साथियो, केवड़िया में सरदार सरोवर बांध के पास Statue of Unity के सानिध्य में आज की शाम का ये अनुभव अद्भुत है, आजीवन स्मरण रहने वाला है और अभी-अभी हमने सरदार साहब की आवाज, उनका संदेश जो सुना, वो सीधे अंतर्मन को छू जाता है।
साथियो, देश की विभिन्न सिविल सर्विसेज के इस combined foundation course से एक तरह से एक नए अध्याय की शुरूआत हुई है। अभी तक तो ये चलता रहा है कि कुछ लोग मसूरी में ट्रेनिग लेते हैं तो कुछ लोग हैदराबाद में या फिर अन्य शहरों में। जैसा मैंने पहले भी आपसे कहा- जिन साइलोज की बात मैं अक्सर करता हूं, उनका एक स्वरूप ट्रेनिग से ही शुरू हो जाता था। सिविल सेवा के integration का सही मायने में आरंभ अब आप सभी साथियों के साथ हो रहा है। ये आरंभ अपने-आप में एक reform है। मैं इससे जुड़े तमाम अधिकारियों को, तमाम साथियों को भी बधाई देता हूं।
साथियो, ये reform सिर्फ ट्रेनिंग के integration तक सीमित नहीं है बल्कि इसकी सोच और एप्रोच को भी विस्तार दिया गया है। आप सभी युवा trainees का विस्तृत एक्सपोजर हो, ये कोशिश भी की गई है। यही कारण है कि सोशल और इकोनॉमिक दुनिया से जुड़े ग्लोबल लीडर्स से, एक्सपर्टस से आपको रूबरू कराया गया।
साथियो, Statue of Unity की छत्रछाया और उससे यहां पर हो रहा ये कार्यक्रम, इसका एक विशेष महत्व बन जाता है क्योंकि सभी सिविल सेवा को राष्ट्र निर्माण का, राष्ट्रीय एकता का अहम माध्यम बनाने का vision स्वयं सरदार वल्लभ भाई पटेल का था। अपने इस vision को जमीन पर उतारने के लिए उन्होंने अनेक चुनौतियों का सामना किया। तब कुछ लोगों को लगता था कि जिन अफसरों की भूमिका आजादी के आंदोलन को दबाने की रही, वो आजाद भारत के निर्माण में मददगार कैसे सिद्ध होंगे। और ये सवाल आना बहुत स्वाभाविक भी था। ये विचार भी स्वाभाविक था और नफरत का भाव भी बहुत स्वाभाविक था, लेकिन दूरदृष्टा सरदार साहब ने इन तमाम आलोचकों को याद कराया कि आखिरकर ये bureaucracy ही है जिसके भरोसे हमको आगे बढ़ना है। यही bureaucracy है जिसने रियासतों के व्यय में अहम कड़ी की तरह काम किया था।
साथियो, सरदार पटेल ने दिखाया है कि सामान्य जन के जीवन में सार्थक बदलाव के लिए हमेशा एक बुलंद इच्छा शक्ति का होना बहुत जरूरी होता है। करीब सौ साल पहले अहमदाबाद म्यूनसिपलिटी को दस साल के भीतर-भीतर सीमित संसाधनों के बीच transform करके उन्होंने सबको अपनी प्रतिभा का कायल बना दिया था। और इसी vision के साथ ही उन्होंने आज़ाद भारत की सिविल सेवा का खाका खींचा था।
साथियो, निष्पक्ष और निस्वार्थ भाव से किया गया हर प्रयास नए भारत की मजबूत नींव है। न्यू इंडिया के सपने को पूरा करने के लिए हमारी व्यवस्था में, हमारी bureaucracy में 21वीं सदी की सोच और सपने अनिवार्य हैं। ऐसी bureaucracy जो creative और constructive हो, जो imaginative और innovative हो, जो proactive और polite हो, जो professional और progressive हो, जो energetic और enabling हो, जो efficient और effective हो, जो transparent और tech-enabled हो।
