26 फ़रवरी, 2012

सुरत

मारे यहाँ जितना महत्त्व शिक्षा का है उससे ज्यादा महत्व दीक्षा का है और शिक्षित व्यक्ति जब तक दीक्षित न हो तब तक शिक्षा अधूरी मानी जाती है. यदि शास्त्रों में देखें तो ‘तैत्तिरीय उपनिषद्’ में पहली बार इस प्रकार के दीक्षांत समारोह का उल्लेख है. परंतु हमारे यहाँ परंपरागत रूप से गुरुकुल की जो शिक्षा परंपरा थी उसमें विद्यार्थिओं की शिक्षा पूर्ण होने के बाद गुरुजन अनेक कसौटियों में से उन्हें पार करते थे, ऐसे अनेक सहज आयोजन किए जाते जिनमें से गुजरते-गुजरते, उसने जो भी कुछ सीखा हो उसका अमल नित्यक्रम के दौरान करके दिखाना पडता था, उसे तो इस बात का ज्ञान भी नहीं होता था कि वह जो कर रहा है उसकी कसौटी का कोई हिस्सा है. और इसका बहुत माइन्यूट ऑब्ज़र्वेशन होता था और उसके बाद ही वे डिग़्रीधारी बनते थे और उन्हें जीवन के अन्य आश्रम की ओर जाने की अनुमति मिलती थी.

मित्रों, विद्यार्थीकाल उत्तम समय होता है. एक ओर इस बात का आनंद होता है कि भाई, आज यहाँ से डिग़्रीधारी बन कर हम समाज में जा रहे हैं, लेकिन उसके साथ ही एक बड़ी जिम्मेदारी शुरू होती है. आप विद्यार्थी हों तब मित्रों के बीच, समाज के बीच खड़े हों और परिचय दें कि मैं फाइनल यीअर में पढ़ता हूँ तो लम्बे प्रश्न नहीं पूछे जाते. पढ़ रहे हो, बात पूरी हो जाती है. लेकिन जिस पल आप कहो कि अब मैं ग्रैजुएट हो गया हूँ तो तुरंत ही प्रश्न आता है कि तो अब क्या कर रहे हो? अब क्या करने वाले हो? क्या सोचा है? और नौकरी के मामले में तो यह चलता ही है; साथ ही छोकरी के मामले में भी शुरु हो जाता है और यदि लड़की हो तो लड़के के बारे में शुरु होता है. यह सहज बात है. पढ़ते हों तब तक कोई टेन्शन नहीं, कोई पूछे नहीं और इसलिए कुछ लोग क्या करते हैं कि कहीं और कोई मेल न हो तब तक सी.ए. में एन्ट्री ले लेते हैं, ताकि दूसरा बंदोबस्त न हो तब तक कहने को चलें कि, क्या कर रहे हो? सी.ए. कर रहा हूँ, अनएन्डिंग प्रोसेस है... मित्रों, जब हम विद्यार्थी हों तब जीवन में अनेक लोग होते हैं जो हमारा मार्गदर्शन करते हैं. एक प्रकार से प्रोटेक्टेड लाइफ होती है. परिवार में परिवारजन चिंता करते हैं, कुटुम्ब के साथ संबंधित बुज़ुर्ग चिंता करते हैं, शिक्षा संस्था का चपरासी भी कई बार हमें गाइड करता है कि नहीं-नहीं भाई, ऐसा नहीं करते... ऐसा होता है, आपने अनुभव किया होगा मित्रों, और हमे लगता है कि इस चपरासी को समझ में आता है और मुझे नहीं आया..! शिक्षकगण भी हमें गाइड करते हैं कि भाई, ऐसा करते हैं और ऐसा नहीं करते हैं. और इसके कारण हम निश्चिंत रहते हैं. कोई भी भूल हो तो कहीं कोई रोकने वाले, कोई टोकने वाले की व्यवस्था होती है और इसके कारण मुक्त भाव से कदम उठाने की हिम्मत आती है. लेकिन जिस पल इस व्यवस्था में से बाहर आते हैं तबसे प्रत्येक पल निर्णय खुद ही करना पडता है. आस-पास देखें तो कोई शिक्षक खड़े नहीं होते, समाज की हमारी ओर देखने की पूरी मानसिकता बदल जाती है और एक प्रकार से एक कसौटी काल का आरम्भ होता है. आज जो लोग पदवी प्राप्त कर रहे हैं वे सारे मित्र कसौटी काल में कदम रख रहे हैं. और जब कसौटी शुरू हो रही है उस वक्त प्रत्येक पल, बचपन से लेकर आज तक जहाँ कहीं भी शिक्षा प्राप्त की होगी, जिन-जिन गुरुजनों से जो कुछ सीखे होंगे उसकी पूरी कथा मन में कदम-कदम पर याद आती है. कुछ करने जाएँ वहीं खयाल आए कि हाँ यार, क्लास में साहब ने यह बात तो बताई थी..! कहीं इंटरव्यू देने जाएँ और कोई प्रश्न आए तो तुरंत ही विचार आए कि हाँ यार, साहब ने कहा तो था लेकिन आज याद नहीं आ रहा है. हर कदम पर यह कार्यकाल आपको याद आएगा मित्रों। आज जिनका दीक्षांत समारोह हो रहा है उन्हें तो समझना ही है, परंतु जो लोग भविष्य के दीक्षांत समारोह के स्वाभाविक दावेदार हैं वे लोग भी यहाँ बैठे हैं, उनको भी इसमें से प्रेरणा मिले कि हाँ भाई, जीवन की शुरूआत कठिन होती है. जीवन में हर कदम पर प्रत्येक कसौटी में से पार होना पडता है.

