दि. २२/११/२०११
कराई पुलिस अकादमी, गांधीनगर
१९६० में गुजरात ने अपनी विकास यात्रा को प्रारंभ किया. इतने वर्षों में यह पहली घटना है कि पुलिस फोर्स में पी.एस.आई., जो एक महत्वपूर्ण इकाई है, उनकी इतनी बड़ी संख्या में एक साथ पास-आउट परेड हो रही है. यह भी बड़े गर्व की बात है कि इन ५३० में ६८ महिलाएँ हैं. पिछले ५० वर्षों में इस प्रकार के पास-आउट परेड में महिलाओं की जितनी टोटल संख्या थी, उससे यह ज्यादा है, एक ही परेड में. यह बात भी ध्यान में आयी है कि आज बहुत बड़ी संख्या में हाइली क्वॉलिफाइड नौजवान हैं जिन्होंने इस क्षेत्र को एक मिशन के रूप में स्वीकार किया है. इसमें कई इंजीनियर्स हैं, कई ऐसे नौजवान हैं जिन्होंने डॉक्टरेट किया है, बहुत सारे नौजवान लॉ ग्रेज्युएट हैं, बहुत सारे ऐसे हैं जो कभी शिक्षक थे, उस क्षेत्र को छोडकर यहाँ आये हैं. बहुत सारे नौजवान हैं जो सरकार में किसी न किसी पद पर थे, उसे छोडकर यहाँ आये हैं. तो एक मिशन के रूप में इस क्षेत्र में आना यह अपने आप में गुजरात के पुलिस दल के लिए एक शुभ संकेत है और इस बात पर मैं स्वय़ं गर्व अनुभव करता हूँ और आप सभी नौजवानों को इस क्षेत्र को चुनने के लिए मैं बधाई देता हूँ, अभिनंदन करता हूँ. मित्रों, एक कसौटी का काल रहता है, जब ट्रेनिंग होती है. कभी-कभी कुछ पल ऐसे भी आ जाते हैं कि जब लगता है इतनी मेहनत क्यों? ऐसे सुबह से शाम, महीनों तक जब ट्रेनिंग में होते हैं तो लगता है कि चलो भाई, जितनी जल्दी से निकल जाएँ, अच्छा होगा. और ऐसा लगना बहुत स्वाभाविक है. लेकिन यदि मंज़िल तक पहुँचना है तो सफ़र कितना ही कठिन क्यों न हो, उसको यदि हँसते-हँसते पार करते हैं तभी मंज़िल पर पहुँचने का आनंद आता है. आज आप सभी के लिए वही आनंद का पल है.
मित्रों, यहाँ जो शिक्षा-दीक्षा होती है, वो एक सर्टिफिकेट पाने के लिए, या एक ट्रोफी पाने के लिए नहीं होती है, नौकरी में स्थान पाने के लिए नहीं होती है, इस प्रकार की जो ट्रेनिंग होती है उसे जीवन भर जीना पडता है. और जीवन में वही सफल होता है जो शिक्षाकाल में जो पाया है, उसको जीवन की आदत बनाता है. यहाँ तो डिसीप्लिन में रहना स्वाभाविक है क्योंकि यह तो यहाँ की व्यवस्था में है, यहाँ जल्दी उठना स्वाभाविक है क्योंकि हम एक व्यवस्था में हैं. सुबह बिगुल बजता होगा, व्हिसल बजती होगी, वो हमें एक धरने मे ले जाती होगी. जब किसी एक व्यवस्था की चौखट में होते हैं तब अपने आपको ढालना मुश्किल नहीं होता है. कभी हमें एक तीन बाइ छ: के कमरे में रहने के लिए कोई कहे तो हम रह नहीं पाते और कोई कहे कि ४८ अवर्स आपको इसी में रहना है, कैसे भी गुजारा करना है, तो एक बोझ महसूस होता है. लेकिन यदि ४८ अवर्स की जर्नी हो और ट्रेन के उस छोटे से कम्पार्टमेन्ट में टाइम निकालना हो तो बड़े आराम से निकाल देते हैं. क्योंकि पता है कि मैं एक व्यवस्था के भीतर हूँ और ४८ घंटे के बाद ही मुझे उतरना है, तो अपने आप ही वो हँसते खेलते निकाल देते हैं. मित्रों, इसलिए इस साल भर के जीवन को पार करना उतना