Quoteप्रधानमंत्री मोदी ने इकोनॉमिक टाइम्स ग्लोबल समिट को संबोधित किया
Quoteवैसे सुधारों को ही सफ़ल कहा जा सकता है जिनके फ़लस्वरूप नागरिकों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आए: प्रधानमंत्री मोदी
Quoteहमें अपने नागरिकों के विकास के लिए नए अवसर पैदा करने चाहिए और उनकी पसंद के अवसर उपलब्ध कराने चाहिए: प्रधानमंत्री
Quoteमुझे विश्वास है कि चुनौतियों के बावजूद हम आम लोगों के कल्याण की दिशा में सफलतापूर्वक आगे बढ़ सकते हैं: प्रधानमंत्री
Quoteउद्यमिता भारत की पारंपरिक शक्तियों में से एक है, यह दुख की बात है कि पिछले कुछ वर्षों में इसकी उपेक्षा की गई लेकिन अब स्थिति बदली है: पीएम
Quoteमैं सशक्तीकरण की राजनीति में विश्वास करता हूं। मैं लोगों को खुद का जीवन सुधारने के लिए सक्षम बनाने में यकीन करता हूं: प्रधानमंत्री
Quoteहम भारत को 2 वर्ष से कम समय में विदेशी निवेश और विकास की वैश्विक लीग तालिका के शीर्ष तक पहुँचाया है: पीएम मोदी
Quoteजब लोगों की शक्ति हमारे साथ है, मुश्किल चुनौतियां भी बहुत बड़ा अवसर बन जाती हैं: प्रधानमंत्री

श्री विनीत जैन, सम्मानित मेहमानों, मैं आज यहां आकर बेहद खुश हूं। वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है। ऐसे वक्त में मैं यहां पर भारत ही नहीं विदेश से आए लोगों की भागीदारी देखकर खुश हूं। मुझे भरोसा है कि हम सभी भारतीयों को दूसरे देशों के अनुभवों से फायदा होगा। इस अवसर पर मैं आपको भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति और कारोबारी परिदृश्य के बारे में अपने विचारों से अवगत कराऊंगा। आप में से कुछ लोगों को याद होगा, जो मैंने पहले कहा था कि वास्तविक सुधार नागरिकों की जिंदगी में बदलाव लाना है। जैसा कि मैंने पहले कहा था, मेरा लक्ष्य है, ‘बदलाव के लिए सुधार।’ चलिए मैं बुनियादी बातों के साथ शुरुआत करता हूं। किसी भी देश की आर्थिक नीति का दिशा निर्देशन करने वाले बुनियादी सिद्धांत क्या होने चाहिए, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए?

पहले हमें अपने प्राकृतिक और मानव संसाधनों के इस्तेमाल में सुधार करना है, जिससे हम ज्यादा परिणाम हासिल कर सकें। इसका मतलब संसाधनों के आवंटन की कुशलता बढ़ाना है। इसका मतलब ज्यादा प्रबंधन क्षमता है। इसका मतलब अनावश्यक नियंत्रण और मनमानी को खत्म करना है।

दूसरा, हमें अपने नागरिकों के विकास के लिए नए अवसर पैदा करने चाहिए और उनकी पसंद के अवसर उपलब्ध कराने चाहिए। एक आकांक्षी नागरिक के लिए अवसर ऑक्सीजन की तरह काम करते हैं और हम चाहते हैं कि इस दिशा में आपूर्ति की कभी कमी नहीं रहे। सरल शब्दों में इसी का मतलब है ‘सबका साथ, सबका विकास।’

तीसरा, हमें आम आदमी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है और उससे भी ज्यादा गरीबों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो। जीवन की गुणवत्ता के आर्थिक पहलू हो सकते हैं, लेकिन यह सिर्फ आर्थिक नहीं है। यदि एक सरकार प्रगतिशील हो और ईमानदारी व कुशल प्रशासन से चल रही है तो सबसे ज्यादा फायदा गरीबों को ही होता है। मैं अपने अनुभवों से जानता हूं कि खराब प्रशासन से दूसरों की तुलना में सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों को होता है। इसीलिए आर्थिक सुधार के लिए प्रशासन में सुधार बेहद अहम है। हम वैश्विक स्तर पर आपस में जुड़ी हुई दुनिया में रहते हैं। एक देश के कार्यों का असर दूसरों पर पड़ता है। ये कदम सिर्फ कारोबार और निवेश के मामले में ही नहीं होते, बल्कि प्रदूषण और पर्यावरण के मामलों में भी होते हैं। एक कवि ने कहा था कि कोई भी व्यक्ति एक द्वीप नहीं है। आज यह कहा जा सकता है कि कोई भी देश अकेले नहीं रह सकता। यह अक्सर कहा जाता है कि हर तरह की राजनीति स्थानीय होती है। मेरे लिए हर तरह की अर्थव्यवस्था वैश्विक है। घरेलू मामलों और विदेशी मामलों में भेदभाव का औचित्य तेजी से खत्म हो रहा है। आधुनिक युग में एक देश के लिए यह पर्याप्त नहीं है कि आर्थिक नीतियां सिर्फ घरेलू प्राथमिकताओं को देखते हुए बनाई जाएं। मेरे लिए भारत की नीतियां ऐसी होनी चाहिए, जिनका बाकी दुनिया पर भी सकारात्मक असर पड़े।

आप में से कई लोगों को मालूम होगा कि भारत के अंशदान से वैश्विक अर्थव्यवस्था को फायदा हो सकता है, जब दुनिया के कई हिस्सों में स्थिरता का माहौल है। बीती चार तिमाहियों से भारत दुनिया की सबसे तेजी से विकसित होने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है। 2014-15 में भारत ने क्रय शक्ति के मामले में वैश्विक जीडीपी में 7.4 प्रतिशत का योगदान किया। लेकिन इसने वैश्विक वृद्धि में 12.5 फीसदी का योगदान किया। इस प्रकार वैश्विक अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी की तुलना में भारत का योगदान 68 फीसदी ज्यादा रहा। बीते 18 महीनों के दौरान भारत में एफडीआई में 39 प्रतिशत का इजाफा हुआ, जब वैश्विक स्तर पर एफडीआई में कमी आ रही थी।

