प्रश्न- आप को काम करने की प्रेरणा कहाँ से मिलती है?
प्रधानमंत्री जी: बहुत बार खुद की घटनाओं से ज्यादा और की घटनाओं से प्रेरणा मिलती है। लेकिन उसके लिए हमें उस प्रकार का स्वभाव बनाना पड़ता है। कठिन से कठिन चीज में किस प्रकार से जीवन को जीया जा सकता है। आप लोगों में से पढ़ने का शौक किस-किस को है? वो मास्टर जी कह रहे हैं, वो किताबें नहीं उसके सिवाय किताबें पढ़ने का शौक.. ऐसे कितने हैं.. हैं ! आप लोग कभी एक किताब जरूर पढि़ए Pollyanna…..Pollyanna कर के एक किताब है। मैंने बचपन में पढ़ी थी वो किताब। हर करीब-करीब सभी भाषाओं में उसका भाषांतर हुआ है। 70-80 पन्नों की वो किताब है, और उस किताब में एक बच्ची का पात्र है, और उसके मन में विचार आता है, कि हर चीज में से अच्छी बात कैसे निकाली जा सकती है।
तो उसने घटना लिखी है, उसके घर के बगीचे में जो माली काम कर रहे थे, वो बूढ़े हो गये और शरीर ऐसा टेढ़ा हो गया, तो एक बार बच्ची ने जाके पूछा कि दादा कैसे हो? तो उन्होंने कहा कि नहीं-नहीं अब तो बूढ़ा हो गया, देखिए मैं बड़ा ऐसे ऊपर खड़ा भी नहीं हो सकता हूं, मेरी कमर ऐसी टेढ़ी हो गई है, बस मौत का इंतजार कर रहा हूं। तो बच्ची ने कहा नहीं-नहीं दादा ऐसा मत करो। देखिए भगवान आप पर कितना मेहरबान है। पहले आप खड़े होते थे और बगीचे में काम करने के लिए आपको ऐसे मुड़ना पड़ता था। अब भगवान ने ऐसी व्यवस्था कर दी आपको बार-बार मुड़ना नहीं पड़ता है और अब बगीचे के काम आप आसानी से कर सकते हैं। यानी एक घटना एक के लिए दुख का कारण भी दूसरे के लिए वो प्रेरणा का कारण थी और इसलिए मैं मानता हूं कि घटना कोई भी हो हमारा उसके तरफ देखने का दृष्टिकोण कैसा है, उसके आधार पर जीवन की प्रेरणा बनती है। तो मैं आप सबको कहूंगा और यहां की व्यवस्था को कहूंगा लाइब्रेरी में पांच-छह किताबें Pollyanna की रखें और बारी-बारी से सब बच्चे पढ़ लें। कभी एसेंबलिंग में मीटिंग हो तो उसमें भी पर कोई न कोई प्रसंग बताएं। ठीक है!
प्रश्न – आप कितने घंटे काम करते हैं, तनाव का सामना कैसे करते हैं?
प्रधानमंत्री जी: मैं कितने घंटे काम करता हूं, इसका हिसाब-किताब तो मैंने किया नहीं है, और इसका आनंद इसलिए आता है कि मैं गिनता ही नहीं हूं कि मैंने कितने घंटे काम किया जब हम गिनना शुरू कर देते हैं कि मैंने इतने घंटे काम किया, ये काम किया, वो काम किया, तो फिर लगता है यार बहुत हो गया। दूसरा आप लोगों ने देखा होगा अपने अनुभव में जब मास्टर जी ने आपको कोई Home work दिया हो और उस Home work जब मास्टर जी लिखवाते हैं तो ओ ओ! ये तो Saturday-Sunday खराब हो जाएगा! सब टीचर ने इतना लिखवा कर दिया है। लेकिन जब कमरे में जा करके लिखना शुरू कर देते हैं और Home work पूरा कर देते हैं तो आपने देखा होगा जैसे ही Home work पूरा हो जाता होगा, आपकी थकान उतर जाती है। आपने देखा है कि नहीं ऐसा, काम पूरा होते ही थकान उतर जाती है या नहीं उतर जाती है। जब तक काम बाकी है तब तक थकान लगती है कि नहीं लगती है। तो ये बात पक्की है कि काम की थकान कभी नहीं होती, काम न करने की थकान होती है, एक बार कर देते हैं, तो काम का आनंद होता है। संतोष होता है, और इसलिए जितना ज्यादा काम करते हैं, उतना ज्यादा आनंद मिलता है। जितना ज्यादा काम करते हैं ज्यादा संतुष्ट होता है।
दूसरा, एक पुरानी कथा है बहुत बढि़या कथा है, कोई एक स्वामी जी, पहाड़ पर किनारे बैठे थे और एक आठ साल की बच्ची अपने तीन साल के भाई को उठा करके पहाड़ चढ़ने जा रही थी, तो स्वामी जी ने पूछा अरे बेटी तुम्हें थकान नहीं लगती क्या ? तो उसने जवाब में नहीं ये तो मेरा भाई है, तो स्वामी जी ने बोला मैं ये नहीं पूछ रहा हूं कि तुम्हारे साथ कौन है, मैं ये पूछ रहा हूं कि तुम्हें थकान नहीं लगती इतना बड़ा पहाड़ चढ़ना है, तुम अपने छोटे भाई को ले करके चढ़ रही हो, तुम्हें थकान नहीं लगती। नहीं नहीं पंडत जी मेरा भाई है। तो स्वामी जी ने फिर से पूछा। अरे मैं तुम्हें नहीं पूछ रहा हूं कि कौन है, मैं तुमसे पूछ रहा हूं कि तुझे थकान नहीं लग रही है, तो उसे अरे नहीं स्वामी जी मैं आपको बता रही हूं न की मेरा भाई है। कहने का तात्पर्य ये था कि जो अपनो के लिए जीते हैं, तो थकान कभी नहीं लगती। समझे! मुझे सवा सौ करोड़ देशवासी मेरे अपने लगते हैं। मेरे, मैं उन परिवार का सदस्य हूं सवा सौ करोड़ का देशवासियों का मेरा परिवार है। उनके लिए कुछ करने का आनंद आएगा या नहीं आएगा और मेहनत करने का मन करेगा या नहीं करेगा। अपनों के लिए जीने का मन करेगा या नहीं करेगा। फिर थकान लगेगी! बस यही है इसका कारण।
प्रश्न – जीवन की सबसे बड़ी सफलता किसे मानते हैं, श्रेय किसे देते हैं?
प्रधानमंत्री जी: जीवन को सफलता और विफलता के तराजू से नहीं तौलना चाहिए, जिस दिन हम सफलता-विफलता, सफलता-विफलता इसी के हिसाब लगाते रहते हैं, तो फिर निराशा आ जाती है। हमारी कोशिश ये रहनी चाहिए कि एक ध्येय ले करके चलना चाहिए। कभी रूकावट आए, कभी कठिनाइयां आए, कभी दो कदम पीछे जाना पड़े, लेकिन अगर उस ध्येय को सामने रखते हैं तो फिर ये सारी बातें बेकार हो जाती हैं। तो एक तो सफलता और विफलता को जीवन के लक्ष्य को पाने के तराजू के रूप में कभी देखना नहीं चाहिए, लेकिन विफलता से बहुत कुछ सीखना चाहिए। ज्यादातर लोग सफल इसलिए नहीं होते है वो विफलता से कुछ सीखते नहीं है। हम विफलताओं से जितना ज्यादा सीख सकते हैं, शायद सफलता उतना हमें शिक्षा नहीं देती। मेरा जीवन ऐसा है जिसको हर कदम विफलताओं का ही सामना करना पड़ा और मैं सफलताओं का हिसाब लगाता नहीं हूं, न सफल होने के मकसद से काम करता हूं। एक लक्ष्य की प्राप्ति करनी है अपनी भारत मां की सेवा करना। सवा सौ करोड़ देशवासियों की सेवा करना। विफलता-सफलता आती रहती है। लेकिन कोशिश करता हूं, विफलता से ज्यादा से ज्यादा सीखने का प्रयास करता हूं।
प्रश्न - आप राजनीति में नहीं होते तो क्या होते?
प्रधानमंत्री जी: देखिए जीवन का सबसे बड़ा आनंद ये होता है, बालक रहने का.. बालक बने रहने का कितना आनंद होता है और जब बड़े हो जाते हैं तब पता चलता है कि बालकपन छूटने का कितना नुकसान होता है तो अगर ईश्वर मुझे पूछता कि क्या चाहते हो तो मैं कहता जिन्दगी भर बालक बना रहूं।
प्रश्न – कठिनाइयों का सामना करते हुए सफलता का राज।
प्रधानमंत्री जी: मैं समझता हूं अभी मुझे ये सवाल पूछा ही गया है, करीब-करीब वैसा ही सवाल है। जीवन में किसी को भी अगर कोई भी क्षेत्र हो अगर सफल होना है तो हमें पता होना चाहिए कि मुझे कहा जाना है, हमें पता होना चाहिए कि किस रास्ते जाना तय है, हमें पता होना चाहिए, हमें पता होना चाहिए कैसे जाना है, हमें पता होना चाहिए कब तक जाना है। अगर इन बातों में हमारी सोच एकदम स्पष्ट होगी तो फिर विफलताएं आएंगी तो भी, रूकावटें आएंगी तो भी आपका लक्ष्य कभी ओझल नहीं होगा। ज्यादातर लोगों को क्या होता है अगर आज कोई अच्छी movie देख करके आ गए तो आप पूछोगे कि आप क्या चाहते हो तो शाम को कह देगा, मैं actor बनना चाहता हूं।
आज कहीं world cup देख करके आया किसी ने पूछ लिया कि क्या चाहते हो तो बोले मुझे cricketer बनना है। युद्ध चल रहा है सेना के जवान शहीद हो रहे है, तो खबरें आ रही है तो मन करता है नहीं-नहीं अब तो बस सेना में जाना है और देश के लिए मर-मिटना है। ये जो रोज नए-नए विचार करते हैं उनके जीवन में कभी भी सफलता नहीं आती और इसलिए हमारी मन की जो इच्छा है वो seal होनी चाहिए। आज एक इच्छा कल दूसरी इच्छा परसों तीसरी इच्छा, तो फिर लोग कहते हैं- ये तो बड़ा तरंगिया! ये कल तो ये सोचता था-ये सोचता था, ये तो बेकार है.. तो इच्छा seal होनी चाहिए और जब इच्छा seal हो जाती है, तो अपने आप में संकल्प बन जाती है और एक बार संकल्प बन गया फिर पीछे मुड़ करके देखना नहीं चाहिए। बाधाएं हो कठिनाईयां हो, तकलीफें हो हमें लगे रहना है। सफलता आपके कदम चूमती हुई चली आएंगी।
अच्छा आप में से.. यहां रहते हो, इतना बड़ा परिसर है, आपमें से कभी किसी को बहुत अच्छे खिलाड़ी बनने की इच्छा होती है? Sports man! है किसी को.. हरेक को पढ़-लिख करके बाबू बनना है। अभी मैं पूछूंगा पुलिस अफसर किस को बनना है, तो सब हाथ ऊपर करेंगे, डॉक्टर किसने बनना है, सब हाथ ऊपर करेंगे, ऐसा ही होता है न! अच्छा आपके मन में.. कुछ बनने के लिए कर रहे हो काम क्या? क्या बनने के लिए कर रहे हो? जो डॉक्टर बनने के लिए कर रहे हैं, वो जरा खड़े हो जाएं, जो डॉक्टर बनने के लिए मेहनत कर रहे हैं.. बैठिए। जो कलेक्टर बनने के लिए काम कर रहे हैं वो कौन-कौन हैं? .. अच्छा। जो लोग आईआईटी में जाना चाहते हैं, उसके लिए कर रहे हैं वो कौन-कौन हैं? एक बात बताऊं? अगर सपने देखने हैं तो बनने के सपने कम देखो करने के सपने ज्यादा देखो और एक बार करने के सपने देखोगे तो आपको उसे करने का आनंद और आएगा।
लेकिन मैं चाहूंगा.. इतना बढि़या परिसर है, अभी से तय करना चाहिए कि तीन खेल में, तीन खेल के अंदर... तो ये हमारी धरती, ये हमारी आदिवासियों की भूमि.. हम दुनिया में नाम कमा करके ले आएंगे और आप देखिए ला सकते हैं। आपने एक साल पहले देखा होगा, पड़ोस में, झारखंड में अपनी बालिकाएं.. कोई साधन नहीं था उनके पास लेकिन अंतर्राष्ट्रीय जगत में गए। बेचारों के पास वो कपड़े भी नहीं थे, कुछ नहीं था, विमान क्या होता है ये मालूम भी नहीं था लेकिन दुनिया में नाम कमा करके आ गए, खेल के अंदर। .. झारखंड की आदिवासी बालिकाएं थी। हमारे मन में इरादा रहना चाहिए कि सिर्फ खेलने के लिए नहीं, एक अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए मैं एक माहौल बनाऊंगा। मैं खुद एक अच्छा खिलाड़ी बनूंगा। .. और जहां ये परिसर होता है वहां अच्छे खिलाड़ी तैयार करने की संभावना होती है, talent search करने की संभावना होती है और मैं चाहूंगा कि इस बढि़या परिसर में.. ।
दूसरा, आपमें से कितने लोग हैं जो बिल्कुल सप्ताह में एक दिन भी खेलने की बात आए तो कमरे के बाहर नहीं निकलते, शर्मा जाते हैं, घबरा जाते हैं, कितने हैं? .. हां बताएंगे नहीं आप लोग। देखिए जीवन में खेल-कूद होना चाहिए, कितना भी पढ़ना क्यों न हो। दिन में तीन-चार बार तो पसीना आना ही चाहिए, इतनी मेहनत करनी चाहिए, दौड़ना चाहिए, खेल-कूद करना चाहिए। उससे पढ़ाई को कोई नुकसान नहीं होता। sports है, तो sports man spirit आता है और sports man spirit आता है तो जीने का भी एक अलग आनंद आता है। तो करेंगे? करेंगे? दिन में चार बार पसीना छूट जाए, ऐसा करेंगे? तो क्या इसके लिए धूप में जाकर खड़े रहेंगे क्या? ऐसा तो नहीं करेंगे न।
धन्यवाद