आज खादी देश का फैशन तो बन ही चुकि है इसके अलावा ये आजादी की कहानी बताने और महिला सशक्तिकरण का एक माध्यम भी बन रही है: प्रधानमंत्री मोदी
मेरा मानना है जैसे स्वतंत्रता के आंदोलन में स्वदेशी एक हथियार था वैसे ही आज गरीबी से लड़ने के लिए हथकरघा भी एक बहुत बड़ा हथियार है: पीएम मोदी
स्वदेशी के प्रति बापू का आग्रह हो, स्वच्छाग्रह हो, या फिर सत्याग्रह, दांडी का यह स्मारक आने वाले समय में देश और दुनिया का महत्वपूर्ण क्षेत्र बन जाएगा ये मेरा विश्ववास है: प्रधानमंत्री

मेरे प्‍यारे भाइयो और बहनों,

सबसे पहले तो आजादी के आंदोलन के अहमपड़ाव का गवाह रही और सत्‍याग्रह की संस्‍कार भूमि दांडी, इस पवित्र धरती से पूज्‍य बापू को मैं अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं। मैं सरदार पटेल को भी अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं, जिन्‍होंने इस दांडी मार्च को organize किया, पूज्‍य बापू का कदम-कदम पर साथ दिया। आज बापू के निर्वाण दिवस पर हम सभी एक महत्‍वपूर्ण अवसर के साक्षी बनेंगे। आज हम सभी का सौभाग्‍य है कि राष्‍ट्रीय नमक सत्‍याग्रह स्‍मारक, उसका कार्य पूरा हो गया है। जिस वर्ष हम पूज्‍य बापू की 150वीं जन्‍म जयंती मना रहे हैं, उस वर्ष ये स्‍मारक देश को समर्पित किया जा रहा है।

साथियो, बापू ने जो विरासत देश और दुनिया को दी है, उससे हमारी भावी पीढ़ी समृद्ध होती रहे, इस कड़ी में आज दांडी का राष्‍ट्रीय नमक सत्‍याग्रह स्‍मारक भी जुड़ गया है। आज इस स्‍मारक के लोकार्पण पर मैं देशवासियों के साथ-साथ इसके निर्माण से जुडे सभी कलाकारों, सभी श्रमिकों, उन सबको भी बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियो, थोड़ी देर पहले इस स्‍मारक को विस्‍तार से देखने का मुझे अवसर मिला। 40 फीट की ऊंचाई पर दो हथेलियों और उस पर ढाई टन का सफ़ेद चमकता हुआ स्‍फटिक नमक का प्रतीक; दो हाथों के नीचे गांधी जी की 15 फीट ऊंची प्रतिमा, गांधी जी की आत्मिक शक्ति को दर्शाती है। साथ में 80 से अधिक सत्‍याग्रहियों की प्रतिमाएं ये स्‍मरण दिलाने के लिए हैं कि देश की आजादी में, देश के कोने-कोने में करोड़ों लोगों ने तप और तपस्‍या की है।

साथियो, दांडी मार्च को लेकर बहुत सारी बातें कही, पढ़ी और लिखी जा चुकी हैं। यहां म्‍यूजियम में भी उनको विस्‍तार से शब्‍दों और तस्‍वीरों के माध्‍यम से दर्शाया गया है। स्‍वदेशी के प्रति बापू का आग्रह हो, स्‍वच्‍छाग्रह हो या फिर सत्‍याग्रह; दांडी का ये स्‍मारक आने वाले समय में देश और दुनिया का महत्‍वपूर्ण तीर्थ क्षेत्र बन जाएगा, ये मेरा विश्‍वास है। इतना ही नहीं, पर्यटन की दृष्टि से भी दांडी और गुजरात को इस स्‍मारक से और ताकत मिलने वाली है। यहां जो झील बनाई गई है, वो बहुत ही आकर्षक है। और इसके अलावा यहां आकर पर्यटक उस ऐतिहासिक पल को खुद भी जी पाएं, उसे दोहरा पाएं, इसके लिए नमक बनाने की भी सुविधा यहां तैयार की गई है। करीब 80 करोड़ रुपये की लागत से यहां दांडी हेरीटेज पथ बनाया गया है, जिसमें नई सड़कें और ठहरने की व्‍यवस्‍थाएं शामिल हैं।

भाइयो और बहनों, दांडी मार्च से भारत की आजादी के आंदोलन पर क्‍या असर पड़ा और दुनिया की सोच में कैसे इस मार्च से परिवर्तन आया, इसको याद रखना जरूरी है। ये नमक सत्‍याग्रह ही था जिसने आजादी की लड़ाई को नई दिशा दी।

दांडी मार्च में पश्चिमी मीडिया में भारत के प्रति सोच, हमारे आजादी के आंदोलन के प्रति समझ को बदलने में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। इस ऐतिहासिक घटना से पहले ज्‍यादातर दुनिया हमें ब्रिटेन के चश्‍मे से देखती थी। लेकिन जब अमेरिका की मशहूर Time magazine ने बापू को साल 1930का Person of the year चुना, तो दुनिया में अत्‍याचार के विरुद्ध आवाज को नई बुलंदी मिलने लगी।

साथियो, सबसे बड़ा संदेश जो गांधीजी ने इस दांडी मार्च से देने का प्रयास किया, वो है रचनात्‍मकता। गांधीजी बखूबी जानते थे कि सिर्फ विरोध, उससे आजादी का आंदोलन सफल नहीं होगा और इसलिए उन्‍होंने तब अपने सहयोगियों से कहा था कि रचनात्‍मक विजन के बगैर भारत का पुनर्निर्माण संभव नहीं है। गांधीजी ने Civil disobedience सविनय, सविनय अवज्ञा के साथ-साथखादी और ऊंच-नीच के खिलाफ सामान्‍य मानवी को एकजुट करने का रास्‍ता भी दिखाया।

साथियो, जब गांधीजी ने सत्‍याग्रह के लिए नमक को चुना था, उस समय, उस समय केकुछ नेताओं को उनके उस तरीके पर संदेह था। कुछ लोगों ने खुल करके इसका विरोध भी किया था। लेकिन, गांधी, गांधी थे। उन्‍होंने अपना अभियान जारी रखा, क्‍योंकि वो नमक की कीमत जानते थे और समाज के हर वर्ग से नमक के संबंध को पहचानते थे। नमक महंगा करना, गरीब से निवाला छीनने जितने बड़ा मामला था, लेकिन नमक की ताकत समझने में तब की अंग्रेज सरकार ने भी भूल कर दी। तब के जनगणना जनरल ने भी इस नमक सतयाग्रह को चुटकी भर नमक से सरकार को परेशान करने वाला पागलपन करार दिया था।

साथियो, नमक सत्‍याग्रह से किस प्रकार का माहौल बना, इसकी चर्चा करते हुए Time magazineने एक ब्रिटिश पत्रकार के हवाले से लिखा था कि बॉम्‍बे में दो सरकारें चल रही हैं- एक तरफ ब्रिटिश सरकार, जिसके पास पूरा प्रशासन है, तो दूसरी तरफ बॉम्‍बे का जन-सामान्‍य है, जो असंख्‍य कैदियों में से एक महात्‍मा गांधी के पीछे खड़ा है।

नमक सत्‍याग्रह के कारण स्‍वदेशी और सविनय अवज्ञा, इसकी भावना इतनी मजबूत हुई कि ब्रिटिश सरकार को भी भारी नुकसान होने लगा। व्‍यापारियों ने महीनों तक दुकानें बंद रखीं। ब्रिटेन से आयात बहुत कम हो गया और अंग्रेज सरकार हिल गई। आजादी के दीवानों को स्‍वराज का लक्ष्‍य सामने दिखने लगा।

साथियो, कल्‍पना कीजिए, अगर उस समय नमक सत्‍याग्रह के खिलाफ कुछ नेताओं की बात महात्‍मा गांधी ने मान ली होती, उनकी बातों में आ करके गांधीजी चुप हो जाते, अपना इरादा बदल देते, यात्रा न करते, तब अगर गांधीजी नकारात्‍मकता के शिकार हो जाते, विरोध की वजह से नमक सत्‍याग्रह न करते, तो क्‍या होता?

