मंच पर उपस्थित मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी डॉक्टर महेश शर्मा जी, श्रीमान किरण रिजुजू जी, International Buddhist Foundation के सेक्रेटरी जनरल डॉक्टर धम्मपिये जी, देशभर से आए सभी श्रद्धालुगण, देवियो और सज्जनों।
हमारे यहां मंत्र शक्ति की एक मान्यता है कि जब एक साथ, एक ही जगह हजारों मन-मस्तिष्क एक ही मंत्र का जाप कर रहे हों तो ऊर्जामंडल बनता है और हम सबने यहां उस ऊर्जामंडल का एहसास किया है। आंखें खुली हैं तो हम एक-दूसरे को देख रहे हैं लेकिन मस्तिष्क की तंत्रिकाओं के भीतर भगवान बुद्ध के नाम का जो उच्चारण प्रतिपल हो रहा है वो आप में, मुझ में, हम सभी में हम महसूस कर पाते हैं।
भगवान बुद्ध के प्रति जिस तरह का भाव और भक्ति हम सभी रखते हैं, शायद उसका बयां करने के लिए शब्द कम पड़ जाएंगे। जैसे लोग मंत्र से मुग्ध तो होते ही हैं, वैसे ही हम बुद्ध से भी मुग्ध होते हैं। मेरा सौभाग्य है कि आज बुद्ध पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर मुझे आप सभी के बीच आने का, सभी का; विशेष करके सभी धर्म गुरूओं का आशीर्वाद लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
अभी हमारे महेश शर्मा जी और किरण रिजुजू जी बता रहे थे कि दूसरी बार मैं यहां आया। गत वर्ष भी आता लेकिन गत वर्ष मैं ऐसे ही एक समारोह के लिए, बैशाख के लिए श्रीलंका के अंदर मुख्य मेहमान के तौर पर गया था। और श्रीलंका में मैंने बुद्ध पूर्णिमा वहां के लोगों के साथ, वहां की सरकार के साथ और विश्वभर से आए हुए बौद्ध धर्मगुरूओं के बीच में मनाने का मुझे सौभाग्य मिला था।
हम सब तो बहुत व्यस्त रहते हैं, अपनी-अपनी जिम्मेदारिया हैं। लेकिन इस व्यस्तता के बीच भी जीवन में कुछ ही क्षण हम शायद भगवान बुद्ध का नाम लेकर धन्य हो जाते हैं। लेकिन यहां मैं जो धर्मगुरू देख रहा हूं, भिक्षुकगण देख रहा हूं, इन्होंने तो अपना पूरा जीवन बुद्ध के करूणा के संदेश को पहुंचाने के लिए आहुत कर दिया है। वे स्वयं बुद्ध के मार्ग पर चल पड़े हैं। और मैं आज इस अवसर पर विश्वभर में भगवान बुद्ध का संदेश पहुंचाने वाले उन सभी महा-मानवों का आदरपूर्वक प्रणाम करता हूं, नमन करता हूं।
आप सभी देश के अलग-अलग हिस्सों से यहां आए हैं, आपका भी मैं हृदयपूर्वक स्वागत करता हूं। मुझे ये भी आज एक अवसर मिला कि जिन्होंने इस कार्य के लिए संस्थान हो, व्यक्ति हो, जिन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया- मुझे उनका भी सम्मान करने का अवसर मिला है। मैं उन सभी प्रयासों को, उनके इस योगदान को आदरपूर्वक अभिनंदन करता हूं और भविष्य के लिए उन्हें बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। विशेषकर सारनाथ के central institute of higher Tibetan studies और बौद्ध गया के ऑल इंडिया भिक्षुक संघ को मैं बैशाख सम्मान प्राप्त करने के लिए आदरपूर्वक बधाई देता हूं।
साथियो पूरी धरती का ये भूभाग, हमारा भारत जिस अमूल्य धरोहर का वारिस है, वह अतुलनीय है। दुनिया के अन्य हिस्सों में विरासत की ऐसी समृद्धि देखने को शायद ही मिल पाती है।
गौतम बुद्ध का जन्म, उनकी शिक्षा, उनके महा-परिनिर्वाण पर सैंकड़ों वर्षों से बहुत कुछ कहा गया है, बहुत कुछ लिखा गया है, और ये आज की पीढ़ी का सौभाग्य ही है कि तमाम विपदाओं के बाद, कठिनाइयों के बावजूद उसमें से बहुत सी चीजें बची हुई हैं, सुरक्षित हैं।
आज हमें इस बात का गर्व है कि भारत की इस धरती से जितने भी विचार निकले, उन सभी विचारों में सर्वोच्च भाव सिर्फ और सिर्फ मानव का कल्याण, सृष्टि का कल्याण, यही central theme इस धरती से निकले सभी विचारों के केंद्र में रहा है। और हमें इस बात का गर्व है कि नए-नए विचारों के इस दौर में कभी भी दूसरे के अधिकारों या उसकी भावनाओं का कभी भी अतिक्रमण नहीं किया गया है। न अपने-पराये का भेद, न मेरी विचारधारा-तुम्हारी विचारधारा का भेद, न मेरे ईश्वर-तुम्हारे ईश्वर का भेद।
हमें गर्व है कि भारत से जो भी विचारधाराएं निकलीं, वो पूरी मानवजाति के हितों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ती चली गईं। किसी से ये नहीं कहा, और कभी भी नहीं कहा कि तुम हमारे साथ आओगे, तभी तुम्हारा भला होगा; ऐसा कभी नहीं कहा। बुद्ध के विचारों ने न सिर्फ रास्तों के अंदर एक नवचेतना जगाई बल्कि आज भी एशिया के अनेक देशों के राष्ट्रीय चरित्र को बुद्ध के विचार, बुद्ध की परम्परा; यही तो परिभाषित कर रहे हैं।
साथियो, ये हमारी इस धरती की विशेषता रही है और यही एक बड़ी वजह भी है कि हमारा देश; और ये बात हर हिन्दुस्तानी गर्व के साथ कह सकता है, सीना तान करके कह सकता है, दुनिया के साथ आंख में आंख मिला करके कह सकता है कि हमारी संस्कृति, हमारा इतिहास, हमारी परम्परा इस बात की गवाह है कि हिन्दुस्तान कभी भी आक्रान्ता नहीं रहा है। कभी भी उसने किसी दूसरे देश का अतिक्रमण नहीं किया है। हजारों वर्षों से हमारी संस्कृति मूलभूत चिंतन के कारण इस राह पर चल पड़ी है।
साथियों, सिद्धार्थ- सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बनने की यात्रा, वे कथा, वो केवल निर्वाण प्राप्ति के पथ की कथा नहीं है। ये कथा है इस सत्य की, कि जो व्यक्ति भी अपने ज्ञान, धन, संपदा से दूसरों की वेदना और दुख दूर करने का प्रयास करता है, वह हर व्यक्ति सिद्धार्थ से बुद्ध की राह पर चल पड़़ता है, चल सकता है, बुद्धत्व को प्राप्त कर सकता है।
बुद्ध पूर्णिमा में हमें करुणा और मैत्री का स्मरण हर पल होता है। एक ऐसे समय में जब हिंसा, आतंकवाद, जातिवाद, वंशवाद, इसकी कालिमा बुद्ध के संदेश को जैसे काले बादल की तरह ढकती दिख रही है तो करुणा और मैत्री की बात और अधिक relevant हो जाती है, और अधिक आवश्यक हो जाती है, और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। जीवित वो नहीं है जो ध्वंस, हिंसा और घृणा से अपने विरोधी पर हमला करे । जीवन तो उसी का है जो घृणा, हिंसा और अन्याय के तत्व को सार्थक मैत्री, करुणा से जीतकर विश्व के इस सबसे बड़ी विजय हासिल करे।
ये तथ्य है कि जिन्होंने क्रुद्ध मन को शांत बुद्ध के ध्यान से जीता, वही सफल भी हुआ, वही अमर भी हुआ। सत्य और करुणा का योग, और सत्य और करुणा का योग ही है, वही योग बुद्ध बनाता है, हमारे भीतर बुद्ध को पल्लवित करता है।
बुद्ध का अर्थ हिंसा के लिए प्रेरित मन को क्रुद्ध स्थिति से शुद्ध अंत:करण की स्थिति में आना-लाना, मनुष्य और मनुष्य के मध्य कोई समाज, उसकी जाति, वर्ण, भाषा के आधार पर भेद करे; ये संदेश न भारत का हो सकता है न ये संदेश बुद्ध का हो सकता है, इन इस धरती पर इस विचार के लिए जगह हो सकती है। यहां कोई, किसी भी जाति, वर्ण, वर्ग, आस्था का हो; उसे सदैव अपनापन, आत्मीयता के साथ सहज स्वीकारा गया है। यहूदी समाज हो, पारसी समाज हो; हजारो वर्ष से एक रूप-एक रस होकर, फिर जो सदैव हमारे रक्त, हमारे मानस, हमारे अस्थि का अविभाज्य अंग है, उनसे भेदभाव की कल्पना भी हमने कभी नहीं की। समता का भाव, समानता भाव अपने जीवन में जीना ही, बुद्ध को जीने का मतलब यही होगा। उसी समता, समरसता, समदृष्टि, और संघ भाव के कारण बुद्ध विश्वभर के सर्वाधिक स्वीकार्य महापुरुष हो गए। यह भाव बाबा साहेब आम्बेडकर न जीया तो वे भी बुद्ध की राह पर चल पड़े।
आज विश्व में भारत का सर्वश्रेष्ठ परिचय हमारी भौतिक क्षेत्र में उन्नति के साथ ही हमारा बुद्ध का देश होना, ये भी दुनिया में भारत के महात्मय को बढ़ाता है। ‘धर्मम शरणम गच्छामि, बुद्धम शरणम गच्छामि, संघम शरणम गच्छामि’, ये हमारे देश की पवित्र भूमि से निकल संपूर्ण विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाने वाला जन-जन का मंत्र बन गया है। इसलिए बुद्ध पूर्णिमा का सबसे बड़ा संदेश है, ‘तुम दूसरों को बदलने से पहले स्वयं को बदलना शुरू करो, तुम भी बुद्ध हो जाओगे, तुम बाहर सबको देखने से पहले अपने भीतर के युद्ध को जीतो, तो तुम- तुम भी बुद्ध हो जाओगे’। ‘अपो दीप: आप भव:’- स्वयं अपना प्रकाश अपने भीतर खोजोगे तो आप भी बुद्ध बन जाओगे।
भगवान बुद्ध भी हमेशा चित की शांति और हृदय में करुणा की प्रेरणा देते रहते थे। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानव अधिकार, आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। लेकिन इन पर बहुत स्पष्ट संदेश गौतम बुद्ध ने आज से ढाई हजार साल पहले दिया था। भारत में तो ये विषय अलग से विचारणीय न होकर समग्र विश्व-दृष्टि का ही अंग था।
भगवान बुद्ध के अपने दर्शन में समानता का अर्थ ये है कि हर व्यक्ति की इस धरती पर एक गरिमापूर्ण उपस्थिति है। हरेक व्यक्ति को अवसर संसाधनों का, अधिकारों की उपलब्धता बिना किसी भेदभाव सुनिश्चित की जानी चाहिए।
साथियों, दुनिया का कोई भी देश हो, जातिवाद से लेकर आतंकवाद तक सामाजिक न्याय को चुनौती देने वाली हर विषमता इंसान ने खुद ने ही पैदा की। ये विषमताएं ही अन्याय, शोषण, अत्याचार, हिंसा, सामाजिक तनाव और सौहार्द अहिंसा का मूल स्रोत है। जबकि दूसरी तरफ न्याय, स्वतंत्रता और मानव अधिकार के सिद्धांत समानता के सिद्धांत के ही एक प्रकार से विस्तार हैं। इसका अर्थ ये है कि समानता इन सिद्धांतों का आधार तत्व है।
यदि हमारे समाज में समानता की भावना सुदृढ़ होगी तो सामाजिक न्याय, स्वतंत्रता, मानव अधिकार, सामाजिक परिवर्तन, व्यक्तिगत अधिकार, शांति, सौहार्द, समृद्धि, ये सारे मार्ग हमारे लिए खुल जाएंगे और हम तेजी से आगे बढ़ पाएंगे।
भगवान बुद्ध ने अपने उपदेश में ‘अष्टांग’ की चर्चा की है। भगवान बुद्ध के संदेश में ‘अष्टांग’ की बात आती है। और मैं मानता हूं कि ‘अष्टांग’ के मार्ग को जाने बिना, पाए बिना बुद्ध को पाना बहुत मुश्किल होता है। ‘अष्टांग’ मार्ग में भगवान बुद्ध ने कहा है- एक सम्यक दृष्टि, दूसरा सम्यक समकल्प, तीसरा सम्यक वाणी, चौथा सम्यक आचरण, पांचवां सम्यक आजीविका, सम्यक प्रयत्न, सम्यक चेतना और सम्यक ध्यान यानी right view, right thought, right speech, right conduct, right livelihood, right efforts, right consciousness, right consultation, भगवान बुद्ध ने ये ‘अष्टमार्ग’ हमारे लिए सूचित किया है।
आज के युग में जिन संकटों से हम जूझ रहे हैं, जिन समस्याओं से हम जूझ रहे हैं, उन समस्याओं का समाधान भगवान बुद्ध के दिखाये रास्ते पर चलते हुए संभव है। समय की मांग है की संकट से अगर विश्व को बचाना है; बुद्ध का करुणा, प्रेम का संदेश सबसे उपयुक्त मार्ग है। तो बुद्ध को मानने वाली सभी शक्तियां सक्रिय होनी चाहिए। भगवान बुद्ध ने भी कहा था कि इस रास्ते पर संकलित होकर चलने से ही सामर्थ्य प्राप्त होगा।
साथियों, भगवान बुद्ध उन दार्शनिकों में से थे जिन्हें तर्कबुद्धि और भावना का संकल्प आवश्यक लगता था। वो अपने ‘धम्म’के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के बहुत ही आग्रही थे। वो अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की कसौटी पर कसने के लिए हर हमेश आग्रह करते थे। भगवान बुद्ध के संदेशों को ठोस, दार्शनिक स्वरुप देने वाले महान बौद्ध चिंतक नागार्जुन ने second century में , द्वितीय शताब्दी में सम्राट उदय को जो सलाह दी थी, वो सलाह आज भी बहुत प्रासंगिक है।
उन्होंने कहा था- “नेत्रहीनों, बीमारों, वंचितों, असहायों और दरिद्रों को बिना किसी अवरोध के भोजन और पानी मिलने की व्यवस्था और उनके प्रति करुणा का भाव रखना चाहिए; पीड़ितों, और बीमार लोगों की समुचित देखभाल और परेशान किसानों को बीज और अन्य जरूरी सहयोग दिया जाना चाहिए।‘’
भगवान बुद्ध का वैश्विक विजन इस बात पर केन्द्रित रहा कि सारे संसार में सबका का दुख सदा-सदा के लिए कैसे दूर हो?वो कहते हैं कि किसी को दुख को देख कर दुखी होने से ज्यादा बेहतर है कि उस व्यक्ति को उस के दुख को दूर करने के लिए सक्षम बनाया जाए, तैयार कराया जाए और उसे सशक्त किया जाए।
मुझे प्रसन्नता है कि हमारी सरकार करुणा और सेवाभाव के उसी रास्ते पर चल रही है जिस रास्ते को भगवान बुद्ध ने हमें दिखाया है। जीवन में दु:ख कैसे कम हो, कठिनाइयां कैसे कम हों, एक सामान्य मानवी का जीवन कैसे आसान बने, इसे हम सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं।
जनधन योजना के तहत 31 करोड़ से ज्यादा गरीबों के बैंक अकाउंट खोलना, सिर्फ 90 पैसे प्रतिदिन और एक रुपए महीने के प्रीमियम पर लगभग 19 करोड़ गरीबों को बीमा कवच देना, 3 करोड़ 70 लाख से ज्यादा गरीब महिलाओं को मुफ्त में गैस का चूल्हा देना, कनेक्शन देना; मिशन इंद्रधनुष के तहत 3 करोड़ से ज्यादा शिशुओं और 80 लाख से ज्यादा गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण करना; मुद्रा योजना के तहत बिना बैंक गारंटी 12 करोड़ से ज्यादा ऋण देना, ऐसे अनेक कार्य इस सरकार में गरीब को सशक्त बनाने के लिए किए गए हैं। और अब अब तो आयुष्मान भारत योजना के तहत सरकार लगभग 50 करोड़ गरीबों को साल में 5 लाख रुपए तक के इलाज की सुविधा भी सुनिश्चित करने के लिए आगे बढ़ रही है।
साथियों, Inclusiveness का ये विचार, सबको साथ चलने का विचार ही था जिसने, बुद्ध जी के जीवन को एकदम से बदल दिया। एक राजा का बेटा था जिसके पास सारी सुख-सुविधाएं थीं, वो जब गरीब का देखता है, उसका दर्द, उसकी तकलीफ देखता है, तभी उसके भीतर ये भाव भी आता है कि ‘मैं इनसे अलग नहीं, मैं इन्हीं के समान हूं’।
इस सच्चाई ने ही उन्हें एक विजन दिया- ज्ञाण, तर्कक्षमता, चैतन्य, नैतिकता, मूल्यधर्मिता का भाव उनके भीतर अपने-आप एक शक्ति बनके उभरने लगा। आज इस भाव को जितना हम आत्मसात करेंगे, उतना ही हम सबसे पहले मनुष्य बनने के लिए योग्य होंगे। मनुष्यता के लिए, मानवता के लिए, 21वीं सदी को पूरी दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण सदी बनाने के लिए ये किया जाना बहुत ही आवश्यक है।
भाइयो और बहनों, गुलामी के लंबे कालखंड के बाद अनेक वजहों से हमारे यहां भी अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का कार्य उस तरीके से नहीं हुआ, जैसे होना चाहिए था। जो देश अपने इतिहास का संरक्षण करते हैं, उस विरासत को उसी भव्यता के साथ भावी पीढ़ी को नहीं सौंपता, वो देश कभी पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए हमारी सरकार अपनी सांस्कृतिक धरोहर और विशेषकर भगवान बुद्ध से जुड़ी स्मृतियों के लिए एक बृहद विजन पर भी काम कर रही है।
हमारे देश में करीब-करीब 18 राज्य ऐसे हैं जहां पर भगवान बुद्ध से जुड़े हुए कोई न कोई तीर्थ क्षेत्र हैं। इनमें से कई तो 2 हजार वर्ष से ज्यादा पुराने हैं और विश्वभर से लोगों को आकर्षित करते रहे हैं। ऐसे में ये भी बहुत आवश्यक है कि जो लोग इन स्थलों को देखने आ रहे हैं, उनकी सुविधाओं के हिसाब से भी इन जगहों को विकसित किया जाए। इसी सोच पर चलते हुए देश में स्वदेश दर्शन स्कीम के तहत एक Buddhist circuit पर भी काम किया जा रहा है।
Buddhist circuit के लिए सरकार 360 करोड़ रुपए से ज्यादा स्वीकृत कर चुकी है। इसे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश और गुजरात, ऐसे स्थानों पर बौद्ध स्थलों का और विकास किया जा रहा है।
इसके अलावा सड़क परिवहन मंत्रालय गया-वाराणसी, कुशीनगर, इस पूरे route पर सड़कों के किनारों पर आवश्यक सुविधाओं को विकसित कर रहा है। पर्यटन मंत्रालय द्वारा हर दो साल में International Conclave on Buddhism, उसका भी आयोजन किया जाता है। इस वर्ष जब ये कार्यक्रम होगा तो उसमें भी दुनियाभर से अलग-अलग क्षेत्रों से विद्वान जुटेंगे। इस तरह के कार्यक्रमों का भी मकसद यही है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक हमारी सांस्कृतिक धरोहर के बारे में जानकारी पहुंचे, स्थानीय स्तर पर और दूसरे देशों से भी पर्यटक बौद्धस्थलों को देखने जाएं, उनके बारे में जानकारी हासिल करें।
इसके अलावा केंद्र सरकार, भारत के करीबी देशों में भी बौद्ध विरासत के संरक्षण में उन देशों की मदद कर रही है। आर्कयोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) द्वारा म्यांमार के बागान में, Ananda temple के पुनुरुद्धार और chemical preservation का काम तेजी से चल रहा है। दो साल पहले आए भूकंप में ये मंदिर काफी छतिग्रस्त हो गया था।
ASI अफगानिस्तान के बामियान में, कंबोडिया के ओंकारवाट और ‘तोप्रोहम’ मंदिर में, लाओस के वतपोहू मंदिर में वियतनाम के My Son मंदिर के संरक्षण के कार्य में भी भारत सरकार जुटी है। विशेषकर मंगोलिया की बात करूं तो भारत सरकार Ganden Monastery की सारी Manuscripts के संरक्षण और उनके digitization का काम भी कर रही है।
आज मेरा इस मंच से भारत सरकार के कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालयों से एक आग्रह है। बौद्ध दर्शन से जुड़े देश के अलग-अलग हिस्सों में जो संस्थान चल रहे हैं, उनमें भगवान बुद्ध के शिक्षा संग्रह- ‘त्रिपिटका’ के संरक्षण और अनुवाद का जो कार्य किया जा रहा है, उसे एक मंच पर कैसे लाया जा सकता है। क्या एक विस्तृत portal विकसित किया जा सकता है जिसमें आसान शब्दों में भगवान बुद्ध के विचार और उन पर जो कार्य इन संस्थानों में कया गया है, उसका संकलन हो सके?
मैं महेश शर्माजी से आग्रह करूंगा कि वो इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व अपने हाथ में लें और इसे तय समय में पूरा करने का प्रयास करें।
साथियो, ये हम सभी का सौभाग्य है कि ढाई हजार वर्ष बाद भी भगवान बुद्ध की शिक्षाएं हमारे बीच हैं। और जब मैं सौभाग्य कहता हूं तो आप उसके पीछे की परिस्थितियों के बारे में सोचिए कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं?
निश्चित तौर पर हमारे पहले जो लोग थे, इसमें उनकी बड़ी भूमिका रही है। ये हम से पहले वाली पीढ़ियों का योगदान था, उनका संरक्षण था कि आज हम बुद्ध पूर्णिमा पर इस तरह के कार्यक्रम कर पा रहे हैं। ढाई हजार साल तक हमारे पूर्वजों ने इस विरासत को संजो कर संजोजए रखने के लिए और हर पीढ़ी को देने के लिए निरंत प्रयास किया है। अब आने वाला मानव इतिहास आपकी सक्रिय भूमिका का इंतजार कर रहा है, आपके संकल्प का इंतजार कर रहा है।
मैं चाहता हूं कि आज जब आप यहां से जाएं तो मन में इस विचार के साथ जाएं कि 2022 में, जब हमारा देश स्वतंत्रता के 75 वर्ष का पर्व मना रहा होगा, तब तक ऐसे कौन से 5 या 10 संकल्प होंगे, जिन्हें आप पूरा करना चाहेंगे।
ये संकल्प अपनी विरासत की रक्षा, गौतम बुद्ध के विचारों के प्रसार, किसी से भी जुड़े हो सकते हैं। लेकिन मेरी प्रार्थना है कि यहां उपस्थित हर व्यक्ति, हर संस्था, हर संगठन, 2022 का लक्ष्य तय करके कुछ न कुछ संकल्प अवश्य लें।
आपके ये प्रयास New India के संकल्प को पूरा करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाएंगे। चुनौतियां हमें पता है, हम सभी पर भगवान बुद्ध का आशीर्वाद है, इसलिए मुझे पूरा भरोसा है कि जो भी संकल्प लेंगे, उसे अवश्य प्राप्त करके रहेंगे।
मुझे आज बुद्ध पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर भगवान बुद्ध के चरणों में आ करके बैठने का अवसर मिला, उन्हें नमन करने का अवसर मिला, आप सभी के दर्शन करने का अवसर मिला, इसके लिए मैं अपने-आपको धन्य मानता हूं।
एक बार फिर आप सभी को बुद्ध पूर्णिमा की बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं और मैं मेरी वाणी को विराम देता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद !!!