अहमदाबाद

दि. २१/१२/२०११

 

सार्वजनिक अनुशासन के कार्यक्रम में विलंब से आया इसके बदले मैं आप सब से क्षमा चाहता हूँ और भाई राजीव गुप्ता को विश्वास दिलाता हूँ कि आपके पुस्तक के प्रकाशन के समाचार कल जरूर छ्पेंगे और प्रकाशक को भी विश्वास देता हूँ कि आपको किसी भी तरह के निजी खर्च के बग़ैर पब्लिसिटी मिलेगी। कारण, पुस्तक सार्वजनिक शिस्त का हो और मुख्यमंत्री ही अशिस्त करे तो वह चौखटा बने ही और सम्भव है कि विनोदभाई को अगले सप्ताह कुछ मसाला मिल जाए। मित्रों, मैं सुबह बिल्कुल अनुशासित ढंग में शुरु करता हूँ लेकिन मिलने आने वाले, काम लेकर आने वाले, महज दो-चार मिनट भी ज़्यादा लें तो शाम होते होते समय का पालन करना मुश्किल हो जाता है। इसके परिणाम आप सबको इंतज़ार करना पडा और कारण कितने भी हों लेकिन सच्चाई यही है कि मैं देरी से आया।

कई बार एक विचार मेरे मन में आता है कि भाई, एक विषय में, वेस्टर्न वर्ल्ड और हमारे लोगों में कहाँ फर्क पाया जाता है? उदा. हाइजीन, पर्सनल हाइजीन और सोशल हाइजीन। हमारे यहाँ ऐसे संस्कार हैं और ऐसी परम्पराएं रही हैं कि व्यक्तिगत और स्वास्थ्य के मामलों में बहुत जागरूकता हमारे सामाजिक जीवन के भीतर पडी हैं। कुछ चीज़ों को छूने का नहीं, कुछ चीज़ों को लेने का नहीं, भोजन के समय ऐसा करने का... इतने सारे नियमों को घर के अंदर हम सबने देखे हैं। पानी के उपयोग की बाबत में भी नियम देखे हैं, बर्तन के उपयोग के संबंध में... हर घर में इस प्रकार के नियम होते ही हैं और सदियों से यह परम्पराएं विकसित हुई हैं। स्नान करने का, रेग्युलर करने का... यह सारी चीज़ों का आग्रह, पर्सनल हाइजीन के मामलों में, हमारे यहाँ बिलकुल जन्मगत है। लेकिन सोशल हाइजीन के मामले में? कचरा कहीं भी फेंकना... उसमें हम जागरूक नहीं हैं। जब कि वेस्टर्न वर्ल्ड में? ज़रूरी नहीं है कि ऑफिस नहाकर जाना चाहिए और ज्यादातर लोग वहाँ शाम को आकर स्नान करते हैं। हमारे यहाँ स्नान, पूजा-पाठ करके कोई पवित्र काम करने जाना हो ऐसे तैयार होते हैं। मैं यहाँ कोई पश्चिम की आलोचना करने नहीं आया हूँ, बात को समझने के लिए उपयोग कर रहा हूँ। लेकिन सोशल हाइजीन में, सब नियमों का पालन करते हैं और इसके कारण यह स्वच्छता, कुछ बाबतों और इनके नॉर्म्स हमें सीखने जैसे लगें। अब अगर इन दोनों का कॉम्बिनेशन हो तो पर्सनल हाइजीन और सोशल हाइजीन दोनों की सुरक्षा बनी रहे।

जैसे यह एक बाबत है, वैसे ही यह शिस्त की बाबत है। हमारे यहाँ व्यक्तिगत जीवन के अंदर कितनी ही शिस्त क्यों न हो, लेकिन समूह में हम बिल्कुल अलग होते हैं। अभी मैं दो दिन पहले सूरत में था, मेरा सदभावना मिशन का कार्यक्रम चल रहा था। वहाँ सामने एक दूसरा कार्यक्रम चल रहा था। उनका यह रिवाज है, आज भी कुछ पैरेलल किसी पुस्तक का विमोचन हो रहा होगा... विजय, आपको कहता हूँ, लेकिन शायद किसी ने नहीं रखा होगा। वहाँ एक मंत्रीश्री के जन्मदिन की कुछ ४७ किलो की केक थी और उसकी लूट-मार के द्रश्य देखे टी.वी. पर, तो मुझे लगा कि अरे, यह जन्मदिन के साथ ऐसा? कारण क्या? यदि थोड़ा सा भी सार्वजनिक अनुशासन का अभाव न होता, तो वह द्रश्य कितना उत्तम होता और कितना गौरवपूर्ण होता, लेकिन वही घटना ने कैसा विचित्र रूप धारण कर लिया। हमारे यहाँ जहाँ धार्मिक मामले होते हैं वहाँ की विशेषता देखें। बहुत कम मंदिर होंगे जहाँ ‘जूते यहाँ उतारें’ ऐसा लिखा होगा, बहुत कम मंदिर होंगे। ज़माने के बदलने के साथ अब ऐसा लिखना पडता है, जैसे आज से ५० साल पहले, ‘शुद्ध घी की दुकान’ ऐसा बोर्ड मैंने तो नहीं पढ़ा था! ५० साल पहले हमारे यहाँ ऐसा नहीं था, लेकिन आज लिखना पडता है, ‘शुद्ध घी की दुकान’, क्योंकि बाजार में दूसरा अवेलेबल है। तो, ‘जूते यहाँ उतारें’ ऐसा कभी लिखना नहीं पडता था और अब स्थिति बदल चुकी है। वह जो था उसका कारण, संस्कार। कोई नोर्म्स लिखे नहीं थे। आप विचार करो कि हमारे यहाँ कुंभ का मेला होता है, उस कुंभ के मेलें में हर रोज़ गंगा के किनारे एक पूरा ऑस्ट्रेलिया इकठ्ठा होता है, आप विचार करो..! और फिर भी कोई बड़ी कैआटिक घटनाएं हमारे सुनने में नहीं आती हैं। और इसके मूल में वह जो धर्म-तत्व पड़ा है, जो कुछ उसे खींचता है, जो कुछ उसे बांधता है, उसे कहीं जोड़ता है और इसके कारण उस समग्र व्यवस्था में व्यवस्थापक कैटलिक एजेंट होते हैं, समाज स्वयं ही व्यवस्था का वहन करता है। और जहाँ व्यवस्था का वहन करने का सामर्थ्य हो, वहाँ व्यवस्था अपने आप फैलती है, अपने आप विकसित होती है। उसका स्केल कितना भी बड़ा हो, वह व्यवस्था विकसित होती जाती है, फैलती जाती है।

हमारे समाज जीवन के अंदर, कई बार हम कहते हैं कि दुनिया के अनेक देश जो हमारे बाद आजाद हुए, फिर भी आगे निकल गए। तो कारण क्या है? मुख्य कारण लगभग यही आता है कि एक समाज के रूप में उनमें डिसीप्लिन है। अभी मुझे एक मित्र मिले, वह जापान जा कर आये थे। अमीर परिवार के थे तो वहाँ की महंगी से महंगी होटेल के स्वीट में उनका बुकिंग था। लेकिन वहाँ सूचना थी कि २६ डिग्री टेम्परेचर से ज़्यादा रूम ठंडा नहीं हो सकेगा, कितना भी पेमेन्ट दो फिर भी यह नहीं होगा। क्यों? तो कहा कि सुनामी और अर्थक्वेक के बाद हमारे वहाँ पावर जनरेशन की जो समस्या खड़ी हुई है इसलिए एक राष्ट्र के रूप में हमने निर्णय लिया है कि सबको एनर्जी कन्सर्वेशन करने का। और इसके लिए २६ डिग्री से नीचे टेम्परेचर ले जाने के लिए किसी भी प्रकार से ऊर्जा का उपयोग नहीं करने का, इसलिए आपको २६ डिग्री में ही रहना होगा। और पूरा जापान इसका अमल करता है, मैं यह हाल ही की सुनामी के बाद की घटना कह रहा हूँ। हमारे यहाँ अगर गल्ती से भी ऐसा कोई निर्णय करें तो क्या हो उसकी आप कल्पना कर सकते हैं, साहब..! बाकी सारे समाचार गौण बन जाए, यही हेड्लाइन हो। काले झंडे, मोर्चे इसीके कार्यक्रम चलते हों। कारण? एक समाज के रूप में अनुशासन तभी आता है, जब एक समाज के रूप में जिम्मेदारी का तत्व प्रमुख होता है। सोशल रिस्पाँन्सबिलिटी के बग़ैर सोशल डिसप्लिन किसी को आवश्यक ही नहीं लगेगी और इसलिए सामाजिक जिम्मेदारी का वातावरण बनाना पडे। दुर्भाग्य से, देश आजाद होने के बाद हमारे यहाँ अधिकार के तत्व को महत्त्व ज्यादा मिला। देश आजाद हुआ तब तक पूरे देश का वातावरण था, फ़र्ज का। देशसेवा करना हमारा फ़र्ज है, स्वदेशी हमारा फ़र्ज है, शिक्षा हमारा फ़र्ज है, खादी पहनना हमारा फ़र्ज है। गांधीजी ने जब लोगों के मन में बिठा दिया था कि यह सब तो हमारे फ़र्ज का एक भाग है, हमें देश को आजाद कराना है। लेकिन, देश आजाद हो जाने के बाद हमें ऐसा लगा कि अब तो फ़र्जों का काल समाप्त हो गया है, अब तो अधिकारों का काल है। और इसके कारण हमारी पूरी सोच अधिकार के आसपास है और इसके कारण परिणाम यह हुआ है कि हर चीज़ में ‘मेरा क्या?’ हमारी पूरी रचना ही ऐसी बनी है कि कुछ भी हो, पहला सवाल उठता है मन में कि ‘मेरा क्या?’ और ‘मेरा क्या?’ का अगर पॉज़िटिव जवाब नहीं मिलता है, तो तुरंत ही मन जवाब देता है कि ‘तो फिर मुझे क्या?’। जब तक ‘मेरा क्या?’ का उत्तर मिलने वाला है, तब तक उसे धीरज है, लेकिन जिस दिन नकारात्मक उत्तर मिल गया, उसी पल उसकी आत्मा कह उठती है, “मुझे क्या? फोड़ो भाई, आपका है, करना...” और यही अशिस्त को जन्म देता है।

शिस्त कोई आपके बोलने-चालने का, डिसीप्लिन के दायरे का विषय नहीं है। शिस्त समाज की विकास यात्रा की ओर देखने के द्रष्टिकोण का एक हिस्सा है। आप पूरी इस विकास यात्रा को किस द्रष्टिकोण से देखते हैं, इसके आधार पर होता है। एक माँ-बाप अपने बच्चों को कैसे संस्कार देना चाहते हैं, उसके आधार पर तय होता है कि बच्चों को किस प्रकार की शिस्त में आप पालन करना चाहते हैं। माँ-बाप घर में हो, किसी का टेलीफोन आए, पिताजी घर में हो और पिताजी कहे कि, “ऐसा कह दो कि पापा बाहर गये हैं”, फिर पापा अपेक्षा करे कि मेरा बेटा झूठ न बोले, इम्पॉसिबल। लेकिन जब मैं यह कहता हूँ तब मेरे दिमाग में मेरा बेटा नहीं होता है, मेरे दिमाग में सामने वाले का टेलिफोन होता है और इसके कारण, एकाकी थिंकिंग होने के कारण, मैं मेरी पूरी परिस्थिति पर इसका प्रभाव क्या पड सकता है इसका अनुमान तक नहीं कर सकता। ज्यादातर लोगों को बस में जाते हमने देखे होंगे। अकेला पैसेन्जर होता है तो वह क्या करता होता है? कोई हो तो खिड़की में से प्राकृतिक सुंदरता को देखे या हरियाली... लेकिन ज्यादातर क्या करते हैं? बस की सीट में, यहाँ कोई बाकी नहीं होगा... और इसके फ़ोम में से छोटी-छोटी-छोटी कतरन बाहर निकाले। साहब, यहाँ से वडोदरा उतरे तब तक दो इंच का गड्ढा बना दे। किसी का नुकसान करना चाहता था? नहीं। उसमें कोई स्पेशल एन्टर्टेन्मेन्ट था? नहीं। लेकिन एक स्वभाव का, संस्कार का अभाव। और उसे ऐसा लगता ही नहीं था कि यह मेरी संपत्ति है और इसलिए उसे दो इंच का गड्ढा बना देने में कुछ होता नहीं था। बिल्कुल नई बस रखी हो, बढ़िया बस रखी हो तो ड्राइवर को भी ऐसे गर्व होता होगा और वह बस अच्छी तरह से चलाता हो और फिर भी शाम को जब वह डिपो में पहुँचे तब कई सीट ऐसी होती हैं जिसमें दो-दो इंच के गड्ढे बने हो। यह सहज बात है। मैं कई बार नौजवानों को कहता हूँ कि भाई, हम चिल्ला चिल्ला कर बोलते हैं, “भारत माता की जय, भारत माता की जय... वंदे मातरम...” सब करते हैं, फिर? तुरंत ही पिचकारी मारते हैं। यही भारत माता पर गुटका खा कर तुरंत ही पिचकारी मारते हैं। उसे वह पता नहीं है कि जिस भारत माता का जय-जयकार कर रहा हूँ उसी पर ही पिचकारी मार कर गन्दगी कर रहा हूँ, क्या इसकी मुझे खबर है? लेकिन अगर उसे कोई यदि इस रेन्ज में बात समझाये तो उसे लगे कि हाँ, यार! छोटी छोटी बातें होती हैं, देशभक्ति इस से भी प्रकट हो सकती है। देशभक्ति प्रकट करने के लिए कोई भगत सिंह के रास्ते ही जाना पड़े ऐसा ज़रुरी नहीं है, भाई। मैं इतनी छोटी छोटी चीज़ें करके भी देशभक्ति, समाजभक्ति, पितृभक्ति, मातृभक्ति, गुरुभक्ति सब कुछ कर सकता हूँ।

