काशी तो अविनाशी है, काशी ने जो स्नेह और शक्ति मुझे दी है, ये अपने आप में शायद ही ऐसा सौभाग्य मिलना बहुत मुश्किल है: प्रधानमंत्री मोदी
देश के राजनीतिक विशेषज्ञों को ये बात माननी पड़ेगी कि arithmetic के आगे भी एक chemistry होती है: पीएम मोदी
एक मास पूर्व जब 25 तारीख को मैं यहां था तब जिन आन-बान-शान के साथ काशी ने एक विश्व रुप दिखाया था और वो सिर्फ काशी या उत्तर प्रदेश को प्रभावित करने वाला नहीं था उसने पूरे हिन्दुस्तान को प्रभावित किया: प्रधानमंत्री

हर-हर महादेव, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, जिनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के करोड़ों कार्यकर्ताओं ने जी-जान से इस चुनाव अभियान को चलाया, वैसे भाई श्री अमित भाई शाह, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री योगी जी, प्रदेश के अध्यक्ष महेंद्रनाथ जी और काशी के सभी श्रेष्ठ बंधुजन।

मैं भी भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता होने के नाते पार्टी और कार्यकर्ता जो आदेश करते हैं उसका पालन करने का मैं भरसक प्रयास करता हूं। एका मास पूर्व जब 25 तारीख को मैं यहां था, जिस आन, बान, शान के साथ काशी ने एक विश्व रूप दिखाया था और वो सिर्फ काशी को प्रभावित करने वाला नहीं था, सिर्फ उत्तर प्रदेश को प्रभावित करने वाला नहीं था, उसने पूरे हिंदुस्तान को प्रभावित किया था। हिंदुस्तान का कोई कोना ऐसा नहीं होगा, जो काशी की गलियों में, काशी के मार्ग पर काशी का मिजाज जिस प्रकार से प्रगट हो रहा था, उसे जब देश के हर कोने में जब मतदाता देख रहा था।

कुछ कार्यकर्ताओं के हाथ में जो कागज हैं उन्हें कलेक्ट कर लीजिए, मुझे पहुंचा दीजिएगा। आपको संतोष हो गया? कार्यकर्ता का संतोष, यही हमारा जीवन मंत्र है।

और जब 25 की शाम को और 26 में यहां के प्रबुद्धजनों से कार्यकर्ताओं से मुझे बात-चीत करने का अवसर मिला था और आप सब ने मुझे आदेश दिया था की एक महीने तक आप काशी में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। देश ने भले मुझे प्रधानमंत्री बनाया हो लेकिन आपके लिए मैं कार्यकर्ता हूं और मेरे लिए आपका आदेश सर-आंखों पर रहा। 18-19 को जब प्रचार अभियान समाप्त हो चुका था, 19 को मतदान होना था। मेरे मन में भी था की चलो भले कोई काम नहीं है लेकिन चले जाएं काशी। लेकिन फिर याद आता था, आपने आदेश दिया है एन्ट्री नहीं देंगे तो क्या होगा तो मैंने सोचा चलो ये बाबा नहीं तो कोई और बाबा। शायद ही कोई उम्मीदवार चुनाव में और चुनाव के नतीजों के समय में इतना निश्चिंत होता है जितना की मैं था। और इस निश्चिंतता का कारण मोदी नहीं था, निश्चिंतता का कारण आप सब का परिश्रम था, काशीवासियों का विश्वास था। जब नतीजे आए तब भी निश्चिंत था, जब परिणाम आए तब भी निश्चिंत था और इसलिए बड़े मौज के साथ केदारनाथ में बाबा के चरणों में जा कर बैठ चुका था। काशी तो अविनाशी है और जो स्नेह मुझे दिया है, जो शक्ति मुझे दी है ये अपने आप में शायद ही, ऐसा सौभाग्य मिलना बहुत मुश्किल होता है जी। आप में से कई लोग हैं, कितने कार्यक्रम किए, मुझे जानकारी मिलती थी की क्या-क्या कार्यक्रम चल रहे हैं। एक प्रकार से चुनाव को लोकोत्सव बना दिया गया है, देश के लिए भी। और पूरे चुनाव अभियान में बहुत एक मात्रा में मैं कह सकता हूं की तू-तू, मैं-मैं का तत्व बहुत कम था, अपनत्व का माहौल ज्यादा था। इस चुनाव में अलग-अलग दलों के जो साथी मैदान में थे, इस चुनाव में जो निर्दलीय साथी जो मैदान में थे, मैं उनका भी आभार व्यक्त करता हूं। उन्होंने ने भी अपने तरीके से काशी की गरिमा के अनुकूल इस चुनाव के अभियान को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया है, वे भी अभिनंदन के अधिकारी हैं और इसलिए मैं सार्वजनिक रूप से जो अन्य उम्मीदवार थे, उनका भी हृदय से धन्यवाद करना चाहता हूं।