मैं चाहूंगा कि वीर नर्मद के नाम के साथ जुडी इस युनिवर्सिटी के जब हम सब विद्यार्थी हैं तो और कुछ कर सकें या न कर सकें मित्रों, लेकिन नर्मद का एक वाक्य जीवन में उतारें, ‘डगलुं भर्युं के ना हठवुं...’ (‘एक बार कदम बढ़ाने के बाद डगमगाना नहीं...’). और नर्मद की पुण्यतिथि पर जब हमें आशीर्वाद प्राप्त हो रहे हैं तब... मित्रों, समाज-जीवन में असमंजस में रहने वाले लोग न तो कभी कुछ पा सकते हैं, न ही कभी समाज को कुछ दे सकते हैं. जो लोग निर्णायक होते हैं, वे ही लोग निर्धारित मंज़िल को प्राप्त कर सकते हैं. जो लोग अनिर्णायक होते हैं, उनका काफ़ी सारा वक्त एक उलझन भरी अवस्था में ही रहता है. आपने कई लोग देखे होंगे, बस स्टेशन पर... चार बस खड़ी हों तो तय नहीं कर पाते कि इसमें जाएँ या उसमें. और तीन चली जाए उसके बाद आखिर में जो मिले उसमें चढ़ जाते हैं, तय ही नहीं कर पाते. और यह एक आम अनुभव होता है. बहुत सारे लोग बीमार हुए हों तो ऑपरेशन कराएँ या न कराएँ, इस डॉक्टर के पास या उस डॉक्टर के पास... और तब तक रोग इतना उग्र हो जाता है कि डॉक्टर के हाथ की बाज़ी ही नहीं रहती है. कारण? अनिर्णायकता. मित्रों, असमंजस से भरी जिंदगी और युवा के बीच कभी भी, कोई भी संबंध नहीं होना चाहिए. मैं युवा हूँ, इसका मतलब है कि मैं निर्णायक हूँ और अगर मैं निर्णायक नहीं हूँ, तो निश्चित रूप से मैं युवा नहीं हूँ. मैं अत्यंत भयभीत हूँ, मैं अत्यंत असुरक्षित हूँ, मुझे कदम बढ़ाने में डर लगता है कि कहीं मैं गिर न जाऊँ... अर्थात, मेरे मन का यौवन मैंने खो दिया है और इसलिए निर्णायक होना, दुविधा मुक्त जिंदगी होना युवा होने की पहली शर्त है मित्रों। और जो लोग निर्णायक होते हैं, वे साहसिक भी होते हैं. कश्मकश से भरा व्यक्ति इसलिए असमंजस में रहता है कि मूलतः उसमें साहस का अभाव होता है. वह भयभीत है कि कहीं कुछ हो जायेगा तो? कहीं कोई कुछ कहेगा तो? कहीं ऐसा होगा तो? मित्रों, बच्चों को कभी कोई कश्मकश नहीं होती, क्योंकि उनमें भय नहीं होता. जिसे भय हो, वह असमंजस में रहता है और इसलिए व्यक्ति के जीवन में अभय, मन की रचना में अभय, जीवन की प्रगति के लिए अनिवार्य होता है. जब तक व्यक्ति भयमुक्त मन:स्थिति में न हो, कैसे भी माहौल में भय स्पर्श न करता हो, अंधकार जैसा कुछ प्रतीत न होता हो, प्रत्येक पल प्रकाश दिखता हो, तब ही वह जिंदगी की राह निश्चित कर सकता है। और मित्रों, प्रकाश को देखने के लिए सूरज के उगने की प्रतीक्षा नहीं करनी पडती. मित्रों, सामर्थ्यवान लोग तारों के प्रकाश में भी रास्ता खोज लेते हैं. जिंदगी सुनहरे पलों का इंतजार करने के लिए नहीं होती है, मित्रों. अंधकार भरे जीवन में भी  सितारों की रोशनी से रौनक आ सकती है और मित्रों, घना अंधकार हो, बादल छाया वातावरण हो तो भी मेरे आदिवासी भाई को जुगनू के प्रकाश में जिंदगी की राह बनाते हुए देखा है. अगर एक जुगनू जिंदगी की राह दिखा सकता है तो मैं तो एक ऐसी समृद्ध जिंदगी जीने वाला मानव हूँ, मेरे जीवन में रुकावट क्यों? यदि ऐसी संकल्प शक्ति हो, तो जीवन बदला जा सकता है.

मित्रों, कई बार समाज-जीवन में हम जब काम करते हों तब आपको ऐसा लगता होगा कि मेरे पिताजी ने फीस भरी थी इसलिए मैं ग्रैजुएट हुआ हूँ, उसके कारण आज पदवी प्राप्त कर रहा हूँ, ऐसा नहीं है दोस्तों. मैं देर रात तक पढ़ता था इसलिए अब पदवीधारी बना हूँ, ऐसा नहीं है. परीक्षा के दिनों में अच्छी से अच्छी फिल्म भी मैंने छोड़ दी थी इसलिए पास हुआ हूँ, ऐसा है? ऐसा नहीं होता. अनेक लोगों ने मेरी जिंदगी बनाने के लिए कुछ न कुछ योगदान दिया है. जब कभी कॉलेज में उब जाता था और कॅम्पस के बाहर जाकर किसी पेड़ की छाया में छोटी-सी केतली लेकर जो चाय बनाने वाला बैठता था, मैं उसकी चाय पीकर ताज़गी का अनुभव करता था और फिर से क्लास रूम में चला आता था. आज पदवी लेते समय उसे भी याद करना, उसे भी ज़रा याद करना कि कभी एक सामान्य गली में जीने वाले आदमी ने आपकी पसंद की चाय बनाकर आपको ताज़गी दी थी. मित्रों, कभी परीक्षा में दौड़ते हुए जाते होंगे, बस छूट गई होगी, देर हो गई होगी और आपने ड्राइवर को विनती की होगी कि साहब, ज़रा दबाना भाई, जल्दी चलाना, मुझे परीक्षा के लिए पहुँचना है और ड्राइवर ने रिस्क लेकर शायद आपको पहुँचाया होगा. मित्रों, आज उन्हें भी याद करना. मित्रों, आप जिस कुर्सी पर बैठकर, जिस बेंच पर बैठकर पढ़े होंगे उस बेंच को साफ करने के लिए किसी चपरासी ने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी होगी, उस चपरासी को भी ज़रा याद करना. मित्रों, कितने लोगों का योगदान होता है, कितने लोगों के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप मैं जिंदगी में कुछ प्राप्त कर सकता हूँ, इसका अर्थ यह हुआ कि समग्र समाज का मुझ पर ऋण होता है. इस समाज के ऋण चुकाने का समय मेरे पदवी प्राप्त करने के बाद शुरु होता है. जीवन की प्रत्येक पल को मैं इस समाज का ऋण चुकाता रहूँगा. इस समाज का मुझ पर जो ऋण है, मैं आजीवन कभी उसे भूलूँगा नहीं. इस कर्तव्य के पालन को मैं निभाऊँगा. यह अगर जीवन का भाव होगा तो हम जीवन में एक संतोष की अनुभूति कर सकेंगे.

मित्रों, इस पदवीदान समारोह में से बिदा हो रहे हो तब यदि आपको ऐसा लगे कि अब आप विद्यार्थी नहीं रहे तो आप समझ लेना कि आप जीवन की ओर नहीं, मृत्यु की ओर प्रयाण कर रहे हो. मित्रों, मैं बहुत ही जिम्मेदारी भरी बात कर रहा हूँ. यहाँ से निकलते ही यदि आपने ऐसा मान लिया कि आपका विद्यार्थी काल समाप्त हो गया तो इसका मतलब यह हुआ कि आपका जीवन काल समाप्त हो गया और आपका मृत्यु काल प्रारंभ हो गया है. मित्रों, विद्यार्थी जीवनपर्यंत जीवित रहना चाहिए. जीवन के अंत तक विद्यार्थी जिन्दा रहना चाहिए. हमारे भीतर यदि विद्यार्थी जीवित नहीं है तो जीवन की विकास यात्रा असंभव है, जीवन में ठहराव आ जाता है. और कोई भी युवा ऐसा नहीं हो सकता कि जिसके जीवन में ठहराव आए, जीवन में निरंतर विकास यात्रा हो और इसके लिए अनिवार्य है कि प्रत्येक पल मैं विद्यार्थी रहूँ. प्रत्येक पल को जानने की मेरी कोशिश रहे, मेरी जिज्ञासा रहे. प्रत्येक पल मुझ में कुछ सीखने की मनोवृत्ति रहे. और जीवन के मूलभूत तत्त्वों को जीवन के साथ बांधना पड़ता है, उन्हें अपने जीवन का डी.एन.ए. बनाना पड़ता है. विद्यार्थी अवस्था, मन की विद्यार्थी अवस्था हमारा अपना डी.एन.ए. होना चाहिए. और अगर ऐसा हो तो ही जीवन में प्रगति की सम्भावना रहती है.

भाईयों-बहनों, यह वर्ष स्वामी विवेकानंदजी की 150 वीं जयंती का वर्ष है. और 150 वीं जयंती का वर्ष जब मना रहे हैं तब गुजरात ने, राज्य सरकार ने इसे ‘युवा शक्ति वर्ष’ के रूप में मनाने का निश्चय किया है और युवा शक्ति यानि सिर्फ निबंध स्पर्धाएँ या वक्तृत्व स्पर्धाएँ हो, वहीं तक सीमित नहीं है. एक फोकस किया है, कौशल वर्धन पर. हुनर... मित्रों, जीवन में ज्ञान के साथ हुनर की भी उतनी ही आवश्यकता होती है और अगर हुनर न हो तो ज्ञान कई बार गड्ढे में बेकार पड़ा रह जाता है. इस घटना का मैंने कई बार उल्लेख किया है, आज फिर से करना चाहता हूँ. एक बार दादा धर्माधिकारी, जो विनोबाजी के साथी थे, गाँधीजी की विचारधारा के एक अनुयायी थे. उनके कई पुस्तक पढ़ने लायक हैं. दादा धर्माधिकारी ने एक जगह लिखा है कि एक बार एक युवक मुझसे मिलने आया और उसने मुझसे कहा कि, “दादा, कुछ नौकरी का कर दो...”, तो दादा ने उसे पूछा, “भाई, तुझे क्या आता है?”, तो उस युवक ने जवाब दिया, “मैं ग्रैजुएट हूँ” उन्होंने कहा कि ठीक है, लेकिन तुम्हें आता क्या है?” तो उसने फिर से कहा, “मैं ग्रैजुएट हूँ”, और फिर अपनी बैग में से सर्टिफिकेट दिखाए, तो उन्होंने कहा, ”यह सब तो ठीक है, तुम ग्रैजुएट हो लेकिन तुम्हें आता क्या है?” फिर से उसने कहा, “साहब, मैं ग्रैजुएट हूँ”. दादा ने कहा, “भाई, वो सब तो ठीक है, लेकिन मुझे बताओ कि तुम ड्राइविंग करना जानते हो?” तो बोला कि नहीं, “तुम टाइपिंग जानते हो”, तो बोला कि नहीं, “तुम खाना बनाना जानते हो, तैरना जानते हो?”, “नहीं, लेकिन मैं ग्रैजुएट हूँ, मेरे पास सर्टिफिकेट है.” मित्रों, डिग्री के साथ-साथ जीवन कौशल अनिवार्य होता है और इस बात को ध्यान में रखते हुए, गुजरात में स्वामी विवेकानंदजी की 150 वीं जयंती के अवसर पर पूरे राज्य में कौशल वर्धन के लिए एक बड़ा अभियान हम चलाने वाले हैं. हर किसी में कोई न कोई एक्स्ट्रा टैलन्ट हो, कोई न कोई एक्स्ट्रा कौशल हो, कोई न कोई हुनर उसे आता हो, उसे आत्मनिर्भरता से जीने का सामर्थ्य मिले. मित्रों, भारत एक भाग्यशाली देश है और हम सब एक ऐसे युग में हैं कि जिस वक्त हिंदुस्तान दुनिया का सबसे युवा देश है. इस देश के 65% लोग 35 से कम उम्र के हैं. जिस देश के पास इतनी बड़ी युवा शक्ति हो, उसके सपने कितने युवा हो सकते हैं, कितने तेजस्वी हो सकते हैं..! ऐसे युवा सपनों, युवा तेजस्वी सपनों के साथ हमारी भारतमाता विश्वगुरु बने; स्वामी विवेकानंदजी के इस स्वप्न को साकार करने का युग हमारे जीवन काल में आया है. और अगर ऐसी भावनाएँ युवाओं के मन में प्रकट कर सकें तो इतना बड़ा देश, 120 करोड़ की जनसंख्या, 65% नौजवानों से भरा देश, मित्रों, उनके कौशल के द्वारा, उनकी क्षमता के द्वारा, उनकी बुद्धि के द्वारा वह विश्व विजेता बन सके ऐसा सामर्थ्य रखता है. और, विवेकानंदजी का यह स्वप्न था कि “मैं मेरी आँखों के सामने देख सकता हूँ, यह भारतमाता एक न एक दिन जगदगुरु के स्थान पर बिराजमान होगी”. मित्रों, विवेकानंदजी का स्वप्न, 150 साल बीत चुके हैं, उसे पूर्ण करने की जिम्मेदारी हमारे सिर पर है. एक युवा के रूप में संकल्प ले करके हम निकलें तो भारत माता को जगदगुरु के स्थान पर बिराजमान कर सकते हैं.

मित्रों, गुजरात में शिक्षा की जो मुहिम चलाई है, इसके सुफल देखने को मिल रहे हैं. कन्या शिक्षा का अभियान चलाया, प्रवेशोत्सव चलाया. जिन दिनों मैंने काम की शुरुआत की थी, 7-8 साल पहले, तब लोगों को अंदाज़ा नहीं था कि यह सब क्या चल रहा है. मित्रों, आज स्थिति ऐसी है कि उच्च शिक्षा के लिए इतने बड़े पैमाने पर लोग जा रहे हैं. वंचित, दलित, आदिवासी सभी बड़ी मात्रा में जा रहे हैं. और, इसलिए इस बजट में 100 करोड़ रुपयों जैसी बड़ी राशि सिर्फ दूरवर्ती इलाकों के बच्चे जो पढ़-लिखकर आगे आए हैं, उनके लिए हॉस्टल बनाने के लिए तय की है. गुजरात के बजट में 100 करोड़ जितनी बड़ी राशि का आवंटन सिर्फ हॉस्टल बनाने के लिए किया है, ताकि आंतरिक क्षेत्रों के लोगों को पढ़ने की सुविधा मिले, उन्हें रहने के लिए कहीं जगह मिले, ऐसा एक बड़ा अभियान उठाया है. मित्रों, गुजरात का विकास जिस प्रकार से हो रहा है उसके अनुरूप मानव-शक्ति का विकास हो इस विषय पर हमने ध्यान केंद्रित किया है. 2001 में जब गुजरात की जनता ने मुझे यह जिम्मेदारी सौंपी थी तब इस राज्य में सिर्फ 11 युनिवर्सिटी थीं. भाईयों-बहनों, आज 41 युनिवर्सिटी हैं. पिछली सदी में जितनी कॉलेज थीं, उससे ज्यादा युनिवर्सिटी हैं और उन युनिवर्सिटीयों ने भी विश्व कक्षा की युनिवर्सिटी की दिशा में कदम बढ़ाये हैं और उस दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं.

 

ज जो नौजवान मित्र जीवन की एक नई राह पर कदम रखने जा रहे हैं उन्हें मैं हार्दिक अभिनंदन देता हूँ, शुभकामनाएँ देता हूँ.

 

न्यवाद..!

