Quoteमहात्मा गांधी के विचारों में वो शक्ति है जो आज की वैश्विक चुनौतियों को कम करने में हमारे लिए प्रेरणास्त्रोत बन सकती हैं: पीएम मोदी 
Quoteस्वच्छता हर भारतीय का स्वभाव बनना चाहिए: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 
Quoteभारत अहिंसा की भूमि है। यह महात्मा गांधी की धरती है। समाज में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है: पीएम मोदी 
Quoteआइए, हम सब एक साथ मिलकर काम करें और महात्मा गांधी के सपनों के भारत का निर्माण करें: पीएम मोदी

विश्व भर से और विशाल संख्या में पधारे मेरे प्यारे भाईयों और बहनों,

इतिहास भूला देने की कितनी बडी कीमत चुकानी पड़ती है, क्या कुछ खोना पड़ता है? क्या कुछ गवाना पडता है? अगर इस बात को समझना है, मैं समझता हूं कि श्रीमद राजचन्द्र जी के व्यक्तित्व से, हम बहुत भली भांति समझ सकते हैं कि उनको भुलाकर हमने कितना गंवाया है क्या कुछ खोया है और आज यह बहुत ही सुभव योग है कि श्रीमद राजचन्द्र जी, पूज्य बापू उनको कविश्री के रूप में भी संबोधित करते थे। उनके 150 वर्ष और जिस तपोभूमि से सदियों की गुलामी के बाद भारत की अंतर चेतना को जगाने का एक पवित्र कार्य हुआ, वो साबरमति आश्रम का शताब्दी पर्व है।

2017 का साल अनेक रूप से महत्वपूर्ण है, यही वर्ष था जब देश में पहला सत्याग्रह का बिगुल बजा। चंपारण की धरती पर और उसका भी यह शताब्दी का वर्ष है। पूज्य बापू 1915 में भारत वापिस आए थे अफ्रीका से और 2015 में जब उनका शताब्दी का वर्ष था तो भारत सरकार ने पूज्य बापू के भारत आगमन की उस शताब्दी को भी इसी गुजरात में, गांधीनगर में, महात्मा मंदिर में, दुनिया भर के प्रवासी भारतीयों को बुलाकर के उस अवसर को मनाने का प्रयास किया है।

आज के इस कार्यक्रम से देश के बहुत लोगों को जो गांधी से जुडे हैं, जो गांधी के अभ्यासु हैं उनके लिए श्रीमद राज चन्द्र का नाम परिचित है। लेकिन एक पूरी पीढी है जिनके लिए श्रीमद राजचन्द्र जी का नाम नया है। दोष हम लोगों का है कि हमें इन महापुरूषों को पीढ़ी दर पीढ़ी याद रखते रहना चाहिए लेकिन हम कुछ न कुछ ऐसे गलत रास्ते पर चल दिए कि हमने उन्हें भुला दिया। इस सरकार की कोशिश है कि इस महान राष्ट्र के महान सपुतों का, महान परंपराओं का, महान इतिहास का निरंतर स्मरण बनता रहे, इतिहास की जड़ों से हम जुड़ें रहें और नए इतिहास रचने के लिए पराक्रम के लिए तैयार रहे, इस मकसद से हमें आगे चलना है।

साबरमती आश्रम की शताब्दी कभी-कभी मुझे लगता है कि विश्व को जिस रूप में गांधी से परिचित करवाने की जरूरत है, आग के समुद्र से गुजर रही मानवता को गांधी से संबल मिल सकता है, राह मिल सकती है। लेकिन हम उसको नहीं कर पाए। अभी भी समय है, वर्ना मेरा तो मन करता है, मैं नहीं जानता हूं, सारी इच्छाएं पूरी होती हैं कहां होता है? लेकिन इच्छाएं करना भी थोड़े ही बुरा होता है। कभी-कभी मन करता है कि United Nations जिसका निर्माण शांति के लिए हुआ है। प्रथम और दूसरे विश्व युद्ध की कोख से ये विचार फायदा हुआ जिसने संस्था का रूप लिया। अगर हमने गांधी को विश्व की शांति के लिए एक मसीहा के रूप में जन-मन तक स्थिर करने में सफलता पाई होती तो United Nations का General Secretary जो भी बनता वो बनने के बाद सबसे पहले साबरमती आश्रम आता कुछ पल हृदय कुंज में बिताता और विश्व शांति United Nations की उस धरती से क्या काम कर रहा है उसकी प्रेरणा साबरमती के तट से बापू की तपोभूमि से लेकर के जाता। लेकिन मेरी आत्मा कहती है कि आज नहीं तो कल, कभी न कभी ये होगा। हमारे देश को हमने उस रूप में देखना चाहिए। उस सामर्थ्य का अनुभव करना चाहिए और विश्व को इस विशालता के साथ जोड़ने का अविरत प्रयास करते रहना चाहिए।

