प्रधानमंत्री ने कजाखस्तान के अस्ताना में नजरबायेव विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित किया
कजाखस्तान ने संयुक्त राष्ट्र सहित अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जिम्मेदारी और परिपक्वता दिखाई है: प्रधानमंत्री
2011-12 में यूएन सुरक्षा परिषद की सदस्यता के लिए भारत का समर्थन करने में कजाखस्तान की उदारता को भारतीय कभी नहीं भूल सकते: प्रधानमंत्री
भारत ने कजाखस्तान के साथ राजनीतिक, रक्षा और सुरक्षा सहयोग को मजबूत किया है

प्रधानमंत्री करीम मोसीमोव,

यूनीवर्सिटी के प्रेसिडेंट श्री शिजो कात्सू,

छात्रो और गणमान्य अतिथियो,

मैं आपके बीच यहां आकर प्रसन्नता महसूस करता हूं।



माननीय प्रधानमंत्रीजी, मैं आज यहां आपकी उपस्थिति से काफी सम्मानित महसूस कर रहा हूं। आप एक विद्वान और कई प्रकार की प्रतिभाओं वाले व्यक्ति हैं। आज मुझे पता चला है कि हिन्दी और योगा में आपके कौशल भी उनमें शामिल हैं।

मध्य एशिया के सभी पांच देशों की यात्रा पर होना एक बड़ी बात है। ऐसा हो सकता है कि यह पहली बार हुआ हो।

मैं सचमुच ऐसे महान देश और महान क्षेत्र की यात्रा के लिए उत्सुक हूं जिसे मानव इतिहास का इंजन कहा गया है।

यह सौन्दर्य और सांस्कतिक विरासत के साथ-साथ विशिष्ट उपलब्धियों और महान वीरता की धरती है।

यह एक ऐसा क्षेत्र भी है जो मानव सभ्यता की शुरुआत से लेकर भारत के साथ निरंतर जुड़ा रहा है।

इसलिए मैं एक पड़ोसी के रूप में इतिहास और सद्भावना के आकर्षण के साथ एक प्राचीन संबंध में एक नया अध्याय लिखने के लिए यहां आया हूं।

जैसा कि मैंने मध्य एशिया के लोगों से कहा है, आज रात मैंने नजरबायेब यूनीवर्सिटी से बेहतर स्थान चुनना जरूरी नहीं समझा है।

एक छोटे समय में यह एक विशिष्ट शिक्षा केन्द्र के रूप में उभरा है। और, इस वर्ष यहां से उत्तीर्ण होने वाले सबसे बैच को मैं बधाई देता हूं।

यह यूनीवर्सिटी राष्ट्रपति नजरबायेब के दृष्टिकोण को दर्शाता है कि शिक्षा राष्ट्र की प्रगति और नेतृत्व की आधारशिला है।

यह कजाख्स्तान के महान लेखक अबाई कुनानबायेव की याद दिलाता है, जिन्होंने कजाख्स्तान के लोगों के लिए शिक्षा को एक ढाल और स्तम्भ माना था।

आज कजाख्स्तान को एक वैश्विक दर्जे के राष्ट्र के रूप में सम्मान मिलता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रकृति माता ने आपको प्रत्येक तरह के संसाधनों से उदारतापूर्वक परिपूर्ण किया है।

शिक्षा, मानवीय संसाधनों और बुनियादी सुविधाओं के क्षेत्र में आपके निवेश के फलस्वरूप ऐसा संभव हुआ है। इससे पिछले दस वर्षों में अर्थव्यवस्था को चार गुणा बढ़ाने में मदद मिली है।

शांति के लिए आपकी अगुवाई और महान यूरेशियाई क्षेत्र में सहयोग के बल पर यह संभव हुआ है।

आपके दृष्टिकोण से हमें एशिया में वार्ता के लिए सम्मेलन और विश्वास कायम करने की प्रेरणा मिली है।

कजाख्स्तान संयुक्त राष्ट्र सहित अंतर्राष्ट्रीय मंचों में उत्तरदायित्व और परिपक्वता की एक आवाज है।

वर्ष 2011-12 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता के लिए भारत के प्रयासों में कजाख्स्तान की उदारता को कोई भारतीय नहीं भूल सकता है। वर्ष 2017-18 में हम आपके प्रयासों के साथ पूरी एकजुटता के साथ खड़े हैं।

कजाख्स्तान की तरह ही मध्य एशिया का शेष हिस्सा भी उन्नति कर रहा है। इन देशों ने मात्र दो दशक से थोड़े अधिक समय पहले स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद अपनी पहचान बनाई है।

मध्य एशिया के देशों को मानवीय और प्राकृतिक संसाधन प्रचुरता से मिले हैं।

मैं यहां ताशकंद से होते हुए आ रहा हूं। उज्बेकिस्तान में आर्थिक विकास और प्रगति की गति तेज है। तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गीस्तान अपने संसाधनों के बल पर भविष्य में बेहतर समृद्धि की ओर अग्रसर हैं।



आपने एक ऐसे समय में एक आधुनिक, समावेशी और बहुलवादी राष्ट्रों का निर्माण किये हैं, जब बहुत से क्षेत्र विवाद और उथल-पुथल में उलझे हैं।

क्षेत्र के लिए आपकी सफलता का उतना ही महत्व है जितना की विश्व के लिए।

मध्य एशिया यूरेशिया के चौराहे पर खड़ा है। यह इतिहास की धारा में फंसा है तथा इसने इसका आकार भी तय किया है।

इसने साम्राज्यों का उथान और पतन देखा है। इसने व्यापार को फूलते-फलते और गिरते हुए भी देखा है।

साधु-संतों, व्यापारियों और सम्राटों के लिए यह एक गंतव्य और मार्ग दोनों रहा है।

यह पूरे एशिया की संस्कृति और मतों का एक मध्यस्थ रहा है।

आपने मानव सभ्यता को काफी उपहार दिये हैं। मानवीय प्रगति पर आपकी अमिट छाप है।

और, पिछले दो हजार वर्षों से भी अधिक समय में भारत और मध्य एशिया ने एक-दूसरे को काफी प्रभावित किया है।

शदियों से विश्व के इस हिस्से में बौद्ध धर्म फूला-फला है और इसने भारत में बौद्ध कला को भी प्रभावित किया है। यहां से शुरू होकर यह पूरब की ओर फैला है।

इस मई में मैंने मंगोलिया स्थित गेंडन मोनास्ट्री की यात्रा की थी जो मुझे पूरे एशिया को जोड़ने वाली यात्रा लगी।

भारतीय और इस्लामिक सभ्यताओं का मिलन मध्य एशिया में हुआ। हमने ने केवल अपने अध्यात्मिक विचारों से उन्हें समृद्ध बनाया बल्कि औषधि, विज्ञान, गणित और खगोल विज्ञान से भी।

भारत और मध्य एशिया दोनों की इस्लामी विरासत इस्लाम के सर्वश्रेष्ठ आदर्शों-ज्ञान, दया, अनुकम्पा और कल्याण द्वारा परिभाषित है। यह एक ऐसी विरासत है जो प्रेम और निष्ठा के सिद्धांत पर आधारित है। और, इसने हमेशा उपद्रवी तत्वों को खारिज किया है।

आज, यह एक ऐसी महत्वपूर्ण शक्ति का स्रोत है जो भारत और मध्य एशिया को एक साथ जोड़ता है।

हमारे संबंधों की मजबूती, हमारे नगरों की आकृतियों और हमारे दैनिक जीवन के विभिन्न रूपों में अंकित है। हम इसे वास्तुकला और कला के साथ-साथ हस्तशिल्प और वस्त्रों तथा अधिकांश लोकप्रिय व्यंजनों में देखते हैं।

दिल्ली की दरगाहों में सूफी संगीत की ध्वनि सभी मतों के लोगों को अपनी ओर खींचती है।

पूरी दुनिया में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिए एक साथ आने से काफी पहले मध्य एशिया के नगर योगा और हिन्दी के केन्द्र बन गये थे।

उज्बेकिस्तान ने हाल में हिन्दी में आकाशवाणी के प्रसारण के 50 वर्ष पूरे किये हैं। रामायण और महाभारत जैसे हमारे महाकाव्य उज्बेक टेलीविजन पर उतने लोकप्रिय हैं, जितना कि भारत में।

आपमें से बहुत से लोग नवीनतम बॉलीवुड फिल्म के रिलीज होने की उतनी ही उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं, जितना कि भारत के लोग।

यह हमारे दोनों देशों के लोगों के बीच सद्भावना का स्रोत है। यह दिलों और भावनाओं के संबंधों की आधारशिला है। और, इसे केवल व्यापार अथवा राज्यों की मांगों द्वारा मापा नहीं जा सकता।

अपने राष्ट्रों की स्वतंत्रता के शीघ्र बाद राष्ट्रपति नजरबायेव और मध्य एशियाई गणराज्यों के अन्य नेताओं के भारत आने से भी यह प्रमाणित होता है।

तब से लेकर हमारे राजनीतिक संबंध मजबूत हुए हैं। रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में हमारा सहयोग बढ़ रहा है।

हमारा व्यापार बढ़ रहा है, किंतु अभी भी कम है। ऊर्जा क्षेत्र में हमारा सहयोग शुरू हो गया है। बाद में आज हम भारत के निवेश से उज़्बेकिस्तान में पहले तेल कुएं की खुदाई शुरू करेंगे।

मध्य एशिया में भारतीय निवेशों का प्रवाह शुरू हो गया है। साथ ही, भारतीय पर्यटकों का आगमन भी बढ़ रहा है। मध्य एशिया की पांच राजधानियों को प्रति सप्ताह 50 से भी अधिक उड़ानें भारत के साथ जोड़ती हैं। और, इसमें उतना ही समय लगता है जितना दिल्ली से चेन्नई तक की उड़ानों में।

मानव संसाधन के विकास के क्षेत्र में हमारी काफी प्रगति हुई है। मध्य एशिया के हजारों व्यवसायिकों और छात्रों ने भारत में प्रशिक्षण प्राप्त किये हैं। भारत से बहुत से लोग इस क्षेत्र में स्थित विश्वविद्यालयों में आए।

हमने क्षेत्र में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के विशिष्ट केन्द्र स्थापित किये हैं। और, हमें इस बात से भी प्रसन्नता है कि इस क्षेत्र में तीन भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र हैं।

इसके बावजूद भी हम सबसे पहले यह कहते हैं कि भारत और मध्य एशिया के बीच संबंध इसकी आवश्यकताओं और संभावनाओं की तुलना में कम हैं।

हमारे दिलों में एक-दूसरे के प्रति खास जगह है। किन्तु, हमने एक-दूसरे की ओर उतना ध्यान नहीं दिया है जितना देना चाहिए।

यह स्थिति बदलेगी।

यही कारण है कि मैं अपनी सरकार के शुरुआती चरणों में ही क्षेत्र के सभी पांच देशों की यात्रा कर रहा हूं।

भारत और मध्य एशिया दोनों ही एक-दूसरे के बिना अपनी संभावना का लाभ नहीं प्राप्त कर सकते। न ही हमारे सहयोग के बिना। हमारी जनता सुरक्षित नहीं होगी और न ही हमारा क्षेत्र अधिक संतुलित हो सकेगा।

भारत कुल जनसंख्या का छठा हिस्सा है। यह 80 करोड़ युवाओं का देश है जो भारत और विश्व में प्रगति और बदलाव का एक वृहद बल है।

हमारी अर्थव्यवस्था प्रति वर्ष 7.5 प्रतिशत बढ़ रही है। हम भविष्य में और भी अधिक ऊंची विकास दर तक पहुंच सकते हैं।

भारत विश्व के लिए अवसरों का नया गंतव्य है।

मध्य एशिया व्यापक संसाधनों, प्रतिभावान लोगों, तीव्र विकास और सटीक अवस्थिति का एक बड़ा क्षेत्र है।

इसलिए, मध्य एशिया के साथ अपने संबंधों के एक नये युग की शुरुआत के लिए मैं यहां आया हूं।

भारत समृद्धि की एक नयी साझेदारी में और भी अधिक निवेश करने के लिए तैयार है।

हम न केवल खनिज और ऊर्जा के क्षेत्र में, बल्कि औषधि, वस्त्र, अभियंत्रण और लघु तथा मध्य उद्यमों जैसे उद्योगों में भी साथ मिलकर काम करेंगे। हम यहां तेलशोधकों, पेट्रोरसायनों और उर्वरक संयंत्रों में निवेश कर सकते हैं।

हम अपने युवाओं के लिए धन और अवसरों को तैयार करने के उद्देश्य से सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की मजबूती का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आज, मैं भारत के एक सुपर कम्प्यूटर के साथ अस्टाना में एक विशिष्टता केन्द्र का उद्घाटन करूंगा।

हम विकास और संसाधन प्रबंधन के क्षेत्र में निकट साझेदारी के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की पहुंच का इस्तेमाल कर सकते हैं।

हम कृषि और दूध उत्पादन जैसे क्षेत्रों में व्यापक अवसरों की संभावना देखते हैं। हम पारंपरिक औषधियों के क्षेत्र में अपने पुराने संबंधों में नवीनता ला सकते हैं।

मध्य एशिया भारतीय पर्यटकों के लिए एक प्राकृतिक गंतव्य है।

हम संस्‍कृति, शिक्षा और अनुसंधान में अपने आदान-प्रदान को बढ़ा रहे हैं और हम अपने युवाओं को और जोड़ेंगे।

इस अशांत दुनिया में, हमें अपने मूल्‍यों, अपने राष्‍ट्रों की सुरक्षा और अपने क्षेत्र की शांति की रक्षा के लिए अपने रक्षा और सुरक्षा सहयोग को भी मजबूत बनाना चाहिए। हम अस्थिरता के मुहाने पर रहते हैं। हम उग्रवाद और आतंकवाद की धार के काफी करीब रहते हैं।

हम राष्‍ट्रों और समूहों के द्वारा रचित आतंकवाद को देखते हैं। आज, हम यह भी देखते हैं कि अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए नये सदस्‍यों को आतंकी गतिविधियों में शामिल करने हेतू साइबर सुविधाएं सीमा रहित मंच बन चुके हैं।

संघर्षो के युद्ध क्षेत्रों से लेकर के दूर के शहरों के शांत पड़ोसियों के लिए, आतंकवाद एक ऐसी वैश्विक चुनौती बन गया है जो पहले कभी नहीं थी।

यह एक ऐसी ताकत है जो अपने बदले हुए नामों, स्थानों और लक्ष्य की तुलना में अधिक व्‍यापक और स्‍थायी है।

इसलिए, हम अपने आप से पूछना चाहिए: क्‍या हम युवाओं की एक पीढ़ी को बंदूकों और नफरत के साये में जाने देंगे, वे अपने खोए हुए भविष्य के लिए हमें उत्‍तरदायी मानेंगे?

इसलिए, इस यात्रा के दौरान, हम क्षेत्र में अपने रक्षा और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करेंगे। लेकिन, हमें अपने मूल्यों की शक्ति और मानवतावाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के द्वारा आतंकवाद का मुकाबला भी करना होगा।

यह एक उत्‍तरदायित्‍व है कि भारत और मध्‍य एशियाई देशों को अपनी साझा विरासत और अपने क्षेत्र के भविष्‍य को सँवारना होगा। हमारे सम्मिलित मूल्‍य और आकांक्षाएं संयुक्‍त राष्‍ट्र सहित करीबी अंतर्राष्‍ट्रीय साझेदारी की भी आधारशिला हैं।

लेकिन, एक परिवर्तित दुनिया में, हम संयुक्‍त राष्‍ट्र के बढ़ते संस्‍थागत अपक्षरण को देखते हैं। राष्ट्रों के रूप में जो अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए प्रतिबद्ध हैं, हमें इसे अपने समय अनुसार प्रासंगिक बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। जैसे ही संयुक्त राष्ट्र के 70 वर्ष पूर्ण होते हैं, तो हमें संयुक्त राष्ट्र, विशेष रूप से इसकी सुरक्षा परिषद, के सुधारों के लिए दबाव बनाना चाहिए।

शंघाई सहयोग संगठन में भारत की सदस्यता हमारी क्षेत्रीय साझेदारी को और गहरा बनाएगी।

और हम इस क्षेत्र के साथ मजबूत एकीकरण के लिए यूरेशियन आर्थिक संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर एक अध्ययन शुरू कर चुके हैं।

यह एक युग है जिसमें अंतरिक्ष और साइबर सड़कों और रेलों को कम प्रासंगिक बना रहे हैं।

लेकिन, हम व्यापार, पारगमन और ऊर्जा कि लिए अपने भौतिक संपर्को का भी फिर से निर्माण करेंगे।

अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर भारत के लिए यूरेशिया हेतू एक प्रतिस्पर्धी और त्वरित मार्ग खोलता है। और, मुझे आशा है कि सारा मध्य एशिया इसमें शामिल हो जाएगा।

हमें व्यापार और पारगमन पर अश्गाबात समझौते में शामिल होने की उम्मीद है।

ईरान के चाहबहार बंदरगाह में भारत का निवेश हमें मध्य एशिया के करीब लाएगा।

मुझे यह भी उम्मीद है कि हम पाकिस्तान और अफगानिस्तान के माध्यम से मध्य एशिया के लिए परंपरागत मार्ग को फिर से प्रारंभ कर सकते हैं।

गैस पाइपलाइन पर तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के बीच समझौते से हम आत्मविश्वास को बना सकते हैं।

यदि हम जुड़ जाते हैं तो यह क्षेत्र सबसे समृद्ध बन जाएगा।

नि:संदेह, एशियाई शताब्‍दी की हमारी आशाएं सच हो जाएगीं, जब हम एशिया को दक्षिण, पश्चिम, पूर्व या मध्य के रूप में न देखकर एक देखेंगे। जब हम सब एक साथ समृद्ध होंगे।

इसके लिए, हमें एशिया के विभिन्न भागों जोड़ना होगा।

भारत एशिया की भूमि और समुद्री मार्गों के चौराहे पर है। हम अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। और, हम भूमि और समुद्र के द्वारा पूर्व और पश्चिम से स्‍वयं को जोड़ने के लिए प्राथमिकता की भावना के साथ काम कर रहे हैं।

एशिया में स्‍वयं और अपने से परे दूसरों को फिर से जोड़ने में वृद्धि हुई है।

2002 में, हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने यहां एक नये रेशम मार्ग की पहल का आहवान किया था। ।

आज संपूर्ण एशिया गौरवशाली प्राचीन सिल्क रोड के पुनरुद्धार की दिशा में प्रयासरत है।

लेकिन, हमें इतिहास के सबक को भी याद रखना चाहिए।

रेशम मार्ग के विकास से मध्य एशिया के भाग्य समृद्धि आएं।

रेशम मार्ग के अंत सिर्फ नवीन यूरोपीय शक्तियों के समुद्र आधारित व्यापार की वृद्धि से ही नही हुआ। यह इसलिए भी हुआ क्‍योंकि मध्‍य एशिया में क्षेत्रों के बीच एक दीर्घकालिक सेतू नहीं था, और पूर्व, पश्चिम एवं दक्षिण के महान शासकों के बीच सामजस्‍य का ना होना भी था।

जब यह एक व्‍यापारिक केन्‍द्र नहीं था, बल्कि उच्‍च शक्तिशाली दीवारों की छाया से घिरी एक भूमि थी। मध्‍य एशियाई देशों ने इंकार कर दिया और व्‍यापार समाप्‍त हो गया।

इसके लिए, मध्‍य एशिया के महान राष्‍ट्रों को यूरेशिया में अपनी केन्‍द्रीय भूमिका को बढ़ाना चाहिए।

यूरोप से एशिया तक, इस क्षेत्र में सभी देशों को प्रतिस्‍पर्धा और बहिष्‍कार नहीं अपि‍तु सहयोग और समन्‍वय के एक वातावरण को बढ़ावा चाहिए।

इस क्षेत्र को संघर्ष और आतंकवाद की हिंसा से मुक्‍त एक स्थिर और शांतिपूर्ण क्षेत्र होना चाहिए।

और जैसे मध्य एशिया से पूर्व और पश्चिम जुड़ता है उसी प्रकार इसे दक्षिण से भी जोड़ना होगा।

वैश्वीकरण के इस दौर में, एशिया खंडित नहीं रह सकता। और, मध्य एशिया भारत से दूर और अलग नहीं रह सकता।

मुझे विश्‍वास है हम ऐसा कर सकते हैं। हमारे पूर्वजों ने अध्यात्मवाद, ज्ञान, और बाजारों के लिए शक्तिशाली हिमालय, काराकोरम, हिंदू कुश और पामीर को पार किया।

हम सभी 21 वीं सदी के रेशम मार्ग के निर्माण के लिए मिलकर कार्य करेंगे। हम अंतरिक्ष और साइबर के साथ-साथ भूमि और समुद्र के माध्‍यम से भी एक दूसरे को जोड़ेगे।

मैं इस क्षेत्र के एक कवि अबदूराहिम ओटकुर की कुछ पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्‍त करता हूँ। उन्होंने कहा:

"हमारे मार्ग रहते हैं, हमारे सपने रहते हैं, सब कुछ रहता है, फिर भी, बहुत दूर तक रहता है,

यहां तक कि यदि वायु बहती है, या रेत बिखरता है, वे कभी भी हमारे मार्गो को ढक नहीं पाते,

हालांकि हमारे अश्‍व बहुत कमजोर होते हैं तथापि हमारा कारवां नही रूकता,

चलते हुए अथवा अन्‍य किसी रूप में, एक दिन ये मार्ग हमारे पोत्रों के द्वारा अथवा हमारे महान पोत्रों के द्वारा ढूंढ लिए जाएगें"

मैं आपसे यह कहता हूँ: भारत और मध्य एशिया अपने उस वायदे को पूरा करेंगे।

धन्यवाद।

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