चुनाव में प्रशासन को बहुत कठिनाइयां रहती हैं, बहुत परिश्रम रहता है, देश भर मीडिया वर्ल्ड भी यहां आता था तो स्थानीय मीडिया के लोगों के भरोसे वो चलते थे। एक प्रकार से उनको भी काशी की रिपोर्टिंग करना और देश भर से आए मीडिया को संभालना, ये अपने आप कर रहे थे, मैं इस मीडिया जगत के सभी साथियों का भी हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करना चाहता हूं। इस चुनाव में जब कार्यकर्ताओं के साथ मेरा मिलना हुआ था तो उस दिन मैंने कहा था की यहां पर शायद नामांकन तो एक नरेंद्र मोदी का हुआ होगा, लेकिन ये चुनाव हर घर का नरेंद्र मोदी लड़ेगा, हर गली का नरेंद्र मोदी लड़ेगा। और आपने एक प्रकार से अपने भीतर की शक्तियां, एक प्रकार से नरेंद्र मोदी के रूप में ही आपने अपने अंदर ही इसको समाहित कर दिया है और आप सब नरेंद्र मोदी बन गए हैं और इस पूरे चुनाव अभियान को आपने चलाया। आम तौर पर जब इस प्रकार का चुनाव होता है तो थोड़ा मन में अब क्या है भाई जीतने ही वाले हैं, लेकिन मैं काशी के संगठन से जुड़े हुए लोगों का, काशी के हर छोटे-मोटे कार्यकर्ता का और काशी के हर समर्थक का इस बात के लिए आभार व्यक्त करता हूं की उन्होंने इस चुनाव को जय और पराजय के तराजू से नहीं तौला, मैं समझता हूं की ये हिंदुस्तान के लोकतंत्र की बहुत बड़ी घटना है। जय और पराजय के तराजू में नहीं तौला, उन्होंने चुनाव को एक लोकशिक्षा का पर्व माना, लोकसंपर्क का पर्व माना, लोक संग्रह का पर्व माना, लोक समर्पण का पर्व माना और कोई कमी ना रह जाए, किसी मतदाता को ये ना लगे की कोई मेरे पास तो आया नहीं था, किसी ने तो मुझे कहा नहीं था। मोदी हमें पसंद है पर भाई क्या बात है, इतना बड़ा अवसर है आपने मुझे याद भी नहीं किया। हर घर गए, हर मतदाता को मिले, 40-45 डिग्री टेंपरेचर पर गए और गर्मागर्मी नहीं थी। चुनाव के माहौल को गर्म करना भी अपने आप में एक कसौटी होती है ताकी मतदाताओं का उत्साह बढ़े। इन सभी कसौटियों से आप पार उभरे हैं और डिस्टिंक्शन मार्क के साथ पार उतरे हैं इसलिए आप बधाई के पात्र हैं।

सारे देश में और सोशल मीडिया में यहां की बेटियों ने जो स्कूटी निकाली इसकी बड़ी चर्चा है और उसने मैसेजिंग किया की स्कूटी पर बैठकर के हमारी बेटियों ने पूरे काशी को अपने सर पर ले लिया था। भांति-भांति के कार्यक्रम और कभी-कभी तो जाकर के हम सिर्फ देखते थे वाह कैसा चल रहा है, लेकिन कर रही थी जनता जनार्दन, जनता जनार्दन का उत्साह था, कोई कारण नहीं था ये आज तो मुझे ऐसे ही उतरकर के बाबा के चरणों में जाना था और फिर आप सब के माध्यम से काशी का और उत्तर प्रदेश का अभिनंदन करना था। लेकिन उसके बावजूद भी जिस प्रकार से पूरे रास्ते भर लोग अपने आशीर्वाद दे रहे थे, ये भी अपने आप में एक अनोखा अनुभव था और इसलिए मैं आप सब का हृदय से अभिनंदन करता हूं। आज मैं भले काशी से बोल रहा हूं लेकिन पूरा उत्तर प्रदेश अनेक-अनेक अभिनंदन का अधिकारी है। आज उत्तर प्रदेश देश की राजनीति को दिशा दे रहा है, आज उत्तर प्रदेश स्वस्थ लोकतंत्र की नींव को और मजबूत कर रहा है। उत्तर प्रदेश ने 77 में लोकतंत्र के लिए सारी दीवारें तोड़ कर के, लोकतंत्र के प्रति अपनी निष्ठा बता कर के देश को एक दिशा दी थी, ताकत दी थी। लेकिन 2014 हो, 2017 हो, 2019 हो, ये हैट्रिक छोटी नहीं है जी। ये तत्कालीन किए हुए निर्णय नहीं हैं, उत्तर प्रदेश के गांव, गरीब परिवार का व्यक्ति भी, भारत के उज्जवल भविष्य की दिशा क्या हो सकती है इसके विषय में सोचता भी है और उसी की दिशा में चलता भी है और देश को चलने के लिए प्रेरित भी करता है। उत्तर प्रदेश के ये 14, 17 और 19, इन तीन चुनावों के योगदान को, भारत की राजनीति, भारत की समाजनीति, भारत की मतदान की नीतियां किस प्रकार से बदलाव ला रही हैं, इसके अद्भुत, विराट रूप के दर्शन कराए हैं और तीन-तीन चुनाव के बाद भी अगर पॉलीटिकल पंडित की आंखें खुलती नहीं है, तीन-तीन चुनाव के बावजूद भी पॉलीटिकल पंडितों के कान पर आवाज नहीं पहुंचती है तो इसका मतलब है की उनके विचार, उनकी सोच, उनके तर्क कालबाह्य हो चुके हैंवो 20वीं सदी के लिए हैं 21वीं सदी के लिए नहीं हैं। 50-50 पेज का जिनका बॉयोडेटा बनता होगा, प्रोफाइल बनता होगा, इतनी डिग्रियां होंगी, इतने पेपर लिखे होंगे ना जाने क्या-कुछ हुआ होगा, लेकिन उनकी तुलना में जमीन से जुड़ा हुआ एक गरीब आदमी उसकी समझ शक्ति कई गुना ऊंचा होती हैबहुत दीर्घ दृष्टि होती है। और हम उसी के प्रति श्रद्धा रखते हुए, उसी के प्रति समर्पण भाव रखते हुए और उसी के सहारे, उसी की शक्ति के भरोसे राष्ट्र की राजनीति में एक नई व्यवस्था को विकसित करने का प्रयास किया है।

चुनाव परिणाम, वो तो एक गणित होता है, जिसको 200 वोट मिले हैं और दूसरे को 201 मिला है तो विजेता तो 201 वाला होने वाला है 200 वाला नहीं। परिणाम का आधार तो गणित समझ सकता हूं मैं, 20 सदी के चुनावों के हिसाब-किताब भी गणित और अंकगणित के दायरे में चले होंगेलेकिन चाहे वो 2014 हो, 17 हो या 2019, देश के राजनीतिक विश्लेषकों को मानना होगा की अर्थमैटिक के आगे भी कैमेस्ट्री होती है। गुणा-भाग के हिसाब के परे भी एक कैमेस्ट्री होती है। देश में समाजशक्ति की जो कैमेस्ट्री है, आदर्शों और संकल्पों की जो कैमेस्ट्री है वो कभी-कभी सारे गुणा-भाग, सारे अंकगणित को निरस्त कर देती है, पराजित कर देती है और इस बार अंकगणित को कैमेस्ट्री ने पराजित किया है। इस अर्थ में यो चुनाव अपने आप में, देश और दुनिया के पॉलीटिकल पंडितों को, कुछ लोगों की घिसी-पिटी कैसेट है और वही एक दायरे में फिट करके एक परसेप्शन बनाने की कोशिश करते रहते हैं। और ये माना गया है की पॉलीटिक्स इज अबाउट परसेप्शन, लेकिन और हम वो लोग हैं जो हम जैसे हैं वैसे दुनिया हमें देख ना लें इसलिए 90से अधिक ताकतें जो पिछले 50-60-70 साल में इसटैब्लिश हो चुकी हैं वे दो काम करती रहती हैं। किसी भी हालत में हमारे विषय में सही परसेप्शन ना बने इसके लिए जो भी झूठ का सहारा लेना पड़े और दूसरा, एक है जैसे परसेप्शन सही ना पहुंचे, तो दूसरा है, हो सके जितने कुतर्क करके परसेप्शन के बर्बाद किया जाए, बिगाड़ा जाए। एक ऐसा खराब परसेप्शन बना दिया जाए की लोग पास खड़े रहने से डर जाएं, ये 70 साल तक चला है। पंडितों की ये थ्योरी होगी की पॉलीटिक्स इज अबाउट परसेप्शन, लेकिन उन पंडितों को दोबारा सोचना पड़ेगा की दो चीजें ऐसी होती है जो परसेप्शन को तबाह करने वालों की कोशिशों को भी, गंदा और बुरा परसेप्शन क्रिएट करने वालों की कोशिशों को भी उसको परास्त करके आगे बढ़ने की ताकत होती है और वो है, वो दो चीजें, एक है पारदर्शिता और दूसरा है परिश्रम। पारदर्शिता और परिश्रम, लोग कितनी ही अपनी ताकत लगा लें परसेप्शन बनाने की, उसको परास्त करने का साहस रखती हैं और हिंदुस्तान ने उसे स्वीकार करके दिखाया है, उसे करके दिखाया है। और इसलिए हमारे लिए भी पारदर्शिता और परिश्रम का कोई ऑलटर्नेट नहीं है क्योंकि हमें इस प्रकार की इसटैब्लिश निगेटीविटी के बीच पॉजिटीविटी को लेकर जाना है और निरंतर जाना है, अविरत जाना है क्योंकि देश उसी से आगे बढ़ने वाला है और उसको हमने किया है।  