श्रीमद राजचन्द्र जी, जैसा गुरूदेव राकेश जी कह रहे थे कि महात्मा गांधी को दुनिया की बड़ी बड़ी हस्तियां मिलने आती थी। आजादी के लिए वो दुनिया के बड़े-बड़ें लोगों से वो बात किया करते थे। लंबे-चौड़े, छह-साढ़े छह फुट उचांईयों वाले चिकनी चपटी गोरी चमड़ी वाले, लेकिन दुनिया का कोई व्यक्तित्व गांधी को प्रभावित नहीं कर पाया। और एक श्रीमद राजचन्द्र जी, दुबला-पतला, वो भी एक व्यापारी, दुकान पर बैठकर के खरीद-बिक्रि करने वाला सामान्य जीवन और सामान्य व्यक्तित्व, और गांधी में और श्रीमद राजचन्द्र जी की उम्र में ज्यादा फर्क नहीं था, ढाई वर्ष का सिर्फ फर्क था, उसके बावजूद भी श्रीमद राजचन्द्र की के व्यक्तिव की वो कौन सी विशालता होगी, वो कौन सी गहराई होगी, वो कौन सी ताकत होगी कि जिसने पूरे के पूरे गांधी को अपने में समेट लिया था।

मेरा यह सौभाग्य रहा, मैं बवानिया गया था जहां श्रीमद राजचन्द्र जी का जन्म हुआ, उनके पूर्वजों की जगह हैं और मै उनके परिवारजनों का आभारी हूं कि जिस प्रकार से स्थान को संभाला है। वहां से जाने के बाद मैने शिक्षकों से कहा था कि जब भी आप सौराष्ट्र में कहीं यात्रा के लिए जाते हैं तो कुछ पल बवानिया जरूर जाईए। हम मंदिर जाते हैं, एक अलग प्रकार के Vibrations आते हैं, एक अलग प्रकार की अनुभूति आती है। जो मैने अनुभव किया था, मैं मानता हूं आपको भी वही अनुभव होगा। श्रीमद राजचन्द्र जी के लिए जो स्थान बवानिया में बना हुआ है, मंदिर नहीं है, एक स्थान है लेकिन अंदर जाते ही आपको एक आध्यात्मिक चेतना की Vibrations की अनुभूति होगी।

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हमारे देश में Phd अनेक विषयों पर होती थीं, अनेक महापुरूषों की कविताओं के गद्य-पद्य रचनाओं पर Phd होती है। लेकिन मैं चाहूंगा कि श्रीमद राजचन्द्र जी जब 150 वर्ष मना रहे हैं तब विशेषकर गुजरात की युनिवर्सिटी और देश की युनिवर्सिटी भी श्रीमद राजचन्द्र जी की जो लेखनी है उनके कथन हैं, क्यों न उस पर पीएचडी करे? गांधी जी के जीवन पर उनके सारे कार्यकलाप का हर पल श्रीमद राजचन्द्र जी के जो पत्र हैं उन पत्रों का कैसा प्रभाव है। और देखिए गांधी जी विशेषता उम्र में फर्क नहीं था, जैन परंपरा में पले हुए थे श्रीमद राजचन्द्र जी, उसके बावजूद भी गांधी जी की भी सरलता देखिए, वर्ना कभी-कभी मनुष्य का एक वो बैरिस्टर थे। अफ्रीका में सफल आंदोलन करके आए थे। भारत में बड़े-बड़े नेता उनको मिलने आते थे। उन्होंने अपना स्थान बना लिया था उसके बावजूद भी आयु में कोई फर्क न होने के बाद भी वो अपने अपने बराबरी के व्यक्ति को वो सामान्य जीवन जीने वाले व्यक्ति अपने अंतर-मन के सारे सवाल लिखकर के उनको पूछा करते थे और श्रीमद राजचन्द्र जी बिना संकोच आध्यात्मिक जीवन चेतना और अधिष्ठान समेत पूरे ज्ञान का संपुट पूज्य बापू को पत्र के द्वारा पहुंचा देते थे। हम पूज्यु बापू और श्रीमद राजचन्द्र के उन पत्रों को देखें तो उस कालखंड का पता चलता है। गांधी की मनः स्थिति का पता चलता था और इतने बड़े आजादी के आंदोलन का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति भी अपने अंतर-मन की चिंता कितनी करता था, उसको संभालने के लिए क्या करना चाहिए यह श्रीमद राजचन्द्र जी से पूछते थे।

हमारी नई पीढ़ी को कुछ पता नहीं, और इसलिए इस वर्ष जब साबरमती आश्रम में शताब्दी वर्ष मना रहे हैं तब, देशभर से जो student tuarist के रूप में गुजरात आते हैं। मैं उन शिक्षकों को भी कहूंगा कि आप सबकुछ देखिए लेकिन कुछ पल उन बच्चों को साबरमती आश्रम में बिताने के लिए प्रेरित कीजिए। बवानिया जाकर दिखाईए कि कैसे महापुरूष हमारे देश में, इन्हीं दिनों में पैदा हुए हैं। ये कोई ऋषियों-मुनियों के युग की बात नहीं है। मैं गुरूदेव राकेश जी का जितना अभिनंदन करूं उतना कम हैं, जो ज्ञानमार्गी भी है और कर्ममार्गी भी हैं। उनके विचारों का पिंड श्रीमान लाल चन्द्र जी की प्रेरणा से भरा हुआ है और उनका जीवन उन आदर्शो की पूर्ति के लिए कर्म योग के अंदर दूर सुदुर जंगलों में रहने वाले लोगों की सेवा में खपा हुआ है। और मैने देखा है कि विश्व भर में एक बहुत बड़ा समूह है जो टीवी पर उनके जो व्याख्यान सुनने को मिलते हैं लगातार सुनने वाला एक बहुत बड़ा वर्ग है।

अभी मैं नीरदलैंड से आया, परसों में नीदरलैंड में था। दो चीजें मेरे लिए बड़ी ही नई थी मेरी जानकारी के लिए। भारत में जितने मार्ग महात्मा गांधी के नाम पर है उसके बाद दुनिया में सबसे अधिक मार्ग के नाम गांधी पर किसी के होंगे तो वो नीदरलैंड के है। मेरे लिए यह नया अनुभव, नई जानकारी है। दूसरा वहां सुरीनाम के लोग आकर के बसे हुए हैं, बहुत बड़ी मात्रा में वो Dutch Citizen हैं। भारत का भी IT profession से जुड़ा हुआ एक बहुत बड़ा युवा पीढ़ी वहां गई है। लेकिन कम से कम एक dozen लोग मुझे मिलकर के पकड़कर के खींचकर कहते थे कि परसों आप राकेश जी को मिलने वाले हो ना! और एक बात और करते थे, वो कहते थे कि राकेश जी वाले आपके साथ वाले फोटो ज़रा भेज देना। ये बाते सहज नहीं है जी, यह बाते अपने आप में एक बहुत बड़ा सामर्थ्य रखती है। जब हम पुज्य बापू का स्मरण करते हैं, साबरमती आश्रम का स्मरण करते हैं। 12 साल यहां तपस्या की है और पुज्य बापू की संकल्प शक्ति देखिए कि मैं बेमौत मरूंगा लेकिन आजादी के बिन लौटूंगा नहीं। कितनी बड़ी संकल्प शक्ति होगी जब उन्होंने साबरमती आश्रम को छोड़कर के निकले। 12 वर्ष की वो तपस्या जो साबरमती के आश्रम में हुई है उस तपस्या का सामर्थ्य कितना था कि महात्मा गांधी संकल्प के साथ निकले, आत्म विश्वास कितना था कि इसी शरीर के रहते हुए मैं अंग्रेजों को यहां से निकालकर रहूंगा, हिंदुस्तान को आज़ाद करके रहूंगा।

2019 में हम पूज्य बापू के 150 वर्ष मनाएंगे। ऐसे ही मनाएंगे क्या? जी नहीं, पूज्य बापू के 150 साल ऐसे ही मनाने का, किसी हिंदुस्तानी को हक नहीं है। पूज्य बापू के 150 साल मनाना मतलब गांधी की तरह कोई संकल्प लेकर के 150वीं जयंती तक उसको पूरा करके रहना और यह हर हिंदुस्तानी…। अप्रतीम संकल्प शक्ति के धनी थे वो। हमारे भीतर भी वो संकल्प शक्ति हो जिस संकल्प शक्ति को लेकर के हम भी निकल पड़े आज से और जब गांधी के 150 मनाएंगे तब हम इसको परिपूर्ण करके रहेंगें ये हर हिंदुस्तानी के दिल में… । साबरमती आश्रम आजादी के आंदोलन का कलेवर जहां तैयार हुआ, पिंड तैयार हुआ वहां से ये करते हुए आजाद हिंदुस्तान पूज्य बापू के सपनों का हिंदुस्तान बनाने के लिए हम भी कुछ जिम्मेवारी निभा सकते हैं।

साबरमती आश्रम की उनकी जितनी घटनाएं है उन घटनाओं में कहीं न कहीं स्वच्छता की चर्चा पूरे साल, प्रतिदिन रही है। स्वच्छता में वह Compromise नहीं करते थे। यह स्वच्छता का अभियान 2019 तक हर हिंदुस्तानी का स्वभाव बनना चाहिए। स्वच्छता हमारे रगों में, हमारे जहन में, हमारे विचार में, हमारे आचार में स्वच्छता का परम स्थान होना चाहिए और इससे बड़ी पूज्य बापू को कोई श्रद्धांजलि नहीं हो सकती है। स्वंय बापू कहते थे कि आजादी और स्वच्छता दोनों में से मेरी पहली पसंद स्वच्छता रहेगी। आजादी से भी ज्यादा महत्व गंदगी से मुक्ति का हिंदुस्तान, यह बापू का सपना था। आजादी के 70 साल हो चुके हैं, 2019 में 150वीं जयंती मना रहे हैं हम क्यों न उसके लिए करें।

पूज्य बापू को वैष्णव जनतो तेने रे कहिए बहुत प्रिय था, अभी भी हम लोगों ने सुना। इस देश के हर कोने में वैष्णव जनतो तेने रे कहिए हर विद्यार्थी को मालूम है, हर नागरिक को पता है, सबको पता है कि गांधी जी को प्रिय है। और इसकी ताकत देखिए, इसकी सहजता देखिए, आप 100 लोगों को पूछिए, 100 में से 90 लोग कहेंगे वैष्णव जनतो तेने रे कहिए। 100 में से 90 लोग कहेंगे, हिंदुस्तान के किसी भी कोने में जाकर देख लीजिए। फिर उनको दूसरा सवाल कहिए कि किस किस भाषा में है। मैं दावे से कहता हूं कि 10 लोग नहीं बता पाएंगे कि यह किस भाषा है? क्योंकि यह इस उंचाई से हमारे भीतर रम गया है कि भाषा के भेद खत्म हो चुके हैं। वैष्णव जन हमें अपना लगने लगा। यह सिद्धि होती है कि बाकी कोई भेद रेखा सामने नहीं आती है, लिप्त हो जाते हैं।

