"अंग्रेजों के अन्याय के खिलाफ गांधी जी के नेतृत्व में जो आंदोलन चला, उसने अंग्रेजी हुकूमत को हम भारतीयों के सामूहिक सामर्थ्य का एहसास करा दिया था"
“एक धारणा विकसित की गई थी कि हमें वर्दीधारी कर्मियों से सावधान रहना होगा। लेकिन अब यह बदल गया है। जब लोग अब वर्दीधारी कर्मियों को देखते हैं तो उन्हें मदद का आश्वासन मिलता है”
“देश के सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए तनाव मुक्त प्रशिक्षण गतिविधियां समय की आवश्यकता है”

गुजरात के गवर्नर, आचार्य देवव्रत जी, गृहमंत्री श्री अमित शाह, मुख्यमंत्री श्री भू‍पेंद्र पटेल, राष्‍ट्रीय रक्षा यूनिवर्सिटीज़ के वाइस चासंलर, विमल पटेल जी, ऑफिसर्स, टीचर्स, यूनिवर्सिटी के छात्रगण, अभिभावक गण, अन्‍य महानुभाव, देवियों और सज्जनों!

राष्‍ट्रीय रक्षा यूनिवसिर्टी में आना मेरे लिए एक विशेष आनंद का अवसर है। जो युवा देशभर में रक्षा के क्षेत्र में जो अपना कैरियर बनाना चाहते हैं, और रक्षा का क्षेत्र सिर्फ यूनिफॉर्म और डंडा नहीं है, वो क्षेत्र बहुत विस्‍तृत है। और उसमें well trained men power, ये समय की मांग है। और इसलिए रक्षा के क्षेत्र में 21वीं सदी की जो चुनौतियां हैं, उन चुनौतियों के अनुकूल हमारी व्‍यवस्‍थाएं भी विकसित हों और उन व्‍यवस्‍थाओं को संभालने वाले व्‍यक्तित्‍व का भी विकास हो और उस संदर्भ में उस एक विज़न को ले करके राष्‍ट्रीय रक्षा यूनिवसिर्टी का जन्‍म हुआ। प्रारंभ में गुजरात में वो रक्षा शक्ति यूनिवर्सिटी के रूप में जानी जाती थी। बाद में भारत सरकार ने उसको एक पूरे देश के लिए अहम यूनिवर्सिटी के रूप में मान्‍यता दी और आज ये एक प्रकार से देश का नजराना है, देश का गहना है, जो राष्‍ट्र की रक्षा के लिए यहां जो चिंतन, मनन, शिक्षा, ट्रेनिंग होगी वो राष्‍ट्र रक्षा के लिए आने वाले कालखंड में देश के अंदर एक नया विश्‍वास पैदा करेगी। आज जो छात्र-छात्राएं यहां से पढ़ करके निकल रहे हैं, उन्‍हें और उनके परिवार के सदस्‍यों को मेरी तरफ से मैं बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

आज एक और पावन अवसर है। आज के ही दिन नमक सत्‍याग्रह के लिए इसी धरती से दांडी यात्रा की शुरूआत हुई थी। अंग्रेजों के अन्‍याय के खिलाफ गांधीजी के नेतृत्‍व में जो आंदोलन चला उसने अंग्रेजी हुकूमत को हम भारतीयों के सामूहिक सामर्थ्य का एहसास करा दिया था। मैं दांडी यात्रा में सम्मिलित हुए सभी सत्याग्रहियों का पुण्य स्मरण करता हूं और आजादी के 75 साल जब मना रहे हैं तब ऐसे वीर स्वतंत्रता सेनानियों आदरपूर्वक श्रद्धांजलि देता हूं।  

साथियों,

आज का दिन स्टूडेंट्स, टीचर्स, पेरेंट्स के लिए बहुत बड़ा दिन है, लेकिन मेरे लिए भी एक यादगार अवसर है। जैसे अभी अमित भाई बता रहे थे- इस कल्पना के साथ इस यूनिवर्सिटी का जन्‍म हुआ था और स्वाभाविक है, लंबे अर्से तक मंथन किया, बहुत एक्‍सपर्ट लोगों के साथ मैंने संवाद किया। दुनिया में इस‍ दिशा में क्‍या-क्‍या हो रहा है उसका अध्‍ययन किया, और सारी मशक्‍कत के बाद एक छोटे से स्‍वरूप ने यहां गुजरात की धरती पर आकार लिया। हम देख रहे हैं कि अंग्रेजों के जमाने में जो देश में रक्षा का क्षेत्र था, उस समय सामान्‍य तौर पर वह law and order routine व्‍यवस्‍था का हिस्‍सा था। और अंग्रेज भी अपनी दुनिया चलती रहे, इसलिए जरा दमखम वाले, लंबे-चौड़े कद वाले, डंडा चलाये तो सबको पता चल जाए जो कि वो क्‍या है; इस इरादे से लोगों को recruit करते थे। जो racial masses हैं कभी उसमें से चुनौती करते थे, और उनका काम भारत के नागरिकों पर डंडा चलाना, यही एक प्रकार से उनका काम था, ताकि अंग्रेज सुख-चैन से अपनी दुनिया चला सकें। लेकिन आजादी के बाद उस पर बहुत reforms की आवश्‍यकता थी, आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्‍यकता थी। लेकिन दुर्भाग्‍य से हमारे देश में उस दिशा में जितना काम होना चाहिए, हम उसमें बहुत पीछे रह गए। और उसके कारण आज भी सामान्‍य जो perception बना हुआ है वो perception खास करके पुलिस के संबंध में, ये perception ऐसा बना हुआ है कि भाई इनसे बचकर रहें, इनसे जरा दूर रहो।

यूनिफॉर्म में हमारे देश में सेना भी है, लेकिन सेना के लिए perception क्‍या है, कहीं कोई संकट की घड़ी है और दूर से भी सेना दिखाई दे तो उसको लगता है कि अब तो कोई संकट नहीं है, ये लोग आ गए हैं, एक अलग perception है। और इसलिए भारत में ऐसे manpower को सुरक्षा क्षेत्र में तैयार करके लाना बहुत जरुरी है, जो सामान्‍य मानवी के मन में एक मित्रता की अनुभूति करे, एक विश्‍वास की अनुभूति करे। और इसलिए हमारी पूरे ट्रेनिंग मॉड्यूल को बदलने की बहुत आवश्‍यकता थी। उसी गहन चिंतन में से भारत में पहली बार इस प्रकार का प्रयोग हुआ था, जिसका आज विस्तार होते-होते राष्‍ट्रीय रक्षा यूनिवसिर्टी के रूप में आपके सामने प्रस्‍तुत है।

कभी-कभी लगता था कि रक्षा मतलब यूनिफॉर्म है, पॉवर है, हाथ में डंडा है, पिस्‍तौल है। आज वो जमाना चला गया है। आज रक्षा के क्षेत्र ने अनेक रंग-रूप ले लिए हैं, इसमें अनेक चुनौतियां पैदा हो गई हैं। पहले के समय कहीं एक जगह पर घटना होती थी तो उसकी खबर गांव के दूसरे कोने में पहुंचते-पहुंचते घंटे लग जाते थे और दूसरे गांव में पहुंचते-पहुंचते तो दिन लग जाते थे और पूरे राज्‍य में पहुंचते-पहुंचते 24 घंटे, 48 घंटे लग जाते थे, और उस दरम्‍यान पुलिस बेड़ा अपनी व्‍यवस्‍थाएं कर लेता था, चीजों को संभाल पाता था। आज तेज गति से fiction of second में कम्‍युनिकेशन होता है, चीजें फैल जाती हैं।

ऐसे समय किसी एक जगह से व्यवस्थाओं को संभाल करके आगे बढ़ना, ये संभव नहीं रहा है। और इसलिए हर इकाई में expertise चाहिए, हर इकाई में सामर्थ्‍य चाहिए, हर इकाई में उस प्रकार के बल चाहिए। तब जा करके हम स्थितियों को संभाल सकते हैं और इसलिए संख्‍या बल से ज्‍यादा-ज्‍यादा trained man power जो हर चीजों को संभाल सके, जो टेक्‍नोलॉजी को भी जानता हो, जो टेक्‍नोलॉजी को भी फोलो करता हो, जो ह्यूमन साइकी भी जानता हो। जो यंग जेनरेशन है उसके साथ डायलॉग करने के तौर-तरीके जानता हो, तभी तो कभी-कभार बड़े-बड़े आंदोलन होते हैं तो लीडर्स के साथ डील करना होता है और negotiation की capacity चाहिए।

अगर trained man power सुरक्षा के क्षेत्र में नहीं है तो वो अपनी negotiation की capacity को गंवा देता है और उसके कारण बनी हुई बाजी आखिरी मौके पर कभी-कभी बिगड़ जाती है, एकाध शब्‍द के कारण बिगड़ जाती है। कहने का मेरा तात्‍पर्य ये है कि लोकतंत्र व्‍यवस्‍थाओं के अंदर जनता-जनार्दन को सर्वोपरि मानते हुए, समाज से द्रोह करने वाले जो elements होते हैं उनके साथ सख्ती और समाज के प्रति नरमी, इस मूल मंत्र को ले करके हमें एक ऐसे human resources develop करने होंगे। अब हम देखते हैं दुनिया के कई देशों में पुलिस के संबंध में बहुत अच्‍छी छवि की खबरें आती रहती हैं। हमारे देश का दुर्भाग्‍य है- फिल्‍म बनेगी तो उसमें सबसे भद्दा चित्रण किसी का किया जाता है तो पुलिसवाले का किया जाता है, अखबार अगर भरे पड़े देखें तो उसमें भी भद्दे से भद्दा किसी का चेहरा बना दिया जाता है तो पुलिसवाले का बना दिया जाता है। और उसके कारण समाज में जिस प्रकार की सच्‍चाई पहुंचनी चाहिए। इन दिनों सोशल मीडिया के कारण, हमने कोरोना काल में देखा यूनिफॉर्म में पुलिस के काम करने वाले लोग उनकी कई वीडियो बहुत वायरल हुईं। कोई पुलिसवाला रात को निकलता है कोई भूखा है उसको खाना खिला रहा है, किसी के घर में लॉकडाउन के कारण दवाइयां नहीं हैं, तो पुलिस के लोग मोटरसाइकिल पर जा करके उनको दवाई पहुंचाते हैं। एक मानवीय चेहरा, पुलिस का मानवीय चेहरा इस कोरोना कालखंड के अंदर जनसामान्‍य के मन में उभर रहा था। लेकिन फिर, फिर वो चीजें ठहर गईं।

ऐसा नहीं कि काम बंद हुआ है लेकिन जिन लोगों ने एक narrative बनाकर रखा हुआ है और जब नकारात्‍मक वातावरण होता है तो अच्‍छा करने की इच्‍छा होने के बाद भी उसके प्रति मन में निराशा आ जाती है। ऐसे विपरीत वातावरण में आप सब नौजवान तय करके घर से निकले हैं। आपके अभिभावक ने ये तय कर-करके आपको यहां भेजा है कि कभी न कभी आप सामान्‍य मानवी के हकों की रक्षा, सामान्‍य मानवी की सुरक्षा की चिंता, समाज-जीवन के अंदर सुख-चैन का वातावरण बना रहे, उसकी चिंता, सामान्‍य समाज-जीवन के अंदर एकता और सद्भावना बनी रहे, हर कोई अपना जीवन बड़े उमंग और उत्‍साह के साथ यापन कर सके, समाज-जीवन के छोटे-मोटे उमंग-उत्‍सव के प्रसंग बड़े आनंद और गौरव के साथ होते चलें, इस भूमिका के साथ समाज-जीवन में हम अपनी भूमिका कैसे अदा कर सकें। और इसलिए अब सिर्फ कद-काठी के आधार पर सुरक्षा बल इस देश की सेवा कर पाएंगे, वो सिर्फ एक सीमा तक सही है, लेकिन अब यह एक बहुत बड़ा क्षेत्र बन गया है जहां पर हमें trained man power की जरूरत पड़ेगी।

आज का जो जमाना है, परिवार छोटे होते गए हैं। पहले तो क्‍या था, पुलिसवाला भी एक्‍स्‍ट्रा ड्यूटी करके थक करके घर जाता था, तो एक बड़ा संयुक्‍त परिवार होता था, तो मां संभाल लेती थी, पिताजी संभाल लेते थे, दादा-दादी कभी घर में हैं तो संभाल लेते थे, कोई भतीजा संभाल लेता था, बड़े भाई साहब घर में हैं तो वो संभाल लेते थे, भाभीजी होती थीं तो वो संभाल लेती थीं, तो मन से हल्‍का हो जाता था और दूसरे दिन तैयार होकर चला जाता था। आज micro family हो रहे हैं। जवान कभी 6 घंटे नौकरी, कभी 8 घंटे, कभी 12 घंटे, कभी 16 घंटे और बड़ी विपरीत परिस्थिति में नौकरी करता है। फिर घर जाएगा, घर में तो कोई है ही नहीं। सिर्फ खाना खाओ, कोई पूछने वाला नहीं, मां-बाप नहीं हैं, कोई चिंता करने वाला एक अलग व्यक्तित्व नहीं है।

ऐसे समय stress की अनुभूति हमारे सुरक्षा बल के क्षेत्रों के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती बनती है। परिवार जीवन की कठिनाइयां, काम करते समय करनी पड़ती कठिनाइयां, उसके मन पर एक बहुत बड़ा stress रहता है। ऐसे समय में stress free activity की training ये आज सुरक्षा क्षेत्र के लिए आवश्‍यक हो गई है। और उसके लिए trainers की आवश्‍यकता हो गई है। ये रक्षा शक्ति यूनिवर्सिटी जो है, वे इस प्रकार के trainers भी तैयार कर सकते हैं जो शायद यूनिफॉर्म के काम में नहीं होंगे लेकिन यूनिफॉर्म वालों को मन से मस्‍त रखने का काम यहां से trained हो कर लोग कर सकते हैं।

आज सेना में भी बहुत बड़ी मात्रा में योगा टीचरों की जरूरत पड़ रही है। आज पुलिस बेड़े में भी बहुत बड़ी मात्रा में योगा और relaxation technique वाले टीचर्स की आवश्यकता हुई है, ये दायरा अभी रक्षा क्षेत्र के अंदर आएगा।