साथियो, आपके सामने जितनी बड़ी opportunity है उतनी ही बड़ी responsibility भी है। एक समय था जब आपके वरिष्ठों को, आपके सीनियर्स को अभाव में ही सब कुछ संभालना होता था। सड़कें हो, रेलवे हो, पोर्ट हो, एयरपोर्ट हो, स्कूल हो, कॉलेज हो, ईवन टेलीफोन, ईवन रोड़; सब कुछ का अभाव था। आज स्थितियां ऐसी नहीं हैं। भारत तेजी से बदल रहा है। कभी अभावों में चलने वाली यात्रा आज विपुलता की तरफ बढ़ रही है। आज देश में विपुल युवा शक्ति है, आज देश में विपुल अन्न के भंडार हैं, आज देश में आधुनिक टेक्नोलॉजी की ताकत है- ऐसे में अब आपको इस विपुलता का पूरा लाभ उठाना है। आपको देश का सामर्थ्य बढ़ाना है, साथ-साथ स्थायित्व मजबूत करना है।
साथियो, आप इस रास्ते पर सिर्फ एक कैरियर के लिए नहीं आए हैं, महज जॉब के लिए नहीं आए हैं, बल्कि सेवा के लिए आए हैं, सेवा भाव से आए हैं, सेवा परमोधर्म- इस मंत्र को ले करके आए हैं। आपके हर निर्णय से, हर एक्शन से, हर सिग्नेचर से लाखों जीवन प्रभावित होंगे। और साथियो, आप जो भी निर्णय लेंगे, उनका स्कोप बेशक स्थानीय होगा, क्षेत्रीय होगा, लेकिन उनका prospective- national होना चाहिए। यानी आप फैसले को आपके जिले, आपके ब्लॉक, आपके विभाग की आवश्यकताओं को और समस्याओं को जरूरत के अनुसार लेंगे। वो देश के विकास में कैसे contribute कर सकते हैं, ये परख आपको करनी ही चाहिए, हमेशा करनी चाहिए।
और साथियो, अपने हर निर्णय को आप सभी दो कसौटियों पर जरूर कसिएगा। एक- जो महात्मा गांधी ने रास्ता दिखाया था- आपका फैसला समाज के आखिरी छोर पर जो व्यक्ति खड़ा है, उसकी आशा-आकांक्षाओं को वो पूरा कर पा रहा है या नहीं कर पा रहा है। और दूसरा- आपका फैसला इस कसौटी से कसना चाहिए कि आपका निर्णय देश की एकता, अखंडता और प्रगति को आगे बढ़ाने वाला हो, उसे मजबूत करने वाला हो।
साथियो, यहां inspirational district की चर्चा हुई है। आखिर देश के 100 से अधिक जिले विकास की दौड़ में छूट क्यों गए? इसके पीछे सोच और एप्रोच भी एक बहुत बड़ा कारण रहा है। ये जिले geographically और socially बहुत challenging थे। लिहाजा हर स्तर पर इनकी उपेक्षा हुई, इनको अपने हाल पर छोड़ दिया गया। इस उपेक्षा के कारण सोसायटी में असंतोष की भावना आ गई, जिसका लाभ गलत ताकतों ने उठाना शुरू कर दिया। पर अब ये हुआ कि इन जिलों का विकास और भी मुश्किल हो गया। इस स्थिति को बदलना आवश्यक था, इसलिए हमने इन जिलों के पिछड़ेपन के बजाय इनकी aspiration को आगे बढ़ाने का फैसला किया। हमने human development index के हर पैमाने पर समय-सीमा के भीतर काम करना शुरू किया। हमने टेक्नोलॉजी का उपयोग बढ़ाकर योजनाओं को ज्यादा प्रभावी तरीके से जमीन पर उतारा। आज हमें इसके अभूतपूर्व परिणाम भी मिलने लगे हैं। और अब आप सभी, आप पर इस काम को और गति देने का जिम्मा आने वाला है।