मैं राजनीति में बहुत देर से आया हूँ। इन दिनों राकेश भाई जहां काम करते हैं उस धरम पुर इलाके में कभी मुझे काम करने का सौभाग्य मिलता था। जवानी का लंबा समय आदिवासियों के बीच बिताने का मौका मिला मुझे, सामाजिक सेवा करते-करते। राजनीति में बड़ी देर से आया था और आया था तब भी इस पटरी पर कभी जाउंगा यह कभी सोचा नहीं था। मैं संगठन के लिए समर्पित था, संगठन के लिए काम करता था और तब में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करते समय एक बात बताता था। मैं कहता था वैष्णव जनतो तेने रे कहिए 400 साल पहले नरसिंह मेहता ने लिखा है। आज जितने भी Political Leaders है, जितने भी जनप्रतिनिधि है एक काम करे, वैष्णव जनतो तेने रे कहिए जे पीड़ पराई जाणे रे, यहां पर वैष्णव जन शब्द निकालकर लोक प्रतिनिधि तो तेने रे कहिए जे पीण पराई जाणे रे। आप देखिए, हिंदुस्तान में लोकप्रतिनिधि कैसा होना चाहिए, जनसेवक, जननायक कैसा होना चाहिए वैष्णव जन की हर पंक्ति में आप पल भर के लिए अपने आप को बिठाकर के देखिए, आप देखिए आपको किसी से मार्ग-दर्शन की जरूररत नहीं पड़ेगी। कहां जाना है उसका रास्ता साफ मिल जाएगा, कोई उलझन नहीं रहेगी। एक-एक शब्द के साथ जोड़कर के देख लेना, समय के आभाव में मैं उसका विस्तार नहीं कर रहा हूं, लेकिन ये सामर्थ्य उसमें है।

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भाईयो, बहनों, जरूरत पड़ने पर पूज्य बापू का नाम लेना यह तो हमने बहुत सालों से देखा है और कब बापू को भुला देना यह चतुराई भी हमने भलि-भांति देखी है। आज जब मैं साबरमती आश्रम में आया हूँ, श्रीमद राजचन्द्र जी की तपस्या, उनका ध्यान, उनके समानुभव से निकली हुई एक-एक बात उसका जब हम स्मरण कर रहे हैं तब, साबरमति आश्रम की शताब्दी मना रहे हैं तब, मैं देशवासियों से एक विषय पर गंभीरता से कुछ बात आज करना चाहता हूँ। इससे बड़ा कोई पवित्र स्थान नहीं हो सकता है एक बताने के लिए, श्रीमद राजचन्द्र जी के 150 साल हों साबरमती आश्रम की शताब्दी हो, 2019 में गांधी के 150 मनाने का तैयारी हो, इससे उत्तम अवसर मेरे मन की बात करने के लिए शायद कोई नहीं हो सकता है। मैं देश के वर्तमान माहौल की ओर अपनी पीड़ा और नाराजगी व्यक्त करना चाहता हूँ। जो देश चींटी को भी खिलाने में विश्वास करता है, जो देश मौहल्ले में दौड़ते, घूमते-फिरते कुत्तों को भी कुछ न कुछ खिलाने के लिए सोचता है, जो देश सुबह उठकर नदी तालाब के तट पर जाकर के मछलियों को खिलाने के लिए परंपरा रखता है, जिस देश के ये संस्कार हो, चरित्र हो, जिस देश में महात्मा गांधी जैसे महापुरूष ने अहिंसा का पाठ पढ़ाया हो, क्या हो गया है हमें कि अस्पताल में कोई Patient बचा न पाए हम? Operation विफल हो जाए, दवाई कारगर न हो और Patient की मृत्यु हो जाए और अचानक परिवारजन अस्पताल को आग लगा दे, डॉक्टरों को मार दें। क्या ये मेरा देश है? क्या ये पूज्य बापू का देश है? हम क्या कर रहे हैं और इसी चीज़ों को बढ़ावा मिल रहा हैं। अकस्मात अकस्मात होता है। कहीं दो Vehicle टकरा गए, दुर्भाग्य से किसी एक की मौत हो गई, किसी को चोट लग गई, न जान न पहचान लोग इकट्ठे हो जाते हैं। गाड़ियां जला देते हैं। क्या ये मेरा देश है?

