प्रधानमंत्री मोदी ने सिंगापुर की आजादी के 50 साल पूरे होने पर वहां के लोगों को बधाई दी
प्रधानमंत्री मोदी ने ली कुआन यू को श्रद्धांजलि दी और उन्हें आधुनिक सिंगापुर का निर्माता बताया
ली कुआन यू सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत; उनकी सिंगापुर कहानियों से मैंने कई चीज़ें सीखी हैं: प्रधानमंत्री मोदी
स्वच्छ भारत सिर्फ हमारे पर्यावरण को साफ करने का नहीं बल्कि हमारी सोच, जीवनशैली और कार्यशैली में बदलाव लाने का कार्यक्रम है: पीएम मोदी
मैं अपने प्रयासों की सफ़लता नंबरों में नहीं बल्कि लोगों के चेहरों पर आने वाली मुस्कराहटों के आधार पर आंकता हूँ: प्रधानमंत्री मोदी
सिंगापुर एक ऐसा देश है जो सपनों को सच बनाने का रूपक बन गया है: प्रधानमंत्री मोदी
राष्ट्र का क्षेत्रफल उसकी उपलब्धियों के पैमाने के लिए कोई बाधा नहीं है: प्रधानमंत्री मोदी
सफलता की कुंजी: मानव संसाधन की गुणवत्ता, लोगों का विश्वास और राष्ट्र का संकल्प: प्रधानमंत्री
हम अपने लोगों को सशक्त करना चाहते हैं: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
हम ऐसी स्थिति बनाना चाहते हैं जिसमें उद्योग का विस्तार हो, अवसर बढ़ें और हमारे नागरिकों की क्षमताओं का समुचित उपयोग हो: प्रधानमंत्री
भारत बदलाव की दिशा में आगे बढ़ रहा है; आत्मविश्वास बढ़ रहा है; संकल्प मजबूत हुआ है और विकास की दिशा स्पष्ट है: प्रधानमंत्री
भारत और सिंगापुर अतीत में विभिन्न अवसरों पर एक साथ रहे हैं: प्रधानमंत्री मोदी
सिंगापुर दुनिया के लिए भारत का स्प्रिंगबोर्ड और पूर्वी देशों के लिए गेटवे है: प्रधानमंत्री मोदी
एशिया का पुनः उद्भव हमारे युग की सबसे बड़ी घटना: प्रधानमंत्री मोदी
एशिया की गतिशीलता और समृद्धि को बनाए रखने के लिए भारत आशा की एक किरण: प्रधानमंत्री मोदी
भारत सभी के लाभ के लिए समुद्र को सुरक्षित, संरक्षित और मुक्त रखने के लिए हरसंभव सहयोग देगा: प्रधानमंत्री मोदी
आतंकवाद एक प्रमुख वैश्विक चुनौती है और अलग-अलग समूहों से भी बड़ी ताकत है: प्रधानमंत्री मोदी
आतंकवाद सिर्फ मानव जीवन का नुकसान ही नहीं बल्कि अर्थव्यवस्थाओं को भी प्रभावित कर सकता है: प्रधानमंत्री मोदी 

महामहिम, प्रधानमंत्री ली सीन लूंग

महामहिम, उपप्रधानमंत्री थरमन षनमुगरत्नम

माननीय मंत्रियों,

प्रोफेसर टेन ताई योंग,

विशिष्ट अतिथिगणों,

सिंगापुर व्याख्यान देने के विशेषाधिकार और सम्मान के लिए धन्यवाद।

मैं इस बात को लेकर सचेत हूं कि मुझे उन नेताओं - पूर्व राष्ट्रपति श्री एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व प्रधानमंत्री श्री पीवी नरसिम्हा राव और पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, के नक्शेकदम पर चलना है, जिन्होंने आधुनिक भारत और इस क्षेत्र के साथ हमारे संबंधों को आकार दिया। 

प्रधानमंत्री महोदय,  मैं यहां हमारे बीच आपकी उपस्थिति से सम्मानित महसूस कर रहा हूँ। 

हम जी -20 एवं आसियान और पूर्व एशिया शिखर सम्मेलनों के लिए पिछले कुछ हफ्तों से साथ रहे हैं। 

यह बताता है कि दोनों देशों की नियति कितनी गहराई से जुड़ी हुई है। 

आजादी के 50 साल पर मैं सिंगापुर के लोगों को 1.25 अरब दोस्तों और प्रशंसकों की ओर से शुभकामनाएं देता हूं। 

मनुष्य और राष्ट्रों के जीवन में  समय-समय पर मील के पत्थर का आना प्राकृतिक होता है। 

लेकिन, कुछ ही देश उस गर्व और संतोष की भावना के साथ अपने अस्तित्व के पहले पचास साल का जश्न मना सकते हैं, सिंगापुर जिसके योग्य है। 

मैं हमारे समय के सबसे बड़े नेताओं में से एक और आधुनिक सिंगापुर के वास्तुकार ली कुआन यू को श्रद्धांजलि देते हुए अपनी बात शुरू करने से बेहतर कुछ नहीं कर सकता।

उनके मिशन को अपने शब्दों में कहूं तो उन्होंने सिंगापुर को सफल देखने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। 

और यह उनका ही चितपरिचित फौलादी संकल्प था कि उन्होंने सिंगापुर को उसके स्वर्ण जयंती वर्ष के जरिए देखा। 

उनका प्रभाव वैश्विक था। और उनके लिए भारत एक शुभचिंतक था, जो सच्ची दोस्ती की ईमानदारी के साथ बात करता है। उन्हें भारत में कइयों की तुलना में भारत की घरेलू क्षमता और विदेश में भूमिका पर भरोसा था। 

मेरे लिए, वह एक व्यक्तिगत प्रेरणा थे। उनकी सिंगापुर की कहानी से मैंने कई बातें सीखीं। 

सबसे प्रभावी और अभी तक का सबसे साधारण विचार यह है कि एक राष्ट्र के परिवर्तन की यात्रा खुद के रहने के तरीके में बदलाव से शुरू होती है। इसीलिए अपने शहर और आसपास के क्षेत्र को स्वच्छ रखना, आधुनिक ढांचा निर्मित करने की ही तरह महत्वपूर्ण है। 

भारत में मेरे लिए भी स्वच्छ भारत अभियान महज पर्यावरण को स्वच्छ बनाने का कार्यक्रम नहीं है बल्कि यह हमारी सोच, जीवनशैली और कामकाज के तरीकों में परिवर्तन लाने के लिए है। 