कठिन नहीं था, जितना कि कठिनाई अब शुरू होती है जब कोई कहने वाला नहीं होगा, कोई पूछने वाला नहीं होगा, एक्सरसाइज़ करिये यह कहने के लिए कोई होगा नहीं. जिन विषयों को देखा है, जिन कानूनी बारिकिओं को समझा है उनको स्मरण किजिए, उनको याद किजिए और हर घटना के साथ अपने मन को जोडकर... कि ऐसा हुआ; मैं होता तो क्या करता? जब तक अपना मन निरंतर यह काम नहीं करता है तब तक हम अपने प्रोफेशन में सफल नहीं होते हैं. यहाँ का जो कालख्ण्ड है, उसको चौबीसों घंटे जीने का प्रयास करना सबसे बड़ा चैलेन्ज होता है. मैं आशा करता हूँ कि आप सभी नौजवान जब आज यहाँ से जीवन के एक नये अवसर की ओर कदम रख रहे हैं तब आप इन बातों को ध्यान में रखेंगे कि इसे कैसे जिया जाए, ज़िंदगी का हिस्सा कैसे बनाया जाए, यह शिक्षा किसी पद के लिए नहीं; एक जीवन की पुन:प्रतिष्ठा के लिए कैसे काम आए. इसलिए यदि यह शिक्षा इस तरह उपयोग में आयेगी तो मैं मानता हूँ कि आप अपने युनिफॉर्म की शोभा बढ़ायेंगे, आपके कंधे पर जो नाम या पट्टियां लगी हैं, वो अपने आप में एक प्रतिष्ठा होती है. वे केवल आपके कंधे की शोभा नहीं बढाती है, बल्कि आपके कंधे पर जो निशान होता है वो आपकी इस राज्य के प्रति जिम्मेवारी को दर्शाता है. वो कंधा आपकी शोभा के लिए नहीं होता है, वो कंधा तो राज्य की शोभा के लिए होता है. और जो इस कंधे का सामर्थ्य समझता है, उस कंधे पर लगी हुई पट्टी, उस पर लगे हुए वो सिम्बोल, उस पर लगे हुए वो नाम, इन सबकी अपनी एक ताकत होती है, उसके साथ एक गरिमा जुडी होती है, एक सम्मान जुडा हुआ होता है और इसलिए आपका कंधा पूरे राज्य की शक्ति का कंधा बनता है और उस कंधे को सँभालने के लिए पूरे जीवन को, पूरे शरीर को, पूरे मन-मंदिर को प्रतिबद्ध करना पडता है और तभी जा करके जीवन बनता है.
भाईयों-बहनों, विद्यार्थी काल में मुक्ति का एक आनंद होता है और इसलिए चाहे कितने ही बड़े दायित्व को संभालना हो, हम विद्यार्थी अवस्था में होते हैं तब हमारा मन काफ़ी लचीला होता है, उसमें खुलापन भी होता है, लेकिन जब उसी शिक्षा-दीक्षा के साथ दायित्व में जाते हैं तब दायित्व का एक बहुत बड़ा बोझ होता है और यह एक ऐसा क्षेत्र है कि जहाँ सबसे ज्यादा तनाव का माहौल रहता है. हर पल अटेन्शन में रहना पडता है. पता नहीं कब क्या होगा, कहाँ दौडना पडेगा, कहाँ भागना पडेगा...! आपको यहाँ जो योग की दीक्षा दी गई है, वो यदि ऐसे समय में आपके जीवन का हिस्सा बनें तो तनाव से मुक्त हो करके, स्वस्थ मन से, कितनी ही बाधायें क्यों न आएँ, कितने ही संकट क्यों न आएँ, कितनी ही गहन परिस्थिति को निपटने की स्थिति क्यों न आए, यदि मन को स्वस्थ रखना है तो इस योग की शिक्षा को आप अपने जीवन का हिस्सा बनाएँगे ऐसी मैं आप सब से आशा करता हूँ. यदि आपके चेहरे पर मुस्कान होती है तो आप बहुत ही आसानी से कठोर से कठोर काम को भी कर पाते हैं और इसलिए यहाँ जो शिक्षा-दीक्षा मिली है, उसका जो ह्यूमन ऐंगल है, जो बारिकियाँ हैं, उन्हें कभी भूलना नहीं चाहिए, उसे प्राथमिकता देनी चाहिए.