गाय की रक्षा, गऊ की भक्ति महात्मा गांधी और विनोबा भावे से बढकर कोई हो नहीं सकता है। अगर गाय की भक्ति करनी है, गाय की रक्षा करनी है तो गांधी जी और विनोबा भावे जी ने हमें उत्तम राह दिखाई। उसी रास्ते पर देश को चलना ही पड़ेगा। उसी में देश का कल्याण है। विनोबा जी जीवन भर गऊ रक्षा के लिए अपने आप को आहुत करते रहे। मेरा सौभाग्य था मैं एक बार वर्धा गया, विनोबा जी के दर्शन के लिए। मैं उनसे मिला, प्रणाम किया, बैठा। विनोबा जी शब्दों की बड़ी ताकत रखते थे। मैं बैठा, परिचय हुआ, मैं बैठा सामने देख रहा था। वे मुझे कह रहे कि मर जाओ, मर जाओ। मैं हैरान था कि विनोबा जी कह रहे हैं मर जाओ-मर जाओ। मैं चुपचाप बैठा रहा। फिर धीरे से कहे गाय के लिए, गाय माता के लिए। आप कल्पना कर सकतें हैं कि विनोबा जी उस समय की सरकार के खिलाफ जीवन के अंत तक वो लड़ते रहे, अनेक बार अनशन किये गौरक्षा के लिए किए, गौभक्ति के लिए किए। भारत का संविधान भी हमें उसका महात्मय समझाता है लेकिन, क्या किसी इंसान को मारने का हम मिल जाता है? क्या ये गौभक्ति है, क्या ये गौरक्षा है? पूज्य बापु का रास्ता ये नहीं हो सकता। विनोबा भावे का जीवन हमें ये सन्देश नहीं देता है। और इसलिए साबरमती आश्रम की शताब्दी पर्व पर और पूज्य श्रीमद राजचन्द्र जी का 150वां जन्मवर्ष मनाने तब, हर हिंदुस्तानी के दिलो-दिमाग में, ये हमारे मूलभूत संस्कार हैं, हमारे मूलभूत पंरपरा है - अहिंसा। ये हम लोगों का जीवन धर्म रहा है। हम कैसे आपा खो रहे हैं। डॉक्टरों को मार रहे हैं। अकस्मात हो जाए ड्राइवरों को मार रहे हैं। गाय के नाम पर इंसानों को मार रहे हैं।

मुझे बचपन की एक घटना याद है। सत्य घटना है मेरे जीवन की ।और पहली बार मैं शायद आज उस बात को कह रहा हूँ। एक समय था जब मुझे लिखने की आदत हुआ करती थी, मैं लिखता था, तब मेरे मन में था कि मैं उस विषय पर लिखूंगा, लेकिन मैं नहीं लिख पाया। लेकिन आज मेरा मन करता है, एक ऐसी पवित्र जगह है, जिस पवित्र जगह से मन के भीतर की सच्चाई का प्रकट होना बहुत स्वभाविक है।

