योग ने मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित किया है। यह स्वास्थ्य और कल्याण के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण है: प्रधानमंत्री
योग मानवता के लिए एक सौहार्दपूर्ण भविष्य का एक सपना है: प्रधानमंत्री मोदी
एक स्वस्थ शरीर और अनुशासित मन भयमुक्त संसार का आधार है: प्रधानमंत्री

आज यहां उपस्थित और दुनिया भर में योग के प्रशंसक साथियों, 

आज हम पहला अंतर्राष्‍ट्रीय योग दिवस मना रहे हैंा जब मैंने 27 सितंबर, 2014 को संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा में भाषण के दौरान वैश्विक समुदाय से अनुरोध किया था कि अंतर्राष्‍ट्रीय योग दिवस मनाया जाए। उसके बाद जो उत्‍साह देखा गया वैसा मैंने बहुत कम देखा है।

देशों के समुदाय ने एकजुट होकर जवाब दिया। 11 दिसंबर, 2014 को 193 सदस्‍यों की संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा ने रिकॉर्ड 177 समर्थक देशों के साथ आमसहमति से इस प्रस्‍ताव का अनुमोदन कर दिया। वैसे UN के इतिहास में अपने आप में एक बहुत बड़ी घटना है। 
आज जब मैं यहां अंतर्राष्‍ट्रीय योग दिवस पर खड़ा हूं तो दुनिया भर में योग दिवस मनाया जा रहा है। 
दुनिया भर में लाखों लोग इस आयोजन में भाग ले रहे हैं। सुदूर पूर्व में सूर्योदय से लेकर पश्चिम में सूर्यास्‍त तक लोग आज इस भव्‍य योग दिवस का आयोजन करेंगे।

भारत में, आज सुबह राजपथ पर, राज्‍यों में और जिला मुख्‍यालयों, समुदाय समूहों में और अपने घरों में भी लाखों लोगों ने सरल योगासन किए। योग दिवस पर अन्‍य देशों के हमारे भाइयों-बहनों में यह एकता की भावना हमारे दिलों और दिमागों को करीब लाई है। मुझे यहां इस अवसर पर स्‍मारक सिक्‍का और डाक टिकट जारी करते हुए बहुत खुशी हो रही है।

मैं समर्थन के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय का आभारी हूं। मैं पूरी विनम्रता से स्‍वीकार करता हूं कि यह समर्थन सिर्फ भारत के लिए ही नहीं है। यह समर्थन योग की महान परंपरा के लिए है। वह परंपरा जो व्‍यक्तियों और समाजों को आत्‍मएकता और एक दूसरे के साथ एकता की भावना की खोज करने में मदद करती है।

कहा जाता है कि योग जीवन का कायाकल्‍प करता है । जो लोग योगा से परिचित है उन्‍हें पता है कि योगा एक प्रकार से अगर हममें से कोई ऐसा नहीं होगा दुनिया में कोई इंसान ऐसा नहीं होगा जो ये न चाहता हो कि वो जीवन को जी-भर जीना चाहता है। हर कोई जीवन को जी-भरके जीना चाहता है और मैं विश्‍वास से कहता हूं कि योग ये जीवन को जी-भरके जीने की जड़ी-बूटी है। 

योग से पूरा फायदा उठाने के लिए, योग को सम्‍पूर्णता से समझने के लिए हमे समझना चाहिए कि योगी कौन है।

योगी वह व्‍यक्ति है जो सामंजस्‍य के साथ अपने आप में, अपने शरीर और अपने आसापास प्रकृति के साथ रहता है। योग का मतलब यही समांजस्‍य हासिल करना है।

उपनिषदों में योग का मतलब है शरीर के नियंत्रण के जरिए और स्थिर अभ्‍यास के जरिए भावना पर नियंत्रण के माध्‍यम से मानव चेतना का कायाकल्‍प। शरीर उस सर्वोच्‍च अवस्‍था को साक्षात बनाने का माध्‍यम है।

भगवद गीता दुनिया का गीत है जो योगशास्‍त्र को परिभाषित करती है। योगशास्त्र . गीता कहती है,  “योग कर्मेषु कौशलम्” – अर्थात योग कार्य की उत्‍कृष्‍टता है। समर्पण और निस्‍वार्थ कर्म ही योग है।

गीता यह भी कहती है  “योगस्य तथा कुरू कर्माणी” – योगी के विवेक से कर्म। 

इसलिए योग मानवता के लिए साकल्‍यवादी भविष्‍य के लिए दृष्टिकोण है। यह एक “अवस्था” है। जो दिमाग की अवस्‍था है, एक  “व्यवस्था”. कई लोगों को योग एक व्यवस्था के रूप में दिखता है, योग एक अवस्था है, योग कोई संस्था नहीं है। योग य़ह आस्था है और जब तक हम उसे उस रूप में नही पाते, जब तक हम उसे टुकड़ो में देखते हैं उसकी पूर्णता को पहचान नहीं पाते। 

योग के बहुत से लाभ हैं। जो सही ढंग से अनुशासन के साथ योग करते हैं। योग उन्‍हें -

हमारे शरीर की ताकत, कौशल और सामन्‍य भलाई, शांतिपूर्ण एवं तनावमुक्‍त जीवन की ओर ले  जाता है। कभी- कभार योगा की शक्ति को पहचानने में भी हम वैसी ही गलती कर देते हैं, जैसी हम अपने आप को पहचानने में करते हैं। जिस व्यक्ति ने वृक्ष नही देखा है, बीज से वृक्ष बनता है उसका ज्ञान नही है और उसे कोई बीज बता दे कि देखो कि इसमें ये व्‍यक्तिगत है कि इतना महान वृक्ष बन सकता है, तो वो विश्वास नही करेगा वो सैंकड़ो सवाल पूछेगा । लेकिन उसी छोटे से बीज का अगर उचित लालन-पालन हो खान-पान हो, ऊर्जा हो, पानी हो, प्रकृति का साथ हो तो वही बीज वटवृक्ष में रूपांतरित  हो जाता है| मनुष्य के भीतर भी परमात्मा ने सभी शक्तियां दी हुई है। मुझे दिया है और आपको नही दिया है, ऐसा नही है | मानव मात्र को यह सामर्थय दिया हुआ है लेकिन जो उसके लालन-पालन की कला जानता है, जो उसे विकसित करने का अवसर प्राप्त करता है, जो व्यव्स्था के तहत, आस्था के तहत, practice के तहत धीरे-धीरे विकसित करता है तो वो भी उत्कृष्ट जीवन की उंचाईयों को प्राप्त कर सकता है और परमात्मा ने जीव मात्र मे जहां है वहां से ऊपर उठने की सहज इच्छाशक्ति दी है और योग उस परिस्थिति को पैदा करने का एक माध्यम है और इसलिए जिसको ज्ञान नही है, अनुभव नही है उसको शक होता है कि क्या योगा से संभव हो सकता है लेकिन जिसने बीज से बने वृक्ष की कथा को समझा है, उसके लिए यह संभव है। यदि बीज वटवृक्ष में परिवर्तित हो सकता है तो नर भी नारायण की स्थिति प्राप्त कर सकता है। अहम् बर्ह्मास्मि। रामदेव जी कह रहे थे अहम् बर्ह्मास्मि। जल, चेतन सबकुछ को अपने में समाहित करने का सामर्थय तब प्राप्त होता है जब स्वयं का विस्तार करते हैं। योगा एक प्रकार से स्व से समस्ति की यात्रा है। योगा एक प्रकार से अहम् से व्यम की ओर जाने का मार्ग है और इसलिए जो अहम् से व्यम की ओर जाना चाहता है जो स्व से समस्ति की ओर जाना चाहता है, जो प्रकृति के साथ जीना सीखना चाहता है, योग उसको अंगुली पकड़ के ले जाता है, चलना तो उसको ही पड़ता है और उस अर्थ में इसके सामर्थय को अगर जानें। और आज खुशी की बात है, जब हमने 20वीं शताब्दी की समाप्ति से 21वीं शताब्दी में प्रवेश किया। उस पल को याद कीजिए। पूरे विश्व में सूरज की किरणें जहां जहां जाती थी, आनंद उत्सव बनाया था। जब सदी  बदली थी वो पल कैसा था आज दुबारा वो पल विश्व अनुभव कर रहा है। जहां- जहां सूरज की किरणे जा रहीं हैं। योग को अभिषिक्त करती जा रही है। पूर्व से पश्चिमी छोर तक ये यात्रा चल रही है। ये वैसा ही अवसर पैदा हुआ है जैसा 20वीं शताब्दी की समाप्ति से 21वीं शताब्दी में प्रवेश का पल था और विश्व ने जो अनुभूति की थी वो विश्व आज योगा के लिए कर रहा है। हर भारतीय के लिए, हर योगा प्रेमी के लिए, विश्व के हर कोने में बैठे व्यक्ति के लिए इससे बड़ा कोई गौरव नहीं हो सकता और उस गौरवगान में जब हम आगे बढ़ रहे हैं तब प्राण पर नियंत्रण स्‍वास्‍थ्‍य, लंबे और रोग मुक्‍त जीवन की ओर ले जाता है और जीवन की पूर्ण क्षमता हासिल कराता है।
इसलिए योग बदलती दुनिया का प्रतीक है। अतीत में योग को चुनिंदा संतों से संरक्षित रखा। आज यह पतंजलि के शब्‍दों में सबके लिए उपलब्‍ध है जो सार्वभौम है।

आप कल्पना कर सकते है कि श्री अरबिंदो के ज़माने में ये कहीं नज़र नहीं आता था कि योग जन सामान्य का विषय बनेगा, बहुत ही सीमित दायरे में था लेकिन योगी अरविन्द के दृष्टि थी और उन्होंने ये तब देखा था कि वो वक्त आएगा जब योग जनसामान्य के जीवन का हिस्सा बनेगा. वो कुछ परम्पराओं में या संतों तक सीमित नहीं रहेगा , वो जन जन तक पहुंचेगा . आज से करीब 75 साल पहले श्री अरविन्द ने जो देखा था वो आज हम अनुभव कर रहे हैं . और यही तो ऋषि मुनियों के सामर्थ्य का परिचायक होता है और ये ताकत आती है योग के समर्पण से , योग कि अनुभूति से और योगमय जीवन से आती है.

इस दिन मैं भारत की भावना की, हमारे लोगों की सामूहिक ऊर्जा के साथ अधिक बराबरी वाले संसार के सृजन की प्रतिज्ञा करता हूं ऐसा संसार जहां भय न हो और शांति हो। हम वसुधैव कुटुम्बकम की परिकल्‍पना को साकार करेंगे।

मैं सबके स्‍वास्‍थ्‍य और शांति - शांति पथ की कामना के साथ अपनी बात समाप्‍त करूंगा।

सर्वे भवंतु सुखिन्

सर्वे संतु निरामया

सर्वे भद्राणि पस्‍यंतु

मा कस्चित दुख भागभवेत

सब खुश रहें

सब निरोग रहें

सब शुभ देखें

कोई पीड़ा न झेले

आप सब को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनायें देता हूँ और ये दो दिवसीय सेमिनार... विश्‍व की हमसे अपेक्षाएं बहुत बढ़ जाएगी। अब यह हमारा दायित्‍व बनता है कि विश्‍व की अपेक्षाओं के अनुकूल योग के सही रूप को और समयानुकूल स्थिति में, हम जगत तक कैसे पहुंचाएं? दुनिया समझे उन शब्‍दों में, हम इसे कैसे पहुंचाएं? 

मैं कभी-कभी कहता हूं कि अच्‍छे-से-अच्‍छे मोबाइल फोन  की ब्रैंड हो लेकिन बहुत कम लोग होते हैं जिनको उसके यूजर-मैन्‍युअल  का अता-पता होता है। ज्‍यादातर तो लाल और हरे बटन  से ही उसका संबंध रहता है टेलीफोन कट  करना और टेलीफोन ऑन  करना और जिसको उसका ज्ञान होता है यूजर-मैन्‍युअल  का उस छोटी सी चीज से अपनी हथेली में सारी दुनिया को अपने हाथ में कर लेता है। परमात्‍मा ने हमें भी जो साफ्टवेयर  दिया है न हमें उसके यूजर-मैन्‍युअल  का पूरा पता ही नहीं है। हमें भी मालूम नहीं है कि परमात्‍मा ने हमें क्‍या-क्‍या दिया है? अगर हम योगा के माध्‍यम से उस यूजर-मैन्‍युअल  को पढ़ना सीख लें तो फिर उपयोग करना धीरे-धीरे आ ही जाएगा। 

मैं कभी-कभी सोचता हूं मेरी लिखाई तो अच्‍छी नहीं है लेकिन आपने देखा होगा कि एक शिक्षक जो कि अच्‍छी लिखाई  के प्रति बड़े आग्रही हैं। कक्षा में अपने विद्यार्थी को सिखाते हैं लेकिन कुछ बच्‍चे होते है जिनकी लिखाई  बहुत अच्‍छी तरह सुधरने लग जाती है और कुछ लोग होते है पेन  वैसे ही पकड़ते हैं बेहतरीन गुणता  का पेन भी होता है कागज भी बढि़या से बढि़या होता है शिक्षक  भी भरपूर मेहनत करता है वो भी ऐसे ही हाथ घुमाता है लेकिन लिखाई  अच्‍छे नहीं आती फर्क किया है जिसके लिखाई  उत्‍तरोत्‍तर ठीक होने लगती है और एक अवस्‍था ऐसी आ जाती है कि वो कितनी ही भीड़-भाड़ में क्‍यों न हो, कितनी ही जल्‍दी में क्‍यों न हो बुढ़ापे की ओर चल दिया हो, हाथ थोड़ा कांपने लगा हो तो भी लिखाई  अच्‍छी ही रहती है। उसको कोई चेतन प्रयास  नहीं करना पड़ता है। कोई जागरूक प्रयास नहीं करना पड़ता, वो सहज अवस्‍था होती है ...क्‍यों? उसने उसको आत्‍मसात कर दिया है। जिसकी लिखाई खराब है और वो चेतना  किसी विशेष व्‍यक्ति को चिठ्ठी लिखना चाहता है एक-दो लाईन तक तो ठीक कर लेता है फिर लुढ़क जाता है क्‍योंकि आत्‍मसात  नहीं किया है। 

योग को समझने के लिए, मैं मानता हूं जिस बालक ने बचपन में तुरंत इसको अपना  कर लिया अच्‍छे हस्‍तेलेखन  का कारण होगा उसके मन में जो चित्र बनता होगा उसकी आत्‍मा उसके साथ जुड़ती होगी, उसकी बुद्धि उसको आदेश देती होगी, उसका शरीर काम  करता होगा और वो परम्‍परा जीवनभर चलती होगी, वो योग का एक छोटा-सा रूप है और इसलिए मैं कहता हूं कि अभ्‍यास  से, प्रशिक्षण  से हम इन अवस्‍थाओं को प्राप्‍त कर सकते है और इन अवस्‍थाओं को प्राप्‍त करने के लिए अगर हम और ये बात सही है कि कोई बहुत बड़ी-बड़ी बातें बताता है तो फिर कठिनाई हो जाती है, फिर धीरे-धीरे विश्‍वास डूबने लग जाता है लेकिन छोटी-छोटी बातों से देखें तो पता चलता है यार ये तो मैं भी कर सकता हूं, ये तो दो कदम मैं भी चल सकता हूं। हमने विश्‍व के सामने योग का वो रूप लाना है कि भाई ठीक है आज नहीं लेकिन दो कदम चलो तो तुम पहुंच जाओगे। अगर ये हमने इसको बनाया तो मैं समझता हूं कि बहुत बड़ा लाभ होगा। 

भारत के सामने एक बहुत बड़ी जिम्‍मेवारी है, मैं बहुत जिम्‍मेवारी के साथ कहता हूं अगर योग को हम कमोडिटी  बना देंगे तो शायद योग का सबसे ज्‍यादा नुकसान हमारे ही हाथों हो जाएगा। योग एक कमोडिटी  नहीं है, योग वो ब्रैंड  नहीं है जो बिकाऊ हो सकती है। ये जीवन को जोड़ने वाला, जीवन को प्रकृति से जोड़ने वाला एक ऐसा महान उद्देशय है जिसको हमने चरितार्थ करना है और विश्‍व भारत की तरफ देखेगा और ये बात सही है आज से 50 साल पहले कभी भी हमने बाजार में बोर्ड  देखा था “शुद्ध घी की दुकान” देखा था 50 साल पहले शुद्ध घी की दुकान ऐसा बोर्ड नहीं होता था लेकिन आज होता है क्‍यों? क्‍योंकि बाजार में माल आ गया है। योगा के संबंद्ध में कभी ऐसा न आना चाहिए वो दिन अभी तो बचे हुए है लेकिन कभी वैसा दिन नहीं आना चाहिए कि हमारा ही योगा सच है बाकि तो तुम बे-फालतु में कान-नाक पकड़ करके डॉलर खर्च कर रहे हो। ये व्‍यापार नहीं है, व्‍यवस्‍था नहीं है, ये अवस्‍था है और इसलिए जगत के कल्‍याण के लिए, मानव के कल्‍याण के लिए, मानव के भाग्‍य को बदलने के लिए ये भारत की भूमि का योगदान है। उसमें संजोने-संवारने को काम भारत के बाहर के लोगों ने भी किया है उनका भी ऋण स्‍वीकार करना होगा। इसे हम हमारी बपौती बना करके न बैठे ये विश्‍व का है, मानवजात का है और मानवजात के लिए है। ये इस युग का नहीं अनेक युगों के लिए है और समय के अनुकूल उसमें परिवर्तन भी आने वाला है। 

जिन्‍होंने, जैसे हेगड़े जी बता रहे थे सोलर  विमान के अंदर योगा किया होगा तो हो सकता है जगह कम होगी तो उनको वो योगा सिखाया होगा कि भई तुम ऐसे नाक पकड़ों, ऐसे पैर करो, हाथ नहीं हिलता तो कोई नहीं ऐसे कर लो उन्‍होंने संशोधित  किया होगा। तो जहां जैसी आवश्‍यकता हो वैसे परिवर्तन करते हुए इसको और आधुनिक बनाना और अधिक वैज्ञानिक बनाना और विज्ञान की कसौटी पर कसता चला जाए तो विश्‍व कल्‍याण के इस काम को हम करते रहेंगे, करना होगा और उस जिम्‍मेवारी को हम निभाते रहेंगे। 

मैं फिर एक बार इस सारे अभियान में विश्‍वभर का ऋणी हूं। विश्‍व की सभी सरकारों का ऋणी हूं, विश्‍व के सभी समाजों का ऋणी हूं और मैं सबका बहुत-बहुत आभार व्‍यक्‍त करता हूं। 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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January 04, 2025
हमारा विजन गांवों को विकास और अवसर के जीवंत केंद्रों में बदलकर ग्रामीण भारत को सशक्त बनाना है: प्रधानमंत्री
हमने हर गांव में बुनियादी सुविधाओं की गारंटी के लिए अभियान शुरू किया है: प्रधानमंत्री
हमारी सरकार की नीयत, नीतियां और निर्णय ग्रामीण भारत को नई ऊर्जा के साथ सशक्त बना रहे हैं: प्रधानमंत्री
आज, भारत सहकारी संस्थाओं के जरिए समृद्धि हासिल करने में लगा हुआ है: प्रधानमंत्री

मंच पर विराजमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी, वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी जी, यहां उपस्थित, नाबार्ड के वरिष्ठ मैनेजमेंट के सदस्य, सेल्फ हेल्प ग्रुप के सदस्य,कॉपरेटिव बैंक्स के सदस्य, किसान उत्पाद संघ- FPO’s के सदस्य, अन्य सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनों,

आप सभी को वर्ष 2025 की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। वर्ष 2025 की शुरुआत में ग्रामीण भारत महोत्सव का ये भव्य आयोजन भारत की विकास यात्रा का परिचय दे रहा है, एक पहचान बना रहा है। मैं इस आयोजन के लिए नाबार्ड को, अन्य सहयोगियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

