एक बार भारत के लोग कुछ करने की ठान लें तो कुछ भी असंभव नहीं है: प्रधानमंत्री मोदी 
बैंकों का राष्ट्रीयकरण तो किया गया लेकिन इस कदम से बैंकों की पहुंच गरीबों तक नहीं हो पाई। हमने जन-धन योजना के माध्यम से इसमें व्यापक स्तर पर बदलाव किया: पीएम मोदी 
समावेशी एवं सर्वांगीण विकास आवश्यक है। यहां तक कि जो राज्य विकसित है, वहां भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां विकास को बढ़ावा देने की जरूरत है: प्रधानमंत्री 
कम विकसित जिलों में काम करना बहुत ग्लैमरस नहीं हो सकता है लेकिन यह सकारात्मक बदलाव लाने के लिए एक महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म अवश्य सिद्ध होगा: प्रधानमंत्री मोदी

साथियों, ये 2018 का प्रारंभिक काल है। मैं आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। इस भवन में भी ये अधिकृत पहला कार्यक्रम है। 7 दिसंबर को इसका लोकार्पण किया था, लेकिन अधिकृत कार्यक्रम आज पहला है। पर मुझे खुशी इस बात की है कि जिस महापुरुष के नाम से ये भवन जुड़ा हुआ है, और जिनके चिंतन पर वैश्विक स्‍तर पर चिंतन हो ये अपेक्षा है; उस भवन में जो कार्यक्रम हो रहा है उसकी महत्‍ता और बढ़ जाती है क्‍योंकि बाबा साहेब जीवनभर सामाजिक न्‍याय की लड़ाई लड़ते रहे।

हमारा संविधान भी उस अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए एक framework प्रदान करता है। अब सामाजिक न्‍याय बस सिर्फ एक सामाजिक व्‍यवस्‍था तक ही सीमित रहने से होता नहीं है। क्षेत्र विशेष का भी पीछे रह जाना एक अन्‍याय का कारण होता है। कोई गांव पीछे रह जाए तो वो सिर्फ एक गांव एक entity group में पीछे रहे ऐसा नहीं है। वहां रहने वाले लोग, उनको मिलने वाली सुविधाएं, उनके हक, उनके अवसर, इन सबमें, सबमें वो अन्‍याय का शिकार हुआ होता है। और इसीलिए 115 जिले, उसका विकास, उस बाबा साहेब अंबेडकर की सामाजिक न्‍याय की प्रतिबद्धता का भी एक बहुत बड़ा, एक systematic solution प्राप्‍त करने का प्रयास का हिस्‍सा बनेगा। और उस अर्थ  में इस भवन में ये पहला कार्यक्रम और इस विषय पर कार्यक्रम, मैं समझता हूं कि अपने आप में एक शुभ संकेत है।

आप दो दिन से विचार-विमर्श कर रहे हैं। अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि हमारे देश में अगर एक बार हम ठान लें तो कुछ भी असंभव नहीं है। बैंक राष्‍ट्रीयकरण होने के बाद भी 30 करोड़ लोग इस व्‍यवस्‍था से अछूते रह जाएं। लेकिन एक बार ये देश ठान लें, ठीक है चला, चला, जैसा गया, गया; बीता, बीता, अब नहीं चलेगा और जन-धन अकाउंट एक जनआंदोलन बन जाए और देश का आखिरी छोर पर बैठा हुआ व्‍यक्ति भी अपने आपको अर्थव्‍यवस्‍था की main stream का हिस्‍सा महसूस करने लगे; ये इसी देश ने, इसी सरकार के मुलाजिम ने, इसी बैंक के लोगों ने सिद्ध करके दिखाया है और समय सीमा में करके दिखाया है।

हम कहते तो थे कि toilet होने चाहिए, कार्यक्रम चलते थे, बजट बनता था, reporting भी होता था, progress भी होता था। अगर आप बता देते थे कि कल इतना था, आज इतना पहुंचा, तो संतोष भी होता था कि पहले हम साल में पांच कदम आगे बढ़ते थे, अब हम साल में छह कदम बढ़ते हैं, सात कदम बढ़ते हैं। शायद हमारे संतोष प्राप्‍त करने के तरीके भी सेट हो चुके थे। हम समाधान ढूंढने के रास्‍ते भी बड़े साधारण तरीके से खोज लेते थे। और समस्‍या हर बार सामने आकर खड़ी रहती थी। बच्चियों का dropout कियूं  है तो toilet नहीं है, sanitary की समस्‍या क्‍यों है, toilet नहीं है। लेकिन एक बार ठान लिया भई इस समस्‍या से बाहर निकलना है, सब को sensitize करना है और सामान्‍य रूप से साल में औसत जितना काम करते हैं, उससे अनेक गुना काम इसी टीम ने, इसी व्‍यवस्‍था ने, इसी नियमों के तहत करके दिखाया और चार लाख से ज्‍यादा स्‍कूलों के अदंर toilet बनाने का काम पूरा किया और real time monitoring हुआ। हर किसी ने फोटो निकाल करके  अपलोड किया और कोई भी उसको देख सकता था। इसी देश ने, इसी देश की यही सरकारी व्‍यवस्‍था ने ये करके दिखाया।

18 हजार गांवों में एक हजार दिन में बिजली पहुंचाना। अगर सामान्‍य स्‍तर पर पूछताछ करते हैं तो अफसरों ये ही आता था कि साहब इतना काम करना है तो 5-7 साल तो लगेंगे। लेकिन जब चुनौती के रूप में उनके सामने आया कि 1000 दिन में 18 हजार गांवों में जाना है, बिजली पहुंचानी है; यही व्‍यवस्‍था, सही नियम, यही फाइल, यही परम्‍परा, यही टेक्‍नीक, यही तरीके, इसी टीम ने 18 हजार गांवों में समय-सीमा में बिजली पहुंचाने का काम सफलतापूर्वक कर दिया।

Soil Testing नया विषय था। किसान इन चीजों से परिचित नहीं था। इससे लाभ से भी सीधा उसको कुछ पता नहीं था कि इससे कोई लाभ मिलता है। लेकिन एक बार कहा भाई Soil Testing करना है, Soil health card बनाने हैं, उनको एक analysis करना है। यही व्‍यवस्‍था, सही टीम, यही लोग, ठान ली मन में। शायद जो target किया था, उसके पहले पूरा कर लेंगे ऐसा मुझे report बताया जा रहा है।

मैं इन चीजों का उदाहरण इसलिए दे रहा हूं कि हम अपार क्षमता के धनी हैं। हम अपार संभावनाओं के युग में इस व्‍यवस्‍था का नेतृत्‍व कर रहे हैं और हम अपार अवसरों के जन्‍मदाता बन करके अप्रतिम सिद्धियों के जन्‍मदाता भी बन सकते हैं। ये मैं स्‍वयं आप सबके बीच रहते-रहते अनुभव कर रहा हूं, सीख रहा हूं और मेरा विश्‍वास मजबूत होता चला जा रहा है। और उसी में से बात आई, हम इन जमे हुए चीजों की चिंता कर लेते हैं, और कभी-कभी लगता है‍ कि चलो हो जाएगा। मैं नहीं मानता हूं कि कोई सरकार किसी समय ease of doing business में भारत इतना पीछे है, ये पढ़ करके, सुन करके पीड़ा नहीं होती; हर एक को हुई होगी। हर किसी ने सोचा होगा कि भई ये कब तक चलेगा? दुनिया की नजरों में हम पीछे कब तक रहेंगे? और एक बात जो सिद्ध है कि आज वैश्विक परिवेश में हमने भारत की positioning भी उस रूप में करनी ही पड़ेगी, कोई चारा नहीं है, उसको एक बस है ही नहीं, करनी ही पड़ेगी। तब जा करके विश्‍व का जो माहौल बना है, भारत के प्रति जो आकर्षण पैदा हुआ है, वो आकर्षण भारत के लाभ में परिवर्तित हो सकता है, अवसर में परिवर्तित हो सकता है।

और उसी एक विश्‍वास से ease of doing business के लिए क्‍या कमियां हैं, identify की हैं। क्‍या रास्‍ते खोले जा सकते हैं, छोटा सा workshop किया। Systematic एक कदम, दो कदम, तीन कदम। सभी Chief Ministers को बुलाया, उनको sensitize किया। सभी Chief executives को बुलाया, उनको  sensitize किया।       Department में way out के लिए रास्‍ते खोजे। काफी होमवर्क किया और फिर उसको rollout किया। और उसका परिणाम ये आया कि दुनिया में किसी देश को एक साल में इतना बड़ा jump  लगाने का अवसर नहीं मिला जो हम लोगों को मिला, हिन्‍दुस्‍तान को मिला और हम 2014 में 142  नंबर पर यात्रा शुरू की थी; 2017 में 100 पर पहुंच गए। 42 अंक आगे बढ़ना, ये किसने किया? किसी अखबार के Editorial से नहीं हुआ है; किसी टीवी पर नेता की तस्‍वीर दिखाई थी इसलिए नहीं हुआ है, किसी नेता ने बहुत बढ़िया लच्‍छेदार भाषण कर दिया इसलिए नहीं हुआ है। ये हुआ है आपके प्रयासों से, आपके पुरुषार्थ से, आपकी मेहनत से, आपकी लगन से हुआ है; आप यानि मेरे देश की एक टीम। और इसी के कारण एक विश्‍वास पक्‍का होता है कि हम अगर समस्‍या को जड़ से पकड़ें और रास्‍ते खोजें, और ये बात सही है ऊपर से नीचे हुई थोपी हुई चीजें जीती तो रहती हैं, लेकिन जान नहीं होती है। और जान नहीं है तो फिर न उसकी कोई पहचान बनती है, न उससे कोई परिणाम प्राप्‍त होता है।

आज कोशिश ये है कि आप वो लोग हैं, यहां निर्णय करने वाले वो सब लोग यहां से गुजरे हैं, जहां आप हैं वहां से गुजरे हैं, लेकिन उसे बीच में 15-20 साल, 25 साल का फासला हो गया है। और अब तो दुनिया बहुत बदल चुकी है। आज aspirations बदल चुके हैं, सोच बदल चुकी है, व्‍यवस्‍थाएं बदल चुकी हैं। उसको आप भली भांति जानते हैं क्‍योंकि आप उस परिस्थितियों से गुजारा कर रहे हैं, छटपटा रहे हैं, क्‍या करूं? जिन सपनों को ले करके मंसूरी गया था उन सपनों को क्‍या मैं इस समय पूरा नहीं कर पाऊंगा? और बाद में शायद 5-7 साल के बाद ऐसी जिम्‍मेवारियां बदल जाएंगी जो शायद करने की ताकत भी नहीं रहेगी।

आज ये सबसे बड़ा अवसर ये है आप क्‍या सोचते हैं? आपका अनुभव क्‍या कहता है? Roadmap बनाते समय आपका अपना अनुभव, ये प्राथमिक कैसे हो? और जो आपके presentation मैंने देखे उसमें मुझे वो चीजें दिखाई दे रही हैं। मैं फील कर रहा हूं कि हां यार इसको बराबर समझ है कि बाकी सब ठीक है, budget है, फलाना है, ढिकना है, लेकिन समस्‍या यहां है। इस समस्‍या का समाधान कोई करेगा तो रास्‍ता खुल जाएगा।

आज मैं देख रहा था आपके presentation में clarity of thought जिसको कहते हैं, वो महसूस कर रहा था। मैं ये भी महसूस करता था आपके presentation में faith in conviction आप जिस conviction के साथ बोल रहे थे उसमें एक अपार आपका आत्‍मविश्‍वास नजर आ रहा था। और मैं सिर्फ जो बोल रहे थे उनको देख रहा था, ऐसा नहीं। मैं स्‍लाइड भी देख रहा था और साइड में खड़े लोगों को भी देख रहा था। हर एक की आंखों में मैं चमक-चमक अनुभव कर रहा था। New India मुझे उसमें नजर आ रहा था।

और इसलिए ये जो एक सामूहिकता का भाव है, अब सब मिल करके आगे बढ़ाएंगे तो परिस्थिति प्रक्रिया से। अब मनुष्‍य का स्‍वभाव है, मैं सार्वजनिक जीवन में काम करके आया हूं। मैं organization ये मेरी, मेरी जिंदगी का काफी समय मैंने उसी में बिताया है। तो मनुष्‍य का एक स्‍वभाव है कि जो सरल हो उसे सबसे पहले करता है।

हम जब स्‍कूल में पढ़ते थे तो हमें मास्‍टर जी भी बताते थे कि साहब Exam में जब तीन घंटे पेपर लिखना होता है तो easy question उसको पहले हाथ लगाओ, उसको पहले पूरा करो, कठिन, उसको बाद में देखना। और इसलिए हमारा development ही ऐसा हुआ है कि सरल से पहले चलो, और सरल से चलते-चलते-चलते हम Challenge तक कभी पहुंच ही नहीं पाते। और वहां से तो हम  sick हो जाते हैं। और इसलिए तो सब लोग सरल-सरल-सरल दुनिया में रहते हैं। आवश्‍यकता है, और कभी-कभार department को लगता है। यहां जो बड़े-बड़े अफसर बैठे होंगे कि भई agriculture में ऑल इंडिया ये achieve करना है, MSME में ये achieve करना है, Industry में ये achieve करना है, तो चलो भई कौन कर सकते हैं, उनको जरा pumping करो, वो कर लेंगे। तो उनका एवरेज बढ़िया निकल आता है। तो हमारी strategy क्‍या बनी, जो करते हैं उन पर बोझ डालते रहो, उन्‍हीं से करवाते रहो। और हम अपने जो नेशनल लेवल के goal हैं, figures हैं उनको बराबर maintain करो उसमें बजट सेट नहीं हो रहा है, यार, मुझे मालूम है।

मैं जब मुख्‍यमंत्री था, मुझे पहले शुरू में benefit नहीं मिलता था। planing commision हुआ करता था तो हमारा नंबर बहुत आखिरी रहता था। लेकिन मैं इस टेक्‍नीक को सीख कर आया था, तो मैं जनवरी महीने से बराबर ध्‍यान रखता था कि देखो किस  डेट में बजट खर्च नहीं हुआ, इनकी परेशानी कहां है खर्च करने की। तो मैं ढूंढ के निकालता था कौन कौन खर्च करने की चिंता कर रहा है। और फिर मैं अफसरों को भेजता था कि भई देखों यहां-यहां जगह खाली है। मैं देखता था जो मुझे beginning में नहीं मिलता था वो आखिरी में बहुत बड़ी मात्रा में मिल जाता था। क्‍योंकि perform करने  वाले जहां जहां good governance होता है वहां करने के लिए एक आदत भी रखते हैं।

मैं समझता हूं सोच से बाहर आना है। चाय मीठी हो, दो चम्‍मच और चीनी डाल देंगे, ज्‍यादा फर्क नहीं पड़ेगा। चीनी consume हुई, हुई; हिसाब-किताब बराबर है। लेकिन जिस चाय में चीनी नहीं है, अगर वहां पहुंचाएंगे तो हो सकता है उनकी सुबह भी बड़ी मधुर हो सकती है।

और इसलिए ये जो 150 Districts पर ध्‍यान केन्द्रित किया है, उसमें ये भी कोशिश की है, हर राज्‍य से एक District तो कम से कम दिया जाए। कितना ही forward State हो, बहुत प्रगतिशील स्‍टेट हो, वहां भी कोई-कोई इलाका पीछे रह जाता है। और वो फिर साइक्‍लोजिकल इतना पीछे रह जाता है कि किसी अफसर को वहां appointment हो जाता है, अच्‍छा तुझे यही मिला, ये District. बस वहीं से उसका बेचारे का दिमाग वहीं से ढीला हो जाता है। और उसकी मन की स्थिति वही बन जाती है। वैसे District को कभी अवसर आता ही नहीं। जाएंगे अफसर भी, बेमन जाएंगे। टीचर भी होगा तो रुकेगा नहीं, चला आएगा।  सरकार भी कुछ बोलेगी नहीं यार, इसमें कोई है नहीं, चलो नाममात्र को है तो सही। इसको कहां punishment करेंगे, कहां एक्‍शन लेंगे? इसलिए फिर एक साइक्‍लोजी बन जाती है कि आप चलो, समय निकालो। और उसके कारण ये वहीं रह जाते हैं।

दूसरा, जो डेवलेपमेंट के साइंस को जानते हैं, ये तो अच्‍छा लगता है कि वो डेवलप हो रहा है, आगे बढ़ रहा है। लेकिन एक सीमा के बाद जो डेवलप नहीं हुआ है, वो उसका पूल करता है नीचे लाने के लिए। और तब स्थिति संभालने के लिए पांच-पांच, सात-सात साल चले जाते हैं व्‍यवस्‍था के। ये saturation point कभी भी नहीं आने देना चाहिए कि जहां पीछे रहने वाले इतने पीछे हो जाएं कि आगे बढ़ने वालों को पीछे लाने के काम में ही उनकी ताकत खप जाए और मैच हो ही न पाए। फिर वो स्‍टेट उभर नहीं सकता है।

इस स्थिति को बदलने का तरीका ये था कि क्‍या हम समस्‍याओं से कुछ मुक्ति दिला सकते हैं क्‍या? अब आपने कई strategy बनाई हैं। हर District की समस्‍या एक प्रकार की नहीं है। भारत विभित्‍ताओं से भरा हुआ है। हर एक की अपनी-अपनी दिक्‍कते हैं। हर एक के अपने-अपने अवसर भी हैं। लेकिन जहां पर ये पांच या छह पैरामीटर अगर हमने लिए तो जो low hanging fruits हैं, सबका उस पर फोकस कर-करके एक बार उसको achieve कर लिया जा सकता है क्‍या?

ये जरूरी इसलिए होता है, by and large इन क्षेत्रों में काम करने में आपको भी अनुभव आता होगा। आप कितने ही उत्‍साही क्‍यों न हों, कितने ही committed क्‍यों न हों, कितने ही dedicated क्‍यों न हों, लेकिन आपके दफ्तर में पांच-दस लोग तो मिल ही जाएंगे अरे साहब यहां कुछ होने वाला नहीं, आप बेकार ही आए, आप नए हो आपको मालूम नहीं है। वो इतना ज्ञान परोसता है आपको। और इसलिए इस साइकी को बदलने के लिए success story होना बहुत जरूरी है। ये success story उनके confidence level को build up करता है। अच्‍छा यार हो सकता है?

आप लोगों की पहली strategy ये होनी चाहिए कि इस निराशा की गर्त में डूबी हुई उस व्‍यवस्‍था को एक आशावान व्‍यवस्‍था में कैसे परिवर्तित कर सकते हैं। और उसके तरीके क्‍या हो सकते हैं? और एक तरीका जैसा मैंने बताया- एक low hanging fruit को achieve करके दिखाइए, उनको तुरंत, देखो भई आप ही लोगों ने किया, आपके द्वारा ही हुआ है। हो सकता है, चलो ये कर लेंगे।

दूसरी एक बात यहां आई है लेकिन वो इतना सरल नहीं होता। एक होता है जो जनआंदोलन की चर्चा है। जनआंदोलन कहने से जनआंदोलन खड़ा नहीं होता है। By and large negativity में जनआंदोलन की संभावनाएं बहुत sparking point रखते हैं। लेकिन पोजिटिव के लिए आपको पहले core team को educate करना पड़ता है। Meeting of mind ये बहुत आवश्‍यक होता है। धीरे-धीरे एक लेयर , दो लेयर , पांच लेयर , सात लेयर , जो आप सोचते हैं वही वो सोचे, ऐसी एक व्‍यवस्‍था के तहत टीम खड़ी करना; आखिर में ये दो दिन का workshop क्‍या था? वो यही था कि जो ये भारत सरकार में बैठे हुए लोगों की टीम के मन में विचार आया है, वो विचार और आपके विचारों के बीच में मेल हो। दो कदम इनको हटना पड़ेगा, दो कदम आपको बढ़ना पड़ेगा। और कहीं न कहीं meeting of point तय करना पड़ेगा। meeting of mind बनाना पड़ेगा, तब जाकर वो एकदम से click कर जाएगा।

ये दो दिन की एक्‍सरसाइज आपको ज्ञान परोसने के लिए नहीं थी। आप कुछ नहीं जानते हैं और जो यहां बैठे हैं उन्‍हीं को सब ज्ञान है, वो ही आपको सिखा देंगे, ये नहीं था। आपके पास जो अनुभव है, ताजा स्थिति है, उसको ऊपर के लोग भी समझें और नीतियां बनाते समय, व्‍यूह रचना बनाते समय इसको incorporate करें।

और इसलिए जैसे ये वर्कशॉप का अपना महात्‍मय है, क्‍या आप अपने यहां डिस्ट्रिक्‍ट में तहसील इकाई कर सकते हैं, डिस्ट्रिक्‍ट इकाई कर सकते हैं क्‍या? वैसा ही एक चिंतन का कार्यक्रम और वही लोकल बताओ कि क्‍या हो सकता है? हमारी क्षमताएं क्‍या हैं? हमारी मार्यादाएं क्‍या हैं? ठीक है चलना है यार कैसे चलेंगे। ये अगर आपने पहला कर दिया तो हो सकता है कि बाद में इन चीजों को, क्‍योंकि जब तक आप क्‍या करना चाहते हैं, उससे अधिक लोगों को परिचित नहीं करा पाएंगे, उसमें कोई आनंद नहीं आएगा, वो जुड़ेगा ही नहीं।

मान लीजिए एक कमरे के अंदर कोई सज्‍जन है। उस कमरे के दरवाजे पर एक छोटा सा छेद कर दिया और उनका हाथ बाहर निकाला। और लोगों को कहेंगे कि आइए shake hand  कीजिए। कतार में खड़े रहेंगे shake hand के लिए। मुझे बताइए क्‍या होगा? कल्‍पना कीजिए। कमरे में कोई बंद है, दरवाजा बंद है, दरवाजे में छेद है, हाथ बाहर लटका हुआ है और आपको कतार में खड़ा है हाथ मिलाने के लिए। क्‍या होगा, आप कल्‍पना कर सकते हैं। लेकिन आपको बताया जाए अंदर सचिन तेंदुलकर हैं, इनका हाथ है। कैसा फर्क पड़ जाएगा एक दम से, हाथ मिलाने का तरीका, थोड़ी ऊष्‍मा आ जाएगी। देखा नहीं आपने, आपको बताया गया है। जानकारियों की ताकत होती है जी। अगर आप जिसको काम में लेना चाहते हैं उसे पता हो भई ये हैं वो और यहां पहुंचने वाले हैं। तुम कल्‍पना करो तुम्‍हारे बेटे के बेटे जब देखेंगे तो क्‍या कितना बड़ा शान से गर्व करेंगे। वो जुड़ना शुरू हो जाएगा।

जनभागीदारी- जनभागीदारी से नहीं होती। आप जब तक लोगों को जोड़ने की systematic scheme नहीं बनाओगे। स्‍वच्‍छ भारत अभियान- मीडिया ने बहुत साकारात्‍मक रोल किया, उसका एक असर है। ऊपर से नीचे टीम ने फिजिकली उसमें आपने आपको involve करने का प्रयास किया। इसका एक natural impact आया। और हर कोई स्‍वच्‍छता के अंदर कुछ न कुछ contribute कर रहा है और बड़ा गर्व महसूस कर रहा है। और आपने देखा होगा स्‍वच्‍छता के अभियान की सफलता के मूल में मैं सबसे बड़ी ताकत देख रहा हूं वो छोटे-छोटे बच्‍चे। वे एक प्रकार से उसके ambassador बन गए हैं1

घर में भी, दादा होंगे कुछ करते हैं तो कहते हैं दादा ये मत करो, मोदीजी ने मना किया है। ये, ये जो ताकत है messaging  की, वो बदलाव लाती है। हम समाज के, जैसे मान लीजिए हम कुपोषण की चर्चा करें या सुपोषण की चर्चा करें? हम backward District  बोलें या कि aspiration District बोलें? क्‍योंकि साइक्‍लोजिकली बहुत फर्क पड़ता है जी।

हमने हमारी शब्‍दमाला सकारात्‍मक बनाना बहुत जरूरी है। वे भी पूरी तरह हमें एक positive thinking के लिए कारण बन जाती है। अगर वो हम करते हैं तो आप देखिए, आप अपने अगल-बगल में भी उसका प्रभाव नजर आता है। मुझे बराबर याद है हम मुंबई में हमारे एक मित्र थे। उनका एक स्‍वभाव था, हमसे आयु में बड़े थे। अब गुजरात के लोगों को और शायद देश में भी ये सब मिलते हैं तो कैसे हो, तबियत कैसी है, पूछने का स्‍वभाव होता है। अगर उनको पूछ लिया तबियत कैसी है तो पहले दस मिनट- नहीं नींद नहीं आती है,  मतलब मजा आता था उनको कहने में। तो हम जो उनसे परिचित लोग थे, उन लोगों ने एक दिन तय किया कि ये जब मिलेंगे तब बातचीत की शुरूआत कहां से करें? हमने तय किया, बिल्‍कुल प्रेक्‍टीकल तय किया। और मिलते ही वाह! साहब बहुत बढ़िया दिखता है, एकदम तबियत बहुत अच्‍छी लगती है। एकदम चेहरे पर भी चमक दिखती है। ऐसा माहौल बदल गया, उन्‍होंने रोते-पीटते बात करने का स्‍वभाव करीब-करीब उनका छूट गया।

हम सकारात्‍मक चीजों से अपनी बातों के narratives को  कुपोषण की चर्चा काम आएगी, सुपोषण की चर्चा काम आएगी? आप खुद अनुभव करते होंगे कि हम किस दिशा में जाएं? देखिए आशा वर्कर, ये शब्‍द की अपनी एक ताकत बन गया है।  वो, वो, वो लेडी वहां काम कर रही है, क्‍या कर रही है, वगैरह; लेकिन शब्‍द ऐसा है कि लोगों को लगता है, हां यार कुछ मेरे लिए है।

हमने सामान्‍य भाषा से जुड़े हुए ऐसे  narratives, हर भाषा के अलग होंगे। एक ही शब्‍द हमारे देश के हर इलाके में नहीं चलता। लेकिन हमने लोकल इस प्रकार से चीजों को डेवलप करना चाहिए।

दूसरा, मान लीजिए हम कुपोषण की चर्चा करते हैं। क्‍या कभी सुपोषण की काव्‍य स्‍पर्धा हो सकती है? अब आपको लगेगा कि पेट में गए हुए अब सुपोषण कहां होने वाला है, ये मोदी कविता करवा रहा है। लेकिन आप देखिए स्‍कूलों में, टीचर में मन करेगा कि सुपोषण को ले करके कविताएं कैसे लिखें। कोई नाट्य प्रोग्राम हो सकता है क्‍या सुपोषण का? मुझे बराबर याद है एक बार मैं एक आंगनवाड़ी में गया तो वो वहां बच्‍चों ने प्रयोग किया 15 मिनट का। कोई टमाटर बन करके आया, कोई गाजर बन करके आया, कोई गोभी बन करके आया; और फिर वो आ करके डायलॉग बोलता था कि मैं गाजर हूं, गाजर खाने से ये होता है, वो सारे बच्‍चों को पता चला कि हां गाजर खाना चाहिए। अब मां कितना ही करे वो हाथ नहीं लगाता था। लेकिन स्‍कूल में बच्‍चों ने कहा तो घर जा करके मांगने लगा, मां गाजर खाऊंगा। कहने का मेरा तात्‍पर्य ये है कि जो जनआंदोलन खरा होता है अच्‍छे स्‍लोगन की कम्‍पीटीशन में, हम लोगों को जोड़ सकते हैं क्‍या? शुरू में वो सुपोषण नहीं कर रहा है लेकिन धीरे-धीरे momentum बनता है और फिर मान लीजिए हम करें तीसी भोजन।

हम उस क्षेत्र के प्रमुख लोगों से मिलें, उनको कहें कि आपके परिवार में किसी का जन्‍मदिन आता है, किसी की शादी की सालगिरह आती है, किसी की पुण्‍यतिथि आती है, आप उस दिन खाना पका करके खुद आइए, आंगनवाड़ी में बच्‍चों के साथ बैठिए, खुद परोसिए। आप देखिए साल भर में 70-80 दिन तो वैसे ही मिल जाएंगे आपको। उसको भी संतोष मिलेगा कि भई आंगनवाड़ी के 40 बच्‍चों को आज मैंने जा करके नजदीक से देखा है। एक ऐसा माहौल बनेगा, आप बदलाव देखेंगे। अब हम स्‍कूल dropout देखें। कभी आंगनवाड़ी के बच्‍चों को टूर प्रोग्राम होता होगा, कोई जगह पर होता है जहां इस प्रकार के activity है वहां? तो क्‍या करते हैं न  दिन में टेंपल में बच्‍चों को ले जाएंगे, नदी है तो नदी के किनारे पर जाकर खड़े रखेंगे, कोई बगीचा होगा तो वहां ले जाएंगे। क्‍या कभी ऐसा तय कर सकते हैं कि महीने में एक दिन आगनवाड़ी के बच्‍चों को ले करके वहां के प्राइमरी स्‍कूल में जाएंगे। वो प्राइमरी स्‍कूल के बच्‍चों को देखेंगे खेलते हुए, उनके साथ खेलना होगा और हो सके तो उस दिन का मिड डे मील आंगनवाड़ी के बच्‍चों का उन बच्‍चों के साथ हो जाए। उस आंगनवाड़ी के बच्‍चे के मन में भाव जगना शुरू हो जाएगा कि मुझे अब आगे इस स्‍कूल में आना है। मुझे अब तो यहां आना है। ये अच्‍छी स्‍कूल है, बड़ी स्‍कूल है, अच्‍छा मैदान है, अच्‍छा खेलते हैं। चीज छोटी होती है बदलाव शुरू होता है।

मैंने एक छोटा सा कार्यक्रम शुरू किया था शायद आप लोगों को पता हो। मैं किसी यूनिवर्सिटी में convocation में जब मुझे बुलाते हैं तो मैं उनसे आग्रह करता हूं कि‍ मैं convocation में आऊंगा लेकि‍न मेरे 50 स्‍पेशल गेस्‍ट होंगे। उनको आपने front row में बैठाना होगा। खैर प्रधानमंत्री कहेगा तो कौन मना करेगा और उनको भी लगता है कि‍ हो सकता है बीजेपी के लोगों को बुलाने वाले होंगे। ऐसा ही सोचते है, मर्यादा तो वही है। फि‍र मैं कहता हूं कि‍ गवर्नमेंट स्‍कूल, जहां गरीब बच्‍चे पढ़ते हैं ऐसे 50 बच्‍चों को आप convocation में लाकर के बैठाइए और फि‍र मैं convocation के बाद उन बच्‍चों से बात करता हूं। मैं देखता हूं कि‍ उन बच्‍चों को भी जब कोई गाउन पहनकर के आता है, टोपी पहनकर के आता है, प्रमाणपत्र लेता है तो उन बच्‍चों के मन में भी संस्‍कार होते हैं, यहां कभी मैं भी हो सकता हूं। एक काम जो बहुत बड़ा लेक्‍चर नहीं कर सकता है उस बच्‍चे के मन में एक Aspiration पैदा होता है। Aspirational Districts के लि‍ए यह बहुत आवश्‍यक है कि‍ वहां के जन सामान्‍य के अंदर Aspiration है, उस Aspiration को identify हम करेंगे। नए Aspiration जगाने के लि‍ए मैं नहीं कह रहा हूं, पड़े है और उसको हम channelize करें। हम इस प्रकार से जन भागीदारी से चीजों को कर सकते हैं।

हमारी जि‍तनी स्‍कीम है। क्‍या स्‍कूल के अंदर सुबह जब असेम्‍बली होती है, हर स्‍कूल में होती है। बताइए हमारे 2022 के target पर आज कौन बोलेगा, हेल्‍थ पर कौन बोलेगा, न्‍यूट्रि‍शन पर कौन बोलेगा। हर दि‍न 10 मि‍नट कोई न कोई बच्‍चा कि‍सी न कि‍सी एक सब्‍जेक्‍ट पर बोलेगा। हवा में वि‍षय फैलते चले जाएंगे। मेरे कहने का तात्‍पर्य है कि‍ जब तक हम इन चीजों को जन सामान्‍य से जोड़ेंगे नहीं, हम परि‍णाम को प्राप्‍त नहीं कर पाएंगे।

दूसरा, कहीं न कहीं हमने, मान लिजि‍ए आपने 6 target point कि‍ए है। एक जगह पर एक अच्‍छी तरह हो जाएगा, दूसरी जगह पर दूसरा अच्‍छा होगा। ये 6-10-15 जो भी चीजें तय की हैं, कहीं न कहीं मॉडल के रूप में develop कर सकते हैं क्‍या within 3-4 months? और लोगों को फि‍र ले जाए, देखो भई आइए, ये देखि‍ए, कैसा होता है, आपके यहां हो सकता है, फि‍र उनको लगेगा कि‍ अपने ही District में फलाने गांव में हो गया, चलो अपने गांव में भी कर सकते हैं। ये अगर हम परंपरा बनाए तो मुझे वि‍श्‍वास है कि‍ ये जो 115 District हमने टारगेट कि‍ए हैं।

अब एक वि‍षय है इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर का। यह सही है कि‍ मांग रहती है रोड बनाओ, रोड बनाओ। कभी बजट का constrain होता है लेकि‍न अगर आप उनको जि‍म्‍मेवारी डालो कि‍ भई रोड बनाएंगे लेकि‍न हम उस पर आज एक लाइनिंग करके दे देते हैं कि‍ रोड बनेगा तो ऐसे बनेगा लेकि‍न रोड तब बनेगा जब आप रोड के दोनों कि‍नारे पर पेड़ लगाएंगे और पेड़ जब 5 फीट का हो जाएगा आपकी रोड पक्‍का बन जाएगी। आप देखि‍ए वो गांव वाले जि‍म्‍मेवारी लेंगे। रोड के बगल में अभी से वो पेड़ लगाना शुरू कर देंगे और बाद में आपको रोड का काम करना है तो मनरेगा से काम शुरू हो जाएगा, कॉन्‍ट्रेक्‍टर आ जाएंगे। उनके Aspiration और सरकार की योजना, इन दो का मि‍लन बि‍न्‍दु उनकी भागीदारी होना चाहि‍ए। जि‍तनी ज्‍यादा भागीदारी बढ़ती है, उतनी सरलता बढ़ती है। और एक समस्‍या रहती है। एकाध अफसर हमारा बहुत ही creative होता है, बहुत ही dynamic होता है और हर बार नई-नई चीजें करता है लेकि‍न वो चाहता है कि‍ वो चीजें उसके साथ चली जाएं और ज्‍यादातर राज्‍यों में दुर्भाग्‍य से। एक प्रकार से stability चाहि‍ए, वो कम होती है, कभी एक साल में ट्रांसफर हो जाती है कभी डेढ़ साल में ट्रांसफर हो जाती है तो ये एक चि‍न्‍ता का वि‍षय रहता है। खैर जैसे ही परि‍णाम मि‍लेंगे तो उसके भी कोई न कोई रास्‍ते खोजे जाएंगे लेकि‍न अगर हम टीम form करते है। हम लीडरशि‍प हमारे पास हो या न हो, जो भी आएगा, ये टीम अच्‍छी होगी, division of work होगा, रोड मैप clear होगा, monitoring का system होगा, timeframe में काम workout कि‍या होगा, आप अपने आप परि‍णाम प्राप्‍त कर सकते हैं और इन परि‍णामों को प्राप्‍त करने की दि‍शा में, मैं समझता हूं कि‍ हम लोगों को प्रयास करने चाहि‍ए। जि‍स उमंग और उत्‍साह से मैं देख रहा था आप उसको बहुत भली-भांति‍ कर सकते हैं। आपको अंदाजा नहीं है जि‍स समाज के 115 Districts, एक लेयर  जो उनके ऊपर बोझ बन चुकी है, इससे सि‍र उठाकर के बाहर नि‍कल जाएंगे फि‍र वो कभी रुकेगा नहीं।

आपने भी देखा होगा कि‍ हि‍न्‍दुस्‍तान में कई जगह ऐसी हैं कि‍ जहां एकाध कारण बन गया और बाद में वहां ऐसा मोड़ आ गया कि‍ पूरा इलाका develop हो गया। देखा होगा आपने, हि‍न्‍दुस्‍तान में आपको ऐसी 50-100 जगह मि‍ल जाएंगी कि‍ अचानक develop हो गया। आप एक बार कहीं इस प्रकार से breakthrough करेंगे आप देखि‍ए चीजें उभरना शुरू हो जाएगी। एक बार 115 Districts अगर 10-10 कदम भी आगे बढ़ जाएं आप कल्‍पना कर सकते हैं कि‍ देश के सारे हि‍साब-कि‍ताब कि‍तने बदल जाएंगे। फि‍र सरकारों को भी लगेगा कि‍ बजट देना है तो यहां दो, priority यहां दो।

कभी-कभार, मनुष्‍य का स्‍वभाव है कि‍ हम ट्रेन में जाए, आरक्षण हो लेकि‍न मन करता है कि‍ खि‍ड़की वाली सीट मि‍ले तो अच्‍छा है। हवाईजहाज है तो पैर फैलाने की जगह नहीं तो मन करता है health सीट मि‍ले तो अच्‍छा होगा, पैर जरा लंबा कर सकेंगे। मनुष्‍य का स्‍वभाव होता है और वो बुरा है, ऐसा मैं नहीं मानता। जब आपकी भी पोस्‍टिंग होती होगी तो हर राज्‍य में 3-4 Districts बहुत अच्‍छे होंगे, 3-4 Districts बहुत बुरे होंगे और जि‍स दि‍न पोस्‍टिंग होगी तो आप ही के दोस्‍त कहेंगे, अरे यार मर गया। चल यार चि‍न्‍ता मत कर कोई बात नहीं 6-8 महीने नि‍काल देना। यानी वहीं से शुरू हो जाता है। मैं यह सोचता हूं कि‍ जो developed Districts होते हैं by and large चल देंगे गाड़ी इनकी। वहां जाकर के यह युवा अफसर कभी भी अपनी जि‍न्‍दगी को तराश नहीं सकता है। फि‍र वो एक ढर्रे में ढल जाता है और फि‍र आगे वैसा ही उसका गुजारा चल जाता है। लेकि‍न एक difficult terrain में जो पहुंचता है, जो जद्दोजहद करता है, उसकी जो development होती है मैं समझता हूं शायद कुछ साल के लि‍ए अपने साथि‍यों की नज़रों में बुरी पोस्‍टिंग है, degradation लगता होगा, लेकि‍न जब जि‍न्‍दगी का हि‍साब लगाएगा तो उसको लगेगा कि‍ मेरी जि‍न्‍दगी में ये जो difficult time था, उसने मुझे तराशा, उसी ने मुझे बनाया, जि‍सने मुझे जि‍न्‍दगी जीने की ताकत दी।

आप देख लीजिए जि‍तने भी बढ़े अफसर होंगे, कभी उनसे बात करेंगे तो आपको उनसे पता चलेगा कि‍ ठीक है आपने मेहनत की, exam pass कर लि‍या, मसूरी हो आए, ट्रेनिंग हो गई, काम में लग गए। लेकि‍न जि‍न्‍दगी में आप जो यहां तक पहुंचे, उस इस लगन से काम कर रहे हो, कारण देखो, वो बताएगा कि‍ मैं नया-नया डि‍प्‍टी डायरेक्‍टर था तो वहां गया था। वहां मैं रहकर ऐसा हो आया, उसने मेरी जि‍न्‍दगी बदल दी। जि‍तने भी बड़े लोग हैं उनकी जि‍न्‍दगी में ऐसी बातें अक्‍सर देखी जाती हैं। और वो लोग जो जीवन के प्रारंभि‍क काल में एक प्रकार से golden spoon लेकर के पैदा होते हैं। उनको पोस्‍टिंग अच्‍छी मि‍ल जाती हैं, bungalow भी बहुत बढ़ि‍या होता है, दो एकड़ की भूमि‍ वाला bungalow होता है। उसको बाद में कठि‍नाइयां झेलना मुश्‍कि‍ल हो जाता है। फि‍र वो easy going घूमता रहता है, अपने आपका गुजारा कर लेता है।

मैं समझता हूं कि‍ जि‍नके जि‍म्‍मे 115 कठि‍न Districts है, मैं उन्‍हें भाग्‍यवान मानता हूं कि उनको जीवन में संतोष पाने का अवसर मि‍ला। जहां अच्‍छा है, वहां अधि‍क अच्‍छा कोई नोटि‍स नहीं करता है। अच्‍छा है, वहां अधि‍क अच्‍छा आपको भी रात को ‍चैन की नींद नहीं देता है। अरे यार चलता था, वो तो पहले भी था। लेकि‍न जहां कुछ नहीं है, वहां रेगि‍स्‍तान में अगर एक पौधा भी कोई उगा देता है तो उसको जि‍न्‍दगी का एक संतोष मि‍लता है। आप वो लोग हैं जि‍नको वो चुनौति‍यां मि‍ली हैं जि‍सका वो सामर्थ्‍य पड़ा हुआ है, जि‍स सामर्थ्‍य से आप एक नई परि‍स्‍थि‍ति‍ को प्राप्‍त कर सकते हैं। और आप खुद अपना evaluation कर सकते हैं। मैंने यहां से शुरू कि‍या था, मैंने यहां पहुंचा दि‍या। चुनौति‍यों की अपनी एक ताकत होती है और मैं उन लोगों को कभी भाग्‍यवान नहीं मानता हूं जि‍नके जीवन में कभी चुनौति‍यां न आई हो। जि‍न्‍दगी उन्‍हीं की बनती है जो चुनौति‍यों से लोहा लेने का सामर्थ्‍य रखते हैं। व्‍यक्‍ति‍ के जीवन में भी जि‍न्‍दगी में कसौटि‍यों से गुजरते रहना, जि‍न्‍दगी को संवारने के लि‍ए बहुत काम आता है और मुझे वि‍श्‍वास है कि‍ आपने स्‍वयं में होकर के जि‍स प्रकार से मनोयोग से, मैं अनुभव कर सकता हूं कि‍ एक positivity को इस कमरे में प्रवेश करते ही feel कर रहा हूं मैं। मैं समझता हूं कि‍ यह अपने आप में बहुत बड़ी ताकत है। और उस ताकत के भरोसे हम आगे बढ़ना चाहते हैं।

आज हम जनवरी में बात कर रहे हैं। बाबा साहेब अम्‍बेडकर के इस भवन में चर्चा कर रहे हैं। 14 अप्रैल बाबा साहेब अम्‍बेडकर का जन्‍म जयंती का पर्व होता है। क्‍या हम एक टाइम टेबल 14 अप्रैल तक का बना सकते हैं क्‍या? 14 अप्रैल तक की 3 महीने की monitoring और हम देखें कि‍ 115 Districts में कौन कहां पहुंचा है और मेरा मन करता है कि‍ उस result के आधार पर मैं जो 115 Districts हैं, उसमें से एक District में जाकर के, जो अच्‍छा कर गया है; अच्‍छा है और कुछ अच्‍छा कर गया है, वो नहीं। तो मैं चाहूंगा कि‍ अप्रैल महीने में उस District में जाकर के उसी टीम के साथ कुछ घंटे बि‍ताऊं। उन्होंने कैसे achieve कि‍या, उसको मैं खुद समझूंगा। मैं खुद इसको सीखने का प्रयास करुंगा और मैं चाहूंगा कि‍ हम एक 3 महीने का जि‍समें, व्‍यवस्‍थाएं तो हैं ही, ऐसा नहीं है कि‍ कोई नई चीज ला रहे हैं हम। इसको एक नई ताकत देनी है, नई ऊर्जा देनी है, जन भागीदारी लानी है, नए प्रयोगों को करना है और मैं चाहूंगा कि‍ उसके बाद इसको मैं एक routine अपनी कार्यशैली का हि‍स्‍सा भी बना सकूं।

