अटल जी बोल रहे हैं मतलब देश बोल रहा है, अटल जी बोल रहे हैं मतलब देश सुन रहा है, अटल जी बोल रहे हैं, मतलब अपनी भावनाओं को नहीं, देश के जन-जन की भावनाओं को समेट कर उसको अभिव्यअक्ति दे रहे हैं: प्रधानमंत्री मोदी
अटल जी का जीवन आने वाली पीढि़यों को सार्वजनिक जीवन के लिए, व्य क्तिगत जीवन के लिए, राष्ट्रब जीवन के लिए समर्पण भाव के लिए, one life one mission कैसे काम किया जा सकता है इसके लिए हमेशा-हमेशा प्रेरणा देता रहेगा: पीएम मोदी
अटल जी की विदाई को जिस प्रकार से देश ने आदर दिया, सम्मा न दिया, देशवासियों ने उनकी विदाई को महसूस किया, यही उनके जीवन की सबसे बड़ी तपस्याश का प्रकाशपुंज के रूप में हम अनुभव कर सकते हैं: प्रधानमंत्री
अटल जी हमेशा चाहते थे कि लोकतंत्र सर्वोच्च हो: प्रधानमंत्री मोदी

अटल जी हमारे बीच नहीं है। यह बात हमारा मन मानने को तैयार नहीं होता है। शायद ही ऐसी कोई घटना हुई हो कि किसी व्‍यक्ति का राजनीतिक मंच पर आठ-नौ साल तक कहीं नजर न आना, बीमारी की वजह से सारी गतिविधि सार्वजनिक जीवन की समाप्‍त हो गई, लेकिन उसके बाद इतने वर्षों के बाद, इतने बड़े gap के बाद एक प्रकार से सार्वजनिक जीवन में एक पीढ़ी बदल जाती है लेकिन उनकी विदाई को जिस प्रकार से देश ने आदर दिया, सम्‍मान दिया, देशवासियों ने उनकी विदाई को महसूस किया, यही उनके जीवन की सबसे बड़ी तपस्‍या का प्रकाशपुंज के रूप में हम अनुभव कर सकते हैं। विश्‍व के जो political analyst होंगे, वे कभी न कभी इस बात का जरूर विस्‍तार से विवेचन करेंगे कि सिद्धांतो के बल पर खड़ा हुआ एक राजनीतिक दल कार्यकर्ताओं के सामान्‍य संगठन के छोटे-छोटे लोगों के भरोसे, एक तरफ संघर्ष करते रहना, दूसरी तरफ संगठन करते रहना, तीसरी तरफ जनसामान्‍य को अपने विचारों से आकर्षित करना, प्रभावित करना, जन-जन को आंदोलित करना यह सारी बातें करते-करते brick by brick इतना बड़ा संगठन का निर्माण हो और शायद दुनिया में इतना बड़ा देश, इतनी बड़ी लोकतांत्रित व्‍यवस्‍था, एक तरफ सौ सवा सौ साल से established राजनीतिक मंच और दूसरी तरफ नया सा एक राजनीतिक दल और इतने कम समय में देश में इतना प्रभुत्‍व पैदा करे, इतना उसका विस्‍तार हो, संगठन की दृष्टि से दुनिया का सबसे बड़ा दल बन जाए, इसके मूल में जन संघ के कालखंड में, भारतीय जनता पार्टी के कालखंड में, उसके प्रारंभिक वर्षों में अटल जी जैसे एक पूरी टीम का उसको नेतृत्‍व मिला।

कंधे से कंधा मिला करके छोटे से छोटे कार्यकर्ताओं के साथ दूर-सुदूर इलाकों में जा करके काम किया गया, जनता से सीधा संवाद करने का प्रयास किया। और एक प्रकार से अटल जी की वाणी, वो सिर्फ भारतीय जनता पार्टी की आवाज नहीं बनी थी। इस देश का एक तीन-चार दशक का समय ऐसा हुआ कि अटल जी की वाणी भारत के सामान्‍य मानवी की आशा और आकांक्षाओं की वाणी बन चुकी है। अटल जी बोल रहे हैं मतलब देश बोल रहा है। अटल जी बोल रहे हैं मतलब देश सुन रहा है। अटल जी बोल रहे हैं, मतलब अपनी भावनाओं को नहीं, देश के जन-जन की भावनाओं को समेट कर उसको अभिव्‍यक्ति दे रहे हैं। और उसने सिर्फ लोगों को आकर्षित किया, प्रभावित किया, इतना नहीं, लोगों के मन में विश्‍वास पैदा हुआ । और यह विश्‍वास शब्‍द समूह से नहीं था, उसके पीछे एक पांच-छह दशक की लंबी जीवन की साधना थी। आज राजनीतिक दल मानचित्र ऐसा है, दो-पांच साल के लिए भी अगर किसी को सत्‍ता के बाहर रहना पड़े तो वो इतना बैचेन हो जाता है, इतना परेशान हो जाता है, वो ऐसे हाथ-पैर उठा-पटक करता है कि क्‍या कर लूं मैं। चाहे वो तहसील क्षेत्र का नेता हो, District क्षेत्र का नेता हो, राज्‍य स्‍तर का नेता हो, national leader हो। कोई कल्‍पना कर सकता है कि इतने सालों तक एक तपस्‍वी की तरह, एक साधक की तरह विपक्ष में बैठ करके, हर पल जन सामान्‍य की आवाज बनाते रहना और जिंदगी उसी को जीते रहना यह असामान्‍य घटना है, वरना क्‍या अटल जी के जीवन में ऐसे पल नहीं आए होंगे कि जब राजनीतिक अस्थिरता के समय किसी ने कहा हो कि हमारे साथ आ जाओ। आपके सिवा कौन है, आइये हम आपको leader बना देते हैं, आइये हम आपको यह दे देते हैं।

बहुत कुछ हुआ होगा। मैं अनुमान करता हूं, मेरे पास जानकारी नहीं है, लेकिन जैसा मैं राजनीतिक चित्र देखता हूं, उसमें सब कुछ हुआ होगा। लेकिन भीतर का वो मेटल था। उसने विचारों के साथ अपने जीवन का नाता जोड़ा था। और उसी के कारण उन्‍होंने ऐसे किसी लोभ, लालच, प्रलोभन की अवस्‍था को शरण नहीं किया। और जब देशहित की जरूरत थी। लोकतंत्र बढ़ा कि मेरा संगठन बढ़ा, लोकतंत्र बढ़ा कि मेरा दल बढ़ा, लोकतंत्र बढ़ा कि मेरा नेतृत्‍व बढ़ा इसका जब कसौटी का समय आया तो यह दीर्घ दृष्टिता नेतृत्‍व का सामर्थ्‍य था कि उसने लोकतंत्र को प्राथमिकता दी, दल को आहूत कर दिया। जिस जन-संघ को अपने खून-पसीने से सीचा था, ऐसे जनसंघ को जनता पार्टी में किसी भी प्रकार की अपेक्षा के बिना विलीन कर दिया। एक मात्र उद्देश्‍य लोकतंत्र अमर रहे। हम रहे या न रहे यह करके दिखाया और जनता पार्टी में सिद्धांतों के नाम पर जब कोसा जाने लगा, ऐसा लग रहा था लोकतंत्र के लिए देश के लिए उपयोगिता को खत्‍म करने का षड़यंत्र हो रहा है। तब उन्‍होंने हाथ जोड़ करके नमस्‍ते करके कह दिया, आपका रास्‍ता आपको मुबारक, हम मूल्यों से समाधान नहीं कर सकते, हम देश के लिए मर सकते हैं, लेकिन अपने लिए मूल्‍य का समाधान करने वाले हम लोग नहीं है और निकल पड़े । फिर से एक बार, कमल का बीज बोया और आज हर हिन्‍दुस्‍तान के कौने में कमल हम अनुभव कर रहे हैं। और दीर्घ-दृष्‍टता जीवन कैसे था अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा। अभी तो एक दल जन्‍म ले रहा है, अभी तो जन्‍म को कुछ घंटे भी नहीं हुए हैं। लेकिन वो कितना बड़ा आत्‍मविश्‍वास होगा भारत के जन संघ पर, कितना बड़ा भरोसा होगा अपने विचारो, अपनी साधना पर, अपनी तपस्‍या पर, अपने कार्यकर्ताओं के पुरूषार्थ पर कितनी बड़ी श्रद्धा होगी कि उस व्‍यक्ति के मुंह से निकलता है – अंधेरा छटेगा , सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा और वो उनकी भविष्‍यवाणी कहिये या भीतर से निकला हुआ संदेश कहिये आज हम अनुभव करते हैं। राष्‍ट्र जीवन के अंदर विविधता, यह मैं समझता हूं हमारी गौरव गरिमा को बढ़ाने का एक बहुत बड़ा सम्बल है लेकिन उसको बरकरार रखना ये हमारा दायित्‍व भी है। राजनीतिक विचारों और राजनीतिक नेतृत्‍व की विविधता यह भी भारत के लिए, एक भारत की ताकत में कुछ न कुछ value addition करती है।

एक ही प्रकार के नेता, एक ही प्रकार की सोच, एक ही प्रकार की बोलचाल यह भारत की विविधता के लिए ठीक नहीं बैठती। और इसलिए हम सबने मिल करके सभी विचार-धाराओं से पले-बढ़े जिस-जिसने देश के लिए दिया है, जहां-जहां से नेतृत्‍व किया हो, कट्टरवाद विवाद किया होगा, आमने-सामने खड़े हो रहे होंगे। एक-दूसरे को परास्‍त करने के लिए खपां दिया होगा जीवन। फिर भी देश के लिए जीएं हैं। यह सब भारत की विविधता को यह नेतृत्‍व की ताकत भी value addition करती है, अटल जी उसमें से एक हैं। उस विविधता को बढ़ाने वाला एक विविधतापूर्ण व्‍यक्तित्‍व है। उसको भी भारत के राष्‍ट्र जीवन में, भारत के सामाजिक जीवन में, भारत के राजनीतिक जीवन में वहीं स्‍थान उपलब्‍ध होना चाहिए और ऐसे अनेकों को उपलब्‍ध होना चाहिए और वहीं देश को समृद्ध करता है। आने वाली पीढि़यों को प्रेरणा देता है। पीढि़यों को इस रास्‍ते से चलूं या उस रास्‍ते से चलूं इसका लेखाजोखा करने का अवसर मिलता है। और मुझे विश्‍वास है कि अटल जी का जीवन आने वाली पीढि़यों को सार्वजनिक जीवन के लिए, व्‍यक्तिगत जीवन के लिए, राष्‍ट्र जीवन के लिए समर्पण भाव के लिए, one life one mission कैसे काम किया जा सकता है इसके लिए हमेशा-हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। कल अटल जी की उनकी विदाई के बाद की पहली जन्‍म जयंती है। और उसके एक दिन पूर्व आज भारत सरकार की तरफ से एक स्‍मृति सिक्‍का 100 रुपये का आप सब के बीच, देशवासियों के बीच एक स्‍मृति के रूप में आज देने का अवसर मिला है। मैं नहीं मानता हूं कि यह 100 रुपये का सिक्‍का ही सिक्‍का है, क्‍योंकि अटल जी का सिक्‍का हम लोगों के दिलों पर पचास साल से ज्‍यादा समय चला है और जिसका सिक्‍का आगे भी चलने वाला है। और इसलिए जिसका जीवन भी एक सिक्‍का बन करके हमारी जिदंगी को चलाता रहा है, हम लोगों को प्रेरणा देता रहा है, उसको आज हम मेटल के अंदर भी चिरंजीव बनाने का एक छोटा सा प्रयास कर रहे हैं। यह भी अटल जी के प्रति आदर व्‍यक्‍त करने का एक छोटा सा प्रयास है और इसके लिए हम सभी एक संतोष की अनुभूति करते हैं।

कल अटल जी की जन्‍म जयंती है, 25 दिसम्‍बर। सदैव अटल, एक स्‍मृति स्‍थल वहीं पर कल जा करके राजघाट के पास में ही, हम सबको अटल जी के बिना एक-एक पल काटना है। उस समय यह स्‍मृति स्‍थल हमें भी सदैव अटल बनाए रखेगा और व्‍यक्ति के जीवन में अटल बने रहना जितना ताकतवर होता है, उतना ही राष्‍ट्र जीवन और समाज जीवन में भी सदैव अटल होना, यही हमारा संकल्‍प होना है। इस संकल्‍प को हम फिर एक बार कल वहां जा करके दौहराएंगे, अपने आप को समर्पित करेंगे और उसी अटल भावना को ले करके, उसी अटल विश्‍वास को ले करके, वही अटल सपने ले करके, वहीं अटल चरैवेती चरैवेती का मंत्र लेते हुए, जन सामान्‍य के लिए कुछ न कुछ करने का संकल्‍प ले करके चल पड़ेंगे। इसी भावना के साथ आज सबका मैं हृदय से आभार व्‍यक्‍त करता हूं कि आप समय निकाल करके आए। हम सब अटल जी को, जिन्‍होंने अटल जी को अपने दिल में बिठाया हुआ है, लेकिन जो उन्‍होंने हमने चाहा है उसे पूरा करने में हम कोई कमी न रखे इसी एक भाव के साथ मैं आदरपूर्वक अटल जी को नमन करता हूं। बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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