गुणवत्ता, दक्षता और उत्पादकता महज तकनीकी उपाय नहीं हैं,  अलबत्ता यह मनःस्थिति और जीवन का एक तरीका भी हैं। 

इसलिए, मार्च की मेरी सिंगापुर यात्रा और भारत में एक दिन के शोक के दौरान हम एक सच्चे दोस्त और एक बहुत ही खास रिश्ते का सम्मान देना चाहते थे। 

सिंगापुर सपनों को वास्तविकता में बदलने वाला एक रूपक राष्ट्र बन गया है। 

सिंगापुर हमें बहुत सी बातें सिखाता है।

उपलब्धियां प्राप्त करने के लिए किसी राष्ट्र का आकार कोई बाधा नहीं होता। 

 संसाधनों की कमी प्रेरणा, कल्पना  एवं नवाचार के लिए कोई बाधा नहीं है। 

जब एक राष्ट्र विविधता को गले लगाता है, तो वह एक साझे उद्देश्य के पीछे एकजुट हो सकता है। 

और, अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व विचारों की शक्ति से उभरता है, ना कि सिर्फ ताकत के रूढ़िवादी उपायों से। 

सिंगापुर ने किसी देश के सिर्फ एक पीढ़ी के भीतर ही समृद्धि के उच्चतम स्तर में प्रवेश करने से ज्यादा हासिल किया है। 

उसने इस क्षेत्र की प्रगति के लिए प्रेरित किया और अपने एकीकरण का नेतृत्व किया है। 

और, उसके कारण दूसरों ने भी माना है कि प्रगति की संभावना हमारी पकड़ के भीतर ही है। यह एक अनदेखी और दूर से नजर आने वाली आशा नहीं है। 

सिंगापुर की सफलता महज आंकड़ों की समग्रता और निवेश के आकार से नहीं है। 

यह उससे है, जिसे मैं सफलता की कुंजी मानता हूं। यह मानव संसाधनों की गुणवत्ता, लोगों के विश्वास और एक राष्ट्र के संकल्प पर आधारित है। 

गणमान्य सदस्यो एवं दोस्तो, 

यह वही नजरिया है जिसके साथ हम भारत में परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहे हैं।   

हमारे प्रयासों का उद्देश्य जनता है  और वही परिवर्तन के पीछे की शक्ति होगी। 

मैं आंकड़ों से हमारे प्रयासों की सफलता को परखना नहीं चाहता लेकिन लोगों के चेहरे पर मुस्कान की सुर्ख चमक से इसे देखना चाहता हूं।

इसलिए, हमारी नीतियों का एक हिस्सा हमारे लोगों को सशक्त करने के लिए है। 

दूसरा हिस्सा ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करना है जिनमें उद्यम पनपे, अवसरों का विस्तार हो और हमारे लोगों की क्षमताएं उभरकर सामने आएं। 

तभी तो हम, कौशल और शिक्षा के माध्यम से हमारे लोगों में निवेश कर रहे हैं। हमारा विशेष ध्यान बालिकाओं, वित्तीय समावेशन;  स्थायी निवास; स्वच्छ नदियों और स्मार्ट शहरों पर है। हम चाहते हैं कि हमारे सभी नागरिकों की पानी एवं साफ-सफाई जैसी सभी बुनियादी जरूरतें पूरी हों। 

हम एक ऐसे पर्यावरण का पोषण एवं रक्षा करेंगे जिसके तहत हर नागरिक आता हो और वह उसमें भागीदार हो। हम अवसरों को लेकर उनके भरोसे और अधिकारों को सुरक्षित रखेंगे। 

और, हम कानूनों, नियमों, नीतियों, प्रक्रियाओं और संस्थाओं में सुधार से अवसरों का सृजन कर रहे हैं। हमारे शासन के अपने तरीकों और राज्य सरकारों के साथ काम करने के तरीकों में भी बदलाव आया है। 

परिवर्तन के इस साझा सॉफ्टवेयर के साथ ही हम तरक्की के हार्डवेयर का भी निर्माण कर रहे हैं। इसमें अगली पीढ़ी का बुनियादी ढांचा, निर्माण क्षेत्र में बदलाव, कृषि सुधार, आसान व्यापार और स्मार्ट सेवाएं शामिल हैं। 

यही वजह है कि हम एक ही समय में कई मोर्चों पर आगे बढ़ रहे हैं। हम एक व्यापक रणनीति को बनाने वाले संबंधों से परिचित हैं।  

कुछ समय पहले मुझे पता चला कि सिंगापुर के लोगों को भारत के बारे में अच्छी खासी जानकारी है। ऐसा भारत के साथ-साथ यहां आने वाले लोगों की संख्या के कारण है। 

किसी में मामले में, मेरे लिए, दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के प्रमुख के रूप में भारत के उद्भव से अधिक टिकाऊ यह है कि बदलाव का पहिया तेजी से घूमे, आत्मविश्वास बढ़े, संकल्प मजबूत हो और दिशा स्पष्ट हो। 

सुदूरवर्ती गांव और सबसे अधिक दूर रहने वाला नागरिक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में शामिल होना चाहता है और यह विचार देश भर में फैल रहा है। 

विशिष्ट अतिथिगणों,

भारत और सिंगापुर समय के कई चौराहे पर एक साथ खड़े रहे हैं। 

हमारा रिश्ता इतिहास के पन्नों, संस्कृति के पद्चिह्नों, रिश्तेदारी और पुराने वाणिज्यिक संबंधों से लिखा गया है। 

हम स्वतंत्रता की भोर में मित्रवत साथ खड़े थे और हम साझा आशाओं की भागीदारी के लिए एक-दूसरे तक पहुंचे हैं। 

सिंगापुर की सफलता भारतीयों की एक आकांक्षा बन गया और वहीं भारत अधिक शांतिपूर्ण, संतुलित और स्थिर दुनिया के लिए एक आशा बनकार उभरा। 

जब भारत ने खुलापन दिखाना शुरू किया तो सिंगापुर भारत के आगे बढ़ने की प्रेरणा और पूर्व के लिए प्रवेश द्वार बन गया। 

ससम्मान सेवामुक्त वरिष्ठ मंत्री गोह चोक तोंग से ज्यादा किसी ने इसके लिए मेहनत नहीं की और उनसे ज्यादा किसी को इसका श्रेय नहीं जाता। उन्होंने भारत को सिंगापुर और इस क्षेत्र से फिर से जोड़ा।  