कई बार नकारात्मकता... मैं एक बार एक कार्यक्रम में मुंबई गया था, दस एक साल हुए होंगे। और मेरे आश्चर्य के बीच कार्यक्रम के प्रवेशद्वार पर ही बचपन में मुझे जिन्हों ने पढ़ाया था वे मेरे शिक्षक खड़े थे और मैंने उन्हें ३५-४० साल बाद देखा होगा। मुझे बराबर याद आया कि हाँ, वही है। और सहज रूप से मैंने उन्हें प्रणाम किए,
पाँव छुए। सहज ही, यानी मुझे उसमें कुछ सोचने जैसा अवसर ही नहीं था। लेकिन उस दिन वह न्यूज़ बन गए। अब पैर छूना भी कोई न्यूज़ होता है, भाई? मेरे मन में वैसे आनंद होता है कि भाई मुख्यमंत्री की नम्रता देखो, ऐसा-वैसा, सब कुछ... लेकिन मुझे मन में प्रश्न होता है कि क्या यह न्यूज़ है, भाई? क्या इस राज्य में या इस देश में किसी भी नागरिक को उसके गुरुजन मिले तब उसके पाँव छूने के संस्कार सहज हो, लेकिन जब वह न्यूज़ बन जाते हैं तब एहसास होता है कि यह सब कैसे बंद हो गया है..! यह सहज प्रक्रियाएं, करने जैसी प्रक्रियाएं हमारे यहाँ जैसे आजकल गुनाह बन गया है। मुझे याद है हमारे गवर्नर साहब थे नवल किशोर शर्माजी, वैसे तो वे कांग्रेस के आदमी हैं, लेकिन मुझे सहज रूप से जब भी मैं जाऊं तब उनके पैर छूने का मन हो। सहज, मेरे क्रम में। लेकिन मुझे इतना सचेत रहना पडता था कि ये फोटोग्राफर बाहर जाए उसके बाद मैं मेरी विधि करुं। यह रहस्य आज खोल रहा हूँ। वरना साहब, जैसे अपराध हो गया हो..! राज्य का मुख्यमंत्री, वह इस प्रकार झुके? मित्रों, ये सारी जो बातें हैं, एक ऐसी विकृति धारण की है हमारे यहाँ जो कई बार हमारे संस्कार, हमारी शिस्त, हमारी जो परंपराएं हैं, इनके सामने संकट पैदा करने का जैसे एक योजनाबद्ध तरीके से प्रयास चालू है। और हम फिर विचलित हो जाते हैं, हमें भी डर लगने लगे। सार्वजनिक जीवन के अंदर यदि विकास की यात्रा करनी हो, व्यक्ति के जीवन में भी विकास करना हो, तो शिस्त बहुत ही काम में आती है।

शिस्त का दूसरा रूप है, ऑर्गनाइज़्ड होना। ज्यादातर लोग वैसे शिस्तबद्ध हों, लेकिन ज्यादा ऑर्गनाइज़्ड न हों और इसके कारण उनकी शिस्त हमें अक्सर ऐसे कष्ट देती है। हमारी शिस्त ऐसी नहीं होनी चाहिए कि दूसरों को कष्ट दे। आप मेले में चल रहे हो और फिर एक-दो, एक-दो करके चलो तो क्या हो? आपको तुरंत बाहर निकाले कि भाई, परेड करनी हो तो मैदान में जाओ। मेले में तो मेले की तरह ही चलना पडे आपको,
हल्के
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फुल्के होकर चलना पडे। तो मित्रों, ऑर्गनाइज़्ड होना और शिस्त का यह जो रूप पकड लिया है न वह तो इसका छोटा सा अंश है, पूर्णतया
जीवन के द्रष्टिकोण का एक हिस्सा, उस रूप में शिस्त को कैसे देखा जाता है।

 


