'जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य जी की इस भव्य विशाल मूर्ति के जरिए भारत मानवीय ऊर्जा और प्रेरणाओं को मूर्त रूप दे रहा है'
'जब हम रामानुजाचार्य जी को देखते हैं, तो हमें अहसास होता है कि प्रगतिशीलता और प्राचीनता में कोई विरोध नहीं है'
'ये जरूरी नहीं है कि सुधार के लिए अपनी जड़ों से दूर जाना पड़े। बल्कि जरूरी ये है कि हम अपनी असली जड़ों से जुड़ें, अपनी वास्तविक शक्ति से परिचित हों'
'रामानुजाचार्य जी के संदेश को लेकर आज देश ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ के मंत्र के साथ अपने नए भविष्य की नींव रख रहा है'
'भारत के स्वाधीनता संग्राम में समानता, मानवता और आध्यात्म की ऊर्जा लगी थी, जो भारत को संतों से मिली थी' 'आज देश में एक ओर सरदार साहब की स्टैच्यू ऑफ यूनिटी एकता की शपथ दोहरा रही है तो रामानुजाचार्य जी की स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी समानता का संदेश दे रही है। एक राष्ट्र के रूप में यह भारत की विशेषता है'
'तेलुगु संस्कृति ने भारत की विविधता को सशक्त किया है'
'तेलुगु फिल्म उद्योग तेलुगु संस्कृति की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ा रहा है'

ओम असमद् गुरुभ्यो नमः!

ओम श्रीमते रामानुजाय नमः!

कार्यक्रम में हमारे साथ उपस्थित तेलंगाना की राज्यपाल डॉक्टर तमिलसाई सौंदरराजन जी, पूज्य श्री जीयर स्वामी जी, केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी जी कृष्ण रेड्डी जी, आदरणीय श्रीमान डॉक्टर रामेश्वर राव जी, भागवद् विभूतियों से सम्पन्न सभी पूज्य संतगण, देवियों और सज्जनों,

आज मां सरस्वती की आराधना के पावन पर्व, बसंत पंचमी का शुभ अवसर है। मां शारदा की विशेष कृपा अवतार श्री रामानुजाचार्य जी की प्रतिमा इस अवसर पर स्थापित हो रही है। मैं आप सभी को बसंत पंचमी की भी शुभकामनाएं देता हूं। मैं मां सरस्वती से ये प्रार्थना करता हूं कि जगद्गुरु रामानुजाचार्य जी का ज्ञान विश्व का पथ प्रदर्शन करे।

साथियों,

हमारे यहाँ कहा गया है- ‘ध्यान मूलम् गुरु मूर्ति’! अर्थात्, हमारे गुरु की मूर्ति ही हमारे ध्यान का केंद्र है। क्योंकि, गुरु के माध्यम से ही हमारे लिए ज्ञान प्रकट होता है। जो अबोध है, हमें उसका बोध होता है। अप्रकट को प्रकट करने की ये प्रेरणा,  सूक्ष्म को भी साकार करने का ये संकल्प, यही भारत की परंपरा रही है। हमने हमेशा उन मूल्यों और विचारों को आकार दिया है, जो युगों-युगों तक मानवता को दिशा दिखा सकें। आज एक बार फिर, जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य जी की इस भव्य विशाल मूर्ति के जरिए भारत मानवीय ऊर्जा और प्रेरणाओं को मूर्त रूप दे रहा है। रामानुजाचार्य जी की ये प्रतिमा उनके ज्ञान, वैराग्य और आदर्शों की प्रतीक है। मुझे विश्वास है, ये प्रतिमा न केवल आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगी, बल्कि भारत की प्राचीन पहचान को भी मजबूत करेगी। मैं आप सभी को, सभी देशवासियों को, और पूरे विश्व में फैले रामानुजाचार्य जी के सभी अनुयायियों को इस शुभ अवसर पर अनेक-अनेक बधाई देता हूँ।

