यह दशक और सदी भारत में नए-नए मल्टीनेशनल्स के निर्माण की है : प्रधानमंत्री मोदी
मैनेजमेंट का मतलब सिर्फ कंपनियां संभालना ही नहीं होता, जिंदगियां संभालना भी होता है : प्रधानमंत्री मोदी
'वर्क फ्रॉम एनिवेयर' के कॉन्सेप्ट से पूरी दुनिया ग्लोबल विलेज से ग्लोबल वर्कप्लेस में बदल गई है : प्रधानमंत्री मोदी

जय जगन्‍नाथ !
जय माँ समलेश्‍वरी !

ओडिशार भाई भउणी मानकु मोर जुहार

नूआ वर्ष समस्तंक पाइं मंगलमय हेउ ।

ओडिशा के माननीय राज्‍यपाल प्रोफेसर गणेशी लाल जी, मुख्‍यमंत्री मेरे मित्र श्रीमान नवीन पटनायक जी, केन्‍द्रीय कैबिनेट में मेरे सहयोगी, डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक जी, ओडिशा के ही रतन भाई धर्मेन्‍द्र प्रधान जी, श्री प्रताप चंद्र सारंगी जी, ओडिशा सरकार के मंत्री, सांसद और विधायकगण, IIM सम्‍भलपुर की चेयरपर्सन श्रीमति अरुंधति भट्टाचार्य जी, डायरेक्टर प्रोफेसर महादेव जायसवाल जी, faculty staff और मेरे सभी युवा साथियों !

आज IIM कैंपस के शिलान्यास के साथ ही ओडिशा के युवा सामर्थ्य को नई मज़बूती देने वाली एक नवीन शिला भी रखी गई है। IIM संबलपुर का परमानेंट कैंपस, ओडिशा की महान संस्कृति और संसाधनों की पहचान के साथ ओडिशा को मैनेजमेंट की दुनिया में नई पहचान दिलाने वाला है। नए वर्ष की शुरुआत में, इस शुभारंभ ने हम सबके आनंद को दोगुना कर दिया है।

साथियों,

बीते दशकों में एक ट्रेंड देश ने देखा, बाहर बने Multi-nationals बड़ी संख्या में आए और इसी धरती पर आगे भी बढ़े। ये दशक और ये सदी, भारत में नए-नए मल्टीनेशनल्स के निर्माण का है। भारत का सामर्थ्‍य दुनिया में छा जाए इसके लिए ये उत्तम कालखंड आया है। आज के Start-ups ही कल के Multi-nationals हैं। और ये स्टार्ट अप्स ज्यादातर किन शहरों में बन रहे हैं? जिन्हें हम आमतौर की भाषा में टीयर-2, टीयर-3 सिटिज कहते हैं, आज Start-ups का प्रभाव उन जगहों पर देखने को मिलता है। इन स्टार्ट अप्स को, भारतीय युवाओं की नई कंपनियों को और आगे बढ़ने के लिए, उसके लिए बेहतरीन मैनेजर्स चाहिए। देश के नए क्षेत्रों से, नए अनुभव लेकर निकल रहे मैनेजमेंट एक्सपर्ट्स, भारत की कंपनियों को नई ऊंचाई देने में बड़ी भूमिका निभाएंगे।

साथियों,

मैं कहीं पढ़ रहा था कि इस साल कोविड संकट के बावजूद भारत ने पिछले सालों की तुलना में ज्यादा Unicorn दिए हैं। आज खेती से लेकर स्पेस सेक्टर तक जो अभूतपूर्व रिफॉर्म्स किए जा रहे हैं, उनमें स्टार्ट अप्स के लिए स्कोप लगातार बढ़ रहा है। आपको इन नई संभावनाओं के लिए खुद को तैयार करना है। आपको अपने करियर को भारत की आशाओं और अपेक्षाओं के साथ जोड़ना है। इस नए दशक में Brand India को नई Global पहचान दिलाने की जिम्मेदारी हम सब पर है। विशेष रूप से हमारे नौजवानों पर है।

साथियों,

IIM सम्बलपुर का ध्येय मंत्र है- नवसर्जनम् शुचिता समावेशत्वम्। यानि Innovation, Integrity और Inclusiveness, आपको इस मंत्र की ताकत के साथ देश को अपनी मैनेजमेंट स्किल दिखानी है। आपको नए निर्माण को तो प्रोत्साहित करना ही है, सभी के समावेश पर भी जोर देना है, जो विकास की दौड़ में पीछे छूट गया है, उसे भी साथ लेना है। जिस जगह पर IIM का परमानेंट कैंपस बन रहा है, वहां पहले से मेडिकल यूनिवर्सिटी है, इंजीनियरिंग यूनिवर्सटी है, तीन और यूनिवर्सिटीज हैं, सैनिक स्कूल है, CRPF औऱ पुलिस के ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट हैं। जो लोग संबलपुर के बारे में ज्यादा नहीं जानते, वो भी अब अंदाजा लगा सकते हैं कि IIM जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के बनने के बाद ये क्षेत्र कितना बड़ा एजुकेशन हब बनने जा रहा है। संबलपुर IIM और इस क्षेत्र में पढ़ने वाले Students-प्रोफेशनल्स के लिए सबसे खास बात ये होगी कि ये पूरा इलाका ही एक तरह से आपके लिए एक प्रैक्टिकल लैब की तरह है। ये जगह प्राकृतिक रूप से इतनी भव्य है, ओडिशा का गौरव हीराकुड बांध, आप से कोई ज्‍यादा दूर नहीं है। बांध के पास डेबरीगढ़ सेंचुरी अपने आप में खास तो है ही, इसके बीच में वो पुण्य स्थान भी है जिसे बीर सुरेंद्र साई जी ने अपना बेस बनाया था। इस एरिया के टूरिज्म पोटेंशियल को और बढ़ाने के लिए यहां के Students के Ideas और मैनेजिरियल स्किल्स बहुत काम आ सकते हैं। ऐसे ही संबलपुरी टेक्सटाइल भी देश-विदेश में मशहूर है। 'बांधा इकत' फैब्रिक, उसका unique pattern, design और texture बहुत ही खास है। इसी तरह इस क्षेत्र में हैंडीक्राफ्ट का इतना काम होता है, सिल्वर फिलिग्री, पत्थरों पर नक्काशी, लकड़ी का काम, ब्रास का काम, हमारे आदिवासी भाई-बहन भी इसमें बहुत पारंगत हैं। IIM के छात्र-छात्राओं के लिए संबलपुर के लोकल को वोकल बनाना, उनका एक अहम दायित्व है।

साथियों,

आप ये भी भली-भांति जानते हैं कि संबलपुर और उसके आसपास का इलाका अपनी mineral और mining strength के लिए भी जाना जाता है। हाई-ग्रेड आयरन ओर, बॉक्साइट, क्रोमाइट, मैंगनीज, कोल-लाइमस्टोन से लेकर गोल्ड, जेमस्टोन, डायमंड, यहां की प्राकृतिक संपदा को अनेक गुना बढ़ाते हैं। देश के इन Natural assets का बेहतर management कैसे हो, कैसे ये पूरे क्षेत्र का विकास करें, लोगों का विकास करें, इसे लेकर भी आपको नए Ideas पर काम करना है।

साथियों,

ये मैंने आपको कुछ ही उदाहरण दिए हैं। ओडिशा में वन संपदा, खनिज, रंगबती-संगीत, आदिवासी आर्ट और क्राफ्ट, स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की कविताएं, यहां क्या नहीं है ओडिशा के पास। जब आप में से अनेक साथी, संबलपुरी Textile या फिर कटक की फिलिग्री कारीगरी उस को Global पहचान दिलाने में अपने कौशल का इस्तेमाल करेंगे, यहां के टूरिज्म को बढ़ाने के लिए काम करेंगे, तो आत्मनिर्भर भारत अभियान के साथ ही ओडिशा के विकास को भी और गति मिलेगी और नई ऊँचाई मिलेगी।

साथियों,

लोकल को ग्लोबल बनाने के लिए आप सभी IIM के युवा साथियों को नए और Innovative समाधान तलाशने हैं। मुझे विश्वास है, हमारे IIMs आत्मनिर्भरता के देश के मिशन में स्थानीय उत्पादों और अंतरराष्ट्रीय कोलैबोरेशन के बीच, ब्रिज का काम कर सकते हैं। आप सभी का जो इतना विशाल और दुनिया के कोने-कोने में फैला Alumni नेटवर्क है, वो भी इसमें बहुत मदद कर सकते हैं। साल 2014 तक हमारे यहां 13 IIM थे। अब देश में 20 IIM हैं। इतना बड़ा Talent Pool, आत्मनिर्भर भारत अभियान को बहुत विस्तार दे सकता है।

साथियों,

आज दुनिया में Opportunities भी नई हैं, तो मैनेजमेंट की दुनिया के सामने challenges भी नए हैं। इन challenges को भी आपको समझना होगा। अब जैसे, Additive printing या 3D printing पूरी production economy को ही change कर रही है। अभी आपने न्यूज़ में सुना होगा, पिछले महीने ही एक कंपनी ने चेन्नई के पास एक पूरी दो मंज़िला इमारत को ही 3D print किया है। जब-जब Production के तरीके बदलेंगे तो logistics और supply chain से जुड़ी व्यवस्थाओं में भी बदलाव होगा। इसी तरह, टेक्नॉलजी आज हर geographical limitations को दूर कर रही है। Air Connectivity ने 20वीं सदी के बिजनेस को Seamless बनाया, तो डिजिटल कनेक्टिविटी 21वीं सदी के बिजनेस को ट्रांसफॉर्म करने वाली है। Work from anywhere के concept से पूरी दुनिया Global Village से Global work-place में बदल गई है। भारत ने भी इसके लिए हर ज़रूरी रिफॉर्म्स बीते कुछ महीनों में तेज़ी से किए हैं। हमारी कोशिश है कि हम ना सिर्फ समय के साथ चलें, बल्कि समय से पहले चलने की भी कोशिश करें।

साथियों,

जैसे काम के तरीके बदल रहे हैं, वैसे ही management skills की डिमांड भी बदल रही हैं। अब top down या top heavy management के बजाय collaborative, innovative और transformative management का समय है। ये Collaboration अपने साथियों के साथ ज़रूरी है ही, bots और algorithms भी अब team members के रूप में हमारे साथ हैं। इसलिए, आज जितना human management ज़रूरी है उतना ही technological management भी आवश्यक है। मैं तो आपसे भी और देशभर के IIMs से और बिजनेस मैनेजमेंट से जुड़े दूसरे स्कूलों से एक आग्रह करुंगा। कोरोना संक्रमण के इस पूरे दौर में टेक्नॉलॉजी और टीम वर्क की भावना से देश ने कैसे काम किया, किस प्रकार से 130 करोड़ देशवासियों की सुरक्षा के लिए कदम उठाए गए, जिम्‍मेवारियाँ उठाई गईं, collaboration किया गया, जन भागीदारी का अभियान चलाया गया। इन सारे विषयों पर रिसर्च होना चाहिए, document तैयार होने चाहिए। 130 करोड़ के देश ने कैसे समय-समय पर Innovate किया। Capacity और Capability को कैसे भारत ने बहुत कम समय में ही Expand किया। इसमें मैनेजमेंट का बहुत बड़ा सबक है। कोविड के दौरान देश ने PPE किट का, मास्क का, वेंटिलेटर का परमानेंट सॉल्यूशन निकाल लिया है।

साथियों,

हमारे यहां एक परंपरा बन गई थी कि Problem solving के लिए Short Term अप्रोच अपनाई जाए। देश अब उस सोच से बाहर निकल गया है। अब हमारा जोर तात्कालिक जरूरतों से भी आगे बढ़कर Long term Solution पर है। और इसमें मैनेजमेंट का भी एक बहुत अच्छा सबक सीखने को मिलता है। हमारे बीच में अरुंधति जी मौजूद हैं। देश में गरीबों के लिए जनधन खातों के लिए किस तरह की प्लानिंग हुई, किस तरह Implementation हुआ, इसका मैनेजमेंट किया गया, इस पूरे प्रोसेस की तो वो भी गवाह रही हैं क्‍योंकि उस समय वो बैंक सम्‍भालती थीं। जो गरीब, कभी बैंक के दरवाजे तक नहीं जाता हो, ऐसे 40 करोड़ से ज्यादा गरीबों के बैंक अकाउंट खोलना, इतना भी आसान नहीं है। और ये बातें मैं आपको इसलिए बता रहा हूं क्योंकि मैनेजमेंट का मतलब बड़ी-बड़ी कंपनियां संभालना ही नहीं होता। सच्‍चे अर्थ में तो भारत जैसे देश के लिए मैनेजमेंट का मतलब जिंदगियां संभालना भी होता है। मैं आपको एक और उदाहरण देता हूं और ये इसलिए अहम है क्योंकि ओडिशा के ही संतान भाई धर्मेंद्र प्रधान जी की इसमें बड़ी भूमिका रही है।

साथियों,

हमारे देश में रसोई गैस, आजादी के करीब-करीब 10 साल बाद आ ही गई थी। लेकिन बाद के दशकों में रसोई गैस एक लक्जरी बन गई। रहीसी लोगों की प्रतिष्‍ठा बन गई। लोगों को एक गैस कनेक्शन के लिए इतने चक्कर लगाने पड़ते थे, इतने पापड़ बेलने पड़ते थे और फिर भी उन्हें गैस नहीं मिलती थी। हालत ये थी कि साल 2014 तक, आज से 6 साल पहले, 2014 तक देश में रसोई गैस की कवरेज सिर्फ 55 परसेंट थी। जब अप्रोच में परमानेंट सॉल्यूशन का भाव न हो तो यही होता है। 60 साल में रसोई गैस की कवरेज सिर्फ 55 परसेंट। अगर देश इसी रफ्तार से चलता तो सबको गैस पहुंचने में ये शताब्दी भी आधी और बीत जाती। 2014 में हमारी सरकार बनने के बाद हमने तय किया कि इसका परमानेंट सॉल्यूशन करना ही होगा। आप जानते हैं आज देश में गैस करवेज कितनी है? 98 प्रतिशत से भी ज्यादा। और यहां मैनेजमेंट से जुड़े आप सभी लोग जानते हैं कि शुरुआत करके थोड़ा बहुत आगे बढ़ना आसान होता है। असली चैलेंज होता है कवरेज को 100 परसेंट बनाने में।

साथियों,

फिर सवाल ये है कि हमने ये कैसे प्राप्‍त किया, कैसे अचीव किया? ये आप मैनेजमेंट के साथियों के लिए बहुत अच्छी केस स्टडी है।

साथियों,

हमने एक तरफ प्रॉबलम को रखा, एक तरफ परमानेंट सॉल्यूशन को रखा। चुनौती थी नए डिस्ट्रिब्यूटर्स की। हमने 10 हजार नए गैस डिस्ट्रिब्यूटर कमीशन किए। चुनौती थी बॉटलिंग प्लांट कपैसिटी की। हमने देशभर में नए बॉटलिंग प्लांट लगाए, देश की क्षमता को बढ़ाया। चुनौती थी Import Terminal Capacity की। हमने इसे भी सुधारा। चुनौती थी Pipe-line Capacity की। हमने इस पर भी हजारों करोड़ रुपए खर्च किए और आज भी कर रहे हैं। चुनौती थी गरीब लाभार्थियों के चयन की। हमने ये काम भी पूरी पारदर्शिता से किया, विशेष तौर पर उज्जवला योजना शुरू की।

साथियों,

परमानेंट सॉल्यूशन देने की इसी नीयत का नतीजा है कि आज देश में 28 करोड़ से ज्यादा गैस कनेक्शन हैं। 2014 से पहले देश में 14 करोड़ गैस कनेक्शन थे। सोचिए, 60 साल में 14 करोड़ गैस कनेक्शन। हमने पिछले 6 वर्षों में देश में 14 करोड़ से ज्यादा गैस कनेक्शन दिए हैं। अब लोगों को रसोई गैस के लिए भागना नहीं पड़ता, चक्कर नहीं लगाना पड़ता। यहां ओडिशा में भी उज्जवला योजना की वजह से करीब-करीब 50 लाख गरीब परिवारों को गैस कनेक्शन मिला है। इस पूरे अभियान के दौरान देश ने जो कपैसिटी बिल्डिंग की, उसी का नतीजा है कि ओडिशा के 19 जिलों में सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क तैयार हो रहा है।

साथियों,

ये उदाहरण मैंने आपको इसलिए भी समझाया क्योंकि जितना आप देश की जरूरतों से जुड़ेंगे, देश की चुनौतियों को समझेंगे, उतने ही अच्छे मैनेजर्स भी बन पाएंगे और उतने ही अच्‍छे उत्तम सौल्‍यूशंस भी दे पाएंगे। मैं समझता हूं, हायर एजुकेशन से जुड़े संस्थानों के लिए जरूरी है कि वो सिर्फ अपनी-अपनी Expertise तक ही फोकस्ड ना रहें, बल्कि उनका दायरा व्यापक होना चाहिए। इसमें बड़ी भूमिका वहां पढ़ने आने वाले Students की होती है। नई National Education Policy में Broad Based, Multi-disciplinary, Holistic approach पर बल दिया गया है। Professional Education के समाज के साथ जो Silos आ जाते थे, उनको दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। हम राष्ट्र के विकास के लिए हर किसी को main-stream में, मुख्यधारा में लाना चाहते हैं। ये भी तो Inclusive nature ही है। मुझे भरोसा है, आप इस vision को पूरा करेंगे। आपके प्रयास, IIM सम्बलपुर के प्रयास, आत्मनिर्भर भारत के अभियान को सिद्ध करेंगे। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, आपण मानकु बहुत बहुत धन्यवाद। नमस्‍कार !

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