भारत एक युवा देश, हमें अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का इस्तेमाल करना चाहिए: प्रधानमंत्री मोदी
हमें प्रकृति के अनुरूप रहने पर महत्व देना चाहिए, अल्पकालिक लाभ के बारे में नहीं सोचना चाहिए: पीएम मोदी
प्रत्येक रुपयाभारत सरकार का हर संसाधन देशवासियों के कल्याण के लिए समर्पित: प्रधानमंत्री

 विशाल संख्‍या में पधारे हुए प्‍यारे भाइयो और बहनों।

ये मेरा सौभाग्‍य है कि मुझे आज भगवान मंजुनाथ के चरणों में आ करके आप सबके दर्शन करने का भी अवसर मिला है। पिछले सप्‍ताह मैं केदारनाथ जी में था। आदि शंकराचार्य जी ने हजारों वर्ष पहले उस जगह पर राष्‍ट्रीय एकता के लिए कितनी बड़ी भव्‍य साधना की होगी। आज मुझे फिर एक बार दक्षिण की तरफ मंजुनाथेश्‍वर के चरणों में आने का सौभाग्‍य मिला है।

मैं नहीं मानता हूं कि नरेन्‍द्र मोदी नाम के किसी व्‍यक्ति को डॉक्‍टर वीरेन्‍द्र हेगड़े जी का सम्‍मान करने का हक है या नहीं है? उनका त्‍याग, उनकी तपस्‍या, उनका जीवन; 20 साल की छोटी आयु में One Life, One Mission, ये अपने-आपको समर्पित किया- और आज बड़ा देर से सुना, नेचुरल है इतना देर से? ऐसे एक वृतस्‍त जीवन- उनका सम्‍मान करने के लिए व्‍यक्ति के नाते मैं बहुत छोटा हूं। लेकिन सवा सौ करोड़ देशवासियों के प्रतिनिधि के रूप में जिस पद पर आपने मुझे बिठाया है, उस पद की गरिमा के कारण मैं इस काम को करते हुए अपने-आप को बहुत बड़़ा भाग्‍यशाली मानता हूं।

सार्वजनिक जीवन में और वो भी आध्‍यात्मिक अधिष्‍ठान पर ईश्‍वर को साक्ष्‍य रखके, आचार और विचार में एकसूत्रता, मन-वचन-कर्म में वही पवित्रता और जिस लक्ष्‍य को जीवन में तय किया, उस लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए, स्‍व: के लिए नहीं समस्‍ती के लिए, अहम की खातिर नहीं वयम की खातिर, मैं नहीं तू ही, उस जीवन को जीना; हर कदम पर कसौटी से गुजरना पड़ता है। हर कसौटी से, हर तराजू से, अपने हर वचन को, अपने हर कृति को तौला जाता है। और इसलिए 50 साल की ये साधना; ये अपने-आप में हम जैसे कौटि-कौटि जनों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है और इसलिए मैं आपको आदरपूर्वक वंदन करता हूं, आपको नमन करता हूं।

और जब मुझे सम्‍मान करने का सौभाग्‍य मिला बड़ी सहजता से, और मैंने देखा है हेगड़े जी को जितनी बार मिला हूं, उनके चेहरे पर मुस्‍कराहट कभी हटती नहीं है। कोई भारी-भरकम काम का बोझ नजर नहीं आता है। सरल-सहज-निष्‍प्रूह:; जैसे गीता में कहा है निष्‍काम कर्मयोग। और सम्‍मान कर रहा था, उन्‍होंने सहज रूप से मुझे कहा- मोदीजी ये 50 साल पूरे हुए, इसका सम्‍मान नहीं है; आप तो मेरे से आगे 50 साल ऐसे ही काम करूं इसकी गारंटी मांग रहे हो। इतना मान-सम्‍मान, प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त होती हो, ईश्‍वर का आशीर्वाद हो, 800 साल की महान तपस्‍या विरासत में मिली हो, उसके बावजूद भी जीवन को प्रतिपल कर्म पथ पर ही आगे बढ़ाना, ये मैं समझता हूं हेगड़े जी से ही सीखना होगा। चाहे विषय योग का हो, शिक्षा का हो, स्‍वास्‍थ्‍य का हो, ग्रामीण विकास का हो, गरीबों के कल्‍याण का हो, भावी पीढ़ी के उत्‍थान के लिए योजनाओं का हो; डॉक्‍टर वीरेन्‍द्र हेगड़े जी ने अपने चिंतन के द्वारा, अपने कौशल्‍य के द्वारा; उन्‍होंने इन सब चीजों को यहां की स्‍थल, काल, परिस्थिति के अनुसार ढाल करके आगे बढ़ाया है। और मुझे इस बात को कहने में संकोच नहीं है, कई राज्‍यों में और देश में भी skill development को लेकर जितने काम चल रहे हैं, उसके तौर-तरीके, काम की पद्धति क्‍या हो, किस प्रकार से किया जाए, उसका बहुत सारा model, डॉक्‍टर वीरेन्‍द्र हेगड़े जी ने यहां जो प्रयोग किए हैं, उसी से मिला है।

आज 21वीं सदी में दुनिया का समृद्ध से समृद्ध देश भी skill development की चर्चा करता है। skill development, prime sector के रूप में माना जाता है। भारत जैसा देश जिसके पास 800 million, 65 प्रतिशत लोग 35 साल से कम उम्र के हों, demographic dividend का हम गर्व करते हों; उस देश में skill development, वो भी सिर्फ पेट-पूजा की खातिर नहीं, भारत के भव्‍य सपनों को साकार करने के लिए कौशल्‍य को बढ़ाना, विश्‍व भर में human resource की जो requirement होगी आने वाले युगों में, उसको परिपूर्ण करने के लिए अपनी बाहों में वो सामर्थ्‍य लाना, अपने हस्‍त के अंदर वो सामर्थ्‍य लाना, उस हुनर को प्राप्‍त करना, ये चीज डॉक्‍टर वीरेन्‍द्र हेगड़े जी ने बहुत सालों पहले देखी थी, और उस काम को आगे बढ़ाया।

और मैं इस काम, इस महत्‍वपूर्ण काम को गति देने के लिए, हमारे यहां तीर्थ क्षेत्र कैसे होने चाहिए? सम्‍प्रदाय, आस्‍था, परम्‍पराएं, उनका लक्ष्‍य क्‍या होना चाहिए? उस विषय में जितना अध्‍ययन होना चाहिए, दुर्भाग्‍य से नहीं हुआ है। आज विश्‍व में उत्‍तम प्रकार की business management स्‍कूल कैसी चल रही है, उसकी तो चर्चा होती है। उसका ranking भी होता है। देश के बड़े-बड़े मैगजीन भी उसका ranking करते हैं। लेकिन आज मैं जब धर्मस्थल जैसे पवित्र स्‍थान पर आया हूं तब, जबसे श्री वीरेन्‍द्र हेगड़े जी के श्रीचरणों में पहुंचा हूं तब मैं दुनिया की बड़़ी-बड़ी यूनिवर्सिटियों से निमत्रण देता हूं, हिन्‍दुस्‍तान की बड़ी-बड़ी Universities को निमंत्रण देता हूं कि हम अस्‍पतालों का सर्वे करते हैं, उनकी कार्यशैली का अध्‍ययन करते हैं। हम इंजीनियरिंग कॉलेजों का ranking करते हैं। भांति-भां‍ति प्रकार के ranking की चर्चा भी होती है लेकिन समय की मांग है, सदियों से हमारे देश में, हमारी इस ऋषि-मुनि परम्‍परा ने किस प्रकार से संस्‍थाओं को बनाया है, किस प्रकार से इसे आगे बढ़ाया है, पीढ़ी-दर-पीढ़ी वो संस्‍कार संक्रमण कैसे किया है, उनकी निर्णय प्रक्रियाएं क्‍या होती हैं, उनकी financial management क्‍या होती है। Transparency and integration को उन्‍होंने किस प्रकार से अपनस्‍थ किया हुआ है, युगानुकूल परिवर्तन कैसे लाए हैं? समय और काल के अनुसार, समय की आवश्‍यकताओं के अनुसार उन्‍होंने इन संस्‍थाओं की प्रेरणाओं को जीवंत कैसे रखा है, और मैं मानता हूं हिन्‍दुस्‍तान में ऐसी एक-दो नहीं, हजारों संस्‍थाएं हैं, हजारों आंदोलन हैं, हजारों संगठन हैं, जो अभी भी कोटि-कोटि जनों के जीवन को प्रेरणा देते हैं, स्‍व से निकल कर समस्‍ती के लिए जीने की प्रेरणा देते हैं। और उसमें धर्मस्थल , 800 साल की विरासत, ये अपने-आप में एक उदाहरणीय है।

अच्‍छा होगा दुनिया के universities, भारत के ऐसे आंदोलनों का अध्‍ययन करें। देखें, दुनिया को आश्‍चर्य होगा कि हमारे यहां क्‍या व्‍यवस्‍थाएं थीं? कैसे व्‍यवस्‍थाएं चलती थीं? समाज के अंदर आध्‍यात्मिक चेतना की परम्‍परा को कैसे निभाया जाता था? हमारे भीतर जो सदियों से पली अच्‍छाइयां हैं उन अच्‍छाइयों के प्रति गर्व करते हुए समानुकूल और अच्‍छे बनने के लिए एक बहुत बड़ा अवसर हमारे सामने होता है। और मुझे विश्‍वास है कि सिर्फ आस्‍था तक सीमित न रहते हुए उसके वैज्ञानिक तौर-तरीकों की तरफ भी देश की युवा पीढ़ी को आकर्षित करने की आवश्‍यकता है।

अब आज मुझे यहां Women Self Help Group, उनको Rupay Card देने का अवसर मिला। जिन लोगों ने संसद में गत नवम्‍बर, दिसम्‍बर, जनवरी, फरवरी के दरम्‍यान जो भाषण दिए हैं, उसको अगर सुना होगा, न सुना हो तो रिकॉर्ड पर आप पढ़ लीजिए। हमारे बड़े-बड़े दिग्‍गज लोग, अपने-आपको बड़ा तीसमारखां मानने वाले लोग, विद्ववता में अपने-आपको बहुत चोटी के व्‍यक्ति मानने वाले लोग- सदन में ये बातें बोलते थे कि हिन्‍दुस्‍तान में तो अशिक्षा है, गरीबी है, ये digital transaction कैसे होगा? लोग cashless कैसे बनेंगे? ये impossible है। लोगों के पास मोबाइल फोन नहीं है। न जाने जितना बुरा बोल सकते हैं, जितना बुरा सो सकते हैं, कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन आज डॉक्‍टर वीरेन्‍द्र हेगड़े जी ने सदन में उठी उन आवाजों को जवाब दे दिया है।

गांव में बसने वाली मेरी माताएं-बहनें शिक्षित हैं कि नहीं हैं, पढ़ी-लिखी हैं कि नहीं हैं; आज उन्‍होंने संकल्‍प किया है और 12 लाख लोग, कम नहीं। 12 लाख लोगों ने संकल्‍प किया है कि वो अपने Self Help Group का पूरा कारोबार cashless करेंगे। नकद के बिना करेंगे, digital transaction करेंगे, रूपे कार्ड से करेंगे, BhimApp से करेंगे। अगर अच्‍छा करने का इरादा हो तो रुकावटें भी कभी-कभी तेज गति को पाने का अवसर प्रदान कर देती हैं और वो आज डॉक्‍टर वीरेन्‍द्र हेगड़े जी ने दिखा दिया है।

मैं आपको हृदय से बधाई देता हूं कि आपने भावी भारत के बीज बोने का एक उत्‍तम प्रयास Digital India, Less Cash Society, उस तरफ देश को ले जाने के लिए, और उस क्षेत्र के लोगों को स्‍पर्श किया है; जिन तक शायद सरकार या banking system को जाते-जाते पता नहीं कितने दशक लग जाते।