साथियों,

अभी मैं 108 दिव्य देशम् मंदिरों के दर्शन करके आ रहा हूँ। आलवार संतों ने जिन 108 दिव्य देशम् मंदिरों का दर्शन पूरे भारत में भ्रमण करके किया था, कुछ वैसा ही सौभाग्य मुझे आज श्री रामानुजाचार्य जी की कृपा से यहीं मिल गया। मानवता के कल्याण का जो यज्ञ उन्होंने 11वीं शताब्दी में शुरू किया था, वही संकल्प यहाँ 12 दिनों तक विभिन्न अनुष्ठानों में दोहराया जा रहा है। पूज्‍य श्री जीयर स्वामी जी के स्नेह से आज ‘विश्वक् सेन इष्टि यज्ञ’ की पूर्णाहुति में शामिल होने का सौभाग्य भी मुझे मिला है। मैं इसके लिए जीयर स्वामी जी का विशेष रूप से आभार प्रकट करता हूँ। उन्होंने मुझे बताया है कि ‘विश्वक् सेन इष्टि यज्ञ’ संकल्पों और लक्ष्यों की पूर्ति का यज्ञ है। मैं इस यज्ञ के संकल्प को, देश के अमृत संकल्पों की सिद्धि के लिए नतमस्‍तक हो करके समर्पित करता हूँ। इस यज्ञ का फल मैं अपने 130 करोड़ देशवासियों के सपनों की पूर्ति के लिए अर्पित करता हूँ।

साथियों,

दुनिया की अधिकांश सभ्यताओं में, अधिकांश दर्शनों में किसी विचार को या तो स्वीकार किया गया है, या फिर उसका खंडन किया गया है। लेकिन भारत एक ऐसा देश है, जिसके मनीषियों ने ज्ञान को खंडन-मंडन, स्वीकृति-अस्वीकृति इससे ऊपर ही उठाकर के देखा। स्‍वंय उससे ऊपर उठे। दिव्‍य दृष्‍टि से उस विवाद को देखा। हमारे यहाँ अद्वैत भी है, द्वैत भी है। और, इन द्वैत-अद्वैत को समाहित करते हुये श्री रामानुजाचार्य जी का विशिष्टा-द्वैत भी हमारे लिये प्रेरणा है। रामानुजाचार्य जी के ज्ञान की एक अलग भव्यता है। साधारण दृष्टि से जो विचार परस्पर विरोधाभाषी लगते हैं, रामानुजाचार्य जी उन्हें बड़ी सहजता से एक सूत्र में पिरो देते हैं। उनके ज्ञान से, उनकी व्याख्या से सामान्य से सामान्य मानवी भी जुड़ जाता है। आप देखिए, एक ओर रामानुजाचार्य जी के भाष्यों में ज्ञान की पराकाष्ठा है, तो दूसरी ओर वो भक्तिमार्ग के जनक भी हैं। एक ओर वो समृद्ध सन्यास परंपरा के संत भी हैं, और दूसरी ओर गीता भाष्य में कर्म के महत्व को भी अत्‍यंत उत्तम रूप में प्रस्‍तुत करते हैं। वो खुद भी अपना पूरा जीवन कर्म के लिए समर्पित करते रहे हैं। रामानुजाचार्य जी ने संस्कृत ग्रन्थों की भी रचना की, और तमिल भाषा को भी भक्तिमार्ग में उतना ही महत्व दिया। आज भी रामानुज परंपरा के मंदिरों में थिरुप्पावाई के पाठ के बिना शायद ही कोई अनुष्ठान पूरा होता हो।