साथियो, उस समय जो नमक के प्रयोग को छोटा समझकर विरोध कर रहे थे, उस तरह की मानसिकता हमारे देश में उस समय भी थी, आज भी है, कभी-कभी तो लगता है, आज तो दुर्भाग्‍य से ज्‍यादा शायद कुछ और ज्‍यादा मुखर करके है, ज्‍यादा उसमें स्‍वार्थ चिपक गया है। पिछले चार-साढ़े चार साल में इन लोगों ने कैसे-कैसे सवाल पूछे, मैं आपको याद कराना चाहता हूं, मैं देशवासियों को याद दिलाना चाहता हूं। कैसे पूछते थे, कैसे बोलते थे- जरा उनके डायलॉग याद कीजिए- शौचालय बनाने से भी कोई बदलाव आता है क्‍या? साफ-सफाई भी क्‍या कोई प्रधानमंत्री का काम है? गैस का कनेक्‍शन देने से भी कहीं जीवन बदलता है? बैंक में खाते खोलने से गरीब अमीर हो जाएगा क्‍या? ये सारे डायलॉग देश भूलेगा नहीं, ये वो ही लोग हैं। ऐसे अनेक सवाल अपने निजी स्‍वार्थ के लिए, नकारात्‍मकता को लेकर चलने वाले लोग, और आज भी नकारात्‍मकता को जीने वाले लोग मिल जाएंगे।Negativity से भरे ऐसे लोगों को ये बताना जरूरी है कि बड़ा बदलाव तभी आता है जब छोटी-छोटी बातों और आदतों में सार्थक परिवर्तन आता है।

नमक हो, चरखा हो, खादी हो, स्‍वच्‍छता हो; ऐसी तमाम बातें रही हैं जिन्‍होंने हमारे आजादी के आंदोलन को सशक्‍त किया, लोगों को एकजुट किया, सामान्‍य से सामान्‍य व्‍यक्ति को आजादी का सिपाही बना दिया। कुछ लोगों को तब नमक सत्‍याग्रह छोटा लगता था, उसकी अहमियत नजर नहीं आती थी। अब इस सरकार के अनेक कार्य उनको छोटे लग रहे हैं।

मैं सिर्फ आपको एक उदाहरण देकर समझाता हूं। आप सोचिए साथियो, स्‍वच्‍छ भारत मिशन के तहत देश में नौ करोड़ से ज्‍यादा शौचालय बने, तभी तो आज लाखों लोग अनेक बीमारियों से बच रहे हैं। इन शौचालयों ने महिलाओं की जिंदगी कितनी आसान की है, ये नकारात्‍मकता से भरे लोग समझ नहीं सकते हैं। उनके दिमाग को नकारात्‍मकता का ताला लग गया है। एक अनुमान है कि टॉयलेट बनने की वजह से देश में तीन लाख गरीबों के जीवन की रक्षा संभव हुई है। स्‍वच्‍छ भारत का मजाक उड़ाने वालों को, विरोध करने वालों को गरीब की जिंदगी की कोई परवाह नहीं है।

साथियो, ये लोग चाहे जितना मजाक उड़ाएं, नए भारत ने इन बदलावों के लिए अपना मन बना लिया है, और स्‍वच्‍छता; पूज्‍य बापू कभी कह चुके थे आजादी और स्‍वच्‍छता में से मुझे पहला कुछ चुनना है तो मैं स्‍वच्‍छता चुनूंगा। आए दिन बापू का नाम ले करके राजनीति करने वाले लोगों ने बापू का ये छोटा सा सपना पूरा किया होता, स्‍वच्‍छता का काम किया होता, तो भी बापू को सच्‍ची श्रद्धांजलि होती।

जब समाज सकारात्‍मकता के साथ आगे बढ़ता है तो ये बड़े-बड़़े संकल्‍प सिद्ध कर पाता है। इस वर्ष 2 अक्‍तूबर को जब हम बापू की 150वीं जन्‍म-जयंती मनाने वाले हैं, तब तक सम्‍पूर्ण देश को खुले में शौच से मुक्‍त करना है। मुझे खुशी है कि ग्रामीण स्‍वच्‍छता का जो दायरा 2014 में, हमारी सरकार बनने से पहले, 2014 में करीब-करीब 38 प्रतिशत था, वो आज98 प्रतिशत हो गया, thirty eight से ninety eight. इसका मतलब हुआ कि देश लक्ष्‍य के बहुत निकट पहुंच चुका है। एक बार देश के हर परिवार के पास शौचालय की सुविधा होगी तो स्‍वच्‍छता के अभियान को और गति मिलेगी।

साथियो, सरकार का निरंतर प्रयास है कि बापू के जीवन और उनके बताए रास्‍तों से देश और दुनिया रोशनी लेती रहे। इस बार आपने देखा होगा कि गणतंत्र दिवस की परेड भी 26 जनवरी को राजपथ पर, जितनी भी झांकियां आईं, पूरा कार्यक्रम और आजादी के बाद पहली बार हुआ है, पूरा कार्यक्रम महात्‍मा गांधी को समर्पित कर दिया गया था। पिछले वर्ष हमारी सरकार सरकार ने, हमारे विदेश विभाग ने एक innovative पहल करते हुए दुनियाभर के 100 से भी ज्‍यादा देशों के गायकों से गांधीजी का प्रिय भजन ‘वैष्‍णव जन तो ते ने कहिए’ रिकॉर्ड करवाया था। दुनिया के सौ देश के, वहां के कलाकार; भारत की कोई भाषा नहीं जानते, गुजरात की भाषा नहीं जानते, नरसी मेहताकौन थे, कुछ पता नहीं, वैष्‍णव जन का मतलब क्‍या होता है, पता नहीं, लेकिन वे दिल से जुड़ गए, मन से जुड़ गए, जी-जान से जुड़ गए और ऐसे उन्‍होंने गाया। उनकी भाषा हमसे मिलती नहीं है। हमारे गीत-संगीत को उन्‍होंने समझा, भजन के शब्‍द को, भाव को समझा, आत्‍मीयता को महसूस कर पाए, और यही एक बात है जो बापू को पूरे विश्‍व से जोड़़ती है। और मैंने आज यहां कहा है कि इस दांडी के अंदर जो चित्र वगैरा रखे गए हैं वहां एक digital व्‍यवस्‍था भी करेंगेंकिदुनिया के इन कलाकारों ने जो वैष्‍णव जन गाया है, जो भी जिस देश के वैष्‍णव जन के कलाकार से वैष्‍णव जन सुनना चाहता है, वो सुन सके, ऐसी व्‍यवस्‍था करने के लिए आज मैंने कहा है, वो भी इसमें जुड़ जाएगा।

साथियो, बापू का आग्रह खादी को लेकर भी था, चरखे को लेकर भी था, लेकिन स्‍वतंत्रता के बाद खादी को लोग लगभग भूल ही गए थे। राजनीति में किसी समारोह के समय टोपी-वोपी पहन करके पहुंच जाना या लम्‍बा कुरता पहन करके चले जाना, यहां तक वो सीमित हो गया था। बाकी जन-सामान्‍य के जीवन से करीब-करीब खादी गायब हो गई थी। ये हमारी सरकार के ही प्रयास का नतीजा है कि अब स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है। दुनियाभर में आज खादी के जैकेट्स, उसके साथ-साथ अनेक प्रोडक्‍ट्स, आज दुनिया में से उसकी demand आ रही है। आज खादी देश का फैशन तो बन ही चुकी है, इसके अलावा ये आजादी की कहानी बताने और महिला सशक्तिकरण का एक शक्तिशाली माध्‍यम भी बन रही है।

साथियो, ये बदलाव अपने-आप नहीं आया है। बीते साढ़े चार वर्षों में हमने खादी से जुड़े लगभग दो हजार संस्‍थानों का आधुनिकीकरण किया है, modernization किया है, और हमने कभी देखा नहीं कि ये दो हजार संस्‍था वाले किस पार्टी से जुड़े हुए हैं। हमारे दिल में तो गांधी थे, हमारे दिल में खादी थी, हमारे दिल में जो गरीब बुनकर हैं वो हमारे दिल में था और इसलिए हमने इन दो हजार संस्‍थाओं के modernization का काम किया। इससे खादी से सीधे तौर पर जुड़े लगभगपांच लाख लोगों को लाभ पहुंचा है। अब सीधा पैसा कामगारों तक पहुंचाया जा रहा है। बीते चार वर्षों में खादी की बिक्री में जो ढाई से तीन गुना की बढ़ोत्‍तरी हुई है, उसका लाभ अब इन कारीगरों तक भी पहुंच रहा है।

भाइयो और बहनों, मेरा स्‍वयं का मानना है कि जैसे स्‍वतंत्रता के आंदोलन में स्‍वदेशी एक हथियार था, वैसे ही आज गरीबी से लड़ने के लिए हथकरघाभी एक बहुत बड़ा हथियार है।हथकरघा की अहमियत को समझते हुए हमारी सरकार ने 7 अगस्‍त को राष्‍ट्रीय हथकरघा दिवस के तौर पर घोषित किया है।

साथियो, सम्‍पूर्णता में देखें तो गांव की अर्थव्‍यवस्‍था और कुटीर उद्योग गांधीजी की आर्थिक सोच का महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा रहे हैं। इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए बीते साढ़े चार वर्षों में बड़े स्‍तर पर काम किया गया है। सरकार के प्रयासों का नतीजा ये हुआ है कि गांव के उद्यमों की बिक्री जो चार वर्ष पहले तक 30 हजार करोड़़ रुपये थी, वो आज डबल हो चुकी है, दोगुनी से ज्‍यादा हो गई है।इससे गांवों में रोजगार के अनेक अवसर पैदा हुए हैं। सरकार का प्रयास है कि ग्रामोदयसे भारत उदय, अपने मिशन को और मजबूत किया जाए, सशक्‍त किया जाए, देश के गांवों में मूलभूत सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए सरकार ग्राम स्‍वराज अभियान भी चला रही है। हम एक-एक गांव की समीक्षा कर रहे हैं और इस बात पर जोर दे रहे हैं कि गांव के हर घर में बिजली हो, गैस का कनेक्‍शन हो, शौचालय हो, गांव में रहने वाले हर व्‍यक्ति के पास बैंक खाता हो और हर बच्‍चे को टीकाकरण अभियान का लाभ मिलताहो।

साथियो, हमने बापू के आदर्शों को आधुनिकता के साथ भी जोड़ा है। गांव में युवाओं के लिए, रोजगार के अवसर बनने के लिए, मिशन सोलर चरखाचलाया जा रहा है। इसके तहत अगले साल तक देशभर में 50 सोलर चरखा कलस्‍टर, पायलट तौर पर स्‍थापित किए जा रहे हैं। इससे लगभग एक लाख युवाओं को रोजगार मिलने वाला है।

आज यहां भी आपने देखा होगा कि solar tree बनाए हुए हैं। यहां की जरूरत सूर्य ऊर्जा से पूरी होगी, उससे अतिरिक्‍त बनेगा, गांधीजी के विचारों से सुसंगत है। ये solar tree का concept धीरे-धीरे हर garden के अंदर develop हो जाएगा। लोग इसको स्‍वीकार कर लेंगे। आज दांडी से उसकी एक पहल हुई है।

भाइयो, बहनों, हम चरखे को भी solar से जोड़ रहे हैं ताकि कम मेहनत से बूढ़े लोग परिवार में हों, वो भी चरखा चला करके अपनी आय कमा सकते हैं।

खादी के अलावा मधुमक्‍खी पालन के माध्‍यम से भी हमने ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था को ताकत देने का प्रयास किया है। दो साल पहले शुरू किए हुए honey mission द्वारा देश में मधुमक्‍खी पालन को प्रोत्‍साहित किया जा रहा है। परिणाम ये हुआ है कि आज देश में रिकॉर्ड मात्रा में शहद उत्‍पादन हो रहा है और किसानों को अतिरिक्‍त आय भी हो रही है।

 

साथियो, इस प्रकार के अनेक प्रयास आज देश को अपने गौरवशाली अतीत, अपने संघर्ष और अपने नायकों से प्रेरणा लेने के काम तो आ रहा है, युवाओं के लिए आजीविका के भी स्रोत सिद्ध हो रहे हैं। मुझे एहसास है कि जिनको सिर्फ विरोध ही करना है वो यहां भी अपनी नकारात्‍मक ऊर्जा को फैलाने से नहीं चूकेंगे। सच्‍चाई ये है कि चाहे वो सरदार पटेल की statue of unity हो, लालकिले में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की स्‍मृति में बना क्रांति मंदिर हो, डॉक्‍टर बाबा साहेब अम्‍बेडकर- देश और दुनिया में फैले उनकी स्‍मृति में पंचतीर्थ हों, हमारे आदिवासी नायकों के देशभर में बने हुए, आजादी के जंग में आदिवासियों की भूमिका को लेकर बने, नए बनने जा रहे म्‍यूजियम हों, दिल्‍ली में बना पुलिस मेमोरियल हो; आजादी के बाद पहली बार भारत के वीर जवानों के लिए national war memorial बना रहे हैं जो इसी फरवरी महीने में देश हमारी सेना को अर्पित करेगा। बीते साढ़े चार वर्ष में तैयार किए गए ऐसे अनेक स्‍मारक इतिहास से परिचय कराने के साथ हीरिसर्च और पर्यटन के महत्‍वपूर्ण स्‍थान सिद्ध हो रहे हैं। आने वाले समय में ऐसे अनेक प्रोजेक्‍ट्स भारत में हेरिटेज विकास और हेरिटेज टूरिज्‍म को और मजबूत करने वाले हैं।

 

साथियो, सिर्फ और सिर्फ पर्यटन के कारण बीते साढ़े चार वर्षों में लाखों रोजगार के अवसर युवाओं को मिले हैं। भविष्‍य में ये सैक्‍टर और विस्‍तृत होने वाला है। जैसे-जैसे roadway, railway और airway से जुड़े आधुनिक प्रोजेक्‍ट तैयार हो रहे हैं, भारत एक अहम tourist destination के तौर पर उभर रहा है।

अपने राष्‍ट्र नायकों के योगदान को याद रखना, अपनी संस्‍कृति, अपने इतिहास, अपनी विरासत; उसको समृद्ध करने और युवाओं को नए अवसरों से जोड़ने का हमारा ये अभियान जारी रहेगा। और आज जब मैं दांडी में आया हूं- मेरे लिए दांडी नई जगह नहीं है, मैं पहले भी आया हूं, आप इतनी बड़ी संख्‍या में आशीर्वाद देने के लिए आए हैं।

भारत माता की – जय

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खूब-खूब धन्‍यवाद।

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प्रधानमंत्री 24 नवंबर को 'ओडिशा पर्व 2024' में हिस्सा लेंगे
November 24, 2024

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 24 नवंबर को शाम करीब 5:30 बजे नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में 'ओडिशा पर्व 2024' कार्यक्रम में भाग लेंगे। इस अवसर पर वह उपस्थित जनसमूह को भी संबोधित करेंगे।

ओडिशा पर्व नई दिल्ली में ओडिया समाज फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक प्रमुख कार्यक्रम है। इसके माध्यम से, वह ओडिया विरासत के संरक्षण और प्रचार की दिशा में बहुमूल्य सहयोग प्रदान करने में लगे हुए हैं। परंपरा को जारी रखते हुए इस वर्ष ओडिशा पर्व का आयोजन 22 से 24 नवंबर तक किया जा रहा है। यह ओडिशा की समृद्ध विरासत को प्रदर्शित करते हुए रंग-बिरंगे सांस्कृतिक रूपों को प्रदर्शित करेगा और राज्य के जीवंत सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक लोकाचार को प्रदर्शित करेगा। साथ ही विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख पेशेवरों एवं जाने-माने विशेषज्ञों के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय सेमिनार या सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा।