प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में रामचरितमानस के डिजिटल संस्करण को जारी किया
प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को एकजुट करने और भारत में जागरूकता और सूचनाओं के प्रसार में ऑल इंडिया रेडियो की भूमिका की सराहना की
रामचरितमानस एक महान महाकाव्य है जिसमें भारत का सार निहित है: प्रधानमंत्री मोदी
रामचरितमानस के डिजिटल संस्करण से दुनिया भर में लोगों को मदद मिलेगी: प्रधानमंत्री मोदी

ये कार्यक्रम जहां हो रहा है, उस स्‍थान का नाम है पंचवटी और जब वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे, तब इस निवास स्‍थान में पंचवटी का निर्माण हुआ और नाम पंचवटी रखा गया था और शायद मैं मानता हूं आज का अवसर पंचवटी में होना अपने आप उसके कारण उसका एक कीर्तिमान बढ़ जाता है, क्‍योंकि रामचरितमानस की बात हो और पंचवटी न हो, तो फिर वो रामचरितमानस अधूरा लगता है और इसलिए ये अपने आप में एक सुफल संयोग है।

आज के इस अवसर को मैं अलग-अलग रूप में अनुभव करता हूं। कभी-कभी सरकार में लोग नौकरी करते-करते जीवन ऐसा बन जाता है, एक मशीनी गतिविधि बन जाती है और वही सुबह जाना, शाम को आना, वही फाइलें, वही बॉस, वहीं assistant, एक जिंदगी के बड़े महत्‍वपूर्ण 30-35 साल उसी में गुजर जाते है और ज्‍यादातर का मन बन जाता है कि चलो अब इस पाइपलाइन में घुसे है 30-35 साल के बाद उधर निकलेंगे। जिस रूप में निकलेंगे, निकलेंगे.. लेकिन यह अवसर देख करके ध्‍यान में आता है कि एक सरकार का मुलाजिम, जिसमें एक तड़प हो, कुछ करने की अदम्‍य इच्‍छा हो, वो कितनी बड़ी विरासत छोड़ करके जाता है और इसलिए सबसे पहले मैं आकाशवाणी के उस एक सामान्‍य अधिकारी जिनके परिवारजन.. ये औरों के लिए भी प्रेरक बन सकता है। हमारी जिंदगी व्‍यर्थ नहीं जा रही है। हम जो फाइलों पर साइन करते है वो बेकार नहीं होती, कभी न कभी इतिहास को वो नया मोड़ देते है। ये आज की घटना उस बात का जीता-जागता सबूत है।

दूसरी बात, करीब-करीब 20-22 साल तक लगातार इसका रिकार्डिंग हुआ है। 22 साल तक उस team को बनाए रखना, उस rhythm को बनाए रखना और उसे उतना ही प्राणवान बनाए रखना, वरना तो यार बहुत हो गया अब कितने ऐपिसोड हो गए, अब तो लोगों को आदत हो गई, चलो निकाल दो। नहीं। इससे जुड़े हुए कलाकार शायद आज हिन्‍दुस्‍तान के बड़े कलाकारों की संख्‍या में उनका नाम नहीं होगा, लेकिन संगीत के साधक के रूप में। 22 साल करीब-करीब ये साधना कम नहीं होती जी, 14 लोगों ने team बन करके काम किया, 7 लोग हमारे बीच नहीं रहे, सबको आज सम्‍मानित करने का आज अवसर मिला और ये सिर्फ संगीत नहीं है। ये संगीत की भी साधना है, संस्‍कृति की भी साधना है और संस्‍कार की भी साधना है। और ये काम, देखिए हमारे देश में कई उतार-चढ़ाव है, वैचारिक धरातल पर भी उतार-चढ़ाव आए हैं। आज अगर कोई ओम बोल दे तो हफ्तेभर विवाद चलता है कि ओम कैसे बोला जा सकता है। देश :::: सांम्‍प्रदायिक है। ऐसे देश में रामचरितमानस को किसी ने question नहीं किया, वो आज भी चल रहा है। हो सकता है आज के बाद किसी का ध्‍यान जाए और तूफान खड़ा कर दे, तो मैं नहीं जानता हूं। लेकिन कभी-कभार हम देखते है कि बहुत सालों से सुनते आए है, क्‍या बात है कि हस्‍ती मिटती नहीं है हमारी। जवाब खोजने के लिए मेहनत करने की जरूरत नहीं है। यही बात है कि जिसके कारण हस्‍ती मिटती नहीं है हमारी, यही तो रामचरितमानस है, यही तो परम्‍परा है, यही संस्‍कार है।

हजारों साल से दुनिया में हमारी जो सबसे बड़ी विशेषता है जिसके लिए विश्‍व के किसी भी समाज को हमारे प्रति ईर्ष्‍या हो सकती है, वो है हमारी परिवार व्‍यवस्‍था और हम बचे हैं बने है उसका एक कारण.. जब तक हमारी परिवार व्‍यवस्‍था प्राणवान रही है, हम ताकतवर रहे है और उस परिवार व्‍यवस्‍था को प्राणवान बनाने में बहुत बड़ी भूमिका अगर किसी ने निभाई है तो रामचरितमानस और राम जी का परिवार जीवन है। मर्यादा पुरूषोत्‍तम राम.. मर्यादाओं में किसने कैसे जीना परिवार में। किसकी कैसे मर्यादा को पालन करना, कैसा व्‍यवहार करना, आचरण का उत्‍तम संस्‍कार का हमें दर्शन होता है। रामचरितमानस की क्‍या ताकत देखिए हजारों साल हो गए, पीढि़यां बीत गई लेकिन वहीं भाव, वही परम्‍परा, वही संस्‍कार, वही संदेश आज भी जीवित है। आज एक बात हम कहें, लिखित कहें लेकिन संदेश पहुंचते-पहुंचते सात दिन में उसका अर्थ अलग ही हो जाता है। ऐसा कौन सा सामर्थ्‍य होगा कि जिसमें आज भी अनेक व्‍याख्‍याएं होने के बाद भी मूल तत्‍व को कहीं पर भी खरोच नहीं आई है। ऐसी कृति मानव को इस धरती के साथ जोड़ने का इतना बड़ा काम है।