उसी प्रकार से टेक्‍नोलॉजी एक बहुत बड़ी चुनौती है। और मैंने देखा है कि जब expertise नहीं है तो जो हमें समय पर करना चाहिए वो नहीं कर पाते हैं, देर हो जाती है। जिस प्रकार से साइबर सिक्‍योरिटी के इश्‍यू बने हैं, जिस प्रकार से क्राइम में टेक्‍नोलॉजी बढ़ती चली जा रही है, उसी प्रकार से crime detection में टेक्‍नोलॉजी सबसे ज्‍यादा मददगार भी हो रही है। पहले के समय में कहीं चोरी हो जाए तो चोर को पकड़ने में लंबा समय लग जाता था। लेकिन आज कहीं सीसीटीवी कैमरा होगा, सीसीटीवी कैमरा के फुटेज देख लीजिए तो फिर पता चलता है ये व्‍यक्ति बड़े आशंका से जा रहा है, पहले इस मोहल्‍ले में गया, फिर इस मोहल्‍ले में गया, आप लिंक बिठा दें और आपके पास artificial intelligence का नेटवर्क है तो ब़ड़ी आसानी से एक व्‍यक्ति को trace करके आप ढूंढ सकते हैं कि यहां से निकला था, यहां आया था और यहां पर उसने कानून के विरुद्ध में काम किया है, पकड़ा जाता है।

तो जैसा क्रिमिनल वर्ल्‍ड टेक्‍नोलॉजी का उपयोग कर रही है वैसे सुरक्षा बलों के लिए भी टेक्‍नोलॉजी एक बहुत बड़ा सशक्‍त हथियार बना है। लेकिन सही लोगों के हाथ में सही हथियार और समय पर काम करने का सामर्थ्‍य ट्रेनिंग के बिना संभव नहीं है। और मैं मानता हूं कि दुनिया में बड़ी-बड़ी घटनाएं अगर आप इस क्षेत्र में आपके शायद केस स्‍टडी पढ़ाते होंगे तो उसमें आता होगा कि किस प्रकार से टेक्‍नोलॉजी का उपयोग करते क्राइम किया जाता है और किस प्रकार से टेक्‍नोलॉजी के उपयोग से क्राइम detect किया जाता है।

ये ट्रेनिंग सिर्फ सुबह परेड करना, फिजिकल फिटनेस, इतने से अब रक्षा क्षेत्र का काम नहीं रहा है। कभी-कभी तो मैं सोच रहा हूं मेरे दिव्‍यांग भाई-बहन शायद फिजिकली अनफिट होंगे तो भी अगर रक्षा शक्ति यूनिवर्सिटी में trained हो जाएंगे तो वे भी रक्षा क्षेत्र में शारीरिक अक्षमता के बाद भी ट्रेनिंग के कारण मानसिकता के कारण बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं। यानी पूरा दायरा बदल चुका है। हमें इस रक्षा शक्ति यूनिवर्सिटी के माध्‍यम से उस दायरे के अनुकूल व्‍यवस्‍थाओं को कैसे विकसित करें, उस दिशा में जाना चाहिए।

और जैसे अभी गृह मंत्री जी ने बताया कि इस समय एक प्रकार से गांधीनगर आज शिक्षा की दृष्टि से एक बहुत बड़ा वायब्रेंट एरिया बनता जा रहा है। एक ही इलाके में इतनी सारी यूनिवर्सिटीज़ और दो यूनिवर्सिटीज़ हमारे पास ऐसी बनी हैं इसी धरती पर जो विश्‍व में सिर्फ पहली यूनिवर्सिटी है। पूरे विश्‍व में एकमात्र, पूरी दुनिया में कहीं पर भी फॉरेंसिंक साइंस यूनिवर्सिटी नहीं है। पूरी दुनिया में कहीं पर  भी चिल्‍ड्रन यूनिवर्सिटी नहीं है। गांधी नगर और हिन्‍दुस्‍तान अकेला ऐसा है कि जिसके पास ये दो यूनिवर्सिटीज़ हैं।

और मैं चाहूंगा उसी प्रकार से नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी यानी crime detection से ले करके justice तक, ये पूरा जो सिलसिला है उसको हमने समेटा हुआ है।  और ये समेटा हुआ भी तब काम आएगा, ये तीनों यूनिवर्सिटीज़ silos में काम करेगी। राष्‍ट्रीय रक्षा यूनिवर्सिटी अपनी दुनिया चलाए, फॉरेंसिंक साइंस यूनिवर्सिटी अपनी दुनिया चलाए, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी अपनी दुनिया चलाए, तो जो परिणाम मुझे लाना है वो परिणाम नहीं आ सकता।

और इसलिए मैं जब आज आपके बीच में आया हूं, यूनिवर्सिटी को चलाने वाले लोग यहां बैठे हुए हैं तब मेरा आग्रह रहेगा क्‍या साल में हर तीन महीने के बाद इन तीनों यूनिवर्सिटीज़ के स्‍टूडेंटस का, फैकल्‍टीज का, common symposium हो सकते हैं क्‍या, जो तीनों पहलुओं की चर्चा करें और रक्षा को और strengthen करने के लिए एक नया मॉडल ले करके आएं। फॉरेंसिंक साइंस जस्टिस के लिए कैसे काम आएगा वो नेशनल यूनिवर्सिटी के बच्‍चों को पढ़ना पड़ेगा।

Crime detection वाले लोगों को देखना होगा कि इस धारा के अंदर में किस कलम को कैसे ले जाऊंगा, मैं साक्ष्‍य कैसे लेकर जाऊंगा ताकि फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी से मुझे टेक्निकल सपोर्ट मिल जाएगा और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से मुझे कानूनी सपोर्ट मिल जाएगा और मैं क्रिमिनल को न्याय दिला कर रहूंगा और मैं देश को सुरक्षित कर पाऊंगा। और तब जा करके जब न्‍याय तंत्र समय पर न्‍याय दे पाता है और गुनहगारों को सजा देता है तो गुनहगारों में भय का माहौल बन जाता है।

मैं तो रक्षा शक्ति यूनिवर्सिटी में ये भी चाहूंगा कि वहां ऐसे लोग भी तैयार हों जो जेल की व्‍यवस्‍थाओं के संबंध में उनकी मास्‍टरी हो। जेल की व्‍यवस्‍थाएं आधुनिक कैसे बनें, जेल के अंदर जो कैदी हैं या जो अंडर ट्रायल हैं उनकी साइकी को अटेंड कर-करके काम करने वाले लोग कैसे तैयार हों, वो गुनाह से बाहर कैसे निकलें, किस परिस्थितियों में गुनाह करने गया था, इन सारी मनो‍वैज्ञानिक अध्‍ययन का काम फॉरेंसिंक साइंस यूनिवर्सिटी में भी क्रिमिनल मेंटेलिटी का बहुत बड़ा अच्‍छा अध्‍ययन होता है। रक्षा शक्ति यूनिवर्सिटी में भी उसका एक पहलू होता होगा।

मैं समझता हूं क्‍या हमारे यहां से ऐसे लोग तैयार हो सकते हैं कि जिनकी expertise यही हो जो कैदियों के अंदर पूरे जेल के माहौल को बदलने में काम कर सकते हों, उनकी साइकी को अटैंड कर सकते हों, और एक अच्‍छा मनुष्‍य बना करके वो जेल से भी बाहर निकले इसके लिए योग्‍य human resource की आवश्यकता होती है। सिर्फ जो कल तक पुलिस में लॉ एंड ऑर्डर का काम किसी शहर के किसी कोने में संभालता हो और अचानक उसको कह दिया जाए कि अब जाओ जेल में संभालो, उसकी ट्रेनिंग तो है नहीं। ठीक है, उसकी इतनी ट्रेनिंग तो है कि क्रिमिनल लोगों के साथ कैसे बैठना-उठना हो तो उसको जानता है। लेकिन इतने से बात बनती नहीं है। मैं समझता हूं कि इतने सारे क्षेत्र फैल चुके हैं उन सभी क्षेत्रों के लिए हमने इस दिशा में प्रयास करना होगा।

आज मुझे इस रक्षा यूनिवर्सिटी के एक भव्‍य भवन का लोर्कापण करने का अवसर मिला है। जब हम इसके लिए जगह identify कर रहे थे तब तेरे सामने बहुत बड़े प्रश्न आए थे, बड़े-बड़े दबाव आते थे। हरेक का कहना होता था, साहब आप इतना दूर क्‍यों भेज रहे हैं, ये क्‍यों कर रहे हैं। लेकिन मेरा मत था अगर गांधीनगर से अगर 25-50 किलोमीटर दूर जाना पड़े इससे यूनिवर्सिटी की अहमियत कम नहीं होती है। अगर यूनिवर्सिटी में दम होगा तो गांधीनगर का सबसे बड़ा फोकस एरिया ये बन सकता है और आज भवन देखने के बाद मुझे लगता है इसकी शुरूआत हो चुकी है।

लेकिन, इस भवन को हरा-भरा रखना, ऊर्जावान रखना, शानदार बनाए रखना, ये दायित्‍व एक कॉन्‍ट्रेक्‍टर बिल्डिंग बनाकर चले जाने से नहीं होता है, एक सरकार बजट खर्च कर दे, इससे नहीं होता है। उसमें रहने वाला हर व्‍यक्ति उसे अपना माने, हर दीवार को अपनी माने, हर खि़ड़की को अपनी माने, हर फर्नीचर की एक-एक चीज को अपनी माने और उसको अच्‍छा बनाने के लिए खुद कुछ करता रहेगा, जब जा करके भवन अपने-आप में शानदार रह सकता हैं।

एक जमाना था अहमदाबाद में जब आईएम बना था, 50 साल पहले की बात है; 50-60 साल पहले का वो भवन पूरे हिन्‍दुस्‍तान में एक मॉडल के रूप में माना जाता था। बाद में जब नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का भवन बना तो पूरे हिन्‍दुस्‍तान में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के भवन की तरफ लोगों का आकर्षण हुआ था। मैं आज पक्‍का मानता हूं कि आने वाले दिनों में ये रक्षा यूनिवर्सिटी का कैम्‍पस भी लोगों के लिए आकर्षण का कारण बनेगा। हमारे कालखंड में ही आईआईटी का जो कैम्‍पस बना हुआ है, एनर्जी यूनिवर्सिटी का जो कैम्‍पस बना हुआ है, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का कैम्‍पस बना हुआ है, फॉरेंसिंक साइंस यूनिवर्सिटी का जो कैम्‍पस बना हुआ है, मैं समझता हूं इसमें एक और रत्‍न हमारे इस रक्षा यूनिवर्सिटी का कैम्‍पस भी एक नया रत्‍न बन करके जु़ड़ गया है और इसके लिए मैं आप सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

और मुझे पूरा विश्‍वास है कि यहां पर एक नई ऊर्जा, एक नई उमंग के साथ और देश का जो क्‍वालिटी यानी एक प्रकार से सोसायटी के जो creaming बच्‍चे होते हैं, उनको मैं निमंत्रण देता हूं कि आप इस काम को छोटा मत मानिए। आइए, इसमें देश की सेवा करने का बहुत बड़ा क्षेत्र है। और हमारे पुलिस के जवान भी, हमारी होम मिनिस्‍ट्री भी, ये कभी गलती हम न करें, हमने न गलती की है, ये पुलिस यूनिवर्सिटी नहीं है, ये रक्षा यूनिवर्सिटी है, जो सम्‍पूर्ण राष्‍ट्र की रक्षा के संदर्भ में मैन पॉवर तैयार करने वाली यूनिवर्सिटी है। वो अनेक फील्‍ड में जाएंगे, यहां से ऐसे लोग भी तैयार होंगे जो रक्षा के क्षेत्र में काम करने वालों का न्यूट्रिशन क्‍या होना चाहिए उसके expertise होंगे। कई ऐसे एक्‍सपर्ट तैयार होंगे कि क्रिमिनल दुनिया के रिकॉर्ड बनाने के सॉफ्टवेयर कैसे होने चाहिए उस पर काम करेंगे। जरूरी नहीं कि उसको यूनिफॉर्म पहनने की नौबत आए लेकिन वो यूनिफॉर्म की साइकी जानता है, काम कोई भी करता है वो मिल करके अच्‍छा परिणाम दे सकते हैं। इस भावना के साथ आज इस यूनिवर्सिटी की हम प्रगति की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

और जैसा हमने सोचा है, फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी देश में फैलनी चाहिए, रक्षा शक्ति  यूनिवर्सिटी देश में फैलनी चाहिए और विद्यार्थी काल से बच्‍चे के मन में..कुछ बच्‍चे रहे हैं, जो बचपन से सोचते हैं मुझे sports person बनना है, कुछ लोग बचपन से सोचते हैं हमें डॉक्‍टर बनना है। कुछ लोग बचपन से सोचते हैं हमें इंजीनियर बनना है, ये एक क्षेत्र है। भले आज एक तबका है जिसमें नकारात्‍मकता का वातावरण यूनिफॉर्म के प्रति बना हुआ है लेकिन हम अपने कर्तव्‍य से, अपने कठोर परिश्रम से और अपने मानवीय मूल्‍यों की इज्‍जत करते हुए काम करेंगे तो मुझे पक्‍का विश्‍वास है कि जो proper section बना हुआ है उसको बदल करके सामान्‍य मानवी में विश्‍वास जगाने का काम हमारी ये Uniform forces कर सकती हैं और जब Uniform force करता हो तब सरकारी दायरे में काम करने वाले पट्टा और टोपी लगाने वाले की बात मैं इसमें शामिल नहीं करता हूं। आज प्राइवेट सिक्‍योरिटी भी बहुत बड़ी मात्रा में बढ़ रही है। बहुत बड़ी मात्रा में प्राइवेट सिक्योरिटी का क्षेत्र बना हुआ है। और मैंने देखा है कई स्‍टार्टअप डेवलप हो रहे हैं, जो सिर्फ रक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। आपकी ये ट्रेनिंग ऐसे नए-नए स्‍टार्टअप की दुनिया में आने के लिए भी आपको निमंत्रण देती है।

मुझे विश्वास है कि आप जैसे साथी, मेरे नौजवान साथी देश की रक्षा को प्राथमिकता देते हुए जब आगे आ रहे हैं तब एक और बड़ा क्षेत्र है जिसको हमें समझना होगा। जैसे मैंने शुरू में कहा कि नेगोशिएंस की एक आर्ट होती है, जब ट्रेनिंग होती है तब जाकर अच्‍छे नेगोशिएटर बनते हैं। और जब नेगोशिएटर बनते हैं तो वो ग्‍लोबल लेबल पर काम आते हैं। धीरे-धीरे आप प्रगति कर-करके ग्‍लोबल लेबल के नेगोशिएटर बन सकते हैं।

और मैं मानता हूं ये भी समाज-जीवन के अंदर बहुत बड़ी आवश्‍यकता है। उसी प्रकार से मॉब साइकोलॉजी, क्राउड साइकोलॉजी इसको अगर आपने साइंटिफिक तरीके से अध्‍ययन नहीं किया है तो आप उसको हैंडिल नहीं कर सकते हैं। रक्षा यूनिवर्सिटी के माध्‍यम से हम इस प्रकार के लोगों को तैयार करना चाहते हैं कि जो इस प्रकार के हालात में भी चीजों को संभालने का सामर्थ्‍य रखें। हमें देश की रक्षा के लिए dedicated work force हर स्‍तर पर तैयार करना होगा। मुझे आशा है कि हम सब मिल करके उस दिशा में प्रयास करेंगे।

मैं आज जिन विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई पूरी कर-करके जाने का अवसर मिला है, मैं उनको भी अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं। लेकिन मैं उनको कहना चाहूंगा, हो सकता है आते समय आपके मन में विचार आया हो कि यार एक बार यूनिफॉर्म पहन लिया ना फिर तो सारी दुनिया मुट्ठी में है, ये गलती मत करना दोस्तों। ये यूनिफॉर्म की इज्‍जत बढ़ाने वाला काम नहीं होता है, यूनिफॉर्म की इज्‍जत बढ़ती है, जब उसके भीतर मानवता जिंदा होती है, यूनिफॉर्म की इज्‍जत बढ़ती है जब उसके अंदर करुणा का भाव होता है, यूनिफॉर्म की कीमत तब बढ़ती है, जब माताओं, बहनों, दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित के लिए कुछ कर गुजरने की आकांक्षाएं भीतर जगती हैं तब जा करके यूनिफॉर्म की ताकत बढ़ती है और इसलिए मेरे साथियों, आपके जीवन में तो आने ही वाला है। किसी न किसी रूप में आने वाला है क्योंकि अब इस क्षेत्र से जा रहे हैं तब मानवता के मूल्यों को जीवन में सर्वोपरि मान करके हमें जाना है। हमें मन में संकल्‍प ले करके जाना है कि समाज-जीवन में इस forces के प्रति जो भाव बना हुआ है उस अभाव को प्रभाव रहते हुए भी अपनेपन के भाव से मुझे जोड़ना है और इसलिए मैं चाहता हूं यूनिफॉर्म का प्रभाव बना रहना चाहिए, लेकिन उसमें मानवता का अभाव कतई नहीं होना चाहिए। इस भाव को ले करके मेरी सारी नौजवान पीढ़ी आगे बढ़ेगी तो बहुत बड़ा परिणाम मिलेगा। 

मेरे लिए खुशी की बात है जब अभी मैं यहां सम्‍मानित कर रहा था कुछ विद्यार्थियों को, मैंने गिना नहीं लेकिन मेरी एक प्राथमिक इम्‍प्रेशन ये है कि शायद बेटियों की संख्या ज्यादा थी। इसका मतलब ये हुआ जैसे रक्षा क्षेत्र में आज हमारी बेटियां इन दिनों पूरे देश में पुलिस बेड़े में बहुत बड़ी तादाद में हमारे यहां बेटियों का स्थान बना हुआ है। बहुत बड़ी मात्रा में बेटियां हमारी आ रही हैं। इतना ही नहीं, सेना में बहुत बड़े पदों पर आज हमारी बेटियां आगे बढ़ रही हैं। उसी प्रकार से एनसीसी, मैंने देखा है कि एनसीसी के कैडेट में भी बहुत बड़ी मात्रा में बेटियां आ रही हैं। आज भारत सरकार ने एनसीसी का भी दायरा बहुत बढ़ा दिया है, अनेक गुना बढ़ा दिया है और सीमावर्ती जो स्‍कूल्‍स हैं कभी-कभी आप भी एक एनसीसी के रूप में भी स्‍कूलों में भी धीरे-धीरे develop हो सकते हैं, आप स्‍कूलों के एनसीसी को भी संभालने में बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं।

उसी प्रकार से जौ सैनिक स्‍कूल हैं, उन सैनिक स्‍कूलों में भी बेटियों के प्रवेश का एक बहुत बड़ा निर्णय भारत सरकार ने किया है। तो हमारी जो बेटियों की शक्ति है और हमने देखा है जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसके अंदर प्रभावी भूमिका हमारी बेटियां न करती हों। चाहे ओलम्पिक में विक्टरी प्राप्‍त करने आना हो तो उसमें भी मेरी बेटियां ज्‍यादा हैं, साइंस के क्षेत्र में देखो तो हमारी बेटियां ज्‍यादा हैं। उसी प्रकार से शिक्षा के क्षेत्र में देखो तो हमारी बेटियां ज्‍यादा हैं, सुरक्षा के क्षेत्र में भी जब हमारी बेटियों का प्रभुत्‍व भी उतना ही भागीदारी वाला होगा, मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे देश की माताओं-बहनों को सुरक्षा का एहसास होगा और इस बात को ले करके, उस भूमिका को ले करके आप सब आगे आयें। एक बहुत बड़ा initiative जब हमने लिया है उस initiative को सफल बनाने का काम पहली बैच का ज्‍यादा होता है।

ये यूनिवर्सिटी कितना बड़ा परिवर्तन ला सकती है, एक human resource development का इंस्टिट्यूट कितना बड़ा परिवर्तन ला सकती है, गुजरात की धरती की दो घटनाएं मैं आपके सामने रखना चाहता हूं। बहुत समय पहले, और उस समय गुजरात में सरकार का रोल नहीं था, लेकिन यहां के जो महाजन लोग थे अहमदाबाद के, समाज के जो श्रेष्‍ठी लोग थे, व्‍यापारी लोग थे, उन्‍होंने मिल करके तय किया कि गुजरात में एक फार्मेसी का कॉलेज होना चाहिए। आज से 50 साल पहले फार्मेसी का एक कॉलेज बना। तब एक मामूली से कॉलेज का निर्माण हुआ लेकिन आज Pharmaceutical industry में अगर गुजरात लीड करता है तो उसका मूल वो जो एक छोटी सी फार्मेसी कॉलेज बनी थी, उसमें से जो लड़के तैयार हुए थे, आगे चल करके गुजरात Pharmaceutical industry का बहुत बड़ा ह‍ब बन गया। और वो ही फार्मा आज दुनिया का, कोरोना के बाद दुनिया ने माना है कि हिन्‍दुस्‍तान फार्मा का हब है, ये काम एक छोटे से कॉलेज से शुरू हुआ था।

उसी प्रकार से अहमदाबाद आईआईएम, वो यूनिवर्सिटी नहीं है, वो डिग्री कोर्स नहीं है, कोई यूनिवर्सिटी की सैंक्शन नहीं है, एक सर्टिफिकेट कोर्स है, जब प्रारंभ हुआ तो लोग शायद सोचते होंगे ये छह-आठ, बारह महीने का सर्टिफिकेट कोर्स से जिंदगी में क्‍या होगा। लेकिन आईआईएम ने एक ऐसी प्रतिष्‍ठा बनाई, आज जितने दुनिया में बड़े-बड़े CEO's हैं कोई न कोई आईआईएम से गुजरा हुआ है।

दोस्तों, एक यूनिवर्सिटी क्‍या कर सकती है मैं वो सपना इस रक्षा यूनिवर्सिटी में देख रहा हूं, जो हिन्‍दुस्‍तान के पूरे रक्षा के क्षेत्र के चित्र को बदल देगा, रक्षा की  सोच को बदल देगा और रक्षा के अंदर आने वाली हमारी युवा पीढ़ी के लिए नए परिणाम ला करके रहेगा। इस पूरे विश्‍वास के साथ पहली पीढ़ी की जिम्‍मेदारी ज्‍यादा होती है। First Convocation वालों की जिम्‍मेदारी और अधिक बन जाती है और इसलिए मैं First Convocation के अंदर जिन लोगों को आज यहां से विदाई मिल रही है, मैं कहता हूं आपने यहां जो कुछ भी पाया है, उसको जीवन भर अपना मंत्र बना करके आप देश में इस रक्षा यूनिवर्सिटी की प्रतिष्‍ठा बढ़ाइए। इस क्षेत्र में आगे आने के लिए होनहार नौजवानों को प्रेरित कीजिए। बेटे-बेटियों को प्रेरित कीजिए, आपके जीवन से प्रेरित होंगे। बहुत बड़ी भूमिका आप समाज-जीवन में अदा कर सकते हैं।

अगर उस काम को आप करेंगे, मुझे विश्‍वास है कि आजादी के अमृत महोत्‍सव में एक ऐसी यात्रा का आरंभ हुआ है, जब देश आजादी का सौ साल मनाएगा तब रक्षा क्षेत्र की पहचान अलग होगी, रक्षा क्षेत्र के लोगों के अंदर देखने का नजरिया बदल गया होगा और देश का सामान्‍य से सामान्‍य नागरिक, चाहे वो सीमा पर प्रहरी होगा, या आपके मोहल्‍ले-गली का प्रहरी होगा, एक भाव से देखते होंगे और देश की रक्षा के लिए समाज और व्‍यवस्‍था, दोनों मिल करके काम करते होंगे, जब देश आजादी का सौ साल मनाएगा, तब उस ताकत के साथ हम खड़े होंगे। इसी विश्‍वास के साथ मैं सभी नौजवानों को अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं। उनके परिवारजनों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।   

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