मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्री थावरचंद गहलोत जी,
श्री विजय सांपला जी,
श्री रामदास अठावले जी,
श्री कृष्ण पाल जी,
श्री विजय गोयल जी,
सामाजिक न्याय और अधिकारिता सचिव जी. लता कृष्ण राव जी, और
और उपस्थित सभी वरिष्ठ महानुभाव, भाईयों और बहनों,
ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे डॉक्टर अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर (DAIC) को देश को समर्पित करने का अवसर मिला है।
मेरे लिए दोहरी खुशी की बात ये भी है कि इस इंटरनेशनल सेंटर के शिलान्यास का अवसर भी अप्रैल 2015 में मुझे ही दिया गया था। बहुत ही कम समय में, बल्कि अपने तय समय से पहले, ये भव्य इंटरनेशनल सेंटर तैयार हुआ है। मैं इस सेंटर के निर्माण से जुड़े हर विभाग को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
मुझे पूरी उम्मीद है कि ये सेंटर बाबा साहेब की शिक्षाओं, उनके विचारों के प्रसार के लिए एक बड़े प्रेरणा स्थल की भूमिका निभाएगा। डॉक्टर अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में ही “डॉक्टर अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर फॉर सोशियो-इकोनॉमिक ट्रांसफॉर्मेशन” का भी निर्माण किया गया है। ये सेंटर सामाजिक और आर्थिक विषयों पर रीसर्च का भी एक अहम केंद्र बनेगा।
‘सबका साथ-सबका विकास’, जिसे कुछ लोग inclusive growth कहते हैं, इस मंत्र पर चलते हुए कैसे आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर गौर किया जाए, इस सेंटर में एक Think Tank की तरह इस पर भी मंथन होगा।
और मुझे लगता है कि नई पीढ़ी के लिए ये केंद्र एक वरदान की तरह आया है, जहां पर आकर वो बाबा साहेब के विजन को देख सकती है, समझ सकती है।
साथियों, हमारे देश में समय-समय पर ऐसी महान आत्माएं जन्म लेती रही हैं, जो ना सिर्फ सामाजिक सुधार का चेहरा बनतीं हैं, बल्कि उनके विचार देश के भविष्य को गढ़ते हैं, देश की सोच को गढ़ते हैं। ये भी बाबा साहेब की अद्भुत शक्ति थी कि उनके जाने के बाद, भले बरसों तक उनके विचारों को दबाने की कोशिश हुई, राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को मिटाने का प्रयास किया गया, लेकिन बाबा साहेब के विचारों को ऐसे लोग भारतीय जनमानस के चिंतन से हटा नहीं पाए।
अगर मैं ये कहूं कि जिस परिवार के लिए ये सब किया गया, उस परिवार से ज्यादा लोग आज बाबा साहेब से प्रभावित हैं, तो मेरी ये बात गलत नहीं होगी। बाबा साहेब का राष्ट्र निर्माण में जो योगदान है, उस वजह से हम सभी बाबासाहेब के ऋणी हैं। हमारी सरकार का ये प्रयास है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक उनके विचार पहुंचें। विशेषकर युवा पीढ़ी उनके बारे में जाने, उनका अध्ययन करे।
और इसलिए इस सरकार में बाबा साहेब के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण स्थलो को तीर्थ के रूप में विकसित किया जा रहा है। दिल्ली के अलीपुर में जिस घर में बाबा साहेब का निधन हुआ, वहां डॉक्टर अंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक का निर्माण किया जा रहा है। इसी तरह मध्य प्रदेश के महू में, जहां बाबा साहेब का जन्म हुआ उसे भी तीर्थ के तौर पर विकसित किया जा रहा है। लंदन के जिस घर में बाबा साहेब रहते थे, उसे भी खरीदकर महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार एक मेमोरियल के तौर पर विकसित कर रही है। ऐसे ही मुंबई में इंदू मिल की जमीन पर अंबेडकर स्मारक का निर्माण किया जा रहा है। नागपुर में दीक्षा भूमि को भी और विकसित किया जा रहा है। ये पंचतीर्थ एक तरह से बाबा साहेब को आज की पीढ़ी की तरफ से श्रद्धांजलि हैं।
वैसे पिछले साल वर्चुअल दुनिया में एक छठा तीर्थ भी निर्मित हुआ है। ये तीर्थ देश को डिजिटल तरीके से ऊर्जा दे रहा है, सशक्त कर रहा है। पिछले साल शुरू किया गया Bharat Interface for Money- यानि BHIM App बाबा साहेब के आर्थिक विजन को इस सरकार की श्रद्धांजलि था। BHIM App गरीबों-दलितों-पिछड़ों-शोषितों, वंचितों के लिए वरदान बनकर आया है।
भाइयों और बहनों, बाबा साहेब ने अपने जीवन में जो संघर्ष किए, उससे हम भली-भांति परिचित हैं। लेकिन उनका जीवन संघर्ष के साथ ही उम्मीदों की प्रेरणा से भी भरा हुआ है। हताशा-निराशा से बहुत दूर, एक ऐसे भारत का सपना, जो अपनी आंतरिक बुराइयों को खत्म करके सबको साथ लेकर चलेगा। संविधान सभा की पहली बैठक के कुछ दिन बाद ही 17 दिसंबर, 1946 को उन्होंने उसी सभा की बैठक में कहा था और मैं उनके शब्द कह रहा हूँ-
“इस देश का सामाजिक, राजकीय और आर्थिक विकास आज नहीं तो कल होगा ही। सही समय और परिस्थिति आने पर ये विशाल देश एक हुए बगैर नहीं रहेगा। दुनिया की कोई भी ताकत उसकी एकता के आड़े नहीं आ सकती।
इस देश में इतने पंथ और जातियां होने के बावजूद कोई न कोई तरीके से हम सभी एक हो जायेंगे इस बारे में मेरे मन में ज़रा भी शंका नहीं है।
हम अपने आचरण से ये बता देंगे कि देश के सभी घटकों को अपने साथ लेकर एकता के मार्ग पर आगे बढ़ने की हमारे पास जो शक्ति है, उसी प्रकार की बुद्धिमत्ता भी है।”
ये सारे शब्द बाबा साहेब आंबेडकर के हैं, कितना आत्मविश्वास! निराशा का नमो-निशान नहीं! देश की सामाजिक बुराइयों का जिस व्यक्ति ने जीवनपर्यंत सामना किया हो, वो देश को लेकर कितनी उम्मीदों से भरा हुआ था।
भाइयों और बहनों, हमें ये स्वीकारना होगा कि संविधान के निर्माण से लेकर स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी हम बाबा साहेब की उन उम्मीदों को, उस सपने को, पूरा नहीं कर पाए हैं। कुछ लोगों के लिए कई बार जन्म के समय मिली जाति, जन्म के समय मिली भूमि से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। मैं मानता हूं कि आज की नई पीढ़ी में वो क्षमता है, वो योग्यता है, जो इन सामाजिक बुराइयों को खत्म कर सकती है। खासतौर पर पिछले 15-20 वर्षों में जो बदलाव मैं देख रहा हूं, उसका पूरा श्रेय नई पीढ़ी को ही मैं देना पसंद करूँगा। वो अच्छी तरह समझती है कि देश को जाति के नाम पर कौन बांटने की कोशिश कर रहा है, वो अच्छी तरह समझती है कि देश जाति के नाम पर अलग-अलग होकर उस रफ्तार से आगे नहीं बढ़ पाएगा जिस रफ्तार से भारत को आगे बढ़ना चाहिए। इसलिए जब मैं ‘न्यू इंडिया’ को जातियों के बंधन से मुक्त करने की बात करता हूं, तो उसके पीछे युवाओं पर मेरा अटूट भरोसा होता है। आज की युवाशक्ति बाबा साहेब के सपनों को पूरा करने की ऊर्जा रखती है।
साथियों, 1950 में जब देश गणतंत्र बना, तब बाबा साहेब ने कहा था और मैं उन्हीं के शब्द दोहरा रहा हूँ–
“हमें सिर्फ राजनीतिक लोकतंत्र से ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। हमें अपने राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र भी बनाना है। राजनीतिक लोकतंत्र तब तक नहीं टिक सकता, जब तक कि उसका आधार सामाजिक लोकतंत्र ना हो”।
ये सामाजिक लोकतंत्र हर भारतीय के लिए स्वतंत्रता और समानता का ही मंत्र था। समानता सिर्फ अधिकार की ही नहीं, बल्कि समान स्तर से जीवन जीने की भी समानता। स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी हमारे देश में ये स्थिति रही कि लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन में ये समानता नहीं आई। बहुत Basic चीजें, बिजली कनेक्शन, पानी कनेक्शन, एक छोटा सा घर, जीवन बीमा, उनके लिए जीवन की बहुत बड़ी चुनौतियां बनी रहीं।
अगर आप हमारी सरकार के काम करने के तरीके को देखेंगे, हमारी कार्य-संस्कृति को देखेंगे, तो पिछले तीन-साढ़े तीन साल में हमने बाबा साहेब के सामाजिक लोकतंत्र के सपने को ही पूरा करने का प्रयास किया है। इस सरकार की योजनाएं, सामाजिक लोकतंत्र को मजबूत करने वाली रही हैं। जैसे जनधन योजना की ही बात करें। इस योजना ने देश के करोड़ों गरीबों को बैंकिंग सिस्टम से जुड़ने का अधिकार दिया। ऐसे लोगों की श्रेणी में ला खड़ा किया, जिनके पास अपने बैंक अकाउंट होते थे, जिनके पास डेबिट कार्ड हुआ करते थे।
इस योजना के माध्यम से सरकार 30 करोड़ से ज्यादा गरीबों के बैंक खाते खुलवा चुकी है। 23 करोड़ से ज्यादा लोगों को RuPay Debit कार्ड दिए जा चुके हैं। अब गरीब में भी वो समानता का भाव आया है, वो भी ATM की उसी लाइन में लगकर RuPay Debit कार्ड से पैसे निकालता है, जिस लाइन को देखकर वो डरा करता था, जिसमें लगने के बारे में वो सोच भी नहीं सकता था।
मुझे नहीं पता यहां मौजूद कितने लोगों को हर चौथे-पांचवे महीने गांव जाने का अवसर मिलता है। मेरा आग्रह है आपसे कि जिन लोगों को गांव गए बहुत दिन हो गए हों, वो अब जाकर देखें। गांव में किसी गरीब से उज्जवला योजना के बारे में पूछें। तब उन्हें पता लगेगा कि उज्जवला योजना ने कैसे इस फर्क को मिटा दिया है कि कुछ घरों में पहले गैस कनेक्शन होता था और कुछ घरों में लकड़ी-कोयले पर खाना बनता था। ये सामाजिक भेदभाव का बड़ा उदाहरण था जिसे इस सरकार ने खत्म कर दिया है। अब गांव के गरीब के घर में भी गैस पर खाना बनता है। अब गरीब महिला को लकड़ी के धुएं में अपनी जिंदगी नहीं गलानी पड़ती।
ये एक फर्क आया है और जो गांवों से ज्यादा कनेक्टेड लोग हैं, वो इसे और आसानी से समझ सकते हैं। जब आप गांव जाएं, तो एक और योजना का असर देखिएगा, देखिएगा कि कैसे स्वच्छ भारत मिशन से गांव की महिलाओं में समानता का भाव आया है। गांव के कुछ ही घरों में शौचालय होना और ज्यादातर में ना होना, एक विसंगति पैदा करता था। गांव की महिलाओं के स्वास्थ्य और उनकी सुरक्षा पर भी इसकी वजह से संकट आता था। लेकिन अब धीरे-धीरे देश के ज्यादातर गांवों में शौचालय बन रहे हैं। जहां पहले स्वच्छता का दायरा 40 प्रतिशत था, वो बढ़कर अब 70 प्रतिशत से ज्यादा हो चुका है।