आज भी अगर हम मॉरिशस में जाए दुनिया के कई देशों में, जो लोग गुलामी के कालखंड में मजदूर के रूप में उनको उठा करके ले जाया गया, कुछ नहीं था, निर्धन थे। लेकिन तुलसीकृत रामायण साथ ले जाना नहीं भूले, हनुमान चालीसा ले जाना नहीं भूले और डेढ़ सौ साल अलग जीवन, भाषा भूल गए, पहनावा बदल गया, नाम में बदलाव आया, लेकिन एक अमानत उनके पास बची जिससे आज भी भारत के साथ उनका नाता जुड़ा रहा है और कैसे जुड़ता है मुझे बहुत साल पहले की घटना याद है। वेंस्‍टइंडिज की एक क्रिकेट टीम भारत में खेलने के लिए आई थी। बहुत साल पहले की बात कर रहा हूं और उसके मैनेजर का मेरे यहा फोन आया। अब आज से 30-35, 40 साल पहले मुझे कोई पहचानता नहीं था, न कोई नाम न कोई जान। उनका टेलीफोन आया मुझे आश्‍चर्य हुआ, कि बोले वेंस्‍टइंडिज के क्रिकेटर के मैनेजर आप से बात करना चाहते है, मिलना चाहते है। तो किसी ने नाम दिया होगा, कही परिचय निकला होगा। मैंने कहा वेंस्‍टइंडिज टीम से मेरा तो वैसे भी क्रिकेट के खेल से.. मैं कोई खिलाड़ी तो हूं नहीं, तो पता चला तो बोले रामरिखीनाम है इनका और वो अपनी पत्‍नी के साथ आए है। मूल भारतीय है, तो मैं उनको मिलने गया तो वहां एचआरडी मिनिस्‍ट्री में काम करते थे और टीम मैनेजर के रूप में आए थे। तो मैंने कहा ये ऋषि शब्‍द कहा से आया तो बोले ऋषि में से आया हुआ होगा, फिर उनकी पत्‍नी का नाम पूछा तो बोले सीता। वो भारत पहली बार आए थे। लेकिन उनको अपना और मैं जब गया तो specially वो भारतीय परिवेश पहन करके बैठे थे। यानी एक प्रकार से एक ग्रंथ डेढ़ सौ साल के बाद भी अपनेपन से जोड़ करके रखता है] इसका ये उत्‍तम अनुभव.. और इस अर्थ में रामचरितमानस आज digital form में ये सबके सामने जा रहा है।

आकाशवाणी की ताकत बहुत बड़ी है, कितनी ही चीजें क्‍यों न बदल जाए, लेकिन कुछ मूलभूत चीजें होती है, जो अपनी.. बुलंदी कभी खोती नहीं है। हिन्‍दुस्‍तान के जीवन में आकाशवाणी की ये बहुत बड़ी ताकत है। लोगों को भले एहसास न होता, हो मुझे तो एहसास है। हम लोग भली-भांति समझते है आकाशवाणी की ताकत क्‍या है। ये मेरा एक ऐसा अनुभव है जो मैं कभी भूल नहीं सकता। मैं हिमाचल में भारतीय जनता पार्टी के संगठन का काम करता था। अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे। और मैं हिमाचल में काम करता था, तो एक दिन मैं अपने दौरे पर जा रहा था तो ऐसे ही पहाड़ों में एक ढाबे पर रूक करके चाय पीने की सोचा, तो गाड़ी को रोकी। जब मैं नीचे उतरा तो जो ढाबे वाला था, चाय वाला उसने मुझे लड्डू खिलाया। मैंने कहा भई मुझे चाय पीनी है। अरे बोले साहब लड्डू खाओ पहले, मौज करो। मैंने कहा क्‍या बात है। बोले अरे आज अटल जी ने बम फोड़ दिया, मैंने कहा अटल जी ने बम फोड़ दिया। अरे बोले अभी-अभी रोडियो पर सुना है कि भारत ने बम फोड़ा है। न्‍यू‍क्लियर टेस्‍ट हुआ था। मुझे वो पहली खबर आकाशवाणी के माध्‍यम से एक चाय वाले, ढाबे वाले ने दी।

यानी हम जिन चीजों का कभी-कभी महत्‍व नहीं समझते, वो कितना बड़ा होता है ओर सिर्फ खबर नहीं, सिर्फ खबर नहीं। हिमायल की पहाडि़यों में दूर-सुदूर अकेला चाय के ढाबे वाला, इस समाचार से अपने आपको इतना गौरवान्वित महसूस कर रहा है कि गरीब होने के बावजूद भी अपनी दुकान की मिठाई मुफ्त में बांट रहा है। संदेश की ताकत क्या है, देखिए और समय ज्‍यादा नहीं हुआ होगा, ये 5 बजे declare हुआ होगा शाम को और मैं करीब 6 सवा 6 बजे वहां से गुजर रहा हूं। कहने का तात्‍पर्य ये कि हमारे ये communication अपने आप में इतने बड़े देश में बहुत अनिवार्य है, बहुत आवश्‍यक है और आज के competition के युग में आकाशवाणी को स्‍पर्धा में फंसने की जरूरत नहीं है जी। उसने तो अपनी मूलभूत धाराओं को पकड़ करके जन-जन के दिलों तक जुड़े रहना ओर देश को जोड़ के रखना और भविष्‍य के साथ उनको उत्‍साहित करते रहना ये उसका काम है। और उस काम को हम कैसे निभाएं।

युग बदलता जाए वैसे बदलाव आवश्‍यक होता है कायाकल्प जरूरी होते है ओर जब कायाकल्प की बात करता हूं तब आत्‍मा वही रहता है, समयाकूल बदलाव आता है। ये डिजिटल रूप उसका एक सही कदम है। हम लोग, अब मुझे बताया गया आकाशवाणी के पास 9 लाख घंटों का recording material उपलब्‍ध है, 9 लाख घंटे। शायद दुनिया में किसी एक ईकाई के पास इतना खजाना नहीं होगा जी और उस समय आकाशवाणी का जो रूप-रंग था बाद में जो हमारे यहां जो चला माहौल, अलग बात है, मैं जरूर मानता हूं कि आ‍काशवाणी के पास भारत की मूल आवाज, भारत का मूल चिंतन, भारत की मूल undiluted ये उसमें उपलब्ध होगा। ये 9 लाख घंटों का जब digital version तैयार होगा फिर उसमें भाषाओं का उपयोग किया जा सकता है कि नहीं कितनी बड़ी सेवा होगी, कितना बड़ा खजाना ओर एक प्रकार से digital history का ये सबसे बड़ा resource material बन सकता है। जो शायद आने वाले दिनों में जो पीएचडी करना चाहते होगे उनके लिए एक बहुत अवसर बनेगा। और भारत का दूरदर्शन का काम तो ऐसा है कि हिन्‍दुस्तान की सभी यूनिवर्सिटी में एकाध-एकाध विद्यार्थी ने सिर्फ आकाशवाणी के योगदान पर पीएचडी करनी चाहिए, रिसर्च करनी चाहिए। हम लोगों के स्‍वभाव नहीं है। एक एकाध प्रेमचंद की कथा पर तो रिसर्च कर लेते है, लेकिन इतना बड़ा खजाना। आगे चल करके Human Resource Department के लोग, Culture Department के लोग सोचें कि हमारे नौजवान इस खजाने का research करके क्‍या दे सकते है दुनिया को। हम आगे के लिए क्‍या सोचे। विश्‍व के लोग भी अंतर्राष्‍ट्रीय योगा दिवस ने सिद्ध कर दिया है कि दुनिया भारत को जानने-समझने के लिए आतुर है, तैयार है। वे अंतर्राष्‍ट्रीय योगा दिवस ने ये message दिया है कि भारत के पास कुछ है जो हमें जानना है, पाना है ये मूढ़ बना है तब हमारा कर्तव्‍य बनता है कि हम इसको कैसे पहुंचाए और ये अगर हम कर सकते है तो हम कितनी बढ़ी सेवा कर सकते है।

इनदिनों आकाशवाणी एक अच्‍छा काम भी किया है.. आकाशवाणी नहीं, रेडियों के कारण धीरे-धीरे जो आज एफएम चैनल वगैरह सब जो दुनिया चलती है। लोग कहते है भ्रष्‍टाचार के लिए क्‍या किया? हमारे यहां FM चैनल सारी पहले सरकारी खजाने में 80 सौ करोड़ रुपया देती थी। अभी आक्‍शन चल रहा है, आक्‍शन से देंगे ट्रांसपैरेंसी, परिणाम क्‍या आया मालूम है अब तक करीब-करीब साढ़े 11 सौ करोड़ की बोली बोल चुके है, अभी तो बोली चल रही है और उसके जो rules and regulations है उसके हिसाब से सरकार के खजाने में जो 80 सौ करोड़ आते थे एक स्थिति आएंगी 27 सौ-28 सौ करोड़ रुपए आएगे। व्‍यवस्‍थाओं को transparent करने से व्‍यवस्‍थाओं को आधुनिक टेक्‍नोलोजी से जोड़ करके भ्रष्‍टाचार से मुक्ति कैसे पाई जा सकती है। कोई नया आर्थिक बोझ डाले बिना भी देश के विकास में धन कैसे उपलब्‍ध किया जो सकता है इसका एक बेहतरीन नमूना.. ये आकाशवाणी और रेडियो के संबंध में जो भारत सरकार ने अरुण जी के नेतृत्‍व में किया है, उसका ये परिणाम है।

तो हर दिशा में हम इस काम को आगे बढ़ा रहे है और मुझे आशा है कि ये digital version के कारण विश्‍व के लोग जो जानना चाहते है, समझना चाहते है उनके लिए उपकारक होगा। भोपाल केंद्र के लोगों ने गौरवपूर्ण काम किया है; आने वाले दिनों में भोपाल में एक विश्‍व हिन्‍दी सम्‍मेलन हो रहा है। आकाशवाणी सोचे विश्‍व हिन्‍दी सम्‍मेलन में जो delegate आने वाले है भोपाल में ही हो रहा है तो ये उनको गिफ्ट के रूप में दिया जाए, ताकि एक souvenir..एक सच्चा souvenir ये बनेगा, जो विश्‍वभर से गरीब, काफी बड़ी तादात में लोग आ रहे है तो एक बहुत बड़ा अवसर बनेगा।

मैं फिर एक बार विभाग को, प्रसार भारती को, आकाशवाणी को ये बहुमूल्य चीजें संभाले रखने के लिए बधाई देता हूं। और देशवासियों को ये नजराना देते हुए मैं गर्व महसूस करता हूं। मैं आभारी हूं डॉ. कर्ण सिंह जी का और मैंने देखा है कि हमारे कर्ण सिंह जी इन चीजों से ऐसे जुड़े हुए है, इसका इतना महामूल्‍य मानते है वो, कि उनको कोई राजकीय विचारधारा कभी बाधा नहीं बनती है और हमेशा ऐसी चीजों को वो आर्शीवाद देते रहें, प्रोत्‍साहन देते रहें। आज विशेषरूप आए इसलिए मैं उनका आभार व्‍यक्‍त करता हूं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 'मन की बात', यानि देश के सामूहिक प्रयासों की बात, देश की उपलब्धियों की बात, जन-जन के सामर्थ्य की बात, ‘मन की बात' यानि देश के युवा सपनों, देश के नागरिकों की आकांक्षाओं की बात | मैं पूरे महीने, 'मन की बात' का इंतजार करता रहता हूँ, ताकि, आपसे सीधा संवाद कर सकूँ । कितने ही सारे संदेश, कितने ही messages ! मेरा पूरा प्रयास रहता है कि ज्यादा- से-ज्यादा संदेश को पढूँ, आपके सुझावों पर मंथन करूँ ।

साथियो, आज बड़ा ही खास दिन है - आज NCC दिवस है | NCC का नाम सामने आते ही हमें स्कूल-कॉलेज के दिन याद आ जाते हैं | मैं स्वयं भी NCC Cadet रहा हूँ, इसलिए, पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इससे मिला अनुभव मेरे लिए अनमोल है | 'NCC' युवाओं में अनुशासन, नेतृत्व और सेवा की भावना पैदा करती है । आपने अपने आस-पास देखा होगा, जब भी कहीं कोई आपदा होती है, चाहे बाढ़ की स्थिति हो, कहीं भूकंप आया हो, कोई हादसा हुआ हो, वहाँ, मदद करने के लिए NCC के cadets जरूर मौजूद हो जाते हैं । आज देश में NCC को मजबूत करने के लिए लगातार काम हो रहा है । 2014 में करीब 14 लाख युवा NCC से जुड़े थे | अब 2024 में, 20 लाख से ज्यादा युवा NCC से जुड़े हैं | पहले के मुकाबले पाँच हजार और नए स्कूल-कॉलेजों में अब NCC की सुविधा हो गई है, और सबसे बड़ी बात, पहले NCC में girls cadets की संख्या करीब 25% (percent) के आस-पास ही होती थी | अब NCC में girls cadets की संख्या करीब-करीब 40% (percent) हो गई है | बॉर्डर किनारे रहने वाले युवाओं को ज्यादा से ज्यादा NCC से जोड़ने का अभियान भी लगातार जारी है । मैं युवाओं से आग्रह करूंगा कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में NCC से जुड़ें | आप देखिएगा आप किसी भी career में जाएं, NCC से आपके व्यक्तित्व निर्माण में बड़ी मदद मिलेगी |

साथियो, विकसित भारत के निर्माण में युवाओं का रोल बहुत बड़ा है | युवा मन जब एकजुट होकर देश की आगे की यात्रा के लिए मंथन करते हैं, चिंतन करते हैं, तो निश्चित रूप से इसके ठोस रास्ते निकलते हैं । आप जानते हैं 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर देश 'युवा दिवस' मनाता है । अगले साल स्वामी विवेकानंद जी की 162वीं जयंती है | इस बार इसे बहुत खास तरीके से मनाया जाएगा | इस अवसर पर 11-12 जनवरी को दिल्ली के भारत मंडपम में युवा विचारों का महाकुंभ होने जा रहा है, और इस पहल का नाम है 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue’ | भारत-भर से करोड़ों युवा इसमें भाग लेंगे | गाँव, block, जिले, राज्य और वहाँ से निकलकर चुने हुए ऐसे दो हजार युवा भारत मंडपम में 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue' के लिए जुटेंगे | आपको याद होगा, मैंने लाल किले की प्राचीर से ऐसे युवाओं से राजनीति में आने का आहवान किया है, जिनके परिवार का कोई भी व्यक्ति और पूरे परिवार का political background नहीं है, ऐसे एक लाख युवाओं को, नए युवाओं को, राजनीति से जोड़ने के लिए देश में कई तरह के विशेष अभियान चलेंगे | ‘विकसित भारत Young Leaders Dialogue' भी ऐसा ही एक प्रयास है । इसमें देश और विदेश से experts आएंगे | अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हस्तियाँ भी रहेंगी | मैं भी इसमें ज्यादा-से-ज्यादा समय उपस्थित रहूँगा | युवाओं को सीधे हमारे सामने अपने ideas को रखने का अवसर मिलेगा | देश इन ideas को कैसे आगे लेकर जा सकता है? कैसे एक ठोस roadmap बन सकता है? इसका एक blueprint तैयार किया जाएगा, तो आप भी तैयार हो जाइए, जो भारत के भविष्य का निर्माण करने वाले हैं, जो देश की भावी पीढ़ी हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ा मौका आ रहा है | आइए, मिलकर देश बनाएं, देश को विकसित बनाएं ।