साथियों,

आज जब दुनिया में सामाजिक सुधारों की बात होती है, प्रगतिशीलता की बात होती है, तो माना जाता है कि सुधार जड़ों से दूर जाकर होगा। लेकिन, जब हम रामानुजाचार्य जी को देखते हैं, तो हमें अहसास होता है कि प्रगतिशीलता और प्राचीनता में कोई विरोध नहीं है। ये जरूरी नहीं है कि सुधार के लिए अपनी जड़ों से दूर जाना पड़े। बल्कि जरूरी ये है कि हम अपनी असली जड़ो से जुड़ें, अपनी वास्तविक शक्ति से परिचित हों! आज से एक हजार साल पहले तो रूढ़ियों का दबाव, अंधविश्‍वास का दबाव, कल्‍पना के बाहर कितना ज्यादा रहा होगा! लेकिन रामानुजाचार्य जी ने समाज में सुधार के लिए समाज को भारत के असली विचार से परिचित करवाया। उन्होंने दलितों-पिछड़ों को गले लगाया, उस समय जिन जातियों को लेकर कुछ और भावना थी, उन जातियों को उन्‍होंने विशेष सम्मान दिया। यादवगिरि पर उन्होंने नारायण मंदिर बनवाया, जिसमें दलितों को दर्शन पूजन का अधिकार दिया। रामानुजाचार्य जी ने बताया कि धर्म कहता है- “न जातिः कारणं लोके गुणाः कल्याण हेतवः” अर्थात्, संसार में जाति से नहीं, गुणों से कल्याण होता है। रामानुजाचार्य जी के गुरु श्री महापूर्ण जी ने एक बार दूसरी जाति के अपने एक मित्र का अंतिम संस्कार किया था। उस समय रामानुजाचार्य जी ने लोगों को भगवान श्रीराम की याद दिलाई थी। उन्होंने कहा कि अगर भगवान राम अपने हाथों से जटायु का अंतिम संस्कार कर सकते हैं, तो भेदभाव वाली सोच का आधार धर्म कैसे हो सकता है? ये अपने आप में बहुत बड़ा संदेश है।

साथियों,

हमारी संस्कृति की ये विशेषता रही है कि, सुधार के लिए, हमारे समाज के भीतर से ही लोग निकलते हैं। युगों से देखते आईए, समाज में जब भी कुछ बुराई के तत्‍व फैलने लगते हैं,  कोई न कोई महापुरुष हमारे ही बीच में से पैदा होता है। और ये हजारों वर्षों का अनुभव है कि ऐसे सुधारकों को हमेशा उनके कालखंड में शायद स्‍वीकृति मिली हो या ना मिली हो, चुनौतियाँ रही हो या ना रही हों, संकट झेलने पड़े हों या ना पड़े हों, विरोध भी सहना पड़ा हो, लेकिन उस विचार में, उस तत्‍व में इतनी ताकत रहती थी, उनका conviction इतना जबरदस्‍त होता था कि वो समाज के बुराईयों के खिलाफ लड़ने के लिए अपनी शक्‍ति लगा देते थे। लेकिन जब समाज इसे समझ पाता है तो जिसका कभी विरोध होता है, उसको स्‍वीकृति भी उतनी तेजी से मिलती है। सम्‍मान और आदर भी उतना ही मिलता है। ये इस बात का सबूत है कि बुराइयों के पक्ष में, कुरीतियों के पक्ष में, अंधविश्‍वास के पक्ष में in general हमारे समाज में सोशल sanction नहीं होता है। जो बुराई से लड़ते हैं, जो समाज को सुधारते हैं, हमारे यहां उन्हें ही मान और सम्मान मिलता है।

भाइयों बहनों,

आप सब लोग रामानुजाचार्य जी के जीवन के विभिन्न आयामों से परिचित हैं। वो समाज को सही दिशा देने लिए आध्यात्म के संदेशों का भी प्रयोग करते थे, और व्यवहारिक जीवन का भी! जाति के नाम पर जिनके साथ भेदभाव होता था, रामानुजाचार्य जी ने उन्हें नाम दिया थिरुकुलथार। यानि लक्ष्मी जी के कुल में जन्म लेने वाला, श्रीकुल, या दैवीय जन! वो स्नान करके आते समय अपने शिष्य ‘धनुर्दास’ के कंधे पर हाथ रखकर आते थे। ऐसा करके रामानुजाचार्य जी छुआछूत की बुराई को मिटाने का संकेत देते थे। यही वजह थी कि बाबा साहब अंबेडकर जैसे समानता के आधुनिक नायक भी रामानुजाचार्य जी की भरपूर प्रशंसा करते थे, और समाज को भी कहते थे कि अगर सीखना है तो रामानुजाचार्य जी की शिक्षा से सीखो। और इसीलिए, आज रामानुजाचार्य जी विशाल मूर्ति स्टेचू ऑफ equality के रूप में समानता का संदेश दे रही है। इसी संदेश को लेकर आज देश ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ के मंत्र के साथ अपने नए भविष्य की नींव रख रहा है। विकास हो, सबका हो, बिना भेदभाव हो। सामाजिक न्याय, सबको मिले, बिना भेदभाव मिले। जिन्हें सदियों तक प्रताड़ित किया गया, वो पूरी गरिमा के साथ विकास के भागीदार बनें, इसके लिए आज का बदलता हुआ भारत, एकजुट प्रयास कर रहा है। आज सरकार जो योजनाएं चला रही है, उनका बहुत बड़ा लाभ हमारे दलित-पिछड़े भाई-बहनों को हो रहा है। चाहे पक्के घर देना हो या फिर उज्जवला का मुफ्त कनेक्शन, गैस कनेक्‍शन, चाहे 5 लाख रुपए तक मुफ्त इलाज की सुविधा हो या फिर बिजली का मुफ्त कनेक्शन, चाहे जनधन बैंक खाते खोलना हो या फिर स्वच्छ भारत अभियान के तहत करोड़ों शौचालयों का निर्माण करना हो, ऐसी योजनाओं ने दलित-पिछड़े, गरीब, शोषित-वंचित, सभी का भला किया है, बिना भेदभाव, सबको सशक्त किया है।

साथियों,

रामानुजाचार्य जी कहते थे- ‘‘उईरगलुक्कूल बेडम इल्लै’’। अर्थात्, सभी जीव समान हैं। वो ब्रह्म और जीव की एकता की बात ही करके रूकते नहीं थे, वो वेदान्त के इस सूत्र को स्‍वंय भी जीते थे। उनके लिए स्वयं में और दूसरों में कोई भेद नहीं था। यहाँ तक कि उन्हें अपने कल्याण से ज्यादा जीव के कल्याण की चिंता थी। उनके गुरु ने कितने ही प्रयासों के बाद जब उन्हें ज्ञान दिया, तो उसे गुप्त रखने के लिए कहा। क्योंकि, वो गुरुमंत्र उनके कल्याण का मंत्र था। उन्‍होंने साधना की थी, तपस्‍या की थी, जीवन समर्पित किया था और इसलिये ये गुरुमंत्र मिला था। लेकिन रामानुजाचार्य जी की सोच अलग थी। रामानुजाचार्य जी ने कहा- पतिष्ये एक एवाहं, नरके गुरु पातकात्। सर्वे गच्छन्तु भवतां, कृपया परमं पदम्। यानी, मैं अकेला नर्क जाऊँ तो भी कोई बात नहीं, लेकिन बाकी सबका कल्याण होना चाहिए। इसके बाद उन्होंने मंदिर के शिखर पर चढ़कर हर नर नारी को वो मंत्र सुनाया जो उनके गुरु ने उन्हें उनके कल्याण के लिए दिया था। समानता का ऐसा अमृत रामानुजाचार्य जी जैसा कोई महापुरुष ही निकाल सकता था, जिसने वेद वेदान्त का वास्तविक दर्शन किया हो।

साथियों,

रामानुजाचार्य जी भारत की एकता और अखंडता की भी एक प्रदीप्त प्रेरणा हैं। उनका जन्म दक्षिण में हुआ, लेकिन उनका प्रभाव दक्षिण से उत्तर और पूरब से पश्चिम तक पूरे भारत पर है। अन्नामाचार्य जी ने तेलगु में उनकी प्रशंसा की है, कनकदास जी ने कन्नड़ भाषा में रामानुजाचार्य जी की महिमा गायी है, गुजरात और राजस्थान में अगर आप जाएंगे, तो वहां भी अनेक संतों के उपदेशों में रामानुजाचार्य जी के विचारों की सुगंध महसूस होती है। और, उत्तर में रामानन्दीय परंपरा के गोस्वामी तुलसीदास जी से लेकर कबीरदास तक, हर महान संत के लिए रामानुजाचार्य परम गुरु हैं। एक संत कैसे अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा से पूरे भारत को एकता के सूत्र में पिरो देता है, रामानुजाचार्य जी के जीवन में हम ये देख सकते हैं। इसी आध्यात्मिक चेतना ने गुलामी के सैकड़ों वर्षों के कालखंड में, भारत की चेतना को जागृत रखा था।

साथियों,

ये भी एक सुखद संयोग है कि श्री रामानुजाचार्य जी पर ये समारोह उसी समय में हो रहा है, जब देश अपनी आज़ादी के 75 साल मना रहा है। आज़ादी के अमृत महोत्सव में हम स्वाधीनता संग्राम के इतिहास को याद कर रहे हैं। आज देश अपने स्वाधीनता सेनानियों को कृतज्ञ श्रद्धांजलि दे रहा है। अपने इतिहास से हम अपने भविष्य के लिए प्रेरणा ले रहे हैं, ऊर्जा ले रहे हैं। इसीलिए, अमृत महोत्सव का ये आयोजन आजादी की लड़ाई के साथ साथ हजारों सालों की भारत की विरासत को भी समेटे हुये है। हम जानते हैं, भारत का स्वाधीनता संग्राम केवल अपनी सत्ता और अपने अधिकारों की लड़ाई भर नहीं था। इस लड़ाई में एक तरफ ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ थी, तो दूसरी ओर ‘जियो और जीने दो’ का विचार था। इसमें एक ओर, ये नस्लीय श्रेष्ठता और भौतिकवाद का उन्माद था, तो दूसरी ओर मानवता और आध्यात्म में आस्था थी। और इस लड़ाई में भारत विजयी हुआ, भारत की परंपरा विजयी हुई। भारत के स्वाधीनता संग्राम में समानता, मानवता और आध्यात्म की वो ऊर्जा भी लगी थी, जो भारत को रामानुजाचार्य जैसे संतों से मिली थी। 

क्या हम गांधी जी के बिना अपने स्वाधीनता संग्राम की कल्पना कर सकते हैं? और क्या हम अहिंसा और सत्य जैसे आदर्शों के बिना गांधी जी की कल्पना कर सकते हैं? आज भी गांधी जी का नाम आते ही ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए’, ये धुन हमारे अन्तर्मन में बजने लगती है। इसके रचयिता नरसी मेहता जी, रामानुजाचार्य जी की भक्ति परंपरा के ही महान संत थे। इसलिए, हमारी आज़ादी की लड़ाई को जिस तरह हमारी आध्यात्मिक चेतना ऊर्जा दे रही थी, वही ऊर्जा आज़ादी के 75 साल में हमारे अमृत संकल्पों को भी मिलनी चाहिए। और आज जब मैं भाग्‍यनगर में हूं, हैदराबाद में हूं, तो सरदार पटेल जी का विशेष उल्लेख जरूर करूंगा। वैसे कृष्‍ण रेड्डी जी ने अपने वकतव्‍य में बड़ा विस्‍तार से उसके लिये कहा। भग्‍यनगर का कौन ऐसा भाग्‍यशाली होगा? कौन ऐसा हैदराबादी होगा जो सरदार पटेल की दीव्‍य दृष्‍टि, सरदार पटेल का सार्मथ्‍य और हैदराबाद की आन-बान-शान के लिये सरदार साहब की कूटनीति को न जानता हो? आज देश में एक ओर सरदार साहब की ‘स्टेचू ऑफ यूनिटी’ एकता की शपथ दोहरा रही है, तो रामानुजाचार्य जी की ‘स्टेचू ऑफ equality’ समानता का संदेश दे रही है। यही एक राष्ट्र के रूप में भारत की चिर पुरातन विशेषता है। हमारी एकता सत्ता या शक्ति की बुनियाद पर नहीं खड़ी होती, हमारी एकता समानता और समादर इस सूत्र से सृजित होती है।

और साथियों,

आज जब मैं तेलंगाना में हूं, तो इस बात का जिक्र भी जरूर करूंगा कि कैसे तेलुगू कल्चर ने भारत की विविधता को सशक्त किया है। तेलगू कल्चर की जड़ों का विस्तार सदियों में फैला हुआ है। अनेक महान राजा, रानियां, इसके ध्वजावाहक रहे हैं। सातवाहन हों, काकातिया हो या विजयनगर साम्राज्य सभी ने तेलुगू संस्कृति की पताका को बुलंद किया। महान कवियों ने तेलुगू संस्कृति को समृद्ध किया है। पिछले वर्ष ही तेलांगना में स्थित 13वीं शताब्दी के काकातिया रुद्रेश्वर -रामाप्पा मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है I वर्ल्ड टूरिज्म ऑर्गनाईजेशन ने पोचमपल्ली को भी भारत के सबसे बेहतरीन tourism village का दर्जा दिया है। पोचमपल्ली की महिलाओ का हुनर पोचमपल्ली साड़ीयों के रूप में विश्व विख्यात है। ये वो संस्कृति है जिसने हमें हमेशा सद्भाव, भाई-चारा और नारी शक्ति का सम्मान करना सिखाया है। 

तेलुगू संस्कृति की इस गौरवशाली परंपरा को आज तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री भी पूरे आन-बान-शान से आगे बढ़ा रही है। तेलुगू सिनेमा का दायरा सिर्फ उतना ही नहीं है जहां तेलुगू बोली जाती है। इसका विस्तार पूरे विश्व में है। सिल्वर स्क्रीन से लेकर OTT प्लेटफॉर्म्स तक इस creativity की चर्चा छाई हुई है। भारत के बाहर भी खूब प्रशंसा हो रही है। तेलुगू भाषी लोगों का अपनी कला और अपनी संस्कृति के प्रति ये समर्पण, सभी के लिए प्रेरणा समान है।

साथियों,

आजादी के 75वें वर्ष में, इस अमृतकाल में, श्री रामानुजाचार्य जी की ये प्रतिमा प्रत्येक देशवासी को निरंतर प्रेरित करेगी। मुझे पूरा भरोसा है, आजादी के अमृतकाल में हम उन कुरीतियों को भी पूरी तरह समाप्त कर पाएंगे, जिन्हें खत्म करने के लिए श्री रामानुजाचार्य जी ने समाज को जागृत किया था। इसी भाव के साथ, पूज्‍य स्‍वामी जी का आदरपूर्वक धन्‍यवाद करते हुए, इस पवित्र अवसर में हिस्‍सेदार बनने के लिये आपने मुझे अवसर दिया, मैं आपका बहुत आभारी हूं! विश्‍व भर में फैले हुए प्रभु रामानुजाचार्य जी के विचारों से प्रभावित प्रेरित हर किसी को में अनेक-अनेक शुभाकमनाएँ देता हूं! मेरी वाणी को विराम देता हूँ।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद!

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Prime Minister Shri Narendra Modi paid homage today to Mahatma Gandhi at his statue in the historic Promenade Gardens in Georgetown, Guyana. He recalled Bapu’s eternal values of peace and non-violence which continue to guide humanity. The statue was installed in commemoration of Gandhiji’s 100th birth anniversary in 1969.

Prime Minister also paid floral tribute at the Arya Samaj monument located close by. This monument was unveiled in 2011 in commemoration of 100 years of the Arya Samaj movement in Guyana.