मुझे वि‍श्‍वास है कि‍ देश आगे बढ़े, देश प्रगति‍ करें, देश बदलें, देश के सामान्‍य मानवि‍की की जि‍न्‍दगी बदलें लेकि‍न उसकी शुरूआत कहीं न कहीं छोटी इकाई के परि‍वर्तन से होती है। उन सबका cumulative effect होता है जो देश बदलता हुआ दि‍खता है। यह हमारे देश की वो catalyst agent है और आप वो लोग है जो change agent के रूप में इसको lead करते हैं। मुझे वि‍श्‍वास है कि‍ यह वि‍ज़न, यह सामर्थ्‍य, यह संभावनाएं, नई सि‍द्धि‍ को प्राप्‍त करने के लि‍ए और 2022, भारत की आज़ादी के 75 साल, देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का संकल्‍प, देश के लि‍ए कुछ कर गुज़रने का संकल्‍प, इसको लेकर के चलें। हम bureaucratic world में बड़े-बड़े अफसरों की कथाएं सुनते रहते हैं कि‍ सरदार वल्‍लभ भाई पटेल के साथ फलाने अफसर थे, उनके जमाने में ये-ये हुआ, देश को ये मि‍ला। पंडि‍त नेहरु के जमाने में ये अफसर थे, उन्‍होंने ये काम कि‍या, ये मि‍ला, फलाने समय ये अफसर थे, ये काम करके गए। बड़े-बड़े अफसर की चर्चा अक्‍सर हम सुनते हैं, उनसे हम inspiration लेते हैं कि‍ उन्‍होंने नए नि‍यम कैसे देश को दि‍ए, नई दि‍शा कैसे दी, कैसे उन्‍होंने contribute कि‍या, कोई न कोई उनका योगदान आज भी इति‍हास के गवाह के रूप में हमारे सामने है। लेकि‍न बहुत कम District level की बातें हैं जो उजागर होती हैं। वहां भी तो कोई अफसर है, उसने अपनी जवानी खपाई है, जि‍सने बदलाव लाया है और ये मूलभूत बदलाव है, वही तो दुनि‍या बदलता है। मैं चाहता हूं कि‍ हमें 70 साल तक बड़े-बड़े अफसर की, बड़े-बड़े योगदान की बहुत बातें सुनी हैं, बहुत प्रेरणा पाई है, आगे भी मि‍लती रहेगी, जरुरी भी है लेकि‍न समय की मांग है कि‍ District से आवाज उठे, success story वहां से नि‍कले, अफसरों की कथाएं सुनने को मि‍ले, उनके जीवन की बातें सुनने को मि‍ले।

मैं सोशल मीडि‍या पर काफी active रहा, शुरुआत में, अब तो समय मि‍लता नहीं मुझे लेकि‍न जि‍स कालखंड में ये दुनि‍या चली मैं काफी involve था। मैं अभी दो दि‍न पहले ऐसे ही surfing कर रहा था। मैंने एक lady अफसर का ट्वीट देखा, आईएएस अफसर का, बड़ा interesting था। अब तो वो सि‍नि‍यर अफसर हो गई है, उनकी फोटो भी है, मैं नाम भूल गया उनका। उसने लि‍खा कि‍ मेरी जि‍न्‍दगी में एक बड़ा संतोष का पल है। क्‍यों? तो उसने लि‍खा है कि‍ मैं जूनि‍यर अफसर थी, एक बार कार से जा रही थी तो एक स्‍कूल के बाहर एक बच्‍चा भेड़-बकरी चरा रहा था। तो मैंने गाड़ी खड़ी की, स्‍कूल के टीचर को बुलाया और कहा कि‍ इस बच्‍चे को एडमि‍शन दे दो स्‍कूल में और उस बच्‍चे को भी मैंने समझाया-डांटा, जो भी कि‍या वो बच्‍चा स्‍कूल गया। पूरे 27 साल के बाद आज मेरे दौरे के दरमि‍यान एक head constable  ने मुझे salute कि‍या और बाद में बताया कि‍ मैडम पहचाना, मैं वही हूं जो भेड-बकरि‍यां चराता था और आपने मुझे स्‍कूल पहुंचाया था, मैं आज यहां पहुंच गया आपके कारण। उस अफसर ने ट्वीट में लि‍खा है कि‍ एक छोटी-सी चीज कि‍तना बड़ा बदलाव करती है। हम लोगों की जि‍न्‍दगी में अवसर मि‍ले हैं इन अवसरों को हम पकड़े।

ये देश हमसे बहुत अपेक्षाएं कर रहा है। ये देश कुछ भी बुरा हो जाए तो आज भी कहता है कि‍ शायद ईश्‍वर की यही मर्जी थी। ऐसा सौभाग्‍य दुनि‍या में कि‍सी भी सरकार को वहां की जनता से नहीं मि‍लता होगा जो हम लोगों को मि‍लता है कि‍ आज भी वो अपने नसीब को दोष देता है, ईश्‍वर को दोष देता है, हमारी तरफ कभी ऊंगली नहीं उठाता है। इससे बड़ा जन समर्थन क्‍या हो सकता है, इससे बड़ा जन सहयोग क्‍या हो सकता है, इससे बड़ी जन आस्‍था क्‍या हो सकती है? अगर इसको हम न पहचान पाए, इसको हम न भुना पाए और न हम अपनी जि‍न्‍दगी उसके लि‍ए खपा पाए तो शायद जि‍न्‍दगी का एक वो दौर आएगा जब हम अपने आप को जवाब नहीं दे पाएंगे और इसलि‍ए दोस्‍तों 115 Districts देश का भाग्‍य बदलने की धुरी बन सकते हैं। नए भारत के सपनों की एक मजबूत नींव वहां से खड़ी हो सकती हैं और वो काम आप सब साथि‍यों के पास है। मेरी आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

 

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Text of PM Modi's address to the Indian Community in Guyana
November 22, 2024
The Indian diaspora in Guyana has made an impact across many sectors and contributed to Guyana’s development: PM
You can take an Indian out of India, but you cannot take India out of an Indian: PM
Three things, in particular, connect India and Guyana deeply,Culture, cuisine and cricket: PM
India's journey over the past decade has been one of scale, speed and sustainability: PM
India’s growth has not only been inspirational but also inclusive: PM
I always call our diaspora the Rashtradoots,They are Ambassadors of Indian culture and values: PM

Your Excellency President Irfan Ali,
Prime Minister Mark Philips,
Vice President Bharrat Jagdeo,
Former President Donald Ramotar,
Members of the Guyanese Cabinet,
Members of the Indo-Guyanese Community,

Ladies and Gentlemen,

Namaskar!

Seetaram !

I am delighted to be with all of you today.First of all, I want to thank President Irfan Ali for joining us.I am deeply touched by the love and affection given to me since my arrival.I thank President Ali for opening the doors of his home to me.

I thank his family for their warmth and kindness. The spirit of hospitality is at the heart of our culture. I could feel that, over the last two days. With President Ali and his grandmother, we also planted a tree. It is part of our initiative, "Ek Ped Maa Ke Naam", that is, "a tree for mother”. It was an emotional moment that I will always remember.

Friends,

I was deeply honoured to receive the ‘Order of Excellence’, the highest national award of Guyana. I thank the people of Guyana for this gesture. This is an honour of 1.4 billion Indians. It is the recognition of the 3 lakh strong Indo-Guyanese community and their contributions to the development of Guyana.

Friends,

I have great memories of visiting your wonderful country over two decades ago. At that time, I held no official position. I came to Guyana as a traveller, full of curiosity. Now, I have returned to this land of many rivers as the Prime Minister of India. A lot of things have changed between then and now. But the love and affection of my Guyanese brothers and sisters remains the same! My experience has reaffirmed - you can take an Indian out of India, but you cannot take India out of an Indian.

Friends,

Today, I visited the India Arrival Monument. It brings to life, the long and difficult journey of your ancestors nearly two centuries ago. They came from different parts of India. They brought with them different cultures, languages and traditions. Over time, they made this new land their home. Today, these languages, stories and traditions are part of the rich culture of Guyana.

I salute the spirit of the Indo-Guyanese community. You fought for freedom and democracy. You have worked to make Guyana one of the fastest growing economies. From humble beginnings you have risen to the top. Shri Cheddi Jagan used to say: "It matters not what a person is born, but who they choose to be.”He also lived these words. The son of a family of labourers, he went on to become a leader of global stature.

President Irfan Ali, Vice President Bharrat Jagdeo, former President Donald Ramotar, they are all Ambassadors of the Indo Guyanese community. Joseph Ruhomon, one of the earliest Indo-Guyanese intellectuals, Ramcharitar Lalla, one of the first Indo-Guyanese poets, Shana Yardan, the renowned woman poet, Many such Indo-Guyanese made an impact on academics and arts, music and medicine.

Friends,

Our commonalities provide a strong foundation to our friendship. Three things, in particular, connect India and Guyana deeply. Culture, cuisine and cricket! Just a couple of weeks ago, I am sure you all celebrated Diwali. And in a few months, when India celebrates Holi, Guyana will celebrate Phagwa.

This year, the Diwali was special as Ram Lalla returned to Ayodhya after 500 years. People in India remember that the holy water and shilas from Guyana were also sent to build the Ram Mandir in Ayodhya. Despite being oceans apart, your cultural connection with Mother India is strong.

I could feel this when I visited the Arya Samaj Monument and Saraswati Vidya Niketan School earlier today. Both India and Guyana are proud of our rich and diverse culture. We see diversity as something to be celebrated, not just accommodated. Our countries are showing how cultural diversity is our strength.

Friends,

Wherever people of India go, they take one important thing along with them. The food! The Indo-Guyanese community also has a unique food tradition which has both Indian and Guyanese elements. I am aware that Dhal Puri is popular here! The seven-curry meal that I had at President Ali’s home was delicious. It will remain a fond memory for me.

Friends,

The love for cricket also binds our nations strongly. It is not just a sport. It is a way of life, deeply embedded in our national identity. The Providence National Cricket Stadium in Guyana stands as a symbol of our friendship.

Kanhai, Kalicharan, Chanderpaul are all well-known names in India. Clive Lloyd and his team have been a favourite of many generations. Young players from this region also have a huge fan base in India. Some of these great cricketers are here with us today. Many of our cricket fans enjoyed the T-20 World Cup that you hosted this year.

Your cheers for the ‘Team in Blue’ at their match in Guyana could be heard even back home in India!

Friends,

This morning, I had the honour of addressing the Guyanese Parliament. Coming from the Mother of Democracy, I felt the spiritual connect with one of the most vibrant democracies in the Caribbean region. We have a shared history that binds us together. Common struggle against colonial rule, love for democratic values, And, respect for diversity.

We have a shared future that we want to create. Aspirations for growth and development, Commitment towards economy and ecology, And, belief in a just and inclusive world order.

Friends,

I know the people of Guyana are well-wishers of India. You would be closely watching the progress being made in India. India’s journey over the past decade has been one of scale, speed and sustainability.

In just 10 years, India has grown from the tenth largest economy to the fifth largest. And, soon, we will become the third-largest. Our youth have made us the third largest start-up ecosystem in the world. India is a global hub for e-commerce, AI, fintech, agriculture, technology and more.

We have reached Mars and the Moon. From highways to i-ways, airways to railways, we are building state of art infrastructure. We have a strong service sector. Now, we are also becoming stronger in manufacturing. India has become the second largest mobile manufacturer in the world.

Friends,

India’s growth has not only been inspirational but also inclusive. Our digital public infrastructure is empowering the poor. We opened over 500 million bank accounts for the people. We connected these bank accounts with digital identity and mobiles. Due to this, people receive assistance directly in their bank accounts. Ayushman Bharat is the world’s largest free health insurance scheme. It is benefiting over 500 million people.

We have built over 30 million homes for those in need. In just one decade, we have lifted 250 million people out of poverty. Even among the poor, our initiatives have benefited women the most. Millions of women are becoming grassroots entrepreneurs, generating jobs and opportunities.

Friends,

While all this massive growth was happening, we also focused on sustainability. In just a decade, our solar energy capacity grew 30-fold ! Can you imagine ?We have moved towards green mobility, with 20 percent ethanol blending in petrol.

At the international level too, we have played a central role in many initiatives to combat climate change. The International Solar Alliance, The Global Biofuels Alliance, The Coalition for Disaster Resilient Infrastructure, Many of these initiatives have a special focus on empowering the Global South.

We have also championed the International Big Cat Alliance. Guyana, with its majestic Jaguars, also stands to benefit from this.

Friends,

Last year, we had hosted President Irfaan Ali as the Chief Guest of the Pravasi Bhartiya Divas. We also received Prime Minister Mark Phillips and Vice President Bharrat Jagdeo in India. Together, we have worked to strengthen bilateral cooperation in many areas.

Today, we have agreed to widen the scope of our collaboration -from energy to enterprise,Ayurveda to agriculture, infrastructure to innovation, healthcare to human resources, anddata to development. Our partnership also holds significant value for the wider region. The second India-CARICOM summit held yesterday is testament to the same.

As members of the United Nations, we both believe in reformed multilateralism. As developing countries, we understand the power of the Global South. We seek strategic autonomy and support inclusive development. We prioritize sustainable development and climate justice. And, we continue to call for dialogue and diplomacy to address global crises.

Friends,

I always call our diaspora the Rashtradoots. An Ambassador is a Rajdoot, but for me you are all Rashtradoots. They are Ambassadors of Indian culture and values. It is said that no worldly pleasure can compare to the comfort of a mother’s lap.

You, the Indo-Guyanese community, are doubly blessed. You have Guyana as your motherland and Bharat Mata as your ancestral land. Today, when India is a land of opportunities, each one of you can play a bigger role in connecting our two countries.

Friends,

Bharat Ko Janiye Quiz has been launched. I call upon you to participate. Also encourage your friends from Guyana. It will be a good opportunity to understand India, its values, culture and diversity.

Friends,

Next year, from 13 January to 26 February, Maha Kumbh will be held at Prayagraj. I invite you to attend this gathering with families and friends. You can travel to Basti or Gonda, from where many of you came. You can also visit the Ram Temple at Ayodhya. There is another invite.

It is for the Pravasi Bharatiya Divas that will be held in Bhubaneshwar in January. If you come, you can also take the blessings of Mahaprabhu Jagannath in Puri. Now with so many events and invitations, I hope to see many of you in India soon. Once again, thank you all for the love and affection you have shown me.

Thank you.
Thank you very much.

And special thanks to my friend Ali. Thanks a lot.