सामाजिक लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में बहुत बड़ा काम इस सरकार की बीमा योजनाएं भी कर रही हैं। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और जीवन ज्योति बीमा योजना से अब तक देश के 18 करोड़ गरीब उसके साथ जुड़ चुके हैं। इन योजनाओं के माध्यम से सिर्फ एक रुपए महीना पर दुर्घटना बीमा, और 90 पैसे प्रतिदिन के प्रीमियम पर जीवन बीमा किया जा रहा है।
आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि इन योजनाओं के तहत गरीबों को लगभग 1800 करोड़ रुपए की claim, उसकी राशि दी जा चुकी है। सोचिए, आज गांव-देहात में रहने वाला गरीब कितनी बड़ी चिंता से मुक्त हो रहा है।
भाइयों और बहनों, बाबा साहेब की विचारधारा के मूल में समानता अनेक रूपों में निहित रही है।
सम्मान की समानता,
कानून की समानता,
अधिकार की समानता,
मानवीय गरिमा की समानता,
अवसर की समानता
ऐसे कितने ही विषयों को बाबा साहेब ने अपने जीवन में लगातार उठाया। उन्होंने हमेशा उम्मीद जताई थी कि भारत में सरकारें संविधान का पालन करते हुए बिना पंथ का भेद किए हुए, बिना जाति का भेद किए हुए चलेंगी। आज इस सरकार की हर योजना में आपको बिना किसी भेदभाव सभी को समानता का अधिकार देने का प्रयास दिखेगा।
जैसे अभी हाल ही में सरकार ने एक और योजना शुरू की है- ‘प्रधानमंत्री सहज’ हर घर बिजली योजना यानि सौभाग्य। इस योजना के तहत देश के 4 करोड़ ऐसे घरों में बिजली का कनेक्शन मुफ्त दिया जाएगा, जो आज भी, आजादी के 70 साल बाद भी, 18वीं शताब्दी में जीने के लिए मजबूर हैं, ऐसे 4 करोड़ ऐसे घरों में मुफ्त में बिजली का कनेक्शन दिया जायेगा। पिछले 70 सालों से जो असमानता चली आ रही थी, वो ‘सौभाग्य योजना’ की वजह से खत्म होने जा रही है।
समानता बढ़ाने वाली इसी कड़ी में एक और महत्वपूर्ण योजना है ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’। आज भी देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनके पास अपनी छत नहीं है। घर छोटा हो या बड़ा, पहले घर होना जरूरी है।
इसलिए सरकार ने लक्ष्य रखा है कि 2022 तक गांव हो या शहर, हर गरीब के पास उसका अपना घर हो। इसके लिए सरकार आर्थिक मदद दे रही है, गरीब और मध्यम वर्ग को कर्ज के ब्याज में छूट दे रही है। कोशिश यही है कि घर के विषय में समानता का भाव आए, कोई घर से वंचित ना रहे।
भाइयों और बहनों, ये योजनाएं अपनी तय रफ्तार से बढ़ रही हैं और अपने तय समय पर या उससे पहले ही पूरी भी होंगी।
आज ये डॉक्टर अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि इस सरकार में योजनाएं अटकती और भटकती नहीं हैं। जो लक्ष्य तय किए जाते हैं, उन्हें पूरा करने के लिए इस सरकार में पूरी ताकत लगा दी जाती है। और यही हमारी कार्यसंस्कृति है।
हमारी कोशिश है कि हर योजना को लक्ष्य के साथ ना सिर्फ बांधें, बल्कि उसे तय समय में पूरा भी करें। और ये अभी से नहीं है। सरकार के पहले कुछ महीनों से ही ये दिशा तय कर दी गई थी।
आपको याद होगा, मैंने 2014 में लाल किले से कहा था कि एक साल के भीतर देश के सभी सरकारी स्कूलों में बेटियों के लिए अलग शौचालय होगा। हमने एक साल के भीतर स्कूलों में 4 लाख से ज्यादा शौचालय बनवाए। स्कूल में शौचालय ना होने की वजह से जो बेटियां पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती थीं, उनकी जिंदगी में कितना बड़ा बदलाव आया है, ये आप भली-भांति समझ सकते हैं।
साथियों, साल 2015 में लालकिले से ही मैंने एक और ऐलान किया था। एक हजार दिन में देश के उन 18 हजार गांवों तक बिजली पहुंचाने का, जहां स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी बिजली नहीं पहुंची है। अभी एक हजार दिन पूरे होने में कई महीने बाकी हैं और अब सिर्फ 2 हजार गांवों में बिजली पहुंचाने का काम बाकी रह गया है।
दूसरी और योजनाओं की बात करूं तो किसानों को ‘सॉयल हेल्थ कार्ड’ देने की स्कीम फरवरी 2015 में शुरू की गई थी। हमने लक्ष्य रखा था कि 2018 तक देश के 14 करोड़ किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड दिए जाएंगे। अब तक 10 करोड़ से ज्यादा किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड दिए जा चुके हैं। यानि हम लक्ष्य से बहुत दूर नहीं हैं।
इसी तरह ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ जुलाई 2015 में लॉन्च की गई थी। हमने लक्ष्य रखा था कि बरसों से अटकी हुई देश की 99 सिंचाई परियोजनाओं को 2019 तक पूरा करेंगे। अब तक 21 योजनाएं पूरी की जा चुकी हैं। अगले साल 50 से ज्यादा योजनाएं पूरी कर ली जाएंगी। इस योजना की प्रगति भी तय लक्ष्य के दायरे में है।
किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत मिले, उन्हें फसल बेचने में आसानी हो, इसे ध्यान में रखते हुए E-नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट योजना (E-NAM योजना) अप्रैल 2016 में शुरू की गई थी। इस योजना के तहत सरकार ने देश की 580 से ज्यादा मंडियों को ऑनलाइन जोड़ने का फैसला किया था। अब तक 470 से ज्यादा कृषि मंडियों को ऑनलाइन जोड़ा जा चुका है।
प्रधानमंत्री उज्जवला योजना, जिसका जिक्र मैंने पहले भी किया, वो पिछले साल एक मई को शुरू की गई थी। सरकार ने लक्ष्य रखा था कि 2019 तक 5 करोड़ गरीब महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन देगी। सिर्फ 19 महीनों में सरकार 3 करोड़ 12 लाख से ज्यादा महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन दे चुकी है।
भाइयों और बहनों, ये हमारे काम करने का तरीका है। बाबा साहेब जिस विजन पर चलते हुए गरीबों को समानता का अधिकार देने की बात कहते थे, उसी विजन पर सरकार चल रही है। इस सरकार में योजनाओं में देरी को आपराधिक लापरवाही माना जाता है।
अब इस सेंटर को ही देखिए, इसे बनाने का निर्णय लिया गया था 1992 में। लेकिन 23 साल तक कुछ नहीं हुआ। इस सरकार में हमारे आने के बाद शिलान्यास हुआ और इस सरकार में इसका लोकार्पण भी कर दिया गया। जो राजनीतिक दल बाबा साहेब का नाम लेकर वोट मांगते हैं, उन्हें तो शायद ये पता भी नहीं होगा।
खैर, आजकल उन्हें बाबा साहेब नहीं, बाबा भोले याद आ रहे हैं। चलिए, इतना ही सही।
साथियों, जिस तरह ये सेंटर अपनी तय तारीख से पहले बनकर तैयार हुआ, उसी तरह कितनी ही योजनाओं में अब तय समय को कम किया जा रहा है। एक बार जब सारी व्यवस्थाएं पटरी पर आ चुकी हैं, योजना रफ्तार पकड़ चुकी है, तो हम तय समय सीमा को और कम कर रहे हैं ताकि और जल्दी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
जैसे अभी हाल ही में हमने ‘मिशन इंद्रधनुष’ के लिए जो Time Limit तय की थी, उसे दो साल कम कर दिया है। मिशन इंद्रधनुष के तहत सरकार देश के उन इलाकों तक टीकाकरण अभियान को पहुंचा रही है, जहां पहले से चले आ रहे टीकाकरण अभियानों की पहुंच नहीं थी। इस वजह से लाखों बच्चे और गर्भवती महिलाएं टीकाकरण से छूट जाते थे। इस अभियान के तहत अब तक ढाई करोड़ से ज्यादा बच्चों और 70 लाख से ज्यादा गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण हो चुका है।
पहले सरकार का लक्ष्य 2020 तक देश में पूर्ण टीकाकरण कवरेज को हासिल करना था। इसे भी घटाकर अब साल 2018 तक का संकल्प कर लिया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मिशन इंद्रधनुष के साथ ही ‘इंटेन्सिफाइड मिशन इंद्रधनुष’ की शुरुआत की गई है।
इसी तरह सरकार ने हर गांव को सड़क से जोड़ने का लक्ष्य 2022 तय किया था, लेकिन जैसे ही रफ़्तार पकड़ी है, काम में तेजी आई है to हमने उसे भी 2022 कि बजाय 2019 पूरा करने कि योजना बना ली है।
साथियों, अटल जी की सरकार में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना शुरू हुई थी। लेकिन इतने वर्षों बाद भी अब तक देश के सभी गांव सड़क माध्यम से जुड़ नहीं हुए। सितंबर 2014 में स्थिति ये थी...हमारे आने के बाद कि कि स्थति कि मैं बात करता हूँ, हम मई महीने में आये, 2014 में मैंने review किया, 2014 में स्थिति ये थी कि सिर्फ 57 प्रतिशत गांव ही सड़कों से जुड़े थे। तीन वर्षों की कोशिश के बाद अब 81 प्रतिशत, 80% से भी ज्यादा गांव सड़क से जुड़ चुके हैं। अब सरकार शत-प्रतिशत गांवों को सड़क संपर्क से जोड़ने के लिए बहुत तेज गति से काम कर रही है।
सरकार का जोर देश के दूर-दराज इलाकों में रहने वाले दलित-पिछड़े भाई बहनों को स्वरोजगार के लिए भी प्रोत्साहित करने पर है। इसलिए जब हमने स्टैंड अप इंडिया कार्यक्रम शुरू किया, तो साथ ही ये भी तय किया कि इस योजना के माध्यम से हर बैंक ब्रांच कम से कम एक अनुसूचित जाति या जनजाति को कर्ज जरूर देगी।
भाइयों और बहनों, आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि देश में रोजगार के मायने बदलने वाली मुद्रा योजना के लगभग 60 प्रतिशत लाभार्थी दलित-पिछड़े और आदिवासी ही हैं। इस योजना के तहत अब तक लगभग पौने दस करोड़ लोन स्वीकृत किए जा चुके हैं और लोगों को बिना बैंक गारंटी 4 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज दिया जा चुका है।
साथियों, सामाजिक अधिकार इस सरकार के लिए सिर्फ कहने-सुनने की बात नहीं, बल्कि एक कमिटमेंट है। जिस ‘न्यू इंडिया’ की बात मैं करता हूं वो बाबा साहेब के भी सपनों का भारत है।
सभी को समान अवसर, सभी को समान अधिकार। जाति के बंधन से मुक्त हमारा हिंदुस्तान। टेक्नोलॉजी की शक्ति से आगे बढ़ता हुआ भारत, सबका साथ लेकर, सबका विकास करता हुआ भारत।
आइए, बाबा साहेब के सपनों को पूरा करने का हम संकल्प करें। बाबा साहेब हमें 2022 तक उन संकल्पों को सिद्ध करने की शक्ति दें, इसी कामना के साथ मैं अपनी बात को समाप्त करता हूं।
आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद !!! जय भीम! जय भीम! जय भीम!