लेकिन आपने नीचे से व्‍यवस्‍था को शुरू किया है और आज उसको करके दिखाया है। मैं उन Self Help Group की बहनों को भी बधाई देता हूं, डॉक्‍टर वीरेन्‍द्र हेगड़े जी को बधाई देता हूं कि आज उन्‍होंने देश के लिए उपयोगी एक बहुत बड़े अभियान को प्रारंभ किया है। अब वक्‍त बदल चुका है और ये जो currency है, जो नकद है, हर युग में बदलती रही है। कभी पत्‍थर के सिक्‍के हुआ करते थे, कभी चमड़े के सिक्‍के हुआ करते थे, कभी सोने-चांदी के हुआ करते थे, कभी हीरे-जवाहरात के रूप में में हुआ करते थे, कभी कागज के भी आए, कभी प्‍लास्टिक के आए। बदलता गया है, समय रहते बदल गया है। अब, अब वो digital currency का युग प्रारंभ हो चुका है, भारत ने देर नहीं करनी चाहिए।

और मैंने देखा है कि ज्‍यादा नकद सामाजिक बुराइयों को खींच करके ले आती है। परिवार में भी अगर बेटा बड़ा होता है, बेटी बड़ी होती है; मां-बाप सुखी हों, सम्‍पन्‍न हों, पैसों की कोई कमी न हो; तो भी एक सीमा में ही उसको पैसे देते हैं। इसलिए नहीं- पैसे खर्च करने से वो डरते हैं, लेकिन वो चाहते हैं कि अगर ज्‍यादा धन उसकी जेब में होगा तो बच्‍चों की आदत बिगड़ जाएगी। और इसलिए थोड़ा-थोड़ा देते हैं और पूछते रहते हैं भाई क्‍या किया, ठीक खर्चा किया कि नहीं किया? जो परिवार में संतानों की चिंता करने वाले मां-बाप हैं वो ये भली-भांति जानते हैं कि अगर जेब में पैसे होते हैं तो पता नहीं कहां से कहां रास्‍ते भटक जाते हैं। और इसलिए ये बहुत बड़ा काम, समाज को स्‍वयं की स्‍वयं के साथ accountability, ये बहुत बड़ी बात होती है। स्‍वयं की स्‍वयं के साथ accountability, ये बहुत बड़ी बात होती है।

आज जिस दिशा में डॉक्‍टर हेगड़े जी लिए जा रहे हैं, मैं समझता हूं बाद के लिए बहुत बड़ा महामार्ग खोल रहे हैं। आज और भी एक काम हुआ है। इस Logo का लोकार्पण हुआ है और वो भी पृथ्‍वी के प्रति, ये धरती माता के प्रति हमें हमारा कर्ज चुकाने की प्रेरणा देता है। हम तो ये मानते हैं, ये वृक्ष की जिम्‍मेदारी है कि ये हमें ऑक्‍सीजन देता रहे, हमारी जिम्‍मेवारी नहीं इस वृक्ष को बचाना, हम तो हक लेके आए हैं कि वो वहां खड़ा रहे और हमको ऑक्‍सीजन देता रहे। हम तो जैसे हक लेके आए हैं, ये धरती माता है उसकी जिम्‍मेवारी है हमारा पेट भरती रहे। जी नहीं, अगर इस धरती मां का दायित्‍व है तो उसके बेटे के, संतान के नाते हमका भी दायित्‍व है। अगर वृक्ष का हमको ऑक्‍सीजन देने का दायित्‍व हमको लगता है तो मेरा भी कर्तव्‍य बनता है, उसका लालन-पालन करूं। और जब ये सौदा, ये‍ जिम्‍मेवारियां असंतुलन पैदा करती हैं; देने वाला तो देता रहे, लेने वाला कुछ न करे, वो भोगता रहे; तब समाज में असंतुलन पैदा होता है, व्‍यवस्‍थाओं में असंतुलन पैदा होता है, प्रकृति में असंतुलन पैदा होता है और तब जा करके Global warming की समस्‍या पैदा होती है।

आज सारी दुनिया कह रही है कि पानी का संकट मानव जाति के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनने वाला है। और ये हम न भूलें अगर हम आज एक गिलास भी पानी पीते हैं या बाल्‍टी स्‍नान भी करते हैं तो वो हमारी मेहनत का परिणाम नहीं है, और न ही वो हमारे हक का है। हमारे पूर्वजों ने सजगता से काम किया और हमारे लिए कुछ छोड़कर गए। उसके कारण वो प्राप्‍त हुआ है, और ये है हमारी भावी पीढ़ी के हक का। आज मैं मेरी भावी पीढ़ी का खा रहा हूं। मेरा भी जिम्‍मा बनता है कि मेर पूर्वज जिस प्रकार से मेरे लिए छोड़ करके गए, वैसे ही मुझे भी आगे आने वाली पीढ़ी के लिए छोड़कर जाना होगा। इस भावना को जागृत करने का प्रयास, पर्यावरण की रक्षा का एक बहुत बड़ा आंदोलन धर्मस्थल से प्रारंभ हो रहा है। मैं समझता हूं ये पूरे ब्रह्मांड की सेवा का काम है।

हम किस प्रकार से प्रकृति के साथ जुड़ें। 2022, भारत की आजादी के 75 साल हो रहे हैं। धर्मस्‍थल से इतना बड़ा आंदोलन शुरू हुआ है। और एक बार धर्मस्‍थल से आंदोलन शुरू हुआ हो, डॉक्‍टर हेगड़े जी के आशीर्वाद मिले हैं तो मेरा तो भरोसा है कि सफलता निश्चित हो जाती है।

आज हम हमारी बुद्धि, शक्ति, लोभ के कारण इस धरती माता को जितना चूसते हैं, चूसते ही रहते हैं। हम कभी इस मां की परवाह नहीं करते हैं कि कहीं ये मेरी मां बीमार तो नहीं हो गई है? पहले एक फसल लेता था, दो लेने लग गया, तीन लेने लग गया, भांति-भांति की लेने लग गया। ज्‍यादा पाने के लिए ये दवाई डालता रहा, वो chemical डालता रहा, वो fertilizer डालता रहा। उसका होगा सो होगा, मुझे तत्‍काल लाभ मिलता जाएगा, इसी भाव से हम चलते रहे। अगर यही स्थिति चली तो पता नहीं हम कहां जा करके रुकेंगे।

क्‍या धर्मस्‍थल से डॉक्‍टर हेगड़े जी के नेतृत्‍व में हम आज एक संकल्‍प कर सकते हैं क्‍या? हमारे इस पूरे क्षेत्र में सब किसान ये संकल्‍प कर सकते हैं क्‍या? कि 2022, जब आजादी के 75 साल होंगे तब, हम जो यूरिया का उपयोग करते हैं, उस यूरिया को 50 प्रतिशत पर ले आएंगे। आज जितना करते हैं, उसको आधा कर देंगे। आप देखिए धरती मां की रक्षा के लिए कितनी बड़ी सेवा होगी। किसान का पैसा तो बचेगा, उसका खर्च बचेगा, उत्‍पादन में कोई कमी नहीं आएगी। और उसके बावजूद भी उसका खेत और खलिहान, वो धरती माता हमें आशीर्वाद देगी, वो ज्‍यादा अतिरिक्‍त मुनाफा का कारण बनेगा।

उसी प्रकार से पानी, हम जानते हैं कर्नाटक के अंदर अकाल के कारण कैसी स्थिति पैदा होती है। बिना पानी कैसा संकट आता है। और मैंने तो देखा है ये हमारे येदुरप्‍पा जी, सुपारी के दाम गिर जाएं तो मेरा गला आ करके पकड़ते थे गुजरात का मैं मुख्‍यमंत्री था तो भी। वो कहते थे मोदीजी आप खरीद लो लेकिन हमारे मंगलौर इलाके को बचा लो, दौड़ करके आते थे।