साथियों,

हममें से जो लोग गाँव से जुड़े हैं, गाँव में पले बढ़े हैं, वो जानते हैं कि भारत के गाँवों की ताकत क्या है। जो गाँव में बसा है, गाँव भी उसके भीतर बस जाता है। जो गाँव में जिया है, वो गाँव को जीना भी जानता है। मेरा ये सौभाग्य रहा कि मेरा बचपन भी एक छोटे से कस्बे में एक साधारण परिवेश में बीता! और, बाद में जब मैं घर से निकला, तो भी अधिकांश समय देश के गाँव-देहात में ही गुजरा। और इसलिए, मैंने गाँव की समस्याओं को भी जिया है, और गाँव की संभावनाओं को भी जाना है। मैंने बचपन से देखा है, कि गाँव में लोग कितनी मेहनत करते रहे हैं, लेकिन, पूंजी की कमी के कारण उन्हें पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाते थे। मैंने देखा है, गाँव में लोगों की कितने यानी इतनी विविधताओं से भरा सामर्थ्य होता है! लेकिन, वो सामर्थ्य जीवन की मूलभूत लड़ाइयों में ही खप जाता है। कभी प्राकृतिक आपदा के कारण फसल नहीं होती थी, कभी बाज़ार तक पहुँच न होने के कारण फसल फेंकनी पड़ती थी, इन परेशानियों को इतने करीब से देखने के कारण मेरे मन में गाँव-गरीब की सेवा का संकल्प जगा, उनकी समस्याओं के समाधान की प्रेरणा आई।

आज देश के ग्रामीण इलाकों में जो काम हो रहे हैं, उनमें गाँवों के सिखाये अनुभवों की भी भूमिका है। 2014 से मैं लगातार हर पल ग्रामीण भारत की सेवा में लगा हूँ। गाँव के लोगों को गरिमापूर्ण जीवन देना, ये सरकार की प्राथमिकता है। हमारा विज़न है भारत के गाँव के लोग सशक्त बने, उन्हें गाँव में ही आगे बढ़ने के ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलें, उन्हें पलायन ना करना पड़े, गांव के लोगों का जीवन आसान हो और इसीलिए, हमने गाँव-गाँव में मूलभूत सुविधाओं की गारंटी का अभियान चलाया। स्वच्छ भारत अभियान के जरिए हमने घर-घर में शौचालय बनवाए। पीएम आवास योजना के तहत हमने ग्रामीण इलाकों में करोड़ों परिवारों को पक्के घर दिए। आज जल जीवन मिशन से लाखों गांवों के हर घर तक पीने का साफ पानी पहुँच रहा है।

साथियों,

आज डेढ़ लाख से ज्यादा आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के बेहतर विकल्प मिल रहे हैं। हमने डिजिटल टेक्नालजी की मदद से देश के बेस्ट डॉक्टर्स और हॉस्पिटल्स को भी गाँवों से जोड़ा है। telemedicine का लाभ लिया है। ग्रामीण इलाकों में करोड़ों लोग ई-संजीवनी के माध्यम से telemedicine का लाभ उठा चुके हैं। कोविड के समय दुनिया को लग रहा था कि भारत के गाँव इस महामारी से कैसे निपटेंगे! लेकिन, हमने हर गाँव में आखिरी व्यक्ति तक वैक्सीन पहुंचाई।

साथियों,

ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए बहुत आवश्यक है कि गांव में हर वर्ग को ध्यान में रखते हुए आर्थिक नीतियां बनें। मुझे खुशी है कि पिछले 10 साल में हमारी सरकार ने गांव के हर वर्ग के लिए विशेष नीतियां बनाई हैं, निर्णय लिए हैं। दो-तीन दिन पहले ही कैबिनेट ने पीएम फसल बीमा योजना को एक वर्ष अधिक तक जारी रखने को मंजूरी दे दी। DAP दुनिया, में उसका दाम बढ़ता ही चला जा रहा है, आसमान को छू रहा है। अगर वो दुनिया में जो दाम चल रहे हैं, अगर उस हिसाब से हमारे देश के किसान को खरीदना पड़ता तो वो बोझ में ऐसा दब जाता, ऐसा दब जाता, किसान कभी खड़ा ही नहीं हो सकता। लेकिन हमने निर्णय किया कि दुनिया में जो भी परिस्थिति हो, कितना ही बोझ न क्यों बढ़े, लेकिन हम किसान के सर पर बोझ नहीं आने देंगे। और DAP में अगर सब्सिडी बढ़ानी पड़ी तो बढ़ाकर के भी उसके काम को स्थिर रखा है। हमारी सरकार की नीयत, नीति और निर्णय ग्रामीण भारत को नई ऊर्जा से भर रहे हैं। हमारा मकसद है कि गांव के लोगों को गांव में ही ज्यादा से ज्यादा आर्थिक मदद मिले। गांव में वो खेती भी कर पाएं और गांवों में रोजगार-स्वरोजगार के नए मौके भी बनें। इसी सोच के साथ पीएम किसान सम्मान निधि से किसानों को करीब 3 लाख करोड़ रुपए की आर्थिक मदद दी गई है। पिछले 10 वर्षों में कृषि लोन की राशि साढ़े 3 गुना हो गई है। अब पशुपालकों और मत्स्य पालकों को भी किसान क्रेडिट कार्ड दिया जा रहा है। देश में मौजूद 9 हजार से ज्यादा FPO, किसान उत्पाद संघ, उन्हें भी आर्थिक मदद दी जा रही है। हमने पिछले 10 सालों में कई फसलों पर निरंतर MSP भी बढ़ाई है।

साथियों,

हमने स्वामित्व योजना जैसे अभियान भी शुरू किए हैं, जिनके जरिए गांव के लोगों को प्रॉपर्टी के पेपर्स मिल रहे हैं। पिछले 10 वर्षों में, MSME को भी बढ़ावा देने वाली कई नीतियां लागू की गई हैं। उन्हें क्रेडिट लिंक गारंटी स्कीम का लाभ दिया गया है। इसका फायदा एक करोड़ से ज्यादा ग्रामीण MSME को भी मिला है। आज गांव के युवाओं को मुद्रा योजना, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाओं से ज्यादा से ज्यादा मदद मिल रही है।

साथियों,

गांवों की तस्वीर बदलने में को-ऑपरेटिव्स का बहुत बड़ा योगदान रहा है। आज भारत सहकार से समृद्धि का रास्ता तय करने में जुटा है। इसी उद्देश्य से 2021 में अलग से नया सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया। देश के करीब 70 हजार पैक्स को कंप्यूटराइज्ड भी किया जा रहा है। मकसद यही है कि किसानों को, गांव के लोगों को अपने उत्पादों का बेहतर मूल्य मिले, ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो।

साथियों,

कृषि के अलावा भी हमारे गाँवों में अलग-अलग तरह की पारंपरिक कला और कौशल से जुड़े हुए कितने ही लोग काम करते हैं। अब जैसे लोहार है, सुथार है, कुम्हार है, ये सब काम करने वाले ज़्यादातर लोग गाँवों में ही रहते आए हैं। रुरल इकॉनमी, और लोकल इकॉनमी में इनका बहुत बड़ा contribution रहा है। लेकिन पहले इनकी भी लगातार उपेक्षा हुई। अब हम उन्हें नई नई skill, उसमे ट्रेन करने के लिए, नए नए उत्पाद तैयार करने के लिए, उनका सामर्थ्य बढ़ाने के लिए, सस्ती दरों पर मदद देने के लिए विश्वकर्मा योजना चला रहे हैं। ये योजना देश के लाखों विश्वकर्मा साथियों को आगे बढ़ने का मौका दे रही है।

साथियों,

जब इरादे नेक होते हैं, नतीजे भी संतोष देने वाले होते हैं। बीते 10 वर्षों की मेहनत का परिणाम देश को मिलने लगा है। अभी कुछ दिन पहले ही देश में एक बहुत बड़ा सर्वे हुआ है और इस सर्वे में कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं। साल 2011 की तुलना में अब ग्रामीण भारत में Consumption खपत, यानी गांव के लोगों की खरीद शक्ति पहले से लगभग तीन गुना बढ़ गई है। यानी लोग, गांव के लोग अपने पसंद की चीजें खरीदने में पहले से ज़्यादा खर्च कर रहे हैं। पहले स्थिति ये थी कि गांव के लोगों को अपनी कमाई का 50 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा, आधे से भी ज्यादा हिस्सा खाने-पीने पर खर्च करना पड़ता था। लेकिन आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि ग्रामीण इलाकों में भी खाने-पीने का खर्च 50 प्रतिशत से कम हुआ है, और, और जीवन की चीजें खरीदने ती तरफ खर्चा बढ़ा है। इसका मतलब लोग अपने शौक की, अपनी इच्छा की, अपनी आवश्यकता जी जरूरत की और चीजें भी खरीद रहे हैं, अपना जीवन बेहतर बनाने पर खर्च कर रहे हैं।

साथियों,

इसी सर्वे में एक और बड़ी अहम बात सामने आई है। सर्वे के अनुसार शहर और गाँव में होने वाली खपत का अंतर कम हुआ है। पहले शहर का एक प्रति परिवार जितना खर्च करके खरीद करता था और गांव का व्यक्ति जो कहते है बहुत फासला था, अब धीरे-धीरे गांव वाला भी शहर वालो की बराबरी करने में लग गया है। हमारे निरंतर प्रयासों से अब गाँवों और शहरों का ये अंतर भी कम हो रहा है। ग्रामीण भारत में सफलता की ऐसी अनेक गाथाएं हैं, जो हमें प्रेरित करती हैं।

साथियों,

आज जब मैं इन सफलताओं को देखता हूं, तो ये भी सोचता हूं कि ये सारे काम पहले की सरकारों के समय भी तो हो सकते थे, मोदी का इंतजार करना पड़ा क्या। लेकिन, आजादी के बाद दशकों तक देश के लाखो गाँव बुनियादी जरूरतों से वंचित रहे हैं। आप मुझे बताइये, देश में सबसे ज्यादा SC कहां रहते हैं गांव में, ST कहां रहते हैं गांव में, OBC कहां रहते हैं गांव में। SC हो, ST हो, OBC हो, सामज के इस तबके के लोग ज्यादा से ज्यादा गांव में ही अपना गुजारा करते हैं। पहले की सरकारों ने इन सभी की आवश्यकताओं की तरफ ध्यान नहीं दिया। गांवों से पलायन होता रहा, गरीबी बढ़ती रही, गांव-शहर की खाई भी बढ़ती रही। मैं आपको एक और उदाहरण देता हूं। आप जानते हैं, पहले हमारे सीमावर्ती गांवों को लेकर क्या सोच होती थी! उन्हें देश का आखिरी गाँव कहा जाता था। हमने उन्हें आखिरी गाँव कहना बंद करवा दिया, हमने कहा सूरज की पहली किरण जब निकलती है ना, तो उस पहले गांव में आती है, वो आखिरी गांव नहीं है और जब सूरज डूबता है तो डूबते सूरज की आखिरी किरण भी उस गांव को आती है जो हमारी उस दिशा का पहला गांव होता है। और इसलिए हमारे लिए गांव आखिरी नहीं है, हमारे लिए प्रथम गांव है। हमने उसको प्रथम गाँव का दर्जा दिया। सीमांत गांवों के विकास के लिए Vibrant विलेज स्कीम शुरू की गई। आज सीमांत गांवों का विकास वहां के लोगों की आय बढ़ा रहा है। यानि जिन्हें किसी ने नहीं पूछा, उन्हें मोदी ने पूजा है। हमने आदिवासी आबादी वाले इलाकों के विकास के लिए पीएम जनमन योजना भी शुरू की है। जो इलाके दशकों से विकास से वंचित थे, उन्हें अब बराबरी का हक मिल रहा है। पिछले 10 साल में हमारी सरकार द्वारा पहले की सरकारों की अनेक गलतियों को सुधारा गया है। आज हम गाँव के विकास से राष्ट्र के विकास के मंत्र को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि, 10 साल में देश के करीब 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं। और इनमें सबसे बड़ी संख्या हमारे गांवों के लोगों की है।

अभी कल ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की भी एक अहम स्टडी आई है। उनका एक बड़ा अध्ययन किया हुआ रिपोर्ट आया है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट क्या कह रही है, वो कहते हैं 2012 में भारत में ग्रामीण गरीबी रूरल पावर्टी, यानि गांवों में गरीबी करीब 26 परसेंट थी। 2024 में भारत में रूरल पावर्टी, यानि गांवों में गरीबी घटकर के पहले जो 26 पर्सेंट गरीबी थी, वो गरीबी घटकर के 5 परसेंट से भी कम हो गई है। हमारे यहां कुछ लोग दशकों तक गरीबी हटाओ के नारे देते रहे, आपके गांव में जो 70- 80 साल के लोग होंगे, उनको पूछना, जब वो 15-20 साल के थे तब से सुनते आए हैं, गरीबी हटाओ, गरीबी हटाओ, वो 80 साल के हो गए हैं। आज स्थिति बदल गई है। अब देश में वास्तविक रूप से गरीबी कम होना शुरू हो गई है।

साथियों,

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं का हमेशा से बहुत बड़ा स्थान रहा है। हमारी सरकार इस भूमिका का और विस्तार कर रही है। आज हम देख रहे हैं गाँव में बैंक सखी और बीमा सखी के रूप में महिलाएं ग्रामीण जीवन को नए सिरे से परिभाषित कर रही हैं। मैं एक बार एक बैंक सखी से मिला, सब बैंक सखियों से बात कर रहा था। तो एक बैंक सखी ने कहा वो गांव के अंदर रोजाना 50 लाख, 60 लाख, 70 लाख रुपये का कारोबार करती है। तो मैंने कहा कैसे? बोली सुबह 50 लाख रुपये लेकर निकलती हूं। मेरे देश के गांव में एक बेटी अपने थैले में 50 लाख रुपया लेकर के घूम रही है, ये भी तो मेरे देश का नया रूप है। गाँव-गाँव में महिलाएं सेल्फ हेल्प ग्रुप्स के जरिए नई क्रांति कर रही हैं। हमने गांवों की 1 करोड़ 15 लाख महिलाओं को लखपति दीदी बनाया है। और लखपति दीदी का मतलब ये नहीं कि एक बार एक लाख रुपया, हर वर्ष एक लाख रुपया से ज्यादा कमाई करने वाली मेरी लखपति दीदी। हमारा संकल्प है कि हम 3 करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाएंगे। दलित, वंचित, आदिवासी समाज की महिलाओं के लिए हम विशेष योजनाएँ भी चला रहे हैं।

साथियों,

आज देश में जितना rural infrastructure पर फोकस किया जा रहा है, उतना पहले कभी नहीं हुआ। आज देश के ज़्यादातर गाँव हाइवेज, एक्सप्रेसवेज और रेलवेज के नेटवर्क से जुड़े हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 10 साल में ग्रामीण इलाकों में करीब चार लाख किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई गई है। डिजिटल इनफ्रास्ट्रक्चर के मामले में भी हमारे गाँव 21वीं सदी के आधुनिक गाँव बन रहे हैं। हमारे गांव के लोगों ने उन लोगों को झुठला दिया है जो सोचते थे कि गांव के लोग डिजिटल टेक्नोलॉजी अपना नहीं पाएंगे। मैं यहां देख रहा हूं, सब लोग मोबाइल फोन से वीडियो उतार रहे हैं, सब गांव के लोग हैं। आज देश में 94 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण परिवारों में टेलीफोन या मोबाइल की सुविधा है। गाँव में ही बैंकिंग सेवाएँ और UPI जैसी वर्ल्ड क्लास टेक्नालजी उपलब्ध है। 2014 से पहले हमारे देश में एक लाख से भी कम कॉमन सर्विस सेंटर्स थे। आज इनकी संख्या 5 लाख से भी ज्यादा हो गई है। इन कॉमन सर्विस सेंटर्स पर सरकार की दर्जनों सुविधाएं ऑनलाइन मिल रही हैं। ये इनफ्रास्ट्रक्चर गाँवों को गति दे रहा है, वहां के रोजगार के मौके बना रहा है और हमारे गाँवों को देश की प्रगति का हिस्सा बना रहा है।

साथियों,

यहां नाबार्ड का वरिष्ठ मैनेजमेंट है। आपने सेल्फ हेल्प ग्रुप्स से लेकर किसान क्रेडिट कार्ड जैसे कितने ही अभियानों की सफलता में अहम रोल निभाया है। आगे भी देश के संकल्पों को पूरा करने में आपकी अहम भूमिका होगी। आप सभी FPO’s- किसान उत्पाद संघ की ताकत से परिचित हैं। FPO’s की व्यवस्था बनने से हमारे किसानों को अपनी फसलों का अच्छा दाम मिल रहा है। हमें ऐसे और FPOs बनाने के बारे में सोचना चाहिए, उस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। आज दूध का उत्पादन,किसानों को सबसे ज्यादा रिटर्न दे रहा है। हमें अमूल के जैसे 5-6 और को-ऑपरेटिव्स बनाने के लिए काम करना होगा, जिनकी पहुंच पूरे भारत में हो। इस समय देश प्राकृतिक खेती, नेचुरल फ़ार्मिंग, उसको मिशन मोड में आगे बढ़ा रहा है। हमें नेचुरल फ़ार्मिंग के इस अभियान से ज्यादा से ज्यादा किसानों को जोड़ना होगा। हमें हमारे सेल्फ हेल्प ग्रुप्स को लघु और सूक्ष्म उद्योगों को MSME से जोड़ना होगा। उनके सामानों की जरूरत सारे देश में है, लेकिन हमें इनकी ब्रांडिंग के लिए, इनकी सही मार्केटिंग के लिए काम करना होगा। हमें अपने GI प्रॉडक्ट्स की क्वालिटी, उनकी पैकेजिंग और ब्राडिंग पर भी ध्यान देना होगा।

साथियों,

हमें रुरल income को diversify करने के तरीकों पर काम करना है। गाँव में सिंचाई कैसे affordable बने, माइक्रो इरिगेशन का ज्यादा से ज्यादा से प्रसार हो, वन ड्रॉप मोर क्रॉप इस मंत्र को हम कैसे साकार करें, हमारे यहां ज्यादा से ज्यादा सरल ग्रामीण क्षेत्र के रुरल एंटरप्राइजेज़ create हों, नेचुरल फ़ार्मिंग के अवसरों का ज्यादा से ज्यादा लाभ रुरल इकॉनमी को मिले, आप इस दिशा में time bound manner में काम करें।

साथियों,

आपके गाँव में जो अमृत सरोवर बना है, तो उसकी देखभाल भी पूरे गाँव को मिलकर करनी चाहिए। इन दिनों देश में ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान भी चल रहा है। गाँव में हर व्यक्ति इस अभियान का हिस्सा बने, हमारे गाँव में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगें, ऐसी भावना जगानी जरूरी है। एक और सबसे महत्वपूर्ण बात, हमारे गाँव की पहचान गाँव के सौहार्द और प्रेम से जुड़ी होती है। इन दिनों कई लोग जाति के नाम पर समाज में जहर घोलना चाहते हैं। हमारे सामाजिक ताने बाने को कमजोर बनाना चाहते हैं। हमें इन षडयंत्रों को विफल बनाकर गाँव की सांझी विरासत, गांव की सांझी संस्कृति को हमें जीवंत रखना है, उसको सश्क्त करना है।

भाइयों बहनों,

हमारे ये संकल्प गाँव-गाँव पहुंचे, ग्रामीण भारत का ये उत्सव गांव-गांव पहुंचे, हमारे गांव निरंतर सशक्त हों, इसके लिए हम सबको मिलकर के लगातार काम करना है। मुझे विश्वास है, गांवों के विकास से विकसित भारत का संकल्प जरूर साकार होगा। मैं अभी यहां GI Tag वाले जो लोग अपने अपने प्रोडक्ट लेकर के आए हैं, उसे देखने गया था। मैं आज इस समारोह के माध्यम से दिल्लीवासियों से आग्रह करूंगा कि आपको शायद गांव देखने का मौका न मिलता हो, गांव जाने का मौका न मिलता हो, कम से कम यहां एक बार आइये और मेरे गांव में सामर्थ्य क्या है जरा देखिये। कितनी विविधताएं हैं, और मुझे पक्का विश्वास है जिन्होंने कभी गांव नहीं देखा है, उनके लिए ये एक बहुत बड़ा अचरज बन जाएगा। इस कार्य को आप लोगों ने किया है, आप लोग बधाई के पात्र हैं। मेरी तरफ से आप सब को बहुत बहुत शुभकामनाएं, बहुत-बहुत धन्यवाद।