हमें अपने हथकरघा की परंपरा को भारत और दुनिया में फैशन का केंद्र बनाने की जरूरत: प्रधानमंत्री
हथकरघा उत्पादों की बिक्री के लिए हमें ई-कॉमर्स के दायरे को बढ़ाना होगा: प्रधानमंत्री मोदी
सरकार बुनकरों को मजबूत सामाजिक सुरक्षा कवर देने के लिए प्रतिबद्ध: प्रधानमंत्री
हथकरघा क्षेत्र में पर्याप्त सामर्थ्य है जिसके बारे में हमें लोगों को बताने की जरूरत है: प्रधानमंत्री
हथकरघा गरीबी के खिलाफ हमारे लिए हथियार साबित हो सकता है: प्रधानमंत्री मोदी 
हथकरघा को बढ़ावा देने के लिए इनोवेटिव डिजाइन और अच्छी मार्केटिंग की आवश्यकता है: प्रधानमंत्री

वणक्कम्, 

बुनकर भाईयों और बहनों, पुरस्‍कार विजेताओं, देवियों और सज्‍जनों

तमील नाट्टुक्कु वन्ददिल् ।। मीक्क मगील्ची ।

नेशवालअ अन्बरगलै ।। काण्बदिल् ।। मेलूम् मगील्ची


सबसे पहले तमिलनाडु की मुख्यमंत्री आदरणीय डॉक्टर जे. जयललिता जी का, Tamil Nadu Government का और तमिलनाडु के नागरिकों का हृदय से अभिनंदन करता हूं कि आपने एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम को एक host के रूप में तमिलनाडु में मनाया। आज राष्ट्रीय Handloom Day का प्रारंभ हो रहा है और तमिलनाडु से हो रहा है सामान्य रूप से सरकार को सब चीज दिल्ली में करने की आदत है, लेकिन मेरी कोशिश है कि सरकार दिल्ली से बाहर निकले और आज पूरी दिल्ली सरकार तमिलनाडु में मौजूद है। 

I congratulate you and extend my best wishes on the occasion of the first National Handloom Day. 

The Swadeshi movement was launched on 7th August, 1905. It is remembered as one of the major events of our freedom struggle. It was on this day that Indians started to boycott imported textiles. Therefore this day has a special significance for handlooms. Hence we have chosen this day to be celebrated as National Handlooms day.

आजादी का जंग जब चल रहा था, उस समय गुलामी से मुक्ति के लिए handloom एक हथियार था। आज आजाद भारत में गरीबी से मुक्ति के लिए handloom एक हथियार बन सकता है।

India is home to several world famous handloom products. To name a few we have Kanchivaram (कांजीवरम) of Tamil Nadu, Baluchari and Jamdani (बालुचारी and जामदानी) of West Bengal, Chanderi and Maheswari (चंदेरी and महेश्वरी) of Madhya Pradesh, Muga (मूगा) of Assam, Patola (पटोला) of Gujarat, Kani and Shehtoosh (कानी and शहतूश) of Jammu and Kashmir and Pochampally (पोचमपल्ली) of Andhra Pradesh. The handloom sector has inherent strengths that we need to market.

Handloom mainly uses natural fiber like cotton, silk, wool, jute etc. Therefore it is Eco-friendly. We can make it even more Eco-friendly by using vegetable dyes and other organic products.

Today people are very conscious of the environment and holistic healthcare. We need to exploit this in marketing handloom products both domestically and for exports. On 2nd October last year, I had asked people to use one item of Khadi to brighten the lives of artisans. I am informed that since then sale of Khadi has gone up by 60% as compared to the same period last year. मैंने पिछली बार, दिवाली से पहले मन की बात में लोगों से प्रार्थना की थी कि आप घर में पच्चीसों प्रकार की fabric रखते हैं। कोई रिश्तेदार आए तो बताते हैं कि मेरे पास ये है, ये है, ये है लेकिन एक खादी नहीं होता है। कम से कम घर में एकाध-एकाध चीज खादी की रखा करिए। इतनी से मेरी request को देशवासियों ने मान लिया और 60 प्रतिशत बिक्री बढ़ गई, गरीब के घर में दीया जला।

We now also need to give a similar call for handlooms. Can we not enhance use of handlooms in our daily lives? We have many options such as clothes curtains bed sheets table covers door mats and rugs just to name a few. This will not only support handlooms but will also support our weavers.

I am told that handlooms form 15% of total cloth consumption. If we raise this to just 20%, from 15% to 20%, it will give a huge boost to handlooms. Handloom turnover will increase by 33%.

People, especially women, wear handloom clothes on social occasions like marriages and major festivals. We need to popularize this among our youth. This will give the much-needed boost to the handloom sector.

