प्रधानमंत्री ने श्री आदि शंकराचार्य समाधि का उद्घाटन किया और श्री आदि शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण किया
"कुछ अनुभव इतने अलौकिक, इतने अनंत होते हैं कि उन्हें शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, बाबा केदारनाथ धाम में आकर मेरी अनुभूति ऐसी ही होती है"
"आदि शंकराचार्य का पूरा जीवन जितना असाधारण था, उतना ही जन-साधारण के कल्याण के लिए समर्पित था"
"भारतीय दर्शन मानव कल्याण की बात करता है और जीवन को समग्र रूप से देखता है, आदि शंकराचार्य जी ने समाज को इस सत्य से परिचित कराने का काम किया”
" अब हमारी आस्था के सांस्कृतिक विरासतों केन्द्रों को उसी गौरवभाव से देखा जा रहा है, जैसा देखा जाना चाहिए"
"आज अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बन रहा है, अयोध्या को अपना गौरव वापस मिल रहा है"
“आज, भारत अपने लिए कठिन लक्ष्य और समय-सीमा निर्धारित करता है, आज देश को समय-सीमा और लक्ष्यों को लेकर भयभीत रहना मंजूर नहीं है"
"उत्तराखंड के लोगों के अपार सामर्थ्य और अपनी क्षमताओं में पूर्ण विश्वास को ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार उत्तराखंड के विकास के 'महायज्ञ' में शामिल है"

जय बाबा केदार ! जय बाबा केदार ! जय बाबा केदार ! दैवीय आभा से सुसज्जित इस कार्यक्रम में हमारे साथ मंच पर उपस्थित सभी महानुभाव, इस पावन भूमि पर पहुंचे हुए श्रद्धालुगण, आप सभी को आदरपूर्वक मेरा नमस्कार !

आज सभी मठों, सभी 12 ज्योतिर्लिंगों, अनेक शिवालय, अनेक शक्तिधाम अनेक तीर्थक्षेत्रों पर देश के गणमान्य पुरुष, पुज्य संतगण, पुज्य शंकराचार्य पंरपरा से जुडे हुए सभी वरिष्ठ ऋषि- मुनिऋषि और अनेक श्रद्धालु भी I देश के हर कोने में आज केदारनाथ की इस पवित्र भूमि के साथ इस पवित्र माहोल के साथ सर शरीर ही नहीं लेकिन आत्मिक रुप से वर्रुचल माध्यम से टेकनोलॉजी की मदद से वो वहां से हमे आशीर्वाद दे रहे हैं। आप सभी आदि शंकराचार्य जी की समाधि की पुनर्स्थापना के साक्षी बन रहे हैं। ये भारत की आध्यात्मिक समृद्धि और व्यापकता का बहुत ही अलौकिक दृश्य है। हमारा देश तो इतना विशाल है, इतनी महान ऋषि परंपरा है, एक से बढ़कर एक तपस्वी आज भी भारत के हर कोने में आध्यत्मिक चेतना को जगाते रहते हैं। ऐसे अनेक संतगण आज देश के हर कोने में और आज यहां भी हमारे साथ जुड़े हुए हैं। लेकिन संबोधन में अगर मैं सिर्फ उनका नाम उल्लेख करना चाहूँ, तो भी शायद एक सप्ताह कम पड़ जायेगा। और अगर एक- आध नाम अगर छूट गया तो तो शायद मैं जीवनभर किसी पाप के बोझ में दब जाऊंगा। मेरी इच्छा होते हुए भी मैं इस समय सभी का नाम उल्लेख नहीं कर पा रहा हूँ। लेकिन मैं उन सबको आदरपूर्वक प्रणाम करता हूँ। वह जहाँ से इस कार्यक्रम से जुड़े हैं। उनके आशीर्वाद हमारी बहुत बड़ी शक्ति है। अनके पवित्र कार्य करने के लिए उनके आशीर्वाद हमें शक्ति देंगे। यह मेरा पूरा भरोसा है। हमारे यहां कहा भी जाता है, 

आवाहनम न जानामि

न जानामि विसर्जनम,

पूजाम चैव ना

जानामि क्षमस्व परमेश्वर: !

इसलिए, मैं हृदय से ऐसे सभी व्यक्तित्वों से माफी मांगते हुए, इस पुण्य अवसर पर देश के कोने-कोने से जुड़े शंकराचार्य, ऋषिगण, महान संत परंपरा के सभी अनुयायी मैं आप सबको यहीं से प्रणाम करके मैं आप सबका आशीर्वाद मांगता हूँ।


साथियों,

हमारे उपनिषदों में, आदि शंकराचार्य जी की रचनाओं में कई जगह ‘नेति-नेति’ जब भी देखो नेति-नेति एक ऐसा भाव विश्व नेति- नेति कहकर एक भाव विश्व का विस्तार दिया गया है। रामचरित मानस को भी अगर हम देखे तो उसमें भी इस बात को दोहराया गया है- अलग तरीके से कहा गया है- रामचरित मानस में कहा गया है – कि 

‘अबिगत अकथ अपार, अबिगत अकथ अपार,

नेति-नेति नित निगम कह’ नेति-नेति नित निगम कह’

अर्थात्, कुछ अनुभव इतने अलौकिक, इतने अनंत होते हैं कि उन्हें शब्दों से व्यक्त नहीं किया जा सकता। बाबा केदारनाथ की शरण में आकर जब भी आता हूँ, यहां के कण-कण से जुड़ जाता हूँ। यहां कि हवाएं, यह हिमालय की चोटियां, ये बाबा केदार का सांदिध्य न जाने कैसी अनुभूति की तरफ खींच कर ले चला जाता है जिसके लिए मेरे पास शब्द हैं ही नहीं। दीपावली के पवित्र पर्व पर कल मैं सीमा पर अपने सैनिकों के साथ था और आज तो यह सैनिकों की भूमि पर हूँ। मैंने त्योहारों की खुशियां मेरे देश के जवान वीर सैनिकों के साथ बांटी हैं। देशवासियों का प्रेम का सन्देश, देशवासियों के प्रति उनकी श्रद्धा देशवासियों के उनके आशीर्वाद, एक सौ तीस करोड़ आशीर्वाद ले लेकर के मैं कल सेना के जवानों के बीच गया था। और आज मुझे गोवर्धनपूजा के दिन और गुजरात के लोगों के लिए तो आज नया वर्ष है। गोवर्धनपूजा के दिन केदारनाथ जी में दर्शन-पूजन करने का सौभाग्य मिला है। बाबा केदार के दर्शन के साथ ही अभी मैंने आदि शंकरचार्य जी की समाधि स्थान वहां कुछ पल बिताएं एक दिव्य अनुभूति का वो पल था। सामने बैठते ही लग रहा था, कि आदिशंकर की आँखों से वो तेज पुंज वो प्रकाश पुंज प्रवाहित हो रहा है जो भव्य भारत का विश्वास जगा रहा है। शंकराचार्य जी की समाधि एक बार फिर, और अधिक दिव्य स्वरूप के साथ हम सबके बीच है। इसके साथ ही, सरस्वती तट पर घाट का निर्माण भी हो चुका है, और मन्दाकिनी पर बने पुल से गरुणचट्टी उस मार्ग भी सुगम कर दिया गया है। गरुणचट्टी का तो मेरा विशेष नाता भी रहा है, यहां एक दो लोग है पुराने जो पहचान जाते हैं। मैनें आपके दर्शन किए मुझे अच्छा लगा। साधू को चलता भला यानि पुराने लोग तो अब चले गए हैं। कुछ लोग तो इस स्थान को छोड़ कर चले गए हैं। कुछ लोग इस धरा को छोड़ कर चले गए हैं। अब मन्दाकिनी के किनारे, बाढ़ से सुरक्षा के लिए जिस दीवार का निर्माण किया गया है, इससे श्रद्धालुओं की यात्रा अब और सुरक्षित होगी। तीर्थ-पुरोहितों के लिए नए बने आवासों से उन्हें हर मौसम में सुविधा होगी, भगवान केदारनाथ की सेवा उनके लिए अब कुछ सरल होगी अब कुछ आसान होगी। और पहले तो मैंने देखा है कभी प्राकृतिक आपदा आ जाती थी तो यात्री यहां फंस जाते थे। तो इन पुरोहितों के ही घरों में ही एक- एक कमरे में इतने लोग अपना समय बिताते थे और मैं देखता था कि हमारे यह पुरोहित खुद बाहर ठंड में ठिठुरते थे लेकिन अपने यह जो यजमान आते थे, उनकी चिंता करते थे। मैंने सब देखा हुआ है, उनके भक्तिभाव को मैंने देखा हुआ है। अब उन मुसिबतों से उनको मुक्ति मिलने वाली है।