मैं बालक था। मेरे गांव में मेरा घर एक ऐसी छोटी सी सांकड़ी सी गलियारी में है। तो वहां पर बिलकुल पुराने जमाने के जैसे गांव रहते हैं, सटे हुए घर हैं। हमारे घर के ही नजदीक में सामने की तरफ एक परिवार था, जो ईमारत में कड़ियां का काम करता था। Messon का काम करता था। एक प्रकार से मजदूरी जैसा काम था। उस परिवार में संतान नहीं था। उनकी शादी के कई वर्ष हो गए लेकिन उनको संतान नहीं था। परिवार में भी एक तनाव रहता था कि उनके घर में संतान नहीं है। वो बडी धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। बहुत बड़ी उम्र में उनके यहां एक संतान का जन्म हुआ। वो संतान बड़ा हो रहा था। अब छोटी सांकड़ी गली थी। सुबह-सुबह गाय को भी एक discipline की आदत होती है। गाय घरों के पास से गुजरती है तो घर वाले रोटी खिलाते हैं। तो एक गाय थी जिसका हमारे मुहल्ले से आना और हर परिवार के लोग बाहर निकलकर उसको एक रोटी खिलाते थे। जिनके घर में संतान जन्म हुआ था, वो भी रोटी खिलाते थे। एक बार अचानक हड़कंप हो गई, शायद कुछ बच्चों ने पटाखे फोड़ दिए थे, क्या हुआ वो घटना अब मुझे पूरी याद नहीं रही। लेकिन वो गाय हड़बड़ा गई और दौड़ते-दौड़ते स्थिति यह बनी, वो जो बच्चा उनका मुश्किल से 3, 4 या 5 साल का होगा, वो भी दौड़ने लग गया। उसको समझ नहीं आया कि इधर दौडू या उधर दौड़ू और जाने अंजाने में वो गया के पैर के नीचे आ गया। इतने सालों में परिवार में एक बच्चा पैदा हुआ था और गाय के पैर के नीचे आने से उसकी मृत्यु हो गई। आप कल्पना कर सकते हैं कि उस परिवार का माहौल क्या होगा? बड़े दुख के दिन थे लेकिन दूसरे दिन सुबह से..ये दृश्य मैं भूल नहीं सकता हूँ, दूसरे दिन सुबह से ही वो गाय उनके घर के सामने आकर खड़ी हो गई। किसी भी घर के सामने जाकर रोटी नहीं खाई। वो परिवार भी उसे रोटी खिलाता था, नहीं खाई। गाय के आंसु कभी नहीं रूके। 1 दिन, 2 दिन, 5 दिन गाय न खाना खा रही है , गाय न पानी पी रही है। एक तरफ परिवार को एकलौते संतान की मृत्यु का शोक था। पूरे मौहल्ले में दुख का वातावरण था। गांव में एक परिवार का मातम होता है। लेकिन गाय पश्चाताप में डूबी हुई थी। कई दिनों तक उसने कुछ नहीं खाया, कुछ नहीं पिया। उसकी आंख के आंसु सूख गए। सारे मुहल्ले के लोग, उस परिवार के लोग भी लाख कोशिश करते रहे लेकिन गाय ने अपना संकल्प नहीं छोड़ा और उस संतान, बालक की मृत्यु उसके पैर के नीचे हुई है, इस पीड़ा से मात्र, उस गाय ने अपना शरीर छोड़ दिया। एक बालक की मृत्यु के पश्चाताप में गाय को बलिदान देते हुए मैने बचपन में देखा है। वो दृश्य आज भी मेरे सामने जिंदा है। आज जब मैं सुनता हूं कि गाय के नाम पर किसी की हत्या की जाए, वो निर्दोष है कि गुनहगार है वो कानून कानून का काम करेगा, इसांन को कानून हाथ में लेने का हक नहीं है।

साबरमती आश्रम की शताब्दी मनाते हो, गांधी जी और विनोबा जी जैसे गाय के लिए समर्पित जीवन हमारे सामने दृष्टांत हो, मैं देशवासियों से आग्रह करूंगा कि हिंसा समस्याओं का समाधान नहीं है। उस डॉक्टर का कोई दोष नहीं है, जो आपके परिवार जन की सेवा कर रहा था, लेकिन आपके परिवारजन को बचा नहीं पाया। और फिर भी आपको शिकायत हो तो कानूनी व्यवस्था है। अकस्मात हो जाता है, किसी निर्दोष की ज़िंदगी जाती है वो अकस्मात है। और इसलिए गांधी की इस धरती में हर किसी का दायित्व है एक संतुलित जीवन जीने का। हर किसी की जिम्मेवारियों को अपनी जिम्मेवारियों के साथ जोड़ लीजिए और तब जाकर के हम पुज्य बापू के सपनों का देश बना सकते हैं। 2022 में भारत की आजादी के 75 साल हो रहे हैं। जिन महापुरूषों ने आजादी के लिए बलिदान दिया, जवानी जेलों में काट दी, कुछ कालापानी में जिंदगी गुजारते रहे, कुछ फांसी के तख्त पर चढ़ गए, कुछ जीवन भर लड़ते रहे उन सबका सपना था कि देश को आजाद, देश को समृद्ध, देश के गरीब से गरीब के कल्याण की ओर देखने का। 2022 में आजादी के 75 साल हो रहे हैं, 5 साल हमारे पास हैं, सवा सौ करोड़ देशवासी अगर संकल्प कर ले कि 2022 में हमें हिंदुस्तान को यहां ले जाना है जो हमारे आजादी के दिवानों के सपने थे, उसे पूरा करने के लिए ले जाना है। जिस साबरमती के आश्रम की धरती से आजद हिंदुस्तान के सपनो को संजोया गया था, राष्ट्र को पिरोया गया था, सपनों को पूरा करने के लिए आहुति को स्वीकार किया गया था, न्याय लड़ने के लिए हर प्रकार के अहिंसक शस्त्रों का इस्तेमाल किया गया था, सत्याग्रह का मार्ग अपनाया गया था। 2022 आजादी के 75 साल हो रहे हैं। संकल्प का, कर्म का, नया करने का, जीवन को लगा देने का, 5 साल जिंदगी का बहुमुल्य समय 2022 हम हर हिंदुस्तानी 125 करोड़ देशवासी एक कदम अगर आगे चलते हैं तो हिंदुस्तान 125 करोड़ कदम आगे चलता है। इन सपनों को लेकर के चलें।

श्रीमद राजचन्द्र जी जिन्होनें इतनी बड़ी आध्यात्मिक चेतना, कर्म मार्ग, ज्ञान मार्ग, अंतः चेतना को जगाने का रास्ता दिखाया। पूज्य बापू जिन्होंने श्रीमद राजचन्द्र जी की बात को जीकर के प्रयोग सफल करके दिखाया है, ऐसे दोनों महापुरूषों को एक साथ स्मरण करने के इस अवसर पर, मैं फिर एक बार...मुझे आप सबके बीच आने का अवसर मिला, इतनी बड़ी तादात में देश और दुनिया से आए लोगां का उनके दर्शन का सौभाग्य मिला। राकेश जी से मिलने का अवसर मिला। मैं अपना अहो भाग्य मानता हूं, बहुत-बहुत धन्यवाद।

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List of Outcomes: Prime Minister's State Visit to Trinidad & Tobago
July 04, 2025

A) MoUs / Agreement signed:

i. MoU on Indian Pharmacopoeia
ii. Agreement on Indian Grant Assistance for Implementation of Quick Impact Projects (QIPs)
iii. Programme of Cultural Exchanges for the period 2025-2028
iv. MoU on Cooperation in Sports
v. MoU on Co-operation in Diplomatic Training
vi. MoU on the re-establishment of two ICCR Chairs of Hindi and Indian Studies at the University of West Indies (UWI), Trinidad and Tobago.

B) Announcements made by Hon’ble PM:

i. Extension of OCI card facility upto 6th generation of Indian Diaspora members in Trinidad and Tobago (T&T): Earlier, this facility was available upto 4th generation of Indian Diaspora members in T&T
ii. Gifting of 2000 laptops to school students in T&T
iii. Formal handing over of agro-processing machinery (USD 1 million) to NAMDEVCO
iv. Holding of Artificial Limb Fitment Camp (poster-launch) in T&T for 50 days for 800 people
v. Under ‘Heal in India’ program specialized medical treatment will be offered in India
vi. Gift of twenty (20) Hemodialysis Units and two (02) Sea ambulances to T&T to assist in the provision of healthcare
vii. Solarisation of the headquarters of T&T’s Ministry of Foreign and Caricom Affairs by providing rooftop photovoltaic solar panels
viii. Celebration of Geeta Mahotsav at Mahatma Gandhi Institute for Cultural Cooperation in Port of Spain, coinciding with the Geeta Mahotsav celebrations in India
ix. Training of Pandits of T&T and Caribbean region in India

C) Other Outcomes:

T&T announced that it is joining India’s global initiatives: the Coalition of Disaster Resilient Infrastructure (CDRI) and Global Biofuel Alliance (GBA).