किसी युग की समस्यारओं के समाधान के लिए भारत में समुदायों की अगुवाई करना एक समृद्ध परंपरा रही है: प्रधानमंत्री मोदी
सहकारिता के क्षेत्र में सरदार पटेल के प्रयासों को कभी भी भूलना नहीं चाहिए: पीएम मोदी
अन्नरपूर्णा धाम न्‍यास समाज को महिला-पुरूष समानता तथा सबके लिए समृद्धि सुनिश्चित करने की शक्ति दे: प्रधानमंत्री

भारत माता की– जय

भारत माता की– जय

भारत माता की– जय

बड़ी संख्या में पधारे हुए समाज के सभी वरिष्ठ गण।

मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसे पवित्र अवसर पर आप सब के बीच आने का निमंत्रण मिला और आप सब के आशीर्वाद प्राप्त करने का पुण्य प्राप्त हुआ।

हमारे देश में दुनिया के लोगों के लिए हमारा धर्म,हमारी परंपरा, हमारी संस्कृति समझना बड़ा भारी काम है, मुश्किल काम है, ज्यादा जल्दी से तकलीफ समझ में नहीं आती, मुश्किल होता है क्योंकि हमारे यहाँ कोई एक धर्म पुस्तक नहीं है, कोई एक भगवान नहीं है, कोई एक पूजा पद्धति नहीं है, इतना सारा वैविध्य इसलिए किसी को समझ ही नहीं आता है कि हम हैं क्या! और वही हमारी विशेषता। हम ऐसे लोग हैंजिसमें भक्त ऐसा भगवान। अगर भक्त पहलवान हो तो भगवान हनुमान होते है, भक्त अगर शिक्षा का उपासक हो तो भगवान सरस्वती है, भक्त अगर रूपए-पैसे में राचता है, तो भगवान लक्ष्मीजी है, ये हमारी विशेषता है और इसीलिए समाज जीवन में जिसने सबसे ज्यादा अन्नदाता का काम किया, खेत जोत कर‘कण में से मण’ कर के जिसनेसमाज जीवन की चिंता की, एक तरह से हमारा ये समाज यानी किसान समाज।आप काठियावाड़ में‘खेडू’ कहो तो उसका मतलब ही लेउआ पटेल और इसलिए उनके भगवान अन्नपूर्णा।

जैसा भक्त वैसा भगवान ये हमारी विशेषता रही हैऔर इसी विशेषता के एक हिस्से के रूप में आज विधिवत् रूप से देवी अन्नपूर्णा माँ का एक तीर्थक्षेत्र, प्रेरणाक्षेत्र का आज लोकार्पण हुआ है। लेकिन ख़ुशी की बात ये है कि हमारे देश की विशेषता रही है, आप सिर्फ एक गुजरात को ही देख लीजिए, किसी भी दिशा में आप 20-25-30 किलोमीटर जाइए, किसी भी दिशा में तो आपको कोई न कोई ऐसी जगह मिलेगी जहाँ बैठने की जगह और खाने की रोटी दोनों की व्यवस्था होती है, किसी भी दिशा में जाइए, 20 से 30 किलोमीटर, कहीं न कहीं कोई मठ, कोई मंदिर, कोई संत, कोई बावा, कोई जोगी, कोई साधु बैठा ही होगा। घर में आए हुए को भूखा जाने न दें, अगर रात ठहरना हो तो रुकने की व्यवस्था करें, ये हिंदुस्तान के कोने-कोने में है और ये हजारों सालों की परंपरा है, रहना या खाना, जिन्होंने नर्मदा परिक्रमा की होगी उनको पता होगा कि आपसिर्फ नर्मदा हर बोले और नर्मदा किनारे के गाँव वही है, वो लोग भी वही हैं, आनेवाले नए होते है और फिर भी नर्मदा के किनारे पर हजारों लोग नर्मदा परिक्रमा करते हो, एक बार भी किसी को भूखा नहीं रहना पड़ता, वो गाँव के लोग उनकी सेवा करते रहते हैं। ये हमारे देश की एक विशेषता है। उसकी सांस्कृतिक परंपरा ही ये है। हमारा समाज परोपकारी समाज है और उसकी वजह से एक सांस्कृतिक चेतना की जड़ में सेवा भाव अंतर्निहित है।

हमारे यहाँ कहते हैं कि नर करणी करे तो नारायण हो जाए। ये नर करणी करे तो नारायण हो जाए। ये जो मूल भाव है हमारा उस भाव का प्रतिबिम्ब आज माँ अन्नपूर्णा धाम के निर्माण के साथ-साथ भावी पीढ़ी के शिक्षण और संस्कार के लिए छात्रालय की व्यवस्था,समाज में जो पीछे रह गये है ऐसे परिवारों के बच्चे यहाँ आए, उन्हें अच्छी सुविधा मिले और उनको जीवन में प्रगति करने का अवसर मिले और इसलिए सांस्कृतिक विरासत में शिक्षण की परंपरा जोड़ने का काम आप सब ने किया है। नरहरी भाई आपको और आपकी पूरी टीम को और सभी दाताओं को मैं बहुत-बहुत अभिनंदन देता हूँ।

हमारे देश में अब ये रिवाज़ हुआ है कि सबकुछ सरकार ही करे और अगर न हो तो सरकार से जवाब माँगे। भारत में ये परंपरा नहीं थी, भारत में ऐसा कोई रिवाज़ ही नहीं था। धर्मशालाएं बनती थी, गौशालाए बनती थी, पानी के प्याऊ बनते थे। लाखा वणझाराने अडालज की वाव बनाई थी, ये सारे काम सरकारनहीं करती थी। सामाजिक शक्ति से होते थे, धर्मशाला हो, पानी के प्याऊ हो, पुस्तकालय हो, समाज करता था।

धीरे धीरे-धीरे समाज की शक्तियाँ उसको जाने-अनजाने में ही दबा दिया गया और राज्य सरकार की सत्ता कोऊपर लाया गया। हमारा प्रयास है कि राज्य, राज्य का काम करे औरशक्तितो समाज की ही होनी चाहिए, समाज फले फूले। समाज शक्तिशाली होगा तो देश जल्दी शक्तिशाली बनेगा। सरकारों को शक्ति इकठ्ठी करने की जरूरत नहीं है। उस मूल परंपरा में से इस तरह की सभी प्रवृत्तियों को हम प्रोत्साहन देते हैं। विधिवत रूप से प्रोत्साहन देते हैं। औरउसीके हिस्सेके रूप में आनेवाले दिनों में इस तरह की सभी चीजो को और इसमें कोई इधर उधर नहीं होता, राजकीयदाँवपेच नहीं होते, समाज की ये मुलभूतशक्ति है।उस मुलभूत शक्ति को बल देना, उसके लिए ये प्रयास है।

आज जब माता अन्नपूर्णा धाम के यहाँ प्राणप्रतिष्ठा का अवसर आया है तब समाज के लिए कोई नई दिशा सोच सकते है, प्रसाद सभी मंदिरों में मिलता है लेकिन अन्नपूर्णा धाम में प्रसाद की परंपरा को बदल सकते है, समय के अनुसार बदली जा सकती है और इसीलिए यहाँ के संचालकोंसे मेरी प्रार्थना है कि अन्नपूर्णा धाम में जो भी आए उसको, क्योंकि ये धरती माँ के साथ जुड़ा हुआ समाज है। उसको प्रसाद में अगर एक पौधा दिया जाए और उनको कहा जाए की अपने घर ले जा कर इस पौधे को बड़ा कीजिए, जीवनभर ये माता का प्रसाद उसके घर के आँगन में या उसके खेत के कोने में पुण्य प्राप्त होगा या नहीं होगा और वो तय करे कि ये माँ अन्नपूर्णा का प्रसाद है वो उस पेड़ को कुछ नहीं होने देगा।

पर्यावरण की रक्षा होगी या नहीं होगी? प्रसाद का प्रसाद, सेवा की सेवा और जीवन की उंचाई की उंचाई। उसमे एक और भी काम कर सकते हैकि हम तय करें कि भाई लेउआ पटेल समाज में जिसके घर में बेटी पैदा हो वो जरुर से बेटी को दर्शन करवाने के लिए अन्नपूर्णा धाम में आएं, जरुर से आएं। माँ अन्नपूर्णा के आशीर्वाद ले और उसको पांच पौधेदें, बेटी को और वो भीजिस मेंसे इमारती लकड़ी निकले वैसे पौधे दे, सीधे सादे नहीं, अगर संभव हो तो सरकार के साथ बातचीत करकेहमारा ये ट्रस्ट कहीं सौ दो सौ एकड़ जमीन जहाँ पर विरान जमीन हो, वहाँ जमीन माँगे और उस परिवार की तरफ से इस इमारती लकड़ी के पांच पौधे वहाँ पर बोए, वो पौधे बोकर वो बेटी जब 20 साल की हो तब तक वो इमारती पौधा उसको काट कर बाज़ार में बेच सके उतना बड़ा हो जाएगा, वो पांच पौधे बो कर, उसको 20 साल बाद काट कर उसके जो लकड़ी के पैसे आएँगे, इमारती लकड़ी का वो बेटी को दिए जाएं, सुखपूर्वक उसकी शादी हो सकती है या नहीं हो सकती? उसके माँ बाप को कर्जा लेना पड़ेगा? सरकार जमीन दे, सरकार जमीन दे कि आप यहाँ पेड़ बो सके, व्यवस्था आप करना, पूरी वो जमीन हरीभरी हो जाएगी।

आज हजारों करोडो रूपये की इमारती लकड़ी विदेश से लानी पडती है, ये बेटियाँ भी बड़ी हो और इमारती लकड़ी भी बड़ी हो, वो बाहर से विदेश से इमारती लकड़ी लाना बंद हो, हमारी धार्मिक परंपराओ को आर्थिक व्यवस्थाओं के साथ आधुनिक रूप में किस तरह जोड़ सकते है। मुझे लगता है कि यह जगह इस प्रकार काम कर सकती है। किसी भी चीज़ को जातिवाद के रंग में रंगना वो पाप है। लेकिन कई बार समझने के लिए काम में आए इसलिए मैं कहता हूँ। सरदारवल्लभभाई पटेल को अगर कोई जाति के रंग में रंगे तो गलत बात है। इस देश का एक महान नेता, स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी यानी दुनिया को आज सिर ऊँचा कर के देखना ही पड़ता है कि ये हमारे सरदार साहब। पूरी दुनिया का सबसे ऊँचा स्मारक कौनसा तो सरदार पटेल का स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी ये कहना ही पड़ेगा भाई। उसमे कोई मुंह नहीं छुपा सकता और मुझे नहीं लगता कि नजदीक के भविष्य में कोई ये रिकोर्ड तोड़ सकता है ।

मुझे बात दूसरी करनी है। इस अमूल डेरी का जन्म हुआ, वो जो उसकी जड़ में करनेवाले लोग कौन थे, शुरुआत किसने की? मैंने पहले भी कहा जातिवाद के रंग में रंगना पाप है। लेकिनसमझने के लिए वो सब लेउआ पटेल थे। अमूल डेरी का प्रारंभ हुआ, जो शुरुआत में टोली बैठी थी वो सब लेउआ पटेल थे। अब आप सोचिए और किसी ने भी कभी भी अमूल डेरी यानी लेउआ पटेल की इस तरह से चेक निकालने की कोशिश नहींकरी है और उसके लिए लेउआ पटेल अभिनंदन का अधिकारी है। लेकिन मुझे कहना है दूसरे काम के लिए। दूसरेकाम के लिए इसलिए कहना हैकि अगर 5-15 हमारे समाज के बड़े लोगो ने दीर्घदृष्टि से अमूल बनाया और जिसका लाभ पशुपालक को हो रहा है, हर एक समाज के, हर एकगाँव के लोगों को हो रहा है, पुरे गुजरात को उसका लाभ मिल रहा है।

अन्नपूर्णा माँ के साथ हम जुड़े हुए हैं तब एक और जिम्मा उठाएं और सीधे-सीधा किसानों के साथ जुड़ा हुआ। मैं चाहता हूँ कि ये ट्रस्टवाले जिस तरह से सरदार साहब की प्रेरणा से पूरा ये अमूल का काम खड़ा हुआ उसी तरह इस अन्नपूर्णा धाम की प्रेरणा से फ़ूड प्रोसेसिंग, हमारा किसान जो पैदा करता है उसमे मूल्य वृद्धि, उसके लिए की एक पूरी वैज्ञानिक तरीके से व्यवस्था विकसित हो।

शेरथा की मिर्च फेमस हो लेकिन शेरथा की मिर्च लाल हो तो ज्यादा कमाई होती है और लाल मिर्च का पाउडर बने तो और ज्यादा कमाई होती है उसे भी अच्छे वाले पैकिंग में रखा हो तो और ज्यादा पैसे मिलते है, ये सारी संभावनाएं है। फ़ूड प्रोसेसिंग, खाद्य प्रसंस्करण सें मूल्यवृद्धि, हमारा किसान जो भी पैदा करे उसको इसे फ़ूड प्रोसेसिंग के युनिट का लाभ मिले, बड़ेस्तर पर उसका काम हो, उसमेंरिसर्च हो, मैं मानता हूँ कि सही मायने में हम अन्नपूर्णा माँ के रूप मेंसबक़ों यहाँ सर झुकाए ऐसी स्थिति पैदा कर सकते है।

तो मैं चाहूँगा कि यहाँ उद्योग जगत के मित्र भी बैठे हैं, जरुर से इस दिशा में विचार करेंगे, एक आस्था और अध्यात्म उसका सामाजिक जीवन केविकास में किस तरह से उपयोग हो सकता है उसके बारे में विचार करना चाहिए और मुझे बताया गया कि इसमेंपंचतत्व को केंद्र में रखकर के माता अन्नपूर्णाके धाम का निर्माण किया गया है। हमारे यहाँरामचरितमानस के अंदर एक दोहा है और रामचरितमानस के उस दोहे में कहा गया है की-

छिति जल पावन गगन समीरा।

पंच रचित अति अधम शरीरा।।

यानी हमारा ये शरीर पंच तत्वों से बना हुआ है, पंच तत्व से बनी हुई ये काया है, इसी भाव से, पंच तत्व के मूल भाव को समाविष्ट करने का जब यहाँ प्रयास हो रहा है तब मुझे पूरा भरोसा है कि इस मूल तत्व को ध्यान में रखते हुए समाजके आनेवाले कल को ध्यान में रखते हुए उनको हम उजागर करेंगे।

नरहरी भाई का जो आत्मविश्वास हैके 2020 में इसका उद्घाटन करेंगे और दुसरे का शिलान्यास करेंगे तो अगर आपका विश्वास है तो मेरा सवा गुना ज्यादा है औरघर पर अगर कोई बुलाए तो कौन मना करेगा भाई? यहाँ मैं कोई मेहमान थोड़ी न हूँ, ये तो घर आने की ख़ुशी है और माँ अन्नपूर्णा के चरणों में आएऔरपूरेदेश की अन्नपूर्ति हो उससे बड़ा और सौभाग्य क्या हो सकता है और आज जब किसानों के बीच में आया हूँ, इस देश में ‘कण में से मण’ करनेवालेतेजस्वी, तपस्वी कृषि जगत के लोगों के बीच में आया हूँ तब जय जवान जय किसान दोनों का ही मूल्य है। किसान का सामर्थ्य, जवान का सामर्थ्य देश को अन्न सुरक्षा देता है, देश को सीमा सुरक्षा भी देता है और दोनों के सामर्थ्य से देश विकास के अवसरों को हमेशा पार करता होता है, मैं फिर एकबार आप सब के बीच मुझे आने का अवसर मिला मैं आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूँ। माता अन्नपूर्णा के चरणों में वंदन करता हूँ और आप सब के उज्ज्वल भविष्य के लिए देवी अन्नपूर्णा के चरणों में प्रार्थना करके अपनी बात को विराम देता हूँ।

धन्यवाद!

 

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PM to attend Christmas Celebrations hosted by the Catholic Bishops' Conference of India
December 22, 2024
PM to interact with prominent leaders from the Christian community including Cardinals and Bishops
First such instance that a Prime Minister will attend such a programme at the Headquarters of the Catholic Church in India

Prime Minister Shri Narendra Modi will attend the Christmas Celebrations hosted by the Catholic Bishops' Conference of India (CBCI) at the CBCI Centre premises, New Delhi at 6:30 PM on 23rd December.

Prime Minister will interact with key leaders from the Christian community, including Cardinals, Bishops and prominent lay leaders of the Church.

This is the first time a Prime Minister will attend such a programme at the Headquarters of the Catholic Church in India.

Catholic Bishops' Conference of India (CBCI) was established in 1944 and is the body which works closest with all the Catholics across India.