साथियों,

आज यहाँ यात्री सेवाओं और सुविधाओं से जुड़ी कई योजनाओं का शिलान्यास भी हुआ है। पर्यटक सुविधा केंद्र का निमार्ण हो, यात्रिओं की और इस इलाके के लोगों की सुविधा के लिए आधुनिक अस्पताल हो, सारी सुविधा वाला अस्पताल हो, रेन शेल्टर हो, ये सभी सुविधा श्रद्धालुओं की सेवा का माध्यम बनेगी, उनके तीर्थाटन को अब कष्ट से मुक्त, केदार से युक्त जय भोले के चरणों में लीन होने का यात्रियों को एक सुखद अनुभव होगा।

साथियों,

बरसों पहले यहां जो तबाही मची थी, जिस तरह का नुकसान यहां हुआ था, वो अकल्पनीय था। मैं मुख्यमंत्री तो गुजरात का था लेकिन मैं अपने आप को रोक नहीं पाया था। मैं यहां दौड़ा चला आया था। मैंने अपनी आंखों से उस तबाही को देखा था, उस दर्द को देखा था। जो लोग यहां आते थे, वो सोचते थे कि क्या यह अब हमारा यह केदारधाम यह केदारपुरी फिर से उठ खड़ा होगा क्या। लेकिन मेरे भीतर की आवाज़ कह रही थी कि यह पहले से अधिक आन-बान-शान के साथ खड़ा होगा। और यह मेरा विश्वास बाबा केदार के कारण था। आदिशंकर की साधना के कारण था। ऋषियों- मुनियों की तपस्या के कारण था। लेकिन साथ-साथ कच्छ के भूकंप के बाद कच्छ को खड़ा करने का मेरे पास अनुभव भी था, और इसलिए मेरा विश्वास था और आज वो विश्वास अपनी आँखों से साकार हुए देखना, इससे बड़ा जीवन का क्या संतोष हो सकता है। मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूं कि बाबा केदार ने, संतों के आशीर्वाद ने इस पवित्र धरती ने जिस मिट्टी ने जिसकी हवाओं ने कभी मुझे पालापोसा था उसके लिए सेवा करने का सौभाग्य मिलना इससे बड़ा जीवन का पुण्य क्या होगा। इस आदि भूमि पर शाश्वत के साथ आधुनिकता का ये मेल, विकास के ये काम भगवान शंकर की सहज कृपा का ही परिणाम हैं। यह ईश्वर नहीं केड्रिट नहीं ले सकता इंसान कैड्रिट ले सकता। ईश्वर कृपा ही इसकी हकदार है। मैं इस पुनीत प्रयासों के लिए उत्तराखंड सरकार का, हमारे ऊर्जावान, नौजवान मुख्यमंत्री धामी जी का, और इन कामों की ज़िम्मेदारी उठाने वाले सभी लोगों का भी आज हदृय से धन्यवाद करता हूँ। जिन्होंने ऐड़ी-चोटी का जोर लगा करके इस सपनों को पूरा किया। मुझे पता है यहां बर्फबारी के बीच भी किस तरह यानि पूरा सालभर काम करना मुश्किल हैं यहां बहुत कम समय मिलता है। लेकिन बर्फबारी के बीच भी हमारे श्रमिक भाई- बहन जो पहाड़ों के नहीं थे बाहर से आए थे वह ईश्वरीय कार्य मान के बर्फ वर्षा के बीच भी माइनस temperature के बीच भी काम छोड़ करके जाते नहीं थे काम करते रहते थे। तब जा करके यह काम हो पाया है। मेरा मन यहां लगा रहता था तो मैं बीच- बीच में ड्रोन की मदद से टेक्नोलॉजी के मदद से मेरे दफ्तर से मैं यहां एक प्रकार से वर्चुअल यात्रा करता था। लगातार मैं उसकी बारीकियों को देखता था। काम कितना पहुंचा, महीने भर पहले कहां थे। इस महीने कहां पहुंचे लगातार देखता था। मैं केदारनाथ मंदिर के रावल और सभी पुजारियों का भी आज विशेष रुप से आभार प्रकट करता हूँ। क्योंकि उनके साकारात्मक रवैये के कारण उनके साकारात्मक प्रयासों के कारण और उन्होंने परंपराओं का जो हमारा मार्गदर्शन करते रहे उसके कारण हम इसको एक पुरानी विरासत को भी बचा पाएं, और आधुनिकता भी ले पाएं। और इसके लिए मैं इन पुजारियों का रावल परिवारों का हदृय से आभार व्यक्त करता हूँ।

आदिशंकराचार्य जी के विषय में हमारे विद्वानों ने कहा है, शंकराचार्य जी के लिए हर विद्वान ने कहा है- “शंकरो शंकरः साक्षात्” अर्थात्, आचार्य शंकर साक्षात् भगवान शंकर का ही स्वरूप थे। ये महिमा, ये दैवत्व आप उनके जीवन के हर क्षण, हम अनुभव कर सकते हैं। उसकी तरफ जरा नज़र करे तो सारी स्मृति सामने आ जाती है। छोटी सी उम्र में बालक उम्र अद्भुत बोध! बाल उम्र से ही शास्त्रों का, ज्ञान-विज्ञान का चिंतन! और जिस उम्र में एक साधारण मानवी, साधारण रूप से संसार की बातों को थोड़ा देखना समझना शुरु करता है, थोड़ी जागृति का प्रारंभ होता है, उस उम्र में वेदान्त की गहराई को, उठिए गुडहाद को, सांगोपांग विवेचन, उसकी व्याख्या अविरत रुप से किया करते थे ! ये शंकर के भीतर साक्षात् शंकरत्व का जागरण के सिवा कुछ नहीं हो सकता। यह शंकरत्व का जागरण था।

साथियों,

यहाँ संस्कृत और वेदों के बड़े-बड़े पंडित यहां भी बैठे है, और वर्चुअली भी हमारे साथ जुड़े है। आप जानते हैं कि शंकर का संस्कृत में अर्थ बड़ा सरल है- “शं करोति सः शंकरः” यानी, जो कल्याण करे, वही शंकर है। इस कल्याण को भी आचार्य शंकर ने प्रत्यक्ष प्रमाणित कर दिया। उनका पूरा जीवन जितना असाधारण था, उतना ही वो जन-साधारण के कल्याण के लिए समर्पित थे। भारत और विश्व के कल्याण के लिए अहर्निश अपनी चेतना को समर्पित करते रहते थे। जब भारत, राग-द्वेष के भंवर में फँसकर अपनी एकजुटता खो रहा था, तब यानि कितना दूर का संत देखते हैं तब शंकराचार्य जी ने कहा- “न मे द्वेष रागौ, न मे लोभ मोहौ, मदो नैव, मे नैव, मात्सर्य भावः”। अर्थात्, राग द्वेष, लोभ मोह, ईर्ष्या अहम्, ये सब हमारा स्वभाव नहीं है। जब भारत को जाति-पंथ की सीमाओं से बाहर देखने की, शंकाओं-आशंकाओं से ऊपर उठने की मानवजात को जरूरत थी, तब उन्होंने समाज में चेतना फूंकी- तो आदिशंकर ने कहा “न मे मृत्यु-शंका, न मे जातिभेदः”। यानी, नाश-विनाश की शंकाएँ, जात-पात के भेद ये हमारी परंपरा का कोई लेना-देना नहीं है, हिस्सा नहीं हैं। हम क्या हैं, हमारा दर्शन और विचार क्या है, ये बताने के लिए आदिशंकर ने कहा - “चिदानन्द रूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम” अर्थात्, आनंद स्वरूप शिव हम ही है। जीवत्व में ही शिवत्व है। और अद्वैत का सिद्धांत कभी-कभी अद्वैत के सिद्धांत को समझाने के लिए बड़े-बड़े ग्रंथों की जरुरत पड़ती है। मैं तो इतना विद्वान नहीं हूँ। मैं तो सरल भाषा में अपनी बात समझता हूँ। और मैं इतना ही कहता हूँ, जहां द्वैत नहीं है, वहां अद्वैत है। शंकराचार्य जी ने भारत की चेतना में फिर से प्राण फूंके, और हमें हमारी आर्थिक-पारमार्थिक उन्नति का मंत्र बताया। उन्होंने कहा है- “ज्ञान विहीनः देखिए ज्ञान की उपासना की महिमा कितना महत्व रखती है। “ज्ञान विहीनः सर्व मतेन्, मुक्तिम् न भजति जन्म शतेन”॥ यानी, दुःख, कष्ट और कठिनाइयों से हमारी मुक्ति का एक ही मार्ग है, और वो है ज्ञान। भारत की ज्ञान-विज्ञान और दर्शन की जो कालातीत परंपरा है, उसे आदि शंकराचार्य जी ने फिर से पुनर्जीवित किया, चेतना भर दी।

साथियों,

एक समय था जब आध्यात्म को, धर्म को केवल रूढ़ियों से जोड़कर कुछ ऐसी गलत मर्यादाओं और कल्पनाओं में जोड़कर देखा जाने लगा था। लेकिन, भारतीय दर्शन तो मानव कल्याण की बात करता है, जीवन को पूर्णता के साथ, holistic approach, holistic way में देखता है। आदि शंकराचार्य जी ने समाज को इस सत्य से परिचित कराने का काम किया था। उन्होंने पवित्र मठों की स्थापना की, चार धामों की स्थापना की, द्वादश ज्योतिर्लिंगों को पुनर्जागृति का काम किया। उन्होंने सब कुछ त्यागकर देश समाज और मानवता के लिए जीने वालो के लिए एक सशक्त परंपरा खड़ी की। आज उनके ये अधिष्ठान भारत और भारतीयता का एक प्रकार से संबल पहचान बनी रहे। हमारे लिए धर्म क्या है, धर्म और ज्ञान का संबंध क्या है, और इसलिए तो कहा गया है- ‘अथातो ब्रह्म जिज्ञासा’ इसका का मंत्र देने वाली उपनिषदीय परंपरा क्या है जो हमें पल-प्रतिपल प्रश्न करना सिखाती है, और कभी तो बालक नचिकेता यम के दरबार में जा करके यम की आँखों में आँख मिला करके पूछ लेता है, यम को पूछ लेता है, what is death, मृत्यु क्या है? बताओ प्रश्न पूछना ज्ञान अर्जित करना, ‘अथातो ब्रह्म जिज्ञासा’ भव: हमारी इस विरासत को हमारे मठ हजारों सालों से जीवित रखे हुये हैं, उसे समृद्ध कर रहे हैं। संस्कृत हो, संस्कृत भाषा में वैदिक गणित जैसे विज्ञान हों, इन मठों में हमारे शंकराचार्य की परंपरा का इन सबका संरक्षण कर रहे हैं, पीढ़ी दर पीढ़ी मार्ग दिखाने का काम किया है। मैं समझता हूं, आज के इस दौर में आदि शंकराचार्य जी के सिद्धांत, और ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं।

साथियों,

हमारे यहाँ सदियों से चारधाम यात्रा का महत्व रहा है, द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन की, शक्तिपीठों के दर्शन की, अष्टविनायक जी के दर्शन की यह सारी यात्रा की परंपरा। ये तीर्थाटन हमारे यहां जीवन काल का हिस्सा माना गया है। यह तीर्थाटन हमारे लिए सैर-सपाटा सिर्फ पर्यटन भर नहीं है। ये भारत को जोड़ने वाली, भारत का साक्षात्कार कराने वाली एक जीवंत परंपरा है। हमारे यहाँ हर किसी को कोई भी व्यक्ति हो उसकी इच्छा होती है कि जीवन में कम से कम एक बार चारधाम जरूर हों लें, द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर लें। माँ गंगा में एक बार डूबकी जरुर लगा ले। पहले हम घर में बच्चों को शुरू से ही सिखाते थे, परंपरा थी बच्चों को घरों में सिखाया जाता था - “सौराष्ट्रे सोमनाथम् च, श्रीशैले मल्लि-कार्जुनम्” बचपन में सिखाया जाता था। द्वादश ज्योतिर्लिंग का ये मंत्र घर बैठे बैठे ही वृहत भारत एक विशाल भारत का हर दिन यात्रा करा देता था। बचपन से ही देश के इस अलग-अलग हिस्सों से जुड़ाव एक सहज संस्कार बन जाता था। ये आस्था, ये विचार पूरब से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक भारत को एक जीवित इकाई में बदल देते हैं, राष्ट्रीय एकता की ताकत को बढ़ाने वाला, एक भारत-श्रेष्ठ भारत का भव्य दर्शन सहज जीवन का हिस्सा था । बाबा केदारनाथ के दर्शन करके हर श्रद्धालु एक नई ऊर्जा लेकर जाता है।

साथियों,

आदि शंकराचार्य की विरासत को, इस चिंतन को आज देश अपने लिए एक प्रेरणा के रूप में देखता है। अब हमारी सांस्कृतिक विरासत को, आस्था के केन्द्रों को उसी गौरवभाव से देखा जा रहा है, जैसा देखा जाना चाहिए था। आज अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर पूरे गौरव के साथ बन रहा है, अयोध्या को उसका गौरव सदियों के बाद वापस मिल रहा है। अभी दो दिन पहले ही अयोध्या में दीपोत्सव का भव्य आयोजन पूरी दुनिया ने उसे देखा। भारत का प्राचीन सांस्कृतिक स्वरूप कैसा रहा होगा, आज हम इसकी कल्पना कर सकते हैं। इसी तरह, उत्तर प्रदेश में ही काशी का भी कायाकल्प हो रहा है, विश्वनाथ धाम का कार्य तेज गति से अब तो पूर्णत की तरफ आगे बढ़ रहा है । बनारस में सारनाथ नजदीक में कुशीनगर, बोधगया यहां सब जगह पर एक बुद्ध सर्किट अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए विश्व के बुद्ध के भक्तों को आकर्षित करने के लिए एक बहुत तेजी से काम चल रहा है। भगवान राम से जुड़े जितने भी तीर्थस्थान है, उन्हे जोड़ करके एक पूरा सर्किट बनाने का काम भी चल रहा है। मथुरा वृन्दावन में भी विकास के साथ साथ वहाँ की शुचिता पवित्रता को लेकर संतों की, आधुनिकता की तरफ मोड़ दिया जा है। भावनाओं का ख्याल रखा जा रहा है। इतना सब आज इसलिए हो रहा है, क्योंकि आज का भारत आदि शंकराचार्य जैसे हमारे मनीषियों के निर्देशों में श्रद्धा रखते हुए, उन पर गौरव करते हुए आगे बढ़ रहा है।

साथियों,

इस समय हमारा देश आज़ादी का अमृत महोत्सव भी मना रहा है। देश अपने भविष्य के लिए, अपने पुनर्निर्माण के लिए नए संकल्प ले रहा है। अमृत महोत्सव के इन संकल्पों में से आदि शंकराचार्य जी को एक बहुत बड़ी प्रेरणा के रूप में देखता हूँ।

जब देश अपने लिए बड़े लक्ष्य तैयार करता है, कठिन समय और सिर्फ समय ही नहीं समय की सीमा निर्धारित करता है, तो कुछ लोग कहते हैं कि इतने कम समय में ये सब कैसे होगा! होगा भी या नहीं होगा! और तब मेरे भीतर से एक ही आवाज आती है एक सौ तीस करोड़ देसवासियों की आवाज़ मुझे सुनाई देती है। और मेरे मुंह से यही निकलता है। एक ही बात निकलती है समय के दायरे में बंधकर भयभीत होना अब भारत को मंजूर नहीं है। आप देखिए आदि शंकराचार्य जी को, छोटी सी आयु थी छोटी सी आयु थी घर बार छोड़ दिया सन्यासी बन गए कहां केरल का कालड़ी और कहां केदार, कहां से कहां चल पड़े। सन्यासी बने, बहुत ही कम आयु में इस पवित्रभूमि में उनका शरीर इस धरती में विलीन हो गया, अपने इतने कम समय में उन्होंने भारत के भूगोल को चैतन्य कर दिया, भारत के लिए नया भविष्य गढ़ दिया। उन्होंने जो ऊर्जा प्रज्वलित की, वो आज भी भारत को गतिमान बनाए हुए है, आने वाले हजारों सालों तक गतिमान बनाए रखेगी। इसी तरह स्वामी विवेकानन्द जी को देखिए, स्वाधीनता संग्राम के अनेकानेक सेनानियों को देखिए, ऐसी कितनी ही महान आत्माएँ, महान विभूतियां, इस धरती पर प्रकट हुई हैं, जिन्होंने समय की सीमाओं का उल्लंघन कर छोटे से कालखंड में, कई-कई युगों को गढ़ दिया। ये भारत इन महान विभूतियों की प्रेरणाओं पर चलता है। हम शाश्वत को एक प्रकार से स्वीकार करते हुए, हम क्रियाशीलता पर विश्वास करते हैं। इसी आत्मविश्वास को लेकर देश आज इस अमृतकाल में आगे बढ़ रहा है। और ऐसे समय में, मैं देशवासियों से एक और आग्रह करना चाहता हूं। स्वाधीनता संग्राम से जुड़े हुए ऐतिहासिक स्थानों को देखने के साथ-साथ, ऐसे पवित्र स्थानों को भी ज्यादा से ज्यादा जाएं , नयी पीढ़ी को लेकर जाएं परिचित कराएं। माँ भारती का साक्षात्कार करें, हजारों सालों की महान परंपरा की चेतनाओं की अनुभुति करें। आजादी के अमृतकाल में स्वतंतत्रता आजादी का यह भी एक महोत्सव हो सकता है। हर हिन्दुस्तानी के दिल में हिन्दुस्तान के हर कोने-कोने में हर कंकड़- कंकड़ में शंकर का भाव जग सकता है। और इसलिए निकल पड़ने का यह समय है। जिन्होंने गुलामी के सैकड़ों वर्षों के कालखंड में हमारी आस्था को बांध करके रखा हमारी आस्था को कभी खरोच तक नहीं आने दी गुलामी के कालखंड में यह कोई छोटी सेवा नहीं थी। कि आजादी के कालखंड में इस महान सेवा को उसको पूजना, उसका तर्पण करना, वहां तप करना, वहां साधना करना क्या यह हिन्दुस्तान के नागरिक का कर्तव्य नहीं है। और इसलिए मैं कहता हूँ, एक नागरिक के तौर पर हमें इन पवित्र स्थानों के भी दर्शन करने चाहिए, उन स्थानों की महिमा को जानना चाहिए।

साथियों,

देवभूमि के प्रति असीम श्रद्धा को रखते हुए, यहां की असीम संभावनाओं पर विश्वास करते हुए आज उत्तराखंड की सरकार, यहां विकास के महायज्ञ से जुटी है, पूरी ताकत से जुड़ी है। चारधाम सड़क परियोजना पर तेजी से काम हो रहा है, चारों धाम हाइवे से जुड़ रहे हैं। भविष्य में यहां केदारनाथ जी तक श्रद्धालु केबल कार के जरिए आ सकें, इससे जुड़ी प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। यहां पास में ही पवित्र हेमकुंड साहिब जी भी हैं। हेमकुंड साहिब जी के दर्शन आसान हों, इसके लिए वहां भी रोप-वे बनाने की तैयारी है। इसके अलावा ऋषिकेश और कर्णप्रयाग को रेल से भी जोड़ने का प्रयास हो रहा है। अभी मुख्यमंत्री जी कह रहे थे पहाड़ के लोगों को रेल देखना भी दुष्कर होता है। अब रेल पहुंच रही है दिल्ली देहरादून हाईवे बनने के बाद देहरादून से दिल्ली आने वालों के लिए समय और कम होने वाला है। इन सब कामों का उत्तराखंड को, उत्तराखंड के पर्यटन को बहुत बड़ा लाभ होगा। और मेरे शब्द उत्तराखंड के लोग लिख करके रखे। जिस तेज गति से infrastructure बन रहा है पिछले सौ साल में जितने श्रद्धालु यहां आए हैं, आने वाले दस साल में उससे भी ज्यादा आने वाले हैं। आप कल्पना कर सकते हैं यहां कि अर्थव्यवस्था को कितनी बड़ी ताकत मिलने वाली है। 21वीं शताब्दी का यह तीसरा दशक यह उत्तराखंड का दशक है मेरे शब्द लिख करके रखिए। मैं पवित्र धरती पर से बोल रहा हूँ। हाल के दिनों में हम सभी ने देखा है कि किस तरह चार-धाम यात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लगातार रिकॉर्ड तोड़ रही है। और यह कोविड ना होता तो न जाने यह संख्या कहां से कहां पहुंच गई होती। उत्तराखंड में मुझे यह भी बहुत खुशी हो रही है। खासकरके मेरी माताएं-बहनें और पहाड़ में तो माताओं बहनों की ताकत का एक अलग ही सामर्थ्य होता है। जिस प्रकार से उत्तराखंड के छोटे-छोटे स्थानों पर प्रकृति की गोद में में होम-स्टे का नेटवर्क बन रहा हैं। सैकड़ों होमस्टे बन रहे हैं और माताओं बहनों और जो यात्री भी आते हैं, होमस्टे को पसंद करने लगे हैं। रोजगार भी मिलने वाला है, स्वाभिमान से जीने का अवसर भी मिलने वाला है। यहां की सरकार जिस तरह विकास के कार्यों में जुटी है, उसका एक और लाभ हुआ है। यहाँ वरना तो हमेशा कहा करते थे पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी कभी पहाड़ के काम नहीं आती । मैंने इस बात को बदला अब पानी भी पहाड़ को काम आयेगा, और जवानी भी पहाड़ को काम आयेगी। पलायन रुकना है एक के बाद एक जो पलायन हो रहे हैं, चलिए साथियों, मेरे नौजवान साथियों यह दशक आपका है। उत्तराखंड का है। उज्जवल भविष्य का है। बाबा केदार का आशीर्वाद हमारे साथ है

यह देवभूमि मात्र भूमि मातृभूमि की रक्षा करने वाले अनेकों वीर बेटे बेटियों की यह जन्मस्थली भी है। यहां का कोई घर कोई गांव ऐसा नहीं है, जहां पर पराक्रम की गाथा का कोई परिचय नहीं है। आज देश जिस तरह अपनी सेनाओं का आधुनिककरण कर रहा है उन्हे आत्मनिर्भर बना रहा है, उससे हमारे वीर सैनिकों की ताकत ओर बढ़ रही है। आज उनकी जरुरत को उनकी अपेक्षाओं को उनके परिवार की आवश्यकताओं को बहुत प्राथमिकता देकर काम किया जा रहा है। यह हमारी सरकार जिसने ´वन रैंक, वन पेंशन´ की चार दशक पुरानी मांग को पिछली शताब्दी की मांग इस शताब्दी में मैंने पूरी की। मुझे संतोष है मेरे देश की सेने के जवानों के लिए मुझे सेवा करने का मौका मिला। इसका लाभ तो उत्तराखंड के करीब- करीब हजारों परिवारों को मिला है, निवरुध परिवारों को मिला हुआ है।

साथियों,

उत्तराखंड ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जिस तरह का अनुशासन दिखाया, वो भी बहुत अभिनंदनीय सराहनीय है। भौगोलिक कठिनाइयों को पार कर आज उत्तराखंड ने, उत्तराखंड के लोगों ने शत- प्रतिशत सिंगल डोज़ का लक्ष्य हासिल कर लिया है। ये उत्तराखंड की ताकत का दर्शन करता है उत्तराखंड के सामर्थ्य को दिखाता है। जो लोग पहाड़ों से परिचित है उन्हे पता है, यह काम आसान नहीं होता है। घंटों- घंटों पहाड़ की चोटियों पर जा करके दो या पांच परिवार को वैक्सीनेशन दे करके रात रात चल करके घर पहुंचना होता है. कष्ट कितना होता है मैं अंदाज लगा सकता हूँ। उसके बाद भी उत्तराखंड ने काम किया है क्यों, उत्तराखंड के एक-एक नागरिक की जिंदगी बचानी है। और इसके लिए मुख्यमंत्री जी मैं आपको और आपकी टीम को बधाई देता हूँ। मुझे विश्वास है कि जितनी ऊंचाइयों पर उत्तराखंड बसा है, उससे भी ज्यादा ऊंचाइयों को मेरा उत्तराखंड हासिल कर के रहेगा। बाबा केदार की भूमि से आप सबके आशीर्वाद से देश के कोने-कोने से संतों के, महंतों के, ऋषिमुनियों के, आचार्य के आशीर्वाद के साथ आज इस पवित्र धरती से अनेक संकल्पों के साथ हम आगे बढ़े। आजादी के अमृत महोत्सव में देश को नई ऊंचाई पर पहुंचाने का संकल्प हर कोई करें। दीवाली के बाद एक नई उमंग, एक नया प्रकाश, नई ऊर्जा हमें नया करने की ताकत दे। मैं एक बार फिर भगवान केदारनाथ के चरणों में, आदि शंकराचार्य जी के चरणों में प्रणाम करते हुए। आप सभी को मैं एक बार फिर दीवाली के इस महापर्व से ले करके छठ पूजा तक अनेक पर्व आ रहे हैं अनेक पर्वों के लिए अनेक- अनेक शुभकामनाएँ देता हूँ मेरे साथ प्यार से बोलिए, भक्ति से बोलिए, जी भर करके बोलिए ।

जय केदार !

जय केदार !

जय केदार !

धन्यवाद

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