मुझे कभी-कभी लगता है कि हम कभी Five Star Hotel में खाएं, Seven Star Hotel में खाना खाएं, लेकिन जब घर में मां के हाथ का खाना मिलता है तो उसका आनंद कुछ और होता है, एक अलग संतोष होता है, क्यों? क्योंकि मां जब खिलाती है, तब सिर्फ खाना नहीं खिलाती है, उसमें भरपूर प्यार भी मिला हुआ होता है और इसके कारण हमें संतोष भी उतना ही मिलता है। मैं कभी-कभी जब खादी या हैंडलूम पर सोचता हूं तो मुझे लगता है कि दुनिया की चाहे कितनी ही variety क्यों न पहन लें, लेकिन जब हैंडलूम या खादी की चीज लगती है, तो ऐसा ही लगता है, जैसे मां ने परोसा है, प्यार से परोसा है, प्यार से बनाया है। ये जो फर्क है, ये जो फर्क हम महसूस करेंगे तब हमें पता चलेगा कि ये कितनी प्यार से बनाई हुई चीज, मेरे शरीर पर मैंने धारण की है।

किसी बुनकर परिवार में हम जाएं, हम देखेंगे कि पूरे घर में 80% जगह, 80% place वो लूम के लिए देते हैं और 20% place में पूरा परिवार गुजारा करता है और जब एक साड़ी लूम की बनती हुई होती है, पांच महीने-छह महीने, एक-एक ताना-बाना का काम होता है, पूरा परिवार उस साड़ी को ऐसे बनाता है जैसे मां अपनी बेटी को बड़ा बना रही हो, जैसे अपनी बेटी का लालन-पालन करती हो, उस रूप में परिवार के अंदर पूरा परिवार, उस साड़ी को बुनता है और जब वो साड़ी घर से विदाई होकर के किसी दुल्हन के शरीर पर जाने वाली होती है, उस परिवार को भी उतनी ही आनंद होता है और वैसे ही उस साड़ी की विदाई करते हैं, जैसे मां-बाप अपनी लाडली की विदाई करते हैं। इतना प्यार उस बुनकर को उन कपड़ों को बुनते-बुनते हो जाता है।

..और बुनकर परिवार जो साड़ी बनाता है उसका इतना लगाव होता है कि 15-20 साल के बाद कोई मिल जाए और पता चले कि उसने वो साड़ी पहनी है, जो उन्होंने बनाई थी, उसे देखकर के उतना उनका मन भर आता है जैसे अपने परिवार का स्वजन मिला हो, इतना लगाव बुनकर को एक ताने और बाने के साथ होता है।



We need to take several initiatives to make handlooms fashionable. This can be done by bringing new designs and colour schemes, constantly evolving and innovating, ensuring quality. Fashion and design education in India also needs to be re-oriented. We need to make our handloom tradition the centerpiece of fashion for India and the world. 

We are committed to give a rightful place to our famous traditional handloom products. India Handloom Brand has been launched with the sole objective of winning the trust and confidence of customers. 

मुझे अभी किसी ने एक किताब दी थी। उस किताब में, दुनिया में हैंडलूम के भिन्न-भिन्न प्रकार, handicraft के भिन्न-भिन्न प्रकार के, किस शताब्दी में क्या-क्या काम होता है। दुनिया के भिन्न-भिन्न देशों के.. उन्होंने बड़ी ही एक tree बनाया है। कोई 1500 साल पुरानी चीजें थीं उसमें, कोई 1400 साल थी, कोई 1000 साल थी, कोई 200 साल थी। मैं हैरान था छोटे-छोटे देशों का भी उसमें नाम था, लेकिन पूरी उस tree में handicraft औऱ handloom की दुनिया में हिन्दुस्तान का नामो-निशान नहीं था। I was shocked, एक उनकी अज्ञानता के ऊपर और दूसरा हम लोगों ने कभी हमारी बातों को branding नहीं किया। दुनिया को पता तक नहीं कि एक जमाना था कि हमारे देश के बुनकरों और कारीगरों से बनाई हुई चीजें, दुनिया के पांचों खंडों में चाहे अफ्रीका हो, यूरोप हो, चाहे अरब राष्ट्र हो, चाहे China हो सब दूर हमारी चीजें बिकती थीं और उसको लेने के लिए दुनिया लालायित रहती थी। लेकिन आज जो लोग किताबें लिखते हैं उनको पता तक नहीं है कि हमारा कभी इतना भव्य इतिहास रहा है क्योंकि हमने हमारी चीजों का जो global branding करना चाहिए, global marketing करना चाहिए उसमें कहीं न कहीं हम कम पड़े हैं। 

कभी-कभी हम लोग सोचते हैं कि इस काम को कैसे बढाया जाए। छोटे-छोटे प्रयास भी भी हमें बहुत बड़ा परिवर्तन देते हैं। जैसे The film industry has a major role in popularizing fashion in India. And of course I know that Chennai is a big center of the film industry. Can our film makers decide that at least one out of five films will only use handlooms, handicrafts and khadi? 

हमारे फिल्म इंडस्ट्री वाले अपनी फिल्म को popular करने के लिए कुछ दृश्यों के विषयों में बताते हैं कि ये वहां का दृश्य है, ये ढिकना का shooting है तो automatic उनको देखने वाले मिल जाते हैं। अगर वे तय करें कि भई मैं पांच फिल्मों से एक फिल्म ऐसी बनाऊंगा,जिसमें हर कोई हैंडलूम का ही उपयोग होगा, सबके कपड़े भी हैंडलूम के होंगे, handicraft का उपयोग होगा, सारी चीजें ऐसी होगी। मैं उनको विश्वास दिलाता हूं, देश के करोड़ों बुनकर, करोड़ों कारीगर उनकी फिल्म देखने के लिए जरूर जाएंगे, अपने आप उनको मार्केट मिल जाएगा। 

आज के मैनेजमेंट गुरु जब industrial development की बात करते हैं तो cluster concept की बात करते हैं तो cluster को promote करने की बात करते हैं। हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले अगर हम सिर्फ handloom और handicraft को देखें तो हमें पता चलेगा कि कैसे cluster से हमारे यहां काम होता था। अब देखिए उत्तर प्रदेश जाइए तो बनारस handloom का एक बहुत बड़ा cluster बना हुआ है। अगर आप यहां कांचीपुरम जाइए, आपको handloom का बहुत बड़ा cluster बना हुआ आपको दिखाई देगा, आप देवगिरी जाइए, महाराष्ट्र में आपको बहुत बड़ा हैंडलूम का cluster बना हुआ दिखाई देगा यानि उस समय भी चाहे supply chain की बात हो, चाहे marketing की बात हो, चाहे cluster development की बात हो, चाहे raw material supply की बात हो। आज के जितने भी मैनेजमेंट गुरु जो बातें बताते हैं वो सदियों से handloom-handicraft की दुनिया में हमारे पूर्वजों ने develop किया हुआ था।

Recently, we have launched the “Digital India Movement”. which will soon connect all Indians through the Internet. Young consumers are now buying extensively through e-commerce platforms. Therefore we should enlarge the scope of e-commerce for sale of handloom products.

As we develop markets for handlooms we also need to extend support to our weavers on the production side. I am happy to learn that the National Handloom Development Corporation supplied 27% more yarn during 2014-15 as compared to the previous year.

Assistance to individual weavers for building work sheds and purchasing loom and accessories will now be directly transferred to their bank accounts. We have taken a major step for developing handloom clusters at the block level. Earlier, assistance of only about 60 lakhs rupees was being given for one handloom cluster. This has now been increased up to 2 crore rupees.

पहले बिचौलिये और दलालों की दुनिया चलती थी। अब सीधा बैंक अकाउंट में weaver के पास पैसा पहुंचेगा। दूसरा, पहले जो shed के लिए आपको सात लाख रुपया दिया जाता था, अब दो करोड़ रुपया दिया जाएगा।

The main objective of all our efforts is to increase wages of our weavers. Weaving is a very laborious job. In some cases, a weaver takes months to weave a single saree. We need to put in place systems that will ensure that they are paid their rightful wages. We also need to improve technology to enhance productivity and reduce labour in the pre-loom activity.

This will help enhance income levels. Apart from increasing incomes our Government is also committed to extend robust social security cover to weaver families.

We have launched a national drive for financial inclusion through Jan Dhan Yojana. Recently we have also launched three new social security schemes intended to benefit unorganized sectors.

The Pradhan Mantri Jeevan Jyoti Beema Yojana will provide life insurance. The Pradhan Mantri Suraksha Beema Yojana will give you accident insurance cover. The Atal Pension Yojana will give you a pension from the age of 60. You can protect your future by paying a small amount every month.

I call upon all of you to join these schemes and also ask your friends and relatives to do so.

To address financing problems of Micro, Small & Medium Industries the Government has announced the creation of a MUDRA Bank. This bank has a corpus of Rs. 20,000 crores and a credit guarantee corpus of Rs. 3,000 crores. MUDRA Bank would ensure that at least 60% of the credit flows to loans of less than Rs. 50,000.

I am sure this initiative will benefit handloom weavers in a big way.

I congratulate all those who are being awarded today. Their expertise should be utilized for skill development programmes, as well as for production of master pieces for display.

Innovative design backed by good marketing is essential for promotion of handlooms. In this context I would like the request to the Textile Ministry to consider holding competitions and giving awards for design creation and marketing of handloom products.

National Handloom Day celebrations should not end with just a ceremony today. We have to make this a continuous movement. A movement to popularize Handlooms and to improve the lives of our weavers.

एक प्रकार से बुनकर परिवार से जुड़े लोग उनका पूरा हिसाब-किताब ताने-बाने के साथ जुड़ा हुआ है। सारा खेल ताना और बाना से बना हुआ है।

अब समय की मांग है कि हम एक नये सिरे से इस चीज का आगे बढ़ाए। हमारे पास जो परंपरागत कला है उस ताने को आधुनिक बाने के साथ कैसे जोड़े?

Handloom में ज्‍यादातर महिलाएं हैं। Handloom गांवो में है। समय की मांग है कि गांव का ताना global बाने के साथ कैसे जुड़े और गांव का ताना और global बाने का मिलन कैसे हम?

समय की मांग है कि गरीबी का ताना और अमीरी का बाना दोनों को जोड़ करके हम आर्थिक समृद्धि की दिशा में handloom को आगे बढ़ाए। उत्‍तर-दक्षिण का ताना और पूरब-पश्चिम का बाना भारत के कोने-कोने में पड़ी इस कला को एक दूसरे से परिचित करा करके एक महाशक्ति के रूप में handloom को कैसे उभारे?

गांव का un-skill से ले करके दुनिया के हर high-skill के साथ एक तरफ un-skill का ताना, तो दूसरी तरफ high skill का बाना। इस ताने और बाने के मिलन से हम handloom के उद्योग को नई ऊंचाईयों पर कैसे ले जाए।

Zero defect का ताना, Zero effect का बाना और हम हमारा ऐसा product करे जो दुनिया को भा जाए और जो environment के लिए सहायक हो, उपकारक हो, environment friendly हो।

मैं फिर एक बार आज सम्‍मान प्राप्‍त करने वाले सभी हमारे कारीगर भाईयों-बहनों का सम्‍मान करता हूं, अभिनंदन करता हूं और तमिलनाडु की सरकार का, नागरिकों का हृदय से अभिनंदन करता हूं। बहुत बहुत धन्‍यवाद।

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‘सिटीजन फर्स्ट’ भारतीय न्याय संहिता का मूल मंत्र है: पीएम मोदी
December 03, 2024
ये कानून औपनिवेशिक युग के कानूनों की समाप्ति का प्रतीक हैं: प्रधानमंत्री
नए आपराधिक कानून "जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए" की भावना को मजबूत करते हैं, जो लोकतंत्र की नींव है: प्रधानमंत्री
न्याय संहिता समानता, सद्भाव और सामाजिक न्याय के आदर्शों से बुनी गई है: प्रधानमंत्री
भारतीय न्याय संहिता का मंत्र है - नागरिक प्रथम : प्रधानमंत्री

केंद्रीय मंत्रिमंडल में मेरे साथी श्रीमान अमित शाह, चंडीगढ़ के प्रशासक श्री गुलाबचंद कटारिया जी, राज्यसभा के मेरे साथी सासंद सतनाम सिंह संधू जी, उपस्थित अन्य जनप्रतिनिधिगण, देवियों और सज्जनों।

चंडीगढ़ आने से लगता है कि अपनों के बीच आ गया हूं। चंडीगढ़ की पहचान शक्ति-स्वरूपा माँ चंडीका नाम से जुड़ी है। माँ चंडी, यानी शक्ति का वह स्वरूप जिससे सत्य और न्याय की स्थापना होती है। यही भावना भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता के पूरे प्रारूप का आधार भी है। एक ऐसे समय में जब देश विकसित भारत का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है, जब संविधान के 75 वर्ष हुए हैं.. तब, संविधान की भावना से प्रेरित भारतीय न्याय संहिता का प्रभाव प्रारंभ होना, उसका प्रभाव में आना, ये एक बहुत बड़ी शुरुआत है। देश के नागरिकों के लिए हमारे संविधान ने जिन आदर्शों की कल्पना की थी, उन्हें पूरा करने की दिशा में ये ठोस प्रयास है। ये कानून कैसे अमल में लाये जाएंगे, अभी मैं इसका Live Demo देख रहा था। और मैं भी यहां सबसे आग्रह करता हूं कि समय निकालकर के इस Live Demo का जरूर देखें। Law के Students देखें, Bar के साथी देखें, Judiciary के भी साथियों को अगर सुविधा हो, वे भी देखें। मैं इस अवसर पर, सभी देशवासियों को भारतीय न्याय संहिता, नागरिक संहिता के लागू होने की अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं। और चंडीगढ़ प्रशासन से जुड़े सबको बधाई देता हूं।

साथियों,

देश की नई न्याय संहिता अपने आपमें जितना समग्र दस्तावेज़ है, इसको बनाने की प्रक्रिया भी उतनी ही व्यापक रही है। इसमें देश के कितने ही महान संविधानविदों और कानूनविदों की मेहनत जुड़ी है। गृह मंत्रालय ने इसे लेकर जनवरी 2020 में सुझाव मांगे थे। इसमें देश के मुख्य न्यायधीशों का सुझाव और मार्गदर्शन रहा। इनमें हाइ-कोर्ट्स के चीफ़ जस्टिसेस उन्होंने भरपूर सहयोग दिया। देश का सुप्रीम कोर्ट, 16 हाइकोर्ट, judicial academies, अनेकों law institutions, सिविल सोसाइटी के लोग, अन्य बुद्धिजीवी....इन सबने वर्षों तक मंथन किया, संवाद किया, अपने अनुभवों को पिरोया, आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देश की जरूरतों पर चर्चा की गई। आज़ादी के 7 दशकों में न्याय व्यवस्था के सामने जो challenges आए, उन पर गहन मंथन किया गया। हर कानून का व्यावहारिक पक्ष देखा गया, futuristic parameter पर उसे कसा गया...तब भारतीय न्याय संहिता अपने इस स्वरूप में हमारे सामने आई है। मैं इसके लिए देश के सुप्रीम कोर्ट का, honorable judges का, देश की सभी हाइ-कोर्ट्स का, विशेषकर हरियाणा, पंजाब हाईकोर्ट का मैं विशेष आभार प्रकट करता हूँ। मैं Bar का भी धन्यवाद करता हूँ कि जिन्होंने आगे आकर इस न्याय संहिता की ownership ली है, Bar के सभी साथी बहुत-बहुत अभिनंदन के अधिकारी हैं। मुझे भरोसा है, सबके सहयोग से बनी भारत की ये न्याय संहिता भारत की न्याय यात्रा में मील का पत्थर साबित होगी।

साथियों,

हमारे देश ने 1947 में आज़ादी हासिल की थी। आप कल्पना करिए, सदियों की गुलामी के बाद जब हमारा देश आज़ाद हुआ, पीढ़ियों के इंतज़ार के बाद, लक्ष्यावदी लोगों के बलिदानों के बाद, जब आज़ादी की सुबह आई...तब कैसे-कैसे सपने थे, देश में कितना उत्साह था, देशवासियों ने भी सोचा था...अंग्रेज गए हैं, तो अंग्रेजी क़ानूनों से भी मुक्ति मिलेगी। अंग्रेजों के अत्याचार का, उनके शोषण का ज़रिया ये कानून ही तो थे। ये कानून बनाए भी तब गए थे, जब अंग्रेजी सत्ता भारत पर अपना शिकंजा बनाए रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। 1857 में और मेरे नौजवान साथियों को मैं कहूंगा- याद रखिए, 1857 में देश का पहला बड़ा स्वाधीनता संग्राम लड़ा गया। उस 1857 के स्वाधीनता संग्राम ने अंग्रेजी हुकुमत की जड़े हिला दी थीं, देश के हर कौने में बहुत बड़ी चुनौती पैदा कर दी थी। तब जाकर के, उसके जवाब में, अंग्रेज़ 1860 में, 3 साल के बाद इंडियन पीनल कोड, यानी IPC लेकर आए। फिर कुछ साल बाद इंडियन एविडेंस एक्ट लाया गया। और फिर CRPC का पहला ढांचा अस्तित्व में आया। इन क़ानूनों की सोच और मकसद यही था कि भारतीयों को दंड दिया जाए, गुलाम रखा जाए, और दुर्भाग्य देखिए, आजादी के बाद...दशकों तक हमारे कानून उसी दंड संहिता और penal mindset के इर्द-गिर्द ही घूमते रहे, मंडराते रहे। और जिनका इस्तेमाल नागरिकों को गुलाम मानकर होता था। समय-समय पर इन क़ानूनों में छोटे-मोटे सुधार करने के प्रयास हुए, लेकिन इनका चरित्र वही बना रहा। आजाद देश में गुलामों के लिए बने कानूनों को क्यों ढोया जाए? ये सवाल ना हमने खुद से पूछा, ना शासन कर रहे लोगों ने इस पर विचार करने की ज़रूरत समझी। गुलामी की इस मानसिकता ने भारत की प्रगति को, भारत की विकास यात्रा को बहुत ज्यादा प्रभावित किया।

साथियों,

देश अब उस colonial माइंडसेट से बाहर निकले, राष्ट्र के सामर्थ्य का प्रयोग राष्ट्र निर्माण में हो....इसके लिए राष्ट्रीय चिंतन आवश्यक था। और इसीलिए, मैंने 15 अगस्त को लालकिले से गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का संकल्प देश के सामने रखा था। अब भारतीय न्याय संहिता, नागरिक संहिता इसके जरिए देश ने उस दिशा में एक और मजबूत कदम उठाया है। हमारी न्याय संहिता ‘of the people, by the people, for the people' की उस भावना को सशक्त कर रही है, जो लोकतंत्र का आधार होती है।

साथियों,

न्याय संहिता समानता, समरसता और सामाजिक न्याय के विचारों से बुनी गई है। हम हमेशा से सुनते आए हैं कि, कानून की नज़र में सब बराबर होते हैं। लेकिन, व्यवहारिक सच्चाई कुछ और ही दिखाई देती है। गरीब, कमजोर व्यक्ति कानून के नाम से डरता था। जहां तक संभव होता था, वो कोर्ट-कचहरी और थाने में कदम रखने से डरता था। अब भारतीय न्याय संहिता समाज के इस मनोविज्ञान को बदलने का काम करेगी। उसे भरोसा होगा कि देश का कानून समानता की, equality की गारंटी है। यही...यही सच्चा सामाजिक न्याय है, जिसका भरोसा हमारे संविधान में दिलाया गया है।

साथियों,

भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता...हर पीड़ित के प्रति संवेदनशीलता से परिपूर्ण है। देश के नागरिकों को इसकी बारीकियों का पता चलना ये भी उतना ही आवश्यक है। इसलिए मैं चाहूंगा, आज यहां चंडीगढ़ में दिखाए Live Demo को हर राज्य की पुलिस को अपने यहां प्रचारित, प्रसारित करना चाहिए। जैसे शिकायत के 90 दिनों के भीतर पीड़ित को केस की प्रगति से संबंधित जानकारी देनी होगी। ये जानकारी SMS जैसी डिजिटल सेवाओं के जरिए सीधे उस तक पहुंचेगी। पुलिस के काम में बाधा डालने वाले व्यक्ति के खिलाफ एक्शन लेने की व्यवस्था बनाई गई है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए न्याय संहिता में एक अलग चैप्टर रखा गया है। वर्क प्लेस पर महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा, घर और समाज में उनके और बच्चों के अधिकार, भारतीय न्याय संहिता ये सुनिश्चित करती है कि कानून पीड़िता के साथ खड़ा हो। इसमें एक और अहम प्रावधान किया गया है। अब महिलाओं के खिलाफ बलात्कार जैसे घृणित अपराधों में पहली हियरिंग से 60 दिन के भीतर चार्ज फ्रेम करने ही होंगे। सुनवाई पूरी होने के 45 दिनों के भीतर-भीतर फैसला भी सुनाया जाना अनिवार्य कर दिया गया है। ये भी तय किया गया है कि किसी केस में 2 बार से अधिक स्थगन, एडजर्नमेंट नहीं लिया जा सकेगा।

साथियों,

भारतीय न्याय संहिता का मूल मंत्र है- सिटिज़न फ़र्स्ट! ये कानून नागरिक अधिकारों के protector बन रहे हैं, ‘ease of justice’ का आधार बन रहे हैं। पहले FIR करवाना भी कितना मुश्किल होता था। लेकिन अब ज़ीरो FIR को भी कानूनी रूप दे दिया गया है, अब उसे कहीं से भी केस दर्ज कराने की सहूलियत मिली है। FIR की कॉपी पीड़ित को दी जाए, उसे ये अधिकार दिया गया है। अब आरोपी के ऊपर कोई केस अगर हटाना भी है, तो तभी हटेगा जब पीड़ित की सहमति होगी। अब पुलिस किसी भी व्यक्ति को अपनी मर्जी से हिरासत में नहीं ले सकेगी। उसके परिजनों को सूचित करना, ये भी न्याय संहिता में अनिवार्य कर दिया गया है। भारतीय न्याय संहिता का एक और पक्ष है...उसकी मानवीयता, उसकी संवेदनशीलता अब आरोपी को बिना सजा बहुत लंबे समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता। अब 3 वर्ष से कम सजा वाले अपराध के मामले में गिरफ़्तारी भी हायर अथॉरिटी की सहमति से ही हो सकती है। छोटे अपराधों के लिए अनिवार्य जमानत का प्रावधान भी किया गया है। साधारण अपराधों में सजा की जगह Community Service का विकल्प भी रखा गया है। ये आरोपी को समाज हित में, सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने के नए अवसर देगा। First Time Offenders के लिए भी न्याय संहिता बहुत संवेदनशील है। देश के लोगों को ये जानकर भी खुशी होगी कि भारतीय न्याय संहिता के लागू होने के बाद जेलों से ऐसे हजारों कैदियों को छोड़ा गया है...जो पुराने क़ानूनों की वजह से जेलों में बंद थे। आप कल्पना कर सकते हैं, एक नई व्यवस्था, नया कानून नागरिक अधिकारों के सशक्तिकरण को कितनी ऊंचाई दे सकता है।

