मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,
आज मैं श्रीनगर में एक कार्यक्रम के लिए गया और दूसरे कार्यक्रम के लिए आपके बीच आने का सौभाग्य मिला है। हम वर्षों से एक बात सुनते रहे हैं कि अगर विकास करना है तो तीन बातों पर प्राथमिकता देनी पड़ती है – बिजली, पानी और सड़क। ये तीन मूलभूत व्यवस्थाएं अगर विकसित हो तो समाज की अपनी ताकत होती है, वो विकास की नई ऊंचाइयों को पार कर लेता है। आज पूरा विश्व Global warming, Climate change इससे बड़ी भारी चिंता में है। पूरा विश्व इन दिनों इसी मुद्दों की चर्चा कर रहा है कि जो तापमान बढ़ रहा है उसको कम कैसे किया जाए, ये जो हमारे ग्लेशियर है उसको कैसे बचाया जाए, जिन ग्लेशियर से हमें पानी मिलता है उन नदियों को कैसे बचाया जाए, प्रकृति की रक्षा कैसे की जाए। और एक बात उसमें ध्यान आती है कि बिजली उत्पादन के रास्ते बदले जाए और उसमें सबसे सरल पर्यावरण की रक्षा करने वाला मार्ग है - वो पानी से पैदा होने वाली बिजली, सूर्य शक्ति से पैदा होने वाली बिजली, हवा से पैदा होने वाली बिजली। और इसलिए पवन चक्की लगाना, सोलर पैनल लगाना, हाइड्रो प्रोजेक्ट लगाना, ये मानव जात के कल्याण के लिए, भावी पीढी को बचाने के लिए एक सामाजिक दायित्व बना है।
आज ये जो बिजली के प्रोजेक्ट का लोकार्पण हो रहा है वो बिजली तो मिलने वाली है, बिजली से विकास की यात्रा को बल भी मिलने वाला है। लेकिन साथ-साथ हम आने वाली पीढ़ियों के कल्याण के लिए पर्यावरण की रक्षा का भी एक उम्दा काम करने जा रहे हैं। भारत ने एक बहुत बड़ा लक्ष्य रखा है - 175 gigawatt renewal energy. हमारे देश में megawatt तक ही हम सोचते थे। हजार megawatt, पांच हजार megawatt, 10 हजार megawatt. लेकिन gigawatt, ये शब्द हमारे देश में सुनाई नहीं देता। आज ये सरकार 175 gigawatt, solar energy, wind energy की ओर जा रहा है ताकि हम पर्यावरण की भी रक्षा कर सके और बिजली के माध्यम से विकास के नए द्वार खोल सके।
हमारा एक सपना है कि 2022 में जब भारत अपनी आजादी के 75 साल मनाता होगा, तब हिन्दुस्तान के हर गांव में 24 घंटे बिजली उपलब्ध होनी चाहिए। इस काम को गति देने के लिए मैं regular monitoring खुद करता हूं। कुछ दिन पहले मैंने एक मीटिंग में पूछा कि हमारे देश में कितने गांव ऐसे हैं कि जहां अभी बिजली का खंभा भी नहीं लगा है। और ध्यान में आया कि आजादी के करीब-करीब 75 साल होने जा रहे है, 18 हजार गांव इस देश में ऐसे हैं जहां बिजली का खंभा भी नहीं लगा है। अब इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है? और इसलिए हमने बीड़ा उठाया है – 1,000 दिन में - जो काम 70 साल में नहीं हुआ - 1,000 दिन में मुझे 18 हजार गांव जहां बिजली पहुंचानी है। सरकारी मशीनरी को समय सीमा का target दिया है और regular उसका monitoring चलता है कि कितनी जगह पर खंभे पहुंचे, कहां पर गड्डे डाले, कहां खंभे खड़े हुए, तार कहां-कहां पहुंचा।
दूसरा सपना है, 365 दिन 24 घंटे बिजली। आज बिजली के बिना जीवन संभव नहीं है। हमारा युग technology-driven युग है। कुछ तो गांव ऐसे हैं, मोबाइल फोन है लेकिन मोबाइल फोन चार्ज करना है, तो दूसरे गांव जाना पड़ता है। ये स्थिति बदलनी है और इसलिए 24 घंटे अगर बिजली पहुंचानी है। और इसलिए 24 घंटे अगर बिजली पहुंचानी है, तो देश में व्यापक रूप से बिजली का उत्पादन करना चाहिए। कोयले से बिजली मिल रही है, गैस से बिजली मिल रही है।
लेकिन अब हम ध्यान केंद्रित कर रहे हैं - आज मैंने श्री श्रीनगर में जम्मू कश्मीर और लद्दाख इस क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए 80 हजार करोड़ रुपये का पैकेज घोषित किया है। इन 80 हजार करोड़ के पैकेज में लेह-लद्दाख जहां पर सोलर एनर्जी की बहुत संभावना है। वहीं सोलर एनर्जी से बिजली तैयार हो। और लेह लद्दाख और करगिल के इलाके में वहीं से बिजली उपलब्ध हो, उसकी भी इस पैकेज के अंदर व्यवस्था की है।
हमने एक अभियान चला है पूरे देश में, “बिजली बचाओ”। जैसे बिजली उत्पदन का महत्व है, जैसे बिजली पहुंचाने का महत्व है, उससे भी ज्यादा बिजली बचाने का महत्व है और आज Technology इतनी बदली है कि आप बिजली भी बचा सकते है और पैसे भी बचा सकते है। LED बल्ब सरकार के द्वारा दिया जा रहा है। सस्ते में दिया जा रहा है। नगरपालिकाओं से आग्रह किया जाता है कि आप स्ट्रीट लाइन में बिजली के जो बल्ब उपयोग करते हैं LED बल्ब उपयोग कीजिए और उसके कारण बिजली का बिल भी कम आता है, बिजली की बचत होती है। अगर आपके परिवार में आज आप ट्यूब लाइट और पुराने वाले बल्ब उपयोग करते हैं, लेकिन अगर LED बल्ब लगा दें, तो एक परिवारको 50 रुपया, 100 रुपया, 200 रुपया बिजली का बिल कम हो जाएगा। आपका पैसा बच जाएगा। और अगर बिजली बचेगी तो गरीब के घर में हम बिजली दे पाएंगे। तो बिजली का उत्पादन, बिजली पहुंचाने का प्रयास, renewable energy.
स्वच्छ भारत मिशन पर हम काम कर रहे हैं। Waste में से wealth – शहर का जो कूड़ा-कचरा जो है उसमें से बिजली कैसे पैदा करे, ताकि सफाई भी हो और बिजली का उत्पादन भी हो? उस पर भी योजना चल रही है। और इसलिए विकास के नये क्षेत्रों में प्रवेश करने के लिए उद्योगों को लाने के लिए, Technology के लिए बिजली का महात्मय अनिवार्य हो गया है।
आज दूसरा एक प्रोजेकट हो रहा है – रोड का। हम जानते हैं कि एक जमाना था जब लोग नदी के पास शहर बसाते थे, जिंदगी गुजारते थे। जहां से नदी गुजरती थी वहीं जीवन विकसित होता था। लेकिन बाद में कालखंड ऐसा आया कि जहां से हाईवे गुजरता है। उसके अगल-बगल में ही लोग बसना शुरू करते हैं। क्योंकि connectivity आज के युग में अनिवार्य हो गई। और सिर्फ काला रंग बिछा दिया, तार रोड का ऐसे ही, अब लोगों को वो नहीं चलता है। आजकल अगर हमें भी कोई memorandum भेजता है, तो यह नहीं कहता कि साहब रोड बनाना है। वो कहता है साहब फोर लेन चाहिए, paver road चाहिए। हम कहते है कि गांव में जाना है भाई। नहीं, नहीं साहब जमाना बदल गया है paver road चाहिए। सामान्य मानव की सोच और अपेक्षाएं बदलती जा रही है। और इसलिए रोड आधुनिक बने, रोड का समायानुकूल नया architecture हो। रोड के निर्माण में नई टेक्नोलोजी हो, नया material हो इस पर हम बल दे रहे हैं।
अभी नितिन जी बता रहे थे कि आपका समय बच जाएगा। अब हमारे यहां कहा जाता है कि Time is money अगर समय बच जाता है तो कितने पैसे बचते हैं। अगर जम्मू से मुझे श्रीनगर जाना है। और अगर 10, 12 घंटे की बजाय दो-चार घंटे में पहुंचता हूं तो मेरा पूरा दिन बच जाता है। और इसलिए अब जो रोड बनाने होते हैं इन बातों को ध्यान में रखकर बनाए। पहले शायद रोड बनाने के खर्च बढ़ गए, क्योंकि Quality में improvement आया है, material में बदलाव आया है। Technology बदल गई। जम्मू-श्रीनगर के बीच का यह रोड देश में जो Tourist के नाते यहां आते हैं उनके लिए यह रोड, यह टनल देखना यह भी एक टूरिज्म बनने वाला है। लोग कहेंगे हवाई जहाज से नहीं जाना है। यह नौ किलोमीटर की टनल देखे तो सही कैसी है। भारत की इतनी बड़ी, लम्बी टनल जरा एक बार मुलाकात तो करे, वो टूरिज्म का केंद्र बन जाएगा, आप देखना।
और इसलिए विकास को ऐसी ऊंचाईयों पर ले जाना उस दिशा में हमारा प्रयास है। आने वाले दिनों में रेल हो, रोड हो, पानी हो, बिजली हो - यह आधुनिक रूप से लोगों को कैसे मिले? इस पर हम काम कर रहे हैं। आज 80 हजार करोड़ रुपये का पैकेज दिया। 80 हजार करोड़ के पैकेज में पिछले वर्ष जो बाढ़ आई, जम्मू की तरफ कच्चे मकान थे, गांव के गांव ढह गए। मैं उस समय यहां आया था। श्रीनगर के अंदर पक्के मकान थे। हमने जो पैकेज दिया है उसमें जम्मू में बाढ़ के कारण जो नुकसान हुआ है, श्रीनगर में जिनको बाढ़ के कारण नुकसान हुआ है, उन सबको ताकत देने का प्रयास है। जिनके व्यापार को नुकसान हुआ है, उनको खड़े करने की कोशिश है। कई अस्पताल, कई स्कूल, कई रोड, कई पुलिया उसका जो नुकसान हुआ है उसे भी फिर से कार्यरत करने की दिशा में जो करना पड़े - वो भी उसमें व्यवस्था है।
लेकिन साथ-साथ जम्मू कश्मीर को एक नई ताकत भी मिलनी चाहिए। और जम्मू कश्मीर को नई ताकत मिलेगी, नौजवानों को रोजगार मिलने से। रोजगार के अवसर कैसे उत्पन्न हो? रोजगार की संभावनाएं कैसे बढ़े? उसके लिए क्या-क्या करना चाहिए? इसको ध्यान में रख करके यह 80 हजार करोड़ रुपये का पैकेज दिया है। अब जैसे इसी जम्मू कश्मीर में India Reserve बटालियन बनाने का निर्णय लिया गया है। यह पांच IR बनने का मतलब है इस राज्य के चार हजार नौजवानों का रोजगार। यानी चार हजार परिवारों में आर्थिक व्यवस्था, ऐसे तो अनेक विषय लिये - Skill Development का, शिक्षा के लिए IIT, IIM अस्पताल, एम्स यह सारी व्यवस्थाएं विकसित होती है। तो जब उसका निर्माण होता है, तब तो लोगों को रोजगार मिलता है। लेकिन निर्माण होने के बाद भी विकास के लिए नये अवसर उत्पन्न होते हैं, रोजगार के नये अवसर उत्पन्न होते हैं।
शायद हिंदुस्तान में जम्मू-कश्मीर को जो मुसीबत झेलनी पड़ी है, वो मुसीबत और राज्यों को झेलनी नहीं पड़ी है। वो मुसीबत यह है 1947 से लाखों की तादाद में विस्थापितों को समूह इस भू-भाग पर है। करीब-करीब इस राज्य के 15-20 प्रतिशत जनसंख्या विस्थापित के रूप में है। यह छोटी वेदना नहीं है, यह बहुत बड़ी पीड़ा का विषय है। यह समय की मांग है की ‘47 के विस्थापित हो या कश्मीर से निकाले गए पंडित हो - इन सबके पुनर्वसन के लिए, उनको एक सम्मानजनक जिंदगी जीने के लिए व्यवस्था करना आवश्यक है। इस 80 हजार करोड़ के पैकेज में ‘47 से ले करके अब तक जितने भी विस्थापित परिवार है उनके पुनर्वसन में भी उसका प्रावधान है।
कहने का तात्पर्य यह है कि जम्मू कश्मीर जिन-जिन समस्याओं से जूझ रहा है, उन सभी समस्याओं को address करने का इस 80 हजार करोड़ के पैकेज में प्रयास है। साथ-साथ जम्मू कश्मीर हिंदुस्तान के अन्य राज्यों की बराबरी में आर्थिक ताकत के साथ अपने पैरों पर कैसे खड़ा हो, जम्मू कश्मीर का नौजवान रोजगार का हकदार कैसे हो, विकास की नई क्षीतिज जम्मू कश्मीर में कैसे नजर आए, टूरिज्म फिर से कैसे पनपे - इन सारे विषयों को ध्यान में रख करके यह 80 हजार करोड़ का पैकेज जम्मू-कश्मीर के इतिहास में यह सबसे बड़ा पैकेज है, सबसे बड़ा पैकेज है। और मैंने आज श्रीनगर में कहा है, आप जितना तेजी से खर्चा करोगे, आप जितना perfect progress करोगे, जितना पाई-पाई का हिसाब पहुंचाओगे, तो लिख लिजिए आप लिखकर रखिये कि 80 हजार का package, ये पूर्ण विराम नहीं होगा, ये शुभ शुरूआत होगी, अगर ये काम आगे अच्छा बढ़ा। और इसलिए ये 80 हजार करोड़ एक सैम्पल है। आप कैसे लागू करते है, कितनी तेजी से लागू कर सकते है, कितना अच्छे ढंग से लागू कर सकते हैं, जनता कितनी इसमें भागीदार बनती है तो फिर दिल्ली का खजाना और दिल्ली का दिल दोनों जम्मू-कश्मीर के लिए समर्पित है।
इन दिनों मैं खासकर के नौजवानों से कहना चाहता हूं। भारत सरकार की जो योजनाएं हैं उसमें कुछ योजनाएं बड़ी अहम है, जिसका आप फायदा उठाइए। एक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना शुरू की है और ये मुद्रा योजना ऐसी है कि जो हमारे देश के सामान्य व्यापार करने वाले लोग है, छोटा-मोटा कारोबार करने वाले लोग है। कोई अखबार बेचता होगा, कोई दूध बेचता होगा, कोई फल बेचता होगा, कोई माता वैष्णो देवी का प्रसाद बेचता होगा, कोई छोटा-सा ढाबा चलाता होगा, कोई चने-मुरमुरे बेचता होगा, कोई कपड़े बेचता होगा, कोई गांव-गांव जाकर के बर्तन बेचता होगा, छोटे-छोटे लोग। इन लोगों को हजार रुपया भी चाहिए अपने माल लाने के लिए तो साहूकार के पास जाकर के बहुत ऊंचे ब्याज से पैसा लाना पड़ता है और वो कमाई करता है, उससे आधे से ज्यादा पैसा वो साहूकार के जेब में चला जाता है, ब्याज में चला जाता है। एक गरीब आदमी, सामान्य व्यापारी, छोटा व्यापारी। उसको कभी पांच हजार पैसे, दस हजार पैसे चाहिए तो उसके हाथ कुछ लगता नहीं है और बैंक कभी इन लोगों की तरफ देखने को तैयार नहीं थी। बैंकों के सामने तो बड़े-बड़े लोग आ जाए, उसी में उनका interest था। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत ऐसे लोगों को बैंक का लोन देने का काम चल रहा है। और इसकी विशेषता यह है कि आपको कोई गारंटी नहीं देनी पड़ेगी। 50 हजार रुपया तक आपको ये रुपए मिल सकते हैं और आप अपना कारोबार शुरू कर सकते हैं। आप तो अपने आप को तो रोजगार देंगे साथ में आप एकाध-दो व्यक्तियों को रख लेंगे तो उनको भी रोजगार मिलता है। अब तक 60 लाख लोगों को इस प्रकार से पैसे दिए जा चुके हैं पूरे हिन्दुस्तान में। मैं जम्मू-कश्मीर के नौजवानों को कहता हूं कि आप बैंकों का संपर्क कीजिए, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को समझिए, योजना लेकर के जाइए और आप भी अपने पैरों पर खड़े हो जाइए, ये बैंक आपके लिए खड़ी हुई है।
उसी प्रकार से, हमने एक और योजना बनाई है नौजवानों के लिए, “स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया”। जिनके पास कोई न कोई technology का स्वभाव है, नई-नई चीजें करने का स्वभाव है, innovation करने का स्वभाव है, अगर वो इसमें कोई उत्पादन में जाना चाहता है तो सरकार उसको हर प्रकार से मदद करना चाहती है। नौजवान आए मैदान में, अपनी बुद्धि प्रतिभा का उपयोग करे, सरकार उनको धन देना चाहती है। और मैंने बैंकों को कहा है कि हर branch एक दलित या tribal और एक महिला - कम से कम दो लोगों को स्टार्ट अप के लिए लोन दे। वो मुद्रा योजना से अलग है, ये तो ज्यादा लगेगा, 10 लाख, 20 लाख रुपया लगेगा। उसकी मैंने एक योजना बनाई है। मैं नौजवानों को आग्रह करता हूं कि सरकार की इस योजना का फायदा उठाइए, आप अपने पैरों पर खड़े हो जाइए, विकास की नई ऊंचाइयां अपनी जिन्दगी में पार कीजिए। आज दिल्ली में ऐसी सरकार है जो सिर्फ आपके लिए जीती है, आपके लिए कुछ करना चाहती है। आप आगे आइए, आप इसका भरपूर फायदा उठाइए।
भाइयों-बहनों, आज मुझे जम्मू-कश्मीर में जो आप सब भाइयों-बहनों ने प्यार दिया है, स्वागत सम्मान किया है, मैं इसके लिए आपका बहुत-बहुत आभारी हूं और हमारे नितिन जी, देश को बड़ी तेज गति से दौड़ाने में लगे हुए हैं। चारों तरफ रोड बनाने का काम चल रहा है। पहले मुझे बताते थे कि एक दिन में दो किलोमीटर होता था। हमारे देश में हमारी सरकार बनने से पहले हिन्दुस्तान का हिसाब लगाते थे तो average एक दिन में दो किलोमीटर रोड बनता था। पूरे देश में कहीं जो भी बनता था तो उसका हिसाब लगाए तो एक दिन में दो किलोमीटर था। हमारे नितिन जी ने पिछले 17 महीने में मेहनत करके एक दिन में 18 किलोमीटर तक पहुंचाया है।
काम कैसे होता है? कुछ लोगों को तो यही समझ नहीं है कि इसको काम कहा जाए या नहीं कहा जाए। उनको तो समझ ही नहीं आता है। अब मुझे बताइए कि 15 अगस्त से 26 जनवरी के बीच में 10 करोड़ बैंक के खाते खुल जाए। जिस गरीब को कभी बैंक के दरवाजे पर जाने का सौभाग्य नहीं मिला था - इसको काम कहा जाए या नहीं कहा जाए? हिन्दुस्तान में एक साल के भीतर-भीतर सभी girl child स्कूलों में टॉयलेट बनाने का काम पूरा हो जाए, चार लाख से ज्यादा स्कूलों में टॉयलेट बन जाए - इसको काम कहा जाए या नहीं कहा जाए? लेकिन जो आपको समझ में आता है, उनको नहीं आता है। ऐसे तो मैं सैंकड़ों चीजें आपको गिना सकता हूं... बहुत-बहुत धन्यवाद आप सबका। Thank you.