साथियो, हम लोगों को लगता है ये सफलता है। सरकार और संगठन, इन दोनों के बीच तालमेल, परफेक्ट सिनर्जी ये बहुत बड़ी ताकत होती है। आप देखते होंगे की भारतीय जनता पार्टी ने सफलतापूर्वक इसको साकार किया है। राज्यों में इतनी सरकारें हों, केंद्र में सरकार हों, लेकिन सरकार और संगठन, दोनों के बीच में सिनर्जी। सरकार नीति बनाती है नीति पर चलती है, संगठन रणनीति बनाता है। नीति और रणनीति, इसकी सिनर्जी, सरकार और संगठन के काम की सिनर्जी का एक प्रतिबिम्ब होती है और जिस प्रतिबिम्ब का आज हम सफल, उसका लाभ देश को मिल रहा है। उसी प्रकार से हम ये जानते हैं की सरकार का कार्य है काम करना और इसलिए एक तरफ सरकार का कार्य हो और उसमें जब कार्यकर्ता जुड़ जाता है, कार प्लस कार्यकर्ता वो एक ऐसी ताकत है जो करिश्मा करती है। ये जो करिश्मा दिख रहा है वो कार्य का भी है और कार्य के साथ कार्यकर्ता का भी है, दोनों में से एक होने में होना नहीं है ये करिश्मा और इसलिए वर्क एंड वर्कर क्रिएट्स वंडर। और इसलिए वर्क और वर्कर, ये वंडर की बहुत बड़ी सबसे उद्दीपक, केटेलिक एजेंट हैं, जो आज हम कर रहे हैं। सरकार ने काम किया, शौचालय बनाए, घर बनाए, गैस पहुंचाया, बिजली पहुंचाई, लेकिन ये कार्यकर्ता है जिसने विश्वास पैदा किया की अभी तो ये शुरूआत है। जिसे नहीं मिला है मिलने वाला है और जिसे मिला है वो उपकार नहीं उसके हक का मिला है। ये जो वर्क और वर्कर वाला सिनर्जी है, जो वंडर करता है वो आज हर बात में हम देख पाते हैं। और इसलिए मैं समझता हूं की भारतीय जनता पार्टी, एक प्रकार से दो संकटों से हम गुजरे हैं और लगातार हमें झेलना पड़ता है। जैसे दो शक्ति हैं नीति और रीति, जैसे दो शक्ति हैं नीति और रणनीति, जैसे दो शक्ति हैं पारदर्शिता और परिश्रम, जैसे दो शक्ति हैं वर्क और वर्कर वैसे ही दो संकट भी हमने झेले हैं। और वो दो संकट हैं, चाहे केरल लीजिए या कश्मीर ले लीजिए, चाहे बंगाल ले लीजिए या त्रिपुरा ले लीजिए। ये चीजें अखबारों में नहीं छपती हैं, मीडिया में नहीं दिखती हैं। कुछ लोगों की सलेक्टिव संवेदनशीलता, सलेक्टिव मानवतावाद इन सत्य को नकारता है, लेकिन हमारे सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने शहादत मोल ली हैं, उनकी हत्याएं हुई हैं। उनको सिर्फ राजनीतिक विचारधारा के कारण मौत के घाट उतार दिया गया है। जब त्रिपुरा में चुनाव चल रहा था, फांसी पर लटका दिए जाते थे हमारे कार्यकर्ता, बंगाल में आज भी हत्याओं का दौर रुक नहीं रहा है। कश्मीर में हमारे लोगों ने जान की बाजी लगाई है, केरल में हमें मौत के घाट उतार दिया जाता है। शायद हिंदुस्तान में कोई एक राजनीतिक दल इतनी व्यापक प्रकार से हिंसा का शिकार हुआ है और उसके मूल में जो हेटरेज का जो नैरेटिव बनाया गया है, उसी का परिणाम है की हिंसा को एक प्रकार से मान्यता दी गई है ये हमारे सामने बहुत बड़ा संकट है। दूसरा हमारे सामने संकट है, बाबा साहब अंबेडकर, महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने सार्वजनिक जीवन में छुआछूत को, समाज जीवन में छुआछूत को, सामाजिक व्यवस्था में छुआछूत को खत्म करने के लिए अपनी जिंदगी खपा दी, लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में राजनीतिक छुआछूत दिन पर दिन बढ़ती चली जा रही है। भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं पर लगातार हिंसा होना, उनकी हत्याएं होना और दूसरी तरफ भाजपा का नाम लेते ही अनटचेबिलिटी, छुओ मत ये तो बड़े खतरनाक हैं। हम इतने सालों से सत्ता में आए हैं, हम विभाजनकारी मनोक्ति के नहीं हैं। जो लोग अपने आप को एकता का ठेकेदार बनाते हैं उन्होंने सिर्फ आन्ध्र का विभाजन किया, आज भी वहां शांति का माहौल नहीं बन पाया है, तेलंगाना और आन्ध्र। और हम वो लोग हैं जो एकता के मंत्र को लेकर के चलते हैं, हम उत्तर प्रदेश में से उत्तराखंड बना दें, दिलों में आग नहीं लगने देते हैं। हम बिहार में से झारखंड बना दें, दिलों को चोट नहीं पहुंचाते हैं। हम मध्य प्रदेश में से छत्तीसगढ़ बना दें, प्यार में कोई कमी नहीं आने देते हैं क्योंकि सबका साथ-सबका विकास ये मंत्र हमारी रगों में है, हमारी जहन में है। लेकिन उसके बावजूद भी एक ऐसा परसेप्शन क्रिएट किया गया है की जिसमें हमें आज भी अछूत। मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था और गुजरात के टूरिज्म प्रमोशन के लिए मैंने सिने जगत के लोगों की मदद मांगी, उन्होंने मदद की। लेकिन सारी दुनिया उन पर टूट पड़ी, आप और गुजरात, यानी ऐसा छुआछूत का परसेप्शन बनाते चले गए। ये चुनौती भी है, भारत के लोकतंत्र में इस प्रकार के वृत्ति वाले लोग हैं उनसे भी मैं आज काशी की पवित्र धरती से पुनर्विचार करने के लिए आज प्रार्थना करना चाहता हूं, बहुत हो चुका-बहुत हो चुका। आओ दोस्तों आओ, नए सिरे से सोचना शुरू करो, कमियां हममें भी होंगी, लेकिन हमारे इरादे नेक हैं।

दोस्तो, लोकतंत्र, कोई कुछ भी कह दे, आज हिंदुस्तान के राजनीतिक तख्त पर, राजनीतिक कैनवास पर ईमानदारी से रग-रग में लोकतंत्र को जीने वाला कोई दल है तो भारतीय जनता पार्टी है। हम शासन में आते हैं तब भी हम सबसे ज्यादा लोकतंत्र की परवाह करने वाले लोग होते हैं। कभी-कभी तो और लोग जब सत्ता में आते हैं तो विपक्ष का नामोनिशान नहीं होता है। हमें जब सत्ता मिलती है तो विपक्ष का अस्तित्व शुरू होता है क्योंकि लोकतंत्र ही हमारा स्पिरीट है। आप त्रिपुरा देख लीजिए, मैं देश के पॉलीटिकल पंडितों से कहना चाहूंगा और चुनौती दे कर के कहना चाहता हूं। कोई मुझे बताए, त्रिपुरा के अंदर 30 साल कम्यूनिस्टों की सरकार रही, क्या वहां कोई विपक्ष था, क्या वहां विपक्ष की कोई आवाज थी, क्या वहां विपक्ष को कभी सुना गया था? क्या दिल्ली के मीडिया में कभी विपक्ष की चर्चा हुई थी? कुचल दिया जा चुका था। आज त्रिपुरा में हम सत्ता में आए हैं, अभी तो दो साल मुश्किल से होने जा रहे हैं, आज वहां जानदार, शानदार विपक्ष मौजूद है और उसकी आवाज सुनी जाती है। ये लोकतंत्र स्पिरीट है, उसकी आवाज के तवज्जो दी जाती है और देश चलाने के लिए ये अपने आप में बहुत बड़ी बात होती है और जिम्मेवारी भी होती है, वो कोई उपकार नहीं है। मैं मानता हूं जो हमारे पूर्व राष्ट्रपति बार-बार कहते थे। पार्लियामेंट का उपयोग चर्चा के लिए होना चाहिए, चर्चा में आप भरपूर विरोध कीजिए ना, लेकिन जब चर्चा के लिए मुद्दे नहीं होते हैं, तर्क नहीं होते हैं, एक्सपोज होने का डर लगता है तो हो हल्ला करके संसद को ना चलने देना ये सरल मार्ग बन जाता है। हम विपक्ष की ताकत को स्वीकार कर के तवज्जो देने वाले, लोकतंत्र में विश्वास करने वाले लोग हैं और जहां-जहां हमें मौका मिला, वहां पर विपक्ष का आवाज, संख्या भले कम होती हो, जनता के अविश्वास के कारण उनकी जनसंख्या कम हो जाती है, वो उनकी जिम्मेवारी है जनता का विश्वास जीते, लेकिन संविधान हमें जिम्मेवारी देता है, एक भी क्यों ना हो उसकी आवाज का महत्व बड़ा है, ये हमारे जेहन में है।

दोस्तो, एक और बात है, हमारे देश के लोकतंत्र को वोटबैंक की राजनीति ने कुचल दिया है और इसलिए जो भी निर्णय होते हैं, चर्चा होती है। सबके बीच आकर हिम्मत से अपनी बात रखनी है तो ये वोटबैंक की राजनीति के दबाव में हमारे देश में कोई हिम्मत नहीं कर पाता है। क्या इस देश के सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को अपने हक के लिए इतना इंतजार करना पड़ा, कोई उनकी बात सुनने को तैयार नहीं था। ऐसा तो नहीं था की आवाज आ नहीं रही थी, ऐसा तो नहीं था की लोग रोष व्यक्त नहीं करते थे। ऐसा भी नहीं था की आंदोलन नहीं होते थे, होता सब कुछ था। लेकिन वोटबैंक की राजनीति के प्रभाव में ये करेंगे तो शायद कुछ खिसक जाएगा तो। ये हमारी निष्पक्ष सोच थी, वोटबैंक की राजनीति से ऊपर उठकर सबका साथ-सबका विकास को अवसर और उसका कारण है की हम सामान्य वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का फैसला कर सके। अगर हम वोटबैंक की राजनीति पर चलते तो शायद हम भी उसी में ढल जाते, हम नहीं ढले, देश के उज्जवल भविष्य के लिए जो आवश्यक है वो हम करेंगे। आज भी मेरी सूचना रहती है, गांव में घर मिलेगा, एक तरफ से लिस्ट के अंदर से शुरू करो, 51 लोग हैं 25 को देने वाले हैं, पहले 25 को दे दो फिर दूसरा बजट आए 26 से शुरू करो। कौन जाति का है, कौन बिरादरी का है, प्रधान से लेना-देना है, कोई लेना-देना नहीं है, वो मेरे देश का नागरिक है उसको मिलना चाहिए। मैं जानता हूं इन चीजों से मिलने वाले को कभी लगता नहीं है। वो इसे ही मानता है, ये नियम में मेरा नाम आया है, भाजपा वालों ने क्या किया, मोदी ने क्या किया, ये निगेटीविटी हो सकती है, नुकसान हो सकता है, लेकिन ये नुकसान झेल कर भी हमने देश में व्यवस्थाओं को सुचारु रूप से विकसित करने की हिम्मत दिखाई है।

साथियो, हम वो लोग हैं जो भारत की महान विरासत को लेकर के गौरव के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं, जो कालबाह्य है उसको छोड़ने वाले हम लोग हैंलेकिन जो सदियों से खरा उतरा है, ऋषियों ने, आचार्यों ने, भगवंतों ने, मजदूर ने, किसान ने, कामगार ने, शिक्षक ने, वैज्ञानिक ने हजारों सालों से देश की परंपरा को विकसित किया है औरों को शर्म आती हो आने दो, मुझे इसका गर्व होता है। जिनको शर्म आती है वो उनका प्रॉब्लम है, हमें लगता है कि हमारे महापुरुषों ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है और जिसकी विरासत भारत के पास है। इसलिए हम दो बातों को लेकर चलने का प्रयास करते हैं, एक ये महान विरासत और दूसरा आधुनिक विजन। हमें कल्चर को भी बरकरार रखना है और हमें करंट सिचुएशन को भी एड्रेस करना है। योग हो, आयुर्वेद हो, रामायण सर्किट हो, बुद्धिस्त सर्किट हो, भारत की महान विविधताएं हैं। अयोध्या में दीवाली मनाना, इतने साल तक किसने रोकी था भाई। कुंभ के मेले का उपयोग देश की मर्यादाओं को चूर-चूर करने के लिए हुआ है इतने सालों तक, एक ही प्रकार का परसेप्शन क्रिएट किया गया। कुंभ का मेला मतलब, नागा साधुओं की जमात, उस परसेप्शन को बदला जा सकता है और योगी जी के नेतृत्व में देश ने बदला है और उसका गौरव सिर्फ उत्तर प्रदेश नहीं पूरे भारत का हुआ है।

26 जनवरी को जब विजय चौक पर परेड होती है और विजय पथ पर टेब्ल्यू जाते हैं। पहली बार एशिया के अंदर भगवान राम को किस-किस रूप में देखा जाता है, उसका प्रगतिकरण देश ने देखा। लेकिन इसके साथ हम वो लोग हैं जो अटल टिंकरिंग लैब भी बनाते हैं ताकी मेरी जो नई पीढ़ी है, 8वीं, 10वीं कक्षा का जो बच्चा है, जो अटल टिंकरिंग लैब से इनोवेशन पर सोचे, नए अनुसंधान पर सोचे, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचे और भारत को 21वीं सदी में वैज्ञानिक अधिष्ठान पर ले जाए, इसके लिए भी हम उतनी ही ताकत लगा रहे हैं। इसलिए हम कल्चर को जितना महत्व देते हैं, हम 21वीं सदी के विजन को भी उतना ही प्रगढ़तापूर्वक आगे बढ़ाने के पक्ष में हैं। हमारे देश में पूजा-पाठ में सवा रुपए का महत्व है, लेकिन फिर भी भीम ऐप बनाकर के मोबाइल फोन से डिजिटली डोनेट करने की परंपरा हम विकसित कर रहे हैं। जरूरी नहीं है की पुराना तोड़-फोड़ कर ही सब कुछ नया बनाया जा सकता है, लेकिन हमने उन चीजों को आगे लिया है। हमने 11 नंबर की अर्थव्यवस्था से शुरू की थी यात्रा, आज 6 नंबर पर पहुंच गए दुनिया में। पांच नंबर के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं, 3 में पहुंचने के इरादे से काम कर रहे हैं। आज मेरे देश का नवजवान स्टार्ट-अप को लेकर के विश्व में ताकत बन कर उभर सकता है, तो स्टार्टअप को बल देकर देश के नवजवान की ताकत से विश्व को अचंभित करने की दिशा में बढ़ना चाहते हैं। इसलिए हम उन चीजों को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, जो लोग परसेप्शन बनाते हैं उन्होंने हमेशा ये बनाया और उनके लिए वो शायद एक ऐकेडेमिक डिसकशन होगा, लेकिन इस प्रकार की सोच से देश में दरारें पड़ती हैं। उनको पता भी नहीं होता है की उनकी ये सोच किस प्रकार से देश में दरार पैदा करती है। आज हिंदुस्तान का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहां भारतीय जनता पार्टी के प्रतिनिधि चुनते हों या ना चुनते हों, लेकिन लगातार हमारा वोट परसेंटेज बढ़ रहा है। केरल हो, तमिलनाडु हो, कश्मीर घाटी हो, आज लद्दाख से भी बीजेपी चुनकर आती है। फिर भी ये पंडित लोग बैठेंगे तो हिंदी हार्टलैंड की पार्टी, कर्नाटक में सबसे बड़ा दल फिर भी हम हिंदी हार्टलैंड, गोवा में हम सालों से सरकार चला रहे हैं फिर भी हिंदी हार्टलैंड, पूरे नार्थईस्ट में, वहां हिंदी भाषा समझना मुश्किल है फिर भी वहां हम सरकार चलाते हैं, असम में सरकार चलाते हैं। हम लद्दाख के अंदर चुनकर के आते हैं, एक ऐसा भ्रम पैदा किया गया है। हम एक सर्वसमावेशक, सर्वस्पर्शी और सर्वजनहिताय-सर्वजनसुखाय काम करने वाले भारतीय जनता पार्टी के हम लोग हैं।

भाइयो-बहनो, चुनाव जीतना एक काम है और लोकतंत्र का ये उत्सव आन, बान, शान के साथ हमने मनाया है। लेकिन अब 2022, आजादी के 75 साल, अधिकार की चर्चाएं हमने बहुत कर ली हैं, ये पांच साल कर्तव्य पर हम चल सकते हैं। इस देश का नागरिक अगर अपने कर्तव्यों का पालन करे तो किसी के अधिकारों का हनन होने वाला नहीं है। ये देश मेरा है, आज हमारे देश में एक मानसिकता बन गई है। आजादी का आंदोलन चला तो हम देश के लिए मर मिटते थे, लेकिन आजाद होने के बाद, स्कूल है तो हम आराम से कह देते हैं की ये सरकारी स्कूल है। अस्पताल, भाई ये तो सरकारी अस्पताल है, अरे भाई वो सरकारी नहीं है, वो तेरा है आप उसके मालिक हो। हमने ये भाव पैदा करना है, जो भी सरकारी है, वो भारत के हर नागरिक की मालिकी का है। और उसको बढ़ाना, उसको ताकत देना, उसकी रक्षा करना एक नागरिक के नाते हमारा कर्तव्य है। ये तो सरकारी स्कूल है भाई, वहां कौन जाएगा, ये सरकारी अस्पताल है वहां कौन जाएगा। जी नहीं, हम ही मिलकर सरकार हैं वो हमारा है, हम इसको ताकत कैसे दें। अपना स्कूटर तो हम दिन में चार बार साफ करते हैं, 20 साल पुराना हो, कलर उखड़ गया हो फिर भी चार बार साफ करते हैं। लेकिन सरकारी बस में बैठें और बगल में सीट खाली हो, बातें करने वाला ना हो और नींद आती नहीं हो तो क्या करते हैं, सीट में उंगली डालते हैं, यहां सबने किया होगा और अंदर से दो-तीन इंच का जब तक गढ्ढा ना करें हमको चैन नहीं आता है। भारत माता की जय बोलें और फिर बनारसी पान खा कर के, ये कौन से भारत माता की जय है भाई। उसी मां को गंदा करें, जिस मां का जयकारा करने के लिए हम संकट झेलते हैं, कहने का तात्पर्य ये है की ये देश मेरा है, ये देशवासी मेरे हैं। जिस स्पिरिट से आजादी का आंदोलन चला, उसी स्पिरिट से आजादी के 75 साल देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए हम आगे बढ़ आए और काशी कर के दिखाए।

साथियो, आज चुनाव की गहमागहमी के बाद, विजयोत्सव का माहौल अब धीरे-धीरे ठंडा हो रहा है तब अपनों के बीच मैं आया हूं, ज्ञान नगरी में आया हूं, महान विरासत की धरती पर आया हूं और उसमें से जो भाव जगा, उस भाव को मैंने आपके सामने प्रकट किया है। जब चुनाव का काम चल रहा था उसी समय इस वर्ष जिनको हमने पद्मश्री दिया था वो श्रद्धेय हीरालाल जी हमारे बीच नहीं रहे, जिन्होंने संगीत साधना में बहुत बड़ा योगदान किया। मैं आज जब उनके स्वर्गवास के बाद पहली बार आया हूं तो मैं आदरपूर्वक उनको श्रद्धांजली देता हूं। उनके परिवारजनों से तो मैंने बात की थी, लेकिन उन्होंने जो विरासत छोड़ी है उस विरासत के प्रति हम सब का गर्व बना रहे। मैं फिर एक बार आपके पुरुषार्थ के लिए, आपके परिश्रम के लिए, आपके समर्पण के लिए जी जान से जो मेहनत आपने की है, आप सब को हाथ जोड़कर नमन करते हुए मैं हृदय से धन्यवाद करता हूं। आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। सभी काशी के मतदाताओं का धन्यवाद, पूरे उत्तर प्रदेश का धन्यवाद। बहुत-बहुत धन्यवाद।

 

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प्रधानमंत्री 23 दिसंबर को नई दिल्ली के सीबीसीआई सेंटर में कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित क्रिसमस समारोह में शामिल होंगे
December 22, 2024
प्रधानमंत्री कार्डिनल और बिशप सहित ईसाई समुदाय के प्रमुख नेताओं से बातचीत करेंगे
यह पहली बार होगा, जब कोई प्रधानमंत्री भारत में कैथोलिक चर्च के मुख्यालय में इस तरह के कार्यक्रम में भाग लेंगे

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 23 दिसंबर को शाम 6:30 बजे नई दिल्ली स्थित सीबीसीआई सेंटर परिसर में कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) द्वारा आयोजित क्रिसमस समारोह में भाग लेंगे।

प्रधानमंत्री ईसाई समुदाय के प्रमुख नेताओं के साथ बातचीत करेंगे, जिनमें कार्डिनल, बिशप और चर्च के प्रमुख नेता शामिल होंगे।

यह पहली बार होगा, जब कोई प्रधानमंत्री भारत में कैथोलिक चर्च के मुख्यालय में इस तरह के कार्यक्रम में भाग लेंगे।

कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) की स्थापना 1944 में हुई थी और ये संस्था पूरे भारत में सभी कैथोलिकों के साथ मिलकर काम करती है।