ता. १७/११/२०११
मंच पर बिराजमान मंत्रीमंडल के मेरे साथी, राज्य के शहरी विकास मंत्री श्री नितीनभाई पटेल, इस क्षेत्र के लोकप्रिय सांसद श्री हरिनभाई पाठक, औडा के अध्यक्ष श्री धर्मेन्द्रभाई शाह, कर्णावती के मेयर श्री असितभाई वोरा, गांधीनगर गुडा के अध्यक्ष श्री अशोकभाई भावसार, पूर्व विधायक भाई श्री जीतुभाई वाघेला, यहाँ के लगातार दौड़ते विधायक श्री बाबुभाई बी.जे.पी., अहमदाबाद शहर भाजपा अध्यक्ष और एलिसब्रीज के विधायक भाई श्री राकेशभाई शाह, रखियाल के विधायक श्री वल्लभभाई, मंच पर बिराजमान तालुका पंचायत, जिला पंचायत के सभी नेता, कॉर्पोरेशन के सभी नेता और विशाल संख्या में आए हुए प्यारे नागरिक भाईयों और बहनों...
सरकार किसके लिए? सरकार गरीबों के लिए होती है, सरकार बेसहारों का सहारा होती है. यदि एक उद्योगपति बीमार होता है तो उसे डॉक्टर का इलाज करवाने में कोई समस्या होती है, भाई?
जरा भी नहीं होती है, एक को बुलाओ तो पचास डॉक्टर उपस्थित हो जाते हैं. लेकिन गरीब को? गरीब की चिंता तो सरकार को करनी पड़ती है, अस्पताल बनाने पड़ते हैं और उनमें गरीबों का इलाज राहत दर पर हो इसकी चिंता करनी पड़ती है. यदि किसी अमीर लड़के को पढ़ना है तो उसे कोई तकलीफ़ होती है? वह तो पंद्रह शिक्षकों को घर बुला सकता है. लेकिन गरीब के लड़के को पढ़ना है तो? सरकार को विद्यालय बनाने पड़ते हैं, सरकार को तनख़्वाह देनी पड़ती है, सरकार को यूनिफार्म देने पड़ते हैं, सरकार को सारी व्यवस्थाएं करनी पड़ती है क्योंकि गरीब का पढ़ना आवश्यक है और यह चिंता सरकार को करनी होती है. उसी प्रकार, आज के युग में यदि एक अमीर को घर बनाना है, मध्यम वर्ग के आदमी को घर बनाना है तो शायद अपनी कमाई से बचत करके मकान बना सकता है, लेकिन गरीब दो फुट जगह भी नहीं ले सकता क्योंकि उसके पास उतनी हैसियत ही नहीं होती है. तो गरीब के लिए आवास सरकार को बनाने पड़ते हैं, चाहे करोड़ों-अबजों रुपयों का बोझ आये. यदि गरीब को एक अच्छा घर मिलता है तो उसके जीवन की एक नई शुरुआत होती है और इसलिये सरकार ने एक अभियान उठाया है कि गरीब को घर कैसे दिया जाए? और आपको जानकर खुशी होगी भाईयों, १७०० करोड़ रुपये से अधिक राशि के साथ आज जैसे आठ हज़ार मकान बन गये हैं, वैसे एक लाख मकान तैयार होंगे, एक लाख! और आने वाले दिनों में सूरत, अहमदाबाद जैसे शहरी क्षेत्रों में जिन्हें झोंपड़ीओं में जीवन गुजारना पडता है उनके लिए ‘जहाँ झोंपड़ा, वहाँ घर’ इस परियोजना के साथ कई नए मकान बनाने का आयोजन कार्य सरकार ने हाथ में लिया है. लाखों मकान इस राज्य में गरीबों के लिए बनने वाले हैं. ४० साल गुजरात में काँग्रेस ने शासन किया, इन ४० वर्षों में जितने मकान बने होंगे उससे ज्यादा मकान यह सरकार आपको बनाकर देने वाली है. अरे, गरीब को जब घर मिलता है न तब उसका जीवन जीने का तरीका भी बदलता है. जब कोई आदमी घर में कुछ बसाता है तो उसे अच्छा रखने की आदत पडती है. अभी वह झोंपडे में जीवन गुजार रहा हो, कच्चे-पक्के घर में रहता हो तो उसे लगता है कि ठीक है, इसमें कहाँ खर्च करें? पायदान का खर्च भी नहीं करता. लेकिन ऐसा मकान मिले तो वह सोचता है कि ठहरो भाई, कुछ पैसे बचाओ. अगले महीने एक पायदान लाना है. बाद में सोचेगा कि नहीं-नहीं थोड़े पैसे और बचाओ, घर में कोई मेहमान आता है तो अच्छा नहीं लगता, एक चटाई लानी है. फिर ऐसा लगता है कि ठहरो, फ़िज़ुल खर्च नहीं करने हैं अब तो बच्चे बड़े हो रहे हैं तो घर में एकाध टी.वी. भी लाते हैं. एक बार मकान मिलता है तो अपने जीवन में सुधार करने के लिए वह बचत भी करने लगता है, पैसों की कमी हो तो अधिक मेहनत भी करने लगता है और धीरे-धीरे अन्य लोगों के समकक्ष होने का प्रयास करता है. गरीब का घर भी अक्सर गरीबी से लड़ने का एक बड़ा हथियार बन जाता है. एक बार आदमी आत्मसम्मान के साथ जीने लगे तो उसे गरीबी को भूलने का मन करता है. और मुझे विश्वास है कि जिन आठ हजार ऐसे परिवारों को ये घर मिल रहे हैं, वे घरों में जा कर सिर्फ शरण लें ऐसा नहीं, वे जब घरों में जाँएं तब एक नया जीवन जीने का संकल्प करें और अब गरीबी को घर में घुसने नहीं देना है ऐसे निश्चय के साथ आगे बढ़ें.
जब हम ये मकान देंगे तब, जिस फ्लैट की कीमत आज २०-२५ लाख है ऐसे मकान आपको सिर्फ एक टोकन कीमत पर देंगे और वह भी इसलिये कि इससे थोड़ी जिम्मेदारी आती है. सरकार आपको इतना देती है, यदि मैं आप से कुछ माँगूं तो देंगे, भाईयों? बहुत कम लोग बोल रहे हैं, देंगे..? जैसा नितीनभाई ने बताया ऐसा मुझे कुछ नहीं चाहिये भाई, वो टेबल के नीचे से मांगते हैं न ऐसा नहीं चाहिये. मुझे वचन चाहिये, दोगे..? जिन्हें भी ये मकान मिलते हैं वे लोग दो बातें अपने जीवन में तय करें. एक, हम बच्चों को पढ़ायेंगे. कैसी भी तकलीफ़ हो लेकिन बच्चों की पढ़ाई नहीं छुडवाएंगे. करोगे..? बच्चों को पढ़ाओगे..? उसमें भी बेटियों को खास पढ़ाओगे..? जरा ज़ोर से बोलो..! दूसरी बात, एक पाप जो शहर में बेक़ाबू होता जा रहा है, और जैसे आदमी आधुनिक होता जाता है न वैसे यह संक्रमण बढ़ता जाता है और इसलिये भ्रूण हत्या का पाप, जैसे ही पता चलता कि बेटी पैदा होने वाली है, गर्भपात करा लेते हैं. भाईयों-बहनों, जिनको मकान मिलने वाले हैं ऐसे सभी लोगों से मेरी दूसरी बिनती है कि हम संकल्प करें कि हमारे पूरे परिवार में कभी भी बेटी पैदा होने वाली हो तो गर्भपात का पाप नहीं करेंगे, बेटी को माँ के पेट में नहीं मार डालेंगे, बेटी को इस पृथ्वी पर जन्म लेने देंगे. भाईयों, लक्ष्मी को नहीं जन्म लेने देंगे तो आपके घर में लक्ष्मीजी नहीं पधारेंगी, हमे सुख नहीं मिलेगा और इसलिये इस मकान के मिलने के साथ मन में यह भी भाव विकसित करें कि अब के बाद पराधीन होकर जीवन नहीं जीना है. हमारी संतानों को पढ़-लिखकर आगे बढ़ना हो तो कभी भी कोई स्र्कावट न आए ऐसे संकल्प के साथ एक नया जीवन जीने की शुरुआत करनी है ऐसे संकल्प के साथ इस मकान में पैर रखने का निर्णय करना, भाई.
ये जो मकान बने हैं उसके कॉन्ट्रेक्ट में हमारे औडा के मित्रों ने एक अच्छी व्यवस्था की है. व्यवस्था यह की है कि जब सरकार पज़ेशन लेगी उस दिन जिन नियमों के अनुसार उसे मकान देना है बिल्कुल वैसे ही तैयार करके देना होगा. कहीं भी टूटा हुआ खिड़की-दरवाजा अंदर डालेगा तो सरकार उसे स्वीकार करने वाली नहीं है, उनसे कहेगी कि ठहरो भाई, यह ठीक नहीं है, पूरा करो उसके बाद ही लेंगे और ऐसा मकान आपको मिलने वाला है. क्योंकि कई बार मकान बनते-बनते जब आखरी मकान बन रहा होता है तब पहले बने मकान में कुछ ऐसी समस्या आयी हो... लेकिन इस कॉन्ट्रेक्ट की व्यवस्था है कि कॉन्ट्रैक्टर जब दे तब उसे सारे मकान सही ढंग से तैयार करके देने हैं. इसके कारण जो लाभार्थी हैं उन्हें घर सम्पूर्ण रूप से, नियमों के अनुसार जैसा होना चाहिये वैसा बना हुआ तैयार मिलेगा. ऐसी व्यवस्था सरकार ने पहले से ही की हुई है. ये जो मकान बनाये हैं वे अलग अलग जगहों पर बनाये गये हैं. यहाँ भी बनाये हैं, पूर्वी इलाके में भी बनाये हैं और पश्चिमी इलाके में भी बनाये गये हैं. अब ड्रॉ में तो कुछ पता नहीं चलता कि आपको कहाँ मकान मिलेगा? आप रहते हो थलतेज में और मकान मिले यहाँ सिंगरवा में तो आपको परेशानी होगी. तो मैंने एक ऐसा सुझाव दिया है कि आपस में अदला-बदली करनी हो तो औडा को मैंने कहा है कि इन गरीब परिवारों को कोई तकलीफ न हो, उन्हें आपस में अदल-बदल कर देना. लेकिन सामने बदली वाला आपको ढूँढ निकालना पडेगा भाई, उसे सरकार ढूँढने नहीं जायेगी. आपको ढूँढ निकालना पडे कि यह आदमी थलतेज में है उसे सिंगरवा जाना है तो तुम सिंगरवा जाओ, मैं थलतेज जाता हूँ. दूसरी बात, इसमें लगभग दो सौ जितने विकलांग परिवारों की सुविधा के लिए... यदि परिवार में कोई विकलांग है तो उसे सीढ़ी चढ़ कर रोज़ाना उपर-नीचे जाने में कष्ट होता है... मैंने औडा के मित्रों को विनती की है कि ईश्वर ने जिन्हें कष्ट दिया है उन्हें हम ज्यादा कष्ट न दें और उन्हें नीचे का घर मिले ऐसा प्रबन्ध करें. एक सामाजिक दृष्टिकोण, एक संवेदनशील दृष्टिकोण के साथ इस पूरे काम को आगे बढ़ाने का हमने प्रयास किया है. भाईयों-बहनों, गाँवों में पहले जो घर बनते थे... इंदिरा आवास हो, सरदार आवास हो, आंबेडकर आवास हो, तरह तरह की योजनाएं चलती... लेकिन क्या होता था? गाँव के एक कोने में एक टुकड़ा ज़मीन दी हो वहाँ कोई छोटा सा घर बनाया हो, दूसरे कोने में दूसरे को दिया हो, तीसरे कोने में तीसरे को दिया हो और उन्हें ऐसा लगे ही नहीं कि कुछ बना है. इस सरकार ने बुनियादी विचार किया कि भाई गाँव में कितने गरीब मकान लेने के योग्य हैं उसका पहले एक लिस्ट बनाओ. उसके बाद कौन-सी योजना से किसको कितना लाभ मिल सकता है वह सूची निकालो और क्या ज़मीन का कोई एक टुकडा निकाल कर सारे मकान एक साथ, कॉलोनी जैसा बना सकते हैं? तो फिर सरकार वहाँ रोड भी दे, सरकार वहाँ गटर भी दे, सरकार वहाँ बिजली भी दे, ज्यादा घर हों तो सरकार वहाँ आंगनवाड़ी दे, कोई दुकान के लिए जगह दे. तो पहले जैसे गाँव में एक मकान एक टेकरी पर यहाँ हो, दूसरी टेकरी पर वहाँ हो... ऐसी स्थिति बदली है. इस स्वर्णिम जयंती वर्ष में स्वर्णिम सेवा के रूप में कॉलोनियाँ बनाने का काम शुरू किया है और अपने अहमदाबाद जिले में भी उसका निर्माण हो गया है, महेसाणा जिले में भी हो गया है, हर एक जिले में काम तेज़ी से चल रहा है. बुनियादी सुविधाओं के साथ के मकान इन गरीबों को मिले ऐसा मूलभूत परिवर्तन इस सरकार ने किया है, इसके कारण सरकार पर काफी बड़ा आर्थिक बोझ आया है. उसके बावजूद भी जब एक कॉलोनी जैसा बनेगा तो उनको जीवन जीने का एक नया अवसर मिलेगा. कई बार गाँवों में मकान बनते हैं तो जहाँ गड्ढे-टेकरे हों या और किसी काम की न हो ऐसी जमीन जुटा दी जाती है और जब थोड़ी भी बारिश होती है, इन गरीबों के घरों में पानी भर जाता है. हमने कहा कि जो कॉलोनियाँ बनाओ वे सबसे ऊंची जगह ढूँढ़ कर वहाँ बनाओ ताकि बारिश हो तो कम से कम उन्हें दुखी न होना पडे. इस प्रकार के सुझावों के साथ गरीबों का भला कैसे हो यह चिंता इस सरकार को है.
भाईयों-बहनों, यह सरकार ऐसी है कि जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन के हर एक चरण में यह सरकार गरीबों के साथ रहती है, गरीबों के लिए काम करती है. एक गरीब परिवार... और जन्म होने से पहले ही, मैं तो कहता हूँ कि गरीब माता के गर्भ में बच्चा हो, उसके पास प्रसूति के पैसे न हों, तो यह सरकार, गरीब परिवार की माताओं की प्रसूति का खर्च देती है. इतना ही नहीं, वह तीन-चार दिन अस्पताल में रहे तो रोज़ाना दो सौ रुपये उसे और उसके पति को देती है. इतना ही नहीं, इस गरीब परिवार की स्त्री को अपने घर से अस्पताल जाना हो तो जो किराये का खर्च होता है, रिक्शा की हो या ट्रैक्टर किया हो, वह खर्च भी सरकार देती है, बच्चा गर्भ में हो तब से सरकार खर्च करती है. आपकी सन्तान जन्म ले इसकी परवाह करने के लिए सरकार ने डॉक्टर रखे हैं. आपका बच्चा छ: महीने का हो, उसे कोई बीमारी न लगे, उसकी मृत्यु न हो इसके लिए भी सरकार उसकी देखभाल करती है. आपके बच्चे को पोलियो न हो, उसे पंगुता न आए इसके लिए टीका लगाने का अभियान हर तीन महीने से यह सरकार उठाती है और घर-घर जाकर आपके बच्चों को टीका लगाने की चिंता करती है. आपकी संतान थोड़ी बड़ी होती है तो वह आंगनबाड़ी में ले जाकर हंसने-खेलने लगे, गीत गाने लगे, खिलौने पहचानने लगे, चीज़ों को पहचानने लगे इसके लिए यह सरकार आंगनबाड़ी मुफ्त में चलाती है. आपके बच्चे को पोषण मिले इसके लिए आपके छोटे-छोटे बच्चों को पानी में पिघला कर पीला सकें ऐसा पाउडर मुफ्त में सरकार देती है. ताकि आपके बच्चे को पर्याप्त पोषण मिले. थोड़ा बड़ा हो तब उस बच्चे को पौष्टिक आहार मिले उसके लिए एक फ्री सेट, तैयार की हुई बैग में, सब परिवारों को मुफ्त में सरकार देती है. आपका बच्चा तंदुरुस्त हो उसकी चिंता सरकार करती है. आपका बच्चा और थोडा बड़ा हो, पाठशाला में जाने लायक हो तो सरकार मुफ्त में पढ़ाती है. आपके बालक को पढ़ाने के लिए शिक्षकों का खर्च करती है, पुस्तकों का खर्च देती है, बच्चों को यूनिफार्म मुफ्त देती है और जिन बालकों को छात्रालय में रह कर पढ़ना पड़ता हो उन्हें छात्रालय का खर्च भी देती है, बहन-बेटीयों को पढ़ने के लिए बस में जाना पड़ता हो तो उन्हें बस का मुफ्त पास निकाल देती है, ये सारी चिंता सरकार करती है ताकि गरीब के बच्चे पढ़ें. आपका बच्चा पढ़े, पढ़ने के बाद उसे कॉलेज जाना हो, एक भी पैसे के खर्च के बिना कॉलेज का शिक्षण यह सरकार गरीब के बच्चों को देती है. आपके बच्चे को वकील बनना हो, डॉक्टर बनना हो तो उसका खर्च भी सरकार देती है. वकील बन जाए और वकालत शुरु करनी हो तो शुरू में ऑफिस खोलने के लिए, मान लो गरीब के बच्चे को नोटरी बनना है, डॉक्टर बनना है तो शुरुआत करने के लिए लाखों रुपये सरकार उसके हाथ में रखती है ताकि वह अपना जीवन चला सके. गरीब के बच्चे को विमान उड़ाने का मन हो, पायलट बनना हो और वह विदेश में पढ़ने जाना चाहता हो तो सरकार विदेश में पढ़ने के लिए गरीब के बच्चे को पैसे देती है. आप नौकरी पर लगो इसकी चिंता भी सरकार करती है, आप आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर बनो इसकी चिंता सरकार करती है. गरीब को रहने के लिए घर न हो तो सरकार देती है, गरीब को सस्ता अनाज मिले ताकि वह अपने घर में चूल्हा जला सके इसके लिए प्रत्येक परिवार को कम कीमत पर दो किलो – तीन किलो अनाज देने का काम यह सरकार करती होती है. इतना ही नहीं, कोई गरीब परिवार हो और स्थिति अत्यंत खराब हो तो उन्हें दाह-संस्कार का खर्च भी सरकार देती है.गरीब का बालक पाठशाला में दाखिल हो, सरकार उसके आरोग्य का परीक्षण कराती है और यदि उसे कोई बीमारी है तो कितना भी खर्च आए, पाँच लाख, दस लाख, यदि हार्ट का ऑपरेशन करवाना हो, और कोई ऑपरेशन करवाना हो, मद्रास भेजना पड़े, बैंगलोर भेजना पडे, ऐसा हो तो इस सरकार के मुख्यमंत्री फन्ड में से गरीब बच्चों के ऑपरेशन करवाये जाते हैं. माँ-बाप को पता भी नहीं होता कि उसके बच्चे को क्या बीमारी है... और अगर दुर्भाग्यवश वह गुज़र जाता है तो माँ-बाप उसे ईश्वर की मरज़ी मानते हैं, बेचारों को पता ही नहीं होता है. इस राज्य में डेढ़ लाख जितने गरीब बच्चों के चश्मे के नंबर निकाल कर उन्हें चश्मा देने का काम सरकार करती है ताकि वह बालक पढ़ना चाहता हो तो पढ़ सके. आप कल्पना किजिए, जन्म से ले कर मृत्यु तक हर कदम पर गरीब का हाथ थामने के लिए सरकार साथ में आती है.
आज गरीब कल्याण मेलों के अंतर्गत पांच-पांच सात-सात हजार करोड रुपये सीधे-सीधे किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार के बग़ैर गरीबों के हाथों में देने का काम यह सरकार करती है. गरीब विधवा हो तो उसकी चिंता सरकार करती है, उसको उसके घर पर पेन्शन भिजवा देती है ताकि वह सम्मानपूर्वक अपना जीवन बिता सके. उसे कुछ सीखना हो, सिलाई का काम सीखना हो या कढ़ाई का काम सीखना हो तो सरकार सिखाती है. उसे सिलाई मशीन चाहिये तो सरकार देती है. गरीब विधवा स्त्री भी आत्मनिर्भर बन कर जी सके इसकी चिंता सरकार करती है. गरीब की उम्र ६० साल की हो गई हो और कोई आजीविका न हो तो शाम को कैसे खाए इसकी फिकर होती है. तो सरकार ६० साल से ज्यादा उम्र के गरीबों को हर महीने पेन्शन उनके घर भेजती है ताकि बुढ़ापे में उसे किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े. जन्म से लेकर मृत्यु तक यह सरकार गरीबों के लिए दिन-रात काम करती रहती है.
भाईयों-बहनों, गुजरात ने गरीबी के सामने जंग शुरु की है. गुजरात में से ग़रीबी को हटाना है, मित्रों. प्रत्येक आदमी सम्मानपूर्वक जिए, सुख से जिंदगी बसर करे इसके लिए विकास का झरना बहाने का प्रयास शुरु किया है. लेकिन बदकिस्मती यह है कि कुछ गुमराह लोगों को गुजरात का भला देखना ही नहीं है. लोग अनपढ़ रहें तभी उनकी रोटी पक सकती है, इसलिए उन्हें शिक्षा में रुचि नहीं है, गरीबों का कल्याण हो उसमें दिलचस्पी नहीं है ताकि वे उनकी मत-पेटी भरने के काम आयें. और इसलिये भाईयों-बहनों मैं कहता हूँ कि यदि सही प्रकार का विकास करना हो तो विकास में हमें भागीदार बनना होगा. ‘सबका साथ, सबका विकास’ इस मंत्र को लेकर हम आगे बढ़े हैं और इस मंत्र को चरितार्थ करने का प्रयास करने की हमें आवश्यकता है और इस प्रयास को हम करेंगे.
आप सोचिए, इस सरकार ने गरीबों के लिए तीन ऐसी योजनाएँ बनाई. शहरी गरीब, उनकी समृद्धि के लिए योजना बनाई, दो हजार करोड़ रुपये का पैकेज उसके लिए दिया. ‘उम्मीद’ नाम की योजना बनाई. जिन शहरी बच्चों ने पांचवी-छठी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड दी हो, पढ़ाई में रुचि न हो, पढ़ाई की व्यवस्था न हो... रोजगार चाहते हों तो उन्हें कुछ हुनर तो आना चाहिए. उसमें कोई कौशल नहीं हो तो... उसे अख़बार बाँटने जाना हो लेकिन साइकिल चलाना न आता हो तो? साइकिल न हो तो? इस सरकार ने ‘उम्मीद’ कार्यक्रम के अंतर्गत छोटे-छोटे हुनर सिखाना शुरु किया है. तीन हफ्ते का हुनर, पाँच हफ्ते का हुनर, उसे कोई भी हुनर सिखाने का. भाईयों-बहनों, इस हुनर के कारण पिछले दो वर्षों में एक लाख से ज्यादा ऐसे गरीब बच्चों को रोजगार मिल गया जो सामान्य मजदूरी करते थे तब प्रति माह ८००-१००० रुपये कमाते थे, जब कुछ सीख गये तो आज ये बच्चे पांच हजार, छ: हजार या सात हजार रुपये कमाने लगे हैं. इस ‘उम्मीद’ योजना के द्वारा हमने यह काम किया है.
इसी प्रकार, आदिवासियों के कल्याण के लिए ‘वनबंधु कल्याण योजना’ शुरु की और आदिवासियों के विकास के लिए एक हजार करोड़ रुपये का पैकेज उनको दिया. इसी तरह, समुद्र के किनारे पर नाव चलाने का काम करने वाले मेरे मछुआरे भाई,
खलासी भाई, जो बेचारे विकास का इंतज़ार करते हैं उनके लिए सरकार ने पन्द्रह हजार करोड का पैकेज बनाकर उनके कल्याण की योजना बनायी.
यदि शहरी गरीब हों तो उनकी चिंता, समुद्र किनारे पर रहने वाले गरीब हों तो उनकी चिंता, वनवासी क्षेत्र में रहने वाले गरीब हों तो उनकी चिंता. सर्वांगी विकास हो ऐसी बात कही है. कोई भी पीछे न रह जाये यह देखते हुए इस सरकार ने काम किया है और इसलिये भाईयों, आज गुजरात जो विकास कर रहा है, जो प्रगति हो रही है... अभी गुजरात में नये-नये कारखाने आ गए हैं. कितने सारे लोगों को रोजी-रोटी मिली है. आज खेती व्यवसाय वाले ख़ानदान में, खेती छोटी हो, चार-चार बेटे हो तो माँ-बाप सोचते हैं कि एक बेटा खेती करे और तीन लोग कुछ दुकान या नौकरी करे. किसान भी नौकरी-दुकान चाहता है. अगर गुजरात का विकास न हो तो इन किसानों के बेटों का क्या होगा? उनको रोजी-रोटी कहाँ से मिलेगी?
गुजरात में अभी नई-नई कंपनीयाँ आ रही हैं, गाड़ीयाँ बनाने के लिए. पचास लाख गाड़ीयाँ गुजरात में बने ऐसी संभावना पैदा हुई है, पचास लाख..! हर साल पचास लाख गाड़ीयाँ..! मारुति यहाँ आती है, प्यूजो यहाँ आती है, फोर्ड यहाँ आती है, नेनो आयी है, जनरल मोटर्स है, ट्रकें बनाने वाले आ रहे हैं. ट्रैक्टर बनाने वाले आ रहे हैं, अनगिनत... आप सोचो, पचास लाख गाड़ीयाँ..! और भाईयों-बहनों, हिसाब यह कहता है कि जब एक गाड़ी बनती है तब गाड़ी बननी शुरु हो तब से लेकर वो चलने लगे तब तक एक गाड़ी दस लोगों का पेट भरती है, दस लोगों का..! कितने सारे लोगों को मज़दूरी मिलेगी, काम मिलेगा, ड्राइवर का काम मिलेगा, इंजीनीयरिंग का काम मिलेगा... पचास लाख गाड़ीयाँ बने तो पाँच करोड लोगों का पेट भरने की ताकत इन गाड़ीयों के कारखानों में है. गाड़ी अगर लखनऊ जाएगी तो लखनऊ में जो ड्राइवर होगा उसका पेट भरने का काम करेगी, गाड़ी अगर चैन्नई जायेगी तो चैन्नई में जो ड्राइवर होगा उसका पेट भरने का काम करेगी. भाईयों-बहनों, एक ऐसे उद्योग के विकास की ओर गुजरात जा रहा है... और आज भी गुजरात में कई बार मजदूर चाहिये तो नहीं मिलते हैं, लोग शिकायत करते हैं. खेतों में काम करने के लिए मजदूर चाहिये तो नहीं मिलते हैं. इन बिल्डरों से पूछें तो कहते हैं कि साहब, सब ठीकठाक है, मशीनें हैं लेकिन काम करनेवाले आदमी नहीं मिलते हैं. कारण? गुजरात में रोजगार के इतने सारे मौके खडे हुए हैं. अभी हरिनभाई पाठक कह रहे थे कि पार्लियामेन्ट में जवाब दिया, भारत सरकार ने जवाब दिया है कि पूरे हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा रोजगार, ७८% रोजगार, अकेले गुजरात में मिलता है, ७८%..! और २२% में पूरा हिंदुस्तान है भाई. १०० लोगों को रोजगार मिला हो तो ७८ गुजरात में और २२ बाकी देश में. आप सोचिए, गुजरात की यह जो प्रगति हुई है उसके कारण नौजवानों को, गरीबों को रोजी-रोटी की संभावना मिली है.
हम टुरिज़म को विकसित कर रहे हैं. यदि टुरिज़म का विकास हो तो किसको रोजी-रोटी मिले? टुरिज़म का विकास होने पर पकौड़े बेचने वाले को रोजगार मिले, चाय की केतली वाले को रोजगार मिले, छोटे-छोटे खिलौने बनाता हो उसे रोजगार मिले, थैलीयाँ बना कर बेचता हो उसे रोजगार मिले, रिक्शा वाले को रोजगार मिले, टैक्सी ड्राइवर को रोजगार मिले, गरीब आदमी को रोजगार मिले. टुरिज़म के विकास के पीछे ये जो सारी मेहनत उठाई है उसका कारण है कि गरीब आदमी को रोजगार मिले.
गरीबों को अधिकतम रोजगार कैसे मिले इसका बीड़ा इस सरकार ने उठाया है, गरीबों को शिक्षा कैसे मिले उसका बीड़ा इस सरकार ने उठाया है, गरीबों के आरोग्य की चिंता कैसे की जाए उसका बीड़ा इस सरकार ने उठाया है और गरीब बच्चे को पाठशाला में पढने भेजो तो उसका बीमा यह सरकार करती है. गरीब के बच्चे को पाठशाला में भेजो तो उसका बीमा सरकार करती है. हिंदुस्तान में गुजरात एक ही राज्य ऐसा है जहाँ बालवाड़ी से लेकर बालक पढ़ना शुरु करे और कॉलेज तक पढ़ने गया हो, ऐसा हर एक विद्यार्थी, लगभग सवा करोड़ विद्यार्थियों का बीमा इस सरकार ने किया है. उनके जीवन में कोई अनुचित घटना बन जाए तो उसके परिवार के लिए लाख-दो लाख रुपए का बीमा सरकार के खर्च पर पकता है और उनको मिलता है. कोई किसान है तो उसका बीमा करना शुरु किया. नहीं तो पहले कैसा था कि कोई बड़ा मिल-मालिक कार में जा रहा हो और कार का ऐक्सीडेंट हो जाए और उसे कुछ हुआ तो उसका बीमा हो, लेकिन किसान काम कर रहा हो पर उसका बीमा न हो. खेत में काम कर रहा हो और साँप काट ले और किसान मर जाए तो उसको कोई पूछने वाला नहीं था. जहरीली शराब पी कर मर जाए तो उन्हें दो-दो लाख रुपए मिलते थे, जहरीली शराब पीने वाले को रुपये देती थी सरकारें लेकिन अगर कोई किसान मर जाए तो नहीं देती थी. भाईयों, हमारी सरकार ने किसानों का बीमा करवाया और आज कोई किसान कहीं कुएँ में उतरा हो और मौत हुई हो, कहीं साँप ने काट लिया हो और मर गया हो तो इस किसान के परिवार को भी तुरंत ही लाख रुपये मिले इसकी व्यवस्था इस सरकार ने की है.
गरीबों का कल्याण कैसे हो इसकी चिंता हमने की है. भूतकाल में, अचानक हमें कोई बीमारी आ गई हो, हार्ट-अटैक आया हो, साँप ने काटा हो, कुछ तकलीफ़ हुई हो और अस्पताल जाना हो तो रिक्शा वाला भी नहीं आता था. हम कहें कि भाई, इसे अस्पताल जल्दी ले चलो, इसे ऐसा हुआ है तो रिक्शा वाला भी गरीब को देख के कहता कि पहले पैसे दो. पहले पैसे हों तो रिक्शा में बैठ भाई. ऐसा हाल था, कोई आए नहीं! ऐम्बुलेंस के लिए फोन करो तो ऐम्बुलेंस वाला पेट्रोल डलवाने जाए, तब तक तो वो गुज़र भी जाए. भाईयों-बहनों, आज यह १०८ की सेवा सरकार ने रख दी, आप १०८ लगाओ तो एक भी पैसे के खर्च के बगैर इस गरीब परिवार को अस्पताल ले जाने का काम यह १०८ करती है भाईयों. आज १०८ जीवनदाता बन गई है गुजरात में. कारण? यह सरकार सिर्फ और सिर्फ गरीबों के लिए काम करने वाली सरकार है, गरीबों के कल्याण के लिए कार्म करने वाली सरकार है और गरीबों को गरीब रखने के लिए नहीं, गरीबों को गरीबी के सामने लड़ने के लिए तैयार करने वाली यह सरकार है और इसके लिए ये सब विभिन्न प्रयास शुरु किए हैं.
आज ये जो मकान मिल रहे हैं, वो मकान भी गरीबी के सामने लड़ने का एक शस्त्र है. उस शस्त्र का उपयोग करके जीवन में दो संकल्प किजिए कि संतानों को पढ़ायेंगे और भ्रूण हत्या का पाप नहीं करेंगे. और इन नये मकानों में आप धूमधाम से रहने जाना, बहुत सुखी होना और समाज पर कभी भी बोझ मत बनना. जिस समाज ने आपको दिया है उस समाज का ऋण कभी उतारना ऐसी आप सबको विनती करते हुए बहुत बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ.
जय जय गरवी गुजरात..!