भाईयों-बहनों, आज आप एक व्यवस्था के अंदर यहाँ से जा रहे हैं. एक बहुत बड़ी लंबी पाइप लाइन में एक ओर से घुसते हैं तो कुछ न चाहते हुए भी दूसरी ओर वैसे भी निकलने वाले ही होते हैं. और कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जीवन में एक व्यवस्था के अंदर प्रवेश कर लेते हैं फिर उनको लगता है कि समय ही उन्हें आगे लेता चला जायेगा. मित्रों, जो समय का इंतजार करते हुए चलते रहते हैं, न वो ज़िंदगी में कुछ पा सकते हैं, न जीवन में किसी को देने का संतोष ले सकते हैं. नौजवानों, मैं आपसे ये नहीं चाहता हूँ कि आप इसे अपनी मंज़िल मानें, आप इसे एक मुकाम मानें. आप मन में तय करके जाएँ कि और आगे जाना है, और नयी ऊँचाईयोँ पर जाना है. इसके लिए जितनी अपनी क्षमता बढ़ानी होगी, जितना अपना ज्ञान बढ़ाना होगा, जितना अपना कौशल्य बढ़ाना होगा, आपको अपनी जिन-जिन क्वॉलिटीज़ को जोड़ना होगा, उनको जोड़ने के लिए आप प्रयास करेंगे और यदि आप ऐसा करते हैं तो मुझे विश्वास है मित्रों, आपके लिए यह मुकाम नहीं रहेगा. समय इंतजार नहीं करेगा, आप समय के पास जायेंगे और उच्च पदों पर पहुँचने का मौका आप भी ढ़ूँढ़ें, जितने भी रास्तों से गुज़रना पडे; गुज़रें, जितनी भी कसौटियों को पार करना पडे; करें लेकिन आप उच्च पद पर जाने के सपने देखते हुए अपनी मंजिल ऊँची रखिए, एक एक मुकाम को पार करते जाइए और कुछ नया पाने का संकल्प ले करके चलेंगे तो मुझे विश्वास है दोस्तों, आप में से कई लोग इस राज्य की आन-बान-शान बनकर पूरे हिंदुस्तान में अपना नाम रोशन कर सकते हैं. यह मेरा भरोसा है, आप अपने आप पर भरोसा किजिए, आप अपने जीवन को आगे बढ़ा सकते हैं.
मुझे इस बात का गर्व है, मैं यहाँ जब पासिंग आउट परेड के निरिक्षण के लिए जा रहा था तो पहले कुछ नागरिकों की ओर मैंने देखा और मैंने अनुभव किया कि उनमें ज्यादातर वो परिवार बैठे थे जिनका बेटा, जिसका भाई इस परेड मे शामिल है. मैं उनकी तरफ देख रहा था. बहुत ही सामान्य परिवार के स्वजन यहाँ बैठे हुए हैं. कोई बहुत उच्च घर से आए हुए लोग नहीं हैं. कई ऐसी विधवा माताएँ हैं, जिनका बेटा आज इस युनिफॉर्म में शान से खड़ा होगा. उस विधवा माँ ने कब सोचा होगा की मेरे बेटे को इस प्रकार का पद मिल सकता है. आज की व्यवस्था जिस प्रकार से गुज़र रही है, कोई भरोसा नहीं कर सकता है कि एक विधवा माँ का बेटा जिसे कोई पहचानता तक नहीं है, लेकिन व्यवस्था के तहत, ट्रैन्स्पेरन्सी के कारण, अपनी क्षमता के कारण वो यहाँ तक पहुँच गया है. भाईयों-बहनों, जिस प्रकार से हमें यह मौका मिला है, हम जीवन-भर इस बात को याद रखेंगे, कि आज मेरी माँ खुश है, क्योंकि एक ट्रैन्स्पेरन्ट व्यवस्था के कारण मैं इस जगह पर पहुंच पाया हूँ. मेरा भाई खुश है, मेरी बहन खुश है, मेरे पिताजी खुश है, मेरी माँ खुश है... मेरा परिवार खुश है. जिनको यह विश्वास होगा कि मुझे जो यह प्रवेश मिला है, यहाँ तक आने के लिए मेरे लिए जो खिड़की खुली है, उसमें जो पारदर्शिता थी, उस पारदर्शिता में बहुत बड़ी ताकत थी. यदि मेरी ज़िंदगी में आनंद का कारण वो पारदर्शिता है, मेरे परिवार की खुशी का कारण वो पारदर्शिता है तो मेरा कर्तव्य बनता है कि मैं जीवन-भर उस पारदर्शिता का पालन करूँ ताकि मैं भी हजारों-लाखों लोगों की खुशियों का कारण बन सकूँ. और इसलिए मित्रों, मैं आपसे अपेक्षा करूँगा, मैं आपसे प्रार्थना करूँगा, मैं आग्रह करूँगा... और जब आपने ईश्वर को साथ रखते हुए, आज जो शपथ ली है, उस शपथ का एक-एक शब्द जीना पडता है, दोस्तों. शपथ, यह केवल वाणी नहीं है, शपथ केवल शब्द नहीं होते हैं. तिरंगा झण्डा हमारे जीवन की आन, बान, शान है. उसे जब स्पर्श करते हैं, तो एक नई चेतना का संचार होता है. आपको जब ऐसी अवस्था में उसका स्पर्श होता है तो आप के भीतर उस चेतना का संचार होता है, आप जीवन-भर इस पल को याद रखेंगे. इस तिरंगे झंण्डे की शान के लिए महापुरूषों ने बलिदान दिये थे, १८५७ से लेकर १९४२ तक कितने ही लोगों ने अपने जीवन दे दिए और तब जाकर सन ’४७ में हमने इस तिरंगे झंण्डे का सम्मान और गौरव पाया है. भाईयों-बहनों, जिस गौरव को आज हमें स्पर्श करने का अवसर मिला है, वो हमारी ज़िंदगी का कितना बड़ा सामर्थ्य बन सकता है, हमारी जिंदगी में कितनी बड़ी चेतना को जगाने का एक अवसर बन सकता है. शपथ के शब्द, शब्द न रहते हुए मेरे जीवन का संकल्प कैसे बन जाए, शपथ का भाव मेरे जीवन का भाव कैसे बन जाए और हर पल ईश्वर को स्मरण करते हुए मैं उसको जीने की कैसे कोशिश करुँ और तब जा करके इस शपथ का मूल्य बढ़ता जाता है. आपका जीवन इस शपथ की शक्ति के साथ आगे बढ़ता जाए, इसके लिए मैं आपको शुभकामनाएँ देता हूँ.भाईयों-बहनों, देश नये नये संकटों से गुज़र रहा है. एक ज़माना था, जब सेनाएँ युद्ध करती थीं तो कितनों के लहू बहते थे, कितनी माँओं कि गोदें उजड़ जाती थीं..! वक्त बदल चुका है. आज युद्ध में टॅक्नोलोजी ने जगह ली है. सीना तानकर गोलियाँ खाने की नौबत कम होती चली जा रही है. इसके बावज़ूद भी देश की जय और पराजय संभव हो सकती है. नये क्षेत्र खुल चुके हैं. और इसी प्रकार सामान्य जीवन में सुरक्षा का विषय पहले जैसा नहीं रहा है. गुनाहित कृत्यों में टॅक्नोलोजी ने जगह ले ली है. विषय एक दो गुनाहों का नहीं रहा है, अब आतंकवाद, नक्सलवाद जैसी समस्याओं से देश को जूझना पड रहा है. मित्रों, युद्ध में जितने जवान नहीं मारे गये हैं, उससे ज़्यादा जवान आतंकवादियों की गोलियोँ से मारे गये हैं. देश के विकास को ठप करने में नक्सलवाद एक बहुत बड़ा कारण बना हुआ है आज. इस देश में कई इलाक़े हैं, जहाँ सरकार ने जाकर स्कूल बनाया, नक्सलवादिओं ने उड़ा दिया, कहीं अस्पताल बनाया तो नक्सलवादियों ने उड़ा दिया. असंतोष की आग पैदा करने के लिए न जाने कितने ही लोगों को मारा जा रहा है. भाईयों-बहनों, यह आतंकवाद हो, नक्सलवाद हो, हमें अपनी जान की बाजी लगाकर भी निर्दोष नागरिकों की रक्षा करनी पडती है. और मित्रों, जब तक भीतर साहस नहीं है, तब तक हम उस स्थिति से निपट नहीं सकते हैं. और साहस किताबों से प्राप्त नहीं होता है, साहस की माला नहीं जपी जाती है, अपने आप को तैयार करना पडता है और जब मन में पवित्रता हो, मन में संकल्प हो तो भय नाम की कोई चीज़ नहीं रहती, भाईयों. और इसलिए मैं आप से चाहता हूँ कि मेरा एक-एक साथी अभय होना चाहिये, निर्भय होना चाहिये, अभय और निर्भय इस वर्दी के सबसे प्रमुख गुण होने चाहिये. यदि वो अभय और निर्भय नहीं है तो शायद भय के सामने वह विचलित हो जायेगा और इसलिए, भाईयों-बहनों, आप एक ऐसे दायित्व की ओर जा रहे हैं जहाँ जीवन की ऊँचाइयोँ को पार करने के लिए सामान्य से समान्य मानवी की रक्षा के लिए अपने आपको लगायेंगे.
