मंच पर विराजमान श्रीमान सुबोध कुमार अग्रवाल, श्री पुरूषोत्तम खंडेलवाल, श्रीमान के. रघु, श्री विजय गर्ग, श्री जिनल शाह, सुबोध केडिया, श्री अनिकेत तलाटी, श्री अमरीश पटेल, और जिसका नाम बोलूंगा तो आप जरूर पंसद करेंगे वो अंकित कोटेचा..! मुझे लगता है कि मुझे आप लोगों को खुश करके जाना चाहिए..! आपको खुश करने में मेरा स्वार्थ है, क्योंकि आगे चल कर हमारा ऑडिट आप ही करने वाले हैं..! और होता ऐसा ही है, क्लाइंट ऑडिटर को खुश रखने के लिए बहुत कुछ करता है..! मैं सही बोला ना..? मित्रों, आई.सी.ए.आई. का जो मोटो है वो है ‘
अयं एषु सुप्तेषु जागर्ति’, सोते हुए लोगों के बीच जो जागता है..! ये ही है ना..? लेकिन और भी एक कहावत है, सोए हुए को जगाना बहुत सरल होता है, लेकिन जो जाग रहा है उसको जगाना बहुत मुश्किल होता है..! और आप लोग तो जागते हैं और जो जागृत है उसे कौन जगा पाएगा..!
मित्रों, आप एक ऐसे प्रोफेशन में हैं, और जिसकी ओर आप आगे बढ़ रहे हैं... एक डॉक्टर का प्रोफेशन जो है, चाहे एक फैमिली डॉक्टर होगा या जनरल प्रेक्टिस करने वाले होंगे या सर्जन होंगे, तो सब लोगों को पता होता है कि ये लोगों के स्वास्थ्य की चिंता करता है, ये पता होता है कि ये बीमार को ठीक करता है, दर्द दूर करता है, पीड़ा से मुक्ति दिलाता है और उसके कारण जो इन्डीविज्युअल बैनिफिशयरी है उसके मन में उसके प्रति एक विशेष भाव पैदा होता है। लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम होता है कि समाज के स्वास्थ्य की चिंता करने का काम चार्टर्ड अकाउन्टेंट करता है..! समाज की व्यवस्थाएं स्वस्थ्य रहें, समाज की व्यवस्थाओं में वो चीजें प्रवेश ना कर जाएं जिसके कारण लंबे अर्से तक, पीढ़ियों तक उसका प्रभाव पैदा हो जाए। और उस अर्थ में चार्टर्ड अकाउन्टेंट की जिम्मेवारी किसी डॉक्टर से जरा भी कम नहीं है..! और एक डॉक्टर जब किसी मरीज की सेवा करता है और शरीर को काट भी देता है, शरीर का एक हिस्सा चला भी जाता है तो भी डॉक्टर उसे अच्छा लगता है। हाथ काट देने के बाद कहता है, थैंक यू सर..! क्यों..? आपने मुझे बचा लिया। लेकिन एक ऑडिटर जब ऑडिट निकालता है तो कहता है यार, ऑडिटर बदलना पड़ेगा..! वो कहता है कि भाई, मैं तुम्हारे स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए कहता हूँ। तुम कानून की मर्यादाओं में रहो, नियमों का पालन करो, ट्रांसपेरेंसी रखो तो क्लाइंट खुद कहता है कि तुमसे तो भला कोई प्रेक्टिकल आदमी ढूँढूगा..! और मुझे अभी तक ये प्रेक्टिकल क्या चीज है वो समझ में नहीं आया है..! मुझे राजनीति में भी बहुत लोग कहते हैं कि मोदी जी, ये राजनीति है, प्रेक्टिकल होना पड़ेगा..! और ये प्रेक्टिकल क्या होता है ये आप तो अभी स्टूडेंट हैं इसलिए आपको पता नहीं होगा, लेकिन आपके सीनियर बता सकते हैं..!
मित्रों, आज देश में काले धन की बड़ी चर्चा है। क्यों भाई, आप लोगों को करंट क्यों लगा..? काला धन विदेशों में है इसकी भी चर्चा है। ये काला धन, करेंसी तो काली नहीं है, ये काले मन की पैदावार है और उसके कारण एक पैरलल इकोनॉमी खड़ी हो जाती है, एक पूरा पैरलल अर्थतंत्र चलता है, जिस पर ना किसी की निगाह होती है, ना किसी का कंट्रोल होता है और वो आगे जा कर के नासूर बन जाता है और कभी-कभी तो ऑफिशियल फाइनेंशियल सिस्टम से ये अनऑफिशियल फाइनेंशियल सिस्टम इतनी ज्यादा तगड़ी हो जाती है कि सारी व्यवस्थाएं नाकाम हो जाती हैं..! मित्रों, वो कौन सी जगह है जहाँ पर काले धन को रोकने की संभावना है, जहाँ काले मन वाला इंसान काला धन पैदा करता है वो जगह है..? नहीं दोस्तों, एक खिड़की ऐसी है जिस खिड़की पर अगर सही चौकीदार बैठा हो तो काला धन बनने की संभावना नहीं है और वो जगह के चौकीदार आप हैं..! एक चार्टर्ड अकाउन्टेंट अगर इन चीजों को अगर बारीकियों से देखता है, उनके कारनामें क्या हैं, प्रवृत्तियाँ क्या हैं, कहाँ से क्या हो रहा है, पहले लिखा था तो फिर क्या हुआ... अगर इन बातों की ओर देखने की व्यवस्था है और यदि बड़ी सतर्कता से और पूरी तरह प्रोफेशनलिज़्म से देखता है, तो मैं मित्रों, विश्वास करता हूँ कि बहुतेक मात्रा में नए काले धन का निर्माण तो रोका जा सकता है। जो पुराना पाप हो गया, जिन्होंने किया उनको सजा देने के लिए अवसर आएंगे, लेकिन बाकियों के लिए तो आप ही है, मित्रों। और इसलिए समाज जीवन में ये एक ऐसा प्रोफेशन है, जिस प्रोफेशन में समाज की पूरी अर्थव्यवस्था को बचाए रखने का, टिकाए रखने का सर्वाधिक सामर्थ्य है..!
कभी-कभी क्या होता है कि हम खुद जिस क्षेत्र में होते हैं उसमें हमें पता तक नहीं होता है कि मैं जो कर रहा हूँ उसका इम्पेक्ट कितने बड़े स्पेक्ट्रम पर होने वाला है..! उसे तो लगता है कि हाँ यार, जिन्दगी एक से दस के अंक के आस-पास ही गुजारनी है, तो वो देखता रहता है, टोटल लगाता रहता है, दिन-रात हिसाब चेक करता है, कम्प्यूटर को पूछता रहता है, सॉफ्टवेयर रखता है, हिसाब ले लेता है... उसको लगता है कि मेरा जीवन इसी अंकगणित के साथ ही जुड़ गया है। प्लस-माइनस, प्लस-माइनस, इन्टरेस्ट, यही देखता रहता है..! मित्रों, एक बार कुछ पत्थर तराशने वाले लोग पत्थरों को तराश रहे थे। शरीर पर पसीना बह रहा था। धूप और छांव ऐसा थोड़ा सा शेड था। निर्जिव पत्थरों पर अपना काम कर रहे थे। किसी ने जाके पूछा कि भाई, क्या कर रहे हो..? अरे भई, क्या करें, पेट भरने के लिए मजदूरी कर रहे हैं..! दूसरे को पूछा तो उसने कहा, क्या करें भाई, पैदा ही पत्थरों के बीच हुए हैं, तो गुजारा भी पत्थरों के बीच ही होगा, यही कर रहे हैं..! तीसरे को पूछा, तो बोले क्या करें भाई, बच्चों को पालना है तो मेहनत तो करनी पड़ती है, कर रहे हैं..! देखिए ना हाथ कैसे हो गए हैं हमारे..! एक और को पूछा, क्या कर रहे हो, भाई..? उसने कहा, मैं भव्य मंदिर का निर्माण कर रहा हूँ..! पत्थर तो वो भी तराश रहा था, हाथ में खून तो उसका भी बह रहा था, लेकिन उसको पता था कि मैं कितने बड़े लार्जर कैनवास पर अपनी भूमिका को निभा रहा हूँ..! और उसको गर्व हो रहा था कि मैं जो ये पत्थर को तराशने का काम कर रहा हूँ, इससे मैं भव्य मंदिर का निर्माण कर रहा हूँ और मैं उस भव्य मंदिर के निर्माण का एक कर्ता हूँ..! बाकि दस बैठे थे उनको लगता था कि मैं तो मजदूरी कर रहा हूँ, मैं तो बच्चों के लालन-पालन के लिए कर रहा हूँ..!
मित्रों, एक चार्टर्ड अकाउंटेंट की भूमिका ये होनी चाहिए कि मैं सिर्फ एक से दस अंक के टोटल और प्लस-माइनस करने के पीछे नहीं लगा हूँ, मैं इस राष्ट्र की अर्थशक्ति का निर्माण करने की एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा हूँ..! तब जा कर के लगेगा कि मेरे जीवन के सामने लक्ष्य क्या है, मैं किन चीजों की ओर अपने जीवन को जोड़ता हूँ..! मित्रों, ये आंकड़ों का खेल नहीं है, ये जिंदगी का अवसर है, ये अगर मान लें तो इसे भी जीने का आंनद आता है..! मित्रों, यहाँ बहुत लोग ऐसे बैठे होंगे, जब वो छोटे होंगे और घर में मेहमान आए होंगे तो माँ ने परिचय करवाया होगा कि ये जो बड़ा है ना उसे डॉक्टर बनाना है, छोटा है उसे इंजीनियर बनाना है..! आपने भी बहुत सालों तक सुना होगा, डॉक्टर बनूंगा या इंजीनियर बनूंगा..! कभी बोला होगा, पायलट बनूंगा या क्रिकेटर बनूंगा..! थोड़ा सेलेब्रिटी का शौक होगा तो... अब वो तो बन नहीं पाए, यहाँ आ गए..! और दिन-रात, क्या करें..? लॉ और सी.ए. में पढ़ने वाले नौजवानों के लिए हमेशा मेरे मन में कुछ ना कुछ सोच रहती है। मैं पूछता हूँ आप लॉ क्यों कर रहे हो..? बोले नहीं, और कोई काम नहीं था..! मैं आपके लिए तो ऐसा बोल नहीं सकता हूँ क्योंकि मुझे फिर ऑडिट करवाना है..! लेकिन मैं कुछ ऐसे परिवार को जानता था, जो बेटे को कहते थे तुम सी.ए. में एडमीशन तो ले लो..! क्योंकि शादी तय नहीं हुई थी, बेरोजगार कहने में संकट था..! तो रिश्तेदारों को कहते थे, नहीं-नहीं, वो सी.ए. कर रहा है..! तो तब तक मेल बैठ जाता था। फिर सी.ए. हो या ना हो, कहीं तो मेल बैठ जाएगा..! मित्रों, हालात कोई भी रहे हो, हम कैसे भी कहाँ पहुंचे हो, लेकिन ये बात सही है
मित्रों, आप अपनी योजना से आए हो, अपने इरादे से आए हो या संजोग ने आपको यहाँ भेजा हो, लेकिन जहाँ हो वहाँ जी जान से जीने की कोशिश करो, दोस्तों..! और एक बार आप उसमें जुड़ जाओगे, जुट जाओगे, तो आप देखिए जिस क्षेत्र में गए हो वहाँ भी एक नई जिंदगी का निर्माण कर सकते हो और एक नए युग की शुरूआत कर सकते हो..! मित्रों, मैं मूलत: राजनीति का व्यक्ति नहीं था। मैंने घर छोड़ा था सामाजिक काम के लिए, लेकिन हालात ने मुझे यहाँ पहुंचा दिया और जब पहुंच ही गया तो मैंने तय किया कि अब पीछे मुड़ कर नहीं देखेंगे, जिंदगी खपा देंगे, मित्रों..! समय की प्रत्येक क्षण, शरीर का प्रत्येक कण इस दायित्व को निभाने के लिए कोई कोताही नहीं बरतेंगे और मैं आज उसका परिणाम देख रहा हूँ..! मेरा गुजरात प्रगति की नई ऊंचाइयों पर पहुंचा है..! मित्रों, युवा मन के सामने एक मिशन होना चाहिए और अगर मिशन है, जिंदगी में कुछ करने की इच्छा है तो रास्ते अपने आप मिल जाते हैं..! कुछ वर्षों पूर्व की मेरे जीवन की एक सच्ची घटना है, वो मेरे जीवन में बहुत दिशा दर्शक रही है। मैं एक बार सुबह अर्ली इन द मॉर्निंग स्कूटर पर जा रहा था। हाँ, मुझे आता है चलाना..! तो मैं पालडी के पास से जा रहा था तो एक ट्राइबल था उसने मुझे रोक दिया। उसने कहा साब, साबरमती इस तरफ जाते हैं क्या..? मैंने कहा भई, तुम पैदल जाओगे क्या..? नहीं-नहीं, बोला साब, इस तरफ है ना साबरमती..? मैंने कहा भई, कब पहुँचोगे तुम, तब तक तो धूप निकल आएगी, तुम परेशान हो जाओगे..! बोले साब, कितनी दूरी पर है इसकी चिंता छोड़ो, दिशा तो सही है ना..! उसने मुझे तीन बार पूछा, साब सही रास्ते पर हूँ ना, मुझे इतना बताइए, दूरी कितनी है मैं पूछ नहीं रहा हूँ आपको..! मित्रों, एक आदिवासी उस दिन सुबह-सुबह मुझे मिल गया, मैं कभी भी उस बात को भूल नहीं सकता हूँ..! आप भी मित्रों, मंजिल कितनी भी दूर हो, रास्ता सही होना चाहिए। और अगर सही रास्ते पर हो, तो ये तय मान कर चलिए मित्रों, आप मंजिल की ओर नहीं जा रहे हो, मंजिल आपकी ओर आ रही है..!
मित्रों, बहुत लोग इसलिए दु:खी होते हैं क्योंकि उनके दिमाग में भरा रहता है कि कुछ बनना है..! और ये जो बनने वाले लोग होते हैं ना उनको नींद नहीं आती है..! यानि जागते रहो ये एक अलग अर्थ है..! नींद नहीं आती उनको, दिन-रात उसको लगता है कि कुछ बनना है और जब बन नहीं पाता है तो जिंदगी उसको बोझ लगने लगती है। सी.ए. बनना था, बन नहीं पाया, तीन साल लगाए, निकल नहीं पाया, कोई सही दिशा नहीं मिली, अटक गया... फिर जो मिला उससे गुजारा करना पड़ता तो बैचेन रहता है कि अब किसी सी.ए. के यहाँ नौकरी करनी पड़ेगी, अकाउंटेंट बनके गुजारा करना पड़ेगा..! मित्रों, जिंदगी बोझ बनने लग जाती है..! मैं सभी नौजवान मित्रों को एक सलाह देना चाहता हूँ, दूँ..? इस कोने में से आवाज आई..! दोस्तों, कभी कुछ बनने के सपने मत देखो। आज तक आपको सबने कहा होगा। मैं आज आपको उल्टी बात बताने आया हूँ। मित्रों, कभी कुछ बनने के सपने मत देखो, अगर सपने देखने हैं तो कुछ करने के सपने देखो..! मित्रों, जब बनने के सपने देखते हैं और मंजिल से थोड़ी दूर रह जाते हैं, तो निराश हो जाते हैं। कुछ करने के सपने देखते हैं और करते-करते सेटिस्फैक्शन लेवल इतना बढ़ जाता है कि आप करते भी चले जाते हो, बनते भी चले जाते हो और संतोष भी मिलता चला जाता है..! मित्रों, आप अर्थ जगत से जुड़े हुए हैं। गुजरात के विकास की चारों तरफ चर्चाएं चल रही हैं..! क्या सुनना है, भाई..? मित्रों, गुजरात एक राज्य ऐसा है... और दिल्ली की सरकार का बराबर हिसाब देखिए। आज जो देश की हालत बनी है..! मित्रों, आपको जान कर हैरानी होगी, आप अकाउंट की दुनिया के हो इसलिए मैं उसी भाषा में बताना चाहता हूँ।
आज दिल्ली सरकार का 65% से 70% परसेंट नॉन-डेवलपमेंट एक्स्पेन्डीचर है, सिर्फ 30% अमाउंट डेवलपमेंट एक्स्पेन्डीचर में है..! आप मुझे बताइए, अगर विकास के लिए धन कम खर्च होता है और बेफिजुल खर्च ज्यादा होता है तो फिर आपकी थाली में रोटी कहाँ से आएगी, नौजवान को रोजी कहाँ से मिलेगी, देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर कहाँ से बनेगा, विकास कहाँ से नजर आएगा..? मित्रों, गुजरात में जब मैं 2001-02 में आया था, तो यहाँ क्या स्थिति थी..? यहाँ पर विकास के लिए खर्च 40% होता था और फिजूल खर्च 60% होता था..! आप अखबारों में पढ़ते होंगे कि मोदी उत्सव करते हैं, मोदी रूपये खर्च करते हैं, मोदी ये करते है, मोदी वो करते हैं..! हर एक की रोजी-रोटी का सवाल है और मुझे इस बात की खुशी है कि मैं इतने लोगों की रोजी-रोटी के लिए काम आता हूँ..! मित्रों, मौन भी बिक सकता है ये मैंने कभी सोचा नहीं था, ये मैंने पहली बार अनुभव किया कि इस देश में मौन भी बिक सकता है..! जब क्रिकेट की आई.पी.एल. का मैच फिक्सिंग वाला विवाद चल रहा था, सात दिन तक चल रहा था, मोदी मौन क्यों हैं..? मौन बिक रहा था..! मित्रों, किसीको ये सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ होगा जो मुझे मिला है..! आज स्थिति क्या है? भारत सरकार की स्थिति ये है कि 65% से 70% आय फिजूल खर्च में जाती है। मित्रों, गुजरात में हमने सारी चीजों को रिवर्स कर दिया। आज गुजरात में 65% से 70% पैसा विकास के लिए खर्च होता है, मुश्किल से 30-35% पैसा तन्ख्वाह वगैरा में जाता है, बाकी सारा पैसा विकास में जाता है..! और आप अकाउंट की दुनिया के लोग हैं, आप जानते होंगे कि निवेश कहाँ करना चाहिए, आप जानते हो..!
मित्रों, आप लोग जब कंपनियों का ऑडिट करते हो, जो आपको भविष्य में करना है। आज स्टॉक मार्केट में इंवेस्टमेंट करने वाले लोग किस पर भरोसा करते हैं..? गरीब इंसान अपने पैसे दांव पे लगा देता है, किसके ऊपर..? कभी सोचना दोस्तों, आप सिर्फ किसी को ऑडिट रिपोर्ट नहीं दे रहे हो, आप इन्वेस्टर की जिंदगी के साथ एक भरोसे का सौदा कर रहे हो..! अगर आप गलती करते हो और बैलेंस शीट दूसरी निकल गई, तो लोगों को लगेगा कि ये कंपनी ऊपर जा रही है और गरीब लोग इंवेस्टमेंट कर देंगे..! रियेलिटी में वो कंपनी डूब रही है। वो कंपनी नहीं डूबती मित्रों, आम आदमी डूब जाता है..! और तब मित्रों, कभी अपनी आत्मा को पूछना कि इतने लोगों के पैसे चले गए... गरीब आदमी, टीचर है, छोटा चपरासी है, वो बेचारा सोचता है कि चलो भाई, मार्केट ठीक है तो दो-पाँच शेयर ले लो..! ले लेता है, क्यों..? बाजार में उस कंपनी की अच्छी खबर आई है उसी के आधार पर। वो अच्छी खबर कहाँ से आई, भाई? आप ही के माध्यम से आती है। ऑडिटर तय करता है कि ठीक है या नहीं है। उसका जब तक सर्टिफिकेट नहीं मिलता है, तय नहीं होता है। और उसके भरोसे अगर लोग रूपये दाँव लगा दें... किसी गरीब ने अपनी बेटी जवान हो रही है और वो सोचे कि चलिए शेयर बाजार में दो हजार रूपये लगा देते हैं, ये कंपनी अच्छी जा रही है तो पाँच साल के अंदर इतना पैसा मिल जाएगा तब बेच देंगे, बेटी की शादी हो जाएगी, गरीब के घर का जिम्मा पूरा हो जाएगा..! लेकिन अगर आपने गलत ऑडिट कर दिया, गलत बैलेंस शीट निकल गई तो उस गरीब ने अपने जो दो हजार रूपये डाले हैं और जब बेटी की शादी की नौबत आई तब बाजार में पैसा नही मिला..! आप कल्पना कीजिए मित्रों, उसकी पीड़ा कितनी होगी, उसका दर्द कितना होगा..? और उस दर्द के लिए जिम्मेवार कौन होंगे..? मित्रों, वो कंपनी वाले बाद में होंगे, पहले हम लोग जिम्मेवार होंगे जिन्होंने इसे चलने दिया..! और इसलिए मित्रों, ये कोई सामान्य काम आपके पास नहीं है, आप इतने बड़े काम की ओर अपना कदम रखने वाले हैं कि जिसके कारण समाज के गरीब से गरीब आदमी के जीवन की सुरक्षा आपके एक सिग्नेचर में है, कोई छोटा काम आपके पास नहीं है..! और इसलिए अपने काम के माहात्म्य को समझना, अपने काम के बड़प्पन को समझना और उस बड़प्पन के आधार पर जिंदगी को गुजराना, रास्ते तय करना, फिर आप देखिए मित्रों, समाज आपको कितने गर्व के साथ देखने लगता है इसकी आपको अनुभूति होगी..!
मित्रों, क्या कारण है कि इतना बड़ा प्रोफेशन, इतना बड़ा इसका रुतबा होने के बाद भी सामान्य समाज में इसकी छाया नहीं है..! मैं चाहता हूँ कि इतने बड़े वरिष्ठ लोग हैं, वो इस पर चिंतन करें। अगर गाँव के अंदर उद्योगपति है तो उसकी समाज पर छाया है, डॉक्टर है तो समाज पर छाया है, लॉयर है तो समाज पर छाया है, लेकिन चार्टर्ड अकाउंटेंट की जिंदगी पाँच-पचास कंपनियों तक सीमित हो जाती है, समाज में उसका विस्तार नहीं होता है..! अगर हम लोग कोशिश करें कि हम चार्टर्ड अकाउन्टेंट समाज की इतनी-इतनी प्रकार की सेवा करते हैं, इसके कारण हम समाज के स्वास्थ्य की इस प्रकार की जिम्मेवारी निभाते हैं, ये सामान्य जन तक पहुंचाने की एक बहुत बड़ी आवश्यकता है, ऐसा मैं मानता हूँ। एक बहुत बड़ा दायित्व है। सामान्य मानवी को मालूम नहीं है कि सी.ए. क्या करता है। वो कॉर्पोरेट हाउस तक, कॉर्पोरेट वर्ल्ड तक सीमित रह जाता है। इतना बड़ा पावर..! आप देखिए, अहमदाबाद में सात हजार चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। मित्रों, सात सौ लॉयर खड़े हो जाए ना, तो सरकार इधर-उधर हो जाए, आप सात हजार हैं..! ये ताकत छोटी नहीं है, मित्रों..! समाज को अनुभूति होनी चाहिए कि इतने प्रोफेशनल्स, इतने पढ़े लिखे लोग समाज को कितना बड़ा योगदान कर रहे हैं..! ये जो डिस्कनेक्ट है, उस डिस्कनेक्ट को भरना की जरूरत है ऐसा मुझे लगता है। आपके पास सबकुछ है, आप अपने काम को कर भी रहे हैं, लेकिन सामान्य मानवी के लिए कर रहे हैं ये मैसेज नहीं जा रहा है। करते सब हैं, कोई ना कोई रास्ता खोजना चाहिए, सामान्य मानवी को लगना चाहिए कि इस इंस्टीट्यूशन का भी अपना महत्व है..! किसी जमाने में जो पैथोलॉजी लैबोरेट्री हुआ करती थी, तो सामान्य पेशेंट उसका महत्व ही नहीं समझता था, आज से तीस साल पहले। पैथोलॉजी डॉक्टर है, ठीक है, होगा..! यही सोच थी..! देखिए, आज देखते-देखते पैथेालॉजी डॉक्टर का महत्व कितना बढ़ गया है, पैथोलॉजी लैब का महत्व कितना बढ़ गया है..! और हर बीमार को इसका महत्म समझ में आता है, बाद में डॉक्टर का महत्व समझ में आता है। आप भी एक ऐसी जगह पर बैठे हैं और उसकी अनुभूति समाज को कैसे हो उस दिशा में काम करना चाहिए..!
मित्रों, मेरी आपसे एक और अपेक्षा है..! इन दिनों हमारा ऑडिट भी रोज होता रहता है। फुटपाथ पर खड़ा हुआ भी हमारा ऑडिट करता है, चौराहे पर खड़ा हुआ भी हमारा ऑडिट करता है, ट्रेन में भी, बस में भी... ये मोदी क्या कर रहा है, यार..? हर पल हमारा ऑडिट होता है और पाँच साल के बाद ऑफिशियल भी होता है। मित्रों, लेकिन ये जो एन.जी.ओ. नाम की जमात पैदा हुई है, जो फाइव स्टार एक्टीविस्टों की एक बड़ी फौज तैयार हो गई है, उन्हें कहाँ से पैसे आते हैं, उन पैसों का क्या होता है, क्या समाज से लिए हुए पैसों का सच्चे अर्थ में समाज के लिए उपयोग होता है क्या..? और उनको भी ऑडिट करवाना कम्पलसरी होता है। कम से कम इस प्रकार के चैरिटेबल इंस्टीट्यूशन हैं... कुछ हैं ऐसे जहाँ कभी कुछ देखना नहीं पड़ता है। इतने अच्छे चेरिटेबल इंस्टीट्यूशन जमाने से चले आ रहे हैं जिसमें कभी भी, यानि लाख कोशिश करने के बाद भी एक रूपया कभी इधर से उधर ध्यान में नहीं आता है, होता ही नहीं है, मित्रों..! और बाकी जगह पर, डॉलर आए थे तो ऐसा कर दो, पाउंड आए थे तो ऐसे कर दो..! कार खरीदी थी तो देख लो यार, कहीं तो लिखना पड़ेगा, कम्प्यूटर लाए हैं तो कहीं तो लिखना पड़ेगा..! कुछ ना कुछ होता रहता है, मित्रों..! एक ऐसी व्यवस्था विकसित हो रही है और वो सामाज जीवन का एक हिस्सा है, उसको नकार नहीं सकते, लेकिन उसमें अकाउन्टीबिलिटी कैसे बढ़े, एक ऑडिटर के नाते इन चीजों को बारीकी से कैसे देखा जाए..! और इसलिए मैं कहता हूँ कि एक आम व्यापारी का उद्योग उखड़ गया, लोगों को नुकसान हुआ, तो ज्यादातर लोग मान लेंगे कि उसने बेइमानी की होगी तो चला गया, रूपये गए, नसीब में नहीं था तो आया नहीं, हमने गलत जगह पर इन्वेस्ट कर दिया था..! लेकिन जब एक सामाजिक संस्था में गिरावट आती है तो पूरी समाज व्यवस्था में गिरावट आती है, एक सामाजिक संगठन के अंदर कुछ बुराई आती है तो उस बुराई को समाज जीवन में इंजेक्ट होते देर नहीं लगती..! मित्रों, मैं समझता हूँ कि आप ऐसी जगह पर बैठे हैं कि सार्वजनिक जीवन की अनुसूचिता... अभी तो अच्छा है कि हमारी पॉलिटिकल पार्टियों के अकाउंट भी ऑडिट होते हैं, अच्छी बात है। और इन सब को कठोरता से करना चाहिए, क्योंकि हमें समाज की अर्थव्यवस्था को ठीक करना है और आप ही लोग हैं जो इसको कर सकते हैं..! मुझे सुबह आना था यहाँ और अभी आया हूँ..! नाराज तो नहीं हुए ना दोस्तों..? क्योंकि अचानक अब्दुल कलाम साहब का कार्यक्रम बन गया तो सुबह मुझे उनके साथ रहना बहुत जरूरी था। और उसके कारण मैंने सब मित्रों को रिक्वेस्ट की थी कि भाई, अगर आप इजाजत दें तो मैं शाम को अपना कर्ज चुका दूंगा..! उन्होंने इजाजत दी और मैं आपके बीच आ गया।
मित्रों, आप इस क्षेत्र से हैं तो मैं एक जानकारी देना चाहता हूँ। गुजरात की प्रगति की गति कितनी तेज है, उसका व्याप कितना चौड़ा है और उसकी ताकत कितनी गहरी है..! देखिए, गुजरात का जन्म हुआ तबसे लेकर के मेरे आने तक नौ पंचवर्षीय येाजनाएं हुई। इन नौ पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत गुजरात में कुल खर्च हुआ 55,000 करोड़। दसवीं पंचवर्षीय योजना में मित्रों, 1,75,000 करोड़..! मेरे आने के बाद की बात कर रहा हूँ..! चालीस साल में फिफ्टी फाइव थाउज़न्ड करोड़, पाँच साल में वन लैख सेवन्टी फाइव थाउज़न्ड करोड..! और मित्रों, इन सबको मैं मिला दूँ, तो दस योजना का टोटल होता है 2,30,000 करोड़, जिसमें मेरे समय के भी पांच साल आ गए। मित्रों, 11 वीं पंचवर्षीय योजना में हमारी संख्या उससे भी आगे बढ़ गई, पचास साल के टोटल से भी हम आगे बढ़ गए। और बारहवीं पंचवर्षीय योजना में हम करीब-करीब 2,51,000 करोड़ रूपया लेकर आगे बढ़ रहे हैं। और मित्रों, कोई नए टैक्स नहीं डाले हैं, सिर्फ लीकेज बंद किया है। आप देखिए कितनी ताकत है..! इन दिनों आपके प्रोफेशन में भी टैक्नोलॉजी का महत्व बहुत बढ़ रहा है। और जब आपकी टैक्नोलॉजी का महत्व बढ़ रहा है तब एक नया क्षेत्र जो स्वाभाविक रूप से आपसे जुड़ेगा वो मुझे लगता है कि फोरेन्सिक ऑडिटिंग..! कम्प्यूटर पर किसने गड़बड़ किया, कम्प्यूटर में किसने आंकड़े ऊपर-नीचे कर दिए..! पहले हाथ से करते थे तो पकड़े जाते थे, अब कप्यूटर से करना सरल है, लेकिन पकड़ा जाना भी सरल है..! और इसलिए एक नई विधा डेवलप हो रही है। गुजरात की जो फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी है। दुनिया में गुजरात पहला राज्य है जिसने फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी बनाई है। और जब मैं ये कहता हूँ तो झूठ बोलने वालों की जमात ये कहती है कि मोदी झूठ बोलता है। फोरेंसिक साइंस डिपार्टमेंट तो फलानी जगह पर है..! मैं फिर कहता हूँ भइया, मैं फोरेंसिक साइंस डिपार्टमेंट नहीं कह रहा हूँ, मैं फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी कह रहा हूँ। उसका जवाब नहीं देते..! ये ऐसे ही हैं..! अब आप भी तो समझ गए होंगे ना कितना झूठ चलता है..! और मित्रों, चार्टर्ड अकाउन्टेंट के फील्ड में भी फोरेंसिक साइंस का कितना बड़ा रोल हो सकता है, उसको कैसे केयर किया जाए, उसको कैसे कैटर किया जाए, इन सारी बातों को हमारे प्रोफेशन में आगे लाने की आवश्यकता है..! मित्रों, मैं आज इतनी सारी संख्या में नौजवान लोगों के साथ आया हूँ, देश भर में शायद, रघु मुझे बता रहे थे, कि वन मीलियन मैम्बर्स हैं आपके।
मित्रों, आपके मन में कोई विचार आता है, कोई सुझाव आता है तो आप डायरेक्ट मुझे कान्टेक्ट कर सकते हैं। मैं फेसबुक पर अवेलेबल हूँ, मैं ट्विटर पर अवेलेबल हूँ, यू-ट्यूब पर अवेलेबल हूँ, वॉट्सऐप पर भी मिलूँगा..! मित्रों, आपके मन में कोई भी नया विचार आता है, आप चाहते हैं कि हाँ, ये विचार सरकार को जानना-समझना चाहिए, तो आप मुझे जरूर भेजिए। इससे बड़ी पोस्ट ऑफिस नहीं मिलेगी आपको..! आप जरूर मेरे से संपर्क बनाइए और मैं चाहूँगा कि आपके दस लाख मैम्बर हैं, मैं जुड़ना चाहूँगा। क्योंकि मैं देखूं तो सही कि देश की युवा पीढ़ी के मन में क्या चल रहा है..! ये टैक्नोलॉजी का बहुत अच्छा उपयोग हो सकता है, जिससे दुनिया के बदलते हुए प्रवाहों को बड़ी सरलता से हम समझ पाते हैं। मैं आपको निमंत्रण देता हूँ, आप आइए, मेरे साथ जुड़िए, अपने मन की बात बताइए, अपने विचार बताइए। देश के लिए कुछ सुझाव हो, गुजरात के लिए कुछ सुझाव हो, सरकार की किसी नीतियों के लिए सुझाव है, बिना रोक-टोक बताइए..! आप लोग अगर मेरी वेबसाइट पर गए होंगे तो उसमें एक अच्छा कॉलम है, मित्रों। ये हिम्मत कोई और करेगा या नहीं करेगा ये मैं नहीं जातना हूँ। उसमें एक सिटीजन जर्नलिज़म जैसा एक कॉलम है। आपके मन में कोई आर्टिकल लिखने का मूड आया, तो आप उसमें लिख सकते हैं और आपका आर्टिकल दुनिया पढ़ेगी, आपके विचार मेरे खिलाफ होंगे तो भी पढ़ेगी..! वैसे भी बहुत लोग करते ही हैं, तो एक और सही..! तो मैं मित्रों, आपको निमंत्रण देता हूँ। इसके बाद शायद आपका मनोरंजन का कार्यक्रम है, तो एक प्रकार से छह बजे से ही मनोरंजन कार्यक्रम शुरू हो गया था..!
थैंक्यू दोस्तों,
विश यू ऑल द बैस्ट,
थैंक्स अ लॉट..!