केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान नरेंद्र सिंह तोमर जी, श्रीमती स्मृति ईरानी जी, पुरुषोत्तम रुपाला जी, कैलाश चौधरी जी, श्रीमती देबाश्री चौधरी जी, Food and Agriculture Organization के प्रतिनिधि गण, अन्य महानुभाव और मेरे प्यारे भाइयों और बहनों, World Food Day के अवसर पर आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। दुनियाभर में जो लोग कुपोषण को दूर करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं, मैं उन सभी को भी बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
भारत के हमारे किसान साथी- हमारे अन्नदाता, हमारे कृषि वैज्ञानिक, हमारे आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ता, कुपोषण के खिलाफ आंदोलन का एक बहुत बड़ा हमारा मजबूत किला है, मजबूत आधार हैं।
इन्होंने अपने परिश्रम से जहां भारत का अन्न भंडार भर रखा है, वहीं दूर-सुदूर, गरीब से गरीब तक पहुंचने में ये सरकार की मदद भी कर रहे हैं। इन सभी के प्रयासों से ही भारत कोरोना के इस संकटकाल में भी कुपोषण के खिलाफ मजबूत लड़ाई लड़ रहा है।
साथियों, आज Food and Agriculture Organization के लिए भी बहुत महत्व का दिन है। आज इस महत्वपूर्ण संगठन के 75 वर्ष पूरे हुए हैं। इन वर्षों में भारत सहित पूरी दुनिया में FAO ने कृषि उत्पादन बढ़ाने, भुखमरी मिटाने और पोषण बढ़ाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। आज जो 75 रुपए का विशेष सिक्का जारी किया गया है, वो भारत की 130 करोड़ से अधिक जनता जनार्दन की तरफ से आपकी सेवाभावना का सम्मान है। FAO के World Food Program को इस वर्ष का नोबल शांति पुरस्कार मिलना भी एक बड़ी उपलब्धि है। और भारत को खुशी है कि इसमें भी भारत की साझेदारी और भारत का जुड़ाव बहुत ही ऐतिहासिक रहा है। हम सब जानते हैं डॉक्टर बिनय रंजन सेन जब FAO के डायरेक्टर जनरल थे, तब उनके नेतृत्व में ही World Food Program शुरु किया गया था। डॉक्टर सेन ने अकाल और भुखमरी का दर्द बहुत करीब से महसूस किया था। पॉलिसी मेकर बनने के बाद, उन्होंने जिस व्यापकता के साथ काम किया, वो आज भी पूरी दुनिया के काम आ रहा है। वो जो बीज बोया गया था आज उसकी यात्रा नोबेल प्राइज तक पहुंची है।
साथियों, FAO ने बीते दशकों में कुपोषण के खिलाफ भारत की लड़ाई को भी बहुत नजदीक से देखा है। देश में अलग-अलग स्तर पर, कुछ विभागों द्वारा प्रयास हुए थे, लेकिन उनका दायरा या तो सीमित था या टुकड़ों में बिखरा पड़ा था। हम जानते हैं कि छोटी आयु में गर्भधारण करना, शिक्षा की कमी, जानकारी का अभाव, शुद्ध पानी की पर्याप्त सुविधा न होना, स्वच्छता की कमी, ऐसी अनेक वजहों से हमें वो अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाए थे, जो कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में मिलने चाहिए थे। मैं जब गुजरात का मुख्यमंत्री था, तो इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए वहां पर अनेक नई योजनाओं पर काम शुरू किया गया था। आखिर दिक्कत कहां है, नतीजे क्यों नहीं मिल रहे, और नतीजे कैसे मिलेंगे, इसका एक लंबा अनुभव गुजरात में मुझे मिला। उन अनुभवों को लेकर साल 2014 में जब देश की सेवा करने का मौका मिला तो मैं नए सिरे से कुछ प्रयासों को प्रारम्भ किया।
हम Integrated approach लेकर आगे बढ़े, होलिस्टिक अप्रोच लेकर आगे बढ़े। तमाम Silos को समाप्त करके हमने एक Multi-Dimensional बहु-आयामी रणनीति पर काम शुरू किया। एक तरफ नेशनल न्यूट्रिशन मिशन शुरू हुआ तो दूसरी तरफ हर उस फैक्टर पर काम किया गया जो कुपोषण बढ़ने का कारण था। बहुत बड़े स्तर पर परिवार और समाज के व्यवहार में परिवर्तन के लिए भी काम किया। स्वच्छ भारत मिशन के तहत भारत में 11 करोड़ से ज्यादा शौचालय बने। दूर-दराज वाले इलाकों में शौचालय बनने से जहां स्वच्छता आई, वहीं डायरिया जैसी अनेक बीमारियों में भी कमी देखने को मिली। इसी तरह मिशन इंद्रधनुष के तहत गर्भवती माताओं और बच्चों के टीकाकरण का दायरा भी तेज़ी से बढ़ाया गया। इसमें भारत में ही तैयार रोटावायरस जैसे नए टीके भी जोड़े गए। गर्भावस्था और नवजात शिशु के पहले 1000 दिनों को ध्यान में रखते हुए, मां और बच्चे, दोनों के Nutrition और Care के लिए भी एक बड़ा अभियान शुरू किया गया। जल जीवन मिशन के तहत गांव के हर घर तक पाइप से पीने का पानी पहुंचाने के लिए तेज़ी से काम चल रहा है।
आज देश की गरीब बहनों, बेटियों को 1 रुपए में सेनिटेशन पैड्स उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इन सब प्रयासों का एक असर ये भी है कि देश में पहली बार पढ़ाई के लिए बेटियों का Gross Enrolment Ratio, बेटों से भी ज्यादा हो गया है। बेटियों की शादी की उचित उम्र क्या हो, ये तय करने के लिए भी ज़रूरी चर्चा चल रही है। मुझे देश भर की ऐसी जागरूक बेटियों की तरफ से चिटिठ्यां भी आती हैं कि जल्दी से इसका निर्णय करो, कमेटी का रिपोर्ट अभी तक आया क्यों नहीं। मैं उन सभी बेटियों को आश्वासन देता हूं कि बहुत ही जल्द रिपोर्ट आते ही उस पर सरकार अपनी कार्रवाई करेगा।
साथियों, कुपोषण से निपटने के लिए एक और महत्वपूर्ण दिशा में काम हो रहा है। अब देश में ऐसी फसलों को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसमें पौष्टिक पदार्थ- जैसे प्रोटीन, आयरन, जिंक इत्यादि ज्यादा होते हैं। मोटे अनाज-Millets जैसे रागी, ज्वार, बाजरा, कोडो, झांगोरा, बार्री, कोटकी इन जैसे अनाज की पैदावार बढ़े, लोग अपने भोजन में इन्हें शामिल करें, इस ओर प्रयास बढ़ाए जा रहे हैं। मैं आज FAO को विशेष धन्यवाद देता हूं कि उसने वर्ष 2023 को International Year of Millets घोषित करने के भारत के प्रस्ताव को पूरा समर्थन दिया है।
साथियों, भारत ने जब अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव रखा था, तो उसके पीछे सर्वजन हिताय- सर्वजन सुखाय की ही भावना थी। Zero Budget में होलिस्टिक वेलनेस का मंत्र भारत, विश्व के सभी देशों तक पहुंचाना चाहता था। वर्ष 2023 को International Year of Millets घोषित करने के प्रस्ताव के पीछे भी हमारे दिल में वही भाव है, उसी भावना को लेकर हम आये हैं। इससे भारत ही नहीं विश्व भर को दो बड़े फायदे होंगे। एक तो पौष्टिक आहार प्रोत्साहित होंगे, उनकी उपलब्धता और बढ़ेगी। और दूसरा- जो छोटे किसान होते हैं, जिनके पास कम जमीन होती है, सिंचाई के साधन नहीं होते हैं, बारिश पर निर्भर होते हैं, ऐसे छोटे-छोटे किसान, उन्हें बहुत लाभ होगा। ये छोटे और मंझोले किसान ज्यादातर अपनी जमीन पर मोटे अनाज ही उगाते हैं। जहां पानी की दिक्कत है, जमीन उतनी उपजाऊ नहीं है, वहां भी ये मोटे अनाज की पैदावार किसानों को बहुत मदद करती है। यानि International Year of Millets का प्रस्ताव, पोषण और छोटे किसानों की आय, दोनों से जुड़ा हुआ है।
साथियों, भारत में पोषण अभियान को ताकत देने वाला एक और अहम कदम आज उठाया गया है। आज गेहूं और धान सहित अनेक फसलों के 17 नए बीजों की वैरायटी, देश के किसानों को उपलब्ध कराई जा रही हैं। हमारे यहां अक्सर हम देखते हैं कि कुछ फसलों की सामान्य वैरायटी में किसी न किसी पौष्टिक पदार्थ या माइक्रो-न्यूट्रिएंट की कमी रहती है। इन फसलों की अच्छी वैरायटी, Bio-fortified वैरायटी, इन कमियों को दूर कर देती है, अनाज की पौष्टिकता बढ़ाती है। बीते वर्षों में देश में ऐसी वैरायटीज, ऐसे बीजों की रिसर्च और डवलपमेंट में भी बहुत प्रशंसनीय काम हुआ है और मैं इसके लिए एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटीज, सभी वैज्ञानिक, कृषि वैज्ञानिक, उनको बहुत बधाई भी देता हूं। 2014 से पहले जहां इस प्रकार की सिर्फ 1 वैरायटी किसानों तक पहुंची, वहीं आज अलग-अलग फसलों की 70 Bio-fortified Varieties किसानों को उपलब्ध हैं। मुझे खुशी है कि इसमें से कुछ Bio-fortified Varieties, स्थानीय और पारंपरिक फसलों की मदद से विकसित की गई हैं।
साथियों, बीते कुछ महीनों में पूरे विश्व में कोरोना संकट के दौरान भुखमरी-कुपोषण को लेकर अनेक तरह की चर्चाएं हो रही हैं। बड़े से बड़े एक्सपर्ट्स अपनी चिंताएं जता रहे हैं कि क्या होगा, कैसे होगा? इन चिंताओं के बीच, भारत पिछले 7-8 महीनों से लगभग 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन उपलब्ध करा रहा है। इस दौरान भारत ने करीब-करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए का खाद्यान्न गरीबों को मुफ्त बांटा है। और मुझे याद है कि जब ये अभियान शुरू किया जा रहा था, तो इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि चावल या गेहूं के साथ-साथ दाल भी मुफ्त मुहैया कराई जाए।
गरीबों के प्रति, खाद्य सुरक्षा के प्रति ये आज के भारत का कमिटमेंट है। अंतरराष्ट्रीय जगत में भी इसकी चर्चा कम होती है, लेकिन आज भारत अपने जितने नागरिकों को मुफ्त खाद्यान्न दे रहा है वो पूरे यूरोपियन यूनियन और अमेरिका की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा है। लेकिन कई बार हम रोज़ाना के जीवन में एक बड़ा ट्रेंड मिस कर देते हैं। फूड सिक्योरिटी को लेकर भारत ने जो किया है उस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। मेरे कुछ प्रश्न हैं, जिससे जो हमारे इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स हैं, उन्हें एहसास होगा कि भारत ने इस दिशा में क्या हासिल किया है। क्या आप ये जानते हैं कि साल 2014 तक सिर्फ 11 राज्यों में फूड सिक्योरिटी एक्ट लागू था और इसके बाद ही ये पूरे देश में प्रभावी तरीके से लागू हो पाया?
क्या आप जानते हैं कि कोरोना के कारण जहां पूरी दुनिया संघर्ष कर रही है, वहीं भारत के किसानों ने इस बार पिछले साल के प्रोडक्शन के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया? क्या आप जानते हैं कि सरकार ने गेहूं, धान और दालें सभी प्रकार के खाद्यान्न की खरीद के अपने पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं? क्या आपको ये पता है कि पिछले साल के 6 महीने की इसी अवधि की तुलना में essential agricultural commodities के एक्सपोर्ट में 40 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है? क्या आपको पता है कि देश के 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाला 'वन नेशन वन राशन कार्ड' सिस्टम लागू हो चुका है?
साथियों, आज भारत में निरंतर ऐसे रिफॉर्म्स किए जा रहे हैं जो Global Food Security के प्रति भारत के Commitment को दिखाते हैं। खेती और किसान को सशक्त करने से लेकर भारत के Public Distribution System तक में एक के बाद एक सुधार किए जा रहे हैं। हाल में जो 3 बड़े कृषि सुधार हुए हैं, वो देश के एग्रीकल्चर सेक्टर का विस्तार करने में, किसानों की आय बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण कदम है। साथियों, हमारे यहां APMC की एक व्यवस्था सालों से चल रही है, जिसकी अपनी एक पहचान है, उनकी अपनी एक ताकत है। बीते 6 साल में देश की इन कृषि मंडियों में बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए ढाई हज़ार करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया जा चुका है। इन मंडियों में आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए भी सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। इन मंडियों को e-NAM यानि नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट से भी जोड़ा जा रहा है। APMC कानून में जो संशोधन किया गया है, उसका लक्ष्य इन APMC को अधिक Competitive बनाने का है। किसानों को लागत का डेढ़ गुणा दाम MSP के रूप में मिले, इसके लिए भी अनेक कदम उठाए गए हैं।
साथियों, MSP और सरकारी खरीद, देश की फूड सिक्योरिटी का अहम हिस्सा हैं। इसलिए इसका वैज्ञानिक तरीके से अच्छी से अच्छी व्यवस्था के साथ अच्छे से अच्छा प्रबंधन भी हो और ये आगे भी जारी रहें, ये बहुत आवश्यक हैं और हम इसके लिए प्रतिबद्ध हैं। नए विकल्पों से ये ज़रूर होगा कि देश के जो छोटे किसान मंडियों तक पहुंच ना होने के कारण पहले मजबूरी में बिचौलियों को अपनी उपज बेचते थे, अब बाज़ार स्वयं छोटे-छोटे किसानों के दरवाजे तक पहुंचेगा। इससे किसान को ज्यादा दाम तो मिलेंगे ही, बिचौलियों के हटने से किसानों को भी राहत मिलेगी और आम खरीदारों को भी, सामान्य कन्ज्यूमर को भी लाभ होगा। यही नहीं जो हमारे युवा हैं, वो एग्रो स्टार्टअप्स के रूप में किसानों के लिए आधुनिक व्यवस्थाएं बनाएं, इसके लिए भी नए रास्ते खुलेंगे।
साथियों, छोटे किसानों को ताकत देने के लिए, Farmer Producer Organizations यानि FPOs का एक बड़ा नेटवर्क देश भर में तैयार किया जा रहा है। देश में 10 हज़ार ऐसे कृषि उत्पादक संघ बनाने का काम तेज़ी से चल रहा है। छोटे किसानों की ओर से संगठन भी मार्केट के साथ मोलभाव कर सकेंगे। ये FPOs, छोटे किसानों का जीवन वैसे ही बदलने वाले हैं, जैसे दूध या फिर चीनी के क्षेत्र में Co-operative Movement से, गांवों में महिलाओं के Self Help Movement से सार्थक बदलाव आए हैं।
साथियों, भारत में अनाज की बर्बादी हमेशा से बहुत बड़ी समस्या रही है। अब जब Essential Commodities Act में संशोधन किया गया है, इससे स्थितियां बदलेंगी। अब गांवों में बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए सरकार के साथ-साथ दूसरों को भी ज्यादा मौका मिलेगा। इसमें भी हमारे FPOs की भूमिका अहम रहने वाली है। सरकार ने हाल में 1 लाख करोड़ रुपए का इंफ्रास्ट्रक्चर फंड लॉन्च किया है। इस फंड से FPOs भी गांवों में सप्लाई चेन और वैल्यू एडिशन कैपेसिटी तैयार कर रहे हैं।
साथियों, जो तीसरा कानून बनाया गया है, वो किसान को फसलों के दाम में होने वाले उतार-चढ़ाव से भी राहत देगा और खेती में नई टेक्नॉलॉजी को भी बढ़ावा देगा। इसके तहत किसान को ज्यादा विकल्प देने के साथ ही उसे कानूनी रूप से संरक्षण देने का काम किया गया है। जब किसान किसी प्राइवेट एजेंसी या उद्योग से समझौता करेगा तो बुआई से पहले ही उपज की कीमत भी तय हो जाएगी। इसके लिए बीज, फर्टिलाइजर, मशीनरी, सब कुछ समझौता करने वाली संस्था ही देगी।
एक और महत्वपूर्ण बात। अगर किसान किसी कारण से समझौता तोड़ना चाहता है तो उसको कोई जुर्माना नहीं देना होगा। लेकिन अगर किसान से समझौता करने वाली संस्था समझौता तोड़ती है, तो उसे जुर्माना भरना पड़ेगा। और हमें ये भी ध्यान रखना है कि समझौता सिर्फ उपज पर होगा। किसान की ज़मीन पर किसी भी प्रकार का संकट नहीं आएगा। यानि किसान को हर प्रकार की सुरक्षा इन सुधारों के माध्यम से सुनिश्चित की गई है। जब भारत का किसान सशक्त होगा, उसकी आय बढ़ेगी, तो कुपोषण के खिलाफ अभियान को भी उतना ही बल मिलेगा। मुझे विश्वास है कि भारत और FAO के बीच बढ़ता तालमेल, इस अभियान को और गति देगा।
मैं एक बार फिर आप सभी को FAO को 75 वर्ष होने पर पर बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। आपकी भी प्रगति हो और विश्व का गरीब से गरीब देश, विश्व का गरीब से गरीब नागरिक रोजमर्रा की जिंदगी के इन संकटों से मुक्ति प्राप्त करे, इसी कामना से पूरी शक्ति के साथ विश्व समुदाय के साथ काम करने के हमारे संकल्प को दोहराते हुए मैं फिर एक बार बहुत शुभकामनाएं देता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
धन्यवाद !