी होगी कि भारत ने अपनी पार्लियामेंट में महिलाओं को रिजर्वेशन देने का भी कानून पास किया है। आज भारत में डेमोक्रेटिक गवर्नेंस के अलग-अलग लेवल्स पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व है। हमारे यहां लोकल लेवल पर पंचायती राज है, लोकल बॉड़ीज़ हैं। हमारे पंचायती राज सिस्टम में 14 लाख से ज्यादा यानि One point four five मिलियन Elected Representatives, महिलाएं हैं। आप कल्पना कर सकते हैं, गयाना की कुल आबादी से भी करीब-करीब दोगुनी आबादी में हमारे यहां महिलाएं लोकल गवर्नेंट को री-प्रजेंट कर रही हैं।

साथियों,

गयाना Latin America के विशाल महाद्वीप का Gateway है। आप भारत और इस विशाल महाद्वीप के बीच अवसरों और संभावनाओं का एक ब्रिज बन सकते हैं। हम एक साथ मिलकर, भारत और Caricom की Partnership को और बेहतर बना सकते हैं। कल ही गयाना में India-Caricom Summit का आयोजन हुआ है। हमने अपनी साझेदारी के हर पहलू को और मजबूत करने का फैसला लिया है।

साथियों,

गयाना के विकास के लिए भी भारत हर संभव सहयोग दे रहा है। यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश हो, यहां की कैपेसिटी बिल्डिंग में निवेश हो भारत और गयाना मिलकर काम कर रहे हैं। भारत द्वारा दी गई ferry हो, एयरक्राफ्ट हों, ये आज गयाना के बहुत काम आ रहे हैं। रीन्युएबल एनर्जी के सेक्टर में, सोलर पावर के क्षेत्र में भी भारत बड़ी मदद कर रहा है। आपने t-20 क्रिकेट वर्ल्ड कप का शानदार आयोजन किया है। भारत को खुशी है कि स्टेडियम के निर्माण में हम भी सहयोग दे पाए।

साथियों,

डवलपमेंट से जुड़ी हमारी ये पार्टनरशिप अब नए दौर में प्रवेश कर रही है। भारत की Energy डिमांड तेज़ी से बढ़ रही हैं, और भारत अपने Sources को Diversify भी कर रहा है। इसमें गयाना को हम एक महत्वपूर्ण Energy Source के रूप में देख रहे हैं। हमारे Businesses, गयाना में और अधिक Invest करें, इसके लिए भी हम निरंतर प्रयास कर रहे हैं।

साथियों,

आप सभी ये भी जानते हैं, भारत के पास एक बहुत बड़ी Youth Capital है। भारत में Quality Education और Skill Development Ecosystem है। भारत को, गयाना के ज्यादा से ज्यादा Students को Host करने में खुशी होगी। मैं आज गयाना की संसद के माध्यम से,गयाना के युवाओं को, भारतीय इनोवेटर्स और वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम करने के लिए भी आमंत्रित करता हूँ। Collaborate Globally And Act Locally, हम अपने युवाओं को इसके लिए Inspire कर सकते हैं। हम Creative Collaboration के जरिए Global Challenges के Solutions ढूंढ सकते हैं।

साथियों,

गयाना के महान सपूत श्री छेदी जगन ने कहा था, हमें अतीत से सबक लेते हुए अपना वर्तमान सुधारना होगा और भविष्य की मजबूत नींव तैयार करनी होगी। हम दोनों देशों का साझा अतीत, हमारे सबक,हमारा वर्तमान, हमें जरूर उज्जवल भविष्य की तरफ ले जाएंगे। इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं, मैं आप सभी को भारत आने के लिए भी निमंत्रित करूंगा, मुझे गयाना के ज्यादा से ज्यादा जनप्रतिनिधियों का भारत में स्वागत करते हुए खुशी होगी। मैं एक बार फिर गयाना की संसद का, आप सभी जनप्रतिनिधियों का, बहुत-बहुत आभार, बहुत बहुत धन्यवाद।