पानी, क्‍या हमारे किसान micro irrigation की ओर 2022 तक, टपक सिंचाई, Per Drop – More Crop इस संकल्‍प को ले करके आगे बढ़ सकते हैं क्‍या? बूंद-बूंद पानी, एक मोती की तरह उसका उपयोग कैसे हो, मोती से मूल्‍य सा बूंद-बूंद पानी का मूल्‍य समझ कर कैसे काम करें, अगर इन चीजों को लेकर हम चलते हैं तो मुझे विश्‍वास है कि हम एक बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं।

जब मैं Digital India की बात कर रहा था, भारत सरकार ने एक नया अभी imitative लिया है- GeM. ये एक ऐसी व्‍यवस्‍था है जो खास करके हमारे जो Women Self Help Group हैं, उनको मैं निमंत्रण देता हूं। जो भी कोई उत्‍पादन करता है, जो अपने product बेचना चाहता है, वो भारत सरकार का ये जो GeM Portal है, उस पर अपनी रजिस्‍ट्री करवा सकता है Online. और भारत सरकार को जिन चीजों की जरूरत है, राज्‍य सरकारों को जिन चीजों की जरूरत है, वे भी उस पर जाते हैं, कहते हैं भई हमें इतनी chair चाहिए, इतने टेबल चाहिए, इतने ग्‍लास चाहिए, इतने refrigerator चाहिए। जो भी उनकी आवश्‍यकता है वो उस पर डालते हैं। और जो GeM में रजिस्‍टर्ड होते हैं, गांव के लोग भी वो आते हैं भई मेरा माल है, मेरे पास पांच चीज हैं मैं बेचना चाहता हूं। सारी transparence व्‍यवस्‍था है।

पिछले साल मैंने 9 अगस्‍त को इसको प्रारंभ किया था, नई चीज थी। लेकिन देखते ही देखते देश के करीब 40 हजार ऐसे उत्‍पादन करने वाले लोग उस GeM के साथ जुड़ गए। देश के 15 राज्‍य, उन्‍होंने MoU कर लिया और हजारों करोड़ रुपये का कारोबार, सरकार जो खरीदना होता है वो GeM के माध्‍यम से आता है। Tender नहीं होता है, परदे के पीछे कुछ नहीं होता है, सारी चीजें कम्‍प्‍यूटर पर सामने होती हैं। जो चीज पहले 100 रुपये में मिलती थी, आज स्थिति आ गई है वो सरकार को 50 और 60 रुपये में मिलना शुरू हो गया है।

Selection के लिए scope मिलता है और पहले बड़े-बड़े लोग सप्‍लाई करते थे, आज गांव का एक गरीब व्‍यक्ति भी कोई चीज बनाता है; वो भी सरकार को सप्‍लाई कर सकता है। ये सखी, ये हमारे जो Women Self Help Group है, वो अपने product उसमें बेच सकते हैं। मैं उनको निमंत्रण देता हूं।

और मैं कर्नाटक सरकार को भी आग्रह करता हूं। हिन्‍दुस्‍तान के 15 राज्‍य, इन्‍होंने भारत के सरकार के साथ GeM के MOU किया है। कर्नाटक सरकार भी देर न करे, आगे आएं। इससे कर्नाटक के अंदर जो सामान्‍य व्‍यक्ति उत्‍पादन करता है उसको एक बहुत बड़ा बाजार मिल जाएगा। सरकार एक बहुत बड़ी खरीदार होती है। जिसका लाभ यहां के गरीब से गरीब व्‍यक्ति भी जो चीज उत्‍पादित करता है, उसको एक अच्‍छा Assured Market मिल जाएगा और उसको गारंटी amount भी मिलेगा।

मैं चाहता हूं कि कर्नाटक सरकार इस निमंत्रण को स्‍वीकार करेगी और कर्नाटक के जो सामान्‍य लोग हैं उनके फायदे में जो चीज जाती है वो उनको लाभ मिलेगा।

हमने आधार, आज देखा आपने- रूपे कार्ड को आधार से जोड़ा है, मोबाइल फोन से जोड़ा है, बैंक की सेवाएं मिल रही हैं। हमारे देश में गरीबों को लाभ मिले, ऐसी कई योजनाएं चलती हैं। लेकिन पता ही नहीं चलता है कि जिसके लिए योजना है उसी को जाता है कि किसी और जगह पर जाता है? बीच में कहीं leakage तो नहीं हो रहा है?

हमारे देश के प्रधानमंत्री ने कभी कहा था कि दिल्‍ली से एक रुपया निकलता है, गांव जाते-जाते 15 पैसा हो जाता है। ये रुपयों को घिसने वाला पंजा कौन होता है? ये कौन सा पंजा है जो रुपये को घिसता-घिसता 15 पैसे बना देता है? हमने तय किया कि दिल्‍ली से एक रुपया निकलेगा तो गरीब के हाथ में 100 के 100 पैसे पहुंचेंगे, 99 नहीं। और उसी गरीब के हाथ में पहुंचेंगे, जिसका इस पर हक है। हमने direct benefit transfer की व्‍यवस्‍था चलाई, registration किया और मैं इस पवित्र स्‍थान पर बैठा हूं, डॉक्‍टर वीरेन्‍द्र हेगड़े जी के बगल में बैठा हूं, यहां की पवित्रता का मुझे पूरा अंदाज है, इमानदारी का पूरा अंजाद है, और उस पवित्र स्‍थल से मैं कह रहा हूं; हमारे इस एक प्रयत्‍न के कारण अब तक, अभी तो सब राज्‍य हमारे साथ जुड़े नहीं हैं, कुछ राज्यों ने imitative लिया है, भारत सरकार ने कई सारे initiative लिए हैं; अब तक Fifty seven thousand crore rupees- 57 हजार करोड़ रुपया; जो किसी गैर-कानूनी लोगों के हाथों में चला जाता था, चोरी हो जाता था; वो सारा बंद हो गया और सही लोगों के हाथ में सही पैसा जा रहा है।

अब मुझे बताइए जिनकी जेब में हर साल 50-60 हजार करोड़ जाता था, उनकी जेब में जाना बंद हो गया- वो मोदी को पसंद करेंगे क्‍या? वो मोदी पर गुस्‍सा करेंगे कि नहीं करेंगे? मोदी के बाल नोच लेंगे कि नहीं नोच लेंगे?

आप हताति हैं दोस्‍तों, लेकिन मैं एक ऐसे पवित्र स्‍थान पर खड़ा हो करके कह रहा हूं हम रहें या न रहें, इस देश को बरबाद नहीं होने देंगे। हमने अपने लिए जीना ही नहीं सीखा है, हम बचपन से औरों के लिए ही जीना सीख करके आए हैं।

और इसलिए भाइयो, बहनों, मेरे लिए सौभाग्‍य है- एक विचार मेरे मन में आता है- वो भी मैं डॉक्‍टर वीरेन्‍द्र जी के सामने रखने की हिम्‍मत करता हूं। मैं उसकी वैज्ञानिक चीजों को ज्‍यादा जानता नहीं हूं, एक lay man के नाते बताता हूं। और मैं मानता हूं आप करके दिखाएंगे। हमारे जो समुद्री तट हैं- मंगलौर के बगल में समुद्री तट है। समुद्री तट पर हमारे जो मछुआरे भाई-बहन काम करते हैं- वो साल में कुछ महीने ही उनको काम मिलता है, बाद में बारिश आ जाती है तो छुट्टी का समय हो जाता है। एक और काम है जो हम समुद्री तट पर कर सकते हैं, अच्‍छी तरह कर सकते हैं, और वो है sea weed की खेती। लकड़ी का एक बनाना पड़ता है करापा- उसमें कुछ weed डाल करके समंदर के किनारे पर छोड़़ देना होता है पानी में। वो तैरता रहता है और 45 दिन में फसल तैयार हो जाती है। देखने में बहुत सुंदर होती है, बहुत ही सुदंर होती है और भरपूर पानी से भरी होती है।

आज pharmaceutical world के लिए ये बहुत बड़ा ताकतवर पौधा माना जाता है। लेकिन मैं एक और काम के लिए सुझाव देता हूं। हमारे यहां के समुद्री तट पर Women Self Help Group के द्वारा इस प्रकार की sea weed की खेती प्रारंभ की जाए। 45 दिन में फसल आना शुरू होगा, 12 महीनों फसल मिलती रहेगी और वो जो पौधे हैं, जब किसान जमीन को जोते, उसके साथ जमीन में मिक्‍स कर दिया जाए। उसके अंदर भरपूर पानी होता है और उसमें बहुत nutrition value होती है। एक बार हम इस धर्मस्‍थल के अगल-बगल के गावं में प्रयोग करके देखें। मुझे विश्‍वास है कि यहां की जमीन को सुधारने के लिए ये sea weed के पौधे बहुत बड़ी सेवा कर सकते हैं, बहुत मुफ्त में तैयार हो जाते हैं। उससे हमारे मछुआरे भाइयों को भी income हो जाएगी और उसमें जो पानी का तत्‍व है वो जमीन को पानीदार बनाते हैं। बड़ी ताकतवर बनाते हैं। मैं चाहूंगा कि धर्मस्‍थल से ये प्रयोग हो। अगर यहां पर कुछ प्रयोग हों तो आपके scientist हैं, आपके education के लोग हैं, उसका जो अध्‍ययन करेंगे, मुझे जरूर report भेजिए। सरकार को मैंने ये काम कभी कहा नहीं है, मैं पहली बार यहां कह रहा हूं। क्‍योंकि ये जगह ऐसी है कि मुझे लगता है कि आप प्रयोग करेंगे और सरकार के नीति-नियमों का बंधन आ जाता है। आप खुले मन से कर सकते हैं। और आप देखिए वो जमीन इतनी बदल जाएगी, उत्‍पादन इतना बढ़ जाएगा, कभी सूखे की स्थिति में भी हमारा किसान कभी परेशान नहीं होगा। तो धरती माता की रक्षा के अनेक हमारे प्रकल्‍प हैं, उन सबको ले करके चलेंगे।

मैं फिर एक बार आज इस स्‍थान पर आया, डॉक्‍टर वीरेन्‍द्र जी के मुझे आशीर्वाद मिले। मंजुनाथेश्‍वर के आशीर्वाद मिले, एक नई प्रेरणा मिली, नया उत्‍साह मिला। अगर इस इलाके की सामान्‍य पढ़ी-लिखी माताएं-बहनें, 12 लाख बहनें, अगर cashless के लिए आगे आती हैं तो मैं इस पूरे जिले से आह्वान करूंगा, हमें उन बहनों से पीछे नहीं रहना चाहिए, उन Women Self Help Group से। हम भी BhimApp का उपयोग करना सीखें। हम भी cashless transaction को सीखें। आप देखिए देश में इमानदारी का युग प्रारंभ हुआ है। इमानदारी को जितनी हम ताकत देंगे, बईमानी की संख्‍या कम होना बहुत स्‍वाभाविक हो जाएगा। कोई वक्‍त था जब बईमानी को ताकत मिली थी, अब वक्‍त है इमानदारी को ताकत मिलेगी। और यही ताकत है अगर हम दीया जलाएंगे तो अंधियारे का जाना तय होता है। अगर हम इमानदारी को ताकत देंगे तो बईमानी का हटना तय होता है। उसी एक संकल्‍प के साथ आगे बढ़ें। मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। डॉक्‍टर वीरेन्‍द्र हेगड़े जी को मेरी बहुत शुभकामनाएं हैं और उनको मैं प्रणाम करता हूं। 50 वर्ष के सुदीर्घकाल और आने वाले 50 साल तक, वो देश को, इस क्षेत्र को उतनी ही सेवा करते रहें।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!