प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय कृषि बाजार के लिए ई-ट्रेडिंग प्लेकटफॉर्म ‘ई-नाम’ का शुभारंभ किया
‘ई-नाम’ से कृषि क्षेत्र में पारदर्शिता आएगी, यह किसानों के लिए अत्यंत फ़ायदेमंद
‘ई-नाम’ कृषि क्षेत्र के इतिहास में निर्णायक एवं महत्वपूर्ण पहल: प्रधानमंत्री मोदी
कृषि क्षेत्र को समग्र रूप में देखा जाना चाहिए और तभी हम किसानों के लिए अधिकतम लाभ सुनिश्चित कर सकते हैं: प्रधानमंत्री

मैं देश के किसानों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं, बधाई देता हूं कि इस प्रयास से किसानों की अर्थव्यवस्था में कितना बड़ा परिवर्तन आने वाला है। आज डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर की 125वीं जयंती है और मैंने करीब 1 महीने पहले सार्वजनिक रूप से कहा था कि ई NAM का प्रारंभ हम डॉ. बाबा साहेब की जयंती पर करेंगे और मुझे खुशी है कि आज समय सीमा में काम प्रारंभ हो रहा है। राधामोहन सिंह जी कह रहे थे इसको हम औऱ जल्दी भी कर सकते हैं लेकिन ये काम राज्यों के सहयोग के साथ जुड़ा हुआ है। अभी भी देश के कुछ राज्य ऐसे हैं कि जहां मंडी का कोई क़ानून ही नहीं है।

अब किसानों के लिए सुनते तो बहुत हैं लेकिन ऐसे भी राज्य हैं आज भी इस देश में जहां किसानों के लिए मंडी के लिए कोई नीति निर्धारण कानून नहीं है। उन राज्यों में किसानों का exploitation कितना हो सकता है, इसका आप अंदाज कर सकते हैं। मैं नाम नहीं देना चाहता हूं राज्यों का क्योंकि आजकल ऐसे विषय 24 घंटे विवादों में फंस जाते हैं तो मैं उससे बचना चाहता हूं लेकिन ऐसे सभी राज्यों से मेरा आग्रह होगा कि वे अपने यहां किसान मंडी कानून बनाएं। उसी प्रकार से जिन राज्यों में कानून है। उसमें भी अब नई Technology आई है, काफी व्यवस्थाएं पलटी हैं तो उसके अनुरूप कानून में सुधार करना आवश्यक है। मैं आशा करता हूं कि वे राज्य भी अपने-अपने यहां जो existing कानून हैं उसमें भारत सरकार ने जो सुझाव दिए हैं उसके अनुसार अगर amendment कर देंगे तो उन राज्यों में भी ई NAM का लाभ किसान को प्राप्त होगा और इसलिए मैं इन सभी राज्यों से आग्रह करता हूं कि इसको प्राथमिकता दें।

वैसे मुझे लगता है कि शायद आग्रह मुझे अब नहीं करना पड़ेगा क्योंकि जैसे ही ये 21 मंडियों की खबर आना शुरू हो जाएगा तो नीचे से ही pressure इतना पैदा होगा कि हर राज्य को लगेगा कि भई मेरा किसान तो रह गया चलो मैं भी इसमें आ जाऊं ताकि मेरे राज्य के किसान को लाभ मिले। हमारे देश में वर्षों से किसी न किसी कारण से कुछ नियम न रहें। एक राज्य में जो कृषि उत्पादन होता था वो दूसरे राज्य में ले नहीं जा सकते थे, ये भी बंधन रहते थे। कभी कानूनी तौर पर रहते थे, कभी गैर कानूनी तौर पर रहते थे क्योंकि लगता था कि भई अगर ये चला गया तो राज्य की economy को क्या होगा, राज्य की आवश्यकताओं का क्या होगा तो ये चलता रहता था और उसके कारण मैं नहीं मानता हूं, मैं इसको कोई बहुत बड़ा गुनाह के रूप में नहीं देखता हूं।

वहां की सरकारों को practical problem रहता था कि भई ये चीज मेरे यहां उत्पादन होती है। मेरे यहां से बाहर चली गई तो मेरे यहां तो लोगों को कुछ मिलेगा ही नहीं तो ये उसकी चिंता बड़ी स्वाभाविक थी लेकिन उसका परिणाम ये होता था कि किसान को protection नहीं मिलता था। किसान के लिए मजबूरी हो जाती थी कि अपने 12-15-20-25 किलोमीटर के area में जो market है, वो जो दाम तय करता था। उसको उसी दाम पर बेचना पड़ता था और उसी से अपनी रोजी-रोटी कमानी पड़ती थी। किसान की समस्या ये भी रहती थी कि उसको कोई choice नहीं रहता था। एक बार घर से बैलगाड़ी में माल लेकर गया मंडी में और मंडी वालों को लगा कि आज दाम गिरा दो। अब वो बेचारा सोचता है कि भई अब मैं वापस इसको कहां ले जाऊंगा, 25 किलोमीटर कहां उठाकर ले जाऊंगा तो वो मजबूरन उनके हाथ-पैर जोड़कर कहता था चलिए जी ले लीजिए, 5 रुपए कम दे दीजिए, ले लीजिए मैं कहाँ ले जाऊँगा । ये हाल किसान का हमारे यहां market में रहा।

ये योजना ऐसी है कि जिस योजना से किसान का तो भरपूर फायदा है लेकिन ये ऐसी योजना नहीं है जो सिर्फ किसान का फायदा करती है। ऐसी व्यवस्था है, जिस व्यवस्था की तरफ जो थोक व्यापारी है, उनकी भी सुविधा बढ़ने वाली है। इतना ही नहीं ये ऐसी योजना है, जिससे उपभोक्ता को भी उतना ही फायदा होने वाला है। यानि ऐसी market व्यवस्था बहुत rare होती है कि जिसमें उपभोक्ता को भी फायदा हो, consumer को भी फायदा हो, बिचौलिए जो बाजार व्यापार लेकर के बैठे हैं, माल लेते हैं और बेचते हैं, उनको भी फायदा हो और किसान को भी फायदा हो। होता क्या है आज दुर्भाग्य से हमारे देश में कृषि उत्पादन का real time data अभी भी नहीं होता है। कभी हमें लगे कि फलां राज्य में गेंहू की जरूरत है तो सरकार सोचती है अच्छा भई क्या करेंगे, इनको गेंहू की जरूरत है लेकिन उसे पता नहीं होता कि दूसरे राज्य में गेहूं surplus पड़े हैं।

कभी गेंहू surplus हैं और वहां पहुंचाने हैं लेकिन उस समय ट्रेन की व्यवस्था नहीं मिलती माल ले जाने के लिए और वहां consumer परेशान रहता है, यहां किसान परेशान होता है, माल बेचना है। ये क्यों... वो जो structure ऐसा बना हुआ था कि जिस structure में वो बंध गया था, उसके बाहर नहीं जा पाता था। आज ई NAM के कारण। अभी तो प्रारंभ में 25 कृषि उत्पादन चीजें इस ई NAM पर बिकेंगी, सौदा होगा और 21 मंडी में होगी लेकिन बहुत ही निकट भविष्य में शायद 250 तक तो पहुंच जाएगी क्योंकि कुछ राज्यों ने कानून में जो सुधार करना चाहिए, वो कर दिया है। Technology के लिए ये कोई बड़ा मुश्किल काम नहीं है। वहां एक लैब बनेगी, उस लैब के कारण quality of agro product ये तय होगा। अब व्यापारी हाथ में पकड़कर के तय करेगा, नहीं यार तेरा माल तो ठीक नहीं है और किसान कहेगा नहीं-नहीं साहब बहुत ठीक है पहले जैसा ही है और आखिरकार उस बेचारे को लगता था कि चलो बेच दो। आज laboratory कहेगी कि तुम्हारा जो product है A grade का है, B grade का है, C grade का है औऱ वो नेशनली certified मान्यता होगी उसको।

अगर मान लीजिए बंगाल से चावल खरीदना है और केरल को चावल की जरूरत है तो बंगाल का किसान online जाएगा और देखेगा कि केरल की कौन सी मंडी है जहां पर चावल इस quality का चाहिए, इतना दाम मिलने की संभावना है तो वो online ही कहेगा कि भई मेरे पास इतना माल है और मेरे पास ये certificate और मेरे ये माल ऐसा है, बताइए आपको चाहिए और अगर केरल के व्यापारी को लगेगा कि भई 6 लोगों में ये ठीक है तो उससे सौदा करेगा और अपना माल मंगवा देगा। कुछ व्यापारी क्या करेंगे बंगाल से माल खरीदेंगे, खरीदने वाला केरल से होगा लेकिन उसको बंगाल में market मिल जाए तो वहीं पर उसको बेच देगा। मेरा कहना का तात्पर्य ये है कि इतनी transparency होगी इस व्यवस्था के कारण कि जिसके कारण हमारा किसान ये तय कर पाएगा और माल, अपना product बैलगाड़ी में चढ़ाने से पहले या ट्रैक्टर में चढ़ाने से पहले तय कर पाएगा कि मेरे product का क्या होगा।

पहले तो क्या होता था सारी मेहनत करके 25 किलोमीटर दूर मंडी में गए उसके बाद तय होता था भविष्य क्या है। आज अपने घर में, अपने मोबइल फोन पर वो तय कर सकता है कि मैं कहां जाऊं, थोड़ा मैं मानता हूं हमारे देश का सामान्य से सामान्य व्यक्ति शायद वो साक्षर न हो लेकिन बुद्धिमान होता है। जैसे ही उसको पता चलेगा, वो monitor करेगा कि मंडी का trend क्या है, तीन दिन देखेगा बराबर और फिर trend के अनुसार तय करेगा कि हां अब लगता है कि market पक गया है तो तुरंत अंदर enter कर जाएगा और अपने माल बेचेगा। आज किसान निर्णायक होगा, किसान निर्णायक होगा। जो मंडी में बैठे हुए व्यापारी हैं, उन व्यापारियों के लिए भी ये सुविधाजनक होगा क्योंकि उसको लगता है कि भई जो जहां से पहले मैं खरीदता था तो वहां तो इस बार ये चावल पैदा ही नहीं हुई है तो सालभर क्या करूंगा, मैं तो चावल की व्यापारी हूं लेकिन अब उसको बैठे रहना नहीं पड़ेगा, वो हिंदुस्तान के किसी भी कोने से अपनी आवश्यकता के अनुसार चावल का ऑर्डर देकर के दूसरे व्यापारी से वो ले सकता है, दूसरे किसान से भी वो ले सकता है, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है।

Consumer भी देख सकता है कि किस मंडी में किस रूप से बाजार चल रहा है और इसलिए अपने यहां कोई locally ही exploit करने जाता है तो कहता है, झूठ बोल रहे हो मैंने देखा है ई NAM पर तुमने तो माल लिया है थोडा बहुत तो ले सकतो हो लेकिन इतना क्यों ले रहे हो। यानि उत्पादन का balance use इसके लिए भी ई NAM portal एक बहुत बड़ी सुविधा बनने वाला है और मैं मानता हूं किसान का जैसे स्वाभाव है। एक बार उसको विश्वास पड़ गया तो वो उस भरोसे पर आगे बढ़ने चालू कर जाएगा। बहुत तेज गति से ई NAM पर लोग आएंगे, transparency आएगी। इस market में आने के कारण भारत सरकार बड़ी आसानी से, राज्य सरकारें भी monitor कर सकती हैं कि कहां पर क्या उत्पादन है, कितना ज्यादा मात्रा में है। इससे ये भी पता चलेगा transportation system कैसी होनी चाहिए, godown का उपयोग कैसे होना चाहिए, इस godown में माल shift करना है या उस godown में, यानि हर चीज एक portal के माध्यम से हम वैज्ञानिक तरीके से कर सकते हैं और इसलिए मैं मानता हूं कि कृषि जगत का एक बहुत बड़ा आर्थिक दृष्टि से आज की घटना एक turning point है।

एक मोड़ पर ले जा रही है हमें, जो पहले से कभी हम इंतजार कर रहे थे या हमारे सामने संभावना नजर नहीं आ रही थी। एक सप्ताह के भीतर-भीतर ये भी पता चलेगा कि जब इतनी बड़ी मात्रा में बाजार खुल जाता है तो competition बहुत बड़ा जाती है। खरीदने वाला ज्यादा दाम देकर के अच्छी quality खऱीदने की कोशिश करेगा। बेचने वाला कम पैसे में किस जगह से माल मिलता है, वो खोजेगा तो दूर-सुदूर भी जिसको market नहीं मिलता था, उसके लिए market सामने से invitation भेजेगा कि भई देखो तुम वहां बैठे हो सिलीगुड़ी में लेकिन तुम्हारी चीज कोई लेता नहीं, मैं यहां बैठा हूं अहमदाबाद में, मैं लेने के लिए तैयार हूं। ये इतनी बड़ी संभावना, हम कल्पना कर सकते हैं कि हमारे किसान को पहली बार ये तय करने का अवसर मिला है कि मेरे माल कैसे बिकेगा, कहां बिकेगा, कब बिकेगा, किस दाम से बिकेगा, ये फैसला अब हिंदुस्तान में किसान खुद करेगा।

अब वो किसी से आश्रित नहीं रहेगा, वो मोहताज नहीं रहेगा और जब ये पता औरों को चलेगा इतनी बड़ी competition शुरू हो गई है तो स्वाभाविक है कि बाकी राज्य जो अभी पीछे हैं, मुझे विश्वास है कि नीचे से ऐसा pressure पैदा होगा कि अब वो जल्दी कानून में भी सुधार करेंगे और ई NAM portal पर सारी मंडियां आएंगी और ये मेरा पूरा विश्वास है। मेरा आग्रह है और मैं मानता हूं कि कृषि को टुकड़ों में नहीं देखना चाहिए और इसलिए हमने हमारे मंत्रालय का नाम भी, इसके साथ किसान कल्याण जोड़ा है। हम उसको जब तक holistic approach नहीं होगा, हम किसानों की स्थिति में सुधार नहीं ला सकते हैं और holistic approach लेना है तो मान लीजिए जैसे आज solar revolution हो रहा है। किसान को तो लगता होगा कि ये तो कोई industry का काम चल रहा है, कोई उद्योगकारों का काम चल रहा है। कोई तो उसको समझाए ये solar revolution भी तेरे लिए है भाई।

अगर उसको पानी के लिए solar pump मिल गया, वो अपने ही खेत में solar panel लगा दिया तो उसको जो आज डीजल का खर्चा करना पड़ता है, नहीं करना पड़ेगा। आज solar revolution हो रहा है। जो बड़ा किसान हैं वो उच्च technology का उपयोग करता हैं। cutter लाते हैं, बाकी चीजें लाते हैं, वो बिजली से चलती हैं। जिस दिन उसको पता चलेगा, अब ये सारे जो साधन हैं, वो भी solar से चलने वाले आ गए हैं, उसका खर्चा कम हो जाएगा और साधन उसका सूर्य प्रकाश से चलने लग जाएगा। यानि जो technology का development हो रहा है। उसके साथ हमारे किसान की उपयोगी चीजों को कैसे जोड़ा जाए। अगर हमें ज्यादा उत्पादन करना है तो flood irrigation का जमाना चला गया है और अब ये विज्ञान ने सिद्ध कर दिया है कि flood irrigation से कोई अच्छी खेती होती नहीं लेकिन किसान का स्वभाव है कि जब-जब खेत, जब तक खेत पानी से लबालब भरा न हो, सारे पौधे डूबे हुए नजर न आए तो उसको लगता है, पौधा भूखा मर रहा है, वो खुद बेचारा परेशान हो जाता है क्योंकि उसकी भावना जुड़ी हुई है, वो अपने आप को रात को सो नहीं सकता है कि यार जितना पानी चाहिए था, उतना नहीं है, वो परेशान हो जाता है लेकिन अगर उसको विज्ञान का पता हो per drop, more crop.

हमारे उत्पादनों को पानी में डुबोए रखने की जरूरत नहीं है। हम सालों से मानकर के आए कि गन्ने की खेती करनी हो तो भरपूर पानी चाहिए। अब धीरे-धीरे अनुभव आ गया कि sprinkler से गन्ने की खेती बहुत अच्छी हो सकती है और sprinkler से गन्ने की खेती करें तो सामान्य गन्ने में जो sugar contain होता है, उससे sprinkler या drip से किए हुए गन्ने में sugar contain ज्यादा होता है, उसमें से ज्यादा चीनी निकलती है तो किसान को दाम भी ज्यादा मिलता है और आपने देखा होगा flood irrigation से गन्ने का जो डंडा होता है उसकी size और sprinkler से हुआ उसकी size देखते ही पता चलता है कि कितना बड़ा फर्क आया है। अब किसान को समझना होगा और मैं मानता हूं कि ये बात उन तक पहुंचाई जा सकती है और इसलिए मेरा मिशन है per drop, more crop एक-एक बूंद पानी से हम समृद्धि पैदा कर सकते हैं, हम भविष्य पैदा कर सकते हैं।

कभी-कभी मैं किसानों के साथ बैठना का स्वभाव रखता था तो काफी बातें करता था, जब गुजरात में था। मैं उनको कहता था और मैं आज उसको दुबारा कहना चाहूंगा, मैं उनको कहता था, मान लीजिए आपका बच्चा बीमार है और 3 साल की आय़ु हो गई, 5 साल की आयु हो गई, 7 साल की आय़ु हो गई लेकिन न वजन बढ़ रहा है, न चेहरे पर मुस्कान आ रही है, ऐसे ही दुबला-पतला, ऐसे ही पड़ा रहता है। अब आप सोचिए कि आपके बच्चे का ये हाल है और आप सोचें कि एक बाल्टी भर दूध लेंगे, उसमें केसर, बादाम, पिस्ता सब डालेंगे और रोज बच्चे को इस दूध से नहलाएंगे, उसकी तबीयत पर कोई फर्क पड़ेगा क्या, पड़ेगा क्या, मेरे किसान भाई पड़ेगा क्या लेकिन एक चम्मच में थोड़ा-थोड़ा दूध लेकर के 100 ग्राम, 100 ग्राम उसको शाम तक पिला दो, फर्क पड़ेगा कि नहीं पड़ेगा। जो बच्चा का है, वो ही पौधे का है। जो स्वभाव बच्चे का है, वो ही स्वभाव पौधे का है।

पौधे को भी अगर पानी से नहला दोगे तो पौधा मजबूत होगा, ऐसा नहीं है। एक-एक चम्मच से एक-एक बूंद पानी पिलाओगे तो आप देखते ही देखते देखोगे कि पौधा कितना ताकतवर बन जाता है और इसलिए हमने... बातें छोटी होती हैं लेकिन उनकी ताकत बड़ी होती है। हमने देखा है कि हमारे किसान का सबसे बड़ा नुकसान किससे हो रहा है। वो जो देखता है उसमें विश्वास करता है, जो सुनता है उस पर किसान कभी विश्वास नहीं करता। एक प्रकार से अच्छी चीज भी है। वो जब तक खुद अपनी आंखों से नहीं देखता है, भरोसा नहीं करता है लेकिन उसके कारण उसका misguide ऐसा हो जाता है कि अगर वाले खेत में किसी किसान ने लाल डिब्बे वाली दवा डाली तो वो भी सोचता है कि लाल डिब्बे वाली होती है तो वो भी जाकर के लाल डिब्बे वाली ले आता है। अगर उसने देखा बगल वाला दो बोरी fertilizer डालता है तो वो भी दो बोरी डाल देता है और उसको तो ज्यादा वो रंग से ही जानता है लाल डिब्बे वाली दवा, काले डिब्बे वाली दवा, लंबे डिब्बे वाली दवा या छोटे डिब्बे वाली उसी से वो उसका कारोबार चलता है जी, उसना अपना ये विज्ञान develop किया है।

ये गलती क्यों होती है। उसे पता नहीं है कि वो जिस जमीन पर काम कर रहा है, उसकी प्रकृति कैसी है। ये धरा हमारी मां है, ये भूमि हमारी मां है, कहीं बीमार तो नहीं हो गई है, हमने ज्यादा तो इसका शोषण नहीं किया है, उसका भी कोई ख्याल रखा है कि नहीं रखा है, ज्यादा अनुभव आता है कि हम धरा के साथ क्या करते हैं, फसल के संदर्भ में धरा के साथ जो करना होता है, करते हैं। धरा की तबीयत, चिंतन करनी चाहिए, इस भूमि की चिंता करनी चाहिए, इस पर हमारा ध्यान नहीं होता है और अगर बीमार धरा हो, कितना ही अच्छा बीज बोएं, इच्छित परिणाम नहीं मिलता है और इसलिए हमारे कृषि जगत को बदलना है तो हमारी धरा की तबीयत और उसके लिए अब सरल उपाय है Soil health card, laboratory में धऱा की test करवानी चाहिए और उसमें जो guidelines दें, उस प्रकार का पालन करना चाहिए। वरना कुछ लोग होते हैं कि डॉक्टर के पास जाएं, तबीयत दिखाएं। डॉक्टर कहे डायबीटीज है लेकिन घर में आकर के बताते ही नहीं हैं कि डायबीटीज है क्योंकि मिठाई खाने का शौक होता है तो फिर वो laboratory काम नहीं आती है।

अगर laboratory ने कहा कि डायबीटीज है तो फिर मिठाई छोड़नी पड़ती है। उसी प्रकार से धरा को check करने के बाद पता चला कि ये बीमारियां हैं, उस फसल के लिए आपकी धरा ठीक नहीं है, वो fertilizer आपकी धरा के लिए ठीक नहीं है, वो दवाई आपकी धरा को बर्बाद कर देगी तो मेरा किसानों से प्रार्थना होगी कि उसमें जो सुझाव देते हैं, उन सुझाव को religiously follow करना चाहिए। देखिए विज्ञान की बड़ी ताकत होती है, विज्ञान की बड़ी ताकत होती है। इन चीजों को अगर हमने ढंग से कर लिया तो आप देखना... कभी-कभार मैंने देखा है, हमारे पंजाब, हरियाणा में, इधर पश्चिम उत्तर प्रदेश में वो पुरानी पद्धति फसल निकालने के बाद बाद में जो रह जाता है उसको मुझे हिंदी शब्द तो मालूम नहीं है, उसको जला देते हैं। अब हमें मालूम नहीं है ये मूल्यवान fertilizer है, उसके छोटे-छोटे टुकड़े करके उसी जमीन में दबा दीजिए, वो आपकी जमीन के लिए, वो खुराक बन जाएगा लेकिन जल्दबाजी होती है, दुबारा फसल के लिए काम करना है, कौन करेगा इसलिए डालते नहीं हैं।

मैं समझता हूं जिस चीज के लिए जो नियम हैं, प्रकृति ने बनाए हैं, उसका अगर हम थोड़ा सा पालन करें तो पर्यावरण का जो नुकसान हो रहा है और दिल्ली वाले चिल्लाते हैं कि धुँआ बहुत हो गया है, वो बंद भी हो जाएगा और मेरे किसान को ये फायदा  होगा। मुझे स्मरण है जो केले की खेती करते हैं। केला पकने के बाद, वो केले का जो पेड़ रह जाता है, उसको निकालने के लिए वो पैसे देते हैं लोगों को कि भाई उसको जरा आप साफ करके दे दो और पहले ये एक-एक एकड़ पर 15-20 हजार रुपए खेत खाली करने पर ये उनका खर्च होता था। बाद में उनके ध्यान में आय़ा कि ये तो most valuable है और आपको हैरानी होगी केला पकने के बाद वो जो खड़ा रह गया, बाकी बचा हुआ पुर्जा है, उसको आप कहीं गाड़ दें और वहां पर कोई पौधा लगा दें 90 दिन तक पानी की जरूरत नहीं पड़ती, उसी से पानी मिल जाता है, इतनी ताकत होती है उसमें। जब ये पता चला तो उन्होंने फिर से उसे फिर जमीन में गाड़ दिया और उनकी जमीन इतनी गीली होने लगी कि बीच में वो एक extra फसल करने लगे जो 60-70 दिन में पैदा होने वाली होगी, उस फसल का उपयोग करने लगे, उनकी income में पहले से डेढ़ गुना-ढ़ाई गुना तक फर्क होने लगा क्यों, उनको समझ आय़ा कि भई इसका उपयोग है।

हम अगर उन छोटे-छोटे प्रयाग हैं। हमारे किसान इसको समझ भी सकता है, उसको कैसे पहुंचाए, हम उसके उत्पादन की ओर बढ़ें। हमारे देश का एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य है किसी न किसी कारण से टोडर मल ने जमीनों को नापने का बहुत बड़ा काम किया था। उसके बाद उसके प्रति बड़ी उदासीनता रखी गई। सरकारों में नियम था कि 30 साल में एक बार जमीन नापने का काम regular होना चाहिए लेकिन शायद पिछले 100-150 साल में ये परंपरा dilute हो गई और उसके कारण exact पता नहीं है जमीन की स्थिति का। किसान conscious है कोई जमीन ले न जाए इसलिए वो क्या है बाड़ करता है। नाप का ठिकाना नहीं, कागज पर exact नाप नहीं है तो बाड़ लगाता है, वो बाड़ लगाने में एक मीटर जमीन इसकी खराब होती है, एक मीटर जमीन दूसरी वाली खराब होती है। हर खेत के border पर दो मीटर जमीन खराब होना यानि पूरे देश में देखें हम तो लाखों square meter जमीन इसी में बर्बाद होती होगी।

अगर हम उसका रास्ता निकालें। आज देश को टिम्बर import करना पड़ता है। अगर हम हमारे border पर बाड़ करने के बजाए टिम्बर के पेड़ लगा दें। बेटी पैदा हो, उस दिन अगर पेड़ लगाया तो शादी करने का पूरा खर्चा एक पेड़ दे देगा। वो पेड़, बेटी बड़ी होगी उसके साथ-साथ बड़ा होगा और जब वो टिम्बर बेचोगे। आज हिंदुस्तान फर्नीचर के लिए टिम्बर दुनिया से import करता है, मेरा किसान अपने border पर, बाड़ पर ये काम कर सकता है आराम से कमा सकता है। उसके कारण जो waste of land है, वो हमारा बचा जाएगा। solar हम खेती के साथ solar बिजली पैदा कर-करके बेच सकते हैं। मैंने ऐसे किसान देखें हैं जो अपनी cooperative society बना रहे हैं और पड़ोस के किसान मिलकर के कोने पर बिजली पैदा कर रहे हैं और राज्य सराकारों को बेच रहे हैं, ये सब संभव है। मैं हैरान हूं दुनिया भर में honey का बहुत बड़ा market है, बहुत बड़ा market है और honey एक ऐसी चीज है शहद, जो सालों तक घर में रहे, जितना पुराना हो तो ज्यादा पैसा मिलता है और किसान अगर अपने खेत में साथ-साथ शहद का भी काम करें तो जो मधुमक्खी है वो भी फसल को ताकत देती है, वो एक जगह से दूसरी जगह पर बैठती हैं तो फसल को नई ताकत देती हैं। simple चीजें हैं, जब मैं कहता हूं double income संभव है, मेरे दिमाग में बहुत साफ है क्या-क्या प्रयोग करने से income double हो सकती है।

चाहे Fisheries का काम हो, milk production का काम हो, पशु का रखरखाव हो, इन सारी चीजों में से income बढ़ सकती है और हम आधुनिक वैज्ञानिक तरीक से खेती करना शुरू करें तो हम देश की economy को भी बहुत बड़ा बल दे सकते हैं। मेरे देश के किसानों ने एक बार तय किया कि अब देश का पेट भरने के लिए बाहर से अन्न नहीं आएगा, हिंदुस्तान के किसानों ने कर दिया है। आज Pulses हमें बाहर से लाना पड़ता है दलहन, क्यों न हमारे किसानों को संदेश जाए कि जहां पर पानी बहुत कम है, वहां और प्रयोग मत करिए, आप दलहन पर चले जाइए ताकि आपकी भी गारंटी होगी और भारत सरकार उसमें आपकी मदद करेगी और भारत को अब दलहन बाहर से नहीं लाना चाहिए दाल क्यों बाहर से लानी पड़े, मूंग क्यों बाहर से लानी पड़े, चना क्यों बाहर से लाना पड़े, उड़द क्यों बाहर से लाना पड़े। हम ये अपने संकल्प कर लें तो मैं नहीं मानता हूं इस देश को... और अभी गया था सऊदी अरबिया, उसके पहले मैं गया था यूएई, वहां के लोगों ने जो बात कही, मैं समझता हूं कि मेरे देश के किसान इसको भलीभांति समझें, वो कह रहे हैं कि हमारे पास तो बारिश ही नहीं है, हमारे पास खेती योग्य जमीन नहीं है, हमारी जनसंख्या बढ़ रही है, पूरे गल्फ की countries में, हम भविष्य में हमारा पेट भरने के लिए अनाज पर भारत पर ही depend करेंगे, हमें वहीं से import करना पड़ेगा।

आज भी हमारा सबसे ज्याजा अच्छा चावल उन्हीं देशों में जाता है। इसका मतलब ये हुआ अगर हम quality product की तरफ जाएंगे तो गल्फ का एक बहुत बड़ा market, agriculture product के लिए हमारा इंतजार करके बैठा है। वे ware house के लिए cold storage के लिए तैयार है, वो गारंटी के साथ माल खऱीदने के लिए तैयार है यानि भारत की कृषि भी एक global requirement के संदर्भ में उसे हम एक नया मोड़ दे सकते हैं, हम उसमें बदलाव ला सकते हैं और उस बदलाव लाने की दिशा में हमें प्रयास करना चाहिए। अभी इस बजट में एक बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय किया, उस निर्णय की चर्चा बहुत कम आई है क्योंकि कुछ चीजें ऐसी हैं, जिसे लोगों को समझते-समझते दो साल चले जाते हैं इसलिए वो बात शायद पब्लिक में आई ही नहीं।

भारत सरकार ने एक बहुत महत्वपूर्ण निर्णय़ किया कि Agro processing में हम 100 percent foreign direct investment को हम स्वागत करते हैं। अब कुछ लोगों का दिमाग शायद ऐसा है कि FDI का नाम आते ही उनको लगता है ये कुछ उद्योग वाला हो गया।

ये food processing की सारी process किसान को बहुत बड़ी ताकत देती है। अगर वो कोई ऐसी पैदावार करता है और उसका  technology solution से valuable addition होता है तो income बहुत बढ़ जाती है और उसके लिए पूंजी निवेश के लिए दुनिया से पैसे आते हैं तो किसान की ताकत बढ़ने वाली है। आप कच्चे आम बेचो तो कम पैसा आता है, पके हुए बेचो तो थोड़ा ज्यादा आता है। कच्चे आम बेचो लेकिन आचार बनाकर बेचो और पैसा आता है। आचार भी बढ़िया सी बोतल में pack करके बेचो तो और ज्यादा पैसा आता है और बोतल की advertisement कोई नट या नटी करती हो तो औऱ ज्यादा पैसा मिल जाता है। value addition कैसे होता है, food processing का value addition कैसे होता है और इसलिए अभी हमने कोका कोला कंपनी के साथ महाराष्ट्र government का एक agreement करवाया। मैंने इन सारी कंपनियों कहा है कि आप जो पेप्सी, कोका कोला ये सब पानी बेचते हो colorful होता है, tasty होता है लोगों को आदत हो गई है अरबों-खरबों का बाजार है। मैंने कहा मेरे देश के किसानों के लिए आप एक नियम बनाइए कि कम से कम 5 percent, कम से कम 5 percent natural fruit juice आप इस aerated water में mix करोगे।

आप देखिए एक तो जो पीता है उसको फायदा होगा, कम से कम 5 percent तो माल अच्छा जाएगा शरीर में लेकिन उसके कारण किसान जो फल पैदा करता है, उसको तुरंत market मिल जाएगा,  वरना संतरा कोई पैदा करेगा, एकाध दिन में तो संतरा खराब हो जाएगा लेकिन संतरे का जूस अगर उसमें मिलना शुरू हुआ तो संतरे को market मिलना शुरू हो जाएगा, Apple को market मिल जाएगा, केले को market मिल जाएगा और इसलिए वो चीजें जो हमारे किसान को ताकत दें, ऐसे कई initiative लिए हैं और उस initiative के परिणाम मैं कहता हूं कि आने वाले दिनों में किसानों का भविष्य उज्जवल बनाया जा सकता है, सोची-समझी व्यवस्था के तहत बनाया जाता है और अब ये मंडी के माध्यम से, ई NAM के माध्यम से जो प्रयास किया है इस ई NAM के माध्यम से, मैं विश्वास से कहता हूं कि मेरा किसान अब तय करेगा कि उसका माल कहां बिकेगा, कब बिकेगा, कितने दाम से बिकेगा इसका फैसला अब मेरा किसान करेगा और consumer को कभी कोई बोझ नहीं होगा, ये मेरा भरोसा है। consumer को कभी कोई मुसीबत नहीं होगी, ये मेरा पूरा भरोसा है। मैं देश के किसानों को आज 14 अप्रैल बाबा साहेब अंबेडकर की जन्म जयंती पर जिनका empowerment of poor people वाला हमेशा रहा था, मेरा किसान empower हो इसलिए एक महत्वपूर्ण project आज प्रारंभ हो रहा है, मैं कृषि मंत्रालय को मंत्री के विभाग के सभी साथियों को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं, मेरे देश के किसानों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। असम का आज नया वर्ष है, असम का नववर्ष है, उस बिहू के मौके पर भी मैं शुभकामनाएं देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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जो लोग महाराष्ट्र से परिचित होंगे, उन्हें पता होगा, तो वहां पर जब जय भवानी कहते हैं तो जय शिवाजी का बुलंद नारा लगता है।

जय भवानी...जय भवानी...जय भवानी...जय भवानी...

आज हम यहां पर एक और ऐतिहासिक महाविजय का उत्सव मनाने के लिए इकट्ठा हुए हैं। आज महाराष्ट्र में विकासवाद की जीत हुई है। महाराष्ट्र में सुशासन की जीत हुई है। महाराष्ट्र में सच्चे सामाजिक न्याय की विजय हुई है। और साथियों, आज महाराष्ट्र में झूठ, छल, फरेब बुरी तरह हारा है, विभाजनकारी ताकतें हारी हैं। आज नेगेटिव पॉलिटिक्स की हार हुई है। आज परिवारवाद की हार हुई है। आज महाराष्ट्र ने विकसित भारत के संकल्प को और मज़बूत किया है। मैं देशभर के भाजपा के, NDA के सभी कार्यकर्ताओं को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, उन सबका अभिनंदन करता हूं। मैं श्री एकनाथ शिंदे जी, मेरे परम मित्र देवेंद्र फडणवीस जी, भाई अजित पवार जी, उन सबकी की भी भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूं।

साथियों,

आज देश के अनेक राज्यों में उपचुनाव के भी नतीजे आए हैं। नड्डा जी ने विस्तार से बताया है, इसलिए मैं विस्तार में नहीं जा रहा हूं। लोकसभा की भी हमारी एक सीट और बढ़ गई है। यूपी, उत्तराखंड और राजस्थान ने भाजपा को जमकर समर्थन दिया है। असम के लोगों ने भाजपा पर फिर एक बार भरोसा जताया है। मध्य प्रदेश में भी हमें सफलता मिली है। बिहार में भी एनडीए का समर्थन बढ़ा है। ये दिखाता है कि देश अब सिर्फ और सिर्फ विकास चाहता है। मैं महाराष्ट्र के मतदाताओं का, हमारे युवाओं का, विशेषकर माताओं-बहनों का, किसान भाई-बहनों का, देश की जनता का आदरपूर्वक नमन करता हूं।

साथियों,

मैं झारखंड की जनता को भी नमन करता हूं। झारखंड के तेज विकास के लिए हम अब और ज्यादा मेहनत से काम करेंगे। और इसमें भाजपा का एक-एक कार्यकर्ता अपना हर प्रयास करेगा।

साथियों,

छत्रपति शिवाजी महाराजांच्या // महाराष्ट्राने // आज दाखवून दिले// तुष्टीकरणाचा सामना // कसा करायच। छत्रपति शिवाजी महाराज, शाहुजी महाराज, महात्मा फुले-सावित्रीबाई फुले, बाबासाहेब आंबेडकर, वीर सावरकर, बाला साहेब ठाकरे, ऐसे महान व्यक्तित्वों की धरती ने इस बार पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। और साथियों, बीते 50 साल में किसी भी पार्टी या किसी प्री-पोल अलायंस के लिए ये सबसे बड़ी जीत है। और एक महत्वपूर्ण बात मैं बताता हूं। ये लगातार तीसरी बार है, जब भाजपा के नेतृत्व में किसी गठबंधन को लगातार महाराष्ट्र ने आशीर्वाद दिए हैं, विजयी बनाया है। और ये लगातार तीसरी बार है, जब भाजपा महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।

साथियों,

ये निश्चित रूप से ऐतिहासिक है। ये भाजपा के गवर्नंस मॉडल पर मुहर है। अकेले भाजपा को ही, कांग्रेस और उसके सभी सहयोगियों से कहीं अधिक सीटें महाराष्ट्र के लोगों ने दी हैं। ये दिखाता है कि जब सुशासन की बात आती है, तो देश सिर्फ और सिर्फ भाजपा पर और NDA पर ही भरोसा करता है। साथियों, एक और बात है जो आपको और खुश कर देगी। महाराष्ट्र देश का छठा राज्य है, जिसने भाजपा को लगातार 3 बार जनादेश दिया है। इससे पहले गोवा, गुजरात, छत्तीसगढ़, हरियाणा, और मध्य प्रदेश में हम लगातार तीन बार जीत चुके हैं। बिहार में भी NDA को 3 बार से ज्यादा बार लगातार जनादेश मिला है। और 60 साल के बाद आपने मुझे तीसरी बार मौका दिया, ये तो है ही। ये जनता का हमारे सुशासन के मॉडल पर विश्वास है औऱ इस विश्वास को बनाए रखने में हम कोई कोर कसर बाकी नहीं रखेंगे।

साथियों,

मैं आज महाराष्ट्र की जनता-जनार्दन का विशेष अभिनंदन करना चाहता हूं। लगातार तीसरी बार स्थिरता को चुनना ये महाराष्ट्र के लोगों की सूझबूझ को दिखाता है। हां, बीच में जैसा अभी नड्डा जी ने विस्तार से कहा था, कुछ लोगों ने धोखा करके अस्थिरता पैदा करने की कोशिश की, लेकिन महाराष्ट्र ने उनको नकार दिया है। और उस पाप की सजा मौका मिलते ही दे दी है। महाराष्ट्र इस देश के लिए एक तरह से बहुत महत्वपूर्ण ग्रोथ इंजन है, इसलिए महाराष्ट्र के लोगों ने जो जनादेश दिया है, वो विकसित भारत के लिए बहुत बड़ा आधार बनेगा, वो विकसित भारत के संकल्प की सिद्धि का आधार बनेगा।



साथियों,

हरियाणा के बाद महाराष्ट्र के चुनाव का भी सबसे बड़ा संदेश है- एकजुटता। एक हैं, तो सेफ हैं- ये आज देश का महामंत्र बन चुका है। कांग्रेस और उसके ecosystem ने सोचा था कि संविधान के नाम पर झूठ बोलकर, आरक्षण के नाम पर झूठ बोलकर, SC/ST/OBC को छोटे-छोटे समूहों में बांट देंगे। वो सोच रहे थे बिखर जाएंगे। कांग्रेस और उसके साथियों की इस साजिश को महाराष्ट्र ने सिरे से खारिज कर दिया है। महाराष्ट्र ने डंके की चोट पर कहा है- एक हैं, तो सेफ हैं। एक हैं तो सेफ हैं के भाव ने जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के नाम पर लड़ाने वालों को सबक सिखाया है, सजा की है। आदिवासी भाई-बहनों ने भी भाजपा-NDA को वोट दिया, ओबीसी भाई-बहनों ने भी भाजपा-NDA को वोट दिया, मेरे दलित भाई-बहनों ने भी भाजपा-NDA को वोट दिया, समाज के हर वर्ग ने भाजपा-NDA को वोट दिया। ये कांग्रेस और इंडी-गठबंधन के उस पूरे इकोसिस्टम की सोच पर करारा प्रहार है, जो समाज को बांटने का एजेंडा चला रहे थे।

साथियों,

महाराष्ट्र ने NDA को इसलिए भी प्रचंड जनादेश दिया है, क्योंकि हम विकास और विरासत, दोनों को साथ लेकर चलते हैं। महाराष्ट्र की धरती पर इतनी विभूतियां जन्मी हैं। बीजेपी और मेरे लिए छत्रपति शिवाजी महाराज आराध्य पुरुष हैं। धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज हमारी प्रेरणा हैं। हमने हमेशा बाबा साहब आंबेडकर, महात्मा फुले-सावित्री बाई फुले, इनके सामाजिक न्याय के विचार को माना है। यही हमारे आचार में है, यही हमारे व्यवहार में है।

साथियों,

लोगों ने मराठी भाषा के प्रति भी हमारा प्रेम देखा है। कांग्रेस को वर्षों तक मराठी भाषा की सेवा का मौका मिला, लेकिन इन लोगों ने इसके लिए कुछ नहीं किया। हमारी सरकार ने मराठी को Classical Language का दर्जा दिया। मातृ भाषा का सम्मान, संस्कृतियों का सम्मान और इतिहास का सम्मान हमारे संस्कार में है, हमारे स्वभाव में है। और मैं तो हमेशा कहता हूं, मातृभाषा का सम्मान मतलब अपनी मां का सम्मान। और इसीलिए मैंने विकसित भारत के निर्माण के लिए लालकिले की प्राचीर से पंच प्राणों की बात की। हमने इसमें विरासत पर गर्व को भी शामिल किया। जब भारत विकास भी और विरासत भी का संकल्प लेता है, तो पूरी दुनिया इसे देखती है। आज विश्व हमारी संस्कृति का सम्मान करता है, क्योंकि हम इसका सम्मान करते हैं। अब अगले पांच साल में महाराष्ट्र विकास भी विरासत भी के इसी मंत्र के साथ तेज गति से आगे बढ़ेगा।

साथियों,

इंडी वाले देश के बदले मिजाज को नहीं समझ पा रहे हैं। ये लोग सच्चाई को स्वीकार करना ही नहीं चाहते। ये लोग आज भी भारत के सामान्य वोटर के विवेक को कम करके आंकते हैं। देश का वोटर, देश का मतदाता अस्थिरता नहीं चाहता। देश का वोटर, नेशन फर्स्ट की भावना के साथ है। जो कुर्सी फर्स्ट का सपना देखते हैं, उन्हें देश का वोटर पसंद नहीं करता।

साथियों,

देश के हर राज्य का वोटर, दूसरे राज्यों की सरकारों का भी आकलन करता है। वो देखता है कि जो एक राज्य में बड़े-बड़े Promise करते हैं, उनकी Performance दूसरे राज्य में कैसी है। महाराष्ट्र की जनता ने भी देखा कि कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल में कांग्रेस सरकारें कैसे जनता से विश्वासघात कर रही हैं। ये आपको पंजाब में भी देखने को मिलेगा। जो वादे महाराष्ट्र में किए गए, उनका हाल दूसरे राज्यों में क्या है? इसलिए कांग्रेस के पाखंड को जनता ने खारिज कर दिया है। कांग्रेस ने जनता को गुमराह करने के लिए दूसरे राज्यों के अपने मुख्यमंत्री तक मैदान में उतारे। तब भी इनकी चाल सफल नहीं हो पाई। इनके ना तो झूठे वादे चले और ना ही खतरनाक एजेंडा चला।

साथियों,

आज महाराष्ट्र के जनादेश का एक और संदेश है, पूरे देश में सिर्फ और सिर्फ एक ही संविधान चलेगा। वो संविधान है, बाबासाहेब आंबेडकर का संविधान, भारत का संविधान। जो भी सामने या पर्दे के पीछे, देश में दो संविधान की बात करेगा, उसको देश पूरी तरह से नकार देगा। कांग्रेस और उसके साथियों ने जम्मू-कश्मीर में फिर से आर्टिकल-370 की दीवार बनाने का प्रयास किया। वो संविधान का भी अपमान है। महाराष्ट्र ने उनको साफ-साफ बता दिया कि ये नहीं चलेगा। अब दुनिया की कोई भी ताकत, और मैं कांग्रेस वालों को कहता हूं, कान खोलकर सुन लो, उनके साथियों को भी कहता हूं, अब दुनिया की कोई भी ताकत 370 को वापस नहीं ला सकती।



साथियों,

महाराष्ट्र के इस चुनाव ने इंडी वालों का, ये अघाड़ी वालों का दोमुंहा चेहरा भी देश के सामने खोलकर रख दिया है। हम सब जानते हैं, बाला साहेब ठाकरे का इस देश के लिए, समाज के लिए बहुत बड़ा योगदान रहा है। कांग्रेस ने सत्ता के लालच में उनकी पार्टी के एक धड़े को साथ में तो ले लिया, तस्वीरें भी निकाल दी, लेकिन कांग्रेस, कांग्रेस का कोई नेता बाला साहेब ठाकरे की नीतियों की कभी प्रशंसा नहीं कर सकती। इसलिए मैंने अघाड़ी में कांग्रेस के साथी दलों को चुनौती दी थी, कि वो कांग्रेस से बाला साहेब की नीतियों की तारीफ में कुछ शब्द बुलवाकर दिखाएं। आज तक वो ये नहीं कर पाए हैं। मैंने दूसरी चुनौती वीर सावरकर जी को लेकर दी थी। कांग्रेस के नेतृत्व ने लगातार पूरे देश में वीर सावरकर का अपमान किया है, उन्हें गालियां दीं हैं। महाराष्ट्र में वोट पाने के लिए इन लोगों ने टेंपरेरी वीर सावरकर जी को जरा टेंपरेरी गाली देना उन्होंने बंद किया है। लेकिन वीर सावरकर के तप-त्याग के लिए इनके मुंह से एक बार भी सत्य नहीं निकला। यही इनका दोमुंहापन है। ये दिखाता है कि उनकी बातों में कोई दम नहीं है, उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ वीर सावरकर को बदनाम करना है।

साथियों,

भारत की राजनीति में अब कांग्रेस पार्टी, परजीवी बनकर रह गई है। कांग्रेस पार्टी के लिए अब अपने दम पर सरकार बनाना लगातार मुश्किल हो रहा है। हाल ही के चुनावों में जैसे आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, हरियाणा और आज महाराष्ट्र में उनका सूपड़ा साफ हो गया। कांग्रेस की घिसी-पिटी, विभाजनकारी राजनीति फेल हो रही है, लेकिन फिर भी कांग्रेस का अहंकार देखिए, उसका अहंकार सातवें आसमान पर है। सच्चाई ये है कि कांग्रेस अब एक परजीवी पार्टी बन चुकी है। कांग्रेस सिर्फ अपनी ही नहीं, बल्कि अपने साथियों की नाव को भी डुबो देती है। आज महाराष्ट्र में भी हमने यही देखा है। महाराष्ट्र में कांग्रेस और उसके गठबंधन ने महाराष्ट्र की हर 5 में से 4 सीट हार गई। अघाड़ी के हर घटक का स्ट्राइक रेट 20 परसेंट से नीचे है। ये दिखाता है कि कांग्रेस खुद भी डूबती है और दूसरों को भी डुबोती है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ी, उतनी ही बड़ी हार इनके सहयोगियों को भी मिली। वो तो अच्छा है, यूपी जैसे राज्यों में कांग्रेस के सहयोगियों ने उससे जान छुड़ा ली, वर्ना वहां भी कांग्रेस के सहयोगियों को लेने के देने पड़ जाते।

साथियों,

सत्ता-भूख में कांग्रेस के परिवार ने, संविधान की पंथ-निरपेक्षता की भावना को चूर-चूर कर दिया है। हमारे संविधान निर्माताओं ने उस समय 47 में, विभाजन के बीच भी, हिंदू संस्कार और परंपरा को जीते हुए पंथनिरपेक्षता की राह को चुना था। तब देश के महापुरुषों ने संविधान सभा में जो डिबेट्स की थी, उसमें भी इसके बारे में बहुत विस्तार से चर्चा हुई थी। लेकिन कांग्रेस के इस परिवार ने झूठे सेक्यूलरिज्म के नाम पर उस महान परंपरा को तबाह करके रख दिया। कांग्रेस ने तुष्टिकरण का जो बीज बोया, वो संविधान निर्माताओं के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात है। और ये विश्वासघात मैं बहुत जिम्मेवारी के साथ बोल रहा हूं। संविधान के साथ इस परिवार का विश्वासघात है। दशकों तक कांग्रेस ने देश में यही खेल खेला। कांग्रेस ने तुष्टिकरण के लिए कानून बनाए, सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक की परवाह नहीं की। इसका एक उदाहरण वक्फ बोर्ड है। दिल्ली के लोग तो चौंक जाएंगे, हालात ये थी कि 2014 में इन लोगों ने सरकार से जाते-जाते, दिल्ली के आसपास की अनेक संपत्तियां वक्फ बोर्ड को सौंप दी थीं। बाबा साहेब आंबेडकर जी ने जो संविधान हमें दिया है न, जिस संविधान की रक्षा के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। संविधान में वक्फ कानून का कोई स्थान ही नहीं है। लेकिन फिर भी कांग्रेस ने तुष्टिकरण के लिए वक्फ बोर्ड जैसी व्यवस्था पैदा कर दी। ये इसलिए किया गया ताकि कांग्रेस के परिवार का वोटबैंक बढ़ सके। सच्ची पंथ-निरपेक्षता को कांग्रेस ने एक तरह से मृत्युदंड देने की कोशिश की है।

साथियों,

कांग्रेस के शाही परिवार की सत्ता-भूख इतनी विकृति हो गई है, कि उन्होंने सामाजिक न्याय की भावना को भी चूर-चूर कर दिया है। एक समय था जब के कांग्रेस नेता, इंदिरा जी समेत, खुद जात-पात के खिलाफ बोलते थे। पब्लिकली लोगों को समझाते थे। एडवरटाइजमेंट छापते थे। लेकिन आज यही कांग्रेस और कांग्रेस का ये परिवार खुद की सत्ता-भूख को शांत करने के लिए जातिवाद का जहर फैला रहा है। इन लोगों ने सामाजिक न्याय का गला काट दिया है।

साथियों,

एक परिवार की सत्ता-भूख इतने चरम पर है, कि उन्होंने खुद की पार्टी को ही खा लिया है। देश के अलग-अलग भागों में कई पुराने जमाने के कांग्रेस कार्यकर्ता है, पुरानी पीढ़ी के लोग हैं, जो अपने ज़माने की कांग्रेस को ढूंढ रहे हैं। लेकिन आज की कांग्रेस के विचार से, व्यवहार से, आदत से उनको ये साफ पता चल रहा है, कि ये वो कांग्रेस नहीं है। इसलिए कांग्रेस में, आंतरिक रूप से असंतोष बहुत ज्यादा बढ़ रहा है। उनकी आरती उतारने वाले भले आज इन खबरों को दबाकर रखे, लेकिन भीतर आग बहुत बड़ी है, असंतोष की ज्वाला भड़क चुकी है। सिर्फ एक परिवार के ही लोगों को कांग्रेस चलाने का हक है। सिर्फ वही परिवार काबिल है दूसरे नाकाबिल हैं। परिवार की इस सोच ने, इस जिद ने कांग्रेस में एक ऐसा माहौल बना दिया कि किसी भी समर्पित कांग्रेस कार्यकर्ता के लिए वहां काम करना मुश्किल हो गया है। आप सोचिए, कांग्रेस पार्टी की प्राथमिकता आज सिर्फ और सिर्फ परिवार है। देश की जनता उनकी प्राथमिकता नहीं है। और जिस पार्टी की प्राथमिकता जनता ना हो, वो लोकतंत्र के लिए बहुत ही नुकसानदायी होती है।

साथियों,

कांग्रेस का परिवार, सत्ता के बिना जी ही नहीं सकता। चुनाव जीतने के लिए ये लोग कुछ भी कर सकते हैं। दक्षिण में जाकर उत्तर को गाली देना, उत्तर में जाकर दक्षिण को गाली देना, विदेश में जाकर देश को गाली देना। और अहंकार इतना कि ना किसी का मान, ना किसी की मर्यादा और खुलेआम झूठ बोलते रहना, हर दिन एक नया झूठ बोलते रहना, यही कांग्रेस और उसके परिवार की सच्चाई बन गई है। आज कांग्रेस का अर्बन नक्सलवाद, भारत के सामने एक नई चुनौती बनकर खड़ा हो गया है। इन अर्बन नक्सलियों का रिमोट कंट्रोल, देश के बाहर है। और इसलिए सभी को इस अर्बन नक्सलवाद से बहुत सावधान रहना है। आज देश के युवाओं को, हर प्रोफेशनल को कांग्रेस की हकीकत को समझना बहुत ज़रूरी है।

साथियों,

जब मैं पिछली बार भाजपा मुख्यालय आया था, तो मैंने हरियाणा से मिले आशीर्वाद पर आपसे बात की थी। तब हमें गुरूग्राम जैसे शहरी क्षेत्र के लोगों ने भी अपना आशीर्वाद दिया था। अब आज मुंबई ने, पुणे ने, नागपुर ने, महाराष्ट्र के ऐसे बड़े शहरों ने अपनी स्पष्ट राय रखी है। शहरी क्षेत्रों के गरीब हों, शहरी क्षेत्रों के मिडिल क्लास हो, हर किसी ने भाजपा का समर्थन किया है और एक स्पष्ट संदेश दिया है। यह संदेश है आधुनिक भारत का, विश्वस्तरीय शहरों का, हमारे महानगरों ने विकास को चुना है, आधुनिक Infrastructure को चुना है। और सबसे बड़ी बात, उन्होंने विकास में रोडे अटकाने वाली राजनीति को नकार दिया है। आज बीजेपी हमारे शहरों में ग्लोबल स्टैंडर्ड के इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए लगातार काम कर रही है। चाहे मेट्रो नेटवर्क का विस्तार हो, आधुनिक इलेक्ट्रिक बसे हों, कोस्टल रोड और समृद्धि महामार्ग जैसे शानदार प्रोजेक्ट्स हों, एयरपोर्ट्स का आधुनिकीकरण हो, शहरों को स्वच्छ बनाने की मुहिम हो, इन सभी पर बीजेपी का बहुत ज्यादा जोर है। आज का शहरी भारत ईज़ ऑफ़ लिविंग चाहता है। और इन सब के लिये उसका भरोसा बीजेपी पर है, एनडीए पर है।

साथियों,

आज बीजेपी देश के युवाओं को नए-नए सेक्टर्स में अवसर देने का प्रयास कर रही है। हमारी नई पीढ़ी इनोवेशन और स्टार्टअप के लिए माहौल चाहती है। बीजेपी इसे ध्यान में रखकर नीतियां बना रही है, निर्णय ले रही है। हमारा मानना है कि भारत के शहर विकास के इंजन हैं। शहरी विकास से गांवों को भी ताकत मिलती है। आधुनिक शहर नए अवसर पैदा करते हैं। हमारा लक्ष्य है कि हमारे शहर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शहरों की श्रेणी में आएं और बीजेपी, एनडीए सरकारें, इसी लक्ष्य के साथ काम कर रही हैं।


साथियों,

मैंने लाल किले से कहा था कि मैं एक लाख ऐसे युवाओं को राजनीति में लाना चाहता हूं, जिनके परिवार का राजनीति से कोई संबंध नहीं। आज NDA के अनेक ऐसे उम्मीदवारों को मतदाताओं ने समर्थन दिया है। मैं इसे बहुत शुभ संकेत मानता हूं। चुनाव आएंगे- जाएंगे, लोकतंत्र में जय-पराजय भी चलती रहेगी। लेकिन भाजपा का, NDA का ध्येय सिर्फ चुनाव जीतने तक सीमित नहीं है, हमारा ध्येय सिर्फ सरकारें बनाने तक सीमित नहीं है। हम देश बनाने के लिए निकले हैं। हम भारत को विकसित बनाने के लिए निकले हैं। भारत का हर नागरिक, NDA का हर कार्यकर्ता, भाजपा का हर कार्यकर्ता दिन-रात इसमें जुटा है। हमारी जीत का उत्साह, हमारे इस संकल्प को और मजबूत करता है। हमारे जो प्रतिनिधि चुनकर आए हैं, वो इसी संकल्प के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमें देश के हर परिवार का जीवन आसान बनाना है। हमें सेवक बनकर, और ये मेरे जीवन का मंत्र है। देश के हर नागरिक की सेवा करनी है। हमें उन सपनों को पूरा करना है, जो देश की आजादी के मतवालों ने, भारत के लिए देखे थे। हमें मिलकर विकसित भारत का सपना साकार करना है। सिर्फ 10 साल में हमने भारत को दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी इकॉनॉमी से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनॉमी बना दिया है। किसी को भी लगता, अरे मोदी जी 10 से पांच पर पहुंच गया, अब तो बैठो आराम से। आराम से बैठने के लिए मैं पैदा नहीं हुआ। वो दिन दूर नहीं जब भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर रहेगा। हम मिलकर आगे बढ़ेंगे, एकजुट होकर आगे बढ़ेंगे तो हर लक्ष्य पाकर रहेंगे। इसी भाव के साथ, एक हैं तो...एक हैं तो...एक हैं तो...। मैं एक बार फिर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, देशवासियों को बधाई देता हूं, महाराष्ट्र के लोगों को विशेष बधाई देता हूं।

मेरे साथ बोलिए,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय!

वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम ।

बहुत-बहुत धन्यवाद।