कौशल्य विकास : युवा सशक्तिकरण

Published By : Admin | April 13, 2012 | 17:31 IST

कौशल्य विकास : युवा सशक्तिकरण

प्रिय मित्रों,

आपके साथ एक ऐसे व्यक्ति की घटना के बारे में बात करना चाहता हूंजिसे मैं जानता हूं। यह व्यक्ति घड़ी रिपेयरिंग का काम करता है। एक दिन उनके पास एक घड़ी रिपेयरिंग के लिए आईजिसमें उनको लगा कि घड़ी में उत्पादन संबंधी खामी थी। इसलिए उन्होंने स्विट्जरलैंड की घड़ी उत्पादक कंपनी को पत्र लिखकर उसके प्रोडक्ट की डिजाइन में खामी होने की जानकारी दी। कंपनी ने तहकीकात की तो पता चला की उस व्यक्ति द्वारा पेश किये गए कारण सही थे। कंपनी ने इस व्यक्ति द्वारा की गई शिकायतों की कद्र करते हुए बाजार में से उस डिजाइन की तमाम घडिय़ों को वापस ले लिया। 

इस व्यक्ति का उदाहरण क्या दर्शाता हैयह साफ तौर पर बतलाता है कि संशोधन में सीमाओं के कोई अवरोध नहीं होते और प्रत्येक व्यक्ति में संशोधन की क्षमता होती है। काम और काम के माहौल में संपूर्णता से श्रेष्ठ संशोधन संभव बनते हैं। लेकिननिपुणता हासिल करने के लिए हम जो कुछ खास करना चाहते हैं उसके लिए जरूरी कौशल्य हासिल करना अनिवार्य है। 

गुजरात में हमने इस मामले में उच्च प्राथमिकता दी है। आपको पता ही है कि भारत स्वामी विवेकानंद की 150वीं जन्म जयंती मना रहा है। स्वामी विवेकानंदजी को अंजलि के रूप में गुजरात वर्ष 2012 को युवाशक्ति वर्ष के तौर पर मना रहा है। इस महोत्सव के तहत हमने अपने युवाओं में कुशलता के विकास पर बल देने के लिए विशेष तौर पर ध्यान केंद्रित किया है। स्वामी विवेकानंद स्वयं मानते थे कि भारत के भविष्य का आधार युवा होंगे। इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि भारत में पहले कभी इतने युवा नहीं थेजितने आज हैं। आज देश की कुल आबादी में 72 प्रतिशत लोग चालीस वर्ष से नीचे, 47 प्रतिशत भारतीय बीस वर्ष से कम आयु वर्ग के हैं। जबकि समग्र विश्व की कुल आबादी के मात्र 10 प्रतिशत लोग ही 25 वर्ष से कम आयु वर्ग के हैं। क्या हमारे लिये यह श्रेष्ठ अवसर नहीं है? 

मैं हमेशा से मानता हूं कि 21वीं सदी में भारत या चीन विश्व की अगवानी लेंगेऐसे सवाल का जवाब युवाशक्ति है। परन्तु ज्यादा प्रमाण में युवा आबादी होइतना ही पर्याप्त नहीं है। इन युवाओं को कुशलता से लैस करना जरूरी है। इसके साथ ही प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक कुशल व्यवसाय को उचित सम्मान मिलना चाहिए। ऐसा होगा तो हमारी युवाशक्ति मजबूत धरोहर बनेगी। 

हमारे युवाओं की क्षमताओं को उचित दिशा में कार्यरत करने के लिए हमारे इंडस्ट्रीयल टे्रनिंग इंस्टीट्युट (आईटीआई) महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। पिछले एक दशक में गुजरात ने अपने आईटीआई के ढांचे और अवसरों में सुधार करने के लिए गंभीर प्रयास किये हैं। तीन दशक से जिन पाठ्यक्रमों में सुधार नहीं किया गया थाउनमें सुधार किया गया है। ढांचागत सुविधाओं के साथ ही विविधतापूर्ण पाठ्यक्रमों और उनकी तादाद में भी बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2001 में आईटीआई की संख्या मात्र 275 थी, जो आज चार गुना बढक़र 1054 हो गई है। भूतकाल में हमारे पास 3000 आईटीआई प्रशिक्षक थे, जो अब बढक़र 6000 हो गए हैं। आईटीआई शिक्षा के बाद आईटीआई के विद्यार्थी डिप्लोमा और इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रमों में शामिल हो सकते हैं, इसके लिए भी हमने दरवाजे खोले हैं। इससे कैरियर की क्षितिज विस्तृत होगी। 

मित्रों, यह सभी खास तौर पर तीन स्तंभों पर आधारित रहेगी : आईटी (इंफर्मेशन टेक्नोलॉजी), बीटी (बॉयो टेक्नोलॉजी) और ईटी (एनवायर्नमेंट टेक्नोलॉजी)। 

यह तीनों आधारस्तंभ महत्वपूर्ण होने के बावजूद ईटी पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। पवनपानी और सूर्य जैसे प्राकृतिक स्त्रोंतों में से ऊर्जा के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जा सकता है। मैने सोलर कंपनियों को अवॉड्र्स की पहल के लिए खास सुझाव दिया है जिससे प्रेरणादायी संशोधनों को बल मिल सके। 

चाहे जो काम होउसे सम्मान देना जरूरी है। किसी भी व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले कुशल काम के प्रति भरपूर आदर होना चाहिए। हमारे कुशल कारीगरों को आदर न देने की बुराई को हम दूर करना चाहते हैं। इसके लिए हमारे कारीगरों में विश्वास प्रस्थापित करने का असर दीर्घकाल में नजर आएगा। इसके लिए हमारा राज्य प्रथम रहा हैकि जिसने व्यक्तित्व में विकास पर बल देने के लिए अपनी आईटीआई में सॉफ्ट स्किल ट्रेनिंग शुरू की है। कौशल्य के विकास के साथ हमारे विचार भी विस्तृत होने चाहिएं। हमारे कामकाज को विशाल परिप्रेक्ष्य में समझना जरूरी है। और एक बार ऐसा होगा तो फिर कोई काम छोटा नहीं लगेगा। उदाहरण के तौर पर एक टेक्नीशियन सोलर टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा हो तब वह इस कार्य को अन्य नौकरी की तरह ही माने और उसके प्रयत्न आने वाली पीढिय़ों के लिए बदलाव लाएंगे यह समझेइन दोनों के बीच काफी अंतर है। 

गुजरात में 20 स्वामी विवेकानंद सुपीरियर टेक्नोलॉजी सेंटर्स (एसटीसी) का भी प्रस्ताव किया है। यह संस्थाएं आधुनिक टेक्नोलॉजी का उपयोग कर विशिष्ट प्रशिक्षण देगी। ऑटोमोबाइल सर्विसिंग संबंधी एसटीसी इसका उदाहरण हो सकता है। गुजरात भारत के ऑटो हब के रूप में उभर रहा है, ऐसे में ऑटो सर्विसिंग क्षेत्र में विशाल अवसर मौजूद है। समान केंद्र सीएनसी (कंप्यूटर न्यूमेरिकली कंट्रोल्ड) टेक्नोलॉजी एंड सोलर टेक्नोलॉजी के लिए रहेंगे। 

दोस्तों, हमारे कई प्रयासों के परिणाम नजर आ रहे हैं। हम वर्तमान सप्ताह को स्वामी विवेकानंद युवा रोजगार सप्ताह के रूप में मनाएंगे। एक सप्ताह के समयकाल में मैं खुद 65 हजार युवाओं को रोजगार पत्र (अपॉइन्टमेंट लेटर) प्रदान करुंगा। हमारे देश में यह एक ऐतिहासिक रोजगार का कार्यक्रम है। इन युवाओं की महत्वाकांक्षा उनकी अकेले की नहीं है। हम प्रत्येक युवा के मन को सख्त मेहनतसमर्पण और प्रेरणा के साथ संशोधन का पॉवरहाउस बनाने के लिए प्रतिबद्घ हैं। इस प्रयास में आईटीआई सक्रिय भूमिका निभा सकती है और हमारे युवाओं के लिए अवसरों में बढ़ोतरी कर सकती है। कड़ा परिश्रम करने की इच्छाशक्ति वैविध्यता में बढ़ोतरी करेगी और इससे उत्साह स्वयं आ जाएगा। स्किल+विल+जील = विन का मंत्र गुजरात को समर्थ बनाएगा और भारत को नई ऊंचाइयां हासिल करने में समर्थ बनाएगा। 

आपका

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भारत के रतन का जाना...
November 09, 2024

आज श्री रतन टाटा जी के निधन को एक महीना हो रहा है। पिछले महीने आज के ही दिन जब मुझे उनके गुजरने की खबर मिली, तो मैं उस समय आसियान समिट के लिए निकलने की तैयारी में था। रतन टाटा जी के हमसे दूर चले जाने की वेदना अब भी मन में है। इस पीड़ा को भुला पाना आसान नहीं है। रतन टाटा जी के तौर पर भारत ने अपने एक महान सपूत को खो दिया है...एक अमूल्य रत्न को खो दिया है।

आज भी शहरों, कस्बों से लेकर गांवों तक, लोग उनकी कमी को गहराई से महसूस कर रहे हैं। हम सबका ये दुख साझा है। चाहे कोई उद्योगपति हो, उभरता हुआ उद्यमी हो या कोई प्रोफेशनल हो, हर किसी को उनके निधन से दुख हुआ है। पर्यावरण रक्षा से जुड़े लोग...समाज सेवा से जुड़े लोग भी उनके निधन से उतने ही दुखी हैं। और ये दुख हम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में महसूस कर रहे हैं।

युवाओं के लिए, श्री रतन टाटा एक प्रेरणास्रोत थे। उनका जीवन, उनका व्यक्तित्व हमें याद दिलाता है कि कोई सपना ऐसा नहीं जिसे पूरा ना किया जा सके, कोई लक्ष्य ऐसा नहीं जिसे प्राप्त नहीं किया जा सके। रतन टाटा जी ने सबको सिखाया है कि विनम्र स्वभाव के साथ, दूसरों की मदद करते हुए भी सफलता पाई जा सकती है।

 रतन टाटा जी, भारतीय उद्यमशीलता की बेहतरीन परंपराओं के प्रतीक थे। वो विश्वसनीयता, उत्कृष्टता औऱ बेहतरीन सेवा जैसे मूल्यों के अडिग प्रतिनिधि थे। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह दुनिया भर में सम्मान, ईमानदारी और विश्वसनीयता का प्रतीक बनकर नई ऊंचाइयों पर पहुंचा। इसके बावजूद, उन्होंने अपनी उपलब्धियों को पूरी विनम्रता और सहजता के साथ स्वीकार किया।

दूसरों के सपनों का खुलकर समर्थन करना, दूसरों के सपने पूरा करने में सहयोग करना, ये श्री रतन टाटा के सबसे शानदार गुणों में से एक था। हाल के वर्षों में, वो भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का मार्गदर्शन करने और भविष्य की संभावनाओं से भरे उद्यमों में निवेश करने के लिए जाने गए। उन्होंने युवा आंत्रप्रेन्योर की आशाओं और आकांक्षाओं को समझा, साथ ही भारत के भविष्य को आकार देने की उनकी क्षमता को पहचाना।

भारत के युवाओं के प्रयासों का समर्थन करके, उन्होंने नए सपने देखने वाली नई पीढ़ी को जोखिम लेने और सीमाओं से परे जाने का हौसला दिया। उनके इस कदम ने भारत में इनोवेशन और आंत्रप्रेन्योरशिप की संस्कृति विकसित करने में बड़ी मदद की है। आने वाले दशकों में हम भारत पर इसका सकारात्मक प्रभाव जरूर देखेंगे।

रतन टाटा जी ने हमेशा बेहतरीन क्वालिटी के प्रॉडक्ट...बेहतरीन क्वालिटी की सर्विस पर जोर दिया और भारतीय उद्यमों को ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करने का रास्ता दिखाया। आज जब भारत 2047 तक विकसित होने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, तो हम ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करते हुए ही दुनिया में अपना परचम लहरा सकते हैं। मुझे आशा है कि उनका ये विजन हमारे देश की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और भारत वर्ल्ड क्लास क्वालिटी के लिए अपनी पहचान मजबूत करेगा।

रतन टाटा जी की महानता बोर्डरूम या सहयोगियों की मदद करने तक ही सीमित नहीं थी। सभी जीव-जंतुओं के प्रति उनके मन में करुणा थी। जानवरों के प्रति उनका गहरा प्रेम जगजाहिर था और वे पशुओं के कल्याण पर केन्द्रित हर प्रयास को बढ़ावा देते थे। वो अक्सर अपने डॉग्स की तस्वीरें साझा करते थे, जो उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा थे। मुझे याद है, जब रतन टाटा जी को लोग आखिरी विदाई देने के लिए उमड़ रहे थे...तो उनका डॉग ‘गोवा’ भी वहां नम आंखों के साथ पहुंचा था।

रतन टाटा जी का जीवन इस बात की याद दिलाता है कि लीडरशिप का आकलन केवल उपलब्धियों से ही नहीं किया जाता है, बल्कि सबसे कमजोर लोगों की देखभाल करने की उसकी क्षमता से भी किया जाता है।

रतन टाटा जी ने हमेशा, नेशन फर्स्ट की भावना को सर्वोपरि रखा। 26/11 के आतंकवादी हमलों के बाद उनके द्वारा मुंबई के प्रतिष्ठित ताज होटल को पूरी तत्परता के साथ फिर से खोलना, इस राष्ट्र के एकजुट होकर उठ खड़े होने का प्रतीक था। उनके इस कदम ने बड़ा संदेश दिया कि – भारत रुकेगा नहीं...भारत निडर है और आतंकवाद के सामने झुकने से इनकार करता है।

व्यक्तिगत तौर पर, मुझे पिछले कुछ दशकों में उन्हें बेहद करीब से जानने का सौभाग्य मिला। हमने गुजरात में साथ मिलकर काम किया। वहां उनकी कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर निवेश किया गया। इनमें कई ऐसी परियोजनाएं भी शामिल थीं, जिसे लेकर वे बेहद भावुक थे।

जब मैं केन्द्र सरकार में आया, तो हमारी घनिष्ठ बातचीत जारी रही और वो हमारे राष्ट्र-निर्माण के प्रयासों में एक प्रतिबद्ध भागीदार बने रहे। स्वच्छ भारत मिशन के प्रति श्री रतन टाटा का उत्साह विशेष रूप से मेरे दिल को छू गया था। वह इस जन आंदोलन के मुखर समर्थक थे। वह इस बात को समझते थे कि स्वच्छता और स्वस्थ आदतें भारत की प्रगति की दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण हैं। अक्टूबर की शुरुआत में स्वच्छ भारत मिशन की दसवीं वर्षगांठ के लिए उनका वीडियो संदेश मुझे अभी भी याद है। यह वीडियो संदेश एक तरह से उनकी अंतिम सार्वजनिक उपस्थितियों में से एक रहा है।

कैंसर के खिलाफ लड़ाई एक और ऐसा लक्ष्य था, जो उनके दिल के करीब था। मुझे दो साल पहले असम का वो कार्यक्रम याद आता है, जहां हमने संयुक्त रूप से राज्य में विभिन्न कैंसर अस्पतालों का उद्घाटन किया था। उस अवसर पर अपने संबोधन में, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि वो अपने जीवन के आखिरी वर्षों को हेल्थ सेक्टर को समर्पित करना चाहते हैं। स्वास्थ्य सेवा एवं कैंसर संबंधी देखभाल को सुलभ और किफायती बनाने के उनके प्रयास इस बात के प्रमाण हैं कि वो बीमारियों से जूझ रहे लोगों के प्रति कितनी गहरी संवेदना रखते थे।

मैं रतन टाटा जी को एक विद्वान व्यक्ति के रूप में भी याद करता हूं - वह अक्सर मुझे विभिन्न मुद्दों पर लिखा करते थे, चाहे वह शासन से जुड़े मामले हों, किसी काम की सराहना करना हो या फिर चुनाव में जीत के बाद बधाई सन्देश भेजना हो।

अभी कुछ सप्ताह पहले, मैं स्पेन सरकार के राष्ट्रपति श्री पेड्रो सान्चेज के साथ वडोदरा में था और हमने संयुक्त रूप से एक विमान फैक्ट्री का उद्घाटन किया। इस फैक्ट्री में सी-295 विमान भारत में बनाए जाएंगे। श्री रतन टाटा ने ही इस पर काम शुरू किया था। उस समय मुझे श्री रतन टाटा की बहुत कमी महसूस हुई।

आज जब हम उन्हें याद कर रहे हैं, तो हमें उस समाज को भी याद रखना है जिसकी उन्होंने कल्पना की थी। जहां व्यापार, अच्छे कार्यों के लिए एक शक्ति के रूप में काम करे, जहां प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता को महत्व दिया जाए और जहां प्रगति का आकलन सभी के कल्याण और खुशी के आधार पर किया जाए। रतन टाटा जी आज भी उन जिंदगियों और सपनों में जीवित हैं, जिन्हें उन्होंने सहारा दिया और जिनके सपनों को साकार किया। भारत को एक बेहतर, सहृदय और उम्मीदों से भरी भूमि बनाने के लिए आने वाली पीढ़ियां उनकी सदैव आभारी रहेंगी।