मंच पर उपस्थित सभी महानुभाव और स्मॉल और मीडियम उद्योग जगत के सभी साहसिक भाईयों और बहनों..! जिन लोगों ने कल का समारोह देखा होगा, वे अगर आज के इस समारोह को देखेंगे तो वे अनुमान लगा सकते हैं कि गुजरात किस रेंज में काम कर रहा है। जितना बड़े उद्योगों का महात्म्य है, उससे भी ज्यादा छोटे उद्योगों का महात्म्य है। और आज पूरा दिन इस समिट में छोटे उद्योगों के विकास के लिए हम सब मिल कर के क्या कर सकते हैं, छोटे उद्योगों के द्वारा प्रोडक्ट की हुई चीजों को मार्केट कैसे मिले, छोटे उद्योग भी विश्व व्यापार में अपनी जगह कैसे बनाएं, छोटे उद्योगों का भी एक ब्रांड इमेज कैसे बने... ये सारे विषय ऐसे हैं कि जिसको अगर हम मिल बैठ कर सोचें तो एक बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। किसी एक जिले में एकाध छोटे उद्योगकार के लिए एकदम नई टैक्नोलॉजी को लाना उसके बूते से बाहर होता है, उसके लिए कठिनाई होती है। लेकिन बदलती हुई टैक्नोलॉजी के संबंध में हम लगातार हमारे उद्योग जगत के मित्रों को जोड़ते रहें, उनको अवसर दें, चाहे एक्जीबिशन हो, फेयर्स हो, सेमीनार्स हो, तो एक साथ 12-15 लोग आगे आएंगे और कहेंगे कि हाँ भाई, हम इस टैक्नोलॉजी को हायर करना चाहते हैं। और जब सब प्रकार की कोशिश करने के बाद सफलता मिलती है, सब लोग जुड़ते हैं तो अपने आप किसी भी उद्योगकार के लिए निर्णय करने में कठिनाई नहीं होती। इस प्रकार की समिट के माध्यम से हम हमारे गुजरात के छोटी-छोटी तहसील में बैठे हुए जो छोटे-छोटे उद्योगकार हैं, एकाध छोटा मशीन है, खुद मेहनत करते हैं, कुछ ना कुछ कर रहे हैं... लेकिन उनका भी इरादा तो है आगे बढ़ने का। वे भी चाहते हैं कि नई ऊंचाइयों को पार करना है, लेकिन उनको कभी-कभी रास्ता नहीं सूझता है। कभी कान पर कोई जानकारी पड़ती है लेकिन रास्ता पता नहीं होने के कारण, सोर्स पता नहीं होने के कारण, किन लोगों के माध्यम से करें उसका रास्ता पता नहीं होने के कारण वो अपनी जिदंगी उसी में पूरी कर देता है। पिताजी का एक कारखाना छोटा-मोटा चल रहा है, बच्चे बड़े हो रहे हैं, बच्चों को लगता है कि कुछ करें, लेकिन पिताजी को लगता है कि नहीं भाई, इतने साल से मैं चला रहा हूँ, ऐसा साहस करोगे तो कहीं डूब ना जाएं, अभी जरा ठहरो..! कभी माँ-बाप भी जो नई पीढ़ी प्रवेश करती है अपने पारिवारिक व्यवसाय में, तो उससे भी वो कभी-कभी चिंतित हो जाते हैं कि क्या करें..! इस प्रकार के समारोह से दोनों पीढ़ी की सोच को बदलने के लिए हम एक कैटलिक एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। जो पुरानी पीढ़ी के लोग हैं, जो पुरानी परंपरा से अपना काम करना चाहते हैं, पुरानी टैक्नोलॉजी का उपयोग कर के काम करना चाहते हैं, बहुत ही प्रोटेक्टिव एन्वायरमेंट में काम करना चाहते हैं और नई पीढ़ी है जो बहुत ज्यादा एग्रेसिव है, साहस करना चाहती है, नई टैक्नोलॉजी को एडाप्ट करना चाहती है और कुछ भी आने से पहले घर में ही तनाव रहता है। बेटा बाप को समझा नहीं पा रहा है, बाप बेटे को स्वीकार करने को तैयार नहीं होता है और सालों तक ऐसे ही चलता है। यहाँ कई लोग बैठे होंगे जिनको इस प्रकार का अनुभव होता होगा..! लेकिन जब ये दोनों पीढ़ी इस प्रकार के अवसर पर आती हैं तब और ‘सीइंग इज़ बिलीविंग’, जब वो इन चीजों को निकट से देखते हैं तो उनका हौंसला बुलंद हो जाता है और पल भर में वो निर्णय करते हैं कि हाँ बेटे, तुम जो कहते थे वो ठीक है, मुझे भरोसा नहीं था लेकिन मैंने देखा तो मुझे लगता है कि हाँ यार, हम कर सकते हैं..! तो मित्रों, हमें हमारे इस लघु उद्योग क्षेत्र को टैक्नोलॉजी की दृष्टि से अपग्रेड करना है। हम चाहते हैं कि जगत में जो बदलाव आया है उस बदलाव को हम कैसे एडाप्ट करें, अपने मन को कैसे बदलें, उस टैक्नोलॉजी के लिए गवर्नमेंट किस प्रकार से सपोर्ट करे, किस प्रकार की व्यवस्थाओं को विकसित करने से हम अच्छी स्थिति में बदल सकते हैं।

भी-कभी कुछ प्रोडक्ट ऐसे होते हैं जो समाज के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। हेल्थ केयर सेक्टर का कोई प्रोडक्ट होगा, एज्यूकेशन सेक्टर का कोई प्रोडक्ट होगा, इवन सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए कोई छोटा सा मशीन बनाता होगा। एकाध व्यक्ति के लिए मुश्किल होता है, वो करता भी है कभी-कभी तो क्या करता है? अगर मान लीजिए साल में वो छह मशीन बनाता है, तो फिर वो आठ-दस ग्राहकों से ज्यादा जगह में पहुंचता नहीं है। उसको लगता है इस आठ-दस क्लाइंट को पकड़ लिया, कस्टमर को पकड़ लिया, काम हो गया। उसकी तो रोजी-रोटी चलती है, लेकिन उसकी वो टैक्नोलॉजी जो सर्वाधिक लोगों को काम आ सकती है वो हर साल आठ या दस जगह पर ही पहुंचती है। उसके पास इतनी बड़ी विरासत है, उसके पास एक एसेट है, उसने एक प्रोडक्ट किया है, अगर वो ऐसे स्थान पर आता है जहां वो प्रोडक्ट बाहर आती है दुनिया के सामने, तो सबको लगता है कि यार, इसका प्रोडक्शन बढ़ाने की जरूरत है, इसका जरा मार्केटिंग करने की जरूरत है। साल में आठ लोग क्यों, अस्सी जगह पर क्यों नहीं पहुंचनी चाहिए..? तो मित्रों, उसके कारण एक उपयोगिता का भी माहौल बनता है। हर किसी को लगता है कि हाँ, अगर ये व्यवस्था विकसित होती है तो ये इस नगरपालिका को काम आ सकती है, पंचायत को काम आ सकती है, सरकारी दफ्तर में काम आ सकती है, कॉर्पोरेट हाऊस में काम आ सकती है..! और इसलिए मित्रों, इस प्रकार के प्रयासों से हम समाजोपयोगी जो प्रोडक्टस हैं, जो व्यवस्थाओं में बदलाव लाने का एक आधार बनती है, उन प्रोडक्ट्स को शो-केस करना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि सब लोग इन चीजों को देखें। अब ये बात सही है कि एक छोटे से गाँव में बैठे उद्योगकार के लिए ये सब करना मुश्किल होता है क्योंकि बेचारा खुद ही जा करके लेथ पर बैठ कर के काम करता है, वो मार्केटिंग करने कहाँ जाएगा। उसके लिए वो संभव ही नहीं है, तो फिर हमें ही कोई ऐसा मैकेनिज्म डेवलप करना चाहिए। जैसे हमने कुछ उद्योगकार मित्रों को अभी सम्मानित किया। ये वो लोग हैं जिन्होंने छोटे-छोटे उद्योगों में रहते हुए भी कुछ ना कुछ नया इनोवेशन किया है, कुछ नया अचीव किया है, कुछ वर्क कल्चर में बदलाव लाए हैं, प्रोडक्टिविटी में बदलाव लाए हैं, क्वालिटी ऑफ प्रोडक्शन में बदलाव लाए हैं..! अब इन लोगों को जब ये सब लोग देखते हैं तो इनको लगता है कि अच्छा भाई, हमारे जिले में इस व्यक्ति ने ऐसा काम किया है..? तो देखेंगे, पूछेंगे कि बताओ तुमने क्या किया था। तो उसको भी लगेगा कि हाँ यार, मैं भी अपनी फैक्ट्री में कर सकता हूँ, मैं भी मेरे यहाँ लगा सकता हूँ..!

