मंच पर विराजमान हमारे देश के विदेश मंत्री और देश की पहली विदेश मंत्री, महिला विदेश मंत्री बहन सुषमा स्‍वराज जी, जनरल वी. के. सिंह, विनय सहस्रबुद्धे जी और दुनिया के अनेक देशों से आए हुए सभी महानुभव मैं आपका बहुत हृदय से स्‍वागत करता हूं। भारत के प्रधानमंत्री के रूप में तो मैं स्‍वागत करता ही हूं लेकिन कल आप जहां जाकर के आए हैं उस उत्‍तर प्रदेश से मैं लोकसभा का प्रतिनिधि हूं और इसलिए तो भी मैं विशेष रूप से आपका आदरपूर्वक स्‍वागत करता हूं।

हमारे देश में हिंदू परंपरा में एक मान्‍यता रही है कि जब कोई तीर्थयात्रा करके आता है अगर उसको आप नमस्‍कार करते हैं तो तीर्थयात्रा में जो पुण्‍य उसने कमाया है उसका कुछ हिस्‍सा नमस्‍कार करने वाले को भी मिलता है तो मेरे लिए खुशी है कि आप सब एक अनमोल सांस्‍कृतिक विरासत की तीर्थयात्रा करके आए हैं और आज आपके दर्शन का मुझे मौका मिला, तो जो पुण्‍य आप कमा करके लाए हैं उसका थोड़ा हिस्‍सा मुझे भी मिला है।

आप मुझसे ज्‍यादा भाग्‍यशाली हैं क्‍योंकि मैं इस बार के कुंभ में अब तक जा नहीं पाया हूं आप होकर के आए हैं लेकिन मैं कल जाने वाला हूं। शायद ही ऐसा कोई कुंभ होगा जबसे मैं समझने लगा हूं कि जहां मुझे जाने का सौभाग्‍य न बना हो, कल भी मैं जाऊंगा।

कुंभ का मेला जब तक वहां जाते नहीं है तब तक अंदाज नहीं आता है कि कितनी बड़ी विरासत है ये और हजारों वर्ष से निश्चित डेट एंड टाइम के अनुसार, टाइम टेबल के अनुसार ये चल रही है। कोई इनविटेशन कार्ड नहीं होता है। न कोई गेस्‍ट होता है, न कोई होस्‍ट होता है। फिर भी मां गंगा के चरणों में और जहां भी कुंभ होता है वहां सारे देश के और दुनिया के तीर्थयात्री वहां पहुंचते है। ये असामान्‍य चीज है, कि किसी भी प्रकार की कागज, चिट्ठी, पत्र के बिना हजारों साल से लोग यहां पहुंचते है।

और आप जिस कुंभ को देखकर बड़े प्रभावित हुए हैं, आपके मन को वो छू गया है लेकिन ये भी आपको पता हो कि पूर्ण कुंभ नहीं है, अर्धकुंभ की अगर ये ताकत है तो जब पूर्ण कुंभ होगा वो कैसा होता होगा जिसका आप अनुमान लगा सकते है।

सांस्‍कृतिक रूप से भारत में एकता को बहुत बड़ा बल दिया गया है। ये समागम अब एक प्रकार से स्पिरिचुअल इन्स्पॅरेशॅन के लिए तो है ही है लेकिन ये सोशल रिफॉर्मेशन का मूवमेंट का एक हिस्‍सा है। एक प्रकार से ये उस जमाने की पंचायत है, उस जमाने की जो भी डेमोक्रेटिक फ्रेमवर्क होगा क्‍योंकि समाज जीवन में काम करने वाले स्पिरिचुअल लीडर हो सोशल लीडर हो academicians हो वे तीन साल तक अपने-अपने क्षेत्र में भ्रमण करते थे, लोगों से मिलते थे, संवाद करते थे और तीन साल में एक बार छोटा कुंभ होता था वहां सब अपने बैठ करके 40-45 दिन तक विचार विमर्श करते थे, हिन्‍दुस्‍तान के किस कोने में क्‍या चल रहा है। और उसमें से कोई न कोई बात तय करते थे।

और 12 साल में एक बार 12 साल के period का पूरा review करके 12 साल के बाद समाज को किस प्रकार से guidance की जरूरत है, समाज में कौन से बदलाव की जरूरत है एक प्रकार से perfect democratic system था, नीचे से ऊपर information जाती थी और socio, political, religious leader including Kings राजा महाराजा भी उसमें रहते थे और इस विचार विमर्श में से आगे का 12 साल का रोडमैप तैयार होता था और हर तीन साल पर उसका review होता था।

ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है जो दुनिया के सामने कभी आई ही नहीं। आपने इस बार भी देखा होगा, इस कुंभ के मेले में भी कोई न कोई सटीक social message था। सर्वसामान्‍य की भलाई के लिए message था। और वहां पर आपने कोई भेदभाव नहीं देखा होगा। हर कोई गंगा का अधिकारी है, गंगा में डूबकी लगाता है। अपनी आस्‍था के अनुसार अपना क्रियाकलाप करता है।

भारत टूरिज्‍म का एक destination इसलिए बनने जा रहा है क्‍योंकि विश्‍व एक शांति की तलाश में है। व्‍यक्तिगत जीवन की आपाधापी से भी वो कुछ पल अपने लिए, अपने इंटरनल के लिए बिताना चाहता है। धन, वैभव, समृद्धि बढि़या होटल ये सारी चीजें उसको प्रभावित तो करती हैं, प्रेरित नहीं करती हैं उसको, इम्प्रेसिव वर्ल्ड से वो ऊब चुका है। वो इन्स्पाइरिंग वर्ल्ड की खोज में है।

और आपने कुंभ में अनुभव किया होगा कि भौतिक संपदा की कमी के बावजूद भी एक अंर्तमन के आनंद को कैसे खोजा जा सकता है, संजोया जा सकता है और उससे जीवन की राह बनाई जा सकती है। वो आपने भली-भांति अपनी आंखों से देखा होगा।

और मुझे विश्‍वास है कि आप जब अपने देश लौटोगे तो वहां भांति-भां‍ति के लोग आपसे पूछेगें कि आखिर था क्‍या... क्‍या एक नदी के अंदर डुबकी लगाने के लिए आप इतना खर्चा करके चले गए वहां, कई लोगों को आश्‍चर्य होता है कि इसमें क्‍या है? लेकिन जब आप वहां का दृश्‍य देखोगे और makeshift arrangement तो भारत की organizing capacity का level क्‍या है। ये अपने आप में आपने अनुभव किया होगा।

मुझे बताया गया कि डेली वहां हजारों की तादाद में मिसिंग पर्सन या मिसिंग चाइल्ड की information सेंटर पर आती है। क्‍योंकि इतने करोड़ो लोग होते हैं तो कभी एकाध बच्‍चा हाथ से छूट जाता है कोई बुजुर्ग रह जाता है। फिर इतनी भीड़ में पता नहीं चलता है। वहां इतना perfect mechanism है कि घंटे दो घंटे में वो missing की complaint आते ही उसको खोजकर के उसे परिवार से मिला दिया जाता है। कोई कल्‍पना कर सकता है?

हर दिन गंगा के तट पर एक प्रकार से यूरोप का एक देश इकट्ठा होता है daily और सारी व्‍यवस्‍थाएं makeshift arrangement में हो रही है यानी जो management के students हैं universities हैं, उनके लिए ये case study का विषय है। कि इतनी बड़ी मात्रा में लोग अपने अपने तरीके से आए हैं, अपनी आदतों को लेकर के आए हैं, अपनी भाषा को लेकर के आए हैं। लेकिन एक ऐसी व्‍यवस्‍था जो सबको cater कर रही है, स‍बको संभाल पा रही है और सबकी आशा अपेक्षा पूरी कर रही है। ये अपने आपमें management की दुनिया की ये बहुत बड़ी घटना है।

और विश्‍व का इस तरफ ध्‍यान जाएगा और मैं भारत के विदेश मंत्रालय का विशेष करके सुषमा जी का हृदय से अभिनंदन करता हूं। कि जो कुंभ का मेला यानी एक टास्‍क जिसको लगता था कि हां....हां भई ठीक है लोग आते हैं.. जाते हैं लेकिन इसका एक सामाजिक स्‍वरूप होता है। उसका एक managerial aspect होता है, उसमें आधुनिकता होती है technology होती है, व्‍यवस्‍था होती है और श्रद्धा भी होती है, सांस्‍कृतिक चेतना भी होती है।

ये अदभुत मिलन का कार्यक्रम दुनिया के लोगों ने जब आज देखा है और भारत ने इस प्रकार का ये पहला प्रयास किया है। आपने आकर के हमारे इस प्रयास को सफल बनाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। इसलिए आप भी अभिनंदन के अधिकारी हैं। आपका भी मैं बहुत-बहुत धन्‍यवाद करता हूं।

भारत में जिस प्रकार से भारत की जो सांस्‍कृतिक विरासत है, ये विश्‍व को आकर्षित करने का अभुतपूर्व सामर्थ्‍य है उसमें और हम इस पर प्रतिबद्ध हैं। इस प्रकार की योजनाओं के द्वारा हम दुनिया को भारत की इस महान विरासत के साथ भी जोड़ना चाहते हैं।

और मुझे विश्‍वास है कि विश्‍व भारत की आधुनिक भारत की भी पहचान करेगा और अनमोल विरासत से भी भारत से दुनिया परिचित होने के लिए प्रयास करेगी। आने वाले दिनों में हमारे यहां parliament के इलेक्‍शन होने वाले हैं। जैसा कुंभ का मेला है उसकी management, makeshift arrangements वहां का पूरा technology के द्वारा व्‍यवस्‍थाएं, ये अपने-आप में एक आकर्षण का केंद्र है। वैसे ही more than 800 million लोग वोट करें, निष्‍पक्षता से वोट करें। उसका पूरा जो mechanism है दुनिया का सबसे बड़ा ये चुनाव होता है। दुनिया का सबसे बड़ा.. और मेरा तो ये प्रयास रहेगा... मैंने तो election commission से भी कहा है कि विश्‍व का हर देश भारत का election tourism के लिए निकले.. हिन्‍दुस्‍तान के टूरिज्‍म को देखे और सिर्फ वोटिंग के दिन नहीं कोई मार्च महीने में आए, कोई मार्च के 2nd week में आए, कोई मार्च के 3rd week में आए, कोई अप्रैल में आए, कोई मई में आए लगातार दुनिया के हर देश के दो-दो प्रतिनिधि हर हफ्ते यहां हो, हजारों की तादाद में विश्‍व के लोग आएं, कि भारत में democracy कितनी लोगों के रगो में है।

भारत में गांव में बैठा हुआ व्‍यक्ति भी किस प्रकार से देश की चीजों की समझ रखता है, किस प्रकार से देश के संबंध में निर्णय करता है। विश्‍व के लिए भारत का चुनाव अपने-आपमें अजूबा है। अगर मेरे कुंभ की इतनी बड़ी ताकत है कि managerial capacity को प्रदर्शित करता है तो मेरे देश के चुनाव की रचना, चुनाव का आयोजन और इतना बड़ा democratic participation। विश्‍व में democracy में विश्‍वास करने वाले लोगो के लिए भी ये प्रेरणा देता है। और democracy की ओर जो अभी नहीं पहुंच पाए हैं उनके लिए भी प्रेरणा का कारण बन सकता है। तो मैं चाहूंगा कि मेरे देश का election commission initiate करे, हमारे विदेश मंत्रालय उनको पूरी तरह से मदद करे। और दुनिया भर की यूनिवर्सिटी, दुनिया भर के स्टूडेंट्स, दुनिया भर के डेमोक्रेटस ये सारे लोग जो लोकतंत्र में विश्‍वास करते हैं वो आने वाले दिनों में लोकतंत्र का जो कुंभ होने वाला है उसे भी यहां आए देखें। और भारत के सामान्‍य मानवी का लोकतंत्र के प्रति commitment जो है, भारत के सामान्‍य मानवी का मानवी मूल्‍यों के प्रति commitment जो है उसको अपनी आंखों से देखें और दुनिया को संदेश दें कि भारत हम जो सोचते हैं, सुनते हैं किसी की नजर से जो देखा है हमने अपनी नजर से एक दूसरा हिन्‍दुस्‍तान देखा है, असली हिन्‍दुस्‍तान देखा है, सामर्थ्‍यवान हिन्‍दुस्‍तान देखा है और विश्‍व को कुछ देने का सामर्थ्‍य रखने वाला हिन्‍दुस्‍तान देखा है।

आपने जब अक्षयवट देखा होगा, भारत के लोगों के लिए अक्षयवट एक श्रद्धा का कारण होगा, लेकिन मान लीजिए उस श्रद्धा से आपका परिचय न भी हो तो आपको इतना तो पता चलेगा कि देश कितना प्रकृति प्रेमी है। कि हजारों साल से एक वृक्ष के प्रति आस्‍था रखने वाला वो समाज पेड़ और पौधों में भी परमात्‍मा देखता है अगर उस समाज को कोई समझे तो विश्‍व को कभी climate change or global warming की समस्‍याएं झेलनी नहीं पड़ती, अगर इन बातों को हम पहले से समझते। वो सिर्फ एक वृक्ष के दर्शन नहीं थे। वो भारत के लोग शायद उसकी mythology जानते हैं, भारत के लोगों के लिए वो होगा लेकिन जो mythology को नहीं जानते हैं उनके लिए ये सामर्थ्‍य है कि हम पौधे में भी परमात्‍मा देखते हैं। और हम प्रकृति के प्रति इतने सहजीवन के अभ्यस्त हैं। सहजीवन के साथ साथ प्रकृति के प्रति अपार श्रद्धा रखने वाले लोग हैं जो मानव जाति की बहुत अनिवार्यता है। आज प्रकृति के साथ संघर्ष के कारण मानव जात जो संकटों में फंसी हुई है उससे निकलने का रास्‍ता भी इसी महान परंपरा ने दिया है। चाहे अक्षयवट का दर्शन हो, नदी के प्रति श्रद्धा की बात हो, up-to-date management की बात हो, किसी भी पहलू से देखें दुनिया के लिए ये case study है, यूनिवर्सिटीज के लिए case study है और भारत के प्रति आर्कषण बढ़ाने के लिए, भारत की महान परंपराएं, मानव जात के कल्‍याण का रास्‍ता दिखाने वाली परंपराएं है इस दृष्टि से भी बड़ा महत्‍वपूर्ण है। ऐसे महत्‍वपूर्ण अवसर पर आपका आना मेरे लिए बहुत ही गर्व का विषय है, आनंद का विषय है।

मैं फिर एक बार आप सबका हृदय से स्‍वागत करता हूं और जितना भी समय आपका यहां बिताने का मौका मिलेगा आप जरूर भारत को जानने समझने के लिए उस समय का उपयोग करेंगें और अपने देश में जाकर के दुनिया को बताएंगे कि आपने जो सुना है उससे हिन्‍दुस्‍तान कुछ और है। हिन्‍दुस्‍तान कुछ अधिक है, आप जो हिन्‍दुस्‍तान जानते हो पुरातन जानते हो। यही हिन्‍दुस्‍तान है जो आने वाले दिनों में भी मानव जात को दिशा देने का सामर्थ्‍य रख सकता है। आप सच्‍चे अर्थ में भारत की इस महान परंपरा के ambassador बनकर के वापिस लौटेंगे यही मेरी आप सबको शुभकामनाएं है।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!