मित्रों, ट्राइबल लोगों का अगर अध्ययन किया हो, बहुत प्रेरणा लेने जैसा है। आजकल बायो-फ्यूअल के लिए जैट्रोफा के उपयोग की चर्चा है न, इस विज्ञान में तो अभी अभी से जैट्रोफा की चर्चा चली है। हमारे डांग में जाओ, वहाँ आदिवासी भाईयों रात्रि गमन के दौरान जैट्रोफा का क्या अदभुत उपयोग करते हैं और कितना सिस्टमैटिक तरीके से करते हैं वह शिस्त देखने जैसी होती है और आज भी वह परंपरा है। एक तो, आदिवासी जब स्थानांतरण करते हों तब सब लाइन में ही चलते हैं। साथ साथ चले लेकिन हम जिस प्रकार गपशप करते हुए, कंधे टकराते हुए चलते हैं वैसे वे लोग नहीं चलेंगे। एक के पीछे दूसरा, दूसरे के पीछे तीसरा। मैंने उसमें से एक को पूछा था कि यह प्रणाली कैसे विकसित हुई होगी? उसका जो उत्तर था साहब, वो समझने जैसा था। सच है या झूठ उसकी कुछ मैंने जांच नहीं की है, लेकिन उसने जो उत्तर दिया वो मैं आपको कहता हूँ। उसने कहा कि साहब, हम जंगल में चल रहे हों, सांप या और कुछ हो तो पहले आदमी को ही फेस करना पडे, बाकी सब सुरक्षित रहे। अगर हम पूरी टोली चलें तो संभव है कि अनेक लोगों को नुकसान हो। यह शायद हमारी इस परंपरा में से ही विकसित हुआ होगा। जैट्रोफा का कैसे करते हैं? काँटा ले, काँटे में वह जैट्रोफा का बीज लगाए और उसे जलाए और चलें, उसकी रोशनी में चले। एक का पाँच-सात मिनट की दूरी पर ख़त्म हो तो दूसरे के हाथ में काँटा हो ही, वह तुरंत उसी से जला दे। दस लोग चलते हों, एक के बाद एक इतने डिसीप्लिन्ड तरीके से, माचिस की एक ही तीली से उनके जैट्रोफा के बीज की रोशनी में पूरी यात्रा इतने सिस्टमैटिक ढंग से पूर्ण करते हैं..! इसका अर्थ यह हुआ कि उन्होंने अपनी नीड में से एक फारमूला डेवलप की, जिसे अनुशासित किया और उसे जीवन के सालों तक चलाते रहे। कई बार इन सब बातों को हमारे समाज जीवन के रूप में कितना स्वीकार करते हैं इसके उपर निर्भर रहता है।

 

आज भी हमारे यहाँ मर्यादा नाम की चीज़ की ऊंचाई कितनी है? बहुत कम लोग अंदाजा लगा सकते हैं। आप बस में चढ़ने के लिए लाइन में खड़े हो, धक्का-मुक्की चल रही हो और कोई दूसरा आदमी खिड़की में से अपना रूमाल डालके सीट पर रख दे, आप अंदर बराबर धक्का-मुक्की करके, कपडे फ़ट जाए, पसीना हुआ हो और अंदर चढ़े हों, लेकिन वह आकर कहे कि मैंने रूमाल रखा हुआ है तो आप खड़े हो जाते हो। यह आपने देखा होगा..! उसने सिर्फ खिड़की में से रूमाल डाला है, उसने कोई कसरत नहीं की है। कारण? मर्यादा के संस्कार वैसे के वैसे पड़े होते हैं। मित्रों, समाज जीवन का इस प्रकार निरीक्षण करें तो कितने अदभुत अदभुत उदाहरण देखने को मिलते हैं और इसलिए शिस्त का जितना महत्त्व है उतना ही ऑर्गनाइज़्ड होना भी सफलता के लिए बहुत ज़रुरी है।

कई लोगों की शिस्त पूरे वातावरण के लिए बोझ बन जाती है। शिस्त ऐसी हो ही नहीं सकती कि जो बोझ बढ़ाए, शिस्त हमेशा सरलता देती है। आप ऐसे धीर-गंभीर चेहरा रख कर हमेशा चौबीस घंटे रहते हो साहब, इससे कुछ शिस्त नहीं आती है। शिस्त बोझ न बन जाए, शिस्त आल्हादक बन जाए, एक उत्साह के साथ हो और इसलिए शिस्त के उस रूप को जो पकड़ता है वही टीम फॉर्म कर सकता है, वही टीम से काम ले सकता है। जो शिस्त को सख्त नियमों में बाँधता है वह कभी भी टीम बना नहीं सकता। और इसलिए सार्वजनिक जीवन को भी मर्यादाओं की आवश्यकता होती है। इसमें वैल्यू एडिशन होना चाहिए, मूल्य वृद्धि होनी चाहिए। और नैतिक अधिस्थान और मूल्य में गहनता आए तो ही मूल्य वृद्धि होती है, अन्यथा संभव नहीं होता है। और इसलिए शिस्त को इस रूप में देखना चाहिए कि भाई, नियत कार्य समय पर करता है कि नहीं, इतने तक ही सीमित नहीं है।

कई लोग ऐसे हैं कि माँ कहती हो कि बेटे, अब तुम्हें सो जाना है। बेटा कहता है कि नहीं मां, मुझे कल इम्तिहान है। माँ कहती है कि बेटे, तुम बीमार हो, ज्यादा बीमार पड़ जाओगे, कल भी जागा था... अब एक अर्थ में अशिस्त है, लेकिन दूसरे अर्थ में अपने काम के लिए उसका डिवोशन है। वो शायद शिस्त से अधिक ऊंचाई रखता है और इसलिए इन दोनों को तौल नहीं सकते कि भाई, तुमने तुम्हारी मां की बात नहीं मानी। माँ ने बहुत अच्छा खाना बनाया हो और् बेटा कहे कि मुझे खाना नहीं है। कारण? मैं खाना खाऊंगा तो रात को मुझे नींद आएगी, मुझे पढ़ना है। और इसलिए माँ के जज़्बात को ठुकराकर भी, खाने को इनकार करके भी, वह पढ़ने में मशगूल रहे वह उसकी प्रतिबद्धता है। तो शिस्त की ऊंचाई से देखें तो शायद शिस्त लाई जा सकती है लेकिन मेरी शिस्त को तुमने माना नहीं और इसलिए तू निकम्मा है ऐसा स्टैन्ड अगर मां लेती है तो शायद न तो मां को संतोष होगा, न बेटे को संतोष होगा और न ही दोनों की विकास यात्रा में एक दूसरे के पूरक बन पायेंगे। और इसलिए इस ह्यूमन साइकी को किस प्रकार से लेते हैं इसके आधार पर शिस्त को जोड़ सकते हैं। शिस्त को आप उस अर्थ में नहीं ले सकते। अभी जो बाहर का उदाहरण कहा, मुझे तो अभी याद नहीं है कि क्या हुआ था क्योंकि मुझे तो रूटीन में कई बार ऐसा करना होता होगा। लेकिन यह कुछ भुजाओं का बल नहीं है मित्रों, भुजा के बल से नहीं होता है, भावना और प्रेम के एक वातावरण से वह स्थापित होता है।

मित्रों, शिस्त की पहली शर्त है, अपनत्व। अपनेपन का भाव ही शिस्त ला सकता है। आप जब तक अपनेपन के भाव की अनुभूति न करवाओ, तब तक आप शिस्त नहीं ही ला सकते। समाज जीवन में भी शिस्त लानी हो तो अपनेपन का भाव ज़रूरी होता है, अपनत्व का भाव ज़रूरी होता है और जहाँ अपनत्व हो वहाँ शिस्त स्वाभाविक होती है। कई बार आदमी को लक्ष्य जोड़ता है। थियेटर के अंदर शांति बनाये रखने के लिए कहना नहीं पडता, कारण? सबका इन्टरेस्ट है कि शांति रखें तो लाभ मिले और इसलिए शांति बनी रहती है और इसमें अगर कोई थोड़ी भी गड़बड़ करे तो पन्द्रह लोग ऐसे परेशानी से देखने लगे। इसका अर्थ यह हुआ कि यह जो स्वाभाविक अपेक्षाएं पड़ी होती हैं, जिसके कारण अपना हित बना रहता हो, खुद की कोई एक सीमित इच्छा भी बनी रहती हो, तो वह भी आदमी को शिस्त में बाँधती है। कैसा भी अशिस्त करने वाला इंसान हो, लेकिन इसमें उसे शिस्त बाँधती है। और इसलिए कैसे हालात हैं इसके आधार पर होता है। इसलिए मित्रों, शिस्त को किसी चौखट में देखें और उसी प्रकार से मूल्यांकन करें तो शायद वह सामर्थ्य नहीं आ सकता।

 

हम एक समाज के रूप में... हममें अनेक शक्तियाँ पडी हैं, अपार शक्तियों का भंडार है, मित्रों। हमारी पूरी परिवार व्यवस्था, अभी शायद इसके उपर ज्यादा अध्ययन हुए नहीं हैं, लेकिन फ़ैमिली नाम की जो इन्स्टिटूशन है, शायद उस से बड़ी अनुशासन की संरचना और कहीं नहीं होगी। अदभुत व्यवस्था है। किसी कानून में लिखी हुई व्यवस्था नहीं है, लेकिन अदभुत व्यवस्था है। हाँ, जहाँ इसका धावन हुआ होगा, वहाँ अस्त-व्यस्त भी हुआ होगा। लेकिन जहाँ थोड़ा सा भी बना रहा होगा, तो उसका आनंद भी होगा। इस फ़ैमिली इन्स्टिटूट के अंदर हमारे यहाँ जो चीज़ें हैं इनके विस्तार की ज़रूरत है। जो अनुशासन मेरे परिवार के विकास का और आनंद का कारण बना है, वह मेरे परिवार से विस्तृत होकर मेरे समाज में आए, मेरे समाज से विस्तृत होकर मेरे गाँव में आए, मेरे गाँव से विस्तृत होकर मेरे राज्य में आए और मेरे राज्य से विस्तृत होकर मेरे देश का हिस्सा बने और यदि इस क्रम को हम आगे बढ़ाएंगे तो मैं मानता हूँ कि ‘इक्कीसवीं सदी, हिंदुस्तान की सदी’, यह जो सपना लेकर हम चल रहे हैं, इसकी मूलभूत आवश्यकता पूरी करने का एक आधार बन सकता है।

 

भाई राजीव गुप्ता को अभिनंदन देता हूँ, जिनकी मातृभाषा गुजराती नहीं है और फिर भी पुस्तक गुजराती में लिखा है इसके लिए सबसे पहले अभिनंदन और छोटे-छोटे इनके रोज़ाना कार्यों में से उन्हों ने अनुभव लिए हैं। मैं भी आते जाते ज़रूर इसे
पढूंगा, आप भी पढ़ना। मेरे लिए नहीं कहता हूँ लेकिन प्रकाशक खुश हो गए...

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December 21, 2024
कुवैत में प्रवासी भारतीयों की गर्मजोशी और स्नेह असाधारण है: प्रधानमंत्री
43 वर्षों के बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री कुवैत की यात्रा कर रहा है: प्रधानमंत्री
भारत और कुवैत के बीच सभ्यता, समुद्र और वाणिज्य का रिश्ता है: प्रधानमंत्री
भारत और कुवैत हमेशा एक-दूसरे के साथ खड़े रहे हैं: प्रधानमंत्री
भारत कुशल प्रतिभाओं की वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए पूरी तरह से सुसज्जित है: प्रधानमंत्री
भारत में स्मार्ट डिजिटल प्रणाली अब विलासिता की वस्तु नहीं रह गयी है, बल्कि यह आम आदमी के दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गयी है: प्रधानमंत्री
भविष्य का भारत वैश्विक विकास का केंद्र होगा, दुनिया का विकास इंजन होगा: प्रधानमंत्री
भारत, एक विश्व मित्र के रूप में, विश्व की भलाई के दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ रहा है: प्रधानमंत्री

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

नमस्कार,

अभी दो ढाई घंटे पहले ही मैं कुवैत पहुंचा हूं और जबसे यहां कदम रखा है तबसे ही चारों तरफ एक अलग ही अपनापन, एक अलग ही गर्मजोशी महसूस कर रहा हूं। आप सब भारत क अलग अलग राज्यों से आए हैं। लेकिन आप सभी को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सामने मिनी हिन्दुस्तान उमड़ आया है। यहां पर नार्थ साउथ ईस्ट वेस्ट हर क्षेत्र के अलग अलग भाषा बोली बोलने वाले लोग मेरे सामने नजर आ रहे हैं। लेकिन सबके दिल में एक ही गूंज है। सबके दिल में एक ही गूंज है - भारत माता की जय, भारत माता की जय I

यहां हल कल्चर की festivity है। अभी आप क्रिसमस और न्यू ईयर की तैयारी कर रहे हैं। फिर पोंगल आने वाला है। मकर सक्रांति हो, लोहड़ी हो, बिहू हो, ऐसे अनेक त्यौहार बहुत दूर नहीं है। मैं आप सभी को क्रिसमस की, न्यू ईयर की और देश के कोने कोने में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों की बहुत बहुत शुभकानाएं देता हूं।

साथियों,

आज निजी रूप से मेरे लिए ये पल बहुत खास है। 43 years, चार दशक से भी ज्यादा समय, 43 years के बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री कुवैत आया है। आपको हिन्दुस्तान से यहां आना है तो चार घंटे लगते हैं, प्रधानमंत्री को चार दशक लग गए। आपमे से कितने ही साथी तो पीढ़ियों से कुवैत में ही रह रहे हैं। बहुतों का तो जन्म ही यहीं हुआ है। और हर साल सैकड़ों भारतीय आपके समूह में जुड़ते जाते हैं। आपने कुवैत के समाज में भारतीयता का तड़का लगाया है, आपने कुवैत के केनवास पर भारतीय हुनर का रंग भरा है। आपने कुवैत में भारत के टेलेंट, टेक्नॉलोजी और ट्रेडिशन का मसाला मिक्स किया है। और इसलिए मैं आज यहां सिर्फ आपसे मिलने ही नहीं आया हूं, आप सभी की उपलब्धियों को सेलिब्रेट करने के लिए आया हूं।

साथियों,

थोड़ी देर पहले ही मेरे यहां काम करने वाले भारतीय श्रमिकों प्रोफेशनल्श् से मुलाकात हुई है। ये साथी यहां कंस्ट्रक्शन के काम से जुड़े हैं। अन्य अनेक सेक्टर्स में भी अपना पसीना बहा रहे हैं। भारतीय समुदाय के डॉक्टर्स, नर्सज पेरामेडिस के रूप में कुवैत के medical infrastructure की बहुत बड़ी शक्ति है। आपमें से जो टीचर्स हैं वो कुवैत की अगली पीढ़ी को मजबूत बनाने में सहयोग कर रही है। आपमें से जो engineers हैं, architects हैं, वे कुवैत के next generation infrastructure का निर्माण कर रहे हैं।

और साथियों,

जब भी मैं कुवैत की लीडरशिप से बात करता हूं। तो वो आप सभी की बहुत प्रशंसा करते हैं। कुवैत के नागरिक भी आप सभी भारतीयों की मेहनत, आपकी ईमानदारी, आपकी स्किल की वजह से आपका बहुत मान करते हैं। आज भारत रेमिटंस के मामले में दुनिया में सबसे आगे है, तो इसका बहुत बड़ा श्रेय भी आप सभी मेहनतकश साथियों को जाता है। देशवासी भी आपके इस योगदान का सम्मान करते हैं।

साथियों,

भारत और कुवैत का रिश्ता सभ्यताओं का है, सागर का है, स्नेह का है, व्यापार कारोबार का है। भारत और कुवैत अरब सागर के दो किनारों पर बसे हैं। हमें सिर्फ डिप्लोमेसी ही नहीं बल्कि दिलों ने आपस में जोड़ा है। हमारा वर्तमान ही नहीं बल्कि हमारा अतीत भी हमें जोड़ता है। एक समय था जब कुवैत से मोती, खजूर और शानदार नस्ल के घोड़े भारत जाते थे। और भारत से भी बहुत सारा सामान यहां आता रहा है। भारत के चावल, भारत की चाय, भारत के मसाले,कपड़े, लकड़ी यहां आती थी। भारत की टीक वुड से बनी नौकाओं में सवार होकर कुवैत के नाविक लंबी यात्राएं करते थे। कुवैत के मोती भारत के लिए किसी हीरे से कम नहीं रहे हैं। आज भारत की ज्वेलरी की पूरी दुनिया में धूम है, तो उसमें कुवैत के मोतियों का भी योगदान है। गुजरात में तो हम बड़े-बुजुर्गों से सुनते आए हैं, कि पिछली शताब्दियों में कुवैत से कैसे लोगों का, व्यापारी-कारोबारियों का आना-जाना रहता था। खासतौर पर नाइनटीन्थ सेंचुरी में ही, कुवैत से व्यापारी सूरत आने लगे थे। तब सूरत, कुवैत के मोतियों के लिए इंटरनेशनल मार्केट हुआ करता था। सूरत हो, पोरबंदर हो, वेरावल हो, गुजरात के बंदरगाह इन पुराने संबंधों के साक्षी हैं।

कुवैती व्यापारियों ने गुजराती भाषा में अनेक किताबें भी पब्लिश की हैं। गुजरात के बाद कुवैत के व्यापारियों ने मुंबई और दूसरे बाज़ारों में भी उन्होंने अलग पहचान बनाई थी। यहां के प्रसिद्ध व्यापारी अब्दुल लतीफ अल् अब्दुल रज्जाक की किताब, How To Calculate Pearl Weight मुंबई में छपी थी। कुवैत के बहुत सारे व्यापारियों ने, एक्सपोर्ट और इंपोर्ट के लिए मुंबई, कोलकाता, पोरबंदर, वेरावल और गोवा में अपने ऑफिस खोले हैं। कुवैत के बहुत सारे परिवार आज भी मुंबई की मोहम्मद अली स्ट्रीट में रहते हैं। बहुत सारे लोगों को ये जानकर हैरानी होगी। 60-65 साल पहले कुवैत में भारतीय रुपए वैसे ही चलते थे, जैसे भारत में चलते हैं। यानि यहां किसी दुकान से कुछ खरीदने पर, भारतीय रुपए ही स्वीकार किए जाते थे। तब भारतीय करेंसी की जो शब्दाबली थी, जैसे रुपया, पैसा, आना, ये भी कुवैत के लोगों के लिए बहुत ही सामान्य था।

साथियों,

भारत दुनिया के उन पहले देशों में से एक है, जिसने कुवैत की स्वतंत्रता के बाद उसे मान्यता दी थी। और इसलिए जिस देश से, जिस समाज से इतनी सारी यादें जुड़ी हैं, जिससे हमारा वर्तमान जुड़ा है। वहां आना मेरे लिए बहुत यादगार है। मैं कुवैत के लोगों का, यहां की सरकार का बहुत आभारी हूं। मैं His Highness The Amir का उनके Invitation के लिए विशेष रूप से धन्यवाद देता हूं।

साथियों,

अतीत में कल्चर और कॉमर्स ने जो रिश्ता बनाया था, वो आज नई सदी में, नई बुलंदी की तरफ आगे बढ़ रहा है। आज कुवैत भारत का बहुत अहम Energy और Trade Partner है। कुवैत की कंपनियों के लिए भी भारत एक बड़ा Investment Destination है। मुझे याद है, His Highness, The Crown Prince Of Kuwait ने न्यूयॉर्क में हमारी मुलाकात के दौरान एक कहावत का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था- “When You Are In Need, India Is Your Destination”. भारत और कुवैत के नागरिकों ने दुख के समय में, संकटकाल में भी एक दूसरे की हमेशा मदद की है। कोरोना महामारी के दौरान दोनों देशों ने हर स्तर पर एक-दूसरे की मदद की। जब भारत को सबसे ज्यादा जरूरत पड़ी, तो कुवैत ने हिंदुस्तान को Liquid Oxygen की सप्लाई दी। His Highness The Crown Prince ने खुद आगे आकर सबको तेजी से काम करने के लिए प्रेरित किया। मुझे संतोष है कि भारत ने भी कुवैत को वैक्सीन और मेडिकल टीम भेजकर इस संकट से लड़ने का साहस दिया। भारत ने अपने पोर्ट्स खुले रखे, ताकि कुवैत और इसके आसपास के क्षेत्रों में खाने पीने की चीजों का कोई अभाव ना हो। अभी इसी साल जून में यहां कुवैत में कितना हृदय विदारक हादसा हुआ। मंगफ में जो अग्निकांड हुआ, उसमें अनेक भारतीय लोगों ने अपना जीवन खोया। मुझे जब ये खबर मिली, तो बहुत चिंता हुई थी। लेकिन उस समय कुवैत सरकार ने जिस तरह का सहयोग किया, वो एक भाई ही कर सकता है। मैं कुवैत के इस जज्बे को सलाम करूंगा।

साथियों,

हर सुख-दुख में साथ रहने की ये परंपरा, हमारे आपसी रिश्ते, आपसी भरोसे की बुनियाद है। आने वाले दशकों में हम अपनी समृद्धि के भी बड़े पार्टनर बनेंगे। हमारे लक्ष्य भी बहुत अलग नहीं है। कुवैत के लोग, न्यू कुवैत के निर्माण में जुटे हैं। भारत के लोग भी, साल 2047 तक, देश को एक डवलप्ड नेशन बनाने में जुटे हैं। कुवैत Trade और Innovation के जरिए एक Dynamic Economy बनना चाहता है। भारत भी आज Innovation पर बल दे रहा है, अपनी Economy को लगातार मजबूत कर रहा है। ये दोनों लक्ष्य एक दूसरे को सपोर्ट करने वाले हैं। न्यू कुवैत के निर्माण के लिए, जो इनोवेशन, जो स्किल, जो टेक्नॉलॉजी, जो मैनपावर चाहिए, वो भारत के पास है। भारत के स्टार्ट अप्स, फिनटेक से हेल्थकेयर तक, स्मार्ट सिटी से ग्रीन टेक्नॉलजी तक कुवैत की हर जरूरत के लिए Cutting Edge Solutions बना सकते हैं। भारत का स्किल्ड यूथ कुवैत की फ्यूचर जर्नी को भी नई स्ट्रेंथ दे सकता है।

साथियों,

भारत में दुनिया की स्किल कैपिटल बनने का भी सामर्थ्य है। आने वाले कई दशकों तक भारत दुनिया का सबसे युवा देश रहने वाला है। ऐसे में भारत दुनिया की स्किल डिमांड को पूरा करने का सामर्थ्य रखता है। और इसके लिए भारत दुनिया की जरूरतों को देखते हुए, अपने युवाओं का स्किल डवलपमेंट कर रहा है, स्किल अपग्रेडेशन कर रहा है। भारत ने हाल के वर्षों में करीब दो दर्जन देशों के साथ Migration और रोजगार से जुड़े समझौते किए हैं। इनमें गल्फ कंट्रीज के अलावा जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, मॉरिशस, यूके और इटली जैसे देश शामिल हैं। दुनिया के देश भी भारत की स्किल्ड मैनपावर के लिए दरवाज़े खोल रहे हैं।

साथियों,

विदेशों में जो भारतीय काम कर रहे हैं, उनके वेलफेयर और सुविधाओं के लिए भी अनेक देशों से समझौते किए जा रहे हैं। आप ई-माइग्रेट पोर्टल से परिचित होंगे। इसके ज़रिए, विदेशी कंपनियों और रजिस्टर्ड एजेंटों को एक ही प्लेटफॉर्म पर लाया गया है। इससे मैनपावर की कहां जरूरत है, किस तरह की मैनपावर चाहिए, किस कंपनी को चाहिए, ये सब आसानी से पता चल जाता है। इस पोर्टल की मदद से बीते 4-5 साल में ही लाखों साथी, यहां खाड़ी देशों में भी आए हैं। ऐसे हर प्रयास के पीछे एक ही लक्ष्य है। भारत के टैलेंट से दुनिया की तरक्की हो और जो बाहर कामकाज के लिए गए हैं, उनको हमेशा सहूलियत रहे। कुवैत में भी आप सभी को भारत के इन प्रयासों से बहुत फायदा होने वाला है।

साथियों,

हम दुनिया में कहीं भी रहें, उस देश का सम्मान करते हैं और भारत को नई ऊंचाई छूता देख उतने ही प्रसन्न भी होते हैं। आप सभी भारत से यहां आए, यहां रहे, लेकिन भारतीयता को आपने अपने दिल में संजो कर रखा है। अब आप मुझे बताइए, कौन भारतीय होगा जिसे मंगलयान की सफलता पर गर्व नहीं होगा? कौन भारतीय होगा जिसे चंद्रयान की चंद्रमा पर लैंडिंग की खुशी नहीं हुई होगी? मैं सही कह रहा हूं कि नहीं कह रहा हूं। आज का भारत एक नए मिजाज के साथ आगे बढ़ रहा है। आज भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी इकॉनॉमी है। आज दुनिया का नंबर वन फिनटेक इकोसिस्टम भारत में है। आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम भारत में है। आज भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता देश है।

मैं आपको एक आंकड़ा देता हूं और सुनकर आपको भी अच्छा लगेगा। बीते 10 साल में भारत ने जितना ऑप्टिकल फाइबर बिछाया है, भारत में जितना ऑप्टिकल फाइबर बिछाया है, उसकी लंबाई, वो धरती और चंद्रमा की दूरी से भी आठ गुना अधिक है। आज भारत, दुनिया के सबसे डिजिटल कनेक्टेड देशों में से एक है। छोटे-छोटे शहरों से लेकर गांवों तक हर भारतीय डिजिटल टूल्स का उपयोग कर रहा है। भारत में स्मार्ट डिजिटल सिस्टम अब लग्जरी नहीं, बल्कि कॉमन मैन की रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो गया है। भारत में चाय पीते हैं, रेहड़ी-पटरी पर फल खरीदते हैं, तो डिजिटली पेमेंट करते हैं। राशन मंगाना है, खाना मंगाना है, फल-सब्जियां मंगानी है, घर का फुटकर सामान मंगाना है, बहुत कम समय में ही डिलिवरी हो जाती है और पेमेंट भी फोन से ही हो जाता है। डॉक्यूमेंट्स रखने के लिए लोगों के पास डिजि लॉकर है, एयरपोर्ट पर सीमलैस ट्रेवेल के लिए लोगों के पास डिजियात्रा है, टोल बूथ पर समय बचाने के लिए लोगों के पास फास्टटैग है, भारत लगातार डिजिटली स्मार्ट हो रहा है और ये तो अभी शुरुआत है। भविष्य का भारत ऐसे इनोवेशन्स की तरफ बढ़ने वाला है, जो पूरी दुनिया को दिशा दिखाएगा। भविष्य का भारत, दुनिया के विकास का हब होगा, दुनिया का ग्रोथ इंजन होगा। वो समय दूर नहीं जब भारत दुनिया का Green Energy Hub होगा, Pharma Hub होगा, Electronics Hub होगा, Automobile Hub होगा, Semiconductor Hub होगा, Legal, Insurance Hub होगा, Contracting, Commercial Hub होगा। आप देखेंगे, जब दुनिया के बड़े-बड़े Economy Centres भारत में होंगे। Global Capability Centres हो, Global Technology Centres हो, Global Engineering Centres हो, इनका बहुत बड़ा Hub भारत बनेगा।

साथियों,

हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। भारत एक विश्वबंधु के रूप में दुनिया के भले की सोच के साथ आगे चल रहा है। और दुनिया भी भारत की इस भावना को मान दे रही है। आज 21 दिसंबर, 2024 को दुनिया, अपना पहला World Meditation Day सेलीब्रेट कर रही है। ये भारत की हज़ारों वर्षों की Meditation परंपरा को ही समर्पित है। 2015 से दुनिया 21 जून को इंटरनेशन योगा डे मनाती आ रही है। ये भी भारत की योग परंपरा को समर्पित है। साल 2023 को दुनिया ने इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर के रूप में मनाया, ये भी भारत के प्रयासों और प्रस्ताव से ही संभव हो सका। आज भारत का योग, दुनिया के हर रीजन को जोड़ रहा है। आज भारत की ट्रेडिशनल मेडिसिन, हमारा आयुर्वेद, हमारे आयुष प्रोडक्ट, ग्लोबल वेलनेस को समृद्ध कर रहे हैं। आज हमारे सुपरफूड मिलेट्स, हमारे श्री अन्न, न्यूट्रिशन और हेल्दी लाइफस्टाइल का बड़ा आधार बन रहे हैं। आज नालंदा से लेकर IITs तक का, हमारा नॉलेज सिस्टम, ग्लोबल नॉलेज इकोसिस्टम को स्ट्रेंथ दे रहा है। आज भारत ग्लोबल कनेक्टिविटी की भी एक अहम कड़ी बन रहा है। पिछले साल भारत में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान, भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर की घोषणा हुई थी। ये कॉरिडोर, भविष्य की दुनिया को नई दिशा देने वाला है।

साथियों,

विकसित भारत की यात्रा, आप सभी के सहयोग, भारतीय डायस्पोरा की भागीदारी के बिना अधूरी है। मैं आप सभी को विकसित भारत के संकल्प से जुड़ने के लिए आमंत्रित करता हूं। नए साल का पहला महीना, 2025 का जनवरी, इस बार अनेक राष्ट्रीय उत्सवों का महीना होने वाला है। इसी साल 8 से 10 जनवरी तक, भुवनेश्वर में प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन होगा, दुनियाभर के लोग आएंगे। मैं आप सब को, इस कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करता हूं। इस यात्रा में, आप पुरी में महाप्रभु जगन्नाथ जी का आशीर्वाद ले सकते हैं। इसके बाद प्रयागराज में आप महाकुंभ में शामिल होने के लिए प्रयागराज पधारिये। ये 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलने वाला है, करीब डेढ़ महीना। 26 जनवरी को आप गणतंत्र दिवस देखकर ही वापस लौटिए। और हां, आप अपने कुवैती दोस्तों को भी भारत लाइए, उनको भारत घुमाइए, यहां पर कभी, एक समय था यहां पर कभी दिलीप कुमार साहेब ने पहले भारतीय रेस्तरां का उद्घाटन किया था। भारत का असली ज़ायका तो वहां जाकर ही पता चलेगा। इसलिए अपने कुवैती दोस्तों को इसके लिए ज़रूर तैयार करना है।

साथियों,

मैं जानता हूं कि आप सभी आज से शुरु हो रहे, अरेबियन गल्फ कप के लिए भी बहुत उत्सुक हैं। आप कुवैत की टीम को चीयर करने के लिए तत्पर हैं। मैं His Highness, The Amir का आभारी हूं, उन्होंने मुझे उद्घाटन समारोह में Guest Of Honour के रूप में Invite किया है। ये दिखाता है कि रॉयल फैमिली, कुवैत की सरकार, आप सभी का, भारत का कितना सम्मान करती है। भारत-कुवैत रिश्तों को आप सभी ऐसे ही सशक्त करते रहें, इसी कामना के साथ, फिर से आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद!

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय!

बहुत-बहुत धन्यवाद।