श्री विनीत जैन,
भारत और विदेश से आए गणमान्य अतिथियों
आप सभी को बहुत-बहुत शुभ प्रभात।
मैं एक बार फिर ग्लोबल बिजनेस समिट में आपके बीच आकर खासा खुश हूं।
सबसे पहले एक बिजनेस समिट की विषयवस्तु के पहले शब्द के तौर पर ‘सोशल’ को जोड़ने के लिए मैं आपका अभिवादन करता हूं;
मैं यह देखकर भी काफी खुश हूं कि यहां मौजूद लोग विकास को स्थायी (सस्टेनेबल) बनाने के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कर रहे हैं, जो आपकी विषयवस्तु का दूसरा शब्द है।
और जब हम स्केलेबिलिटी यानी मापनीयता की बात करते हैं, जो इस समिट की विषयवस्तु का दूसरा शब्द है, यह मुझे इस बात की उम्मीद और भरोसा दिलाता है कि आप वास्तव में भारत के लिए समाधान पर चर्चा कर रहे हैं।
मित्रों,
वर्ष 2013 की दूसरी छमाही और 2014 की शुरुआत में देश जिन चुनौतियों से जूझ रहा था, उनके बारे में यहां उपस्थित लोगों से बेहतर कौन जानता होगा;
आसमान छूती महंगाई हर घर की कमर तोड़ रही थी।
बढ़ता चालू खाता घाटा और ऊंचा राजकोषीय घाटा देश की व्यापक आर्थिक स्थिरता को चुनौती दे रहा था।
इन सभी मानदंडों पर अंधकारपूर्ण भविष्य के संकेत मिल रहे थे;
देश नीतिगत अपंगता से गुजर रहा था।
इनकी वजह से अर्थव्यवस्था उस स्तर तक नहीं पहुंच पा रही थी, जिसके वह योग्य थी;
वैश्विक समुदाय टॉप 5 बीमार देशों के क्लब की सेहत को लेकर चिंतित था।
तात्कालिक परिस्थितियों में समर्पण की धारणा बनी हुई थी।
मित्रों,
ऐसी पृष्ठभूमि में हमारी सरकार लोगों की सेवा के लिए बनी और आज परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।
वर्ष 2014 के बाद संदेह की जगह उम्मीद ने ले ली है।
बाधाओं की जगह आशावाद ने ले ली है।
और मुद्दों की जगह पहलों ने ले ली है।
वर्ष 2014 से भारत अपनी लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग और सूचकांकों में खासे सुधार का गवाह बना है।
इससे न सिर्फ यह जाहिर होता है कि भारत बदल रहा है, बल्कि यह भी पता चलता है कि कैसे भारत के बारे में विश्व की धारणा तेजी से बदल रही है।
मुझे यह मालूम है कि ऐसे भी कुछ लोग हैं जो इस त्वरित सुधार की प्रशंसा नहीं कर सकते।
उन्हें लगता है कि रैंकिंग सिर्फ कागजों पर सुधरती है, लेकिन धरातल पर कोई बदलाव नहीं होता है।
मुझे यह बात हकीकत से कहीं दूर लगती है।
रैंकिंग बाद में सामने आने वाले संकेतक हैं।
हालात धरातल पर पहले बदलते हैं, लेकिन रैंकिंग पर लंबे समय बाद इसका प्रभाव नजर आता है।
व्यापार सुगमता रैंकिंग का उदाहरण सामने है।
बीते चार साल के दौरान हमारी रैंकिंग 142 से सुधरकर 77 पर आ गई, जो ऐतिहासिक है।
लेकिन जमीनी स्तर पर हालात में सुधार के बाद ही रैंकिंग में यह बदलाव आता है।
अब नए व्यापार के लिए निर्माण की स्वीकृति, बिजली कनेक्शन और अन्य स्वीकृतियां खासी जल्दी मिलती हैं।
यहां तक छोटे कारोबारियों के लिए अनुपालन काफी आसान हो गया है।
अब 40 लाख रुपये तक टर्नओवर वाले कारोबार के लिए जीएसटी के तहत पंजीकृत कराने की जरूरत नहीं होती है।
अब 60 लाख रुपये तक टर्नओवर वाले कारोबार को आयकर का भुगतान भी नहीं करना होता है।
अब 1.50 करोड़ रुपये तक टर्नओवर वाला कारोबार बेहद कम कर के साथ कम्पोजिशन स्कीम का पात्र है।
इसी प्रकार विश्व यात्रा और पर्यटन प्रतिस्पर्धा सूचकांक में भारत की रैंकिंग वर्ष 2017 में सुधरकर 40 तक पहुंच गई, जबकि वर्ष 2013 में यह 65 के स्तर पर थी।
वर्ष 2013 से 2017 के बीच भारत में आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्ता में लगभग 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, वहीं स्वीकृत होटलों की संख्या 50 प्रतिशत तक बढ़ी है। इसके अलावा पर्यटन से होने वाली विदेशी मुद्रा आय में 50 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है।
इसी प्रकार, वैश्विक नवाचार सूचकांक में भारत की रैंक 2014 में 76 थी, जो 2018 में 57 के स्तर पर पहुंच गई है।
नवाचार में यह वृद्धि स्पष्ट रूप से दिख रही है। संस्कृति में भी यह बदलाव स्पष्ट है।
पेटेंट और ट्रेड मार्क आवेदनों की संख्या में भी खासी वृद्धि हुई है।
मित्रों,
बदलाव की वजह शासन की एक नई शैली है और अक्सर यह कई दिलचस्प तरीकों से भी नजर आता है।
मैं आपके सामने कई दिलचस्प उदाहरण रखना चाहूंगा कि कैसे वर्ष 2014 के बाद चीजें बदली हैं।
हमारे सामने प्रतिस्पर्धा के कई रूप प्रत्यक्ष हैं।
मंत्रालयों के बीच प्रतिस्पर्धा,
राज्यों के बीच एक प्रतिस्पर्धा,
विकास पर एक प्रतिस्पर्धा।
ऐसी भी एक प्रतिस्पर्धा है कि भारत पहले 100 प्रतिशत स्वच्छ होगा या 100 फीसदी विद्युतीकरण होगा।
यह भी प्रतिस्पर्धा है कि पूरी जनसंख्या पहले सड़क मार्ग से जुड़ेगी या सभी घरों को पहले गैस कनेक्शन मिलेंगे।
यह भी प्रतिस्पर्धा है कि किस राज्य में ज्यादा निवेश आएगा।
ऐसी भी प्रतिस्पर्धा है कि कौन सा राज्य गरीबों के लिए सबसे तेज घर बनाकर देगा।
एक ऐसी प्रतिस्पर्धा है कि कौन सा आकांक्षी राज्य सबसे तेज विकसित होगा।
वर्ष 2014 से पहले भी हमने एक प्रतिस्पर्धा के बारे में सुना था, हालांकि यह एक अलग प्रकार की थी।
मंत्रालयों के बीच प्रतिस्पर्धा,
व्यक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा,
भ्रष्टाचार पर प्रतिस्पर्धा,
देरी की प्रतिस्पर्धा।
ऐसी प्रतिस्पर्धा थी कि कौन सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार करता है,
कौन सबसे तेज भ्रष्टाचार करता है,
ऐसी प्रतिस्पर्धा कि कौन सबसे ज्यादा नए तरीकों से भ्रष्टाचार करता है।
ऐसी प्रतिस्पर्धा थी कि कोयले से ज्यादा पैसा मिलेगा या स्पेक्ट्रम से।
प्रतिस्पर्धा थी कि सीडब्ल्यूजी से ज्यादा पैसा बनेगा या रक्षा सौदों से।
हम सभी ने देखा है और हम सभी जानते हैं कि प्रतिस्पर्धा में कौन-से लोग शामिल हैं।
मैं यह आपके ऊपर छोड़ता हूं कि किस तरह के भ्रष्टाचार को आप प्राथमिकता देंगे।
मित्रों,
दशकों से एक धारणा सी बन गई थी कि कुछ काम भारत में असंभव हैं।
वर्ष 2014 के बाद हुए हमारे राष्ट्र के विकास मुझे भरोसा मिला है कि 130 करोड़ भारतीयों के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।
नामुमकिन अब मुमकिन है।
यह भी कहा जाता था कि स्वच्छ भारत का निर्माण करना असंभव है, लेकिन भारत के लोगों ने इसे संभव कर दिखाया है।
कहा जाता था कि भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना असंभव है, लेकिन भारत के लोगों ने इसे भी संभव कर दिखाया है।
यह कहा जाता था कि लोगों को उनका अधिकार दिलाने की प्रक्रिया के बीच से भ्रष्टाचार को खत्म करना असंभव है, लेकिन भारत के लोग इसे संभव बना रहे हैं।
कहा जाता था कि गरीबों को तकनीक की ताकत के लाभ देना असंभव है, लेकिन भारत के लोगों ने इसे भी संभव कर दिखाया है।
यह कहा जाता था कि नीति निर्माण में भेदभाव और मनमानी को रोकना असंभव है, लेकिन भारत के लोगों ने इसे भी संभव कर दिखाया है।
यह कहा जाता कि भारत में आर्थिक सुधार असंभव हैं, लेकिन लोगों ने इसे संभव कर दिया है।
कहा जाता था कि सरकार विकास समर्थक और गरीब समर्थक नहीं हो सकती, लेकिन भारत ने इसे संभव किया है।
पहले ऐसी भी धारणा थी कि एक विकासशील देश महंगाई की समस्या का सामना किए बिना लंबे समय तक आर्थिक विकास नहीं कर सकता।
1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण के दौर में हमारे देश में बनी लगभग सभी सरकारों ने इस समस्या का सामना किया था, जिसे कई विशेषज्ञ लंबे समय तक होने वाले विकास के बाद ‘ओवर हीटिंग’ कहकर पुकारते थे।
नतीजतन हम कभी लंबे समय तक ऊंची विकास दर को बरकरार नहीं रख पाए।
आपको याद होगा कि 1991 से 1996 के बीच एक सरका थी, जब औसत विकास दर लगभग 5 प्रतिशत रही थी, लेकिन औसत महंगाई दर 10 प्रतिशत से ज्यादा बनी रही।
हमसे ठीक पहले वर्ष 2009 से 2014 के बीच रही सरकार में औसत विकास दर लगभग 6.50 प्रतिशत रही थी और औसत महंगाई एक बार फिर दहाई अंकों में रही थी।
मित्रों,
वर्ष 2014 से 2019 के दौरान भारत की औसत विकास दर 7.40 फीसदी रही और औसत महंगाई दर साढ़े चार फीसदी से कम ही रही;
भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद यह सबसे ऊंची औसत विकास दर होगी और किसी भी सरकार के कार्यकाल में सबसे कम औसत महंगाई दर रही।
इन बदलावों और सुधार के साथ हमारी अर्थव्यवस्था सही दिशा में आगे बढ़ रही है।
भारतीय अर्थव्यवस्था अपने वित्तीय संसाधनों के साथ आगे बढ़ रही है।
यह अब निवेश जरूरतों के लिए बैंक कर्ज पर ज्यादा निर्भर नहीं है।
पूंजी बाजार से पूंजी जुटाने के उदाहरण को ही लीजिए।
वित्त वर्ष 2011-12 से 2013-14 के दौरान, इस सरकार के आने से ठीक तीन साल पहले प्रति वर्ष इक्विटी के माध्यम से औसतन लगभग 14 हजार करोड़ रुपये जुटाए गए।
बीते चार साल के दौरान प्रति वर्ष औसतन लगभग 40 हजार करोड़ रुपये जुटाए गए।
2011 से 2014 के दौरान वैकल्पिक निवेश कोष से जुटाई गई कुल रकम चार हजार करोड़ रुपये थी।
हमारी सरकार ने अर्थव्यवस्था के वित्त के स्रोत के विकास के लिए कई फैसले लिए हैं।
और आप इसके परिणाम देख सकते हैं-
-वर्ष 2014 से 2018 के बीच चार साल में वैकल्पिक निवेश कोष से 81 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा जुटाए जा सके हैं।
यह लगभग 20 गुनी वृद्धि है।
इसी प्रकार कॉर्पोरेट बॉन्डों के प्राइवेट प्लेसमेंट के उदाहरण को देखते हैं।
2011 से 2014 के दौरान इसके माध्यम से जुटाई गई औसत धनराशि लगभग 3 लाख करोड़ रुपये या 40 अरब डॉलर रही।
अब बीते चार साल के दौरान औसत धनराशि 5.25 लाख करोड़ रुपये या लगभग 75 अरब डॉलर जुटाई गई।
यह लगभग 75 प्रतिशत वृद्धि रही।
ये सभी अर्थव्यवस्था के आत्म विश्वास के उदाहरण हैं।
आज यह भरोसा न सिर्फ घरेलू निवेशकों, बल्कि वैश्विक निवेशकों ने भी प्रदर्शित किया है।
भारत में दिखाए गए भरोसे ने पुराने चुनाव-पूर्व रुझानों को तोड़ दिया है।
बीते चार साल में देश में लगभग उतना ही प्रत्यक्ष विदेश निवेश आया, जितना वर्ष 2014 से पहले के सात साल में आया था।
इसे हासिल करने के लिए भारत में बदलाव के लिए कई सुधारों की जरूरत है।
दिवालियापन कानून, जीएसटी, रियल एस्टेट कानून ऐसे कुछ नाम है, जिसने दशकों तक चलने वाले आर्थिक विकास की ठोस नींव रखी है।
चार साल पहले किसको इस बात पर विश्वास होगा कि डिफॉल्टर कर्जदारों से वित्तीय या ऋणदाता संस्थानों को तीन लाख करोड़ रुपए या लगभग 40 अरब डॉलर वापस मिलेंगे।
यह दिवालियपन कानून का प्रभाव है।
इससे देश को ज्यादा कुशलता से वित्तीय संसाधनों के आवंटन में सहायता मिलेगी।
हमने जहां अर्थव्यवस्था को दुरुस्त किया जिस पर कई साल तक काम नहीं हुआ था, वहीं हमने ‘धीरे चलो, काम प्रगति पर है’ जैसे बोर्ड नहीं लगाने का भी फैसला किया।
समाज की बेहतरी के लिए ये सभी सुधार काम को बिना रोके लागू किए गए।
मित्रों,
भारत 130 करोड़ आकांक्षी लोगों का देश है और यहां विकास व प्रगति का कोई एक विजन नहीं हो सकता।
नए भारत का हमारा विजन आर्थिक स्तर, जाति, संप्रदाय, भाषा और धर्म से पहले समाज के हर तबके की जरूरतों को पूरा करने के लिए है।
हम नए भारत के निर्माण पर काम कर रहे हैं, जो 130 करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं और सपनों को पूरा करता है।
नए भारत के हमारे विजन में भविष्य की चुनौतियों का ऐसा समाधान शामिल है, जो पूर्व की समस्याओं का हल भी निकालता हो।
आज जहां हमने सबसे तेज ट्रेन बना दी है, वहीं मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग भी पूरी तरह खत्म कर दी हैं।
आज, भारत जहां तेज गति से आईआईटी और एम्स का निर्माण कर रहा है, वहीं देश भर के विद्यालयों में शौचालय भी बना रहा है।
आज देश भर में 100 स्मार्ट सिटी का निर्माण हो रहा है, वहीं 100 आकांक्षी जिलों का तेज विकास भी सुनिश्चित हो रहा है।
आज जहां भारत बिजली का निर्यात कर रहा है, वहीं देश के करोड़ों घरों में बिजली कनेक्शन सुनिश्चित किया गया है जो आजादी के बाद से अंधेरे में जीवन जी रहे थे।
आज जहां भारत मंगल तक पहुंचने के लक्ष्य पर काम कर रहा है, वहीं यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि हर भारतीय को छत मिले।
आज भारत जहां दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है, वहीं सबसे तेज गति से यहां गरीबी भी खत्म हो रही है।
मित्रों
अब ए, बी, सी का मतलब बदल गया है, जो इस प्रकार है-
ए- का मतलब है एवॉयड करना यानी टालना।
बी- का मतलब है बरीइंग यानी ठंडे बस्ते में डालना।
सी का मतलब है कि कनफ्यूज करना यानी भरमाना।
समस्याओं से बचने की बजाय हमने ये समस्याएं दूर कीं;
इन समस्याओं को छिपाने की बजाय हमने लोगों से इन पर बात की:
और
व्यवस्था को भ्रम में डालने के बजाय हमने साबित किया कि हर समस्या का समाधान संभव है।
इसके साथ ही हमें सामाजिक क्षेत्रों में अपने सकारात्मक सहयोग को और अधिक विस्तार देने का हमारा विश्वास बढ़ा है।
साथ ही हम 12 करोड़ छोटे और सीमांत किसानों को हर साल छह हजार रुपये की राहत प्रदान कर रहे हैं। अगले 10 साल में इस योजना के अंतर्गत हमारे किसानों को 7.5 लाख करोड़ रुपये या 100 अरब डॉलर की धनराशि हस्तांतरित की जाएगी।
हम असंगठित क्षेत्र के करोड़ों कामगारों के लिए पेंशन योजना भी शुरू कर रहे हैं।
हमारी सरकार के लिए विकास का इंजन दो समान पटरियों पर दौड़ रहा है- जिसमें सभी लोगों के लिए, विशेष रूप से ऐसे लोगों समान सामाजिक बुनियादी ढांचा उपलब्ध करानाशामिल है जो अभी तक मुख्य धारा से बाहर हैं;
और अन्य सभी,विशेष रूप से आने वाली पीढ़ी के लिएके लिए जरूरी बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराना है जो अपने सपनों के अनुसार उनके भविष्य को आकार देने में लगे हुए हैं।
अतीत में जो कुछ भी हुआ वह हमारे हाथों में नहीं था लेकिन भविष्य में जो कुछ भी होगा उसके लिए हम मजबूती से तैयार हैं।
हम अक्सर अतीत में हुई औद्योगिक क्रांतियों को याद करके पछतावा करते हैं, लेकिन हमारे लिए आज यह गर्व कि बात है कि हम चौथी औद्योगिक क्रांति में सबसे अधिक योगदान के साथ बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।
आपके योगदान की सीमा और उसकी व्यापकता दुनिया को आश्चर्यचकित करेगी।
मुझे यह भी विश्वास है कि भारत पिछली तीन औद्योगिक क्रांतियों के दौरान संभवतःविकास की बस से वंचित रह गया होगा।लेकिन इस बार यह एक ऐसी बस है जिसमें भारत न सिर्फ सवार होगा बल्कि उसका नेतृत्व भी करेगा।
नवाचार और प्रौद्योगिकी इसका आधार बनेगी
एक बार फिर से
डिजिटल इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया, मेक इन इंडिया और इनोवेट इंडिया जैसी हमारीयोजनांए लाभांशों को बढ़ा रही हैं।
क्या आप जानते हैं कि 2013 और 2014 में लगभग चार हजार पेटेंट दिए गए थे, जबकि 2017-18 में 13 हजार से ज्यादा पेटेंट दिए जा चुके हैं।
यह लगभग तीन गुनी वृद्धि है!
इसी प्रकार, आपको यह जानकर खुशी होगी कि आज भारत में 44 प्रतिशत पंजीकृत स्टार्टअप टियर 2 औरटियर 3 शहरों से हैं।
देश भर में सैकड़ों अटल टिंकरिंग लैब्स के नेटवर्क को बढ़ावा मिल रहा है। साथनवाचार के माहौल को और अधिक बढ़ावा देने में सहायता मिल रही है।
यह हमारे छात्रों को भविष्यमें इनोवेटर बनने में मदद करने के लिए एक ठोस आधार साबित होगा।
मैं यह देखकर काफी प्रभावित हुआ कि कैसे एक सपेरा समुदाय की युवा लड़की माउस मेंकिग में डिजिटल इंड़िया का भरपूर लाभ उठा रही थी।
यह देखकर काफी खुशी होती है की कैसे गांवों में युवा प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने के लिए वाई-फाई और डिजिटल उपकरणों का लाभ उठा रहे हैं।
यह ऐसी तकनीक हैजो हमारे देश में अमीरी और गरीबी के बीच की खाई को पाट रही है।
इस तरह की कहानियां भारत के इतिहास में एक नया अध्याय लिख रही हैं।
मित्रों,
आप लोगों के समर्थन और भागीदारी के साथभारत ने 2014 के बाद से तेजी से प्रगति की है।
यह सब जनभगीदारी के बिना संभव नहीं हो सकता था।
यह ऐसा अनुभव है जो हमें विश्वास दिलाता है कि हमारा देश अपने सभी नागरिकों के विकास ,समृद्धि और उत्कृष्टता के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान कर सकता है।
हम भारत को 10 ट्रिलियन डॉलर (10 लाख करोड़ डॉलर) की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए अग्रसर हैं।
हम भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के लिए तत्पर हैं,
हम ऐसा भारत बनाना चाहते हैं जिसमें अनगिनत स्टार्टअप्स होंगे।
हम ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की दिशा में वैश्विक अभियान के साथ नेतृत्व करना चाहते है।
हम अपने लोगों को ऊर्जा के साथ सुरक्षा देना चाहते हैं।
साथ ही हम आयात निर्भरता में भी कटौती करना चाहते हैं।
हम भारत को इलेक्ट्रिक वाहनों और ऊर्जा भंडारण और उपकरणों में विश्व में अग्रणी बनाना चाहते हैं।
इन लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुएहमें अपने सपनों का नया भारत बनाने के लिए आइए हम अपने आप को फिर से समर्पित करें।
धन्यवाद,
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद ।