अहमदाबाद

दि. २१/१२/२०११

 

सार्वजनिक अनुशासन के कार्यक्रम में विलंब से आया इसके बदले मैं आप सब से क्षमा चाहता हूँ और भाई राजीव गुप्ता को विश्वास दिलाता हूँ कि आपके पुस्तक के प्रकाशन के समाचार कल जरूर छ्पेंगे और प्रकाशक को भी विश्वास देता हूँ कि आपको किसी भी तरह के निजी खर्च के बग़ैर पब्लिसिटी मिलेगी। कारण, पुस्तक सार्वजनिक शिस्त का हो और मुख्यमंत्री ही अशिस्त करे तो वह चौखटा बने ही और सम्भव है कि विनोदभाई को अगले सप्ताह कुछ मसाला मिल जाए। मित्रों, मैं सुबह बिल्कुल अनुशासित ढंग में शुरु करता हूँ लेकिन मिलने आने वाले, काम लेकर आने वाले, महज दो-चार मिनट भी ज़्यादा लें तो शाम होते होते समय का पालन करना मुश्किल हो जाता है। इसके परिणाम आप सबको इंतज़ार करना पडा और कारण कितने भी हों लेकिन सच्चाई यही है कि मैं देरी से आया।

कई बार एक विचार मेरे मन में आता है कि भाई, एक विषय में, वेस्टर्न वर्ल्ड और हमारे लोगों में कहाँ फर्क पाया जाता है? उदा. हाइजीन, पर्सनल हाइजीन और सोशल हाइजीन। हमारे यहाँ ऐसे संस्कार हैं और ऐसी परम्पराएं रही हैं कि व्यक्तिगत और स्वास्थ्य के मामलों में बहुत जागरूकता हमारे सामाजिक जीवन के भीतर पडी हैं। कुछ चीज़ों को छूने का नहीं, कुछ चीज़ों को लेने का नहीं, भोजन के समय ऐसा करने का... इतने सारे नियमों को घर के अंदर हम सबने देखे हैं। पानी के उपयोग की बाबत में भी नियम देखे हैं, बर्तन के उपयोग के संबंध में... हर घर में इस प्रकार के नियम होते ही हैं और सदियों से यह परम्पराएं विकसित हुई हैं। स्नान करने का, रेग्युलर करने का... यह सारी चीज़ों का आग्रह, पर्सनल हाइजीन के मामलों में, हमारे यहाँ बिलकुल जन्मगत है। लेकिन सोशल हाइजीन के मामले में? कचरा कहीं भी फेंकना... उसमें हम जागरूक नहीं हैं। जब कि वेस्टर्न वर्ल्ड में? ज़रूरी नहीं है कि ऑफिस नहाकर जाना चाहिए और ज्यादातर लोग वहाँ शाम को आकर स्नान करते हैं। हमारे यहाँ स्नान, पूजा-पाठ करके कोई पवित्र काम करने जाना हो ऐसे तैयार होते हैं। मैं यहाँ कोई पश्चिम की आलोचना करने नहीं आया हूँ, बात को समझने के लिए उपयोग कर रहा हूँ। लेकिन सोशल हाइजीन में, सब नियमों का पालन करते हैं और इसके कारण यह स्वच्छता, कुछ बाबतों और इनके नॉर्म्स हमें सीखने जैसे लगें। अब अगर इन दोनों का कॉम्बिनेशन हो तो पर्सनल हाइजीन और सोशल हाइजीन दोनों की सुरक्षा बनी रहे।

जैसे यह एक बाबत है, वैसे ही यह शिस्त की बाबत है। हमारे यहाँ व्यक्तिगत जीवन के अंदर कितनी ही शिस्त क्यों न हो, लेकिन समूह में हम बिल्कुल अलग होते हैं। अभी मैं दो दिन पहले सूरत में था, मेरा सदभावना मिशन का कार्यक्रम चल रहा था। वहाँ सामने एक दूसरा कार्यक्रम चल रहा था। उनका यह रिवाज है, आज भी कुछ पैरेलल किसी पुस्तक का विमोचन हो रहा होगा... विजय, आपको कहता हूँ, लेकिन शायद किसी ने नहीं रखा होगा। वहाँ एक मंत्रीश्री के जन्मदिन की कुछ ४७ किलो की केक थी और उसकी लूट-मार के द्रश्य देखे टी.वी. पर, तो मुझे लगा कि अरे, यह जन्मदिन के साथ ऐसा? कारण क्या? यदि थोड़ा सा भी सार्वजनिक अनुशासन का अभाव न होता, तो वह द्रश्य कितना उत्तम होता और कितना गौरवपूर्ण होता, लेकिन वही घटना ने कैसा विचित्र रूप धारण कर लिया। हमारे यहाँ जहाँ धार्मिक मामले होते हैं वहाँ की विशेषता देखें। बहुत कम मंदिर होंगे जहाँ ‘जूते यहाँ उतारें’ ऐसा लिखा होगा, बहुत कम मंदिर होंगे। ज़माने के बदलने के साथ अब ऐसा लिखना पडता है, जैसे आज से ५० साल पहले, ‘शुद्ध घी की दुकान’ ऐसा बोर्ड मैंने तो नहीं पढ़ा था! ५० साल पहले हमारे यहाँ ऐसा नहीं था, लेकिन आज लिखना पडता है, ‘शुद्ध घी की दुकान’, क्योंकि बाजार में दूसरा अवेलेबल है। तो, ‘जूते यहाँ उतारें’ ऐसा कभी लिखना नहीं पडता था और अब स्थिति बदल चुकी है। वह जो था उसका कारण, संस्कार। कोई नोर्म्स लिखे नहीं थे। आप विचार करो कि हमारे यहाँ कुंभ का मेला होता है, उस कुंभ के मेलें में हर रोज़ गंगा के किनारे एक पूरा ऑस्ट्रेलिया इकठ्ठा होता है, आप विचार करो..! और फिर भी कोई बड़ी कैआटिक घटनाएं हमारे सुनने में नहीं आती हैं। और इसके मूल में वह जो धर्म-तत्व पड़ा है, जो कुछ उसे खींचता है, जो कुछ उसे बांधता है, उसे कहीं जोड़ता है और इसके कारण उस समग्र व्यवस्था में व्यवस्थापक कैटलिक एजेंट होते हैं, समाज स्वयं ही व्यवस्था का वहन करता है। और जहाँ व्यवस्था का वहन करने का सामर्थ्य हो, वहाँ व्यवस्था अपने आप फैलती है, अपने आप विकसित होती है। उसका स्केल कितना भी बड़ा हो, वह व्यवस्था विकसित होती जाती है, फैलती जाती है।

हमारे समाज जीवन के अंदर, कई बार हम कहते हैं कि दुनिया के अनेक देश जो हमारे बाद आजाद हुए, फिर भी आगे निकल गए। तो कारण क्या है? मुख्य कारण लगभग यही आता है कि एक समाज के रूप में उनमें डिसीप्लिन है। अभी मुझे एक मित्र मिले, वह जापान जा कर आये थे। अमीर परिवार के थे तो वहाँ की महंगी से महंगी होटेल के स्वीट में उनका बुकिंग था। लेकिन वहाँ सूचना थी कि २६ डिग्री टेम्परेचर से ज़्यादा रूम ठंडा नहीं हो सकेगा, कितना भी पेमेन्ट दो फिर भी यह नहीं होगा। क्यों? तो कहा कि सुनामी और अर्थक्वेक के बाद हमारे वहाँ पावर जनरेशन की जो समस्या खड़ी हुई है इसलिए एक राष्ट्र के रूप में हमने निर्णय लिया है कि सबको एनर्जी कन्सर्वेशन करने का। और इसके लिए २६ डिग्री से नीचे टेम्परेचर ले जाने के लिए किसी भी प्रकार से ऊर्जा का उपयोग नहीं करने का, इसलिए आपको २६ डिग्री में ही रहना होगा। और पूरा जापान इसका अमल करता है, मैं यह हाल ही की सुनामी के बाद की घटना कह रहा हूँ। हमारे यहाँ अगर गल्ती से भी ऐसा कोई निर्णय करें तो क्या हो उसकी आप कल्पना कर सकते हैं, साहब..! बाकी सारे समाचार गौण बन जाए, यही हेड्लाइन हो। काले झंडे, मोर्चे इसीके कार्यक्रम चलते हों। कारण? एक समाज के रूप में अनुशासन तभी आता है, जब एक समाज के रूप में जिम्मेदारी का तत्व प्रमुख होता है। सोशल रिस्पाँन्सबिलिटी के बग़ैर सोशल डिसप्लिन किसी को आवश्यक ही नहीं लगेगी और इसलिए सामाजिक जिम्मेदारी का वातावरण बनाना पडे। दुर्भाग्य से, देश आजाद होने के बाद हमारे यहाँ अधिकार के तत्व को महत्त्व ज्यादा मिला। देश आजाद हुआ तब तक पूरे देश का वातावरण था, फ़र्ज का। देशसेवा करना हमारा फ़र्ज है, स्वदेशी हमारा फ़र्ज है, शिक्षा हमारा फ़र्ज है, खादी पहनना हमारा फ़र्ज है। गांधीजी ने जब लोगों के मन में बिठा दिया था कि यह सब तो हमारे फ़र्ज का एक भाग है, हमें देश को आजाद कराना है। लेकिन, देश आजाद हो जाने के बाद हमें ऐसा लगा कि अब तो फ़र्जों का काल समाप्त हो गया है, अब तो अधिकारों का काल है। और इसके कारण हमारी पूरी सोच अधिकार के आसपास है और इसके कारण परिणाम यह हुआ है कि हर चीज़ में ‘मेरा क्या?’ हमारी पूरी रचना ही ऐसी बनी है कि कुछ भी हो, पहला सवाल उठता है मन में कि ‘मेरा क्या?’ और ‘मेरा क्या?’ का अगर पॉज़िटिव जवाब नहीं मिलता है, तो तुरंत ही मन जवाब देता है कि ‘तो फिर मुझे क्या?’। जब तक ‘मेरा क्या?’ का उत्तर मिलने वाला है, तब तक उसे धीरज है, लेकिन जिस दिन नकारात्मक उत्तर मिल गया, उसी पल उसकी आत्मा कह उठती है, “मुझे क्या? फोड़ो भाई, आपका है, करना...” और यही अशिस्त को जन्म देता है।

शिस्त कोई आपके बोलने-चालने का, डिसीप्लिन के दायरे का विषय नहीं है। शिस्त समाज की विकास यात्रा की ओर देखने के द्रष्टिकोण का एक हिस्सा है। आप पूरी इस विकास यात्रा को किस द्रष्टिकोण से देखते हैं, इसके आधार पर होता है। एक माँ-बाप अपने बच्चों को कैसे संस्कार देना चाहते हैं, उसके आधार पर तय होता है कि बच्चों को किस प्रकार की शिस्त में आप पालन करना चाहते हैं। माँ-बाप घर में हो, किसी का टेलीफोन आए, पिताजी घर में हो और पिताजी कहे कि, “ऐसा कह दो कि पापा बाहर गये हैं”, फिर पापा अपेक्षा करे कि मेरा बेटा झूठ न बोले, इम्पॉसिबल। लेकिन जब मैं यह कहता हूँ तब मेरे दिमाग में मेरा बेटा नहीं होता है, मेरे दिमाग में सामने वाले का टेलिफोन होता है और इसके कारण, एकाकी थिंकिंग होने के कारण, मैं मेरी पूरी परिस्थिति पर इसका प्रभाव क्या पड सकता है इसका अनुमान तक नहीं कर सकता। ज्यादातर लोगों को बस में जाते हमने देखे होंगे। अकेला पैसेन्जर होता है तो वह क्या करता होता है? कोई हो तो खिड़की में से प्राकृतिक सुंदरता को देखे या हरियाली... लेकिन ज्यादातर क्या करते हैं? बस की सीट में, यहाँ कोई बाकी नहीं होगा... और इसके फ़ोम में से छोटी-छोटी-छोटी कतरन बाहर निकाले। साहब, यहाँ से वडोदरा उतरे तब तक दो इंच का गड्ढा बना दे। किसी का नुकसान करना चाहता था? नहीं। उसमें कोई स्पेशल एन्टर्टेन्मेन्ट था? नहीं। लेकिन एक स्वभाव का, संस्कार का अभाव। और उसे ऐसा लगता ही नहीं था कि यह मेरी संपत्ति है और इसलिए उसे दो इंच का गड्ढा बना देने में कुछ होता नहीं था। बिल्कुल नई बस रखी हो, बढ़िया बस रखी हो तो ड्राइवर को भी ऐसे गर्व होता होगा और वह बस अच्छी तरह से चलाता हो और फिर भी शाम को जब वह डिपो में पहुँचे तब कई सीट ऐसी होती हैं जिसमें दो-दो इंच के गड्ढे बने हो। यह सहज बात है। मैं कई बार नौजवानों को कहता हूँ कि भाई, हम चिल्ला चिल्ला कर बोलते हैं, “भारत माता की जय, भारत माता की जय... वंदे मातरम...” सब करते हैं, फिर? तुरंत ही पिचकारी मारते हैं। यही भारत माता पर गुटका खा कर तुरंत ही पिचकारी मारते हैं। उसे वह पता नहीं है कि जिस भारत माता का जय-जयकार कर रहा हूँ उसी पर ही पिचकारी मार कर गन्दगी कर रहा हूँ, क्या इसकी मुझे खबर है? लेकिन अगर उसे कोई यदि इस रेन्ज में बात समझाये तो उसे लगे कि हाँ, यार! छोटी छोटी बातें होती हैं, देशभक्ति इस से भी प्रकट हो सकती है। देशभक्ति प्रकट करने के लिए कोई भगत सिंह के रास्ते ही जाना पड़े ऐसा ज़रुरी नहीं है, भाई। मैं इतनी छोटी छोटी चीज़ें करके भी देशभक्ति, समाजभक्ति, पितृभक्ति, मातृभक्ति, गुरुभक्ति सब कुछ कर सकता हूँ।

कई बार नकारात्मकता... मैं एक बार एक कार्यक्रम में मुंबई गया था, दस एक साल हुए होंगे। और मेरे आश्चर्य के बीच कार्यक्रम के प्रवेशद्वार पर ही बचपन में मुझे जिन्हों ने पढ़ाया था वे मेरे शिक्षक खड़े थे और मैंने उन्हें ३५-४० साल बाद देखा होगा। मुझे बराबर याद आया कि हाँ, वही है। और सहज रूप से मैंने उन्हें प्रणाम किए,
पाँव छुए। सहज ही, यानी मुझे उसमें कुछ सोचने जैसा अवसर ही नहीं था। लेकिन उस दिन वह न्यूज़ बन गए। अब पैर छूना भी कोई न्यूज़ होता है, भाई? मेरे मन में वैसे आनंद होता है कि भाई मुख्यमंत्री की नम्रता देखो, ऐसा-वैसा, सब कुछ... लेकिन मुझे मन में प्रश्न होता है कि क्या यह न्यूज़ है, भाई? क्या इस राज्य में या इस देश में किसी भी नागरिक को उसके गुरुजन मिले तब उसके पाँव छूने के संस्कार सहज हो, लेकिन जब वह न्यूज़ बन जाते हैं तब एहसास होता है कि यह सब कैसे बंद हो गया है..! यह सहज प्रक्रियाएं, करने जैसी प्रक्रियाएं हमारे यहाँ जैसे आजकल गुनाह बन गया है। मुझे याद है हमारे गवर्नर साहब थे नवल किशोर शर्माजी, वैसे तो वे कांग्रेस के आदमी हैं, लेकिन मुझे सहज रूप से जब भी मैं जाऊं तब उनके पैर छूने का मन हो। सहज, मेरे क्रम में। लेकिन मुझे इतना सचेत रहना पडता था कि ये फोटोग्राफर बाहर जाए उसके बाद मैं मेरी विधि करुं। यह रहस्य आज खोल रहा हूँ। वरना साहब, जैसे अपराध हो गया हो..! राज्य का मुख्यमंत्री, वह इस प्रकार झुके? मित्रों, ये सारी जो बातें हैं, एक ऐसी विकृति धारण की है हमारे यहाँ जो कई बार हमारे संस्कार, हमारी शिस्त, हमारी जो परंपराएं हैं, इनके सामने संकट पैदा करने का जैसे एक योजनाबद्ध तरीके से प्रयास चालू है। और हम फिर विचलित हो जाते हैं, हमें भी डर लगने लगे। सार्वजनिक जीवन के अंदर यदि विकास की यात्रा करनी हो, व्यक्ति के जीवन में भी विकास करना हो, तो शिस्त बहुत ही काम में आती है।

शिस्त का दूसरा रूप है, ऑर्गनाइज़्ड होना। ज्यादातर लोग वैसे शिस्तबद्ध हों, लेकिन ज्यादा ऑर्गनाइज़्ड न हों और इसके कारण उनकी शिस्त हमें अक्सर ऐसे कष्ट देती है। हमारी शिस्त ऐसी नहीं होनी चाहिए कि दूसरों को कष्ट दे। आप मेले में चल रहे हो और फिर एक-दो, एक-दो करके चलो तो क्या हो? आपको तुरंत बाहर निकाले कि भाई, परेड करनी हो तो मैदान में जाओ। मेले में तो मेले की तरह ही चलना पडे आपको,
हल्के
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फुल्के होकर चलना पडे। तो मित्रों, ऑर्गनाइज़्ड होना और शिस्त का यह जो रूप पकड लिया है न वह तो इसका छोटा सा अंश है, पूर्णतया
जीवन के द्रष्टिकोण का एक हिस्सा, उस रूप में शिस्त को कैसे देखा जाता है।

 


मित्रों, ट्राइबल लोगों का अगर अध्ययन किया हो, बहुत प्रेरणा लेने जैसा है। आजकल बायो-फ्यूअल के लिए जैट्रोफा के उपयोग की चर्चा है न, इस विज्ञान में तो अभी अभी से जैट्रोफा की चर्चा चली है। हमारे डांग में जाओ, वहाँ आदिवासी भाईयों रात्रि गमन के दौरान जैट्रोफा का क्या अदभुत उपयोग करते हैं और कितना सिस्टमैटिक तरीके से करते हैं वह शिस्त देखने जैसी होती है और आज भी वह परंपरा है। एक तो, आदिवासी जब स्थानांतरण करते हों तब सब लाइन में ही चलते हैं। साथ साथ चले लेकिन हम जिस प्रकार गपशप करते हुए, कंधे टकराते हुए चलते हैं वैसे वे लोग नहीं चलेंगे। एक के पीछे दूसरा, दूसरे के पीछे तीसरा। मैंने उसमें से एक को पूछा था कि यह प्रणाली कैसे विकसित हुई होगी? उसका जो उत्तर था साहब, वो समझने जैसा था। सच है या झूठ उसकी कुछ मैंने जांच नहीं की है, लेकिन उसने जो उत्तर दिया वो मैं आपको कहता हूँ। उसने कहा कि साहब, हम जंगल में चल रहे हों, सांप या और कुछ हो तो पहले आदमी को ही फेस करना पडे, बाकी सब सुरक्षित रहे। अगर हम पूरी टोली चलें तो संभव है कि अनेक लोगों को नुकसान हो। यह शायद हमारी इस परंपरा में से ही विकसित हुआ होगा। जैट्रोफा का कैसे करते हैं? काँटा ले, काँटे में वह जैट्रोफा का बीज लगाए और उसे जलाए और चलें, उसकी रोशनी में चले। एक का पाँच-सात मिनट की दूरी पर ख़त्म हो तो दूसरे के हाथ में काँटा हो ही, वह तुरंत उसी से जला दे। दस लोग चलते हों, एक के बाद एक इतने डिसीप्लिन्ड तरीके से, माचिस की एक ही तीली से उनके जैट्रोफा के बीज की रोशनी में पूरी यात्रा इतने सिस्टमैटिक ढंग से पूर्ण करते हैं..! इसका अर्थ यह हुआ कि उन्होंने अपनी नीड में से एक फारमूला डेवलप की, जिसे अनुशासित किया और उसे जीवन के सालों तक चलाते रहे। कई बार इन सब बातों को हमारे समाज जीवन के रूप में कितना स्वीकार करते हैं इसके उपर निर्भर रहता है।

 

आज भी हमारे यहाँ मर्यादा नाम की चीज़ की ऊंचाई कितनी है? बहुत कम लोग अंदाजा लगा सकते हैं। आप बस में चढ़ने के लिए लाइन में खड़े हो, धक्का-मुक्की चल रही हो और कोई दूसरा आदमी खिड़की में से अपना रूमाल डालके सीट पर रख दे, आप अंदर बराबर धक्का-मुक्की करके, कपडे फ़ट जाए, पसीना हुआ हो और अंदर चढ़े हों, लेकिन वह आकर कहे कि मैंने रूमाल रखा हुआ है तो आप खड़े हो जाते हो। यह आपने देखा होगा..! उसने सिर्फ खिड़की में से रूमाल डाला है, उसने कोई कसरत नहीं की है। कारण? मर्यादा के संस्कार वैसे के वैसे पड़े होते हैं। मित्रों, समाज जीवन का इस प्रकार निरीक्षण करें तो कितने अदभुत अदभुत उदाहरण देखने को मिलते हैं और इसलिए शिस्त का जितना महत्त्व है उतना ही ऑर्गनाइज़्ड होना भी सफलता के लिए बहुत ज़रुरी है।

कई लोगों की शिस्त पूरे वातावरण के लिए बोझ बन जाती है। शिस्त ऐसी हो ही नहीं सकती कि जो बोझ बढ़ाए, शिस्त हमेशा सरलता देती है। आप ऐसे धीर-गंभीर चेहरा रख कर हमेशा चौबीस घंटे रहते हो साहब, इससे कुछ शिस्त नहीं आती है। शिस्त बोझ न बन जाए, शिस्त आल्हादक बन जाए, एक उत्साह के साथ हो और इसलिए शिस्त के उस रूप को जो पकड़ता है वही टीम फॉर्म कर सकता है, वही टीम से काम ले सकता है। जो शिस्त को सख्त नियमों में बाँधता है वह कभी भी टीम बना नहीं सकता। और इसलिए सार्वजनिक जीवन को भी मर्यादाओं की आवश्यकता होती है। इसमें वैल्यू एडिशन होना चाहिए, मूल्य वृद्धि होनी चाहिए। और नैतिक अधिस्थान और मूल्य में गहनता आए तो ही मूल्य वृद्धि होती है, अन्यथा संभव नहीं होता है। और इसलिए शिस्त को इस रूप में देखना चाहिए कि भाई, नियत कार्य समय पर करता है कि नहीं, इतने तक ही सीमित नहीं है।

कई लोग ऐसे हैं कि माँ कहती हो कि बेटे, अब तुम्हें सो जाना है। बेटा कहता है कि नहीं मां, मुझे कल इम्तिहान है। माँ कहती है कि बेटे, तुम बीमार हो, ज्यादा बीमार पड़ जाओगे, कल भी जागा था... अब एक अर्थ में अशिस्त है, लेकिन दूसरे अर्थ में अपने काम के लिए उसका डिवोशन है। वो शायद शिस्त से अधिक ऊंचाई रखता है और इसलिए इन दोनों को तौल नहीं सकते कि भाई, तुमने तुम्हारी मां की बात नहीं मानी। माँ ने बहुत अच्छा खाना बनाया हो और् बेटा कहे कि मुझे खाना नहीं है। कारण? मैं खाना खाऊंगा तो रात को मुझे नींद आएगी, मुझे पढ़ना है। और इसलिए माँ के जज़्बात को ठुकराकर भी, खाने को इनकार करके भी, वह पढ़ने में मशगूल रहे वह उसकी प्रतिबद्धता है। तो शिस्त की ऊंचाई से देखें तो शायद शिस्त लाई जा सकती है लेकिन मेरी शिस्त को तुमने माना नहीं और इसलिए तू निकम्मा है ऐसा स्टैन्ड अगर मां लेती है तो शायद न तो मां को संतोष होगा, न बेटे को संतोष होगा और न ही दोनों की विकास यात्रा में एक दूसरे के पूरक बन पायेंगे। और इसलिए इस ह्यूमन साइकी को किस प्रकार से लेते हैं इसके आधार पर शिस्त को जोड़ सकते हैं। शिस्त को आप उस अर्थ में नहीं ले सकते। अभी जो बाहर का उदाहरण कहा, मुझे तो अभी याद नहीं है कि क्या हुआ था क्योंकि मुझे तो रूटीन में कई बार ऐसा करना होता होगा। लेकिन यह कुछ भुजाओं का बल नहीं है मित्रों, भुजा के बल से नहीं होता है, भावना और प्रेम के एक वातावरण से वह स्थापित होता है।

मित्रों, शिस्त की पहली शर्त है, अपनत्व। अपनेपन का भाव ही शिस्त ला सकता है। आप जब तक अपनेपन के भाव की अनुभूति न करवाओ, तब तक आप शिस्त नहीं ही ला सकते। समाज जीवन में भी शिस्त लानी हो तो अपनेपन का भाव ज़रूरी होता है, अपनत्व का भाव ज़रूरी होता है और जहाँ अपनत्व हो वहाँ शिस्त स्वाभाविक होती है। कई बार आदमी को लक्ष्य जोड़ता है। थियेटर के अंदर शांति बनाये रखने के लिए कहना नहीं पडता, कारण? सबका इन्टरेस्ट है कि शांति रखें तो लाभ मिले और इसलिए शांति बनी रहती है और इसमें अगर कोई थोड़ी भी गड़बड़ करे तो पन्द्रह लोग ऐसे परेशानी से देखने लगे। इसका अर्थ यह हुआ कि यह जो स्वाभाविक अपेक्षाएं पड़ी होती हैं, जिसके कारण अपना हित बना रहता हो, खुद की कोई एक सीमित इच्छा भी बनी रहती हो, तो वह भी आदमी को शिस्त में बाँधती है। कैसा भी अशिस्त करने वाला इंसान हो, लेकिन इसमें उसे शिस्त बाँधती है। और इसलिए कैसे हालात हैं इसके आधार पर होता है। इसलिए मित्रों, शिस्त को किसी चौखट में देखें और उसी प्रकार से मूल्यांकन करें तो शायद वह सामर्थ्य नहीं आ सकता।

 

हम एक समाज के रूप में... हममें अनेक शक्तियाँ पडी हैं, अपार शक्तियों का भंडार है, मित्रों। हमारी पूरी परिवार व्यवस्था, अभी शायद इसके उपर ज्यादा अध्ययन हुए नहीं हैं, लेकिन फ़ैमिली नाम की जो इन्स्टिटूशन है, शायद उस से बड़ी अनुशासन की संरचना और कहीं नहीं होगी। अदभुत व्यवस्था है। किसी कानून में लिखी हुई व्यवस्था नहीं है, लेकिन अदभुत व्यवस्था है। हाँ, जहाँ इसका धावन हुआ होगा, वहाँ अस्त-व्यस्त भी हुआ होगा। लेकिन जहाँ थोड़ा सा भी बना रहा होगा, तो उसका आनंद भी होगा। इस फ़ैमिली इन्स्टिटूट के अंदर हमारे यहाँ जो चीज़ें हैं इनके विस्तार की ज़रूरत है। जो अनुशासन मेरे परिवार के विकास का और आनंद का कारण बना है, वह मेरे परिवार से विस्तृत होकर मेरे समाज में आए, मेरे समाज से विस्तृत होकर मेरे गाँव में आए, मेरे गाँव से विस्तृत होकर मेरे राज्य में आए और मेरे राज्य से विस्तृत होकर मेरे देश का हिस्सा बने और यदि इस क्रम को हम आगे बढ़ाएंगे तो मैं मानता हूँ कि ‘इक्कीसवीं सदी, हिंदुस्तान की सदी’, यह जो सपना लेकर हम चल रहे हैं, इसकी मूलभूत आवश्यकता पूरी करने का एक आधार बन सकता है।

 

भाई राजीव गुप्ता को अभिनंदन देता हूँ, जिनकी मातृभाषा गुजराती नहीं है और फिर भी पुस्तक गुजराती में लिखा है इसके लिए सबसे पहले अभिनंदन और छोटे-छोटे इनके रोज़ाना कार्यों में से उन्हों ने अनुभव लिए हैं। मैं भी आते जाते ज़रूर इसे
पढूंगा, आप भी पढ़ना। मेरे लिए नहीं कहता हूँ लेकिन प्रकाशक खुश हो गए...

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भाजपा की डबल इंजन की सरकारें सुशासन का प्रतीक बन रही हैं: जयपुर में पीएम
December 17, 2024
प्रधानमंत्री ने राजस्थान में ऊर्जा, सड़क, रेलवे और जल से संबंधित 46,300 करोड़ रुपये से अधिक लागत की 24 परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया
श्री मोदी ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें आज सुशासन का प्रतीक बन रही हैं
इन 10 वर्षों में हमने देश के लोगों को सुविधाएं प्रदान करने, उनके जीवन से कठिनाइयां कम करने पर बहुत ध्यान दिया है: श्री मोदी
हम समाधान प्रदान करने में विरोध नहीं, बल्कि सहयोग में विश्वास करते हैं: श्री मोदी
मैं वो दिन देख रहा हूं जब राजस्थान में पानी की कमी नहीं होगी, राज्य में विकास के लिए पर्याप्त पानी होगा: प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री ने कहा कि जल संसाधनों का संरक्षण, पानी की हर बूंद का उपयोग करना केवल सरकार की ही नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है
राजस्थान में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं, यह इस क्षेत्र में देश का अग्रणी राज्य बन सकता है: प्रधानमंत्री

भारत माता की जय।

भारत माता की जय।

गोविन्द की नगरी में गोविन्ददेव जी नै म्हारो घणो- घणो प्रणाम। सबनै म्हारो राम-राम सा!

राजस्थान के गवर्नर श्री हरिभाऊ बागड़े जी, राजस्थान के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा जी, मध्य प्रदेश से विशेष रूप से आज पधारे हुए हमारे लाडले मुख्यमंत्री मोहन यादव जी, केंद्र में मंत्री परिषद के मेरे साथी श्रीमान सी. आर. पाटिल जी, भागीरथ चौधरी जी, राजस्थान की डिप्टी सीएम दीया कुमारी जी, प्रेम चंद भैरवा जी, अन्य मंत्रिगण, सांसदगण, राजस्थान के विधायक, अन्य महानुभाव और राजस्थान के मेरे प्यारे भाइयों और बहनों। और जो वर्चुअली हमारे साथ जुड़े हुए हैं, राजस्थान की हजारों पंचायतों में एकत्र आए हुए सभी मेरे भाई-बहन।

मैं राजस्थान की जनता को, राजस्थान की भाजपा सरकार को, एक साल पूरा करने के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। और इस एक साल की यात्रा के बाद आप जब लाखों की तादाद में आशीर्वाद देने के लिए आए हैं, और मैं उस तरफ देख रहा था जब खुली जीप में आ रहा था, शायद जितने लोग पंडाल में हैं तीन गुना लोग बाहर नजर आ रहे थे। आप इतनी बड़ी तादाद में आशीर्वाद देने आए हैं, मेरा भी सौभाग्य है कि मैं आज आपके आशीर्वाद को प्राप्त कर सका। बीते एक वर्ष में राजस्थान के विकास को नई गति, नई दिशा देने में भजनलाल जी और उनकी पूरी टीम ने बहुत परिश्रम किया है। ये पहला वर्ष, एक प्रकार से आने वाले अनेक वर्षों की मज़बूत नींव बना है। और इसलिए, आज का उत्सव सरकार के एक साल पूरा होने तक सीमित नहीं है, ये राजस्थान के फैलते प्रकाश का भी उत्सव है, राजस्थान के विकास का भी उत्सव है।

अभी कुछ दिन पहले ही मैं इंवेस्टर समिट के लिए राजस्थान आया था। देश और दुनियाभर के बड़े-बड़े निवेशक, यहां जुटे थे। अब आज यहां 45-50 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक के प्रोजेक्ट्स का लोकार्पण और शिलान्यास हुआ है। ये प्रोजेक्ट, राजस्थान में पानी की चुनौती का स्थाई समाधान करेंगे। ये प्रोजेक्ट, राजस्थान को देश के सबसे कनेक्टेड राज्यों में से एक बनाएंगे। इससे राजस्थान में निवेश को बल मिलेगा, रोजगार के अनगिनत अवसर बनेंगे। राजस्थान के टूरिज्म को, यहां के किसानों को, मेरे नौजवानों साथियों को इससे बहुत फायदा होगा।

साथियों,

आज भाजपा की डबल इंजन की सरकारें सुशासन का प्रतीक बन रही हैं। भाजपा जो भी संकल्प लेती है, वो पूरा करने का ईमानदारी से प्रयास करती है। आज देश के लोग कह रहे हैं कि भाजपा, सुशासन की गारंटी है। और तभी तो एक के बाद, एक के बाद एक राज्यों में आज भाजपा को इतना भारी जन-समर्थन मिल रहा है। देश ने लोकसभा में भाजपा को लगातार तीसरी बार देश की सेवा करने का अवसर दिया है। बीते 60 सालों में हिन्दुस्तान में ऐसा नहीं हुआ। 60 साल के बाद भारत की जनता ने तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाई है, लगातार तीसरी बार। हमे देशवासियों की सेवा करने का अवसर दिया है, आशीर्वाद दिए हैं। अभी कुछ दिन पहले ही, महाराष्ट्र में भाजपा ने लगातार दूसरी बार सरकार बनाई। और चुनाव नतीजों के हिसाब से देखें तो वहां भी ये लगातार तीसरी बार बहुमत मिला है। वहां भी पहले से कहीं अधिक सीटें भाजपा को मिली हैं। इससे पहले हरियाणा में लगातार तीसरी बार भाजपा की सरकार बनी है। हरियाणा में भी पहले से भी ज्यादा बहुमत लोगों ने हमें दिया है। अभी-अभी राजस्थान के उपचुनाव में भी हमने देखा है कि कैसे भाजपा को लोगों ने ज़बरदस्त समर्थन दिया है। ये दिखाता है कि भाजपा के काम और भाजपा के कार्यकर्ताओं की मेहनत पर आज जनता-जनार्दन का कितना विश्वास है।

साथियों,

राजस्थान तो वो राज्य है जिसकी सेवा का भाजपा को लंबे समय से सौभाग्य मिलता रहा है। पहले भैरों सिंह शेखावत जी ने, राजस्थान में विकास की एक सशक्त नींव रखी। उनसे वसुंधरा राजे जी ने कमान ली और सुशासन की विरासत को आगे बढ़ाया, और अब भजन लाल जी की सरकार, सुशासन की इस धरोहर को और समृद्ध करने में जुटी है। बीते एक वर्ष के कार्यकाल में इसी की छाप दिखती है, इसी की छवि दिखती है।

साथियों,

बीते एक वर्ष के दौरान क्या-क्या काम हुए हैं, उसके बारे में विस्तार से यहां कहा गया है। विशेष रूप से गरीब परिवारों, माताओं-बहनों-बेटियों, श्रमिकों, विश्वकर्मा साथियों, घूमंतु परिवारों के लिए अनेक फैसले लिए गए हैं। यहां के नौजवानों के साथ पिछली कांग्रेस सरकार ने बहुत अन्याय किया था। पेपरलीक और भर्तियों में घोटाला, ये राजस्थान की पहचान बन चुकी थी। भाजपा सरकार ने आते ही इसकी जांच शुरु की और कई गिरफ्तारियां भी हुई हैं। इतना ही नहीं, भाजपा सरकार ने यहां एक साल में हज़ारों भर्तियां भी निकालीं हैं। यहां पूरी पारदर्शिता से परीक्षाएं भी हुई हैं, नियुक्तियां भी हो रही हैं। पिछली सरकार के दौरान राजस्थान के लोगों को, बाकि राज्यों की तुलना में महंगा पेट्रोल-डीज़ल खरीदना पड़ता था। यहां भाजपा सरकार बनते ही, राजस्थान के मेरे भाइयों-बहनों को राहत मिली। केंद्र सरकार पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों के बैंक खाते में सीधे पैसे भेजती है। अब डबल इंजन की राजस्थान भाजपा सरकार उसमें इजाफा करके, अतिरिक्त पैसे जोड़कर किसानों को मदद पहुंचा रही है। इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े कामों को भी यहां डबल इंजन की सरकार तेजी से जमीन पर उतार रही है। भाजपा ने जो वायदे किए थे, उन्हें वो तेजी से पूरा कर रही है। आज का ये कार्यक्रम भी इसी की एक अहम कड़ी है।

साथियों,

राजस्थान के लोगों के आशीर्वाद से, बीते 10 साल से केंद्र में बीजेपी की सरकार है। इन 10 सालों में हमने देश के लोगों को सुविधाएं देने, उनके जीवन से मुश्किलें कम करने पर बहुत जोर दिया है। आजादी के बाद के 5-6 दशकों में कांग्रेस ने जो काम किया, उससे ज्यादा काम हमने 10 साल में करके दिखाया है। आप राजस्थान का ही उदाहरण लीजिए...पानी का महत्व राजस्थान से बेहतर भला कौन समझ सकता है। यहां कई क्षेत्रों में इतना भंयकर सूखा पड़ता है। वहीं दूसरी तरफ कुछ क्षेत्रों में हमारी नदियों का पानी बिना उपयोग के ऐसे ही समंदर में बहता चला जा रहा है। और इसलिए ही जब अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी, तो अटल जी ने नदियों को जोड़ने का विजन रखा था। उन्होंने इसके लिए एक विशेष कमेटी भी बनाई। मकसद यही था कि जिन नदियों में ज़रूरत से ज्यादा पानी है, समुद्र में बह रहा है, उसको सूखाग्रस्त क्षेत्रों तक पहुंचाया जा सके। इससे बाढ़ की समस्या और दूसरी तरफ सूखे की समस्या, दोनों का समाधान संभव था। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसके समर्थन में कई बार अपनी बातें बताई हैं। लेकिन कांग्रेस कभी आपके जीवन से पानी की मुश्किलें कम नहीं करना चाहती। हमारी नदियों का पानी बहकर सीमापार चला जाता था, लेकिन हमारे किसानों को इसका लाभ नहीं मिलता था। कांग्रेस, समाधान के बजाय, राज्यों के बीच जल-विवाद को ही बढ़ावा देती रही। राजस्थान ने तो इस कुनीति के कारण बहुत कुछ भुगता है, यहां की माताओं-बहनों ने भुगता है, यहां के किसानों ने भुगता है।

मुझे याद है, मैं जब गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में सेवा करता था, तब वहां सरदार सरोवर डेम पूरा हुआ, मां नर्मदा का पानी गुजरात के अलग-अलग हिस्सों तक पहुंचाने का बड़ा अभियान चलाया, कच्छ में सीमा तक पानी ले गए। लेकिन तब उसे रोकने के लिए भी कांग्रेस द्वारा और कुछ NGO के द्वारा तरह-तरह के हथकंडे अपनाए गए। लेकिन हम पानी का महत्व समझते थे। और मेरे लिए तो मैं कहता हूं पानी पारस है, जैसे पारस लोहे को स्पर्श करे और लोहा सोना हो जाता है, वैसा पानी जहां भी स्पर्श करे वो एक नई ऊर्जा और शक्ति को जन्म दे देता है।

साथियों,

पानी पहुंचाने के लिए, इस लक्ष्य पर मैं लगातारे काम करता रहा, विरोधों को झेलता रहा, आलोचनाएं सहता रहा, लेकिन पानी के महत्मय को समझता था। नर्मदा के पानी का लाभ सिर्फ गुजरात को ही मिले इतना नहीं नर्मदा जी का पानी राजस्थान को भी इसका फायदा हो। और कभी कोई तनाव नहीं, कोई रुकावट नहीं, कोई मेमोरेंडम नहीं, आंदोलन नहीं जैसे ही डेम का काम पूरा हुआ, और गुजरात को हो जाए उसके बाद राजस्थान को देंगे वो भी नहीं, एक साथ गुजरात में भी पानी पहुंचाना, उसी समय राजस्थान को भी पानी पहुंचाना, ये काम हमने शुरू किया। और मुझे याद है जिस समय नर्मदा जी का पानी राजस्थान में पहुंचा राजस्थान के जीवन में एक उमंग और उत्साह था। और उसके कुछ दिन बाद अचानक मैं, मुख्यमंत्री के कार्यालय में मैसेज आया कि भैरों सिंह जी शेखावत और जसवंत सिंह जी वो गुजरात आए हैं और मुख्यमंत्री जी को मिलना चाहते हैं। अब मुझे पता नहीं था वो आए हैं, किस काम के लिए आए हैं। लेकिन वो मेरे दफ्तर आए, मैंने पूछा कैसे आना हुआ, क्यों...नहीं बोले कोई काम नहीं था, आपको मिलने आए हैं। मेरे वरिष्ठ नेता थे दोनों, भैरों सिंह जी की तो उंगली पकड़कर के हम कई लोग बड़े हुए हैं। और वो आकर के मेरे सामने बैठ नहीं हैं, वो मेरा सम्मान करना चाहते थे, मैं भी थोड़ा भौचक्का था। लेकिन उन्होंने मेरा मान-सम्मान तो किया, पर वो दोनों इतने भावुक थे, उनकी आंखें नम हो गई थी। और उन्होंने कहा मोदी जी आपको पता है पानी देने का मतलब क्या होता है, आप इतनी सहज-सरलता से गुजरात नर्मदा का पानी राजस्थान को दें दें, ये बाले, ये मेरे मन को छू गया। और इसीलिए करोड़ राजस्थान वासियों की भावना को प्रकट करने के लिए आज मैं आपके दफ्तर तक चला आया हूं।

साथियों,

पानी में कितना सामर्थ्य होता है इसका एक अनुभव था। और मुझे खुशी है कि माता नर्मदा आज जालौर, बाड़मेर, चूरु, झुंझुनू, जोधपुर, नागौर, हनुमानगढ़, ऐसे कितने ही जिलों को नर्मदा का पानी मिल रहा है।

साथियों,

हमारे यहां कहा जाता था कि नर्मदा जी में स्नान करें, नर्मदा जी की परिक्रमा करें तो अनेक पीढ़ी का पाप धुलकर के पुण्य प्राप्त होता है। लेकिन विज्ञान का कमाल देखिए, कभी हम माता नर्मदा की परिक्रमा करने जाते थे, आज स्वयं माता नर्मदा परिक्रमा करने के लिए निकली है और हनुमानगढ़ तक चली जाती है।

साथियों,

पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना...ERCP को कांग्रेस ने कितना लटकाया, ये भी कांग्रेस की नीयत का प्रत्यक्ष प्रमाण है। ये किसानों के नाम पर बातें बड़ी-बड़ी करते हैं। लेकिन किसानों के लिए ना खुद कुछ करते हैं और ना ही दूसरों को करने देते हैं। भाजपा की नीति, विवाद की नहीं संवाद की है। हम विरोध में नहीं, सहयोग में विश्वास करते हैं। हम व्यवधान में नहीं, समाधान पर यकीन करते हैं। इसलिए हमारी सरकार ने, पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को स्वीकृत भी किया है और विस्तार भी किया है। जैसे ही एमपी और राजस्थान में भाजपा सरकार बनी तो, पार्वती-कालीसिंध-चंबल परियोजना, एमपीकेसी लिंक परियोजना पर समझौता हो गया।

ये जो तस्वीर आप देख रहे थे ना, केंद्र के जल मंत्री और दो राज्यों के मुख्यमंत्री, ये तस्वीर सामान्य नहीं है। आने वाले दशकों तक हिंदुस्तान के हर कोने में ये तस्वीर राजनेताओं को सवाल पूछेगी, हर राज्य को पूछा जाएगा कि मध्य प्रदेश, राजस्थान मिलकर पानी की समस्या को, नदी के पानी के समझौते को आगे बढ़ा सकते हैं, तुम ऐसी कौन-सी राजनीति कर रहे हो कि पानी समु्द्र में बह रहा है तब तुम एक कागज पर हस्ताक्षर नहीं कर पा रहे हो। ये तस्वीर, ये तस्वीर पूरा देश आने वाले दश्कों तक देखने वाला है। ये जो जलाभिषेक हो रहा था ना, ये दृश्य भी मैं सामान्य दृश्य नहीं देखता हूं। देश का भला करने के लिए सोचने वाले विचार से काम करने वाले लोग उनको जब सेवा करने का मौका मिलता है तो कोई मध्य प्रदेश का पानी लेकर आता है, कोई राजस्थान का पानी लेकर आता है, उन पानी का इकट्ठा किया जाता है और मेरे राजस्थान को सुजलाम-सुफलाम बनाने के लिए पुरूषार्थ की परंपरा शुरू कर दी जाती है। ये असाधाारण दिखता है, एक साल का उत्सव तो है ही लेकिन आने वाली सदियों का उज्जवल भविष्य आज इस मंच से लिखा जा रहा है। इस परियोजना में चंबल और इसकी सहायक नदियां पार्वती, कालीसिंध, कुनो, बनास, बाणगंगा, रूपरेल, गंभीरी और मेज जैसी नदियों का पानी आपस में जोड़ा जाएगा।

साथियों,

नदियों को जोड़ने की ताकत क्या होती है वो मैं गुजरात में करके आया हूं। नर्मदा का पानी गुजरात की अलग-अलग नदियों से जोड़ा गया। आप कभी अहमदाबाद जाते हैं तो साबरमती नदी देखते हैं। आज से 20 साल पहले किसी बच्चें को अगर कहा जाए तुम साबरमती के ऊपर निबंध लिखो। तो वो लिखता की साबरमती में सर्कस के तंबू लगते हैं। बहुत अच्छे सर्कस के शो होते हैं। साबरमती में क्रिकेट खेलने का मजा आता है। साबरमती में बहुत अच्छी मिट्टी धूल होती रहती है। क्योंकि साबरमती में पानी देखा नहीं था। आज नर्मदा के पानी से साबरमती जिंदा हो गई और अहमदाबाद में रिवर front आप देख रहे हैं। ये नदियों को जोड़ने से ये ताकत है और मैं राजस्थान का वैसा ही सुंदर दृश्य मेरी आंखों में कल्पना कर सकता हूं।

साथियों,

मैं वो दिन देख रहा हूं जब राजस्थान में पानी की कमी नहीं होगी, राजस्थान में विकास के लिए पर्याप्त पानी होगा। पार्वती-कालीसिंध-चंबल परियोजना, इससे राजस्थान के 21 जिलों में सिंचाई का पानी भी मिलेगा और पेयजल भी पहुंचेगा। इससे राजस्थान और मध्य प्रदेश, दोनों के विकास में तेजी आएगी।

साथियों,

आज ही ईसरदा लिंक परियोजना का भी शिलान्यास हुआ है। ताजेवाला से शेखावाटी के लिए पानी लाने पर भी आज समझौता हुआ है। इस पानी से, इस समझौते से भी हरियाणा और राजस्थान दोनों राज्यों को फायदा होगा। मुझे विश्वास है कि राजस्थान में भी जल्द से जल्द शत-प्रतिशत घरों तक नल से जल पहुंचेगा।

साथियों,

हमारे सीआर पाटिल जी के नेतृत्व में एक बहुत बड़ा अभियान चल रहा है। अभी ज्यादा उसकी मीडिया में और बाहर चर्चा कम है। लेकिन मैं उसकी ताकत भलिभांति समझता हूं। जनभागीदारी से अभियान चलाया गया है। Rain water harvesting के लिए recharging wells बनाये जा रहे हैं। शायद आपाको भी पता नहीं होगा, लेकिन मुझे बताया गया कि जनभागीदारी से राजस्थान में आज daily rain harvesting structure तैयार हो रहे हैं। भारत के जिन राज्यों में पानी की किल्लत है, उन राज्यों में पिछले कुछ महीनों में अब तक करीब-करीब तीन लाख rain harvesting structures बन चुके हैं। मैं पक्का मानता हूं कि वर्षा के पानी को बचाने का ये प्रयास आने वाले दिनों में हमारी इस धरती मां की प्यास को बुझाएगा। और यहां बैठा हुआ हिन्दुस्तान में बैठा हुआ कोई भी बेटा, कोई भी बेटी कभी भी अपनी धरती मां को प्यासा रखना नहीं चाहेगा। जो प्यास की तड़प हमें होती है, वो प्यास हमें जितना परेशान करती है, वो प्यास उतना ही हमारी धरती मां को परेशान करती है। और इसलिए इस धरती की संतान के नाते हम सबका दायित्व बनता है कि हम अपनी धरती मां की प्यास बुझाएं। वर्षा के एक एक बूंद पानी को धरती मां की प्यास बुझाने के लिए काम लाए। और एक बार धरती मां का आशीर्वाद मिल गया ना फिर दुनिया की कोई ताकत हमें पीछे नहीं रख सकती।

मुझे याद है गुजरात में एक जैन महात्मा हुआ करते थे। करीब 100 साल पहले उन्होंने लिखा था, बुद्धि सागर जी महाराज थे, जैन मुनि थे। उनहोंने करीब 100 साल पहले लिखा था और उस समय शायद कोई पढ़ता तो उनकी बातों में विश्वास नहीं करता। उन्होंने लिखा था 100 साल पहले – एक दिन ऐसा आएगा जब किराने की दुकान में पीने का पानी बिकेगा। 100 साल पहले लिखा था आज हम किराने की दुकान से बिस्लेरी की बॉटल खरीदकर पानी पीने के लिए मजबूर हो गए हैं, 100 साल पहले कहा गया था।

साथियों,

ये दर्द भरी दास्तां है। हमारे पूवर्जों ने हमें विरासत में बहुत कुछ दिया है। अब हमारा दायित्व है कि हमारी आने वाली पीढ़ी को पानी के अभाव में मरने के लिए मजबूर न करें। हम उन्हें सुजलाम सुफलाम ये हमारी धरती माता, हमारी आने वाली पीढ़ियों को सुपुर्द करें। और उसी पवित्र कार्य को करने की दिशा में, मैं आज मध्यप्रदेश सरकार को बधाई देता हूं। मैं मध्य प्रदेश की जनता को बधाई देता हूं। मैं राजस्थान की सरकार और राजस्थान की जनता को बधाई देता हूं। अब हमारा काम है कि बिना रुकावट इस काम को हम आगे बढ़ाएं। जहां जरूरत पड़े, जिस इलाके से ये योजना बनती है। लोग सामने से आकर के समर्थन करें। तब समय से पहले योजनाएं पूरी हो सकती हैं और इस पूरे राजस्थान का भाग्य बदल सकता है।

साथियों,

21वीं सदी के भारत के लिए नारी का सशक्त होना बहुत जरूरी है। भई वो कैमरा, कैमरा को शौक इतना है कि उनका उत्साह बढ़ गया है। जरा वो कैमरा वाले को जरा दूसरी तरफ ले जाइये, वो थक जाएंगे।

साथियों,

आपका ये प्यार मेरे सर आंखों पर मैं आपका आभारी हूं इस उमंग और उत्साह के लिए साथियों नारीशक्ति का सामर्थ्य क्या है, ये हमने विमन सेल्फ हेल्प ग्रुप स्वयं सहायता समूह के आंदोलन में देखा है। बीते दशक में देश की 10 करोड़ बहनें सेल्फ हेल्प ग्रुप्स से जुड़ी हैं। इनमें राजस्थान की भी लाखों बहनें शामिल हैं। इन समूहों से जुड़ी बहनें, उनको मजबूत बनाने के लिए भाजपा सरकार ने दिन रात मेहनत की है। हमारी सरकार ने इन समूहों को पहले बैंकों से जोड़ा, फिर बैंकों से मिलने वाली मदद को 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख किया। हमने उन्हें मदद के तौर पर करीब 8 लाख करोड़ रुपए दिए हैं। हमने उन्हें ट्रेनिंग की व्यवस्था कराई है। महिला सेल्फ हेल्प ग्रुप में बने सामानों के लिए नए बाजार उपलब्ध कराए।

आज इसी का नतीजा है कि ये सेल्फ हेल्प ग्रुप, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बहुत बड़ी ताकत बने हैं। और मेरे लिए खुशी है, मैं यहा आ रहा था सारे ब्लॉक के ब्लॉक माताओं बहनों से भरे हुए हैं। और इतना उमंग इतना उत्साह। अब हमारी सरकार, सेल्फ हेल्प ग्रुप की तीन करोड़ बहनों को लखपति दीदी बनाने पर काम कर रही है। मुझे खुशी है कि करीब सवा करोड़ बहनें लखपति दीदी बन भी चुकी हैं। यानि इन्हें साल में एक लाख रुपए से ज्यादा की कमाई होने लगी है।

साथियों,

नारी शक्ति को मजबूत करने के लिए हम अनेक नई योजनाएं बना रहे हैं। अब जैसे नमो ड्रोन दीदी योजना है। इसके तहत हजारों बहनों को ड्रोन पायलट की ट्रेनिंग दी जा रही है। हज़ारों समूहों को ड्रोन मिल भी चुके हैं। बहनें ड्रोन के माध्यम से खेती कर रही हैं, उससे कमाई भी कर रही हैं। राजस्थान सरकार भी इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए अनेक प्रयास कर रही है।

साथियों,

हाल में ही हमने बहनों-बेटियों के लिए एक और बड़ी योजना शुरु की है। ये योजना है बीमा सखी स्कीम। इसके तहत, गांवों में बहनों-बेटियों को बीमा के काम से जोड़ा जाएगा, उन्हें ट्रेनिंग दी जाएगी। इसके तहत प्रारंभिक वर्षों में जब तक उनका काम जमें नहीं उनको कुद राशि मानदंड के रूप में दी जाएगी। इसके तहत बहनों को पैसा भी मिलेगा और साथ साथ देश की सेवा करने का अवसर भी मिलेगा। हमने देखा है कि हमारी जो बैंक सखियां हैं, उन्होंने कितना बड़ा कमाल किया है। देश के कोने-कोने तक, गांव-गांव में हमारी बैंक सखियों ने बैंक सेवाएं पहुंचा दी है, खाते खुलवाए हैं, लोन की सुविधाओं से लोगों को जोड़ा है। अब बीमा सखियां, भी भारत के हर परिवार को बीमा की सुविधा से जोड़ने में मदद करेंगी। जरा ये जो कैमरामेन है उनको मेरी रिक्वेस्ट है कि आप अपना कैमरा दूसरी तरफ मोड़िये प्लीज, यहां लाखों लोग हैं उनकी तरफ ले जाइये ना।

साथियों,

भाजपा सरकार का निरंतर प्रयास है कि गांव की आर्थिक स्थिति बेहतर हो। ये विकसित भारत बनाने के लिए बहुत ज़रूरी है। इसलिए गांव में कमाई के, रोजगार के हर साधन पर हम बल दे रहे हैं। राजस्थान में बिजली के क्षेत्र में अनेक समझौते यहां भाजपा सरकार ने किए हैं। इनका सबसे अधिक फायदा हमारे किसानों को होने वाला है। राजस्थान सरकार की योजना है कि यहां के किसानों को दिन में भी बिजली उपलब्ध हो सके। किसान को रात में सिंचाई की मजबूरी से मुक्ति मिले, ये इस दिशा में बहुत बड़ा कदम है।

साथियों,

राजस्थान में सौर ऊर्जा की पर्याप्त संभावनाएं हैं। राजस्थान इस मामले में देश का सबसे आगे रहने वाला राज्य बन सकता है। हमारी सरकार ने सौर ऊर्जा को आपका बिजली बिल ज़ीरो करने का माध्यम भी बनाया है। केंद्र सरकार, पीएम सूर्यघर मुफ्त बिजली योजना चला रही है। इसके तहत घर की छत पर सौलर पैनल लगाने के लिए करीब करीब 75-80 हज़ार रुपए की मदद केंद्र सरकार दे रही है। इससे जो बिजली पैदा होगी, वो आप उपयोग करें और आपकी जरूरत से ज्यादा है, तो आप बिजली बेच सकते हैं और सरकार वो बिजली खरीदेगी भी। मुझे खुशी है कि अब तक देश के 1 करोड़ 40 लाख से ज्यादा परिवार इस योजना के लिए रजिस्टर करा चुके हैं। बहुत ही कम समय में करीब 7 लाख लोगों के घरों में सोलर पैनल सिस्टम लग चुका है। इसमें राजस्थान के भी 20 हज़ार से अधिक घर शामिल हैं। इन घरों में सोलर बिजली पैदा होनी शुरू हो चुकी है और लोगों के पैसे भी बचने शुरू हो गए हैं।

साथियों,

घर की छत पर ही नहीं, खेत में भी सौर ऊर्जा प्लांट लगाने के लिए सरकार मदद दे रही है। पीएम कुसुम योजना के तहत, राजस्थान सरकार आने वाले समय में सैकड़ों नए सोलर प्लांट्स लगाने जा रही है। जब हर परिवार ऊर्जादाता होगा, हर किसान ऊर्जादाता होगा, तो बिजली से कमाई भी होगी, हर परिवार की आय भी बढ़ेगी।

साथियों,

राजस्थान को रोड, रेल और हवाई यात्रा में सबसे कनेक्टेड राज्य बनाना, ये हमारा संकल्प है। हमारा राजस्थान,दिल्ली, वडोदरा और मुंबई जैसे बड़े औद्योगिक केंद्रों के बीच में स्थित है। ये राजस्थान के लोगों के लिए, यहां के नौजवानों के लिए बहुत बड़ा अवसर है। इन तीन शहरों को राजस्थान से जोड़ने वाला जो नया एक्सप्रेसवे बन रहा है, ये देश के सर्वश्रेष्ठ एक्सप्रेसवे में से एक है। मेज नदी पर बड़ा पुल बनने से, सवाईमाधोपुर, बूंदी, टोंक और कोटा जिलों को लाभ होगा। इन जिलों के किसानों के लिए दिल्ली, मुंबई और वड़ोदरा की बड़ी मंडियों, बड़े बाज़ारों तक पहुंचना आसान हो जाएगा। इससे जयपुर और रणथंभौर टाइगर रिजर्व तक पर्यटकों के लिए पहुँचना भी आसान हो जाएगा। हम सभी जानते हैं कि आज के समय में, समय की बहुत कीमत है। लोगों का समय बचे, उनकी सहूलियत बढ़े, यही हम सभी का प्रयास है।

साथियों,

जामनगर - अमृतसर इकोनामिक कॉरिडोर जब दिल्ली-अमृतसर- कटरा एक्सप्रेसवे से जुड़ेगा तो राजस्थान को मां वैष्णो देवी धाम से कनेक्ट करेगा। इससे उत्तरी भारत के उद्योगों को कांडला और मुंद्रा बंदरगाहों से सीधा संपर्क बनेगा। इसका फायदा राजस्थान में ट्रांसपोर्ट से जुड़े सेक्टर को होगा, यहां बड़े-बड़े वेयर हाउस बनेंगे। इनमें ज्यादा काम राजस्थान के नौजवानों को मिलेगा।

साथियों,

जोधपुर रिंग रोड से जयपुर, पाली, बाड़मेर, जैसलमेर, नागौर और अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से कनेक्टिविटी बेहतर होने वाली है। इससे शहर को अनावश्यक जाम से मुक्ति मिलेगी। जोधपुर आने वाले पर्यटकों, व्यापारियों-कारोबारियों को इससे बहुत सुविधा होगी।

साथियों,

आज यहां इस कार्यक्रम में हजारों भाजपा कार्यकर्ता भी मेरे सामने मौजूद हैं। उनके परिश्रम से ही हम आज का ये दिन देख रहे हैं। मैं भाजपा कार्यकर्ताओं से कुछ आग्रह भी करना चाहता हूं। भाजपा दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल तो है ही, भाजपा एक विराट सामाजिक आंदोलन भी है। भाजपा के लिए दल से बड़ा देश है। हर भाजपा कार्यकर्ता, देश के लिए जागरुक और समर्पित भाव से काम कर रहा है। भाजपा कार्यकर्ता सिर्फ राजनीति से नहीं जुड़ता,वो सामाजिक समस्याओं के समाधान से भी जुड़ता है। आज हम एक ऐसे कार्यक्रम में आए हैं, जो जल संरक्षण से बहुत गहराई से जुड़ा है। जल संसाधानों का संरक्षण और जल की हर बूंद का सार्थक इस्तेमाल सरकार समेत पूरे समाज की, हर नागरिक की जिम्मेदारी है। और इसीलिए मैं अपने भाजपा के हर कार्यकर्ता, हर साथी से कहूंगा कि वे भी अपनी रोज की दिनचर्या में जल संरक्षण के काम के लिए अपन कुद समय समर्पित कर दें और बड़ी श्रद्धाभाव से काम करें। माइक्रो इरीगेशन, ड्रिप इरीगेशन से जुड़ें अमृत सरोवर की देखरेख में मदद करें, जल प्रबंधन के साधन बनाएं और जनता को जागरूक भी करें। आप प्राकृतिक खेती नैचुरल फार्मिंग के प्रति भी किसानों को जागरूक करें।

हम सब जानते हैं कि जितने ज्यादा पेड़ होंगे, धरती को पानी का भंडारण करने में उतनी मदद मिलेगी। इसीलिए एक पेड मां के नाम अभियान बहुत मदद कर सकता है। इससे हमारी मां का भी सम्मान बढ़ेगा और धरती मां का भी मान बढ़ेगा। पर्यावरण के लिए ऐसी बहुत से काम हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, मैंने पहले ही पीएम सूर्य घर अभियान की बात कही। बीजेपी के कार्यकर्ता लोगों को सौर ऊर्जा के प्रयोग के लिए जागरुक कर सकते हैं, उन्हें इस योजना और उसके लाभ के विषय में बता सकते हैं। हमारे देश के लोगों का एक स्वभाव है। जब देश देखता है कि किसी अभियान की नीयत सही है, इसकी नीति सही है, तो लोग उसको अपने कंधे पर उठा लेते हैं, इससे जुड़ जाते हैं और खुद को भी एक मिशन के काम से जोड़कर के खपा देते हैं। हमने स्वच्छ भारत में ये देखा है। हमने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान में ये देखा है। मुझे विश्वास है कि हमें पर्यावरण संरक्षण में भी, जल संरक्षण में भी ऐसी ही सफलता मिलेगी।

साथियों,

आज राजस्थान में विकास के जो आधुनिक काम हो रहे हैं, जो इंफ्रास्ट्रक्चर बन रहा है, ये वर्तमान और भावी पीढ़ी सबके काम आएगा। ये विकसित राजस्थान बनाने के काम आएगा और जब राजस्थान विकसित होगा, तो भारत भी तेजी से विकसित होगा। आने वाले वर्षों में डबल इंजन की सरकार और तेज गति से काम करेगी। मैं भरोसा देता हूं, कि केंद्र सरकार की तरफ से भी राजस्थान के विकास के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी जाएगी। एक बार फिर इतनी बड़ी तादाद में आप लोग आशीर्वाद देने आएं, विशेष रूप से माताएं बहनें आईं, मैं आपका सर झुकाकर के धन्यवाद करता हूं, और आज का ये अवसर आपके कारण है और आज का ये अवसर आपके लिए है। मेरी आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं। पूरी शक्ति से दोनों हाथ ऊपर कर मेरे साथ बोलिये –

भारत माता की जय !

भारत माता की जय !

भारत माता की जय !

बहुत-बहुत धन्यवाद !