साथियो, आने वाले समय में आप में से अनेक साथियों की तैनाती ब्लॉक या फिर जिला स्तर पर होगी। जाहिर है वहां अनेक समस्याओं के समाधान आपको ढूंढने होंगे। मेरा आपको सुझाव रहेगा कि आप अपने क्षेत्र की एक बड़ी समस्या को एक वक्त में हाथ में लें और उसका संपूर्ण समाधान करने का प्रयास करें यानी One district one problem and total solution. अक्सर हम जोश-जोश में हर तरफ हाथ मारना शुरू कर देते हैं जिससे हमारे प्रयास और हमारे resources, दोनों बंट जाते हैं। एक समस्या को हल करिए, जिससे आपको भी confidence मिलेगा, लोगों का भरोसा भी आप पर बढ़ेगा। अब जनता का भरोसा आप जीतते हैं तो आपके साथ जनता की भागीदारी भी बढ़ जाती है।
साथियो, आपके सामने bureaucracy और system को लेकर बनी एक negative धारा को बदलने की बहुत बड़ी चुनौती है। Bureaucracy और system, ये दो ऐसे शब्द बन गए हैं जिनको bad bureaucracy या bad system लिखने की जरूरत नहीं पड़ती। वो अपने-आप में ही negative connotation के लिए उपयोग होने लगा है। आखिर ये हुआ क्यों? हमारे अधिकतर अफसर मेहनती भी हैं और receptive भी हैं, लेकिन पूरे system और पूरी bureaucracy का negative perception बन गया है।
साथियो, सिविल सेवाओं को लेकर हर पॉवर की, अफसरशाही की, रौब की, रसूख की एक छवि रही है। ये छवि निश्चित रूप से Colonial Legacy है, जिसको छोड़ने में कुछ लोग पूरी तरह सफल नहीं हो पाए। आपको इस छवि से सिविल सेवा को बाहर निकालने की कोशिश करनी होगी। आपकी पहचान hard power से नहीं, soft power से होनी चाहिए। hard power आक्रोश का कारण बनती है और soft power सद्भाव विकसित करने का एक बहुत बड़ा माध्यम बन जाती है। Appointment से लेकर सुनवाई तक का एक सरल mechanism होना चाहिए। आप सात दरवाजों के पीछे रहते हैं, ये भाव जनता में कभी भी नहीं जाना चाहिए। आपके पास हर problem का instant solution हो, ऐसा संभव नहीं है। और सामान्य जनता इस बात को भी भलीभांति समझती है। वो सिर्फ सुनवाई चाहती है, सम्मान चाहती है। उसकी बात सही जगह पर पहुंचे, इतने से ही कभी-कभी हमारे देश का नागरिक संतुष्ट हो जाता है। आपका प्रयास होना चाहिए वो सम्मान और संतुष्टि के भाव के साथ आपके दफ्तर से निकलना चाहिए।
साथियो, किसी भी public servant के लिए, effective service delivery के लिए, policy के effective implementation के लिए ईमानदार feedback बहुत जरूरी है। ये mechanism, ये भी आपको ही विकसित करना ही होगा। पहले के जमाने में कलेक्टर के लिए नाईट हाल्ट के लिए एक नियम होता था, एक मार्च टू हाल्ट ratio भी होता था। इस पूरी कवायद से पता चलता था कि अफसर ने फील्ड में कितना समय गुजारा है। अब ये परम्परा एक प्रकार से, उसमें काफी ढीलापन आ गया है; कहीं–कहीं तो खत्म हो गई नजर आती है। ऐसी ही एक पुरानी परम्परा थी-district gazetteer की, जो अब करीब-करीब लुप्त होती नजर आ रही है। Handing over note की भी एक व्यवस्था थी, जिसमें हर जाने वाला अफसर आने वाले अफसर के लिए एक note छोड़ करके जाता था। इस note के माध्यम से नए अफसर को उस पोस्ट से या उस ऑफिस से जुड़ी चुनौतियों, समस्याओं और अहम मुद्दों को समझने में बहुत बड़ी सुविधा होती थी, Government की continuity रहती थी। ऐसी अनेक best practices हमारी पुरानी व्यवस्थाओं में रही हैं, जिन्हें फिर से जीवित करने की जरूरत है। पुरानी अच्छी परम्पराओं को आज के युग में नई टेक्नोलॉजी से जोड़कर हमें उन्हें और समृद्ध करना है, और मजबूत करना है। तकनीक को हमें alternative नहीं, multiplier के तौर पर उपयोग करना चाहिए। जैसे feedback mechanism, मेल-मुलाकातों के पुराने तरीकों के साथ-साथ हम सोशल मीडिया का भी अच्छा-बेहतर उपयोग कर सकते हैं। सोशल मीडिया को reliable source भले ही नहीं माना जाना चाहिए और नहीं माना जा सकता, लेकिन एक tool जरूर है, जिसका उपयोग हम कर सकते हैं। और हां, हमारे फैसलों, हमारी नीतियों को लेकर जो input आता है, जो feedback आता है, उसका ईमानदार आकलन भी उतना ही जरूरी है। ऐसा नहीं है कि जो हमारी आंखों और हमारे कानों को अच्छा लगे, वही सुनना और वही देखना है। हमें feedback प्राप्त करने के अपने दायरे का विस्तार करते हुए अपने विरोधियों तक की राय को पढ़ना और सुनना चाहिए। इससे हमारे ही vision को depth मिलेगी।
साथियो, सरकारी व्यवस्था में रहते हुए कभी-कभी हम एक और गलती कर देते हैं। अक्सर एसी कमरों में बैठे हुए हमें सब कुछ ठीक-ठाक लगता है। हमारा एक सीमित सोशल सर्कल होता है, जिसमें हमारे जैसे ही लोग शामिल होते हैं। यही कारण है कि बहुत बार हमें सामान्य समस्याओं की भी सही जानकारी नहीं मिल पाती। इसलिए हम किसी भी सर्विस में हों, हमें अपने comfort zone से बाहर निकलकर लोगों से जुड़ना बहुत आवश्यक है। इससे हमें सही policy decision लेने में बहुत मदद मिलेगी।
साथियो, हमें ये भी समझना होगा कि ministries हों या municipal corporations हों या दूसरे सरकारी विभाग, हम एक service provider हैं। Service provider के लिए consumer ही सबसे ऊपर होना चाहिए। जब ये बात हमारी समझ में आ जाती है तो supply chain management में man power की inventory में, technology में हर स्तर पर जरूरी बदलाव होने लगेगा। जब service delivery में जरूरी बदलाव होंगे तो लाइफ अपने-आप easy हो जाएगी।
साथियो, अभी मैंने आपसे management की प्रचलित भाषा का उपयोग किया और वो इसलिए किया क्योंकि कभी-कभी किसी बात को समझाने के लिए known to unknown की तरफ जाना बड़ा सरल रहता है, एक सुगम तरीका भी रहता है। इन सबसे ऊपर और सबसे गहरी है- और वो है हमारे भीतर की भावना, हमारे भीतर की वेदना, हमारे भीतर की संवेदना। एक विचार हल पल, हर आती और जाती हुई सांस के साथ, आपके अस्तित्व के साथ जुड़ जाना चाहिए। वो विचार क्या है?
साथियो, आपके मन-मस्तिष्क में ये रच-बस जाना चाहिए कि मैं आज जो कुछ भी हूं, ये मुझे मेरे देश ने दिया है, मेरे समाज ने दिया है, इस देश के करोड़ों लोगों ने दिया है। ये देश मेरा है, इस देश के लोग मेरे हैं। इस सर्विस में आने के बाद जो तामझाम मुझे मिला हुआ है, उसमें किसी गरीब के पसीने की महक है।
साथियो, हम देश के गरीब के, देश के लोगों के, हम सब कर्जदार हैं, ऋणी हैं; उस गरीब का कर्ज चुकाने का, देश के सामान्य मानवी का कर्ज चुकाने का हमारे पास एक ही तरीका है- हम देशवासियों की जिंदगी आसान बनाएं, जो उनका हक है उसके लिए र्इमानदारी से प्रयास करें, जी-तोड़ मेहनत करें।
साथियो, आज का नया भारत कहीं ज्यादा आकांक्षी है, वो अधीर भी है और विकास की उसकी ललक पहले से कहीं ज्यादा हो गई है। आज पूरे भारत में हम देख रहे हैं कि नागरिक पहले से कहीं ज्यादा जागरूक है, अलर्ट है, कहीं ज्यादा involve है और कहीं ज्यादा sensitive भी है। सरकार एक आवाज लगाए, जरा सी भी मदद मांग लें या किसी मुहिम में शामिल होने के लिए request करे, तो तमाम देशवासी खुशी-खुशी उसमें शामिल हो जाते हैं। ऐसे में हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम देशवासियों की ease of living को बढ़ाएं। इसके लिए हमें proactively काम करना ही होगा। हमें इस बात को सुनिश्चित करना होगा कि सामान्य मानवी को रोजमर्रा की जिंदगी में सरकार से जूझना न पडे। हमें ये ध्यान रखना होगा कि सामान्य मानवी की जिंदगी सरकार के प्रभाव में दब न जाए और गरीब की जिंदगी सरकार के अभाव में दम न तोड़ दे।
साथियो, ease of living सुनिश्चित करने में एक और चीज अहम भूमिका निभाती है। हमारी अर्थव्यवस्था, हमारी per capita income, five trillion dollar अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य है- उसके पीछे सोच भी यही है। इस लक्ष्य तक पहुंचने में आप सभी साथियों पर भी बड़ी जिम्मेदारी है। आप जहां भी तैनात होंगे, वहां की व्यवस्थाओं को business friendly बनाने में, वहां एक बेहतर eco system तैयार करने में सिविल सेवा के सभी अंगों को मिल करके प्रयास करना है।
साथियो, आज समय की मांग है कि देश के जिले भी अपनी आर्थिक प्रगति के लिए आपस में स्पर्धा करें। कोई जिला जितना आगे बढ़ेगा, उतना ही उसका राज्य भी आगे बढ़ेगा और इसका सीधा प्रभाव पूरे देश की जीडीपी पर भी पड़ेगा। और इसलिए भविष्य में आप जिस भी जिले में नियुक्त हों, वहां पर आर्थिक गतिविधियों को तेज करने के लिए हर प्रकार के प्रयास- जैसे मानो एक्सपोर्ट ले लीजिए-क्या आपके जिले में एक्सपोर्ट होता है? वहां का कोई प्रोडक्ट दुनिया के देशों में जाता है? क्या एक्सपोर्ट बढ़ाने के लिए आपकी कोई योजना है? आप target तय करें, एक्सपोर्टस बढ़ाने से जुड़े हुए, manufacturing से जुड़े हुए, agriculture से जुड़े हुए; और फिर उन्हें प्राप्त करने के लिए पूरी शक्ति लगाएं। मुझे उम्मीद है कि आपकी साझा ताकत से हम हर लक्ष्य को जरूर हासिल कर पाएंगे।
साथियो, बड़े लक्ष्यों के लिए हमारे निर्णय स्पष्ट हों, समय पर हों; ये भी उतना ही जरूरी है। लेकिन कई बार हम देखते हैं कि कुछ ऐसे भी साथी होते हैं जो निर्णय लेने से बचने की कोशिश करते हैं। इससे व्यक्तिगत स्तर पर लाभ-हानि हो या न हो, लेकिन देश का बहुत बड़ा नुकसान होता है। आप सभी से देश को, हमें समाधानों की अपेक्षा है। Status quo की अपेक्षा आपसे नहीं है।
साथियो, आप पूरी आजादी के साथ, पूरी जिम्मेदारी के साथ काम कर सकें, इसके लिए हर जरूरी administrative reform किए जा रहे हैं। हमारा प्रयास है कि ट्रांसफर राज खत्म हो, एक stable tenure bureaucracy को मिले, posting की Lobbying नहीं ability count हो, ट्रेनिंग के मौजूदा सिस्टम को overhaul करने के प्रयास के तो आप खुद साक्षी बन चुके हैं। हम एक integrated mechanism की तरफ बढ़ रहे हैं जो continuous customized delivery पर आधारित होगा।
साथियो, आपके सामने एक लंबा कार्यकाल है। आप सबके बीच करीब-करीब पूरा दिन मुझे रहने का अवसर मिला। एक प्रकार से मुलाकात का भी- उसकी शुरूआत है, एक प्रकार से आरंभ है। आपमें से अनेक साथियों से आगे भी मुलाकात होती रहेगी। ट्रेनिंग के दौरान आप नित नया सीखें, नई सीख को देश की सेवा में लगाएं, अपने भीतर का विद्यार्थी कभी मरने मत देना। जीवन में कितनी भी ऊंचाइयों को पार कर जाएं, भीतर का विद्यार्थी बहुत कुछ सिखाकर जाता है, बहुत कुछ सीखने की प्रेरणा देता रहता है।
साथियो, सरदार पटेल के सपनों को साकार करना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। इसे पूरा करना है और इसी कामना के साथ मैं अपनी बात समाप्त करते हुए आप सबको अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं। और आज सुबह जैसे मैंने कहा कि आप जिस सेवा से जुड़े हुए हो, ये सेवा सरदार साहब के सपने का अंश है। और इसलिए जिस मजबूत नींव की शुरूआत सरदार साहब ने की थी, जो पिछले 70 साल तक अपना क्रमिक विकास करती रही है। अब वक्त बदला है, सदी बदल चुकी है, सपने बदल चुके हैं, इरादे बदल चुके हैं, अपेक्षाएं बदल चुकी हैं, आवश्यकताएं बदल चुकी हैं। ऐसे समय हम भी पिछली शताब्दी की सोच से 21वीं सदी का नया भारत नहीं बना सकते थे, हमारी सोच भी 21वीं सदी की चाहिए, हमारे सपने भी 21वीं सदी के चाहिए और सरदार साहब के आशीर्वाद से हमें इसे साकार करने के लिए अपने-आपको सज्ज करना है, अपने-आपको समर्पित करना है, अपने प्रयासों से परिवर्तन ला करके रहना है। नया भारत बनाने का सपना हर हिन्दुस्तानी का है, लेकिन हम लोगों की जिम्मेदारी कुछ ज्यादा है। उस जिम्मेदारी के लिए अपने-आपको योग्य बनाएं।
ये सरदार साहब की प्रतिमा, विश्व में ऊंची प्रतिमा के रूप में लोग जानते होंगे, लेकिन हमारे लिए ये सिर्फ ऊंची नहीं है, आने वाली सदियों तक प्रेरणा देने वाली ये प्रतिमा है। ये आने वाली सदियों तक प्रेरणा देने वाली प्रतिमा से हम प्रेरणा ले करके, अपना सिर झुका करके, उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प ले करके, इस नर्मदा मईया के आशीर्वाद को ले करके, मां नर्मदा की पावन धारा की इस पवित्र छाया से संकल्प को और मजबूत करते हुए हम यहां से प्रस्थान करेंगे। इसी एक अपेक्षा के साथ मेरी आपको अनेक-अनेक शुभकामनाएं।
आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।