लेकिन एक देश का योगदान अर्थव्यवस्थाओं से आगे होता है। जलवायु परिवर्तन से अपने ग्रह की रक्षा इस पीढ़ी के लिए सबसे ज्यादा अहम कार्य है। यदि एक देश पर्यावरण के हित में काम करता है, तो इससे दूसरे देशों को भी फायदा होता है। यही वजह है कि सीओपी 21 समिट में भारत ने पृथ्वी के ज्यादा कल्याण के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। इतिहास में जिस भी देश ने विकास किया है, उसने प्रति व्यक्ति ज्यादा उत्सर्जन किया है। हम इतिहास के पुनर्लेखन के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमने 2030 तक अपने जीडीपी की तुलना में उत्सर्जन में 33 फीसदी की कमी लाने के लिए प्रतिबद्धता जाहिर की है। एक ऐसा देश जो पहले से ही प्रति व्यक्ति कम उत्सर्जन कर रहा है, के लिए यह बेहद महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। हमने प्रतिबद्धता जाहिर की है कि 2030 तक हमारी बिजली क्षमता गैर जीवाश्म ईंधन से पैदा होगी। हमने अतिरिक्त कार्बन सिंक के निर्माण की भी प्रतिबद्धता जाहिर की है, जो 2.5 अरब टन कार्बन के समान होगी। ऐसा 2030 तक अतिरिक्त वन्य क्षेत्र तैयार करके किया जाएगा। यह प्रतिबद्धता एक ऐसे देश की तरफ से है, जहां प्रति व्यक्ति जमीन की उपलब्धता पहले से काफी कम है। हमने इंटरनेशनल सोलर अलायंस के शुभारंभ की अगुआई की है, जिसमें 121 देश शामिल हैं। इस पहल से अफ्रीका से दक्षिण अमेरिका तक कई विकासशील देशों को फायदा होगा, जो अक्षय ऊर्जा का फायदा उठा सकते हैं।

चलिये अब उन तीन नीतिगत उद्देश्यों पर आते हैं जिसका मैंने जिक्र किया। मैं भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन से बात शुरू करता हूं। अर्थशास्त्री मुख्य आर्थिक मापदंडों के रूप में जीडीपी वृद्धि, महंगाई, निवेश व राजकोषीय घाटे की बात करते हैं। जब से यह सरकार सत्ता में आई है, वृद्धि हुई है और महंगाई कम हुई है। विदेशी निवेश बढ़ा है और राजकोषीय घाटा कम हुआ है। वैश्विक व्यापार में मंदी के बावजूद भुगतान घाटे का संतुलन भी कम हुआ है।

हालांकि, इस तरह के बड़े-बड़े आंकड़ों से हम जो काम कर रहे हैं और जो उपलब्धि है, उसकी केवल आधी तस्वीर दिखेगी। कई बार कहा जाता है कि “व्याख्याओं में ही दानव रहते हैं (द डेविल इज इन द डिटेल)।” लेकिन मैं इसमें विश्वास करता हूं कि ढेर सारे कथित आंकड़ों के सही क्रियान्वयन में ही भगवान हैं। ये कथित आंकड़ें ही हैं जिसे जब ठीक ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो एक बड़ी तस्वीर बनती है।

मुझे लगता है कि ये जानने में आपकी रुचि हो सकती है कि-

  • 2015 में भारत में अब तक का सबसे ज्यादा यूरिया खाद का उत्पादन हुआ।
  • 2015 में भारत में अब तक का सबसे ज्यादा मिश्रित ईंधन के रूप में एथेनोल का उत्पादन हुआ, जिससे गन्ना किसानों को लाभ होता है।
  • 2015 में ग्रामीण गरीबों को अब तक का सबसे ज्यादा घरेलू गैस कनेक्शन जारी किया गया।
  • 2015 में अब तक का सबसे ज्यादा कोयले का उत्पादन हुआ।
  • 2015 में अब तक का सबसे ज्यादा बिजली उत्पादन हुआ।
  • 2015 में बड़े बंदरगाहों से अब तक की सबसे ज्यादा मात्रा में सामान की आवाजाही हुई।
  • 2015 में अब तक की सबसे ज्यादा रेलवे पूंजी लागत में बढ़ोत्तरी हासिल की गई। 
  • 2015 में अब तक के सबसे ज्यादा किलोमीटर नए राजमार्ग की ख्याति अर्जित की गई।
  • 2015 में भारत का अब तक का सबसे ज्यादा मोटर गाड़ी का उत्पादन किया गया।
  • 2015 में भारत से अब तक का सबसे ज्यादा साफ्टवेयर का निर्यात किया गया।
  • 2015 में भारत ने वर्ल्ड बैंक डूइंग बिजनेस इंडिकेटर्स के मामले में अब तक की सबसे अच्छी रैंकिंग हासिल की।
  • 2015 में भारत का अब तक सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार अर्जित किया गया।

मैं जो ये आंकड़े गिना रहा हूं उसके साथ ये भी याद रखने की जरूरत है कि पूर्व के वर्षों में इनमें से कई मापक उल्टी दिशा में जा रहे थे। इनमें से ना केवल कई मापकों में सुधार हुआ है बल्कि उनमें ज्यादा तेजी भी आई है। उदाहरण के लिए, 2013-14 में कुल 3,500 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों की मंजूरी हुई। लेकिन इस सरकार के आने के बाद से इसमें दोगुने से भी ज्यादा की वृद्धि हुई, करीब 8,000 किलोमीटर, जो कि अब तक का सबसे ज्यादा है। इस साल हमारी योजना 10,000 किलोमीटर मंजूर करने की है। 

चलिये इस तरह के बड़े बदलावों के कुछ और उदाहरण आपको बताता हूं। भारतीय जहाजरानी निगम ने 2013-14 में 275 करोड़ रुपये का घाटा उठाया और 2014-15 में इसने 201 करोड़ रुपये का लाभ कमाया। एक साल में ही 575 करोड़ रुपये की आवाजाही हुई।

2013-14 में भारत ने ऊर्जा सक्षम एलईडी लाइट के वैश्विक मांग का केवल 0.1 प्रतिशत हासिल किया। 2015-16 में ये बढ़कर 12 प्रतिशत हो गया। अब भारतीय एलईडी बल्ब सबसे सस्ते हैं और दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले इसकी लागत एक डॉलर से भी कम है जबकि वैश्विक औसत 3 डॉलर का है। 2013-14 में भारत ने 947 मेगावॉट सौर ऊर्जा प्लांट्स को मंजूरी दिया। 2015-16 में यह 2500 मेगावॉट तक बढ़ गया। 2016-17 में इसके 12000 मेगावॉट तक बढ़ने की संभावना है। वैश्विक सौर ऊर्जा बाजार में भारत की हिस्सेदारी 2014 में 2.5 से बढ़कर 2016 में 18 प्रतिशत तक हो जाएगी। भारत केवल स्वच्छ ऊर्जा के मामले में हिस्सेदारी ही नहीं कर रहा बल्कि पूरी दुनिया में इसके बड़े पैमाने पर लागत में भी कमी लाकर योगदान दे रहा है। 2013-14 में 16800 किलोमीटर ट्रांसमीशन लाइनें जोड़ी गईं। पूरे बिजली क्षेत्र में, बिजली उत्पादन की लागत में 30 प्रतिशत की कमी आई।

चलिये, अब मैं दूसरे पहलू- बढ़ते अवसरों, पर बात करता हूं। मैं सशक्तीकरण की राजनीति में विश्वास करता हूं। मैं लोगों को खुद का जीवन सुधारने के लिए सक्षम बनाने में यकीन करता हूं। हमने दुनिया के सबसे बड़े और सबसे सफल आर्थिक समावेशन कार्यक्रम शुरू किए हैं। इससे करीब 20 करोड़ लोग जिनका बैंकों में खाता नहीं था उन्हें बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ा गया है। कार्यक्रम के शुरू के दिनों में कुछ शक्की लोगों को लगा कि इन खातों में एक भी रुपया नहीं होगा। लेकिन आप को ये जानकर आश्चर्य होगा कि आज इन खातों में 30,000 करोड़ रुपये या 4 बिलियन डॉलर से ज्यादा की रकम है। हमने उन लोगों को बड़े पैमाने पर ऋण कार्ड भी जारी किया है। भारत अब उन कुछ देशों में है जहां देशी क्रेडिट कार्ड ब्रांड के बाजार में हिस्सेदारी 33 प्रतिशत से ज्यादा है।  

हमने फसल बीमा के लिए एक नया व विस्तृत कार्यक्रम शुरू किया है। इससे किसानों को बेफिक्र होकर खेती करने में सक्षम बनाया जा सकेगा और किसी जोखिम की स्थिति में राज्य उन्हें सुरक्षा प्रदान करेगा।

हमने अपने किसानों को सशक्त करने के लिए मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड जारी किया है। ये कार्ड हर एक किसान को उसकी मिट्टी के बारे में सटीक जानकारी देगा। इससे उन्हें रासयनिक खादों को अधिक इस्तेमाल को कम करने व मिट्टी की गुणवत्ता को सुधार कर अधिक मात्रा में फसल का उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।

उद्यमिता, भारत का पारंपरिक आधारों में से एक रही है। लेकिन दुखद रूप से पिछले कुछ सालों में इसे नजरअंदाज किया जाता रहा है। ‘व्यापार’ और ‘लाभ’ खराब शब्द हो चले थे। हमने इसे बदला है। हमें उद्यमों की साख व कड़ी मेहनत की जरूरत है ना की धन की। मुद्रा से लेकर स्टॉर्ट अप इंडिया व स्टैंड-अप इंडिया जैसे हमारे कार्यक्रम कड़ी मेहनत व उद्यमिता के अवसर मुहैया कराएंगे। इस क्रम में हमने अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों व महिलाओं पर विशेष जोर दिया है। हम उन्हें खुद के मुकद्दर का सिंकदर बनने योग्य बनाना चाहते हैं।

शहरों व कस्बों की वृद्धि के लिए अवसर पैदा करना बहुत निर्णायक है। शहरी क्षेत्र वृद्धि के चालक हैं। शहरी क्षेत्रों में बदलाव के लिए स्मार्ट सिटी मिशन जैसी महत्वपूर्ण पहल शुरू की गई है। इस मिशन में कई तरह के ‘पहली बार’ होंगे। यह पहली बार होगा कि शहरों में कुछ हिस्सों का व्यवस्थित व गुणवत्तापूर्ण तरीके से उनका समग्र विकास किया जाएगा। ये हिस्से प्रकाश स्तंभ की तरह काम करेंगे जो शहर के बाकी हिस्सों को भी आमतौर पर प्रभावित करेंगे। इसने व्यापक पैमाने पर नागरिक परामर्श पहली बार शुरू किया जा रहा है। MyGov मंच के जरिये करीब 25 लाख लोग इसमें परिचर्चाओं, जनमत, ब्लॉग व बातचीत के जरिये अपने विचार देने के लिए भाग ले रहे हैं। शहरी योजनाओ में ऊपर से नीचे तक के दृष्टिकोण में पहली बार बड़ा बदलाव आया है। यह पहली बार है कि सरकारी योजनाओं में फंड का आवंटन मंत्रियों या अधिकारियों के फैसलों से नहीं बल्कि प्रतियोगिता के आधार पर हो रहा है। यह प्रतिस्पर्धी व सहयोगी संघवाद का अच्छा उदाहरण है।

जैसे कि मैंने पहले कहा था कि सरकार की भूमिका केवल अर्थव्यवस्था के साथ ही खत्म नहीं हो जाती। लोगों की भलाई के लिए कई सारे गैर-आर्थिक आयाम भी हैं जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए। सुशासन निर्णायक है। हमने कई ऐसे कदम उठाए हैं जिनमें बदलाव लाने की क्षमता है। हम लोगों ने उच्च स्तर के भ्रष्टाचार का दौर खत्म किया है। यह ऐसा तथ्य है जिसे भारत व विदेशों में भी इस सरकार के आलोचकों व समर्थकों द्वारा स्वीकार किया जा रहा है। यह आसान उपलब्धि नहीं है। हमने राष्ट्रीयकृत बैंकों में राजनीतिक हस्तक्षेप व आवारा पूंजी को खत्म किया है। हमने पहली बार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में निजी क्षेत्र के लोगों को सर्वोच्च पदों पर नियुक्त किया है। घोटालों से भरे प्राकृतिक संसाधन क्षेत्रों में नीलामी की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया है। 

कई सारे विशेषज्ञों ने सब्सिडी खत्म करने की जरूरत पर जोर दिया है। नई जन धन योजना के जरिये बैंकिग से सभी को जोड़कर सब्सिडी के बंदरबांट को रोका है। विकासशील देशों में आमतौर पर ईंधन पर दी जाने वाली सब्सिडी को संभालना मुश्किल होता है। हमने सफलतापूर्वक खाना बनाने के गैस के मूल्यों को विनियंत्रित किया है। अब हम घरेलू गैस के मामले में दुनिया के सबसे बड़े प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना पर काम कर रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक प्रमाण के जरिये फर्जी सब्सिडी को खत्म किया गया है। इससे जरूरत मंद लोगों को उनका लाभ मिला है और जो गैर-जरूरतमंद हैं उन्हें इसका लाभ बंद किया गया है। इससे सब्सिडी में अहम कमी आई है।

एक अन्य सस्ता ईँधन केरोसीन है जिसका उपयोग गरीबों द्वारा खाना बनाने व रोशनी के लिए किया जाता है जो कि राज्य सरकारों द्वारा वितरित किया जाता है। इस बात के पक्के सुबूत हैं कि केरोसीन पर दी जाने वाली सब्सिडी का बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल हो रहा है और वो कहीं और जा रही है। हमने 33 जिलों में बाजार भाव पर केरोसीन बेचना शुरू किया है। बाजार भाव के केरोसीन व सब्सिडी वाले केरोसीन के दाम में अंतर को उन गरीब लोगों के खातों में जमा किया जाएगा। गरीबों की पहचान बैंक खातों व बायोमैट्रिक पहचान पत्र आधार के जरिये की जाएगी। इससे नकली, अयोग्य व फर्जी उपभोक्ताओं को खत्म किया जा सकेगा। इस खात्मे से कुल सब्सिडी में कमी आएगी। हमने तय किया है कि इस तरह की बचत का 75 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकारों को देंगे। इसीलिए, हम लोगों ने राज्य सरकारों को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वो सभी जिलों में इसे लागू करें।

चंडीगढ़ का अनुभव ये जाहिर करता है कि ये संभव है। अप्रैल 2014 में चंडीगढ़ में सब्सिडी वाले केरोसीन के 68,000 लाभार्थी थे। सभी योग्य परिवारों को गैस कनेक्शन देने का अभियान शुरू किया गया। 10,500 नए गैस कनेक्शन जारी किए गए। 42,000 उन परिवारों का केरोसीन कोटा बंद कर दिया गया जिनके पास पहले से ही गैस कनेक्शन थे। 31 मार्च, 2016 के अंत तक चंडीगढ़ केरोसीन मुक्त घोषित हो जाएगा। आप इस पर विश्वास करें या नहीं लेकिन अभी तक के इस पहले से केरोसीन की खपत में 73 प्रतिशत की बचत हुई है।

दो दिन पहले राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ बैठक में मैं कई सारी पेंशन योजनाओं की समीक्षा कर रहा था। मुझे ये जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि जिन लोगों का नाम पेंशन सूची में दो-दो बार है व जो अयोग्य हैं उन्हें खत्म कर सब्सिडी की बर्बादी में महत्वपूर्ण कमी आई है। कुछ राज्यों में बिना गरीबों को नुकसान पहुंचाए सब्सिडी में 12 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

सब्सिडी का एक बहुत बड़ा भाग हिस्सा उर्वरकों में व्यय होता है। सब्सिडी वाले यूरिया का एक बहुत बड़ा हिस्सा गैर-कानूनी रूप से रसायनों के निर्माण के लिए प्रयोग किया जाता है। हमने इसके लिए एक आसान लेकिन प्रभावी तकनीक यूरिया पर नीम की परत चढ़ाने की शुरूआत की है। जैविक नीम की यह परत उर्वरक को अन्य प्रयोगों के लिए अनुपयोगी बना देती है। हमने घरेलू और आयात किए गए यूरिया में सौ प्रतिशत नीम की परत चढ़ाने का लक्ष्य प्राप्त किया है। इसके कई अन्य दूसरे लाभ भी हैं। यूरिया के लिए नीम की पत्तियों को जमा करना ग्रामीण महिलाओं के लिए आय का एक नया साधन बन गया है।

मैं जानता हूं कि आप में से कई अर्थशास्त्री हैं। अर्थशास्त्री सामान्य तौर पर विश्वास करते हैं कि मानव तर्कसंगत होते हैं। वे विश्वास करते हैं कि लोग उन लाभों को नहीं छोड़ेंगे, जिसके लिए वे योग्य नहीं हैं। गतवर्ष मैंने नागरिकों से एक अनुरोध किया। मैंने उनसे गैस-सब्सिडी छोड़ने का अनुरोध किया, अगर वे महसूस करते हैं कि वह उसे पाने के योग्य गरीब नहीं हैं। हमने एक वायदा भी किया, हर कनेक्शन छोड़ने पर हम एक निर्धन परिवार को गैस कनेक्शन प्रदान करेंगे। ग्रामीण भारत में निर्धन महिलाएं मुख्य रूप से लकड़ी या जैव ईंधन का इस्तेमाल करती हैं और धूएं के कारण समस्याग्रस्त रहती हैं। यह योजना पूर्ण रूप से वैकल्पिक है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि लगभग 65 लाख लोगों ने भारत में मेरे अनुरोध का उत्तर दिया। मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई कि उनमें से कई लोग आगे आए और गरीबों को लाभ देने की शर्त के बिना भी उन्होंने अपनी सब्सिडियां छोड़ दीं। अब तक निर्धनों को 50 लाख नये कनेक्शन प्रदान किए जा चुके हैं। यह लोगों की भावना और भारतीयों के बीच स्वयं का सम्मान करने की भावना को प्रदर्शित करता हूं और नागरिकों के कार्यों की क्षमता का प्रदर्शन करता है। एक और उदाहरण जहां नागरिकों ने मेरे अनुरोध को स्वीकार किया, वह है खादी। अक्टूबर, 2014 में मैंने सभी भारतीयों से कम से कम खादी का एक वस्त्र खरीदने का अनुरोध किया था। इसके जवाब में खादी की बिक्री में बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है।

हमने घाटा उठाने वाली विद्युत वितरण कंपनियों की समस्या का समाधान करने में नई नीति अपनाई है। उदय कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य सरकारों द्वारा बैंक ऋणों के संबंध में लघु अवधि की ऋण राहत प्रदान की गई है। लेकिन यह दीर्घकालिक वितरण कंपनियों और राज्य सरकारों को समर्थन देने के साथ जुड़ी है। इससे चौबीसों घंटे विद्युत वितरण करने में सहायता प्राप्त होगी।

हमारा देश पुराने और गैर-जरूरी कानूनों से दबा पड़ा है, जो लोगों और व्यापार में बाधा उत्पन्न करते हैं। हमने गैर-जरूरी कानूनों की पहचान करने और उन्हें वापस लेने का कार्यक्रम शुरू किया है। वापस लेने के लिए 1827 केन्द्रीय कानूनों की पहचान की गई है। इनमें से 125 पहले ही वापस लिए जा चुके हैं, जबकि अन्य 758 कानूनों को वापस लेने संबंधी प्रस्ताव लोकसभा द्वारा पास किए जा चुके हैं और इन्हें राज्यसभा की अनुमति मिलना शेष है।

मैंने उन्नत सुशासन की क्षमता के कुछ उदाहरण दिए हैं। उन्नत सुशासन और कम भ्रष्टाचार के लाभ दीर्घकालिक और गहरे होते हैं। अगर आप हमारी नीतियों का गंभीरता से अध्ययन करेंगे तो आप पाएंगे कि इनमें से कई लोकप्रिय हैं, लेकिन कोई भी जनवादी नहीं है। हमारे द्वारा किया गया हरेक परिवर्तन सुशासन और तर्कसंगत की दिशा में है।

मैं खाने की गैस, उर्वरक और मिट्टी के तेल में दी जा रही सब्सिडी के संदर्भ में बता रहा हूं। मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि इस संदर्भ में विशेषज्ञों द्वारा प्रयोग किए गए शब्दों से मैं आश्चर्यचकित हूं, जब कोई लाभ किसानों या निर्धनों को दिया जाता है तो विशेषज्ञ और सरकारी अधिकारी सामान्य तौर पर इसे सब्सिडी कहते हैं, लेकिन मैंने महसूस किया है कि जब कोई लाभ उद्योग या वाणिज्य क्षेत्र को प्रदान किया जाता है तो इसे प्रोत्साहन या अनुदान कहा जाता है। हमें स्वयं से पूछना चाहिए कि भाषा का यह अंतर क्या हमारे नजरिए को भी प्रदर्शित करता है। आखिर संपन्न लोगों को दी जाने वाली सब्सिडी सकारात्मक पहलु में क्यों देखी जाती है। मैं आपको एक उदाहरण देना चाहता हूं। कार्पोरेट करदाताओं को दिए जाने वाले प्रोत्साहन से 62 हजार करोड़ रुपए से अधिक का राजस्व नुकसान होता है। शेयर बाजार में शेयरों पर लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ और लाभांश को आयकर से पूर्ण छूट दी गई है, जबकि सामान्य तौर पर इसे निर्धन अर्जित नहीं करते। पूर्ण छूट में शामिल होने के कारण इसकी गणना 62 हजार करोड़ रुपए में नहीं की जाती। दोहरा कराधान समझौतों के कारण दोहरा कर नहीं लगता। इसकी गणना भी 62 हजार करोड़ रुपए में नहीं की जाती। लेकिन इनका संदर्भ सामान्य तौर पर सब्सिडी में कमी की मांग करने वाले लोगों द्वारा दिया जाता है। शायद इसे निवेश के लिए प्रोत्साहन के रूप में देखा जाता है। मैं सोचता हूं कि यदि उर्वरक सब्सिडी को कृषि उत्पादन के लिए प्रोत्साहन के रूप में बुलाया जाए तो क्या कुछ विशेषज्ञ इसे दूसरे नजरिए से देखेंगें।

मैं सभी सब्सिडी के अच्छा होने का पक्ष नहीं ले रहा हूं। मेरा मानना है कि इन मुद्दों पर कोई भी सैद्धांतिक स्थिति नहीं हो सकती। हमें प्रयोगात्मक होना होगा। हमें बुरी सब्सिडी को समाप्त करना होगा, चाहे वे सब्सिडी कही जाती हो या नहीं। लेकिन कुछ सब्सिडी निर्धनों की रक्षा करने के लिए आवश्यक है और वह उन्हें सफल होने का एक अवसर प्रदान करती है। इस लिए मेरा लक्ष्य सब्सिडी को समाप्त करना नहीं, बल्कि उन्हें तर्कसंगत बनाना और लक्ष्य निर्धारित करना है।

गत 19 माह में हमने काफी कुछ प्राप्त किया है और हमसे अधिक कार्य करने की आशा है। हमारे सामने कई चुनौतियां हैं, लेकिन मुझे विश्वास है कि हम सफलतापूर्वक आगे बढ़ेंगे और सफलतापूर्वक तेजी से बढ़ेंगे और हम आम आदमी को लाभ पहुंचाने की दिशा में कार्य करेंगे।

जब देश के लोग आगे बढ़ने का निर्णय लेते हैं और जब लोगों की शक्ति हमारे साथ हो तो कठिन चुनौतियां भी बड़े अवसरों में बदल जाती है। मेरा यह विश्वास गत 19 माह के अनुभवों पर आधारित है।

हमें एक संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था प्राप्त हुई थी, जो मुद्रा संकट से निपटी ही थी। हमने दो वर्ष से भी कम अवधि में भारत को विदेशी निवेश और विकास के मुख्यधारा में ला खड़ा किया है। दोस्तों, हमें एक लंबे रास्ते पर जाना है, लेकिन मैं महसूस करता हूं कि हमारी यात्रा की शुरूआत अच्छी हुई है। सभी लंबी यात्राओं के समान हमारे मार्ग में भी बाधाएं आएंगी, लेकिन मुझे भरोसा है कि हम अपने लक्ष्य तक पहुंचेंगे। हमने भविष्य और नये भारत के लिए एक मंच का निर्माण किया हैः

भारत जहां सभी बच्चों का सुरक्षित जन्म हो और जहां नवजात शिशु और माता मृत्यु दर विश्व स्तर से कम हो।

भारत जहां कोई भी बिना आवास के न हो

भारत जहां हर कस्बा और हर गांव, हर स्कूल और ट्रेन, हर गली और घर स्वच्छ हो

भारत जहां हर गांव में चौबीसों घंटे बिजली उपलब्ध हो

भारत जहां हर शहर रहने योग्य और जोशपूर्ण हो

भारत जहां सभी लड़कियां शिक्षित और सशक्त हों

भारत जहां हर लड़का और लड़की कौशल युक्त हो और उत्पादक रोजगार के लिए तैयार हो

भारत जहां कृषि, उद्योग और सेवा प्रदाता, सभी रोजगार की आवश्यकता वाले लोगों को उचित वेतन वाले रोजगार देने की क्षमता रखते हों

भारत जहां किसान भूमि की स्थिति जानते हों, श्रेष्ठ उपकरण और बीजों से लैश हो और उत्पादकता के विश्वस्तर तक पहुंच वाले हों

भारत जहां उद्यमियों चाहे वो बड़े या छोटे हों सभी की पूंजीगत और ऋण सुविधा तक पहुंच हो

भारत जहां स्टार्टअप और अन्य व्यवसायों, नवाचार समाधान प्रदान करते हों

भारत जो वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में अग्रणी हो

भारत जो स्वच्छ ऊर्जा में अग्रणी हो

भारत जहां हर नागरिक को मूल सामाजिक सुरक्षा और वृद्धावस्था में पेंशन उपलब्ध हो

भारत जहां नागरिक सरकार पर भरोसा और सरकार उन पर भरोसा करती हो

      और इन सब से ऊपर एक बदला हुआ भारत, जहां सभी नागरिकों को उनकी क्षमताओं को प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हो।

      धन्यवाद।

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Quoteभारत का कपड़ा उद्योग ‘फास्ट फैशन वेस्ट’ को अवसर में बदल सकता है, कपड़ा रीसाइक्लिंग और अप-साइक्लिंग में देश के विविध पारंपरिक कौशल का लाभ उठा सकता है: प्रधानमंत्री

कैबिनेट में मेरे सहयोगी श्रीमान गिरिराज सिंह जी, पबित्रा मार्गरिटा जी, विभिन्न देशों के राजदूत, वरिष्ठ राजनयिक, केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारी, फैशन और टेक्सटाइल्स वर्ल्ड के सभी दिग्गज, entrepreneurs, छात्र-छात्राएं, मेरे बुनकर और कारीगर साथी, देवियों और सज्जनों।

आज भारत मंडपम्, Bharat Tex के दूसरे आयोजन का साक्षी बन रहा है। इसमें हमारी परम्पराओं के साथ ही विकसित भारत की संभावनाओं के दर्शन भी हो रहे हैं। ये देश के लिए संतोष की बात है कि हमने जो बीज रोपा है, आज वो वट वृक्ष बनने की राह पर तेज गति से बढ़ रहा है। Bharat Tex अब एक मेगा ग्लोबल टेक्सटाइल्स इवेंट बन रहा है। इस बार वैल्यू चेन का पूरा spectrum, इससे जुड़े 12 समूह एक साथ यहाँ हिस्सा ले रहे हैं। Accessories, garment, machinery, chemicals और dyes का भी प्रदर्शन किया गया है। Bharat Tex, दुनियाभर के पॉलिसी मेकर्स, सीईओ, और इंडस्ट्री लीडर्स के लिए engagement, collaboration और partnership का एक बहुत ही मजबूत मंच बन रहा है। इस आयोजन के लिए सभी stakeholders का प्रयास बहुत सराहनीय है, मैं इसके काम में जुटे हुए सब लोगों को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

आज Bharat Tex में 120 से ज्यादा देश हिस्सा ले रहे हैं, जैसा गिरिराज जी ने बताया 126 countries, यानि यहां आने वाले हर entrepreneurs को 120 देशों का exposure मिल रहा है। उन्हें अपने बिज़नेस को लोकल से ग्लोबल बनाने का अवसर मिल रहा है। जो entrepreneurs नए बाजारों की तलाश में हैं, उन्हें यहां विभिन्न देशों की cultural needs की जानकारी मिल रही है। थोड़ी देर पहले मैं प्रदर्शनी में लगे स्टॉल्स को देख रहा था, ज्यादा तो नहीं देख पाया, अगर पूरा देखता तो शायद मुझे दो दिन लगते और इतना समय तो आप मुझे परमिट भी नहीं करेंगे। लेकिन जितना समय में निकाल सका, इस दौरान मैंने इन स्टॉल्स के कई representatives से भी बहुत सारी बातें की, चीजों को समझने का मैंने प्रयास किया। कई साथी बता रहे थे कि पिछले साल Bharat Tex से जुड़ने के बाद उन्हें बड़े स्केल पर नए buyers मिले, उनके बिजनेस का विस्तार हुआ। और मैं तो देख रहा था एक बड़ी, यानी मधुर कंप्लेंट मेरे सामने आई, उन्होंने कहा कि साहब डिमांड इतनी है कि हम पहुंच नहीं पाते हैं। और कुछ साथियों ने मुझे कहा कि साहब एक फैक्ट्री लगानी है तो एवरेज हमें 70-75 करोड़ रुपया खर्च लगता है और 2000 लोगों को काम देते हैं। मैं बैंकिंग क्षेत्र के लोगों को सबसे पहले कहूंगा कि इन सबकी क्या मांग है, प्रायोरिटी समझो और दो।

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साथियों,

इस आयोजन से टेक्सटाइल सेक्टर में investments, exports और overall growth को जबरदस्त बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

भारत टेक्स के इस आयोजन में हमारे परिधानों के जरिए भारत की सांस्कृतिक विविधता के भी दर्शन होते हैं। पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण, हमारे यहाँ कितने तरह के पारंपरिक परिधान हैं, एक-एक परिधान के कितने-कितने प्रकार हैं। लखनवी चिकन, राजस्थान और गुजरात की बांधनी, गुजरात का पटोला और मेरी काशी का बनारसी सिल्क, दक्षिण में कांजीवरम सिल्क, जम्मू कश्मीर का पश्मीना, ये सही समय है, ऐसे आयोजनों के जरिए हमारी ये विविधता और विशेषता वस्त्र उद्योग के विस्तार का भी माध्यम बने।

साथियों,

पिछले साल मैंने टेक्सटाइल इंडस्ट्री में farm, fiber, fabric, fashion और foreign, इन five ‘F’ factors की बात की थी। Farm, Fiber, Fabric, Fashion और Foreign का ये विज़न अब भारत के लिए एक मिशन बनता जा रहा है। ये मिशन किसान, बुनकर, डिज़ाइनर और व्यापारी, हर किसी के लिए ग्रोथ के नए रास्ते खोल रहा है। पिछले वर्ष भारत के textile और apparel exports में 7 परसेंट की बढ़ोतरी हुई है। अब आप 7 परसेंट में ताली बजाओगे तो मेरा होगा क्या, अगली बार 17 परसेंट हो तो फिर ताली हो जाए। आज हम दुनिया के छठे सबसे बड़े textiles और apparels exporter हैं। हमारा टेक्सटाइल निर्यात 3 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच चुका है। अब हमारा लक्ष्य है- 2030 तक हम इसे 9 lakh crore रुपए तक लेकर जाएंगे। मैं भले बोलता यहां हूं ये 2030 की बात, लेकिन आज जो मैंने वहां जो मिजाज देखा है, तो मुझे लगता है कि शायद आप ये मेरा आंकड़ा गलत सिद्ध कर देंगे, और 2030 के पहले ही काम पूरा कर देंगे।

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साथियों,

इस सफलता के पीछे पूरे एक दशक की मेहनत है, एक दशक की consistent पॉलिसी हैं। इसीलिए, पिछले एक दशक में हमारे टेक्सटाइल सेक्टर में विदेशी निवेश दोगुना हुआ है। और आज मुझे कुछ साथी बता रहे थे कि साहब बहुत सारी विदेशी कंपनियां भारत में इन्वेस्टमेंट करने के लिए आना चाहती है, तो मैंने उनसे कहा कि देखिए आप हमारे सबसे बड़े एंबेसडर है, जब आप कहेंगे तो कोई भी बात मान लेगा, सरकार कहेगी तो जांच करने जाएगा, ये सही है, गलत है, ठीक है, नहीं है, लेकिन अगर उसी फील्ड का व्यापारी जब कहता है तो मान लेता है कि हां यार मौका है, चलो।

साथियों,

आप सब जानते हैं, टेक्सटाइल देश में सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर देने वाली इंडस्ट्रीज़ में से एक महत्वपूर्ण इंडस्ट्री है। भारत की मैन्युफैक्चरिंग में ये सेक्टर 11 परसेंट का योगदान दे रहा है। और इस बार आपने बजट में देखा होगा, हमने मिशन मैन्युफैक्चरिंग पर बल दिया है, उसमें आप सब भी आ जाते हैं। इसलिए, जब इस सेक्टर में निवेश आ रहा है, ग्रोथ हो रही है, तो उसका फायदा करोड़ों textile workers को मिल रहा है।

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साथियों,

भारत के टेक्सटाइल सेक्टर की समस्याओं का समाधान, और संभावनाओं का सृजन, ये हमारा संकल्प है। इसके लिए हम दूरदर्शी और long term ideas पर काम कर रहे हैं। हमारे इन प्रयासों की झलक इस बार के बजट में भी दिखती है। हमारे देश में कॉटन सप्लाइ reliable बने, भारतीय कॉटन globally competitive बने, इसके लिए हमारी वैल्यू चेन मजबूत हो, इंडस्ट्री की ऐसी सभी जरूरतों को ध्यान में रखते हुये हमने Mission for Cotton Productivity का एक ऐलान किया है। हमारा फोकस technical textile जैसे सन-राइज़ सेक्टर्स पर भी है। और मुझे याद है, मैं जब गुजरात में था, मुख्यमंत्री के नाते मुझे सेवा करने का अवसर मिला था, तो आपके टेक्सटाइल वालों से मेरा मिलना-जुलना होता था, और उस समय जब मैं उनको टेक्निकल टैक्सटाइल की बातें करता था, तो वो मुझे पूछते थे, आप क्या चाहते हैं, आज मुझे खुशी है कि भारत इसमें अपनी पहचान बना रहा है। हम स्वदेशी कार्बन फाइबर और उससे बने उत्पादों को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत high-grade carbon fibre बनाने की दिशा में भी आगे बढ़ रहा है। इन प्रयासों के साथ ही, टेक्सटाइल सेक्टर के लिए जो नीतिगत फैसले चाहिए, हम वो भी ले रहे हैं। जैसे कि, इस साल के बजट में MSMEs के classification criteria में बदलाव करके इसका विस्तार किया गया है। साथ ही credit availability बढ़ाई गई है। हमारा टेक्सटाइल सेक्टर, जिसमें 80 परसेंट योगदान हमारे MSMEs का ही है, उसको इसका बहुत बड़ा लाभ मिलने वाला है।

साथियों,

कोई भी सेक्टर एक्सेल तब करता है, जब उसके लिए skilled workforce उपलब्ध हो। वस्त्र उद्योग में तो सबसे बड़ा रोल ही स्किल यानी हुनर का होता है। इसीलिए, हम टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए skilled talent pool बनाने के लिए भी काम कर रहे हैं। हमारे National Centres of Excellence for Skilling इस दिशा में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। वैल्यू चेन के लिए जो स्किल्स चाहिए, उसमें हमें समर्थ योजना से मदद मिल रही है। और मैं आज समर्थ से trained हुई कई बहनों के साथ बात कर रहा था, और उन्होंने जो 5 साल, 7 साल, 10 साल में जो प्रगति की है, यानी गर्व से मन भर गया मेरा सुनकर के। हमारी ये भी कोशिश है कि टेक्नोलॉजी के इस दौर में hand-loom की authenticity को, हाथ के कौशल को भी उतना ही महत्व मिले। हथकरघा कारीगरों का हुनर दुनिया के बाज़ारों तक पहुंचे, उनकी क्षमता बढ़े, उन्हें नए अवसर मिलें। हम इस दिशा में भी काम कर रहे हैं। पिछले 10 वर्षों में हैंडलूम्स को बढ़ावा देने के लिए 2400 से ज्यादा बड़े मार्केटिंग इवेंट्स का आयोजन किया गया, 2400 से ज्यादा। हैंडलूम प्रोडक्ट्स की ऑनलाइन मार्केटिंग को बढ़ावा देने के लिए India-hand-made नाम से ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म भी बनाया गया है। इस पर हजारों हैंडलूम ब्रांड रजिस्टर भी कर चुके हैं। हैंडलूम प्रोडक्ट्स की GI tagging इसका भी बहुत बड़ा लाभ इन ब्रांड्स को हो रहा है।

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साथियों,

पिछले वर्ष Bharat Tex के आयोजन के दौरान Textiles Startup Grand Challenge को लॉन्च किया गया था। उसमें युवाओं से टेक्सटाइल सेक्टर के लिए innovative sustainable solutions मांगे गए थे। इस चैलेंज में देशभर के युवाओं ने बढ़-चढ़कर के हिस्सा लिया। इस चैलेंज के विजेता युवाओं को यहाँ invite भी किया गया है। वो यहां हमारे बीच में बैठे भी हैं। आज यहां ऐसे स्टार्ट-अप्स को भी बुलाया गया है, जो इन युवाओं को आगे बढ़ाना चाहेंगे। ऐसे pitch fest को IIT Madras, अटल इनोवेशन मिशन और कई बड़े private textile organizations का सपोर्ट मिल रहा है। इससे देश में स्टार्ट-अप कल्चर को बढ़ावा मिलेगा।

मैं चाहूँगा, हमारे युवा नए techno-textile स्टार्ट-अप्स लेकर आयें, नए ideas पर काम करें। एक सुझाव हमारी इंडस्ट्री को भी है। हमारी टेक्सटाइल इंडस्ट्री भी IIT जैसे इंस्टीट्यूट्स के साथ नए टूल्स develop करने के लिए collaborate कर सकती है। आजकल हम सोशल मीडिया और ट्रेंड्स में देख रहे हैं, नई पीढ़ी अब आधुनिकता के साथ-साथ पारंपरिक परिधानों को भी पसंद कर रही है। इसलिए, आज tradition और innovation के fusion का महत्व भी काफी बढ़ गया है। हमें ऐसे पारंपरिक परिधानों से inspired ऐसे products लॉन्च करने चाहिए, जो न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में नई पीढ़ी को आकर्षित करें। एक और अहम विषय टेक्नोलॉजी की बढ़ती भूमिका का भी है। नए ट्रेंड्स discover करने में, नए styles create करने में अब AI जैसी technology की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है। अभी जब मैं निफ्ट के स्टॉल पर गया तो वो मुझे बता रहे थे कि हम AI के माध्यम से 2026 का ट्रेंड क्या होगा, हम उसको अब प्रमोट कर रहे हैं। वरना पहले दुनिया के और देश ही हमें कहते थे काला पहनो, हम पहन लेते थे, अब हम दुनिया को कहेंगे, क्या पहनना है। इसीलिए, आज एक ओर पारंपरिक खादी को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, साथ ही AI के जरिए फैशन के ट्रेंड्स को भी analyze किया जा रहा है।

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मुझे याद है, मैं जब नया-नया मुख्यमंत्री बना था, तो गांधी जयंती पर शायद 2003 होगा, मैंने पोरबंदर में, गांधी जी का जहां जन्म स्थान है, वहां फैशन शो ऑर्गेनाइज किया था और खादी का फैशन शो। और निफ्ट के स्टूडेंट्स और हमारे एनआईडी के स्टूडेंट्स मिलकर के उस काम को आगे बढ़ाया था। और वैष्णव भजन तो तेरे रे कहिए, वो बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ वो फैशन शो हुआ था। और उस समय विनोबा जी के कुछ अनन्य साथी जो थे, उनको मैंने इनवाइट किया था, तो वो मेरे साथ बैठे थे क्योंकि फैशन शो भरके शब्द ऐसे हैं कि पुरानी पीढ़ी के लोगों को जरा कान खड़े हो जाते हैं कि ये क्या सब तूफान चल रहा है। लेकिन मैंने उनसे बड़ा आग्रह किया, उनको मैंने बुलाया, वो आए और बाद में उन्होंने मुझे कहा कि खादी को अगर हमें पॉपुलर करना है, तो यही रास्ता है। और मैं बताता हूं आज खादी जिस प्रकार से प्रगति कर रही है और दुनिया के लोगों का आकर्षण का कारण बन रही है, हमने इसको और बढ़ावा देना चाहिए। और पहले जब आजादी का आंदोलन चला, तब खादी फोर नेशन था, अब खादी फोर फैशन होना चाहिए।

साथियों,

कुछ दिनों पहले, जैसे अभी एनाउंसर बता रहे थे, मैं विदेश दौरे पर से ही आया हूं, मैं पेरिस में था, और पेरिस को Fashion capital of world कहा जाता है। इस यात्रा के दौरान विभिन्न मुद्दों पर दोनों देशों के बीच अहम साझेदारी हुई। हमारी चर्चा के मुख्य बिंदुओं में environment और climate change का विषय भी शामिल रहा। आज पूरी दुनिया sustainable lifestyle के महत्व को समझ रही है। Fashion world भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं है। आज दुनिया Fashion for Environment और Fashion for Empowerment के लिए इस विजन को अपना रही है। इस संबंध में भारत दुनिया को रास्ता दिखा रहा है। Sustainability हमेशा से भारतीय टेक्सटाइल्स की परंपरा का अभिन्न हिस्सा रही है। हमारी खादी, tribal textiles, natural dyes का उपयोग, ये सभी सस्टेनेबल लाइफ स्टाइल के ही उदाहरण हैं। अब भारत की पारंपरिक sustainable techniques को cutting-edge technologies का साथ मिल रहा है। इससे इंडस्ट्री से जुड़े कारीगरों, बुनकरों और करोड़ों महिलाओं को सीधा-सीधा लाभ हो रहा है।

साथियों,

मैं समझता हूं, संसाधनों का पूरा उपयोग और कम से कम waste generation, टेक्सटाइल इंडस्ट्री की पहचान बननी चाहिए। आज दुनिया में करोड़ों कपड़े हर महीने इस्तेमाल से बाहर हो जाते हैं। इनमें बहुत बड़ा हिस्सा ‘फ़ास्ट फ़ैशन वेस्ट’ का होता है। यानी, वो कपड़े जिन्हें फ़ैशन या ट्रेंड चेंज होने के कारण लोग पहनना छोड़ देते हैं। इन कपड़ों को दुनिया के कई हिस्सों में डंप किया जाता है। इससे environment और ecology के लिए भी बड़ा खतरा पैदा हो रहा है।

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एक आंकलन के मुताबिक, 2030 तक फ़ैशन वेस्ट 148 मिलियन टन तक पहुँच जाएगा। आज टेक्सटाइल वेस्ट का एक चौथाई हिस्सा भी recycle नहीं हो रहा है। हमारी टेक्सटाइल इंडस्ट्री इस चिंता को अवसर में बदल सकती है। आपमें से अनेक साथी जानते हैं, हमारे भारत में textile recycling, और ख़ासकर, up-cycling का बहुत diverse traditional skill मौजूद है। जैसे कि, हमारे यहाँ पुराने या बचे हुये कपड़ों से दरियां बनाई जाती हैं। बुनकर लोग, और यहाँ तक कि घर की महिलाएं भी ऐसे कपड़ों से कितने तरह के mats, rugs और coverings बनाती हैं। महाराष्ट्र में पुराने, और यहाँ तक कि फटे कपड़ों तक से अच्छे-अच्छे गोधडी बनाए जाते हैं। हम इन पारंपरिक आर्ट्स में नए इनोवेशन करके इन्हें ग्लोबल मार्केट तक पहुंचा सकते हैं। टेक्सटाइल मिनिस्ट्री ने up-cycling को प्रमोट करने के लिए Standing Conference of Public Enterprises और e-Marketplace के साथ MoU भी साइन किया है। देश के कई up-cyclers ने इसमें रजिस्टर भी किया है। नवी मुंबई और बैंग्लोर जैसे शहरों में टेक्सटाइल वेस्ट के door to door कलेक्शन के लिए पायलट प्रोजेक्ट्स भी चलाये जा रहे हैं। मैं चाहूँगा, हमारे स्टार्ट-अप्स इन प्रयासों से जुड़ें, इन अवसरों को explore करें, और early steps लेकर इतने बड़े ग्लोबल मार्केट में lead लें। अगले कुछ वर्षों में भारत की textile recycling market 400 million डॉलर तक पहुँचने की संभावना है। जबकि, ग्लोबल recycled textile market करीब साढ़े 7 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। अगर हम सही दिशा में आगे बढ़ें, तो भारत इसमें और बड़ा शेयर हासिल कर सकता है।

साथियों,

सैकड़ों वर्ष पहले जब भारत समृद्धि के शिखर पर था, हमारी उस समृद्धि में टेक्सटाइल इंडस्ट्री की बहुत बड़ी भूमिका थी। आज जब हम विकसित भारत का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं, तो एक बार फिर टेक्सटाइल सेक्टर का इसमें बहुत बड़ा योगदान होने वाला है। Bharat Tex जैसे आयोजन इस सेक्टर में भारत की स्थिति को मजबूत बना रहे हैं। मुझे विश्वास है, ये आयोजन इसी तरह हर वर्ष सफलता के नए कीर्तिमान गढ़ेगा, नई ऊंचाइयों को छुएगा। मैं एक बार फिर इस आयोजन के लिए आप सभी को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद। नमस्कार।