भाईयों-बहनों, पुलिस जनता जनार्दन की मित्र होती है, यह हम बचपन से सुनते आए हैं. मुझे यह चरित्र लाना है और इसलिए हमने ‘रक्षा शक्ति यूनिवर्सिटी’ शुरू की है. उस रक्षा शक्ति युनिवर्सिटी में पहले हम वो ट्रेनिंग देना चाहते हैं कि सुरक्षा बलों के जवानों की जो ट्रेनिंग हो वह नौकरी के लिए नहीं जीवन के लिए ट्रेनिंग हो. नौकरी, यह पेशा... ये तो बाइ-प्रोडक्ट हो, उस दिशा में हम जाना चाहते हैं. आने वाले दिनों में उसका भी हम उपयोग करना चाहते हैं. मैं आज सरकार के कुछ मित्रों से बात कर रहा था. अब डेढ़ साल का समय है आपके पास, जिसमें आपने यहाँ जो सिखा है, उसे तलवार की नोक पर जीकर दिखाना होगा आपको. सब लोग बारीकी से आपको देखेंगे, हर चीज़ का रिपोर्ट बनेगा, आपकी छोटी-सी गलती भी आपके लिए बहुत बड़ा संकट बन सकती है. ऐसे डेढ साल का समय होता है, जिसमें आपको सिर्फ़ डिसीप्लिन से अपने आप को सिद्ध करना होता है. उसकी अनेक प्रकार की पद्धतियाँ हैं. मैं उसमें एक नई पद्धति जोड़ने की सोच रहा हूँ. मैं इस क्षेत्र के जो विद्वान हैं उनसे कहूँगा कि उस पर काम करें और एक ही हफ्ते में कुछ निर्णय हम कर सकें. यहाँ से एक एक नौजवान जो तैयार हो कर जाता है, उसको डेढ़ साल के कार्यकाल में कम से कम १०० अवर्स अपने से नीचे जो कोन्स्टेबल्स हैं उन्हें वो ट्रेनिंग दें. यहाँ से जो उसने ट्रेनिंग ली है... १०० अवर्स, २५-२५ की चार बॅच हो या ३०-३० की तीन बॅच हो, हर दिन सुबह ५ से ८, ५:३० से ८, उन कोन्स्टेबल को ट्रेनिंग दें. जो यहाँ पर सीखा है, वो वहाँ सिखाएँ. एक सिलेबस बनाया जाये, १०० अवर्स का. और वो काम आप लोग करें ताकि यहाँ पर आप जो सीखे हैं, उसीको सिखाने से वो और अधिक पक्का होता है, और स्वभाव अधिक आक्रमक बन जाता है. कभी-कभी सीखते समय बहुत सी चीज़ों पर हमारा ध्यान नहीं जाता है. कभी-कभी इग्ज़ैम में तो निकल जाते हैं, लेकिन जब सिखाना होता है तब बहुत-सी बातों की ओर हमारा ध्यान जाता है और इसलिए आपके इस डेढ़ साल के काम में १०० अवर्स की एक और जिम्मेदारी जोड़ने की मैं सोच रहा हूँ. और हम देखेंगे कि जिन कोन्स्टेबल को आपने ट्रैन किया है, उसमें से कितने परसेन्ट हैं जिनको सफलता मिलती है, उसके आधार पर हम तय करेंगे कि आपने यहाँ से क्या पाया है. यहाँ से कुछ भी भूलकर नहीं जाना है.
मुझे विश्वास है मित्रों, राज्य में एक साथ इतनी बड़ी संख्या में आप जैसे नौजवानों को पूरी व्यवस्था से जोड़ने के कारण गुजरात के पुलिस बल को एक नई ताकत मिलेगी, आम आदमी के सुख-दु:ख के साथी बनकर उन्हें हम सुरक्षा का एक नया एहसास दे पायेंगे और गुजरात का सामान्य से सामान्य व्यक्ति हमारी उपस्थिति मात्र से सुरक्षा का अनुभव करेगा. हमारी उपस्थिति मात्र से उसे चैन की नींद आ जाए इस प्रकार का अपना व्यवहार रहे, इसी एक अपेक्षा के साथ आप सबको बहुत बहुत शुभकामनाएँ. आपके परिवारजनों को भी शुभकामनाएँ देता हूँ कि समाज ने इतना सारा दिया है, आपके बेटे को एक प्रतिष्ठा दी है. जब भी मौका मिले हम सब मिलकर समाज के कर्ज़ को चुकाने के लिए कुछ न कुछ करते रहें. इसी एक अपेक्षा के साथ आप सबको एक नयी जिम्मेदारी के साथ भारत माता की सेवा के लिए कदम आगे बढ़ाने का मैं आह्वान करता हूँ, शुभकामनाएँ देता हूँ.
बहुत बहुत धन्यवाद..!