मित्रों, एक बात सही है कि हमें अधिकतम रोजगार देने की क्षमता इन लघु उद्योगकारों के हाथों में है, आप लोगों के हाथों में है। और हम उस प्रकार की अर्थ व्यवस्था चाहते हैं जिसमें अधिकतम लोगों को लाभ हो। मास प्रोडक्शन हो, वो इकोनॉमी के लिए जरूरी भी है, लेकिन साथ-साथ प्रोडक्शन बाय मासिस भी होना चाहिए। मास प्रोडक्शन हो, लेकिन एक लिमिटेड मशीन के द्वारा सारी दुनिया चल जाती है तो हम जॉब क्रियेट नहीं कर सकते। स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज के नेटवर्क के माध्यम से प्रोडक्शन बाय मासिस होता है। और जब प्रोडक्शन बाय मासिस होता है, तो लाखों हाथ लगते हैं, तो लाखों लोगों का पेट भी भरता है और इसलिए स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज अधिकतम लोगों को रोजगार देने का एक अवसर है। अब अधिकतम लोगों को रोजगार देने में भी कभी-कभी ये दिक्कत आती है कि फैक्ट्री में उत्पादन तो बढ़ रहा है, लेकिन कभी किसी नौजवान को रख लेते हैं तो छह महीने तो उसे सिखाने में चले जाते हैं। ये कोई कम इन्वेस्टमेंट नहीं होता है। और उसके बावजूद भी भरोसा नहीं रहता है कि भाई, इस लड़के को मैं लाया हूँ, छह महीने मैंने इसे सिखाया है, उसको काम में लगाया है, लेकिन पता नहीं मेरी गैरहाजिरी में वो जो चीज़ बनाएगा वो बाजार में चलेगी की नहीं चलेगी, उसके मन में टेंशन रहता है। लेकिन अगर उसको स्किल्ड मैन पावर मिले, हर प्रकार से आधुनिक विज्ञान और ज्ञान तथा टैक्नोलॉजी से परिचित नौजवान मिलेगा तो उसका हौंसला बुलंद हो जाता है। उसको लगता है कि मैं जिस पद्घति से काम करता था उसमें तो मेरे दो घंटे ज्यादा जाते थे, ये स्किल्ड लेबर मुझे मिला है, नौजवान ऐसा है, थोड़ा इस विषय को जानता है तो मित्रों, हमारी प्रोडक्शन कॉस्ट भी कम होगी, क्वालिटी इम्प्रूव होगी और उस फील्ड में सालों से काम करने वाला जो उद्योगपति है, जो बिजनस मैन है उसको भी भरोसा हो जाएगा कि यस, स्किल्ड मैनपावर के नेटवर्क के द्वारा, उनकी मदद के द्वारा मैं ऊंची क्वालिटी की चीजें बाजार में ले जा सकता हूँ। और इसलिए मित्रों, जितना समयानुकूल टैक्नोलॉजी अपग्रेडेशन आवश्यक है, जितना हमारी सोच में बदलाव आवश्यक है, उतना ही हमारे लिए स्किल डेवलपमेंट पर बल देना आवश्यक है। और स्किल्ड मैन पावर को तैयार करने के लिए हम टेलर मेड सॉल्यूशन नहीं निकाल सकते। हम लोगों को नीड बेस्ड स्किल डेवलपमेंट करना पड़ेगा। जहां जिस प्रकार की स्किल की आवश्यकता है, उस स्किल को हम प्रोवाइड कर सकते हैं क्या? हम हमारे कोर्सेस को भी उस कंपनी को या उस उद्योग को जिस प्रकार के मैन पावर की आवश्यकता है उस प्रकार के सिलेबस से हम तैयार कर सकते हैं क्या? गुजरात ने उस दिशा में एक प्रयास किया है।

स प्रकार के मिलन के माध्यम से हम ये भी आईडेन्टीफाई करना चाहते हैं कि अगर मान लीजिए गुजरात में लाखों छोटे उद्योग हैं और गुजरात के उद्योगों की बैकबोन स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज हैं। लोग कितना ही भ्रम क्यों ना फैलाएं, लेकिन सच्चाई जो यहाँ बैठी है वो है। लेकिन कुछ लोगों ने झूठ फैला के रखा है गुजरात के बारे में और लगातार झूठ फैलाने में उनको आनंद भी आता है। और जनता उनको जरा ठीक-ठाक भी करती रहती है। लेकिन उनकी आदत सुधरने की संभावना नहीं है, उन से कोई भरोसा नहीं कर सकते हम, क्योंकि उनके वेस्टेड इन्टरेस्ट है। मित्रों, हमें गुजरात के अंदर स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज के नेटवर्क को बल देना है, इतना ही नहीं, हम स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज को भी क्लस्टर के रूप में डेवलप करना चाहते हैं। अब देखिए, यहां साणंद से लेकर बहुचराजी तक पूरा ऑटोमोबाइल का एक क्लस्टर बना रहा है। अब ये ऑटोमोबाइल का क्लस्टर बन रहा है, तो कोई एक बड़ा कारखाना बनने से मोटर बनती नहीं है। एक मोटर तब बनती है जब पाँच सौ-सात सौ छोटे-छोटे उद्योगकार छोटे-छोटे स्पेयर पार्ट्स बना कर के उसको सप्लाई करते हैं, तब जा करके एक कार बनती है। किसी का इस पर ध्यान ही नहीं जाता है, उनको तो मारूति दिखती है या फोर्ड दिखती है या नैनो दिखती है। लेकिन ये फोर्ड हो, मारूति हो या नैनो हो, जब तक ये लोग काम नहीं करते तब तक बन नहीं पाती है। और उसके नेटवर्किंग के लिए आवश्यकता क्या होती है कि जहां पर जिस इन्डस्ट्री का क्लस्टर हो, वहीं पर सराउन्डिंग में अगर हम उस प्रकार के छोटे-छोटे उद्योगों का एक पूरा जाल बिछा दें और फिर मान लो कि ऑटो कम्पोनेंट बनाने वाले अगर लोग हैं, तो वहीं पर उस प्रकार की हमारी आई.टी.आई. जो होंगी, उन आई.टी.आई. के कोर्सेज भी वही होंगे जो वहीं के बच्चों को वहीं के उद्योगों में रोजगार दिला सकें, यानि एक इन्टीग्रेटिड अप्रोच होगा। अब मान लीजिए, वापी में कोई टैक्सटाइल इन्डस्ट्री है और पालनपुर में आई.टी.आई. में टैक्सटाइल का कोर्स चल रहा है। मुझे बताइए, क्या पालनपुर का लड़का वापी के अंदर टैक्सटाइल के कारखाने में नौकरी करने के लिए जाएगा..? अपने माँ-बाप को छोड़ कर जाएगा क्या..? वहाँ पर मकान किराए पर लेकर रहेगा क्या..? नहीं रहेगा..! लेकिन वापी में अगर टैक्सटाइल इन्डस्ट्री है और मैं वापी में ही टैक्सटाइल इन्डस्ट्री के लिए रिक्वायर्ड स्किल डेवलपमेंट के काम को करता हूँ, तो वहां के नौजवानों को रोजगार मिल जाता है, वहां की कंपनी को मैन पावर मिल जाता है और वहां से ज्यादातर लोगों का नौकरी छोड़ कर भाग जाने का कारण भी नहीं बनता है। वरना कभी-कभी क्या होता है, किसी उद्योगकार को चिंता यही रहती है और बड़ा ऑर्डर लेता नहीं है। ऑर्डर क्यों नहीं लेता है..? उसको लगता है कि यार बाकी तो सब ठीक है लेकिन ये नौकरी छोड़ कर चला जाएगा तो मैं आर्डर कैसे पूरा करूंगा, मेरे पास आदमी तो हैं नहीं..! यानि एक प्रकार से वो अपने साथ काम करने वाला जो व्यक्ति है उस पर डिपेन्डेट हो जाता है, लेकिन अगर ऐसा क्लस्टर है और क्लस्टर के अंदर उसी इलाके के नौजवानों को उसी काम के लिए अगर ट्रेन किया गया है तो यदि एक छोड़ कर जाएगा तो दूसरा मिल जाएगा, लेकिन उन उद्योगों को मैन पावर की कभी कमी नहीं पड़ेगी और मैन पावर का भी एक्सप्लॉइटेशन नहीं होगा।

मित्रों, गुजरात में औद्योगिक जगत से जुड़े हुए आप सब मित्रों का एक बात के लिए मैं अभिनंदन करता हूँ कि आज गुजरात में जो ज़ीरो मैन्डेस लॉस है, पीसफुल लेबर है, उसका मूल कारण यह है कि हमारे यहां औद्योगिक जीवन में एक परिवार भाव है। अपनी कंपनी में काम करने वाला लड़का भी परिवार का हिस्सा हो जाता है, एक अपनापन का भाव होता है और उसके कारण कभी मालिक और नौकर का हमारे यहां माहौल नहीं बनता है। हम जितनी मात्रा में ये मालिक और नौकर वाले हिस्से से बचे हैं, उतना हमारा औद्योगिक विकास हुआ है। और हिन्दुस्तान के बहुत से राज्य ऐसे हैं, हिन्दुस्तान के बहुत से छोटे उद्योगकार ऐसे हैं जिनको गुजरात की इस क्वालिटी का बहुत कम पता है। हमारे यहाँ आठ घंटे की नौकरी होगी तो भी वो मजदूर नौ घंटे तक काम क्यों करेगा..? उसको लगता है कि नहीं-नहीं, ये तो मेरी कंपनी की इज्जत का सवाल है, ये माल तो मुझे सात तारिख को देना है, मैं काम करके रहूँगा..! सेठ चाहे या ना चाहे, उद्योगकार की इच्छा हो या ना हो, लेकिन वो लेबर उसको रात तक भी काम करके उसको दे देता है। मित्रों, ये माहौल जो हमारे यहाँ बना है, इसका मतलब यह हुआ कि जिस प्रकार से प्रोडक्ट की वैल्यू हमने बढ़ाई है, उसी प्रकार से उस प्रोडक्ट के पीछे जिन हाथों से काम होता है, उन हाथों की इज्जत हम जितनी बढ़ाते हैं, उतनी ही हमारे व्यवसाय में गारंटी बढ़ती है, क्वालिटी में गारंटी बढ़ती है और हमारे परिणाम में बढोतरी हो जाती है। और इसलिए मित्रों, हमें जितनी छोटे उद्योगों की केयर करनी है, उतनी ही हमारे साथ काम करने वाले हमारे लेबरर्स की चिंता करनी है। हम कभी उनका एक्सप्लॉइटेशन नहीं करेंगे, ये जिन-जिन लोगों ने ठानी और मैंने देखा है कि अगर उसको पाँच रूपये का काम मिलता है तो वो आपको पच्चीस रूपये का काम करके देता है। कभी कोई घाटे में नहीं जाता है। अपने साथियों को संभालने के कारण घाटे में गई हो, ऐसी कोई कंपनी नहीं होगी। लेकिन जो अपनी ही टीम के लोगों के साथ इस प्रकार का काम नहीं करते हैं, तो वो घाटे में जाती है।

सी प्रकार से मित्रों, सरकार भी नहीं चाहती है कि फैक्ट्रियों में जा करके नई-नई परेशानियाँ पैदा करे। पहले तो ऐसे-ऐसे कानून हुआ करते थे, जैसे एक बॉयलर इन्सपेक्शन का रहता था। अब जिन कंपनियों को बॉयलर की जरूरत होती थी वो सरकार को लिखते थे कि फलानी तारिख को हमारा इन्सपेक्शन हो जाना जरूरी है, वरना मुझे अपना बॉयलर ऑपरेशन बंद करना पड़ेगा। अब वो बॉयलर इन्सपेक्शन करने वाला जो होता है, उसके पास लोड बहुत होता है और वो डेट देता नहीं है। उसको टेंशन रहता है और क्या-क्या परेशानियाँ होती है वो सब जानते हैं..! मैंने एक छोटा कानून बना दिया। मैंने कहा भाई, जो फैक्ट्री चलाता है, वो मरना चाहता है क्या? वो अपना बॉयलर फट जाए ऐसी इच्छा करता है क्या? उसको अपने बॉयलर की चिंता नहीं होती होगी क्या? तो हमने कहा कि आप ऐसा काम करो कि उसके ऊपर जिम्मेदारी डालो और उस कंपनी को बोलो कि वो आउट सोर्स करके, जो भी इसके लाइसेंसी लोग हैं, उनसे बॉयलर इन्सपेक्शन करवा लें और कागज सरकार को भेज दें। मित्रों, इतना सरल हो गया..! अच्छा, उसके उपर जिम्मेवारी आ गई और उसके ऊपर जिम्मेवारी आ जाने के कारण वो सरकार जितना करे उससे ज्यादा करने लगा। उसको लगा कि हाँ यार, मेरा बॉलयर अगर कुछ खराब हो गया तो मेरी फैक्ट्री में आग लग जाएगी और मेरे पचास लोग मर जाएंगे। जिम्मेवारी खुद उसके उपर आ गई। मित्रों, ऐसे बहुत से छोटे-मोटे कानूनी बदलाव है। अगर आप में से उस प्रकार के सुझाव आएंगे, जिसके कारण सिम्पलीफिकेशन हो, सरकार आ कर के कम से कम परेशानियाँ पैदा करे... और मित्रों, ये जो मैं बोल रहा हूँ ना, ये मुझे करना है और मैं लगातार करता आया हूँ, काफी कुछ मैंने कर भी लिया है। लेकिन फिर भी कहीं कुछ कोने में रह गया हो तो मुझे उसको ठीक करना है और उसमें मुझे आप लोगों की मदद चाहिए। ये सरकार ऐसी नहीं है कि सब आपके भरोसे छोड़ दे और आप को कह दे कि भाई, जो होगा वो होगा, तुम जानो, तुम्हारा काम जाने, मरो-जीओ तुम्हारी मरजी... नहीं, ये हमारा काम है कि आप प्रगति करो, ये हमारा काम है कि आपकी कठिनाइयाँ दूर हों, ये हमारा काम है कि हम सब मिल कर के आगे बढ़ें..! मित्रों, आज गुजरात में इन्डस्ट्री ग्रो कर रही है उसका कारण यही है कि हमने एक ऐसा इन्वायरमेंट क्रियेट किया है और उस इन्वायरमेंट का लाभ हर किसी को मिले उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं।

मित्रों, अभी मैं कुछ दिन पहले सूरत में ‘स्पार्कल’ कार्यक्रम में गया था, जेम्स एंड ज्वेलरी का कार्यक्रम था। वहां पर भारत सरकार के भी लघु उद्योग विभाग को देखने वाले एक अधिकारी आए थे। उन्होंने जो भाषण किया वहां, वो जानकारी मेरे लिए भी बहुत आनंद की थी। वही जानकारी मुझे मेरे सरकार के अधिकारियों ने दी होती तो मैं उनको दस सवाल पूछता। मैं उनको कहता कि नहीं यार, ये बात मेरे गले नहीं उतर रही है, ये कैसे हो सकता है..? मेरे मन में सवाल उठते। लेकिन क्योंकि भारत सरकार के अधिकारी ने कहा है तो मुझे मालूम था कि वो सात जगह पर पूछ कर के आया होगा और बिना वेरीफाई किये कुछ नहीं कहेगा। और मित्रों, उन्होंने जो जानकारी दी, वो जानकारी सचमुच में हम सभी लघु उद्योग से जुड़े मित्रों के लिए एक बहुत ही आनंद और प्रोत्साहन का विषय है। उन्होंने कहा कि पूरे हिन्दुस्तान में स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज़ का जो ग्रोथ है, वो 19% है और गुजरात ऐसा राज्य है जिसकी स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज़ का ग्रोथ 85% है। आप विचार किजीए मित्रों, इसका मतलब कि भारत सरकार का एक जो रिपोर्ट आया है, वो रिपोर्ट ये कहता है कि गुजरात एक ऐसा राज्य है जहां मिनीमम बेरोजगार लोग हैं। बेकारों की संख्या पूरे हिन्दुस्तान में कम से कम कहीं है, तो गुजरात में है। मैं पॉलिटिकली जो बेकार हो गए हैं उनकी बात नहीं कर रहा हूँ, वो तो बेचारे पंद्रह साल से बेरोजगार हैं। मिनीमम बेरोजगार कहीं किसी राज्य में है तो वो गुजरात में हैं। भारत सरकार का दूसरा एक रिपोर्ट कहता है कि पूरे हिन्दुस्तान में पिछले पांच सात साल में जो रोजगार दिए गए हैं, उसमें 72% रोजगार अकेले गुजरात ने दिए हैं। अब इन तीनों चीजों को मिला कर देखें कि देश का ग्रोथ 19% और हमारा 85%, दूसरा रिपोर्ट कहता है कि मिनीमम बेरोजगार लोग, तीसरा रिपोर्ट कहता है कि 72% एम्लायमेंट हम देते हैं, ये तीनों को जोड़ के जब हम देखते हैं तो साफ नजर आता है कि हमारे स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज के ग्रोथ ने देश के नौजवानों की कितनी बड़ी सेवा की है। रोजगार देने के लिए एक क्षेत्र कितना बड़ा उपकारक हुआ है, कितना बड़ा लाभ हुआ है। और ये तीनो चीजें, सारे फिगर भारत सरकार के हैं।

मित्रों, इससे स्पष्ट होता है कि हमारा ये जो स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज पर बल देने का प्रयास है उसमें हम कुछ और कदम आगे बढ़ना चाहते हैं, भाईयों। और आप सब लोग शायद नहीं कर पाओगे, लेकिन मित्रों, निर्णय तो करना ही पड़ेगा..! एक है, सारी दुनिया से आया माल अब डंप हो रहा है, उसके सामने हमें टिकना है। मैं 1999-2000 की बात करता हूँ, तब तो मैं मुख्यमंत्री नहीं था लेकिन मुझे याद है, 12-15 साल पहले की बात है। मैंने उनसे कहा था कि भाई, आपकी चिंता तो सही है लेकिन इसका तो उपाय यही है कि हम चीन से अच्छे जूतें दें और चीन से सस्ते जूतें दें। अगर हम इन बातों पर बल देंगे तो कोई हमारा मुकाबला नहीं कर सकता। और हमने जब कहा कि अच्छे जूतें दें तो उसका मतलब जूतें टिकाऊ होने चाहिए, सिर्फ दिखने में अच्छे नहीं। और मैंने कहा, मेरा विश्वास है कि अगर आप टिकाऊ चीजों पर बल दोगे तो हिन्दुस्तान के ग्राहक का जो मानस है वो टिकाऊ चीजें पंसद करता है और फिर दुनिया की कोई ताकत ऐसी नहीं है कि वो उसका माल यहाँ बेच जाए। मित्रों, ये छोटा सा एक सिद्धांत है, क्या हम जिन चीज़ों का प्रोडक्शन करते हैं उसको दुनिया से जो माल हिन्दुस्तान की तरफ आ रहा है उसके सामने टिकने के लिए क्या वो टिकाउ है या नहीं, इस पर हमें गंभीरता से सोचना पड़ेगा और तभी हम इस ग्लोबल मार्केट में और इस कन्जूमरिज़म के जमाने में हम टिक पाते हैं, अदर्वाइज़ हम टिक नहीं पा सकते, मित्रों। कभी तो हमें कम मुनाफा ले कर भी टिकाउ चीज़ों पर बल देना ही पड़ेगा, ऐट द सैम टाइम, मार्केट का एक दूसरा नेचर बना है, आपने कई लोग देखे होंगे, 20 साल की उम्र में जिस प्रकार का जूता पहेनते थे, वो 75 साल के हो गए तो भी वो बदलते नहीं है। वे वो ही मोची को खोजेंगे, उसी से बनावाएंगे, ऐसा रहता था। लेकिन आज की पीढ़ी में..? आज की पीढ़ी का स्वभाव बदला है। उसको लगातार नई डिजाइन चाहिए, नया कलर चाहिए... इसका मतलब हुआ कि हमारे यहाँ लगातार रिसर्च होना चाहिए। भले ही हम स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज वाले क्यों ना हो, अगर हम मार्केट में नई चीज नहीं देंगे, तब तक हम ये दुनिया से जो मार्केट का हमला हो रहा है उसके सामने टिक नहीं सकते हैं और इसलिए हमें लगातार डिजाइनिंग हो, क्वालिटी रिसर्च हो, काम्पोनेंट रिसर्च हो, इन सारे विषयों पर बल देना पड़ेगा, क्योंकि हमें टिकना है। वरना बताइए मित्रों, जो लोग होली में पिचकारी बना कर बेचते थे, वो बेचारा साल भर पिचकारी बनाता था और होली के समय माल बेचता था और रोजी-रोटी कमाता था। उसने सब बना कर रखा है और मानो चाइना से पिचकारी आकर डम्प हो गई तो उसकी बेचारे की पिचकारी कौन खरीदेगा..! उसे चिंता रहती है। लेकिन अगर हमारी चीजें टिकाऊ हैं मित्रों, तो मैं मानता हूँ कि हम किसी भी हमले को पार कर सकते हैं।

दूसरी बात है मित्रों, कि हमें डिफेंसिव ही रहना है क्या..? कैसे भी करके अपनी रोजी-रोटी कमा लो, अपने धंधे को बचा लो यार, चला लो। बच्चे बड़े होंगे तो वे देख लेंगे, हम तो हमारा गुजरा कर लें..! ये ज्यादातर हमें सुनने को मिलता है। मैं मानता हूँ कि हमें मनोवैज्ञानिक रूप से एक बहुत बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है। हमारे उद्योग जगत के मित्रों को डिफेंसिव नहीं होना चाहिए। क्यों ना हम ये सपना देखें कि मैं जो प्रोडक्ट बना रहा हूँ, मैं दुनिया के बाजार में जाकर के, सीना तान करके बेच कर आऊंगा। हम ही क्यों ना एग्रेसिव हो..? हम पूरे विश्व के बाजार पर कब्ज़ा करने की कोशिश क्यों ना करें..? मित्रों, इस समिट के माध्यम से हम जिस तरह दुनिया की टैक्नोलॉजी लाने के लिए उत्सुक हैं, वैसे दुनिया से बाजार खोजने में भी उत्सुक हैं। विश्व में हम अपना माल कहाँ-कहाँ बेच सकते हैं कहाँ-कहाँ पहुंचा सकते हैं, कहाँ-कहाँ मार्केट की संभावना है, वहाँ की इकॉनोमी के अनुकूल हमारी प्रोडक्ट हम कैसे पहुंचा सकते हैं... अगर इन चीजों पर हमने बल दिया तो मित्रों, हमें कभी भी किस देश का कौन सा माल यहाँ आकर टपक पड़ने वाला है, किसके यहाँ से कितना डंप होने वाला है, ऐसी कोई बात हमारी चिंता का कारण नहीं बनेगी। हम यदि एग्रेसिव होते हैं, ऑफेन्सिव होते हैं, हम विश्व के बाजार पर कब्जा करने के लिए सोचते हैं... और मैं मानता हूँ मित्रों, गुजरात के लोग साहसिक हैं, ये कर सकते हैं। गुजरात के व्यापारियों में दम है, अगर उन्हें कहा जाए कि तुम गंजे को कंघा बेच कर आ जाओ तो वो बेच कर आ जाएगा। उसके अंदर वो एन्टरप्रोन्योशिप है, वो कर सकता है। अगर उसको कहा जाए कि तुम हिमालय के अंदर फ्रिज बेच के आ जाओ तो साहब, वो बेच के आ जाएगा। वो समझा देगा कि ग्लोबल वार्मिंग क्या है, हिमालय अब गर्म होने वाला है, तुम्हे फ्रिज की ऐसे जरूरत पड़ेगी..! मित्रों, जिसके अंदर ये एन्टरप्रन्योरशिप की क्वालिटी है, उसके मन में ये विचार क्यों नहीं आता है कि मैं दुनिया के बाजार पर कब्ज़ा करुँ..!

मित्रों, बदलते हुए युग में हमारी छोटी-मोटी इन्डस्ट्रीज को भी एकाध नौजवान को तो अपने यहां इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी से जुड़ा रखना ही पड़ेगा। आज ऑनलाइन बिज़नेस इतनी बड़ी मात्रा में होता है, विश्व की रिक्वायरमेंट का पता चलता है। आप किसी को भले ही दो घंटे के लिए टेम्परेरी हायर करो। कुछ ऐसे आई.टी. के बच्चे भी हो सकते हैं कि दिन में छह कंपनीओं में दो-दो घंटे सेवा दे सकते हैं, जैसे एकाउन्टेंट होते थे पहले। आपके यहां एकाउन्टेंट कोई परमानेंट थोड़े ही रखते थे, हफ्ते में दो घंटे आता था और अपना अकाउंट का काम करके चला जाता था। तो इसी प्रकार से हमें एक नई विधा डेवलप करनी होगी। ये जो आई.टी. के क्षेत्र में जिन बच्चों एक्सपर्टीज़ हैं, ऐसे बच्चों की हफ्ते में दो-तीन घंटे सेवा लेना, उनको कहना कि भाई, दुनिया में देखो क्या-क्या हो रहा है, नई टैक्नोलॉजी क्या है, नई व्यापार की संभावनाएं क्या है, देखो और कॉरस्पोन्डैंस करो, अपना माल हम बेच सकते हैं क्या..? मित्रों, थोड़ा अगर आप सोचोगे तो आज जगत इतना छोटा हो गया है कि हम अपना मार्केट खोज सकते हैं और अगर प्रोडक्ट में दम है तो मित्रों, हम अपनी बात दुनिया में पहुंचा भी सकते हैं और माल भी पहुंचा सकते हैं और मुझे लगता है कि हमारे गुजरात के उद्योगकारों को उस दिशा में विचार करना चाहिए।

क और बात है, मित्रों। मैंने देखा है कि कई हमारे उद्योगकार जिन्होंने अपनी चीजों को विशेष रूप से बनाया है, लेकिन अब पुराने जमाने का हमारा स्वाभाव है और उसके कारण हम हमारे प्रोडक्ट का पेटेंट नहीं करवाते हैं। कोई छोटा भी कोई उद्योगकार क्यों ना हो, हमें पेटेंट करवाना चाहिए। मित्रों, इस बार मैं अब से एक काम करने वाला हूँ। सरकार के अंदर जो इन्डेक्स-बी जैसे जो हमारे डिपार्टमेंट हैं, अब के बाद हम डेडिकेटिड टू द स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज, एक पूरा यूनिट सरकार के उद्योग विभाग में खोलने वाले हैं। पूरी एक सरकारी व्यवस्था डेडिकेटिड टू द स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज़ होगी। वो लघु उद्योगो के लिए, छोटे उद्योगों के लिए, कॉटेज इन्डस्ट्रीज के लिए होगा और उनको इस प्रकार की कानूनी मदद कैसे मिले जैसे कि पेटेंट कैसे करवाना, पेटेंट कैसे रजिस्टर होगा, उसकी कंपनी का नाम होगा, ब्रांड होगा, प्रेासेस होगा, प्रोडक्ट होगा... इन सारी बातों में सरकार आपकी मदद करना चाहती है। आने वाले दिनों में उस इकाई को भी हम खड़ा करेंगे जिसके कारण छोटे-छोटे लोगों को भी मदद मिलेगी। वरना क्या होता है, आप एक चीज बना लीजिए, दूसरा उसको खोल कर के, सोचेगा कि हाँ यार, ये तो मैं भी कर सकता हूँ, तो वो भी अपने यहां शुरू कर देगा..! और उसके कारण जिसने मेहनत की हो उसको तो बेचारे को मुसीबत हो जाती है। तो हम चाहते हैं कि आपकी सिक्योरिटी के लिए भी व्यवस्था हो और हमारी सरकार की तरफ से हम आपकी मदद करना चाहते हैं ताकि आपके पास जो नॉलेज है, इनोवेशन है, उसका पेटेंट आपके पास रहे, वो आपकी अथॉरिटी बनी रहे, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।

र एक बात है मित्रों, हम सब लोग छुट-पुट अपनी चीजों के लिए दुनिया में अपनी जगह जल्दी बना नहीं सकते। हब सबको मालूम है कि आज से पाँच-दस साल पहले बाजार में हम पैन भी खरीदने जाते थे और अगर उस पर ‘मेड इन जापान’ लिखा है तो हम कभी पूछते नहीं थे कि जापान की किस कंपनी ने इस पेन को बनाया है, कभी नहीं पूछते थे..! उस पेन पर कंपनी का नाम भी नहीं लिखा होता था, लेकिन सिर्फ ‘मेड इन जापान’ लिखा है तो हम खरीद लेते थे, अपनी जेब में रखते थे और अपने दस दोस्तों को महीने भर बताते थे कि देखिए, ‘मेड इन जापान’ है..! ये था एक जमाना..! इसका मतलब ये हुआ कि उन्होंने अपना एक ब्रांड बना लिया, फिर सब कंपनियों का माल ‘मेड इन जापान’ लिख दिया तो बाजार में चल जाता था। मित्रों, हमारे लिए भी आवश्यक है कि हम हर कंपनी का ब्रांड बनाने जाएंगे तो शायद हमारी इतनी पहुंच भी नहीं होगी और इतनी ताकत भी नहीं होगी, लेकिन अगर हम ‘मेड इन गुजरात, इंडिया’ ये अगर माहौल बना दें..! मित्रों, ये बहुत आवश्यक है और इसलिए मेरा आग्रह है कि हम आज मिले हैं उस पर चर्चा करें, आपके छोटे-छोटे एसोसिएशन में भी इस पर चर्चा हो, लेकिन कभी ना कभी इस दिशा में सोचना होगा। लेकिन ये तब होगा, केवल उस पर लिख दिया ‘मेड इन गुजरात, इंडिया’ उससे काम नहीं होता है। हमें हमारी प्रोडक्ट की क्वालिटी के विषय में कोई कॉम्प्रोमाइज नहीं रहने देने के नॉर्म्स बनाने पड़ेंगे। जीरो डिफैक्ट, हम जो भी मैन्यूफक्चर करते हैं, जो भी प्रोडक्ट करते हैं, उसमें अगर जीरो डिफैक्ट होगा तब जाकर दुनिया में हम खड़े हो सकते हैं, हम जो प्रोडक्ट करते हैं वो कॉस्ट इफैक्टिव है तो दुनिया में जाकर हम खड़े हो सकते हैं, हम जो प्रोडक्ट करते हैं वो टिकाऊ है तो हम दुनिया में जा करके खड़े रह सकते हैं और इसलिए भाईयों-बहनों, हमें उस दिशा में काम करना होगा।

र एक मार्केटेबल चीज आज बाजार में है। आप अगर अपने प्रोडक्ट के साथ ये कहो कि ये एन्वायरमेंट फ्रेन्डली टैक्नोलॉजी से बनी है तो दुनिया का एक बहुत बड़ा वर्ग है जो उसको खरीदता है। आज भी जैसे खान-पान में एक बहुत बड़ा वर्ग तैयार हुआ है, उसको अगर ये कहो कि लीजिए खाइए, तो वो कहेगा कि नहीं-नहीं, अभी मैं खाना खा कर आया हूँ, अभी मेरा मन नहीं करता है। लेकिन उसको अगर आप धीरे से ये कहो कि नहीं-नहीं खाइए ना, ये आर्गेनिक है, तो वो तुरंत कहेगा, अच्छा आर्गेनिक है, लाइए-लाइए..! अब चीजें चल पड़ती हैं भइया, अब उसके पास कोई लेबोरेटरी तो है नहीं कि टेस्ट करेगा कि आर्गेनिक है कि नहीं है, लेकिन वो खाएगा कि आर्गेनिक है..! मित्रों, हमें झूठ नहीं करना है, सही करना है। एन्वायरमेंट फ्रेन्डली टैक्नोलॉजी, ये भी प्रोडक्ट के साथ-साथ बिकने वाली चीज बनने वाली है। दुनिया में हर चीज को देखिए, अच्छा ये एन्वायर फ्रेन्डली टैक्नोलॉजी है तो ठीक है..! और इसलिए मित्रों, दुनिया के मार्केट की जो सोच बदल रही है, कंज्यूमर की जो सोच बदल रही है, उन चीजों को भी हमारी स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज ग्लोबल विजन के साथ तैयार करे ये मेरा सपना है। वो यहां धौलका-धंधुका में माल बेचे इसके लिए हम इतनी मेहनत नहीं कर रहे हैं, मित्रों। दुनिया के बाजार में छाती पर पैर रख के मेरे गुजरात का व्यापारी माल बेचे इसके लिए हम ये कोशिश कर रहे हैं। विश्व के बाजार में हमें अपना कदम रखना है इसके लिए हमारी कोशिश है। हिन्दुस्तान में तो है, हिन्दुस्तान में तो आपका माल बिकना ही बिकना है, आपकी अपनी एक प्रतिष्ठा है, लेकिन उस दिशा में हम प्रयास करें।

मित्रों, मैं चाहता हूँ कि पूरा दिन इस विषय पर चर्चा होने वाली है, बहुत ही एक्सपर्ट लोगों से हमें मदद मिलने वाली है और इस विधा को हम लगातार आगे बढ़ाना चाहते हैं और मेरा मकसद है मित्रों, नई टैक्नोलॉजी कैसे आए, नए इनोवेशंस कैसे हों, अधिकतम नौजवानों को रोजगार कैसे मिले, इसके लिए अनुकूल स्कूल डेवलपमेंट कैसे हो और हम विश्व के बाजार को अपना माल पहुंचाने के लिए किस प्रकार से एग्रेसिव, प्रो-एक्टिव हो कर के काम करें, हम डिफेंसिव ना हों, उस दिशा में आगे बढ़ें। मेरी आप सब को बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं, धन्यवाद..!

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संविधान हमारा मार्गदर्शक है: पीएम मोदी
देश के नागरिकों को संविधान की विरासत से जोड़ने के लिए constitution75.com नाम से एक खास वेबसाइट बनाई गई है: पीएम
महाकुंभ का संदेश, एक हो पूरा देश: ‘मन की बात’ में पीएम मोदी
हमारे फिल्म और मनोरंजन उद्योग ने 'एक भारत-श्रेष्ठ भारत' की भावना को मजबूत किया है: पीएम
राज कपूर जी ने फिल्मों के माध्यम से दुनिया को भारत की सॉफ्ट पावर से परिचित कराया: पीएम मोदी
रफी साहब की आवाज में वो जादू था जो हर दिल को छू लेता था: पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में महान गायक को याद किया
कैंसर से लड़ने का एक ही मंत्र है - जागरूकता, कार्रवाई और भरोसा: पीएम मोदी
आयुष्मान भारत योजना ने कैंसर के इलाज में होने वाली वित्तीय समस्याओं को काफी हद तक कम कर दिया है: पीएम मोदी

मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 2025 बस अब तो आ ही गया है, दरवाजे पर दस्तक दे ही रहा है | 2025 में 26 जनवरी को हमारे संविधान को लागू हुए 75 वर्ष होने जा रहे हैं | हम सभी के लिए बहुत गौरव की बात है | हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें जो संविधान सौंपा है वो समय की हर कसौटी पर खरा उतरा है | संविधान हमारे लिए guiding light है, हमारा मार्गदर्शक है | ये भारत का संविधान ही है जिसकी वजह से मैं आज यहाँ हूँ, आपसे बात कर पा रहा हूँ | इस साल 26 नवंबर को संविधान दिवस से एक साल तक चलने वाली कई activities शुरू हुई हैं | देश के नागरिकों को संविधान की विरासत से जोड़ने के लिए constitution75.com नाम से एक खास website भी बनाई गई है | इसमें आप संविधान की प्रस्तावना पढ़कर अपना video upload कर सकते हैं | अलग-अलग भाषाओं में संविधान पढ़ सकते हैं, संविधान के बारे में प्रश्न भी पूछ सकते हैं | ‘मन की बात’ के श्रोताओं से, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों से, कॉलेज में जाने वाले युवाओं से, मेरा आग्रह है, इस website पर जरूर जाकर देखें, इसका हिस्सा बनें |

साथियो,

अगले महीने 13 तारीख से प्रयागराज में महाकुंभ भी होने जा रहा है | इस समय वहां संगम तट पर जबरदस्त तैयारियाँ चल रही हैं | मुझे याद है, अभी कुछ दिन पहले जब मैं प्रयागराज गया था तो हेलिकॉप्टर से पूरा कुम्भ क्षेत्र देखकर दिल प्रसन्न हो गया था | इतना विशाल! इतना सुंदर! इतनी भव्यता!

साथियो,

महाकुंभ की विशेषता केवल इसकी विशालता में ही नहीं है | कुंभ की विशेषता इसकी विविधता में भी है | इस आयोजन में करोड़ों लोग एक साथ एकत्रित होते हैं | लाखों संत, हजारों परम्पराएँ, सैकड़ों संप्रदाय, अनेकों अखाड़े, हर कोई इस आयोजन का हिस्सा बनता है | कहीं कोई भेदभाव नहीं दिखता है, कोई बड़ा नहीं होता है, कोई छोटा नहीं होता है | अनेकता में एकता का ऐसा दृश्य विश्व में कहीं और देखने को नहीं मिलेगा | इसलिए हमारा कुंभ एकता का महाकुंभ भी होता है | इस बार का महाकुंभ भी एकता के महाकुंभ के मंत्र को सशक्त करेगा | मैं आप सबसे कहूँगा, जब हम कुंभ में शामिल हों, तो एकता के इस संकल्प को अपने साथ लेकर वापस आयें | हम समाज में विभाजन और विद्वेष के भाव को नष्ट करने का संकल्प भी लें | अगर कम शब्दों में मुझे कहना है तो मैं कहूँगा...

महाकुंभ का संदेश, एक हो पूरा देश |

महाकुंभ का संदेश, एक हो पूरा देश |

और अगर दूसरे तरीके से कहना है तो मैं कहूँगा...

गंगा की अविरल धारा, न बँटे समाज हमारा ||

गंगा की अविरल धारा, न बँटे समाज हमारा ||

साथियो,

इस बार प्रयागराज में देश और दुनिया के श्रद्धालु digital महाकुंभ के भी साक्षी बनेंगे | Digital Navigation की मदद से आपको अलग-अलग घाट, मंदिर, साधुओं के अखाड़ों तक पहुँचने का रास्ता मिलेगा | यही navigation system आपको parking तक पहुँचने में भी मदद करेगा | पहली बार कुंभ आयोजन में AI chatbot का प्रयोग होगा | AI chatbot के माध्यम से 11 भारतीय भाषाओं में कुंभ से जुड़ी हर तरह की जानकारी हासिल की जा सकेगी | इस chatbot से कोई भी text type करके या बोलकर किसी भी तरह की मदद मांग सकता है | पूरा मेला क्षेत्र को AI-Powered cameras से cover किया जा रहा है | कुंभ में अगर कोई अपने परिचित से बिछड़ जाएगा तो इन कैमरों से उन्हें खोजने में भी मदद मिलेगी | श्रद्धालुओं को digital lost & found center की सुविधा भी मिलेगी | श्रद्धालुओं को मोबाईल पर government-approved tour packages, ठहरने की जगह और homestay के बारे में भी जानकारी दी जाएगी | आप भी महाकुंभ में जाएँ तो इन सुविधाओं का लाभ उठाएँ और हाँ #एकता का महाकुंभ के साथ अपनी selfie जरूर uplaod करिएगा |

साथियो,

‘मन की बात’ यानि MKB में अब बात KTB की, जो बड़े बुजुर्ग हैं, उनमें से, बहुत से लोगों को KTB के बारे में पता नहीं होगा | लेकिन जरा बच्चों से पूछिए KTB उनके बीच बहुत ही superhit है | KTB यानि कृष, तृष और बाल्टीबॉय | आपको शायद पता होगा बच्चों की पसंदीदा animation series और उसका नाम है KTB – भारत हैं हम और अब इसका दूसरा season भी आ गया है | ये तीन animation character हमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन नायक-नायिकाओं के बारे में बताते हैं जिनकी ज्यादा चर्चा नहीं होती | हाल ही में इसका season-2 बड़े ही खास अंदाज में International Film Festival of India, Goa में launch हुआ | सबसे शानदार बात ये है कि ये series न सिर्फ भारत की कई भाषाओं में बल्कि विदेशी भाषाओं में भी प्रसारित होती है | इसे दूरदर्शन के साथ-साथ अन्य OTT platform पर भी देखा जा सकता है |

साथियो,

हमारी animation फिल्मों की, regular फिल्मों की, टीवी serials की, popularity दिखाती है कि भारत की creative industry में कितनी क्षमता है | यह industry न सिर्फ देश की प्रगति में बड़ा योगदान दे रही है, बल्कि, हमारी economy को भी नई ऊंचाइयों पर ले जा रही है | हमारी Film & Entertainment industry बहुत विशाल है | देश की कितनी ही भाषाओं में फिल्में बनती हैं, creative content बनता है | मैं अपनी film और entertainment industry को इसलिए भी बधाई देता हूँ, क्योंकि उसने ‘एक भारत – श्रेष्ठ भारत’ के भाव को सशक्त किया है |

साथियो,

वर्ष 2024 में हम फिल्म जगत की कई महान हस्तियों की 100वीं जयंती मना रहे हैं | इन विभूतियों ने भारतीय सिनेमा को विश्व-स्तर पर पहचान दिलाई | राज कपूर जी ने फिल्मों के माध्यम से दुनिया को भारत की soft power से परिचित कराया | रफ़ी साहब की आवाज में वो जादू था जो हर दिल को छू लेता था | उनकी आवाज अद्भुत थी | भक्ति गीत हों या romantic songs, दर्द भरे गाने हों, हर emotion को उन्होंने अपनी आवाज से जीवंत कर दिया | एक कलाकार के रूप में उनकी महानता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी युवा-पीढ़ी उनके गानों को उतनी ही शिद्दत से सुनती है - यही तो है timeless art की पहचान | अक्किनेनी नागेश्वर राव गारू ने तेलुगु सिनेमा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है | उनकी फिल्मों ने भारतीय परंपराओं और मूल्यों को बखूबी प्रस्तुत किया | तपन सिन्हा जी की फिल्मों ने समाज को एक नई दृष्टि दी | उनकी फिल्मों में सामाजिक चेतना और राष्ट्रीय एकता का संदेश रहता था | हमारी पूरी film industry के लिए इन हस्तियों का जीवन प्रेरणा जैसा है |

साथियो,

मैं आपको एक और खुशखबरी देना चाहता हूँ | भारत की creative talent को दुनिया के सामने रखने का एक बहुत बड़ा अवसर आ रहा है | अगले साल हमारे देश में पहली बार World Audio Visual Entertainment Summit यानि WAVES summit का आयोजन होने वाला है | आप सभी ने दावोस के बारे में सुन होगा जहां दुनिया के अर्थजगत के महारथी जुटते हैं | उसी तरह WAVES summit में दुनिया-भर के media और entertainment industry के दिग्गज, creative world के लोग भारत आएंगे | यह summit भारत को global content creation का hub बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है | मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि इस summit की तैयारी में हमारे देश के young creators भी पूरे जोश से जुड़ रहे हैं | जब हम 5 trillion dollar economy की ओर बढ़ रहे हैं, तब हमारी creator economy एक नई energy ला रही है | मैं भारत की पूरी entertainment और creative industry से आग्रह करूंगा – चाहे आप young creator हों या established artist, Bollywood से जुड़े हों, या regional cinema से, TV industry के professional हों, या animation के expert, gaming से जुड़े हों या entertainment technology के innovator, आप सभी WAVES summit का हिस्सा बनें |

मेरे प्यारे देशवासियो,

आप सभी जानते हैं कि भारतीय संस्कृति का प्रकाश आज कैसे दुनिया के कोने-कोने में फैल रहा है | आज मैं आपको तीन महाद्वीपों से ऐसे प्रयासों के बारे में बताऊंगा, जो हमारी सांस्कृतिक विरासत के वैश्विक विस्तार की गवाह है | ये सभी एक दूसरे से मिलों दूर हैं | लेकिन भारत को जानने और हमारी संस्कृति से सीखने की उनकी ललक एक जैसी है |

साथियो,

Paintings का संसार जितना रंगों से भरा होता है, उतना ही खूबसूरत होता है | आप में से जो लोग टीवी के माध्यम से ‘मन की बात’ से जुड़े हैं, वे अभी कुछ paintings टीवी पर देख भी सकते हैं | इन Paintings में हमारे देवी-देवता, नृत्य की कलाएं और महान विभूतियों को देखकर आपको बहुत अच्छा लगेगा | इनमें आपको भारत में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं से लेकर और भी बहुत कुछ देखने को मिलेगा | इनमें ताजमहल की एक शानदार Painting भी शामिल है, जिसे 13 साल की एक बच्ची ने बनाया है | आपको ये जानकार हैरानी होगी इस दिव्यांग बच्ची ने अपने मुहँ से इस panting को तैयार किया है | सबसे दिलचस्प बात यह है कि इन Painting को बनाने वाले भारत के नहीं, बल्कि Egypt के students हैं, वहाँ के विद्यार्थी हैं | कुछ ही हफ्ते पहले Egypt के करीब 23 हजार students ने एक painting प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था | वहाँ उन्हें भारत की संस्कृति और दोनों देशों के ऐतिहासिक संबंधों को बताने वाली paintings तैयार करनी थी | मैं इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले सभी युवाओं की सराहना करता हूँ | उनकी creativity की जितनी भी प्रशंसा की जाए वो कम है |

साथियो,

दक्षिण अमेरिका का एक देश है पराग्वे | वहाँ रहने वाले भारतीयों की संख्या एक हजार से ज्यादा नहीं होगी | पराग्वे में एक अद्भुत प्रयास हो रहा है | वहाँ भारतीय दूतावास में एरीका ह्युबर free आयुर्वेद consultation देती हैं | आयुर्वेद की सलाह लेने के लिए आज उनके पास स्थानीय लोग भी बड़ी संख्या में पहुँच रहे हैं | एरीका ह्युबर ने भले ही engineering की पढ़ाई की हो, लेकिन उनका मन तो आयुर्वेद में ही बसता है | उन्होंने आयुर्वेद से जुड़े Courses किए थे और समय के साथ वे इसमें पारंगत होती चली गई |

साथियो,

ये हमारे लिए बहुत गर्व की बात है कि दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल है और हर हिन्दुस्तानी को इसका गर्व है | दुनियाभर के देशों में इसे सीखने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है | पिछले महीने के आखिर में फ़िजी में भारत सरकार के सहयोग से Tamil Teaching Programme शुरू हुआ | बीते 80 वर्षों में यह पहला अवसर है, जब फ़िजी में तमिल के Trained Teachers इस भाषा को सिखा रहे हैं | मुझे ये जानकार अच्छा लगा कि आज फ़िजी के students तमिल भाषा और संस्कृति को सीखने में काफी दिलचस्पी ले रहे हैं |

साथियो,

ये बातें, ये घटनाएं, सिर्फ सफलता की कहानियाँ नहीं है | ये हमारी सांस्कृतिक विरासत की भी गाथाएं हैं | ये उदाहरण हमें गर्व से भर देते हैं | Art से आयुर्वेद तक और Language से लेकर Music तक, भारत में इतना कुछ है, जो दुनिया में छा रहा है |

साथियो,

सर्दी के इस मौसम में देश-भर से खेल और fitness को लेकर कई activities हो रही हैं | मुझे खुशी है कि लोग fitness को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना रहे हैं | कश्मीर में Skiing से लेकर गुजरात में पतंगबाजी तक, हर तरफ, खेल का उत्साह देखने को मिल रहा है | #SundayOnCycle और #CyclingTuesday जैसे अभियानों से Cycling को बढ़ावा मिल रहा है |

साथियो,

अब मैं आपको एक ऐसी अनोखी बात बताना चाहता हूँ जो हमारे देश में आ रहे बदलाव और युवा साथियों के जोश और जज्बे का प्रतीक है | क्या आप जानते हैं कि हमारे बस्तर में एक अनूठा Olympic शुरू हुआ है! जी हाँ, पहली बार हुए बस्तर Olympic से बस्तर में एक नई क्रांति जन्म ले रही है | मेरे लिए ये बहुत ही खुशी की बात है कि बस्तर Olympic का सपना साकार हुआ है | आपको भी ये जानकार अच्छा लगेगा कि यह उस क्षेत्र में हो रहा है, जो कभी माओवादी हिंसा का गवाह रहा है | बस्तर Olympic का शुभंकर है – ‘वन भैंसा’ और ‘पहाड़ी मैना’ | इसमें बस्तर की समृद्ध संस्कृति की झलक दिखती है | इस बस्तर खेल महाकुंभ का मूल मंत्र है –

‘करसाय ता बस्तर बरसाए ता बस्तर’

यानि ‘खेलेगा बस्तर – जीतेगा बस्तर’ |

पहली ही बार में बस्तर Olympic में 7 जिलों के एक लाख 65 हजार खिलाड़ियों ने भाग लिया है | यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है – यह हमारे युवाओं के संकल्प की गौरव-गाथा है | Athletics, तीरंदाजी, Badminton, Football, Hockey, Weightlifting, Karate, कबड्डी, खो-खो और Volleyball – हर खेल में हमारे युवाओं ने अपनी प्रतिभा का परचम लहराया है | कारी कश्यप जी की कहानी मुझे बहुत प्रेरित करती है | एक छोटे से गांव से आने वाली कारी जी ने तीरंदाजी में रजत पदक जीता है | वे कहती हैं – “बस्तर Olympic ने हमें सिर्फ खेल का मैदान ही नहीं, जीवन में आगे बढ़ने का अवसर दिया है” | सुकमा की पायल कवासी जी की बात भी कम प्रेरणादायक नहीं है | Javelin Throw में स्वर्ण पदक जीतने वाली पायल जी कहती हैं – “अनुशासन और कड़ी मेहनत से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है” | सुकमा के दोरनापाल के पुनेम सन्ना जी की कहानी तो नए भारत की प्रेरक कथा है | एक समय नक्सली प्रभाव में आए पुनेम जी आज wheelchair पर दौड़कर मेडल जीत रहे हैं | उनका साहस और हौसला हर किसी के लिए प्रेरणा है | कोडागांव के तीरंदाज रंजू सोरी जी को ‘बस्तर youth icon’ चुना गया है | उनका मानना है – बस्तर Olympic दूरदराज के युवाओं को राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाने का अवसर दे रहा है |

साथियो,

बस्तर Olympic केवल एक खेल आयोजन नहीं है I यह एक ऐसा मंच है जहां विकास और खेल का संगम हो रहा है I जहां हमारे युवा अपनी प्रतिभा को निखार रहे हैं और एक नए भारत का निर्माण कर रहे हैं I मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ :

अपने क्षेत्र में ऐसे खेल आयोजनों को प्रोत्साहित करें

#खेलेगा भारत – जीतेगा भारत के साथ अपने क्षेत्र की खेल प्रतिभाओं की कहानियां साझा करें

स्थानीय खेल प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का अवसर दें

याद रखिए, खेल से, न केवल शारीरिक विकास होता है, बल्कि ये Sportsman spirit से समाज को जोड़ने का भी एक सशक्त माध्यम है I तो खूब खेलिए-खूब खिलिए |

मेरे प्यारे देशवासियो,

भारत की दो बड़ी उपलब्धियां आज विश्व का ध्यान आकर्षित कर रही हैं I इन्हें सुनकर आपको भी गर्व महसूस होगा I ये दोनों सफलताएं स्वास्थ्य के क्षेत्र में मिली हैं I पहली उपलब्धि मिली है – मलेरिया से लड़ाई में | मलेरिया की बीमारी चार हजार वर्षों से मानवता के लिए एक बड़ी चुनौती रही है I आजादी के समय भी यह हमारी सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक थी I एक महीने से लेकर पांच साल तक के बच्चों की जान लेने वाली सभी संक्रामक बीमारियों में मलेरिया का तीसरा स्थान है I आज, मैं संतोष से कह सकता हूँ कि देशवासियों ने मिलकर इस चुनौती का दृढ़ता से मुकाबला किया है I विश्व स्वास्थ्य संगठन – WHO की रिपोर्ट कहती है – “भारत में 2015 से 2023 के बीच मलेरिया के मामलों और इससे होने वाली मौतों में 80 प्रतिशत की कमी आई है” I यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है I सबसे सुखद बात यह है, यह सफलता जन-जन की भागीदारी से मिली है I भारत के कोने-कोने से, हर जिले से हर कोई इस अभियान का हिस्सा बना है I असम में जोरहाट के चाय बागानों में मलेरिया चार साल पहले तक लोगों की चिंता की एक बड़ी वजह बना हुआ था I लेकिन जब इसके उन्मूलन के लिए चाय बागान में रहने वाले एकजुट हुए, तो इसमें काफी हद तक सफलता मिलने लगी I अपने इस प्रयास में उन्होनें Technology के साथ-साथ Social media का भी भरपूर इस्तेमाल किया है I इसी तरह हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले ने मलेरिया पर नियंत्रण के लिए बड़ा अच्छा model पेश किया I यहां मलेरिया की monitoring के लिए जनभागीदारी काफी सफल रही है I नुक्कड़ नाटक और रेडियो के जरिए ऐसे संदेशों पर जोर दिया गया, जिससे मच्छरों की breeding कम करने में काफी मदद मिली है I देश-भर में ऐसे प्रयासों से ही हम मलेरिया के खिलाफ जंग को और तेजी से आगे बढ़ा पाए है I

साथियो,

अपनी जागरूकता और संकल्प शक्ति से हम क्या कुछ हासिल कर सकते हैं, इसका दूसरा उदाहरण है cancer से लड़ाई I दुनिया के मशहूर Medical Journal Lancet की study वाकई बहुत उम्मीद बढ़ाने वाली है I इस Journal के मुताबिक अब भारत में समय पर cancer का इलाज शुरू होने की संभावना काफी बढ़ गई है I समय पर इलाज का मतलब है – cancer मरीज का treatment 30 दिनों के भीतर ही शुरू हो जाना और इसमें बड़ी भूमिका निभाई है – ‘आयुष्मान भारत योजना’ ने | इस योजना की वजह से cancer के 90 प्रतिशत मरीज, समय पर अपना इलाज शुरू करा पाए हैं | ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि पहले पैसे के अभाव में गरीब मरीज cancer की जांच में, उसके इलाज से कतराते थे I अब ‘आयुष्मान भारत योजना’ उनके लिए बड़ा संबल बनी है I अब वो आगे बढ़कर अपना इलाज कराने के लिए आ रहे हैं I ‘आयुष्मान भारत योजना’ ने cancer के इलाज में आने वाली पैसों की परेशानी को काफी हद तक कम किया है I अच्छा ये भी है, कि आज समय पर, cancer के इलाज को लेकर, लोग, पहले से कहीं अधिक जागरूक हुए हैं I यह उपलब्धि जितनी हमारे Healthcare system की है, डॉक्टरों, नर्सों और Technical staff की है, उतनी ही, आप, सभी मेरे नागरिक भाई-बहनों की भी है I सबके प्रयास से cancer को हारने का संकल्प और मजबूत हुआ है I इस सफलता का credit उन सभी को जाता है, जिन्होनें जागरूकता फैलाने में अपना अहम योगदान दिया है I

Cancer से मुकाबले के लिए एक ही मंत्र है - Awareness, Action और Assurance. Awareness यानि cancer और इसके लक्षणों के प्रति जागरूकता, Action यानि समय पर जांच और इलाज, Assurance यानि मरीजों के लिए हर मदद उपलब्ध होने का विश्वास I आईए, हम सब मिलकर cancer के खिलाफ इस लड़ाई को तेजी से आगे ले जाएं और ज्यादा-से-ज्यादा मरीजों की मदद करें I

मेरे प्यारे देशवासियो,

आज मैं आपको ओडिशा के कालाहांडी के एक ऐसे प्रयास की बात बताना चाहता हूँ, जो कम पानी और कम संसाधनों के बावजूद सफलता की नई गाथा लिख रहा है | ये है कालाहांडी की ‘सब्जी क्रांति’ | जहां, कभी किसान, पलायन करने को मजबूर थे, वहीं आज, कालाहांडी का गोलामुंडा ब्लॉक एक vegetable hub बन गया है | यह परिवर्तन कैसे आया? इसकी शुरुआत सिर्फ 10 किसानों के एक छोटे से समूह से हुई | इस समूह ने मिलकर एक FPO - ‘किसान उत्पाद संघ’ की स्थापना की, खेती में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया, और आज उनका ये FPO करोड़ों का कारोबार कर रहा है | आज 200 से अधिक किसान इस FPO से जुड़े हैं, जिनमें 45 महिला किसान भी हैं | ये लोग मिलकर 200 एकड़ में टमाटर की खेती कर रहे हैं, 150 एकड़ में करेले का उत्पादन कर रहे हैं | अब इस FPO का सालाना turnover भी बढ़कर डेढ़ करोड़ से ज्यादा हो गया है | आज कालाहांडी की सब्जियां, न केवल ओडिशा के विभिन्न जिलों में, बल्कि, दूसरे राज्यों में भी पहुँच रही हैं, और वहाँ का किसान, अब, आलू और प्याज की खेती की नई तकनीकें सीख रहा है |

साथियो,

कालाहांडी की यह सफलता हमें सिखाती है कि संकल्प शक्ति और सामूहिक प्रयास से क्या नहीं किया जा सकता | मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ :-

अपने क्षेत्र में FPO को प्रोत्साहित करें

किसान उत्पादक संगठनों से जुड़ें और उन्हें मजबूत बनाएं |

याद रखिए – छोटी शुरुआत से भी बड़े परिवर्तन संभव हैं | हमें, बस, दृढ़ संकल्प और टीम भावना की जरूरत है |

साथियो,

आज की ‘मन की बात’ में हमने सुना, कि कैसे हमारा भारत, विविधता में एकता के साथ आगे बढ़ रहा है | चाहे वो खेल का मैदान हो या विज्ञान का क्षेत्र, स्वास्थ हो या शिक्षा – हर क्षेत्र में भारत नई ऊंचाइयों को छू रहा है | हमने एक परिवार की तरह मिलकर हर चुनौती का सामना किया और नई सफलताएं हासिल की | 2014 से शुरू हुए ‘मन की बात’ के 116 episodes में मैंने देखा है कि ‘मन की बात’ देश की सामूहिक शक्ति का एक जीवंत दस्तावेज़ बन गया है | आप सभी ने इस कार्यक्रम को अपनाया, अपना बनाया | हर महीने आपने अपने विचारों और प्रयासों को साझा किया | कभी किसी young innovator के idea ने प्रभावित किया, तो कभी किसी बेटी की achievement ने गौरवान्वित किया | ये आप सभी की भागीदारी है जो देश के कोने-कोने से positive energy को एक साथ लाती है | ‘मन की बात’ इसी positive energy के amplification का मंच बन गया है, और अब, 2025 दस्तक दे रहा है | आने वाले साल में ‘मन की बात’ के माध्यम से हम और भी inspiring प्रयासों को साझा करेगें | मुझे विश्वास है कि देशवासियों की positive सोच और innovation की भावना से भारत नई ऊंचाइयों को छूएगा | आप अपने आस-पास के unique प्रयासों को #Mannkibaat के साथ share करते रहिए | मैं जानता हूँ कि अगले साल की हर ‘मन की बात’ में हमारे पास एक दूसरे से साझा करने के लिए बहुत कुछ होगा | आप सभी को 2025 की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं | स्वस्थ रहें, खुश रहें, Fit India Movement में आप भी जुड़ जाइए, खुद को भी fit रखिए | जीवन में प्रगति करते रहें |

बहुत-बहुत धन्यवाद |