उन्होंने विशाल संभावनाओं के लिए मेरी भी आंखें खोली। 

आज, सिंगापुर दुनिया में हमारे सबसे महत्वपूर्ण साझेदारों में से एक है। यह रिश्ता जितना व्यापक है, उतना ही सामरिक भी है। 

हमारे रक्षा और सुरक्षा संबंध व्यापक हैं। यह साझा हितों और साझा दृष्टिकोण से प्रतीत होता है। सिंगापुर के साथ और भारत में नियमित रूप से अभ्यास होता है। 

सिंगापुर दुनिया में भारत के लिए सबसे बड़ा निवेश स्रोत और गंतव्य है। यह दुनिया में भारत से सबसे ज्यादा जुड़ा राष्ट्र है। यह  दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है  और  पर्यटकों एवं छात्रों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है। 

अब जब हम अपने सपनों के भारत का निर्माण कर रहे हैं, सिंगापुर पहले से ही इन कार्यों में प्रमुख भागीदार है -  विश्वस्तरीय मानव संसाधन, स्मार्ट सिटी, स्वच्छ नदियों, स्वच्छ ऊर्जा अथवा अगली पीढ़ी का टिकाऊ बुनियादी ढांचा। 

बेंगलुरू में पहली आईटी पार्क से शुरुआत के बाद अब इसमें भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश की नवीनतम राजधानी अमरावती भी शामिल है। 

हमारी अर्थव्यवस्थाओं के विकास से साथ ही हमारी साझेदारी का विस्तार होगा और व्यापार एवं निवेश के ढांचे में आगे सुधार देखने को मिलेगा। 

लेकिन मैंने हमेशा सिंगापुर को उन्नत रूप में देखा है।

भोजन और पानी से लेकर स्वच्छ ऊर्जा और चिरस्थायी आवास जैसी 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने में सिंगापुर की सफलता ने मुझे उसके साथ साझेदारी करने को प्रेरित किया। 

और सिंगापुर कई तरीकों से इस शताब्दी में हमारे क्षेत्र की प्रगति को प्रभावित करेगा।

माननीय प्रधानमंत्री और गणमान्य सदस्य,

यह क्षेत्र एशिया प्रशांत और हिंदमहासागर क्षेत्र का प्रमुख भाग है। हालांकि हमने इसे प्रभाषित करने के लिए चुना है। इसका परस्पर संबद्ध इतिहास और परस्परसंबद्ध नीयती को रेखांकित करने वाले विषय बिलकुल स्पष्ट हैं। 

यह स्वतंत्रता और समृद्धि के विस्तार का क्षेत्र है। यह सबसे अधिक जनसंख्या वाले दो राष्ट्रों, इस दुनिया की कुछ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं, और विश्व के सबसे प्रतिभाशाली और कड़ी मेहनत करने वाले लोगों का घर है। 

एशिया का पुनः उत्थान होना हमारे युग की सबसे महान घटना है। 

पिछली सदी के मध्य में छाए अंधेरे से जापान ने एशिया के उत्थान का नेतृत्व किया है। इसके बाद विकास की इस गति का दक्षिण-पूर्व एशिया, कोरिया और चीन की ओर विस्तार हुआ और अब भारत सतत एशियाई गतिशीलता और संमृद्धि को बनाए रखने की एक उज्ज्वल आशा का केंद्र बन गया है। 

लेकिन यह अनेक अनसुलझे सवालों और अनुत्तरित विवादों, प्रतिस्पर्धी दावों और विवादित मानदंड़ों, सैन्य शक्ति के विस्तार और आतंकवाद की छाया को विस्तार देने वाले, समुद्रों में अनिश्चिताओं और साइबर स्पेस में जोखिम वाला क्षेत्र भी है।  

यह क्षेत्र विशाल महासागर में एक द्वीप नहीं बल्कि यह दुनिया से गहराई से जुड़ा है और प्रभावित है। 

हमारा क्षेत्र देश में और दो देशों के दर्मियान विषमताओं से भरा क्षेत्र है। जहां आवास, भोजन और पानी की चुनौतियां मौजूद हैं, जहां प्रकृति के हमारे उपहार और परंपराओं की दौलत त्वरित विकास के दबाव को अनुभव करती है और हमारी कृषि तथा द्वीप जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। 

एशिया ने अपने इतिहास के विभिन्न बिंदुओं पर इनमें से कुछ को सहा है लेकिन ये चुनौतियां इससे पहले शायद की देखी गई हों। एशिया अभी भी एक शांतिपूर्ण, स्थिर और खुशहाल भविष्य के लिए अपने विविध परिवर्तनों के माध्यम से अपना रास्ता प्राप्त कर रहा है।

यह ऐसी यात्रा है जो सफल होनी चाहिए। भारत और सिंगापुर को इस अनुभव का लाभ उठाने के लिए मिल कर कार्य करना चाहिए। भारत का इतिहास एशिया से अलग नहीं किया जा सकता है। ऐसा अनेक बार हुआ है कि हम अंतर्मुखी हुए। 

हम पुनः और अब हम एशिया के साथ फिर अधिक नजदीकी के कारण एकीकृत इतिहास की ओर लौट रहे हैं। हम प्राचीन संबंधों की स्वाभाविक प्रवृत्ति के साथ अपने प्राचीन समुद्री और जमीनी मार्गों की ओर लौट रहे हैं। 

पिछले 18 महीनों के दौरान मेरी सरकार ने विश्व के अन्य भागों की अपेक्षा इस क्षेत्र के साथ अधिक कार्यक्रम बनाए हैं। प्राचीन प्रशांत द्वीपीय राष्ट्रों आस्ट्रेलिया और मंगोलिया के साथ नई शुरूआत की है लेकिन चीन, जापान, कोरिया और आसियान सदस्य देशों के साथ अधिक सघन संबंध स्थापित किए हैं। हमने अपना विजन, अपने विजन को उद्देश्य और उत्साह के साथ सामने रखा है। 

भारत और चीन की साझी सीमा हैं और पांच हजार सालों से हमारे दर्मियान परस्पर संबंध कायम हैं। भिक्षुकों और व्यापारियों ने हमारे संबंधों को और पाला पोसा है और हमारे समाज को समृद्ध किया है। 

यह इतिहास सातवीं सदी में ह्वेनसांग की यात्रा से प्रतिबिम्बित है और मुझे गुजरात में अपने जन्म स्थान से चीन में जियान तक इसे जोड़ने का गौरव प्राप्त हुआ है। जियान में ही चीन के राष्ट्रपति ने मई में मेरी अगवानी की थी। 

हमने इतिहास को संस्कृत पाली और चीनी भाषा में लिखे धार्मिक ग्रन्थों, अतीत में लिखे गए पत्रों गर्मजोशी और सम्मान से हुए आदान-प्रदानों भारत की प्रसिद्ध तंचौई साड़ियों और संस्कृत भाषा में रेशम के नाम सीना पट्टा में देखा है। 

आज हमारा मानवता में 2/5 योगदान है और दोनों ही देश विश्व की तेजी से बढ़ती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं वाले देश हैं। चीन का आर्थिक परिवर्तन हमारे लिए भी एक प्रेरणा स्रोत है। 

चूंकि यह अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्संतुलित करती है और भारत में विकास की गति के लिए कदम उठाए गए हैं। इसलिए हम दोनों एक दूसरे की प्रगति को मजबूती प्रदान कर सकते हैं तथा अपने क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि को आगे बढ़ा सकते हैं।

इसके साथ-साथ हम अपनी व्यापार से लेकर जलवायु परिवर्तन तक की  साझा वैश्विक चुनौतियों से निपटने में अधिक प्रभावी हो सकते हैं। 

हमारे सीमा विवाद सहित कई अनसुलझे मुद्दे हैं। लेकिन हम सीमा क्षेत्रों को शांतिपूर्ण और स्थिर बनाए रखने में समर्थ रहे हैं। हम रणनीतिक संचार और समानता के विस्तारों को मजबूती प्रदान करने पर रजामंद हैं। हमने आतंकवाद सहित जैसी आम आम चुनौतियों से निपटते हुए आर्थिक अवसरों को भी साझा किया है। 

भारत और चीन अपने हितों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक दो स्वयं आश्वासित और विश्वसनीय देशों के रूप में अपने संबंधों की जटिलता से परे रचनात्मक कार्य करेंगे। 

जिस प्रकार चीन के उत्थान ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रेरित किया है। विश्व की वैश्विक विकास और क्षेत्रीय शांति तथा स्थिरता के लिए चीन की सहायता प्राप्त करना चाहता है।

भारत और जापान ने कुछ बाद में एक-दूसरे की खोज खबर ली। लेकिन मेरे दोस्त, प्रधानमंत्री अबे ने मुझे प्राचीन आध्यात्मिक संबंधों के प्रतीक क्योटो धार्मिक स्थलों के दर्शन कराए। 100 से अधिक वर्ष पहले स्वामी विवेकानंद जापान के तट पर पहुंचे थे और उन्होंने भारतीय युवाओं का जापान जाने के लिए आह्वान किया था। स्वतंत्र भारत ने उनकी सलाह को गंभीरता से लिया। ऐसी कई भागीदारियां हैं जिनको जापान के साथ हमारे संबंधों के रूप में काफी सद्भावना प्राप्त है। 

किसी अन्य राष्ट्र ने भारत के आधुनिकीकरण और प्रगति के लिए इतना योगदान नहीं किया है जितना जापान ने। उदाहरण के लिए जापान ने कार, मैट्रो और औद्योगिक पार्कों के लिए काफी योगदान दिया है। कोई अन्य भागीदार भारत की प्रगति में इतनी बड़ी भूमिका नहीं निभा सकता है जितनी जापान ने निभाई है। 

अब हम और अधिक एक जुट हुए हैं। हम इसे रणनीतिक भागीदारी के रूप में देखते हैं क्योंकि यह एशिया, प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्रों को शांतिपूर्ण और स्थिर सुनिश्चित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 

कोरिया और आस्ट्रेलिया के साथ हमारे संबंध मजबूत आर्थिक आधार के साथ शुरू हुए और जो बाद में रणनीतिक बन गए। 

आसियान हमारी एक्ट ईस्ट पॉलिसी की धुरी है। हम भौगोलिक और एतिहासिक रूप से जुड़े हैं और अनेक आम चुनौतियों के खिलाफ एकजुट हैं तथा अनेक साझा उम्मीदों से बंधे हैं। 

आसियान के प्रत्येक सदस्य के साथ हमने राजनीतिक, सुरक्षा, रक्षा और आर्थिक संबंधों को मजबूत बनाया है और क्योंकि आसियान समुदाय क्षेत्रीय एकीकरण के रास्ते पर एकता के मार्ग को प्रस्शत करता है इसलिए हम भारत और आसियान के मध्य अधिक गतिशील भागीदारी के लिए उत्सुक हैं जो हमारे 1.9 बिलियन लोगों के लिए समृद्ध क्षमता रखती है। 

भारत के पास आर्थिक सहयोग का ढांचा है। हम क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के साथ अधिक गहराई से एकीकृत होना चाहते हैं। हम अपनी भागीदारी के समझौतों को उन्नयन करेंगे और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी अनुबंध के शीघ्र निष्कर्ष के लिए कार्य करेंगे। 

हमारे समय के संक्रमण और प्रवाह में इस क्षेत्र की सबसे प्रमुख जरूरत ऐसे नियमों और मानदंडों को बनाए रखना है जो हमारे सामूहिक व्यवहार को परिभाषित करें। इसी कारण से हमें पूर्व एशिया शिखर सम्मेलन और अन्य मंचों में एक साथ आना चाहिए। ताकि हम एक सहकारी और सहयोगपूर्ण भविष्य का कुछ लोगों की ताकत के बल पर बल्कि सभी की सहमति से निर्माण कर सकें। 

भारत यह सुनिश्चित करने के लिए की हमारे महासागर अंतरिक्ष और साइबर हमारी साझा समृद्धि के केंद्र बने रहें और प्रतियोगिता के नए रंगमंच न बने इस क्षेत्र के देशों और अमेरिका और रूस सहित अन्य देशों तथा पूर्व एशिया शिखर सम्मेलन के भागीदार के साथ कार्य करेगा। 

भारत सभी के लाभ के लिए समुद्रों को सुरक्षित, सुनिश्चित और मुक्त रखने के लिए अपनी शक्ति भी उधार दे देगा। 

यह आज का युग अंतर निर्भरता का है इसलिए इस शताब्दी के वादों को साकार करने के लिए राष्ट्रों को एक साथ आना चाहिए। हमें ऐसा इसलिए करना चाहिए क्योंकि हमारी बड़ी चुनौतियां एक-दूसरे से नहीं बल्कि हम सभी के लिए साझी हैं। 

आतंकवाद एक ऐसी ही प्रमुख वैश्विक चुनौती है जो अलग- अलग समूहों की अपेक्षा से बड़ी ताकत है। इसकी काली छाया हमारे समाज और हमारे देशों पर आतंकवाद के लिए भर्ती करने और लक्ष्यों को चयन के रूप में पड़ रही है। आतंकवाद में न केवल जीवन नष्ट होते हैं बल्कि इससे अर्थव्यवस्था भी पटरी से उतर सकती है। 

विश्व को इसके विरूद्ध एक स्वर में आवाज उठानी चाहिए और सामंजस्य से काम करना चाहिए। इसके लिए राजनीतिक कानूनी सैनिक या खुफिया प्रयास किये जा सकते हैं लेकिन हमें और अधिक प्रयास करने होंगे। 

आतंकवाद के लिए अभ्यारण्य बनाने, उनकी मदद करने, हथियार और धन उपलब्ध कराने के लिए जिम्मेदार देशों को भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। देशों को एकदूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए। समाजों की अपने अंदर और उससे बाहर एक दूसरे तक पहुंच होनी चाहिए।  हमें धर्म से आतंकवाद को अलग करना चाहिए और मानव मूल्यों पर जोर देना चाहिए जो हर धर्म को परिभाषित करें। 

अब पेरिस सम्मेलन में कुछ ही दिन शेष हैं और हमें जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के सिद्धांतों के अनुरूप ठोस परिणाम हासिल करने चाहिए। ऐसा करना विशेष रूप से हमारे क्षेत्र और छोटे द्वीप देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 

मित्रों,

हमारा क्षेत्र विशाल वायदों का है लेकिन हम यह जानते हैं कि स्थायी शांति और समृद्धि अपरिहार्य नहीं है। इसलिए एशियाई सदी के अपने विजन को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। 

एशिया को अपनी प्राचीन संस्कृतियों और विश्व के सभी बड़े धर्मों का ज्ञान है। इसके पास युवाओं की ऊर्जा और अभियान भी है। एशिया के पहले नोबल पुरस्कार विजेता रविन्द्र नाथ टैगोर ने एक सदी पहले इस क्षेत्र की यात्रा के दौरान यह भविष्यवाणी की थी कि स्वयं की प्राप्ति के लिए एशिया आत्म चेतना फिर से हासिल कर रहा है। 

यहां सिंगापुर में जहां क्षेत्र की धाराओं का विलय होता है इसके विविध मेल-मिलापों और विचारों का मिलन होता है और आकांक्षाओं को पंख लग जाते हैं। यहां मैं ऐसा अनुभव करता हूं कि हम पहले के मुकाबले इस विजन के बहुत नजदीक हो गए हैं। 

भारत अपने बदलाव के लिए कार्य कर रहा है और विश्व में शांति और स्थिरता के लिए प्रयासरत है। इसलिए भारत की इस यात्रा में सिंगापुर एक प्रमुख भागीदार होगा। 

धन्यवाद

Explore More
140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी

लोकप्रिय भाषण

140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी
India’s coffee exports zoom 45% to record $1.68 billion in 2024 on high global prices, demand

Media Coverage

India’s coffee exports zoom 45% to record $1.68 billion in 2024 on high global prices, demand
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
Text of PM’s address at Bharat Gramin Mahotsav
January 04, 2025
हमारा विजन गांवों को विकास और अवसर के जीवंत केंद्रों में बदलकर ग्रामीण भारत को सशक्त बनाना है: प्रधानमंत्री
हमने हर गांव में बुनियादी सुविधाओं की गारंटी के लिए अभियान शुरू किया है: प्रधानमंत्री
हमारी सरकार की नीयत, नीतियां और निर्णय ग्रामीण भारत को नई ऊर्जा के साथ सशक्त बना रहे हैं: प्रधानमंत्री
आज, भारत सहकारी संस्थाओं के जरिए समृद्धि हासिल करने में लगा हुआ है: प्रधानमंत्री

मंच पर विराजमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी, वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी जी, यहां उपस्थित, नाबार्ड के वरिष्ठ मैनेजमेंट के सदस्य, सेल्फ हेल्प ग्रुप के सदस्य,कॉपरेटिव बैंक्स के सदस्य, किसान उत्पाद संघ- FPO’s के सदस्य, अन्य सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनों,

आप सभी को वर्ष 2025 की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। वर्ष 2025 की शुरुआत में ग्रामीण भारत महोत्सव का ये भव्य आयोजन भारत की विकास यात्रा का परिचय दे रहा है, एक पहचान बना रहा है। मैं इस आयोजन के लिए नाबार्ड को, अन्य सहयोगियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

साथियों,

हममें से जो लोग गाँव से जुड़े हैं, गाँव में पले बढ़े हैं, वो जानते हैं कि भारत के गाँवों की ताकत क्या है। जो गाँव में बसा है, गाँव भी उसके भीतर बस जाता है। जो गाँव में जिया है, वो गाँव को जीना भी जानता है। मेरा ये सौभाग्य रहा कि मेरा बचपन भी एक छोटे से कस्बे में एक साधारण परिवेश में बीता! और, बाद में जब मैं घर से निकला, तो भी अधिकांश समय देश के गाँव-देहात में ही गुजरा। और इसलिए, मैंने गाँव की समस्याओं को भी जिया है, और गाँव की संभावनाओं को भी जाना है। मैंने बचपन से देखा है, कि गाँव में लोग कितनी मेहनत करते रहे हैं, लेकिन, पूंजी की कमी के कारण उन्हें पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाते थे। मैंने देखा है, गाँव में लोगों की कितने यानी इतनी विविधताओं से भरा सामर्थ्य होता है! लेकिन, वो सामर्थ्य जीवन की मूलभूत लड़ाइयों में ही खप जाता है। कभी प्राकृतिक आपदा के कारण फसल नहीं होती थी, कभी बाज़ार तक पहुँच न होने के कारण फसल फेंकनी पड़ती थी, इन परेशानियों को इतने करीब से देखने के कारण मेरे मन में गाँव-गरीब की सेवा का संकल्प जगा, उनकी समस्याओं के समाधान की प्रेरणा आई।

आज देश के ग्रामीण इलाकों में जो काम हो रहे हैं, उनमें गाँवों के सिखाये अनुभवों की भी भूमिका है। 2014 से मैं लगातार हर पल ग्रामीण भारत की सेवा में लगा हूँ। गाँव के लोगों को गरिमापूर्ण जीवन देना, ये सरकार की प्राथमिकता है। हमारा विज़न है भारत के गाँव के लोग सशक्त बने, उन्हें गाँव में ही आगे बढ़ने के ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलें, उन्हें पलायन ना करना पड़े, गांव के लोगों का जीवन आसान हो और इसीलिए, हमने गाँव-गाँव में मूलभूत सुविधाओं की गारंटी का अभियान चलाया। स्वच्छ भारत अभियान के जरिए हमने घर-घर में शौचालय बनवाए। पीएम आवास योजना के तहत हमने ग्रामीण इलाकों में करोड़ों परिवारों को पक्के घर दिए। आज जल जीवन मिशन से लाखों गांवों के हर घर तक पीने का साफ पानी पहुँच रहा है।

साथियों,

आज डेढ़ लाख से ज्यादा आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के बेहतर विकल्प मिल रहे हैं। हमने डिजिटल टेक्नालजी की मदद से देश के बेस्ट डॉक्टर्स और हॉस्पिटल्स को भी गाँवों से जोड़ा है। telemedicine का लाभ लिया है। ग्रामीण इलाकों में करोड़ों लोग ई-संजीवनी के माध्यम से telemedicine का लाभ उठा चुके हैं। कोविड के समय दुनिया को लग रहा था कि भारत के गाँव इस महामारी से कैसे निपटेंगे! लेकिन, हमने हर गाँव में आखिरी व्यक्ति तक वैक्सीन पहुंचाई।

साथियों,

ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए बहुत आवश्यक है कि गांव में हर वर्ग को ध्यान में रखते हुए आर्थिक नीतियां बनें। मुझे खुशी है कि पिछले 10 साल में हमारी सरकार ने गांव के हर वर्ग के लिए विशेष नीतियां बनाई हैं, निर्णय लिए हैं। दो-तीन दिन पहले ही कैबिनेट ने पीएम फसल बीमा योजना को एक वर्ष अधिक तक जारी रखने को मंजूरी दे दी। DAP दुनिया, में उसका दाम बढ़ता ही चला जा रहा है, आसमान को छू रहा है। अगर वो दुनिया में जो दाम चल रहे हैं, अगर उस हिसाब से हमारे देश के किसान को खरीदना पड़ता तो वो बोझ में ऐसा दब जाता, ऐसा दब जाता, किसान कभी खड़ा ही नहीं हो सकता। लेकिन हमने निर्णय किया कि दुनिया में जो भी परिस्थिति हो, कितना ही बोझ न क्यों बढ़े, लेकिन हम किसान के सर पर बोझ नहीं आने देंगे। और DAP में अगर सब्सिडी बढ़ानी पड़ी तो बढ़ाकर के भी उसके काम को स्थिर रखा है। हमारी सरकार की नीयत, नीति और निर्णय ग्रामीण भारत को नई ऊर्जा से भर रहे हैं। हमारा मकसद है कि गांव के लोगों को गांव में ही ज्यादा से ज्यादा आर्थिक मदद मिले। गांव में वो खेती भी कर पाएं और गांवों में रोजगार-स्वरोजगार के नए मौके भी बनें। इसी सोच के साथ पीएम किसान सम्मान निधि से किसानों को करीब 3 लाख करोड़ रुपए की आर्थिक मदद दी गई है। पिछले 10 वर्षों में कृषि लोन की राशि साढ़े 3 गुना हो गई है। अब पशुपालकों और मत्स्य पालकों को भी किसान क्रेडिट कार्ड दिया जा रहा है। देश में मौजूद 9 हजार से ज्यादा FPO, किसान उत्पाद संघ, उन्हें भी आर्थिक मदद दी जा रही है। हमने पिछले 10 सालों में कई फसलों पर निरंतर MSP भी बढ़ाई है।

साथियों,

हमने स्वामित्व योजना जैसे अभियान भी शुरू किए हैं, जिनके जरिए गांव के लोगों को प्रॉपर्टी के पेपर्स मिल रहे हैं। पिछले 10 वर्षों में, MSME को भी बढ़ावा देने वाली कई नीतियां लागू की गई हैं। उन्हें क्रेडिट लिंक गारंटी स्कीम का लाभ दिया गया है। इसका फायदा एक करोड़ से ज्यादा ग्रामीण MSME को भी मिला है। आज गांव के युवाओं को मुद्रा योजना, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाओं से ज्यादा से ज्यादा मदद मिल रही है।

साथियों,

गांवों की तस्वीर बदलने में को-ऑपरेटिव्स का बहुत बड़ा योगदान रहा है। आज भारत सहकार से समृद्धि का रास्ता तय करने में जुटा है। इसी उद्देश्य से 2021 में अलग से नया सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया। देश के करीब 70 हजार पैक्स को कंप्यूटराइज्ड भी किया जा रहा है। मकसद यही है कि किसानों को, गांव के लोगों को अपने उत्पादों का बेहतर मूल्य मिले, ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो।

साथियों,

कृषि के अलावा भी हमारे गाँवों में अलग-अलग तरह की पारंपरिक कला और कौशल से जुड़े हुए कितने ही लोग काम करते हैं। अब जैसे लोहार है, सुथार है, कुम्हार है, ये सब काम करने वाले ज़्यादातर लोग गाँवों में ही रहते आए हैं। रुरल इकॉनमी, और लोकल इकॉनमी में इनका बहुत बड़ा contribution रहा है। लेकिन पहले इनकी भी लगातार उपेक्षा हुई। अब हम उन्हें नई नई skill, उसमे ट्रेन करने के लिए, नए नए उत्पाद तैयार करने के लिए, उनका सामर्थ्य बढ़ाने के लिए, सस्ती दरों पर मदद देने के लिए विश्वकर्मा योजना चला रहे हैं। ये योजना देश के लाखों विश्वकर्मा साथियों को आगे बढ़ने का मौका दे रही है।

साथियों,

जब इरादे नेक होते हैं, नतीजे भी संतोष देने वाले होते हैं। बीते 10 वर्षों की मेहनत का परिणाम देश को मिलने लगा है। अभी कुछ दिन पहले ही देश में एक बहुत बड़ा सर्वे हुआ है और इस सर्वे में कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं। साल 2011 की तुलना में अब ग्रामीण भारत में Consumption खपत, यानी गांव के लोगों की खरीद शक्ति पहले से लगभग तीन गुना बढ़ गई है। यानी लोग, गांव के लोग अपने पसंद की चीजें खरीदने में पहले से ज़्यादा खर्च कर रहे हैं। पहले स्थिति ये थी कि गांव के लोगों को अपनी कमाई का 50 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा, आधे से भी ज्यादा हिस्सा खाने-पीने पर खर्च करना पड़ता था। लेकिन आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि ग्रामीण इलाकों में भी खाने-पीने का खर्च 50 प्रतिशत से कम हुआ है, और, और जीवन की चीजें खरीदने ती तरफ खर्चा बढ़ा है। इसका मतलब लोग अपने शौक की, अपनी इच्छा की, अपनी आवश्यकता जी जरूरत की और चीजें भी खरीद रहे हैं, अपना जीवन बेहतर बनाने पर खर्च कर रहे हैं।

साथियों,

इसी सर्वे में एक और बड़ी अहम बात सामने आई है। सर्वे के अनुसार शहर और गाँव में होने वाली खपत का अंतर कम हुआ है। पहले शहर का एक प्रति परिवार जितना खर्च करके खरीद करता था और गांव का व्यक्ति जो कहते है बहुत फासला था, अब धीरे-धीरे गांव वाला भी शहर वालो की बराबरी करने में लग गया है। हमारे निरंतर प्रयासों से अब गाँवों और शहरों का ये अंतर भी कम हो रहा है। ग्रामीण भारत में सफलता की ऐसी अनेक गाथाएं हैं, जो हमें प्रेरित करती हैं।

साथियों,

आज जब मैं इन सफलताओं को देखता हूं, तो ये भी सोचता हूं कि ये सारे काम पहले की सरकारों के समय भी तो हो सकते थे, मोदी का इंतजार करना पड़ा क्या। लेकिन, आजादी के बाद दशकों तक देश के लाखो गाँव बुनियादी जरूरतों से वंचित रहे हैं। आप मुझे बताइये, देश में सबसे ज्यादा SC कहां रहते हैं गांव में, ST कहां रहते हैं गांव में, OBC कहां रहते हैं गांव में। SC हो, ST हो, OBC हो, सामज के इस तबके के लोग ज्यादा से ज्यादा गांव में ही अपना गुजारा करते हैं। पहले की सरकारों ने इन सभी की आवश्यकताओं की तरफ ध्यान नहीं दिया। गांवों से पलायन होता रहा, गरीबी बढ़ती रही, गांव-शहर की खाई भी बढ़ती रही। मैं आपको एक और उदाहरण देता हूं। आप जानते हैं, पहले हमारे सीमावर्ती गांवों को लेकर क्या सोच होती थी! उन्हें देश का आखिरी गाँव कहा जाता था। हमने उन्हें आखिरी गाँव कहना बंद करवा दिया, हमने कहा सूरज की पहली किरण जब निकलती है ना, तो उस पहले गांव में आती है, वो आखिरी गांव नहीं है और जब सूरज डूबता है तो डूबते सूरज की आखिरी किरण भी उस गांव को आती है जो हमारी उस दिशा का पहला गांव होता है। और इसलिए हमारे लिए गांव आखिरी नहीं है, हमारे लिए प्रथम गांव है। हमने उसको प्रथम गाँव का दर्जा दिया। सीमांत गांवों के विकास के लिए Vibrant विलेज स्कीम शुरू की गई। आज सीमांत गांवों का विकास वहां के लोगों की आय बढ़ा रहा है। यानि जिन्हें किसी ने नहीं पूछा, उन्हें मोदी ने पूजा है। हमने आदिवासी आबादी वाले इलाकों के विकास के लिए पीएम जनमन योजना भी शुरू की है। जो इलाके दशकों से विकास से वंचित थे, उन्हें अब बराबरी का हक मिल रहा है। पिछले 10 साल में हमारी सरकार द्वारा पहले की सरकारों की अनेक गलतियों को सुधारा गया है। आज हम गाँव के विकास से राष्ट्र के विकास के मंत्र को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि, 10 साल में देश के करीब 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं। और इनमें सबसे बड़ी संख्या हमारे गांवों के लोगों की है।

अभी कल ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की भी एक अहम स्टडी आई है। उनका एक बड़ा अध्ययन किया हुआ रिपोर्ट आया है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट क्या कह रही है, वो कहते हैं 2012 में भारत में ग्रामीण गरीबी रूरल पावर्टी, यानि गांवों में गरीबी करीब 26 परसेंट थी। 2024 में भारत में रूरल पावर्टी, यानि गांवों में गरीबी घटकर के पहले जो 26 पर्सेंट गरीबी थी, वो गरीबी घटकर के 5 परसेंट से भी कम हो गई है। हमारे यहां कुछ लोग दशकों तक गरीबी हटाओ के नारे देते रहे, आपके गांव में जो 70- 80 साल के लोग होंगे, उनको पूछना, जब वो 15-20 साल के थे तब से सुनते आए हैं, गरीबी हटाओ, गरीबी हटाओ, वो 80 साल के हो गए हैं। आज स्थिति बदल गई है। अब देश में वास्तविक रूप से गरीबी कम होना शुरू हो गई है।

साथियों,

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं का हमेशा से बहुत बड़ा स्थान रहा है। हमारी सरकार इस भूमिका का और विस्तार कर रही है। आज हम देख रहे हैं गाँव में बैंक सखी और बीमा सखी के रूप में महिलाएं ग्रामीण जीवन को नए सिरे से परिभाषित कर रही हैं। मैं एक बार एक बैंक सखी से मिला, सब बैंक सखियों से बात कर रहा था। तो एक बैंक सखी ने कहा वो गांव के अंदर रोजाना 50 लाख, 60 लाख, 70 लाख रुपये का कारोबार करती है। तो मैंने कहा कैसे? बोली सुबह 50 लाख रुपये लेकर निकलती हूं। मेरे देश के गांव में एक बेटी अपने थैले में 50 लाख रुपया लेकर के घूम रही है, ये भी तो मेरे देश का नया रूप है। गाँव-गाँव में महिलाएं सेल्फ हेल्प ग्रुप्स के जरिए नई क्रांति कर रही हैं। हमने गांवों की 1 करोड़ 15 लाख महिलाओं को लखपति दीदी बनाया है। और लखपति दीदी का मतलब ये नहीं कि एक बार एक लाख रुपया, हर वर्ष एक लाख रुपया से ज्यादा कमाई करने वाली मेरी लखपति दीदी। हमारा संकल्प है कि हम 3 करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाएंगे। दलित, वंचित, आदिवासी समाज की महिलाओं के लिए हम विशेष योजनाएँ भी चला रहे हैं।

साथियों,

आज देश में जितना rural infrastructure पर फोकस किया जा रहा है, उतना पहले कभी नहीं हुआ। आज देश के ज़्यादातर गाँव हाइवेज, एक्सप्रेसवेज और रेलवेज के नेटवर्क से जुड़े हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 10 साल में ग्रामीण इलाकों में करीब चार लाख किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई गई है। डिजिटल इनफ्रास्ट्रक्चर के मामले में भी हमारे गाँव 21वीं सदी के आधुनिक गाँव बन रहे हैं। हमारे गांव के लोगों ने उन लोगों को झुठला दिया है जो सोचते थे कि गांव के लोग डिजिटल टेक्नोलॉजी अपना नहीं पाएंगे। मैं यहां देख रहा हूं, सब लोग मोबाइल फोन से वीडियो उतार रहे हैं, सब गांव के लोग हैं। आज देश में 94 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण परिवारों में टेलीफोन या मोबाइल की सुविधा है। गाँव में ही बैंकिंग सेवाएँ और UPI जैसी वर्ल्ड क्लास टेक्नालजी उपलब्ध है। 2014 से पहले हमारे देश में एक लाख से भी कम कॉमन सर्विस सेंटर्स थे। आज इनकी संख्या 5 लाख से भी ज्यादा हो गई है। इन कॉमन सर्विस सेंटर्स पर सरकार की दर्जनों सुविधाएं ऑनलाइन मिल रही हैं। ये इनफ्रास्ट्रक्चर गाँवों को गति दे रहा है, वहां के रोजगार के मौके बना रहा है और हमारे गाँवों को देश की प्रगति का हिस्सा बना रहा है।

साथियों,

यहां नाबार्ड का वरिष्ठ मैनेजमेंट है। आपने सेल्फ हेल्प ग्रुप्स से लेकर किसान क्रेडिट कार्ड जैसे कितने ही अभियानों की सफलता में अहम रोल निभाया है। आगे भी देश के संकल्पों को पूरा करने में आपकी अहम भूमिका होगी। आप सभी FPO’s- किसान उत्पाद संघ की ताकत से परिचित हैं। FPO’s की व्यवस्था बनने से हमारे किसानों को अपनी फसलों का अच्छा दाम मिल रहा है। हमें ऐसे और FPOs बनाने के बारे में सोचना चाहिए, उस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। आज दूध का उत्पादन,किसानों को सबसे ज्यादा रिटर्न दे रहा है। हमें अमूल के जैसे 5-6 और को-ऑपरेटिव्स बनाने के लिए काम करना होगा, जिनकी पहुंच पूरे भारत में हो। इस समय देश प्राकृतिक खेती, नेचुरल फ़ार्मिंग, उसको मिशन मोड में आगे बढ़ा रहा है। हमें नेचुरल फ़ार्मिंग के इस अभियान से ज्यादा से ज्यादा किसानों को जोड़ना होगा। हमें हमारे सेल्फ हेल्प ग्रुप्स को लघु और सूक्ष्म उद्योगों को MSME से जोड़ना होगा। उनके सामानों की जरूरत सारे देश में है, लेकिन हमें इनकी ब्रांडिंग के लिए, इनकी सही मार्केटिंग के लिए काम करना होगा। हमें अपने GI प्रॉडक्ट्स की क्वालिटी, उनकी पैकेजिंग और ब्राडिंग पर भी ध्यान देना होगा।

साथियों,

हमें रुरल income को diversify करने के तरीकों पर काम करना है। गाँव में सिंचाई कैसे affordable बने, माइक्रो इरिगेशन का ज्यादा से ज्यादा से प्रसार हो, वन ड्रॉप मोर क्रॉप इस मंत्र को हम कैसे साकार करें, हमारे यहां ज्यादा से ज्यादा सरल ग्रामीण क्षेत्र के रुरल एंटरप्राइजेज़ create हों, नेचुरल फ़ार्मिंग के अवसरों का ज्यादा से ज्यादा लाभ रुरल इकॉनमी को मिले, आप इस दिशा में time bound manner में काम करें।

साथियों,

आपके गाँव में जो अमृत सरोवर बना है, तो उसकी देखभाल भी पूरे गाँव को मिलकर करनी चाहिए। इन दिनों देश में ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान भी चल रहा है। गाँव में हर व्यक्ति इस अभियान का हिस्सा बने, हमारे गाँव में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगें, ऐसी भावना जगानी जरूरी है। एक और सबसे महत्वपूर्ण बात, हमारे गाँव की पहचान गाँव के सौहार्द और प्रेम से जुड़ी होती है। इन दिनों कई लोग जाति के नाम पर समाज में जहर घोलना चाहते हैं। हमारे सामाजिक ताने बाने को कमजोर बनाना चाहते हैं। हमें इन षडयंत्रों को विफल बनाकर गाँव की सांझी विरासत, गांव की सांझी संस्कृति को हमें जीवंत रखना है, उसको सश्क्त करना है।

भाइयों बहनों,

हमारे ये संकल्प गाँव-गाँव पहुंचे, ग्रामीण भारत का ये उत्सव गांव-गांव पहुंचे, हमारे गांव निरंतर सशक्त हों, इसके लिए हम सबको मिलकर के लगातार काम करना है। मुझे विश्वास है, गांवों के विकास से विकसित भारत का संकल्प जरूर साकार होगा। मैं अभी यहां GI Tag वाले जो लोग अपने अपने प्रोडक्ट लेकर के आए हैं, उसे देखने गया था। मैं आज इस समारोह के माध्यम से दिल्लीवासियों से आग्रह करूंगा कि आपको शायद गांव देखने का मौका न मिलता हो, गांव जाने का मौका न मिलता हो, कम से कम यहां एक बार आइये और मेरे गांव में सामर्थ्य क्या है जरा देखिये। कितनी विविधताएं हैं, और मुझे पक्का विश्वास है जिन्होंने कभी गांव नहीं देखा है, उनके लिए ये एक बहुत बड़ा अचरज बन जाएगा। इस कार्य को आप लोगों ने किया है, आप लोग बधाई के पात्र हैं। मेरी तरफ से आप सब को बहुत बहुत शुभकामनाएं, बहुत-बहुत धन्यवाद।