26 फ़रवरी, 2012

सुरत

मारे यहाँ जितना महत्त्व शिक्षा का है उससे ज्यादा महत्व दीक्षा का है और शिक्षित व्यक्ति जब तक दीक्षित न हो तब तक शिक्षा अधूरी मानी जाती है. यदि शास्त्रों में देखें तो ‘तैत्तिरीय उपनिषद्’ में पहली बार इस प्रकार के दीक्षांत समारोह का उल्लेख है. परंतु हमारे यहाँ परंपरागत रूप से गुरुकुल की जो शिक्षा परंपरा थी उसमें विद्यार्थिओं की शिक्षा पूर्ण होने के बाद गुरुजन अनेक कसौटियों में से उन्हें पार करते थे, ऐसे अनेक सहज आयोजन किए जाते जिनमें से गुजरते-गुजरते, उसने जो भी कुछ सीखा हो उसका अमल नित्यक्रम के दौरान करके दिखाना पडता था, उसे तो इस बात का ज्ञान भी नहीं होता था कि वह जो कर रहा है उसकी कसौटी का कोई हिस्सा है. और इसका बहुत माइन्यूट ऑब्ज़र्वेशन होता था और उसके बाद ही वे डिग़्रीधारी बनते थे और उन्हें जीवन के अन्य आश्रम की ओर जाने की अनुमति मिलती थी.

मित्रों, विद्यार्थीकाल उत्तम समय होता है. एक ओर इस बात का आनंद होता है कि भाई, आज यहाँ से डिग़्रीधारी बन कर हम समाज में जा रहे हैं, लेकिन उसके साथ ही एक बड़ी जिम्मेदारी शुरू होती है. आप विद्यार्थी हों तब मित्रों के बीच, समाज के बीच खड़े हों और परिचय दें कि मैं फाइनल यीअर में पढ़ता हूँ तो लम्बे प्रश्न नहीं पूछे जाते. पढ़ रहे हो, बात पूरी हो जाती है. लेकिन जिस पल आप कहो कि अब मैं ग्रैजुएट हो गया हूँ तो तुरंत ही प्रश्न आता है कि तो अब क्या कर रहे हो? अब क्या करने वाले हो? क्या सोचा है? और नौकरी के मामले में तो यह चलता ही है; साथ ही छोकरी के मामले में भी शुरु हो जाता है और यदि लड़की हो तो लड़के के बारे में शुरु होता है. यह सहज बात है. पढ़ते हों तब तक कोई टेन्शन नहीं, कोई पूछे नहीं और इसलिए कुछ लोग क्या करते हैं कि कहीं और कोई मेल न हो तब तक सी.ए. में एन्ट्री ले लेते हैं, ताकि दूसरा बंदोबस्त न हो तब तक कहने को चलें कि, क्या कर रहे हो? सी.ए. कर रहा हूँ, अनएन्डिंग प्रोसेस है... मित्रों, जब हम विद्यार्थी हों तब जीवन में अनेक लोग होते हैं जो हमारा मार्गदर्शन करते हैं. एक प्रकार से प्रोटेक्टेड लाइफ होती है. परिवार में परिवारजन चिंता करते हैं, कुटुम्ब के साथ संबंधित बुज़ुर्ग चिंता करते हैं, शिक्षा संस्था का चपरासी भी कई बार हमें गाइड करता है कि नहीं-नहीं भाई, ऐसा नहीं करते... ऐसा होता है, आपने अनुभव किया होगा मित्रों, और हमे लगता है कि इस चपरासी को समझ में आता है और मुझे नहीं आया..! शिक्षकगण भी हमें गाइड करते हैं कि भाई, ऐसा करते हैं और ऐसा नहीं करते हैं. और इसके कारण हम निश्चिंत रहते हैं. कोई भी भूल हो तो कहीं कोई रोकने वाले, कोई टोकने वाले की व्यवस्था होती है और इसके कारण मुक्त भाव से कदम उठाने की हिम्मत आती है. लेकिन जिस पल इस व्यवस्था में से बाहर आते हैं तबसे प्रत्येक पल निर्णय खुद ही करना पडता है. आस-पास देखें तो कोई शिक्षक खड़े नहीं होते, समाज की हमारी ओर देखने की पूरी मानसिकता बदल जाती है और एक प्रकार से एक कसौटी काल का आरम्भ होता है. आज जो लोग पदवी प्राप्त कर रहे हैं वे सारे मित्र कसौटी काल में कदम रख रहे हैं. और जब कसौटी शुरू हो रही है उस वक्त प्रत्येक पल, बचपन से लेकर आज तक जहाँ कहीं भी शिक्षा प्राप्त की होगी, जिन-जिन गुरुजनों से जो कुछ सीखे होंगे उसकी पूरी कथा मन में कदम-कदम पर याद आती है. कुछ करने जाएँ वहीं खयाल आए कि हाँ यार, क्लास में साहब ने यह बात तो बताई थी..! कहीं इंटरव्यू देने जाएँ और कोई प्रश्न आए तो तुरंत ही विचार आए कि हाँ यार, साहब ने कहा तो था लेकिन आज याद नहीं आ रहा है. हर कदम पर यह कार्यकाल आपको याद आएगा मित्रों। आज जिनका दीक्षांत समारोह हो रहा है उन्हें तो समझना ही है, परंतु जो लोग भविष्य के दीक्षांत समारोह के स्वाभाविक दावेदार हैं वे लोग भी यहाँ बैठे हैं, उनको भी इसमें से प्रेरणा मिले कि हाँ भाई, जीवन की शुरूआत कठिन होती है. जीवन में हर कदम पर प्रत्येक कसौटी में से पार होना पडता है.

मैं चाहूंगा कि वीर नर्मद के नाम के साथ जुडी इस युनिवर्सिटी के जब हम सब विद्यार्थी हैं तो और कुछ कर सकें या न कर सकें मित्रों, लेकिन नर्मद का एक वाक्य जीवन में उतारें, ‘डगलुं भर्युं के ना हठवुं...’ (‘एक बार कदम बढ़ाने के बाद डगमगाना नहीं...’). और नर्मद की पुण्यतिथि पर जब हमें आशीर्वाद प्राप्त हो रहे हैं तब... मित्रों, समाज-जीवन में असमंजस में रहने वाले लोग न तो कभी कुछ पा सकते हैं, न ही कभी समाज को कुछ दे सकते हैं. जो लोग निर्णायक होते हैं, वे ही लोग निर्धारित मंज़िल को प्राप्त कर सकते हैं. जो लोग अनिर्णायक होते हैं, उनका काफ़ी सारा वक्त एक उलझन भरी अवस्था में ही रहता है. आपने कई लोग देखे होंगे, बस स्टेशन पर... चार बस खड़ी हों तो तय नहीं कर पाते कि इसमें जाएँ या उसमें. और तीन चली जाए उसके बाद आखिर में जो मिले उसमें चढ़ जाते हैं, तय ही नहीं कर पाते. और यह एक आम अनुभव होता है. बहुत सारे लोग बीमार हुए हों तो ऑपरेशन कराएँ या न कराएँ, इस डॉक्टर के पास या उस डॉक्टर के पास... और तब तक रोग इतना उग्र हो जाता है कि डॉक्टर के हाथ की बाज़ी ही नहीं रहती है. कारण? अनिर्णायकता. मित्रों, असमंजस से भरी जिंदगी और युवा के बीच कभी भी, कोई भी संबंध नहीं होना चाहिए. मैं युवा हूँ, इसका मतलब है कि मैं निर्णायक हूँ और अगर मैं निर्णायक नहीं हूँ, तो निश्चित रूप से मैं युवा नहीं हूँ. मैं अत्यंत भयभीत हूँ, मैं अत्यंत असुरक्षित हूँ, मुझे कदम बढ़ाने में डर लगता है कि कहीं मैं गिर न जाऊँ... अर्थात, मेरे मन का यौवन मैंने खो दिया है और इसलिए निर्णायक होना, दुविधा मुक्त जिंदगी होना युवा होने की पहली शर्त है मित्रों। और जो लोग निर्णायक होते हैं, वे साहसिक भी होते हैं. कश्मकश से भरा व्यक्ति इसलिए असमंजस में रहता है कि मूलतः उसमें साहस का अभाव होता है. वह भयभीत है कि कहीं कुछ हो जायेगा तो? कहीं कोई कुछ कहेगा तो? कहीं ऐसा होगा तो? मित्रों, बच्चों को कभी कोई कश्मकश नहीं होती, क्योंकि उनमें भय नहीं होता. जिसे भय हो, वह असमंजस में रहता है और इसलिए व्यक्ति के जीवन में अभय, मन की रचना में अभय, जीवन की प्रगति के लिए अनिवार्य होता है. जब तक व्यक्ति भयमुक्त मन:स्थिति में न हो, कैसे भी माहौल में भय स्पर्श न करता हो, अंधकार जैसा कुछ प्रतीत न होता हो, प्रत्येक पल प्रकाश दिखता हो, तब ही वह जिंदगी की राह निश्चित कर सकता है। और मित्रों, प्रकाश को देखने के लिए सूरज के उगने की प्रतीक्षा नहीं करनी पडती. मित्रों, सामर्थ्यवान लोग तारों के प्रकाश में भी रास्ता खोज लेते हैं. जिंदगी सुनहरे पलों का इंतजार करने के लिए नहीं होती है, मित्रों. अंधकार भरे जीवन में भी  सितारों की रोशनी से रौनक आ सकती है और मित्रों, घना अंधकार हो, बादल छाया वातावरण हो तो भी मेरे आदिवासी भाई को जुगनू के प्रकाश में जिंदगी की राह बनाते हुए देखा है. अगर एक जुगनू जिंदगी की राह दिखा सकता है तो मैं तो एक ऐसी समृद्ध जिंदगी जीने वाला मानव हूँ, मेरे जीवन में रुकावट क्यों? यदि ऐसी संकल्प शक्ति हो, तो जीवन बदला जा सकता है.

मित्रों, कई बार समाज-जीवन में हम जब काम करते हों तब आपको ऐसा लगता होगा कि मेरे पिताजी ने फीस भरी थी इसलिए मैं ग्रैजुएट हुआ हूँ, उसके कारण आज पदवी प्राप्त कर रहा हूँ, ऐसा नहीं है दोस्तों. मैं देर रात तक पढ़ता था इसलिए अब पदवीधारी बना हूँ, ऐसा नहीं है. परीक्षा के दिनों में अच्छी से अच्छी फिल्म भी मैंने छोड़ दी थी इसलिए पास हुआ हूँ, ऐसा है? ऐसा नहीं होता. अनेक लोगों ने मेरी जिंदगी बनाने के लिए कुछ न कुछ योगदान दिया है. जब कभी कॉलेज में उब जाता था और कॅम्पस के बाहर जाकर किसी पेड़ की छाया में छोटी-सी केतली लेकर जो चाय बनाने वाला बैठता था, मैं उसकी चाय पीकर ताज़गी का अनुभव करता था और फिर से क्लास रूम में चला आता था. आज पदवी लेते समय उसे भी याद करना, उसे भी ज़रा याद करना कि कभी एक सामान्य गली में जीने वाले आदमी ने आपकी पसंद की चाय बनाकर आपको ताज़गी दी थी. मित्रों, कभी परीक्षा में दौड़ते हुए जाते होंगे, बस छूट गई होगी, देर हो गई होगी और आपने ड्राइवर को विनती की होगी कि साहब, ज़रा दबाना भाई, जल्दी चलाना, मुझे परीक्षा के लिए पहुँचना है और ड्राइवर ने रिस्क लेकर शायद आपको पहुँचाया होगा. मित्रों, आज उन्हें भी याद करना. मित्रों, आप जिस कुर्सी पर बैठकर, जिस बेंच पर बैठकर पढ़े होंगे उस बेंच को साफ करने के लिए किसी चपरासी ने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी होगी, उस चपरासी को भी ज़रा याद करना. मित्रों, कितने लोगों का योगदान होता है, कितने लोगों के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप मैं जिंदगी में कुछ प्राप्त कर सकता हूँ, इसका अर्थ यह हुआ कि समग्र समाज का मुझ पर ऋण होता है. इस समाज के ऋण चुकाने का समय मेरे पदवी प्राप्त करने के बाद शुरु होता है. जीवन की प्रत्येक पल को मैं इस समाज का ऋण चुकाता रहूँगा. इस समाज का मुझ पर जो ऋण है, मैं आजीवन कभी उसे भूलूँगा नहीं. इस कर्तव्य के पालन को मैं निभाऊँगा. यह अगर जीवन का भाव होगा तो हम जीवन में एक संतोष की अनुभूति कर सकेंगे.

मित्रों, इस पदवीदान समारोह में से बिदा हो रहे हो तब यदि आपको ऐसा लगे कि अब आप विद्यार्थी नहीं रहे तो आप समझ लेना कि आप जीवन की ओर नहीं, मृत्यु की ओर प्रयाण कर रहे हो. मित्रों, मैं बहुत ही जिम्मेदारी भरी बात कर रहा हूँ. यहाँ से निकलते ही यदि आपने ऐसा मान लिया कि आपका विद्यार्थी काल समाप्त हो गया तो इसका मतलब यह हुआ कि आपका जीवन काल समाप्त हो गया और आपका मृत्यु काल प्रारंभ हो गया है. मित्रों, विद्यार्थी जीवनपर्यंत जीवित रहना चाहिए. जीवन के अंत तक विद्यार्थी जिन्दा रहना चाहिए. हमारे भीतर यदि विद्यार्थी जीवित नहीं है तो जीवन की विकास यात्रा असंभव है, जीवन में ठहराव आ जाता है. और कोई भी युवा ऐसा नहीं हो सकता कि जिसके जीवन में ठहराव आए, जीवन में निरंतर विकास यात्रा हो और इसके लिए अनिवार्य है कि प्रत्येक पल मैं विद्यार्थी रहूँ. प्रत्येक पल को जानने की मेरी कोशिश रहे, मेरी जिज्ञासा रहे. प्रत्येक पल मुझ में कुछ सीखने की मनोवृत्ति रहे. और जीवन के मूलभूत तत्त्वों को जीवन के साथ बांधना पड़ता है, उन्हें अपने जीवन का डी.एन.ए. बनाना पड़ता है. विद्यार्थी अवस्था, मन की विद्यार्थी अवस्था हमारा अपना डी.एन.ए. होना चाहिए. और अगर ऐसा हो तो ही जीवन में प्रगति की सम्भावना रहती है.

भाईयों-बहनों, यह वर्ष स्वामी विवेकानंदजी की 150 वीं जयंती का वर्ष है. और 150 वीं जयंती का वर्ष जब मना रहे हैं तब गुजरात ने, राज्य सरकार ने इसे ‘युवा शक्ति वर्ष’ के रूप में मनाने का निश्चय किया है और युवा शक्ति यानि सिर्फ निबंध स्पर्धाएँ या वक्तृत्व स्पर्धाएँ हो, वहीं तक सीमित नहीं है. एक फोकस किया है, कौशल वर्धन पर. हुनर... मित्रों, जीवन में ज्ञान के साथ हुनर की भी उतनी ही आवश्यकता होती है और अगर हुनर न हो तो ज्ञान कई बार गड्ढे में बेकार पड़ा रह जाता है. इस घटना का मैंने कई बार उल्लेख किया है, आज फिर से करना चाहता हूँ. एक बार दादा धर्माधिकारी, जो विनोबाजी के साथी थे, गाँधीजी की विचारधारा के एक अनुयायी थे. उनके कई पुस्तक पढ़ने लायक हैं. दादा धर्माधिकारी ने एक जगह लिखा है कि एक बार एक युवक मुझसे मिलने आया और उसने मुझसे कहा कि, “दादा, कुछ नौकरी का कर दो...”, तो दादा ने उसे पूछा, “भाई, तुझे क्या आता है?”, तो उस युवक ने जवाब दिया, “मैं ग्रैजुएट हूँ” उन्होंने कहा कि ठीक है, लेकिन तुम्हें आता क्या है?” तो उसने फिर से कहा, “मैं ग्रैजुएट हूँ”, और फिर अपनी बैग में से सर्टिफिकेट दिखाए, तो उन्होंने कहा, ”यह सब तो ठीक है, तुम ग्रैजुएट हो लेकिन तुम्हें आता क्या है?” फिर से उसने कहा, “साहब, मैं ग्रैजुएट हूँ”. दादा ने कहा, “भाई, वो सब तो ठीक है, लेकिन मुझे बताओ कि तुम ड्राइविंग करना जानते हो?” तो बोला कि नहीं, “तुम टाइपिंग जानते हो”, तो बोला कि नहीं, “तुम खाना बनाना जानते हो, तैरना जानते हो?”, “नहीं, लेकिन मैं ग्रैजुएट हूँ, मेरे पास सर्टिफिकेट है.” मित्रों, डिग्री के साथ-साथ जीवन कौशल अनिवार्य होता है और इस बात को ध्यान में रखते हुए, गुजरात में स्वामी विवेकानंदजी की 150 वीं जयंती के अवसर पर पूरे राज्य में कौशल वर्धन के लिए एक बड़ा अभियान हम चलाने वाले हैं. हर किसी में कोई न कोई एक्स्ट्रा टैलन्ट हो, कोई न कोई एक्स्ट्रा कौशल हो, कोई न कोई हुनर उसे आता हो, उसे आत्मनिर्भरता से जीने का सामर्थ्य मिले. मित्रों, भारत एक भाग्यशाली देश है और हम सब एक ऐसे युग में हैं कि जिस वक्त हिंदुस्तान दुनिया का सबसे युवा देश है. इस देश के 65% लोग 35 से कम उम्र के हैं. जिस देश के पास इतनी बड़ी युवा शक्ति हो, उसके सपने कितने युवा हो सकते हैं, कितने तेजस्वी हो सकते हैं..! ऐसे युवा सपनों, युवा तेजस्वी सपनों के साथ हमारी भारतमाता विश्वगुरु बने; स्वामी विवेकानंदजी के इस स्वप्न को साकार करने का युग हमारे जीवन काल में आया है. और अगर ऐसी भावनाएँ युवाओं के मन में प्रकट कर सकें तो इतना बड़ा देश, 120 करोड़ की जनसंख्या, 65% नौजवानों से भरा देश, मित्रों, उनके कौशल के द्वारा, उनकी क्षमता के द्वारा, उनकी बुद्धि के द्वारा वह विश्व विजेता बन सके ऐसा सामर्थ्य रखता है. और, विवेकानंदजी का यह स्वप्न था कि “मैं मेरी आँखों के सामने देख सकता हूँ, यह भारतमाता एक न एक दिन जगदगुरु के स्थान पर बिराजमान होगी”. मित्रों, विवेकानंदजी का स्वप्न, 150 साल बीत चुके हैं, उसे पूर्ण करने की जिम्मेदारी हमारे सिर पर है. एक युवा के रूप में संकल्प ले करके हम निकलें तो भारत माता को जगदगुरु के स्थान पर बिराजमान कर सकते हैं.

मित्रों, गुजरात में शिक्षा की जो मुहिम चलाई है, इसके सुफल देखने को मिल रहे हैं. कन्या शिक्षा का अभियान चलाया, प्रवेशोत्सव चलाया. जिन दिनों मैंने काम की शुरुआत की थी, 7-8 साल पहले, तब लोगों को अंदाज़ा नहीं था कि यह सब क्या चल रहा है. मित्रों, आज स्थिति ऐसी है कि उच्च शिक्षा के लिए इतने बड़े पैमाने पर लोग जा रहे हैं. वंचित, दलित, आदिवासी सभी बड़ी मात्रा में जा रहे हैं. और, इसलिए इस बजट में 100 करोड़ रुपयों जैसी बड़ी राशि सिर्फ दूरवर्ती इलाकों के बच्चे जो पढ़-लिखकर आगे आए हैं, उनके लिए हॉस्टल बनाने के लिए तय की है. गुजरात के बजट में 100 करोड़ जितनी बड़ी राशि का आवंटन सिर्फ हॉस्टल बनाने के लिए किया है, ताकि आंतरिक क्षेत्रों के लोगों को पढ़ने की सुविधा मिले, उन्हें रहने के लिए कहीं जगह मिले, ऐसा एक बड़ा अभियान उठाया है. मित्रों, गुजरात का विकास जिस प्रकार से हो रहा है उसके अनुरूप मानव-शक्ति का विकास हो इस विषय पर हमने ध्यान केंद्रित किया है. 2001 में जब गुजरात की जनता ने मुझे यह जिम्मेदारी सौंपी थी तब इस राज्य में सिर्फ 11 युनिवर्सिटी थीं. भाईयों-बहनों, आज 41 युनिवर्सिटी हैं. पिछली सदी में जितनी कॉलेज थीं, उससे ज्यादा युनिवर्सिटी हैं और उन युनिवर्सिटीयों ने भी विश्व कक्षा की युनिवर्सिटी की दिशा में कदम बढ़ाये हैं और उस दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं.

 

ज जो नौजवान मित्र जीवन की एक नई राह पर कदम रखने जा रहे हैं उन्हें मैं हार्दिक अभिनंदन देता हूँ, शुभकामनाएँ देता हूँ.

 

न्यवाद..!

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January 04, 2025
हमारा विजन गांवों को विकास और अवसर के जीवंत केंद्रों में बदलकर ग्रामीण भारत को सशक्त बनाना है: प्रधानमंत्री
हमने हर गांव में बुनियादी सुविधाओं की गारंटी के लिए अभियान शुरू किया है: प्रधानमंत्री
हमारी सरकार की नीयत, नीतियां और निर्णय ग्रामीण भारत को नई ऊर्जा के साथ सशक्त बना रहे हैं: प्रधानमंत्री
आज, भारत सहकारी संस्थाओं के जरिए समृद्धि हासिल करने में लगा हुआ है: प्रधानमंत्री

मंच पर विराजमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी, वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी जी, यहां उपस्थित, नाबार्ड के वरिष्ठ मैनेजमेंट के सदस्य, सेल्फ हेल्प ग्रुप के सदस्य,कॉपरेटिव बैंक्स के सदस्य, किसान उत्पाद संघ- FPO’s के सदस्य, अन्य सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनों,

आप सभी को वर्ष 2025 की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। वर्ष 2025 की शुरुआत में ग्रामीण भारत महोत्सव का ये भव्य आयोजन भारत की विकास यात्रा का परिचय दे रहा है, एक पहचान बना रहा है। मैं इस आयोजन के लिए नाबार्ड को, अन्य सहयोगियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

साथियों,

हममें से जो लोग गाँव से जुड़े हैं, गाँव में पले बढ़े हैं, वो जानते हैं कि भारत के गाँवों की ताकत क्या है। जो गाँव में बसा है, गाँव भी उसके भीतर बस जाता है। जो गाँव में जिया है, वो गाँव को जीना भी जानता है। मेरा ये सौभाग्य रहा कि मेरा बचपन भी एक छोटे से कस्बे में एक साधारण परिवेश में बीता! और, बाद में जब मैं घर से निकला, तो भी अधिकांश समय देश के गाँव-देहात में ही गुजरा। और इसलिए, मैंने गाँव की समस्याओं को भी जिया है, और गाँव की संभावनाओं को भी जाना है। मैंने बचपन से देखा है, कि गाँव में लोग कितनी मेहनत करते रहे हैं, लेकिन, पूंजी की कमी के कारण उन्हें पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाते थे। मैंने देखा है, गाँव में लोगों की कितने यानी इतनी विविधताओं से भरा सामर्थ्य होता है! लेकिन, वो सामर्थ्य जीवन की मूलभूत लड़ाइयों में ही खप जाता है। कभी प्राकृतिक आपदा के कारण फसल नहीं होती थी, कभी बाज़ार तक पहुँच न होने के कारण फसल फेंकनी पड़ती थी, इन परेशानियों को इतने करीब से देखने के कारण मेरे मन में गाँव-गरीब की सेवा का संकल्प जगा, उनकी समस्याओं के समाधान की प्रेरणा आई।

आज देश के ग्रामीण इलाकों में जो काम हो रहे हैं, उनमें गाँवों के सिखाये अनुभवों की भी भूमिका है। 2014 से मैं लगातार हर पल ग्रामीण भारत की सेवा में लगा हूँ। गाँव के लोगों को गरिमापूर्ण जीवन देना, ये सरकार की प्राथमिकता है। हमारा विज़न है भारत के गाँव के लोग सशक्त बने, उन्हें गाँव में ही आगे बढ़ने के ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलें, उन्हें पलायन ना करना पड़े, गांव के लोगों का जीवन आसान हो और इसीलिए, हमने गाँव-गाँव में मूलभूत सुविधाओं की गारंटी का अभियान चलाया। स्वच्छ भारत अभियान के जरिए हमने घर-घर में शौचालय बनवाए। पीएम आवास योजना के तहत हमने ग्रामीण इलाकों में करोड़ों परिवारों को पक्के घर दिए। आज जल जीवन मिशन से लाखों गांवों के हर घर तक पीने का साफ पानी पहुँच रहा है।

साथियों,

आज डेढ़ लाख से ज्यादा आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के बेहतर विकल्प मिल रहे हैं। हमने डिजिटल टेक्नालजी की मदद से देश के बेस्ट डॉक्टर्स और हॉस्पिटल्स को भी गाँवों से जोड़ा है। telemedicine का लाभ लिया है। ग्रामीण इलाकों में करोड़ों लोग ई-संजीवनी के माध्यम से telemedicine का लाभ उठा चुके हैं। कोविड के समय दुनिया को लग रहा था कि भारत के गाँव इस महामारी से कैसे निपटेंगे! लेकिन, हमने हर गाँव में आखिरी व्यक्ति तक वैक्सीन पहुंचाई।

साथियों,

ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए बहुत आवश्यक है कि गांव में हर वर्ग को ध्यान में रखते हुए आर्थिक नीतियां बनें। मुझे खुशी है कि पिछले 10 साल में हमारी सरकार ने गांव के हर वर्ग के लिए विशेष नीतियां बनाई हैं, निर्णय लिए हैं। दो-तीन दिन पहले ही कैबिनेट ने पीएम फसल बीमा योजना को एक वर्ष अधिक तक जारी रखने को मंजूरी दे दी। DAP दुनिया, में उसका दाम बढ़ता ही चला जा रहा है, आसमान को छू रहा है। अगर वो दुनिया में जो दाम चल रहे हैं, अगर उस हिसाब से हमारे देश के किसान को खरीदना पड़ता तो वो बोझ में ऐसा दब जाता, ऐसा दब जाता, किसान कभी खड़ा ही नहीं हो सकता। लेकिन हमने निर्णय किया कि दुनिया में जो भी परिस्थिति हो, कितना ही बोझ न क्यों बढ़े, लेकिन हम किसान के सर पर बोझ नहीं आने देंगे। और DAP में अगर सब्सिडी बढ़ानी पड़ी तो बढ़ाकर के भी उसके काम को स्थिर रखा है। हमारी सरकार की नीयत, नीति और निर्णय ग्रामीण भारत को नई ऊर्जा से भर रहे हैं। हमारा मकसद है कि गांव के लोगों को गांव में ही ज्यादा से ज्यादा आर्थिक मदद मिले। गांव में वो खेती भी कर पाएं और गांवों में रोजगार-स्वरोजगार के नए मौके भी बनें। इसी सोच के साथ पीएम किसान सम्मान निधि से किसानों को करीब 3 लाख करोड़ रुपए की आर्थिक मदद दी गई है। पिछले 10 वर्षों में कृषि लोन की राशि साढ़े 3 गुना हो गई है। अब पशुपालकों और मत्स्य पालकों को भी किसान क्रेडिट कार्ड दिया जा रहा है। देश में मौजूद 9 हजार से ज्यादा FPO, किसान उत्पाद संघ, उन्हें भी आर्थिक मदद दी जा रही है। हमने पिछले 10 सालों में कई फसलों पर निरंतर MSP भी बढ़ाई है।

साथियों,

हमने स्वामित्व योजना जैसे अभियान भी शुरू किए हैं, जिनके जरिए गांव के लोगों को प्रॉपर्टी के पेपर्स मिल रहे हैं। पिछले 10 वर्षों में, MSME को भी बढ़ावा देने वाली कई नीतियां लागू की गई हैं। उन्हें क्रेडिट लिंक गारंटी स्कीम का लाभ दिया गया है। इसका फायदा एक करोड़ से ज्यादा ग्रामीण MSME को भी मिला है। आज गांव के युवाओं को मुद्रा योजना, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाओं से ज्यादा से ज्यादा मदद मिल रही है।

साथियों,

गांवों की तस्वीर बदलने में को-ऑपरेटिव्स का बहुत बड़ा योगदान रहा है। आज भारत सहकार से समृद्धि का रास्ता तय करने में जुटा है। इसी उद्देश्य से 2021 में अलग से नया सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया। देश के करीब 70 हजार पैक्स को कंप्यूटराइज्ड भी किया जा रहा है। मकसद यही है कि किसानों को, गांव के लोगों को अपने उत्पादों का बेहतर मूल्य मिले, ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो।

साथियों,

कृषि के अलावा भी हमारे गाँवों में अलग-अलग तरह की पारंपरिक कला और कौशल से जुड़े हुए कितने ही लोग काम करते हैं। अब जैसे लोहार है, सुथार है, कुम्हार है, ये सब काम करने वाले ज़्यादातर लोग गाँवों में ही रहते आए हैं। रुरल इकॉनमी, और लोकल इकॉनमी में इनका बहुत बड़ा contribution रहा है। लेकिन पहले इनकी भी लगातार उपेक्षा हुई। अब हम उन्हें नई नई skill, उसमे ट्रेन करने के लिए, नए नए उत्पाद तैयार करने के लिए, उनका सामर्थ्य बढ़ाने के लिए, सस्ती दरों पर मदद देने के लिए विश्वकर्मा योजना चला रहे हैं। ये योजना देश के लाखों विश्वकर्मा साथियों को आगे बढ़ने का मौका दे रही है।

साथियों,

जब इरादे नेक होते हैं, नतीजे भी संतोष देने वाले होते हैं। बीते 10 वर्षों की मेहनत का परिणाम देश को मिलने लगा है। अभी कुछ दिन पहले ही देश में एक बहुत बड़ा सर्वे हुआ है और इस सर्वे में कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं। साल 2011 की तुलना में अब ग्रामीण भारत में Consumption खपत, यानी गांव के लोगों की खरीद शक्ति पहले से लगभग तीन गुना बढ़ गई है। यानी लोग, गांव के लोग अपने पसंद की चीजें खरीदने में पहले से ज़्यादा खर्च कर रहे हैं। पहले स्थिति ये थी कि गांव के लोगों को अपनी कमाई का 50 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा, आधे से भी ज्यादा हिस्सा खाने-पीने पर खर्च करना पड़ता था। लेकिन आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि ग्रामीण इलाकों में भी खाने-पीने का खर्च 50 प्रतिशत से कम हुआ है, और, और जीवन की चीजें खरीदने ती तरफ खर्चा बढ़ा है। इसका मतलब लोग अपने शौक की, अपनी इच्छा की, अपनी आवश्यकता जी जरूरत की और चीजें भी खरीद रहे हैं, अपना जीवन बेहतर बनाने पर खर्च कर रहे हैं।

साथियों,

इसी सर्वे में एक और बड़ी अहम बात सामने आई है। सर्वे के अनुसार शहर और गाँव में होने वाली खपत का अंतर कम हुआ है। पहले शहर का एक प्रति परिवार जितना खर्च करके खरीद करता था और गांव का व्यक्ति जो कहते है बहुत फासला था, अब धीरे-धीरे गांव वाला भी शहर वालो की बराबरी करने में लग गया है। हमारे निरंतर प्रयासों से अब गाँवों और शहरों का ये अंतर भी कम हो रहा है। ग्रामीण भारत में सफलता की ऐसी अनेक गाथाएं हैं, जो हमें प्रेरित करती हैं।

साथियों,

आज जब मैं इन सफलताओं को देखता हूं, तो ये भी सोचता हूं कि ये सारे काम पहले की सरकारों के समय भी तो हो सकते थे, मोदी का इंतजार करना पड़ा क्या। लेकिन, आजादी के बाद दशकों तक देश के लाखो गाँव बुनियादी जरूरतों से वंचित रहे हैं। आप मुझे बताइये, देश में सबसे ज्यादा SC कहां रहते हैं गांव में, ST कहां रहते हैं गांव में, OBC कहां रहते हैं गांव में। SC हो, ST हो, OBC हो, सामज के इस तबके के लोग ज्यादा से ज्यादा गांव में ही अपना गुजारा करते हैं। पहले की सरकारों ने इन सभी की आवश्यकताओं की तरफ ध्यान नहीं दिया। गांवों से पलायन होता रहा, गरीबी बढ़ती रही, गांव-शहर की खाई भी बढ़ती रही। मैं आपको एक और उदाहरण देता हूं। आप जानते हैं, पहले हमारे सीमावर्ती गांवों को लेकर क्या सोच होती थी! उन्हें देश का आखिरी गाँव कहा जाता था। हमने उन्हें आखिरी गाँव कहना बंद करवा दिया, हमने कहा सूरज की पहली किरण जब निकलती है ना, तो उस पहले गांव में आती है, वो आखिरी गांव नहीं है और जब सूरज डूबता है तो डूबते सूरज की आखिरी किरण भी उस गांव को आती है जो हमारी उस दिशा का पहला गांव होता है। और इसलिए हमारे लिए गांव आखिरी नहीं है, हमारे लिए प्रथम गांव है। हमने उसको प्रथम गाँव का दर्जा दिया। सीमांत गांवों के विकास के लिए Vibrant विलेज स्कीम शुरू की गई। आज सीमांत गांवों का विकास वहां के लोगों की आय बढ़ा रहा है। यानि जिन्हें किसी ने नहीं पूछा, उन्हें मोदी ने पूजा है। हमने आदिवासी आबादी वाले इलाकों के विकास के लिए पीएम जनमन योजना भी शुरू की है। जो इलाके दशकों से विकास से वंचित थे, उन्हें अब बराबरी का हक मिल रहा है। पिछले 10 साल में हमारी सरकार द्वारा पहले की सरकारों की अनेक गलतियों को सुधारा गया है। आज हम गाँव के विकास से राष्ट्र के विकास के मंत्र को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि, 10 साल में देश के करीब 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं। और इनमें सबसे बड़ी संख्या हमारे गांवों के लोगों की है।

अभी कल ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की भी एक अहम स्टडी आई है। उनका एक बड़ा अध्ययन किया हुआ रिपोर्ट आया है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट क्या कह रही है, वो कहते हैं 2012 में भारत में ग्रामीण गरीबी रूरल पावर्टी, यानि गांवों में गरीबी करीब 26 परसेंट थी। 2024 में भारत में रूरल पावर्टी, यानि गांवों में गरीबी घटकर के पहले जो 26 पर्सेंट गरीबी थी, वो गरीबी घटकर के 5 परसेंट से भी कम हो गई है। हमारे यहां कुछ लोग दशकों तक गरीबी हटाओ के नारे देते रहे, आपके गांव में जो 70- 80 साल के लोग होंगे, उनको पूछना, जब वो 15-20 साल के थे तब से सुनते आए हैं, गरीबी हटाओ, गरीबी हटाओ, वो 80 साल के हो गए हैं। आज स्थिति बदल गई है। अब देश में वास्तविक रूप से गरीबी कम होना शुरू हो गई है।

साथियों,

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं का हमेशा से बहुत बड़ा स्थान रहा है। हमारी सरकार इस भूमिका का और विस्तार कर रही है। आज हम देख रहे हैं गाँव में बैंक सखी और बीमा सखी के रूप में महिलाएं ग्रामीण जीवन को नए सिरे से परिभाषित कर रही हैं। मैं एक बार एक बैंक सखी से मिला, सब बैंक सखियों से बात कर रहा था। तो एक बैंक सखी ने कहा वो गांव के अंदर रोजाना 50 लाख, 60 लाख, 70 लाख रुपये का कारोबार करती है। तो मैंने कहा कैसे? बोली सुबह 50 लाख रुपये लेकर निकलती हूं। मेरे देश के गांव में एक बेटी अपने थैले में 50 लाख रुपया लेकर के घूम रही है, ये भी तो मेरे देश का नया रूप है। गाँव-गाँव में महिलाएं सेल्फ हेल्प ग्रुप्स के जरिए नई क्रांति कर रही हैं। हमने गांवों की 1 करोड़ 15 लाख महिलाओं को लखपति दीदी बनाया है। और लखपति दीदी का मतलब ये नहीं कि एक बार एक लाख रुपया, हर वर्ष एक लाख रुपया से ज्यादा कमाई करने वाली मेरी लखपति दीदी। हमारा संकल्प है कि हम 3 करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाएंगे। दलित, वंचित, आदिवासी समाज की महिलाओं के लिए हम विशेष योजनाएँ भी चला रहे हैं।

साथियों,

आज देश में जितना rural infrastructure पर फोकस किया जा रहा है, उतना पहले कभी नहीं हुआ। आज देश के ज़्यादातर गाँव हाइवेज, एक्सप्रेसवेज और रेलवेज के नेटवर्क से जुड़े हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 10 साल में ग्रामीण इलाकों में करीब चार लाख किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई गई है। डिजिटल इनफ्रास्ट्रक्चर के मामले में भी हमारे गाँव 21वीं सदी के आधुनिक गाँव बन रहे हैं। हमारे गांव के लोगों ने उन लोगों को झुठला दिया है जो सोचते थे कि गांव के लोग डिजिटल टेक्नोलॉजी अपना नहीं पाएंगे। मैं यहां देख रहा हूं, सब लोग मोबाइल फोन से वीडियो उतार रहे हैं, सब गांव के लोग हैं। आज देश में 94 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण परिवारों में टेलीफोन या मोबाइल की सुविधा है। गाँव में ही बैंकिंग सेवाएँ और UPI जैसी वर्ल्ड क्लास टेक्नालजी उपलब्ध है। 2014 से पहले हमारे देश में एक लाख से भी कम कॉमन सर्विस सेंटर्स थे। आज इनकी संख्या 5 लाख से भी ज्यादा हो गई है। इन कॉमन सर्विस सेंटर्स पर सरकार की दर्जनों सुविधाएं ऑनलाइन मिल रही हैं। ये इनफ्रास्ट्रक्चर गाँवों को गति दे रहा है, वहां के रोजगार के मौके बना रहा है और हमारे गाँवों को देश की प्रगति का हिस्सा बना रहा है।

साथियों,

यहां नाबार्ड का वरिष्ठ मैनेजमेंट है। आपने सेल्फ हेल्प ग्रुप्स से लेकर किसान क्रेडिट कार्ड जैसे कितने ही अभियानों की सफलता में अहम रोल निभाया है। आगे भी देश के संकल्पों को पूरा करने में आपकी अहम भूमिका होगी। आप सभी FPO’s- किसान उत्पाद संघ की ताकत से परिचित हैं। FPO’s की व्यवस्था बनने से हमारे किसानों को अपनी फसलों का अच्छा दाम मिल रहा है। हमें ऐसे और FPOs बनाने के बारे में सोचना चाहिए, उस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। आज दूध का उत्पादन,किसानों को सबसे ज्यादा रिटर्न दे रहा है। हमें अमूल के जैसे 5-6 और को-ऑपरेटिव्स बनाने के लिए काम करना होगा, जिनकी पहुंच पूरे भारत में हो। इस समय देश प्राकृतिक खेती, नेचुरल फ़ार्मिंग, उसको मिशन मोड में आगे बढ़ा रहा है। हमें नेचुरल फ़ार्मिंग के इस अभियान से ज्यादा से ज्यादा किसानों को जोड़ना होगा। हमें हमारे सेल्फ हेल्प ग्रुप्स को लघु और सूक्ष्म उद्योगों को MSME से जोड़ना होगा। उनके सामानों की जरूरत सारे देश में है, लेकिन हमें इनकी ब्रांडिंग के लिए, इनकी सही मार्केटिंग के लिए काम करना होगा। हमें अपने GI प्रॉडक्ट्स की क्वालिटी, उनकी पैकेजिंग और ब्राडिंग पर भी ध्यान देना होगा।

साथियों,

हमें रुरल income को diversify करने के तरीकों पर काम करना है। गाँव में सिंचाई कैसे affordable बने, माइक्रो इरिगेशन का ज्यादा से ज्यादा से प्रसार हो, वन ड्रॉप मोर क्रॉप इस मंत्र को हम कैसे साकार करें, हमारे यहां ज्यादा से ज्यादा सरल ग्रामीण क्षेत्र के रुरल एंटरप्राइजेज़ create हों, नेचुरल फ़ार्मिंग के अवसरों का ज्यादा से ज्यादा लाभ रुरल इकॉनमी को मिले, आप इस दिशा में time bound manner में काम करें।

साथियों,

आपके गाँव में जो अमृत सरोवर बना है, तो उसकी देखभाल भी पूरे गाँव को मिलकर करनी चाहिए। इन दिनों देश में ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान भी चल रहा है। गाँव में हर व्यक्ति इस अभियान का हिस्सा बने, हमारे गाँव में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगें, ऐसी भावना जगानी जरूरी है। एक और सबसे महत्वपूर्ण बात, हमारे गाँव की पहचान गाँव के सौहार्द और प्रेम से जुड़ी होती है। इन दिनों कई लोग जाति के नाम पर समाज में जहर घोलना चाहते हैं। हमारे सामाजिक ताने बाने को कमजोर बनाना चाहते हैं। हमें इन षडयंत्रों को विफल बनाकर गाँव की सांझी विरासत, गांव की सांझी संस्कृति को हमें जीवंत रखना है, उसको सश्क्त करना है।

भाइयों बहनों,

हमारे ये संकल्प गाँव-गाँव पहुंचे, ग्रामीण भारत का ये उत्सव गांव-गांव पहुंचे, हमारे गांव निरंतर सशक्त हों, इसके लिए हम सबको मिलकर के लगातार काम करना है। मुझे विश्वास है, गांवों के विकास से विकसित भारत का संकल्प जरूर साकार होगा। मैं अभी यहां GI Tag वाले जो लोग अपने अपने प्रोडक्ट लेकर के आए हैं, उसे देखने गया था। मैं आज इस समारोह के माध्यम से दिल्लीवासियों से आग्रह करूंगा कि आपको शायद गांव देखने का मौका न मिलता हो, गांव जाने का मौका न मिलता हो, कम से कम यहां एक बार आइये और मेरे गांव में सामर्थ्य क्या है जरा देखिये। कितनी विविधताएं हैं, और मुझे पक्का विश्वास है जिन्होंने कभी गांव नहीं देखा है, उनके लिए ये एक बहुत बड़ा अचरज बन जाएगा। इस कार्य को आप लोगों ने किया है, आप लोग बधाई के पात्र हैं। मेरी तरफ से आप सब को बहुत बहुत शुभकामनाएं, बहुत-बहुत धन्यवाद।