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January 06, 2025
जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना और ओडिशा में रेल ढ़ांचा परियोजनाओं के शुभारंभ से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और इन क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास में मदद मिलेगी: प्रधानमंत्री
आज देश विकसित भारत की संकल्प सिद्धि में जुटा है और इसके लिए भारतीय रेलवे का विकास बहुत महत्वपूर्ण है: प्रधानमंत्री
हम भारत में रेलवे के विकास को चार मापदंडों पर आगे बढ़ा रहे हैं। पहला- रेलवे ढ़ांचे का आधुनिकीकरण, दूसरा- रेलवे के यात्रियों को आधुनिक सुविधाएं, तीसरा- रेलवे की देश के कोने-कोने में कनेक्टिविटी और चौथा- रेलवे से रोजगार सृजन और उद्योगों को मददः प्रधानमंत्री
आज भारत रेल लाइनों के शत-प्रतिशत विद्युतीकरण के करीब है, हमने रेलवे की पहुंच का भी निरंतर विस्तार किया है: प्रधानमंत्री

नमस्कार जी।

तेलंगाना के गवर्नर श्रीमान जिष्णु देव वर्मा जी, ओडिशा के गवर्नर श्री हरि बाबू जी, जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा जी, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री श्रीमान उमर अब्दुल्ला जी, तेलंगाना के सीएम श्रीमान रेवंत रेड्डी जी, ओडिशा के मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी, केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी अश्विनी वैष्णव जी, जी किशन रेड्डी जी, डॉ. जीतेंद्र सिंह जी, वी सोमैया जी, रवनीत सिंह बिट्टू जी, बंडी संजय कुमार जी, अन्य मंत्रीगण, सांसद, विधायकगण, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

आज गुरु गोविंद सिंह जी की, उनका ये प्रकाश उत्सव है। उनके विचार, उनका जीवन हमें समृद्ध और सशक्त भारत बनाने की प्रेरणा देता है। मैं सभी को गुरू गोविंद सिंह जी के प्रकाश उत्सव की शुभकामनाएं देता हूं।

साथियों,

2025 की शुरुआत से ही भारत, कनेक्टिविटी की तेज रफ्तार बनाए हुए है। कल मैंने दिल्ली-एनसीआर में नमो भारत ट्रेन का शानदार अनुभव लिया, दिल्ली मेट्रो की अहम परियोजनाओं की शुरूआत की। कल भारत ने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की है, हमारे देश में अब मेट्रो नेटवर्क, एक हजार किलोमीटर से ज्यादा का हो गया है। अभी आज यहाँ करोड़ों रुपए की परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास हुआ है। उत्तर में जम्मू कश्मीर, पूरब में ओडिशा, और दक्षिण में तेलंगाना, आज देश के एक बड़े हिस्से के लिए 'new age connectivity' के लिहाज से बहुत बड़ा दिन है। इन तीनों राज्यों में आधुनिक विकास की शुरुआत, ये बताता है कि पूरा देश अब एक साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहा है। और यही 'सबका साथ, सबका विकास' वो मंत्र है जो विकसित भारत के सपने में विश्वास के रंग भर रहा है। मैं आज इस अवसर पर, इन तीनों राज्यों के लोगों को और सभी देशवासियों को इन प्रोजेक्ट्स की बधाई देता हूं। और ये भी संयोग है कि आज हमारे ओडिशा के मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण माझी जी का जन्मदिन भी है, मैं उनको भी आज सबकी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

साथियों,

आज देश विकसित भारत की संकल्प सिद्धि में जुटा है, और इसके लिए भारतीय रेलवे का विकास बहुत महत्वपूर्ण है। हमने देखा है, पिछला एक दशक भारतीय रेलवे के ऐतिहासिक ट्रांसफॉर्मेशन का रहा है। रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर में एक visible change आया है। इससे देश की छवि बदली है, और देशवासियों का मनोबल भी बढ़ा है।

साथियों,

भारत में रेलवे के विकास को हम चार पैरामीटर्स पर आगे बढ़ा रहे हैं। पहला- रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर का modernization, दूसरा- रेलवे के यात्रियों को आधुनिक सुविधाएं, तीसरा- रेलवे की देश के कोने-कोने में कनेक्टिविटी, चौथा- रेलवे से रोजगार का निर्माण, उद्योगों को सपोर्ट। आज के इस कार्यक्रम में भी इसी विजन की झलक दिखाई देती है। ये नए डिविजन, नए रेल टर्मिनल, भारतीय रेलवे को 21वीं सदी की आधुनिक रेलवे बनाने में अहम योगदान देंगे। इनसे देश में आर्थिक समृद्धि का इकोसिस्टम डवलप करने में मदद मिलेगी, रेलवे के संचालन में मदद मिलेगी, निवेश के ज्यादा मौके बनेंगे और नई नौकरियों का सृजन भी होगा।

साथियों,

2014 में हमने भारतीय रेलवे को आधुनिक बनाने का सपना लेकर काम शुरू किया था। वंदे भारत ट्रेनों की फैसिलिटी, अमृत भारत और नमो भारत रेल की सुविधा, अब भारतीय रेल का नया बेंचमार्क बन रही हैं। आज का Aspirational India, कम समय में बहुत ज्यादा पाने की आकांक्षा रखता है। आज लोग लंबी दूरी की यात्रा को भी कम समय में पूरा करना चाहते हैं। ऐसे में देश के हर हिस्से में हाई स्पीड ट्रेनों की मांग बढ़ रही है। आज 50 से ज्यादा रूट्स पर वंदे भारत ट्रेनें चल रही हैं। 136 वंदे भारत सेवाएं लोगों की यात्रा को सुखद बना रही हैं। अभी मैं दो-तीन दिन पहले ही एक वीडियो देख रहा था, अपने ट्रायल रन में वंदे भारत का नया स्लीपर वर्जन कैसे 180 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ रहा है, और ये देखकर मुझे ही नहीं किसी भी हिन्दुस्तानी को अच्छा लगेगा। ऐसे अनुभव ये तो शुरुआत हैं, वो समय दूर नहीं जब भारत में पहली बुलेट ट्रेन भी दौड़ेगी।

साथियों,

हमारा लक्ष्य है कि- फ़र्स्ट स्टेशन से लेकर डेस्टिनेशन तक, भारतीय रेल से यात्रा एक यादगार अनुभव बने। इसके लिए देश में 1300 से ज्यादा अमृत स्टेशनों का कायाकल्प भी हो रहा है। पिछले 10 वर्षों में रेल कनेक्टिविटी का भी अद्भुत विस्तार हुआ है। 2014 तक देश में सिर्फ thirty five percent, 35 परसेंट रेल लाइनों का electrification हुआ था। आज भारत, रेल लाइनों के शत प्रतिशत electrification के करीब है। हमने रेलवे की reach को भी लगातार expand किया है। बीते 10 वर्षों में 30 हजार किलोमीटर से ज्यादा नए रेलवे ट्रैक बिछाए गए हैं, सैकड़ों रोड ओवर ब्रिज और रोड अंडर ब्रिज का निर्माण किया गया है। अब ब्रॉड गेज लाइनों पर मानव रहित क्रॉसिंग्स खत्म हो चुकी हैं। इससे दुर्घटनाएं भी कम हुई हैं और यात्रियों की सुरक्षा भी बढ़ी है। देश में Dedicated freight corridor जैसे आधुनिक रेल नेटवर्क का काम भी तेजी से पूरा हो रहा है। ये स्पेशल corridor बनने से सामान्य ट्रैक पर दबाव कम होगा और हाई स्पीड ट्रेनों को चलाने के अवसर भी बढ़ेंगे।

साथियों,

रेलवे में आज कायाकल्प का जो अभियान चल रहा है, जिस तरह मेड इन इंडिया को बढ़ावा दिया जा रहा है, मेट्रो के लिए, रेलवे के लिए आधुनिक डिब्बे तैयार किए जा रहे हैं, स्टेशनों को री-डवलप किया जा रहा है, स्टेशनों पर सोलर-पैनल लगाए जा रहे हैं, 'वन स्टेशन, वन प्रोडक्ट' इसके स्टॉल लग रहे हैं, उससे भी रेलवे में रोजगार के लाखों नए अवसर बन रहे हैं। पिछले 10 साल में रेलवे में लाखों युवाओं को पक्की सरकारी नौकरी मिली है। हमें याद रखना है, जिन कारखानों में नई ट्रेनों के डिब्बे बनाए जा रहे हैं, उसके लिए कच्चा माल दूसरी फैक्ट्रियों से आ रहा है। वहां डिमांड बढ़ने का मतलब है, रोजगार के ज्यादा अवसर। रेलवे से जुड़ी विशेष स्किल को ध्यान में रखते हुए देश की पहली गति-शक्ति यूनिवर्सिटी की भी स्थापना की गई है।

साथियों,

आज जैसे-जैसे रेलवे नेटवर्क का विस्तार हो रहा है, उसी हिसाब से नए हेडक्वार्टर और डिवीजन भी बनाए जा रहे हैं। जम्मू डिवीज़न का लाभ जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश और पंजाब के कई शहरों को भी होगा। इससे लेह-लद्दाख के लोगों को भी सुविधा होगी।

साथियों,

हमारा जम्मू-कश्मीर आज रेल इंफ्रास्ट्रक्चर में नए रिकॉर्ड बना रहा है। उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लाइन इसकी चर्चा आज पूरे देश में है। ये परियोजना जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य हिस्सों के साथ और बेहतरी से जोड़ देगी। इसी परियोजना के तहत दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च ब्रिज, चिनाब ब्रिज का काम पूरा हुआ है। अंजी खड्ड ब्रिज, जो देश का पहला केबल आधारित रेल ब्रिज है, वो भी इसी परियोजना का हिस्सा है। ये दोनों इंजीनियरिंग के बेजोड़ उदाहरण हैं। इनसे इस क्षेत्र में आर्थिक प्रगति होगी और समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।

साथियों,

भगवान जगन्नाथ के आशीर्वाद से हमारे ओडिशा के पास प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है। इतना बड़ा समुद्री तट मिला है। ओडिशा में इंटरनेशनल ट्रेड की प्रबल संभावनाएं हैं। आज ओडिशा में रेलवे के नए ट्रैक से जुड़े लगभग अनेकों प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है। इन पर 70 हजार करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हो रहा है। राज्य में 7 गति शक्ति कार्गो टर्मिनल शुरू किए गए हैं, जो व्यापार और उद्योगों को बढ़ावा दे रहे हैं। आज भी ओडिशा में जिस रायगड़ा रेल मंडल का शिलान्यास किया गया है, इससे प्रदेश का रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर और मजबूत होगा। इससे ओडिशा में पर्यटन, व्यापार और रोजगार को बढ़ावा मिलेगा। खास तौर पर, इसका बहुत लाभ उस दक्षिण ओडिशा को मिलेगा, जहां जनजातीय परिवारों की संख्या ज्यादा है। हम जनमन योजना के तहत जिन अति-पिछड़े आदिवासी इलाकों का विकास कर रहे हैं, ये इंफ्रास्ट्रक्चर उनके लिए वरदान साबित होगा।

साथियों,

आज मुझे तेलंगाना के चर्लपल्ली न्यू टर्मिनल स्टेशन के उद्घाटन का भी अवसर मिला है। इस स्टेशन के आउटर रिंग रोड से जुड़ने से क्षेत्र में विकास को गति मिलेगी। स्टेशन पर आधुनिक प्लेटफॉर्म, लिफ्ट, एस्केलेटर जैसी सुविधाएं हैं। एक और खास बात है कि ये स्टेशन सोलर ऊर्जा से संचालित हो रहा है। ये नया रेलवे टर्मिनल, शहर के मौजूदा टर्मिनल्स जैसे सिकंदराबाद, हैदराबाद और काचिगुड़ा पर प्रेशर को बहुत कम करेगा। इससे लोगों के लिए यात्रा और सुविधाजनक होगी। यानि ease of living के साथ-साथ ease of doing business को भी बढ़ावा मिलेगा।

साथियों,

आज देश में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण का महायज्ञ चल रहा है। भारत के एक्सप्रेसवे, वॉटरवे, मेट्रो नेटवर्क का तेज गति से विस्तार हो रहा है। आज देश के एयरपोर्ट्स पर सबसे बेहतरीन सुविधाएं मिल रही हैं। 2014 में देश में एयरपोर्ट्स की संख्या 74 थी, अब इनकी संख्या बढ़कर 150 के पार हो चुकी है। 2014 तक सिर्फ 5 शहरों में मेट्रो की सुविधा थी, आज 21 शहरों में मेट्रो है। इस स्केल और स्पीड को मैच करने के लिए भारतीय रेलवे को भी लगातार अपग्रेड किया जा रहा है।

साथियों,

ये सभी विकास कार्य विकसित भारत के उस रोडमैप का हिस्सा हैं, जो आज हर देशवासी के लिए एक मिशन बन चुका है। मुझे विश्वास है, हम सब साथ मिलकर इस दिशा में और भी तेज गति से आगे बढ़ेंगे। मैं एक बार फिर इन परियोजनाओं के लिए देशवासियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद।