प्रधानमंत्री मोदी ने प्रवर रूरल एजुकेशन सोसाइटी का नाम बदलकर 'लोकनेते डॉ. बालासाहेब विखे पाटिल प्रवर रूरल एजुकेशन सोसाइटी' किया।
गरीबों की प्रगति के लिए बालासाहेब का काम, शिक्षा के लिए योगदान और महाराष्ट्र में सहकारिता की सफलता के लिए उनके प्रयास आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेंगे: प्रधानमंत्री
डॉ. बालासाहेब विखे पाटिल ने हमेशा समाज की भलाई के लिए काम करने की कोशिश की: प्रधानमत्री मोदी

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्रीमान उद्धव ठाकरे जी, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जी, श्री चंद्रकांत पाटिल जी, श्री राधाकृष्ण पाटिल जी, सुजय विखे पाटिल जी, कार्यक्रम में उपस्थित अन्य जनप्रतिनिधिगण, मेरे सभी किसान साथी, देवियों और सज्जनों, छत्रपती शिवाजी महाराज तसेच वीर - वीरांगणा व कर्मयोग्यांची भूमी असलेल्या महाराष्ट्रास मी वंदन करतो!!!

मैं राधाकृष्ण विखे पाटील जी, उनके परिवार और अहमदनगर के सभी साथियों का हृदय से बहुत आभारी हूं, जिन्होंने मुझे इस पुण्य अवसर से जुड़ने के लिए आमंत्रित किया। पहले तो वहां आना तय हुआ था। आप सबके बीच इस अवसर में शरीक होना था लेकिन कोरोना के कारण आज virtually इस कार्यक्रम को करना पड़ रहा है।

साथियों, डॉक्टर बालासाहेब विखे पाटिल की आत्मकथा का विमोचन आज भले हुआ हो लेकिन उनके जीवन की कथाएं आपको महाराष्ट्र के हर क्षेत्र में मिलेंगी। मैंने भी ये नजदीक से देखा है कि कैसे डॉक्टर विट्ठलराव विखे पाटिलजी के पदचिन्हों पर चलते हुए बालासाहेब विखे पाटिल ने महाराष्ट्र के विकास के लिए खुद को समर्पित कर दिया था। गांव, गरीब, किसान का जीवन आसान बनाना, उनके दुख, उनकी तकलीफ कम करना, विखे पाटिल जी के जीवन का मूलमंत्र रहा है। अपनी आत्मकथा में भी उन्होंने लिखा है- “मीस्वत: सत्तेपासून वा राजकारणा पासून अलिप्त राहिलो नाही, मात्र ‘समाजा-साठीच राजकारण आणि सत्ता’ हे पथ्य मी कायम सांभाललं। राजकारण करताना माझा सतत समाजाचे प्रश्न सोडवण्यावर भर राहिला”। उन्होंने सत्ता और राजनीति के जरिए हमेशा समाज की भलाई का प्रयास किया।

उन्होंने हमेशा इसी बात पर बल दिया कि राजनीति को समाज के सार्थक बदलाव का माध्यम कैसे बनाया जाए, गांव और गरीब की समस्याओं का समाधान कैसे हो। बालासाहेब विखे पाटिल जी की यही सोच उन्हें दूसरों से अलग करती थी। यही वजह है कि आज भी उनका हर पार्टी, हर दल में बहुत सम्मान है। गाँव गरीब के विकास के लिए, शिक्षा के लिए, उनका योगदान हो, महाराष्ट्र में cooperative की सफलता का उनका प्रयास हो, ये आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरणा देगा। इसलिए, बालासाहेब वीखे पाटिल के जीवन पर ये किताब हम सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

साथियों, डॉक्टर बालासाहेब विखे पाटिल ने गांव, गरीब और किसानों के दुख को, दर्द को नजदीक से देखा, समझा, अनुभव किया। इसलिए वो किसानों को एक साथ लाए, उन्हें सहकार से जोड़ा। ये उन्हीं का प्रयास है कि जो इलाका कभी अभाव में जीने को मजबूर था, आज उसकी तस्वीर बदल गई है। सहकारिता के महत्व पर उन्होंने लिखा है कि- सहकारी चलवल ही खरी निधर्मी चलवल आहे। ती कुठल्या जातीची किंवा धर्माची बटीक नाही। आतापर्यंत सगल्या समाजाला, जातीं नाही प्रतिनिधित्व दिले आहे। यानि सहकारिता अभियान सच्चे अर्थों में निष्पक्ष होता है। इसका किसी भी जाति और पंथ से कोई सरोकार नहीं होता। इसमें समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व होता है। एक प्रकार से उनके लिए सहकारिता सबके साथ से सबके कल्याण का मार्ग थी। सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, अटल जी की सरकार में मंत्री रहते हुए उन्होंने देश के अनेक क्षेत्रों में सहकारिता को बढ़ावा दिया, उसके लिए प्रयास किया। ऐसे में उनके ‘आत्मचरित्र’ के लिए ‘देह वेचावा कारणी’ नाम प्रासंगिक है, बिल्कुल सटीक है। संत तुकाराम जी महाराज की इन पंक्तियों में बालासाहेब विखे पाटिल के जीवन का सार है।

साथियों, जब देश में ग्रामीण शिक्षा की उतनी चर्चा भी नहीं होती थी, तब प्रवरा रूरल एजुकेशन सोसायटी के माध्यम से उन्होंने गांवों के युवाओं को प्रोत्साहित करने का काम किया। इस सोसायटी के माध्यम से गांव के युवाओं के शिक्षा और कौशल विकास को लेकर, गांव में चेतना जगाने के लिए उन्होंने जो काम किया वो हम भली-भांति जानते हैं। ऐसे में आज से प्रवरा रूरल एजुकेशन सोसायटी के साथ भी बालासाहेब का नाम जुड़ना उतना ही उचित है। वो गांव में, खेती में शिक्षा का महत्व समझते थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है- शेतीच कौशल्य असल्याशिवाय सुशिक्षित माणूसही सहज शेती करू शकत नाही। खरं तर शेतीला इंटरप्राइज का म्हणत नाहीत। यानि व्यक्ति कितना ही पढ़ा-लिखा क्यों न हो, अगर उसमें खेती का कौशल नहीं हो तो वो कभी खेती नहीं कर पाएगा। जब ऐसी बात है तो हम खेती को इंटरप्राइज क्यों नहीं कहते?

साथियों, बालासाहेब विखे पाटिल जी के मन में ये प्रश्न ऐसे ही नहीं आया। ज़मीन पर दशकों तक उन्होंने जो अनुभव किया, उसके आधार पर उन्होंने ये बात कही। बालासाहेब विखे पाटिल के इस सवाल का उत्तर आज के ऐतिहासिक कृषि सुधारों में है। आज खेती को, किसान को अन्नदाता की भूमिका से आगे बढ़ाते हुए, उसको उद्यमी बनाने, Entrepreneurship की तरफ ले जाने के लिए अवसर तैयार किए जा रहे हैं। चीनी ने जो महाराष्ट्र में क्रांति की है, जो क्रांति दूध ने गुजरात में की है, जो बदलाव गेंहू ने पंजाब में किया है, लोकल इकॉनमी, लोकल इंटरप्राइज के यही मॉडल देश को आगे लेकर जाएंगे।

साथियों, आज़ादी के बाद एक ऐसा भी दौर था जब देश के पास पेट भरने को भी पर्याप्त अन्न नहीं था। उस परिस्थिति में सरकार की प्राथमिकता थी कि कैसे फसल की productivity बढ़े। इसलिए, सारा ध्यान बस इसी पर था कि किसान क्या फसल पैदा करे, कितना पैदा करे। हमारे किसानों ने भी अपना पसीना बहाया, जी तोड़ मेहनत की, और देश की जरूरत को अधिक से अधिक फसल पैदा करके पूरा किया। लेकिन productivity की इस चिंता में सरकारों का, नीतियों का ध्यान किसान की profitability पर गया ही नहीं। किसान की आमदनी लोग भूल ही गए। लेकिन पहली बार अब इस सोच को बदला गया है।

देश ने पहली बार किसान की आय की चिंता की है, उसकी आय बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किया है। चाहे वो MSP को लागू करने, उसे बढ़ाने का फैसला हो,यूरिया की नीम कोटिंग हो, बेहतर फसल बीमा हो सरकार ने किसानों की हर छोटी-छोटी दिक्कतों को दूर करने का प्रयास किया है। पीएम-किसान सम्मान निधि योजना ने किसानों को छोटे-छोटे खर्च के लिए दूसरों के पास जाने की मजबूरी से मुक्ति दिलाई है। इस योजना के तहत एक लाख करोड़ रुपए, सीधे किसानों के बैंक खातों में ट्रांसफर किए जा चुके हैं। इतना ही नहीं, Cold chains, mega food parks और agro-processing infrastructure पर भी अभूतपूर्व काम हुआ है। गांव के हाटों से लेकर बड़ी मंडियों के आधुनिकीकरण से भी किसानों को लाभ होने लगा है।

साथियों, बालासाहेब विखे पाटिल कहते थे- शेती निसर्गाधारित केली जात होती। हे ज्ञान आज सांभालून ठेवलं पाहिजे। तसेच नव्या आणि जुन्याचा मेल तरी घातला पाहिजे। यानि, पहले के समय खेती-बाड़ी प्राकृतिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए की जाती थी। पहले के उस ज्ञान को हमें संरक्षित करके रखना चाहिए। कृषि में नए और पुराने तौर-तरीकों का मेल करना बहुत जरूरी है। नए और पुराने तौर तरीकों के मेल का बहुत सटीक उदाहरण है- गन्ने की फसल। अहमदनगर, पुणे औऱ आसपास के क्षेत्र में तो ये और महत्वपूर्ण है। अब गन्ने से चीनी के साथ-साथ ethanol निकालने के लिए भी उद्योग लगाए जा रहे हैं। महाराष्ट्र में अभी 100 के करीब ऐसे उद्योग चल रहे हैं और दर्जनों नए उद्योगों को ज़रूरी मदद की स्वीकृति भी मिल चुकी है। जैसे-जैसे पेट्रोल में इथेनॉल की ब्लेंडिंग की क्षमता बढ़ेगी, वैसे-वैसे तेल का जो पैसा बाहर जा रहा है, वो किसानों की जेब में आया करेगा।

साथियों, डॉक्टर बाला साहेब विखे पाटिल महाराष्ट्र के गांवों की एक और समस्या के समाधान को लेकर हमेशा प्रयासरत रहे। ये समस्या है पीने और सिंचाई के पानी कि दिक्कत। महाराष्ट्र में पानी परिषदों के माध्यम से उन्होंने इस दिशा में एक जन-आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की थी। आज हम संतोष के साथ कह सकते हैं कि साल 2014 के बाद ऐसे प्रयासों को अभूतपूर्व बल दिया गया है और देवेन्‍द्र जी की सरकार की पहचान ही इस पानी के काम के कारण गांव-गांव, घर-घर तक पहुंची हुई है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत महाराष्ट्र में बरसों से लटकी 26 परियोजनाओं को पूरा करने के लिए तेजी से काम किया गया। इनमें से 9 योजनाएं अब तक पूरी हो चुकी हैं। इनके पूरा होने से करीब-करीब 5 लाख हेक्टेयर जमीन को सिंचाई की सुविधा मिली है। इसी तरह जुलाई 2018 में महाराष्ट्र की छोटी-बड़ी 90 और सिंचाई परियोजनाओं पर काम शुरू किया गया था। अगले 2-3 साल में जब इन पर काम पूरा होगा, तो करीब 4 लाख हेक्टेयर जमीन सिंचाई की सुविधा से जुड़ेगी। राज्य के 13 जिलें ऐसे भी हैं जहां भूजल स्तर काफी कम है। इन जिलों में अटल भूजल योजना चलाई जा रही है।

साथियों, सिर्फ सिंचाई ही नहीं, गांवों के हर परिवार को शुद्ध पेयजल पहुंचाने का काम भी महाराष्ट्र की धरती पर तेज़ गति से चल रहा है। जल जीवन मिशन के तहत बीते सालभर में महाराष्ट्र के 19 लाख परिवारों को शुद्ध जल की सुविधा दी जा चुकी है। इसमें से 13 लाख से ज्यादा गरीब परिवारों को तो कोरोना महामारी के दौरान भी पानी पहुंचाने का काम किया गया है। कोशिश ये है कि जिस प्रकार घर-घर शौचालय बनाकर जिस तरह बहनों, बेटियों को सम्मान और सुविधा दी गई, उसी तरह नल से जल पहुंचाकर उनके समय और श्रम को भी बचाया जाए और शुद्ध पानी स्‍वास्‍थ्‍य के लिए भी बहुत उपयोगी होता है।

साथियों, गांवों की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था में माइक्रो फाइनेंस का विशेष रोल है। मुद्रा जैसी योजना से गांव में स्वरोजगार की संभावनाएं बढ़ी हैं। यही नहीं बीते सालों में देश में सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़ी करीब 7 करोड़ बहनों को 3 लाख करोड़ रुपए से अधिक का ऋण दिया गया है। किसानों, पशुपालकों और मछुआरों, तीनों को बैंकों से आसान ऋण मिल पाए, इसके लिए सभी को किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा दी गई है। लगभग ढाई करोड़ छोटे किसान परिवार जो पहले किसान क्रेडिट कार्ड से वंचित थे उनको अब अभियान चलाकर ये सुविधा दी जा रही है।

साथियों, गांव में, गांव में रहने वालों में, गरीबों में, जब विश्वास जागेगा, जब उनका आत्मविश्वास मज़बूत होगा, तो आत्मनिर्भरता का संकल्प भी मज़बूत होगा। गांवों में आत्मनिर्भरता का यही विश्वास बालासाहेब विखे पाटिल जी भी जगाना चाहते थे। जीवनभर जगाते रहे थे। मुझे विश्वास है कि जो भी उनकी इस आत्मकथा को पढ़ेगा, उसके भीतर नई चेतना का संचार होगा। एक बार फिर बाला साहेब विखे पाटिल को आदरपूर्वक नमन करते हुए आप सभी को भी बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

लेकिन मेरी बात समाप्‍त करने से पहले मैं एक बात जरूर आग्रह से कहना चाहूंगा और महाराष्‍ट्र के लोगों से तो विशेष रूप से कहना चाहूंगा। कोरोना का खतरा बना ही हुआ है। महाराष्‍ट्र में यह चिन्‍ता और जरा ज्‍यादा है और इसलिए मेरी महाराष्‍ट्र के सभी नागरिक भाई-बहनों से करबद्ध प्रार्थना है कि चेहरे पर मास्क, बार-बार हाथ की साफ-सफाई रखना, दो गज़ की दूरी, इन नियमों में बिल्कुल लापरवाही नहीं करनी है। हमें हमेशा याद रखना है, जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं। हम ये लड़ाई ज़रूर जीतेंगे, जीतनी है, जीतेंगे।

फिर एक बार बाला साहेब के पूरे परिवार को बहुत आदर के साथ, क्‍योंकि चार पीढ़ी समाज सेवा में लगे रहे। ये छोटी बात नहीं है जी और खुशी की बात यह है कि हर पीढ़ी ज्‍यादा कर रही है, अच्‍छा कर रही है वरना हम जानते हें, कुछ पीढि़यां ऐसी हैं, एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी थोड़ी कम ताकतवर नज़र आती है, तीसरी पीढ़ी और कमजोर नजर आती है और धीरे-धीरे deterioration दिखता है। जबकि बाला साहेब के संस्‍कार ऐसे रहे हैं कि उनकी सब पीढ़ी उत्‍तरोत्‍तर अधिक शक्तिशाली, संस्‍कारों के साथ जनसेवा में लगे रहते हैं, ऐसे परिवार को भी आज प्रणाम करने का अवसर है।

आप सबका बहुत-बहुत आभार!

धन्यवाद !!

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Under Rozgar Mela, PM to distribute more than 71,000 appointment letters to newly appointed recruits
December 22, 2024

Prime Minister Shri Narendra Modi will distribute more than 71,000 appointment letters to newly appointed recruits on 23rd December at around 10:30 AM through video conferencing. He will also address the gathering on the occasion.

Rozgar Mela is a step towards fulfilment of the commitment of the Prime Minister to accord highest priority to employment generation. It will provide meaningful opportunities to the youth for their participation in nation building and self empowerment.

Rozgar Mela will be held at 45 locations across the country. The recruitments are taking place for various Ministries and Departments of the Central Government. The new recruits, selected from across the country will be joining various Ministries/Departments including Ministry of Home Affairs, Department of Posts, Department of Higher Education, Ministry of Health and Family Welfare, Department of Financial Services, among others.