मेरे प्यारे देशवासियों, ‘मन की बात’ में, हम अक्सर ऐसे युवाओं की चर्चा करते हैं | जो निस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम कर रहे हैं ऐसे कितने ही युवा हैं जो लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे हैं | हम अपने आस-पास देखें तो कितने ही लोग दिख जाते है, जिन्हें, किसी ना किसी तरह की मदद चाहिए,कोई जानकारी चाहिए I मुझे ये जानकर अच्छा लगा कुछ युवाओं ने समूह बनाकर इस तरह की बात को भी address किया है जैसे लखनऊ के रहने वाले वीरेंद्र हैं, वो बुजुर्गों को Digital life certificate के काम में मदद करते हैं I आप जानते हैं कि नियमों के मुताबिक सभी Pensioners को साल में एक बार Life Certificate जमा कराना होता है I 2014 तक इसकी प्रक्रिया यह थी इसे बैंकों में जाकर बुजुर्ग को खुद जमा करना पड़ता था आप कल्पना कर सकते हैं कि इससे हमारे बुजुर्गों को कितनी असुविधा होती थी I अब ये व्यवस्था बदल चुकी है I अब Digital Life Certificate देने से चीजें बहुत ही सरल हो गई हैं, बुजुर्गों को बैंक नहीं जाना पड़ता I बुजुर्गों को Technology की वजह से कोई दिक्कत ना आए, इसमें, वीरेंद्र जैसे युवाओं की बड़ी भूमिका है I वो, अपने क्षेत्र के बुजुर्गों को इसके बारे में जागरूक करते रहते हैं I इतना ही नहीं वो बुजुर्गों को tech savvy भी बना रहे हैं ऐसे ही प्रयासों से आज Digital Life certificate पाने वालों की संख्या 80 लाख के आँकड़े को पार कर गई है I इनमें से दो लाख से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनकी आयु 80 के भी पार हो गई है I

साथियो, कई शहरों में ‘युवा’ बुजुर्गों को Digital क्रांति में भागीदार बनाने के लिए भी आगे आ रहे हैं I भोपाल के महेश ने अपने मोहल्ले के कई बुजुर्गों को Mobile के माध्यम से Payment करना सिखाया है I इन बुजुर्गों के पास smart phone तो था, लेकिन, उसका सही उपयोग बताने वाला कोई नहीं था I बुजुर्गों को Digital arrest के खतरे से बचाने के लिए भी युवा आगे आए हैं I अहमदाबाद के राजीव, लोगों को Digital Arrest के खतरे से आगाह करते हैं I मैंने ‘मन की बात’ के पिछले episode में Digital Arrest की चर्चा की थी I इस तरह के अपराध के सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग ही बनते हैं I ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम उन्हें जागरूक बनाएं और cyber fraud से बचने में मदद करें I हमें बार-बार लोगों को समझाना होगा कि Digital Arrest नाम का सरकार में कोई भी प्रावधान नहीं है - ये सरासर झूठ, लोगों को फ़साने का एक षड्यन्त्र है मुझे खुशी है कि हमारे युवा साथी इस काम में पूरी संवेदनशीलता से हिस्सा ले रहे हैं और दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं I

मेरे प्यारे देशवासियो, आजकल बच्चों की पढ़ाई को लेकर कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं | कोशिश यही है कि हमारे बच्चों में creativity और बढ़े, किताबों के लिए उनमें प्रेम और बढ़े - कहते भी हैं ‘किताबें’ इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं, और अब इस दोस्ती को मजबूत करने के लिए, Library से ज्यादा अच्छी जगह और क्या होगी | मैं चेन्नई का एक उदाहरण आपसे share करना चाहता हूं | यहां बच्चों के लिए एक ऐसी library तैयार की गई है, जो, creativity और learning का Hub बन चुकी है | इसे प्रकृत् अरिवगम् के नाम से जाना जाता है | इस library का idea, technology की दुनिया से जुड़े श्रीराम गोपालन जी की देन है | विदेश में अपने काम के दौरान वे latest technology की दुनिया से जुड़े रहे | लेकिन, वो, बच्चों में पढ़ने और सीखने की आदत विकसित करने के बारे में भी सोचते रहे | भारत लौटकर उन्होंने प्रकृत् अरिवगम् को तैयार किया | इसमें तीन हजार से अधिक किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए बच्चों में होड़ लगी रहती है | किताबों के अलावा इस library में होने वाली कई तरह की activities भी बच्चों को लुभाती हैं | Story Telling session हो, Art Workshops हो, Memory Training Classes, Robotics Lesson या फिर Public Speaking, यहां, हर किसी के लिए कुछ-न-कुछ जरूर है, जो उन्हें पसंद आता है |

साथियो, हैदराबाद में ‘Food for Thought’ Foundation ने भी कई शानदार libraries बनाई हैं | इनका भी प्रयास यही है कि बच्चों को ज्यादा-से-ज्यादा विषयों पर ठोस जानकारी के साथ पढ़ने के लिए किताबें मिलें | बिहार में गोपालगंज के ‘Prayog Library’ की चर्चा तो आसपास के कई शहरों में होने लगी है | इस library से करीब 12 गांवों के युवाओं को किताबें पढ़ने की सुविधा मिलने लगी है, साथ ही ये, library पढ़ाई में मदद करने वाली दूसरी जरूरी सुविधाएँ भी उपलब्ध करा रही है | कुछ libraries तो ऐसी हैं, जो, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में students के बहुत काम आ रही हैं | ये देखना वाकई बहुत सुखद है कि समाज को सशक्त बनाने में आज library का बेहतरीन उपयोग हो रहा है | आप भी किताबों से दोस्ती बढ़ाइए, और देखिए, कैसे आपके जीवन में बदलाव आता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, परसों रात ही मैं दक्षिण अमेरिका के देश गयाना से लौटा हूं | भारत से हजारों किलोमीटर दूर, गयाना में भी, एक ‘Mini भारत’ बसता है | आज से लगभग 180 वर्ष पहले, गयाना में भारत के लोगों को, खेतों में मजदूरी के लिए, दूसरे कामों के लिए, ले जाया गया था | आज गयाना में भारतीय मूल के लोग राजनीति, व्यापार, शिक्षा और संस्कृति के हर क्षेत्र में गयाना का नेतृत्व कर रहे हैं | गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं, जो, अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं | जब मैं गयाना में था, तभी, मेरे मन में एक विचार आया था - जो मैं ‘मन की बात’ में आपसे share कर रहा हूं | गयाना की तरह ही दुनिया के दर्जनों देशों में लाखों की संख्या में भारतीय हैं | दशकों पहले की 200-300 साल पहले की उनके पूर्वजों की अपनी कहानियां हैं | क्या आप ऐसी कहानियों को खोज सकते हैं कि किस तरह भारतीय प्रवासियों ने अलग-अलग देशों में अपनी पहचान बनाई! कैसे उन्होंने वहाँ की आजादी की लड़ाई के अंदर हिस्सा लिया! कैसे उन्होंने अपनी भारतीय विरासत को जीवित रखा? मैं चाहता हूं कि आप ऐसी सच्ची कहानियों को खोजें, और मेरे साथ share करें | आप इन कहानियों को NaMo App पर या MyGov पर #IndianDiasporaStories के साथ भी share कर सकते हैं |

साथियो, आपको ओमान में चल रहा एक extraordinary project भी बहुत दिलचस्प लगेगा | अनेकों भारतीय परिवार कई शताब्दियों से ओमान में रह रहे हैं | इनमें से ज्यादातर गुजरात के कच्छ से जाकर बसे हैं | इन लोगों ने व्यापार के महत्वपूर्ण link तैयार किए थे | आज भी उनके पास ओमानी नागरिकता है, लेकिन भारतीयता उनकी रग-रग में बसी है | ओमान में भारतीय दूतावास और National Archives of India के सहयोग से एक team ने इन परिवारों की history को preserve करने का काम शुरू किया है | इस अभियान के तहत अब तक हजारों documents जुटाए जा चुके हैं | इनमें diary, account book, ledgers, letters और telegram शामिल हैं | इनमें से कुछ दस्तावेज तो सन् 1838 के भी हैं | ये दस्तावेज, भावनाओं से भरे हुए हैं | बरसों पहले जब वो ओमान पहुंचे, तो उन्होंने किस प्रकार का जीवन जिया, किस तरह के सुख-दुख का सामना किया, और, ओमान के लोगों के साथ उनके संबंध कैसे आगे बढ़े - ये सब कुछ इन दस्तावेजों का हिस्सा है | ‘Oral History Project’ ये भी इस mission का एक महत्वपूर्ण आधार है | इस mission में वहां के वरिष्ठ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं | लोगों ने वहाँ अपने रहन-सहन से जुड़ी बातों को विस्तार से बताया है |

साथियो ऐसा ही एक ‘Oral History Project’ भारत में भी हो रहा है | इस project के तहत इतिहास प्रेमी देश के विभाजन के कालखंड में पीड़ितों के अनुभवों का संग्रह कर रहें हैं | अब देश में ऐसे लोगों की संख्या कम ही बची है, जिन्होंने, विभाजन की विभीषिका को देखा है | ऐसे में यह प्रयास और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है |

साथियो, जो देश, जो स्थान, अपने इतिहास को संजोकर रखता है, उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है | इसी सोच के साथ एक प्रयास हुआ है जिसमें गांवों के इतिहास को संजोने वाली एक Directory बनाई है | समुद्री यात्रा के भारत के पुरातन सामर्थ्य से जुड़े साक्ष्यों को सहेजने का भी अभियान देश में चल रहा है | इसी कड़ी में, लोथल में, एक बहुत बड़ा Museum भी बनाया जा रहा है, इसके अलावा, आपके संज्ञान में कोई manuscript हो, कोई ऐतिहासिक दस्तावेज हो, कोई हस्तलिखित प्रति हो तो उसे भी आप, National Archives of India की मदद से सहेज सकते हैं |

साथियो, मुझे Slovakia में हो रहे ऐसे ही एक और प्रयास के बारे में पता चला है जो हमारी संस्कृति को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने से जुड़ा है | यहां पहली बार Slovak language में हमारे उपनिषदों का अनुवाद किया गया है | इन प्रयासों से भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का भी पता चलता है | हम सभी के लिए ये गर्व की बात है कि दुनिया-भर में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके हृदय में, भारत बसता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, अब मैं आपसे देश की एक ऐसी उपलब्धि साझा करना चाहता हूं जिसे सुनकर आपको खुशी भी होगी और गौरव भी होगा, और अगर आपने नहीं किया है, तो शायद पछतावा भी होगा | कुछ महीने पहले हमने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान शुरू किया था | इस अभियान में देश-भर के लोगों ने बहुत उत्साह से हिस्सा लिया | मुझे ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि इस अभियान ने सौ करोड़ पेड़ लगाने का अहम पड़ाव पार कर लिया है | सौ करोड़ पेड़, वो भी, सिर्फ पाँच महीनों में - ये हमारे देशवासियों के अथक प्रयासों से ही संभव हुआ है | इससे जुड़ी एक और बात जानकर आपको गर्व होगा | ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान अब दुनिया के दूसरे देशों में भी फैल रहा है | जब मैं गयाना में था, तो वहां भी, इस अभियान का साक्षी बना | वहां मेरे साथ गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली, उनकी पत्नी की माता जी, और परिवार के बाकी सदस्य, ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में शामिल हुए |

साथियो, देश के अलग-अलग हिस्सों में ये अभियान लगातार चल रहा है | मध्य प्रदेश के इंदौर में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के तहत, पेड़ लगाने का record बना है - यहां 24 घंटे में 12 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए गए | इस अभियान की वजह से इंदौर की Revati Hills के बंजर इलाके, अब, green zone में बदल जाएंगे | राजस्थान के जैसलमेर में इस अभियान के द्वारा एक अनोखा record बना - यहां महिलाओं की एक टीम ने एक घंटे में 25 हजार पेड़ लगाए | माताओं ने मां के नाम पेड़ लगाया और दूसरों को भी प्रेरित किया। यहां एक ही जगह पर पाँच हज़ार से ज़्यादा लोगों ने मिलकर पेड़ लगाए - ये भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है । ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत कई सामाजिक संस्थाएँ स्थानीय जरूरतों के हिसाब से पेड़ लगा रही हैं । उनका प्रयास है कि जहां पेड़ लगाए जाएँ वहाँ पर्यावरण के अनुकूल पूरा Eco System Develop हो । इसलिए ये संस्थाएँ कहीं औषधीय पौधे लगा रहीं हैं, तो कहीं, चिड़ियों का बसेरा बनाने के लिए पेड़ लगा रहीं हैं । बिहार में ‘JEEViKA Self Help Group’ की महिलाओं ने 75 लाख पेड़ लगाने का अभियान चला रहीं हैं । इन महिलाओं का focus फल वाले पेड़ों पर है, जिससे आने वाले समय में आय भी की जा सके ।

साथियो, इस अभियान से जुड़कर कोई भी व्यक्ति अपनी माँ के नाम पर पेड़ लगा सकता है । अगर माँ साथ है तो उन्हें साथ लेकर आप पेड़ लगा सकते हैं, नहीं तो उनकी तस्वीर साथ में लेकर आप इस अभियान का हिस्सा बन सकते हैं । पेड़ के साथ आप अपनी Selfie भी mygov.in पर पोस्ट कर सकते हैं । माँ, हम सबके लिए जो करती है हम उनका ऋण कभी नहीं चुका सकते, लेकिन, एक पेड़ माँ के नाम लगाकर हम उनकी उपस्थिति को हमेशा के लिए जीवंत बना सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आप सभी लोगों ने बचपन में गौरेया या Sparrow को अपने घर की छत पर, पेड़ों पर चहकते हुए ज़रूर देखा होगा । गौरेया को तमिल और मलयालम में कुरुवी, तेलुगु में पिच्चुका और कन्नड़ा में गुब्बी के नाम से जाना जाता है । हर भाषा, संस्कृति में, गौरेया को लेकर किस्से-कहानी सुनाए जाते हैं । हमारे आसपास Biodiversity को बनाए रखने में गौरेया का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है, लेकिन, आज शहरों में बड़ी मुश्किल से गौरेया दिखती है । बढ़ते शहरीकरण की वजह से गौरेया हमसे दूर चली गई है । आज की पीढ़ी के ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्होंने गौरेया को सिर्फ तस्वीरों या वीडियो में देखा है । ऐसे बच्चों के जीवन में इस प्यारी पक्षी की वापसी के लिए कुछ अनोखे प्रयास हो रहे हैं । चेन्नई के कूडुगल ट्रस्ट ने गौरेया की आबादी बढ़ाने के लिए स्कूल के बच्चों को अपने अभियान में शामिल किया है । संस्थान के लोग स्कूलों में जाकर बच्चों को बताते हैं कि गौरेया रोज़मर्रा के जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है । ये संस्थान बच्चों को गौरेया का घोंसला बनाने की training देते है । इसके लिए संस्थान के लोगों ने बच्चों को लकड़ी का एक छोटा सा घर बनाना सिखाया । इसमें गौरेया के रहने, खाने का इंतजाम किया । ये ऐसे घर होते हैं जिन्हें किसी भी इमारत की बाहरी दीवार पर या पेड़ पर लगाया जा सकता है । बच्चों ने इस अभियान में उत्साह के साथ हिस्सा लिया और गौरेया के लिए बड़ी संख्या में घोंसला बनाना शुरू कर दिया । पिछले चार वर्षों में संस्था ने गौरेया के लिए ऐसे दस हज़ार घोंसले तैयार किए हैं । कूडुगल ट्रस्ट की इस पहल से आसपास के इलाकों में गौरेया की आबादी बढ़नी शुरू हो गई है। आप भी अपने आसपास ऐसे प्रयास करेंगे तो निश्चित तौर पर गौरेया फिर से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगी ।

साथियो, कर्नाटका के मैसुरू की एक संस्था ने बच्चों के लिए ‘Early Bird’ नाम का अभियान शुरू किया है । ये संस्था बच्चों को पक्षियों के बारे में बताने के लिए खास तरह की library चलाती है । इतना ही नहीं, बच्चों में प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा करने के लिए ‘Nature Education Kit’ तैयार किया है। इस Kit में बच्चों के लिए Story Book, Games, Activity Sheets और jig-saw puzzles हैं । ये संस्था शहर के बच्चों को गांवों में लेकर जाती है और उन्हें पक्षियों के बारे में बताती है । इस संस्था के प्रयासों की वजह से बच्चे पक्षियों की अनेक प्रजातियों को पहचानने लगे हैं । ‘मन की बात’ के श्रोता भी इस तरह के प्रयास से बच्चों में अपने आसपास को देखने, समझने का अलग नज़रिया विकसित कर सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आपने देखा होगा, जैसे ही कोई कहता है ‘सरकारी दफ्तर’ तो आपके मन में फाइलों के ढ़ेर की तस्वीर बन जाती है | आपने फिल्मों में भी ऐसा ही कुछ देखा होगा | सरकारी दफ्तरों में इन फाइलों के ढ़ेर पर कितने ही मजाक बनते रहते हैं, कितनी ही कहानियां लिखी जा चुकी हैं | बरसों-बरस तक ये फाइलें Office में पड़े-पड़े धूल से भर जाती थीं, वहां, गंदगी होने लगती थी - ऐसी दशकों पुरानी फाइलों और Scrap को हटाने के लिए एक विशेष स्वच्छता अभियान चलाया गया | आपको ये जानकर खुशी होगी कि सरकारी विभागों में इस अभियान के अद्भुत परिणाम सामने आए हैं | साफ-सफाई से दफ्तरों में काफी जगह खाली हो गई है | इससे दफ्तर में काम करने वालों में एक Ownership का भाव भी आया है | अपने काम करने की जगह को स्वच्छ रखने की गंभीरता भी उनमें आई है |

सथियो, आपने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ये कहते सुना होगा, कि जहां स्वच्छता होती है, वहां, लक्ष्मी जी का वास होता है | हमारे यहाँ ‘कचरे से कंचन’ का विचार बहुत पुराना है | देश के कई हिस्सों में ‘युवा’ बेकार समझी जाने वाली चीजों को लेकर, कचरे से कंचन बना रहे हैं | तरह-तरह के innovation कर रहे हैं | इससे वो पैसे कमा रहे हैं, रोजगार के साधन विकसित कर रहे हैं | ये युवा अपने प्रयासों से sustainable lifestyle को भी बढ़ावा दे रहे हैं | मुंबई की दो बेटियों का ये प्रयास, वाकई बहुत प्रेरक है | अक्षरा और प्रकृति नाम की ये दो बेटियाँ, कतरन से फैशन के सामान बना रही हैं | आप भी जानते हैं कपड़ों की कटाई-सिलाई के दौरान जो कतरन निकलती है, इसे बेकार समझकर फेंक दिया जाता है | अक्षरा और प्रकृति की Team उन्हीं कपड़ों के कचरे को Fashion Product में बदलती है | कतरन से बनी टोपियां, Bag हाथों-हाथ बिक भी रही है |

साथियो, साफ-सफाई को लेकर UP के कानपुर में भी अच्छी पहल हो रही है | यहाँ कुछ लोग रोज सुबह Morning Walk पर निकलते हैं और गंगा के घाटों पर फैले Plastic और अन्य कचरे को उठा लेते हैं | इस समूह को ‘Kanpur Ploggers Group’ नाम दिया गया है | इस मुहिम की शुरुआत कुछ दोस्तों ने मिलकर की थी | धीरे-धीरे ये जन भागीदारी का बड़ा अभियान बन गया | शहर के कई लोग इसके साथ जुड़ गए हैं | इसके सदस्य, अब, दुकानों और घरों से भी कचरा उठाने लगे हैं | इस कचरे से Recycle Plant में tree guard तैयार किए जाते हैं, यानि, इस Group के लोग कचरे से बने tree guard से पौधों की सुरक्षा भी करते हैं|

साथियो, छोटे-छोटे प्रयासों से कैसी बड़ी सफलता मिलती है, इसका एक उदाहरण असम की इतिशा भी है | इतिशा की पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और पुणे में हुई है | इतिशा corporate दुनिया की चमक-दमक छोड़कर अरुणाचल की सांगती घाटी को साफ बनाने में जुटी हैं | पर्यटकों की वजह से वहां काफी plastic waste जमा होने लगा था | वहां की नदी जो कभी साफ थी वो plastic waste की वजह से प्रदूषित हो गई थी | इसे साफ करने के लिए इतिशा स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम कर रही है | उनके group के लोग वहां आने वाले tourist को जागरूक करते हैं और plastic waste को collect करने के लिए पूरी घाटी में बांस से बने कूड़ेदान लगाते हैं |

साथियो, ऐसे प्रयासों से भारत के स्वच्छता अभियान को गति मिलती है | ये निरंतर चलते रहने वाला अभियान है | आपके आस-पास भी ऐसा जरूर होता ही होगा | आप मुझे ऐसे प्रयासों के बारे में जरूर लिखते रहिए |

साथियो, ‘मन की बात’ के इस episode में फिलहाल इतना ही | मुझे तो पूरे महीने, आपकी प्रतिक्रियाओं, पत्रों और सुझावों का खूब इंतजार रहता है | हर महीने आने वाले आपके संदेश मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा देते हैं | अगले महीने हम फिर मिलेंगे, ‘मन की बात’ के एक और अंक में - देश और देशवासियों की नई उपलब्धियों के साथ, तब तक के लिए, आप सभी देशवासियों को, मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं |

बहुत-बहुत धन्यवाद |