साथियों,

न्याय की पहली कसौटी है- समय से न्याय मिलना। हम सब बोलते और सुनते भी आए हैं- justice delayed, justice denied! इसीलिए, भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता के जरिए देश ने त्वरित न्याय की तरफ बड़ा कदम उठाया है। इसमें जल्दी चार्जशीट फाइल करने और जल्दी फैसला सुनाने को प्राथमिकता दी गई है। किसी भी केस में हर चरण को पूरा करने के लिए समय-सीमा तय की गई है। ये व्यवस्था देश में लागू हुए अभी कुछ ही महीने हुए हैं। इसे परिपक्व होने के लिए अभी समय चाहिए। लेकिन, इतने कम अंतराल में ही जो बदलाव हमें दिख रहे हैं, देश के अलग-अलग हिस्सों से जो जानकारियां मिल रही हैं...वे वाकई बहुत संतोष देने वाली हैं, उत्साहजनक है। आप लोग तो यहां भली-भांति जानते हैं, हमारे इस चंडीगढ़ में ही वाहन चोरी, व्हीकल की चोरी करने के एक केस में FIR होने के बाद आरोपी को सिर्फ 2 महीने 11 दिन में अदालत से सजा सुना दी, उसको सजा मिल गई। क्षेत्र में अशांति फैलाने के एक और आरोपी को अदालत ने सिर्फ 20 दिन में पूरी सुनवाई के बाद सजा भी सुना दी। दिल्ली में भी एक केस में FIR से लेकर फैसला आने तक सिर्फ 60 दिन का समय लगा...आरोपी को 20 साल की सजा सुनाई गई। बिहार के छपरा में भी एक मर्डर केस में FIR से लेकर फैसला आने तक सिर्फ 14 दिन लगे और आरोपियों को उम्र कैद की सजा हो गई। ये फैसले दिखाते हैं कि भारतीय न्याय संहिता की ताकत क्या है, उसका प्रभाव क्या है। ये बदलाव दिखाता है कि जब सामान्य नागरिकों के हितों के लिए समर्पित सरकार होती है, जब सरकार ईमानदारी से जनता की तकलीफ़ों को दूर करना चाहती है, तो बदलाव भी होता है, और परिणाम भी आते हैं। मैं चाहूंगा कि देश में इन फैसलों की ज्यादा से ज्यादा चर्चा हो ताकि हर भारतीय को पता चले कि न्याय के लिए उसकी शक्ति कितनी बढ़ गई है। इससे अपराधियों को भी पता चलेगा कि अब तारीख पर तारीख के दिन लद गए हैं।

साथियों,

नियम या कानून तभी प्रभावी रहते हैं, जब समय के मुताबिक प्रासंगिक हों। आज दुनिया इतनी तेजी से बदल रही है। अपराध और अपराधियों के तोर-तरीके बदल गए हैं। ऐसे में 19वीं शताब्दी में जड़ें जमाए कोई व्यवस्था कैसे व्यावहारिक हो सकती थी? इसीलिए, हमने इन क़ानूनों को भारतीय बनाने के साथ-साथ आधुनिक भी बनाया है। यहां अभी हमने देखा भी कि अब Digital Evidence को भी कैसे एक महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में रखा गया है। जांच के दौरान सबूतों से छेड़छाड़ ना हो, इसके लिए पूरे प्रोसेस की वीडियोग्राफी को अनिवार्य किया गया है। नए कानूनों को लागू करने के लिए ई-साक्ष्य, न्याय श्रुति, न्याय सेतु, e-Summon Portal जैसे उपयोगी साधन तैयार किए गए हैं। अब कोर्ट और पुलिस की तरफ से सीधे फोन पर, electronic mediums से सम्मन सर्व किए जा सकते हैं। विटनेस के स्टेटमेंट की audio-video recording भी की जा सकती है। डिजिटल एविडेंस भी अब कोर्ट में मान्य होंगे, वो न्याय का आधार बनेंगे। उदाहरण के तौर पर, चोरी के मामले में फिंगर प्रिंट का मिलान, बलात्कार के मामलों में DNA sample का मिलान, हत्या के केस में पीड़ित को लगी गोली और आरोपी के पास से जब्त की गई बंदूक के साइज़ का मैच....विडियो एविडेंस के साथ ये सब कानूनी आधार बनेंगे।

साथियों,

इससे अपराधी के पकड़े जाने तक अनावश्यक समय बर्बाद नहीं होगा। ये बदलाव देश की सुरक्षा के लिए भी उतने ही जरूरी थे। डिजिटल साक्ष्यों और टेक्नोलॉजी के इंटिग्रेशन से हमें आतंकवाद के खिलाफ लड़ने में भी ज्यादा मदद मिलेगी। अब नए क़ानूनों में आतंकवादी या आतंकी संगठन कानून की जटिलताओं का फायदा नहीं उठा सकेंगे।

साथियों,

नई न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता से हर विभाग की productivity बढ़ेगी और देश की प्रगति को गति मिलेगी। कानूनी अड़चनों के कारण जो भ्रष्टाचार को बल मिलता था, उस पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। ज़्यादातर विदेशी निवेशक पहले भारत में इसलिए निवेश नहीं करना चाहते थे, क्योंकि कोई मुकदमा हुआ तो उसी में वर्षों निकल जाएंगे। जब ये डर खत्म होगा, तो निवेश बढ़ेगा, देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

साथियों,

देश का कानून नागरिकों के लिए होता है। इसलिए, कानूनी प्रक्रियाएँ भी पब्लिक की सुविधा के लिए होनी चाहिए। लेकिन, पुरानी व्यवस्था में process ही punishment बन गया था। एक स्वस्थ समाज में कानून का संबल होना चाहिए। लेकिन, IPC में केवल कानून का डर ही एकमात्र तरीका था। वो भी, अपराधी से ज्यादा ईमानदार लोगों को, जो बेचारे विक्टिम हैं, उनको डर रहता था। यहाँ तक की, सड़क पर किसी का एक्सिडेंट हो जाए तो लोग मदद करने से घबराते थे। उन्हें लगता था कि उल्टा वो खुद पुलिस के पचड़े में फंस जाएंगे। लेकिन अब मदद करने वालों को इन परेशानियों से मुक्त कर दिया गया है। इसी तरह, हमने अंग्रेजी शासन के 1500 से ज्यादा कानून, पुराने कानूनों को भी खत्म किया। जब ये कानून खत्म हुये, तब लोगों को हैरानी हुई थी कि क्या देश में ऐसे-ऐसे कानून हम ढ़ो रहे थे, ऐसे-ऐसे कानून बने थे।

साथियों,

हमारे देश में कानून नागरिक सशक्तिकरण का माध्यम बनें, इसके लिए हम सबको अपना नज़रिया व्यापक बनाना चाहिए। ये बात मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि हमारे यहाँ कुछ क़ानूनों की तो खूब चर्चा हो जाती है। चर्चा होनी भी चाहिए लेकिन, कई अहम कानून हमारे विमर्श से वंचित रह जाते हैं। जैसे, आर्टिकल-370 हटा, इस पर खूब बात हुई। तीन तलाक पर कानून आया, उसकी खूब चर्चा हुई। इन दिनों वक़्फ़ बोर्ड से जुड़े कानून पर बहस चल रही है। हमें चाहिए, हम इतना ही महत्व उन क़ानूनों को भी दें जो नागरिकों की गरिमा और स्वाभिमान बढ़ाने के लिए बने हैं। अब जैसे आज अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस है। देश के दिव्यांग हमारे ही परिवारों के सदस्य हैं। लेकिन, पुराने क़ानूनों में दिव्यांगों को किस कैटेगरी में रखा गया था? दिव्यांगों के लिए ऐसे-ऐसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया गया था, जिन्हें कोई भी सभ्य समाज स्वीकार नहीं कर सकता। हमने ही सबसे पहले इस वर्ग को दिव्यांग कहना शुरू किया। उन्हें कमजोर फील कराने वाले शब्दों से छुटकारा दिया। 2016 में हमने Rights of Persons with Disabilities Act लागू करवाया। ये केवल दिव्यांगों से जुड़ा कानून नहीं था। ये समाज को और ज्यादा संवेदनशील बनाने का अभियान भी था। नारी शक्ति वंदन अधिनियम अभी इतने बड़े बदलाव की नींव रखने जा रहा है। इसी तरह, ट्रांसजेंडर्स से जुड़े कानून, Mediation act, GST Act, ऐसे कितने ही कानून बने हैं, जिन पर सकारात्मक चर्चा आवश्यक है।

साथियों,

किसी भी देश की ताकत उसके नागरिक होते हैं। और, देश का कानून नागरिकों की ताकत होता है। इसीलिए, जब भी कोई बात होती है, तो लोग गर्व से कहते हैं कि- I am a law abiding citizen. कानून के प्रति नागरिकों की ये निष्ठा राष्ट्र की बहुत बड़ी पूंजी होती है। ये पूंजी कम न हो, देशवासियों का विश्वास बिखरे ना...ये हम सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है। इसलिए, मैं चाहता हूं कि हर विभाग, हर एजेंसी, हर अधिकारी और हर पुलिसकर्मी नए प्रावधानों को जाने, उनकी भावना को समझे। विशेष रूप से मैं देश की सभी राज्य सरकारों से अनुरोध करना चाहता हूँ, भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता...प्रभावी ढंग से लागू हो, उनका जमीन पर असर दिखे, इसके लिए सभी राज्य सरकारों को सक्रिय होकर काम करना होगा। और मेरा फिर कहना है...नागरिकों को अपने इन अधिकारों की ज्यादा से ज्यादा जानकारी होनी चाहिए। हमें मिलकर इसके लिए प्रयास करना है। क्योंकि, ये जितना प्रभावी तरीके से लागू होंगे, हम देश को उतना ही बेहतर भविष्य दे पाएंगे। ये भविष्य आपके भी और आपके बच्चों का जीवन तय करने वाला है, आपके सर्विस satisfaction को तय करने वाला है। मुझे विश्वास है, हम सब मिलकर इस दिशा में काम करेंगे, राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका बढ़ाएंगे। इसी के साथ, आप सभी को, सभी देशवासियों को एक बार फिर भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूं, और चंडीगढ़ का ये शानदार माहौल, आपका प्यार, आपका उत्साह उसको सलाम करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद!