26 फ़रवरी, 2012

सुरत

मारे यहाँ जितना महत्त्व शिक्षा का है उससे ज्यादा महत्व दीक्षा का है और शिक्षित व्यक्ति जब तक दीक्षित न हो तब तक शिक्षा अधूरी मानी जाती है. यदि शास्त्रों में देखें तो ‘तैत्तिरीय उपनिषद्’ में पहली बार इस प्रकार के दीक्षांत समारोह का उल्लेख है. परंतु हमारे यहाँ परंपरागत रूप से गुरुकुल की जो शिक्षा परंपरा थी उसमें विद्यार्थिओं की शिक्षा पूर्ण होने के बाद गुरुजन अनेक कसौटियों में से उन्हें पार करते थे, ऐसे अनेक सहज आयोजन किए जाते जिनमें से गुजरते-गुजरते, उसने जो भी कुछ सीखा हो उसका अमल नित्यक्रम के दौरान करके दिखाना पडता था, उसे तो इस बात का ज्ञान भी नहीं होता था कि वह जो कर रहा है उसकी कसौटी का कोई हिस्सा है. और इसका बहुत माइन्यूट ऑब्ज़र्वेशन होता था और उसके बाद ही वे डिग़्रीधारी बनते थे और उन्हें जीवन के अन्य आश्रम की ओर जाने की अनुमति मिलती थी.

मित्रों, विद्यार्थीकाल उत्तम समय होता है. एक ओर इस बात का आनंद होता है कि भाई, आज यहाँ से डिग़्रीधारी बन कर हम समाज में जा रहे हैं, लेकिन उसके साथ ही एक बड़ी जिम्मेदारी शुरू होती है. आप विद्यार्थी हों तब मित्रों के बीच, समाज के बीच खड़े हों और परिचय दें कि मैं फाइनल यीअर में पढ़ता हूँ तो लम्बे प्रश्न नहीं पूछे जाते. पढ़ रहे हो, बात पूरी हो जाती है. लेकिन जिस पल आप कहो कि अब मैं ग्रैजुएट हो गया हूँ तो तुरंत ही प्रश्न आता है कि तो अब क्या कर रहे हो? अब क्या करने वाले हो? क्या सोचा है? और नौकरी के मामले में तो यह चलता ही है; साथ ही छोकरी के मामले में भी शुरु हो जाता है और यदि लड़की हो तो लड़के के बारे में शुरु होता है. यह सहज बात है. पढ़ते हों तब तक कोई टेन्शन नहीं, कोई पूछे नहीं और इसलिए कुछ लोग क्या करते हैं कि कहीं और कोई मेल न हो तब तक सी.ए. में एन्ट्री ले लेते हैं, ताकि दूसरा बंदोबस्त न हो तब तक कहने को चलें कि, क्या कर रहे हो? सी.ए. कर रहा हूँ, अनएन्डिंग प्रोसेस है... मित्रों, जब हम विद्यार्थी हों तब जीवन में अनेक लोग होते हैं जो हमारा मार्गदर्शन करते हैं. एक प्रकार से प्रोटेक्टेड लाइफ होती है. परिवार में परिवारजन चिंता करते हैं, कुटुम्ब के साथ संबंधित बुज़ुर्ग चिंता करते हैं, शिक्षा संस्था का चपरासी भी कई बार हमें गाइड करता है कि नहीं-नहीं भाई, ऐसा नहीं करते... ऐसा होता है, आपने अनुभव किया होगा मित्रों, और हमे लगता है कि इस चपरासी को समझ में आता है और मुझे नहीं आया..! शिक्षकगण भी हमें गाइड करते हैं कि भाई, ऐसा करते हैं और ऐसा नहीं करते हैं. और इसके कारण हम निश्चिंत रहते हैं. कोई भी भूल हो तो कहीं कोई रोकने वाले, कोई टोकने वाले की व्यवस्था होती है और इसके कारण मुक्त भाव से कदम उठाने की हिम्मत आती है. लेकिन जिस पल इस व्यवस्था में से बाहर आते हैं तबसे प्रत्येक पल निर्णय खुद ही करना पडता है. आस-पास देखें तो कोई शिक्षक खड़े नहीं होते, समाज की हमारी ओर देखने की पूरी मानसिकता बदल जाती है और एक प्रकार से एक कसौटी काल का आरम्भ होता है. आज जो लोग पदवी प्राप्त कर रहे हैं वे सारे मित्र कसौटी काल में कदम रख रहे हैं. और जब कसौटी शुरू हो रही है उस वक्त प्रत्येक पल, बचपन से लेकर आज तक जहाँ कहीं भी शिक्षा प्राप्त की होगी, जिन-जिन गुरुजनों से जो कुछ सीखे होंगे उसकी पूरी कथा मन में कदम-कदम पर याद आती है. कुछ करने जाएँ वहीं खयाल आए कि हाँ यार, क्लास में साहब ने यह बात तो बताई थी..! कहीं इंटरव्यू देने जाएँ और कोई प्रश्न आए तो तुरंत ही विचार आए कि हाँ यार, साहब ने कहा तो था लेकिन आज याद नहीं आ रहा है. हर कदम पर यह कार्यकाल आपको याद आएगा मित्रों। आज जिनका दीक्षांत समारोह हो रहा है उन्हें तो समझना ही है, परंतु जो लोग भविष्य के दीक्षांत समारोह के स्वाभाविक दावेदार हैं वे लोग भी यहाँ बैठे हैं, उनको भी इसमें से प्रेरणा मिले कि हाँ भाई, जीवन की शुरूआत कठिन होती है. जीवन में हर कदम पर प्रत्येक कसौटी में से पार होना पडता है.

मैं चाहूंगा कि वीर नर्मद के नाम के साथ जुडी इस युनिवर्सिटी के जब हम सब विद्यार्थी हैं तो और कुछ कर सकें या न कर सकें मित्रों, लेकिन नर्मद का एक वाक्य जीवन में उतारें, ‘डगलुं भर्युं के ना हठवुं...’ (‘एक बार कदम बढ़ाने के बाद डगमगाना नहीं...’). और नर्मद की पुण्यतिथि पर जब हमें आशीर्वाद प्राप्त हो रहे हैं तब... मित्रों, समाज-जीवन में असमंजस में रहने वाले लोग न तो कभी कुछ पा सकते हैं, न ही कभी समाज को कुछ दे सकते हैं. जो लोग निर्णायक होते हैं, वे ही लोग निर्धारित मंज़िल को प्राप्त कर सकते हैं. जो लोग अनिर्णायक होते हैं, उनका काफ़ी सारा वक्त एक उलझन भरी अवस्था में ही रहता है. आपने कई लोग देखे होंगे, बस स्टेशन पर... चार बस खड़ी हों तो तय नहीं कर पाते कि इसमें जाएँ या उसमें. और तीन चली जाए उसके बाद आखिर में जो मिले उसमें चढ़ जाते हैं, तय ही नहीं कर पाते. और यह एक आम अनुभव होता है. बहुत सारे लोग बीमार हुए हों तो ऑपरेशन कराएँ या न कराएँ, इस डॉक्टर के पास या उस डॉक्टर के पास... और तब तक रोग इतना उग्र हो जाता है कि डॉक्टर के हाथ की बाज़ी ही नहीं रहती है. कारण? अनिर्णायकता. मित्रों, असमंजस से भरी जिंदगी और युवा के बीच कभी भी, कोई भी संबंध नहीं होना चाहिए. मैं युवा हूँ, इसका मतलब है कि मैं निर्णायक हूँ और अगर मैं निर्णायक नहीं हूँ, तो निश्चित रूप से मैं युवा नहीं हूँ. मैं अत्यंत भयभीत हूँ, मैं अत्यंत असुरक्षित हूँ, मुझे कदम बढ़ाने में डर लगता है कि कहीं मैं गिर न जाऊँ... अर्थात, मेरे मन का यौवन मैंने खो दिया है और इसलिए निर्णायक होना, दुविधा मुक्त जिंदगी होना युवा होने की पहली शर्त है मित्रों। और जो लोग निर्णायक होते हैं, वे साहसिक भी होते हैं. कश्मकश से भरा व्यक्ति इसलिए असमंजस में रहता है कि मूलतः उसमें साहस का अभाव होता है. वह भयभीत है कि कहीं कुछ हो जायेगा तो? कहीं कोई कुछ कहेगा तो? कहीं ऐसा होगा तो? मित्रों, बच्चों को कभी कोई कश्मकश नहीं होती, क्योंकि उनमें भय नहीं होता. जिसे भय हो, वह असमंजस में रहता है और इसलिए व्यक्ति के जीवन में अभय, मन की रचना में अभय, जीवन की प्रगति के लिए अनिवार्य होता है. जब तक व्यक्ति भयमुक्त मन:स्थिति में न हो, कैसे भी माहौल में भय स्पर्श न करता हो, अंधकार जैसा कुछ प्रतीत न होता हो, प्रत्येक पल प्रकाश दिखता हो, तब ही वह जिंदगी की राह निश्चित कर सकता है। और मित्रों, प्रकाश को देखने के लिए सूरज के उगने की प्रतीक्षा नहीं करनी पडती. मित्रों, सामर्थ्यवान लोग तारों के प्रकाश में भी रास्ता खोज लेते हैं. जिंदगी सुनहरे पलों का इंतजार करने के लिए नहीं होती है, मित्रों. अंधकार भरे जीवन में भी  सितारों की रोशनी से रौनक आ सकती है और मित्रों, घना अंधकार हो, बादल छाया वातावरण हो तो भी मेरे आदिवासी भाई को जुगनू के प्रकाश में जिंदगी की राह बनाते हुए देखा है. अगर एक जुगनू जिंदगी की राह दिखा सकता है तो मैं तो एक ऐसी समृद्ध जिंदगी जीने वाला मानव हूँ, मेरे जीवन में रुकावट क्यों? यदि ऐसी संकल्प शक्ति हो, तो जीवन बदला जा सकता है.

मित्रों, कई बार समाज-जीवन में हम जब काम करते हों तब आपको ऐसा लगता होगा कि मेरे पिताजी ने फीस भरी थी इसलिए मैं ग्रैजुएट हुआ हूँ, उसके कारण आज पदवी प्राप्त कर रहा हूँ, ऐसा नहीं है दोस्तों. मैं देर रात तक पढ़ता था इसलिए अब पदवीधारी बना हूँ, ऐसा नहीं है. परीक्षा के दिनों में अच्छी से अच्छी फिल्म भी मैंने छोड़ दी थी इसलिए पास हुआ हूँ, ऐसा है? ऐसा नहीं होता. अनेक लोगों ने मेरी जिंदगी बनाने के लिए कुछ न कुछ योगदान दिया है. जब कभी कॉलेज में उब जाता था और कॅम्पस के बाहर जाकर किसी पेड़ की छाया में छोटी-सी केतली लेकर जो चाय बनाने वाला बैठता था, मैं उसकी चाय पीकर ताज़गी का अनुभव करता था और फिर से क्लास रूम में चला आता था. आज पदवी लेते समय उसे भी याद करना, उसे भी ज़रा याद करना कि कभी एक सामान्य गली में जीने वाले आदमी ने आपकी पसंद की चाय बनाकर आपको ताज़गी दी थी. मित्रों, कभी परीक्षा में दौड़ते हुए जाते होंगे, बस छूट गई होगी, देर हो गई होगी और आपने ड्राइवर को विनती की होगी कि साहब, ज़रा दबाना भाई, जल्दी चलाना, मुझे परीक्षा के लिए पहुँचना है और ड्राइवर ने रिस्क लेकर शायद आपको पहुँचाया होगा. मित्रों, आज उन्हें भी याद करना. मित्रों, आप जिस कुर्सी पर बैठकर, जिस बेंच पर बैठकर पढ़े होंगे उस बेंच को साफ करने के लिए किसी चपरासी ने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी होगी, उस चपरासी को भी ज़रा याद करना. मित्रों, कितने लोगों का योगदान होता है, कितने लोगों के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप मैं जिंदगी में कुछ प्राप्त कर सकता हूँ, इसका अर्थ यह हुआ कि समग्र समाज का मुझ पर ऋण होता है. इस समाज के ऋण चुकाने का समय मेरे पदवी प्राप्त करने के बाद शुरु होता है. जीवन की प्रत्येक पल को मैं इस समाज का ऋण चुकाता रहूँगा. इस समाज का मुझ पर जो ऋण है, मैं आजीवन कभी उसे भूलूँगा नहीं. इस कर्तव्य के पालन को मैं निभाऊँगा. यह अगर जीवन का भाव होगा तो हम जीवन में एक संतोष की अनुभूति कर सकेंगे.

मित्रों, इस पदवीदान समारोह में से बिदा हो रहे हो तब यदि आपको ऐसा लगे कि अब आप विद्यार्थी नहीं रहे तो आप समझ लेना कि आप जीवन की ओर नहीं, मृत्यु की ओर प्रयाण कर रहे हो. मित्रों, मैं बहुत ही जिम्मेदारी भरी बात कर रहा हूँ. यहाँ से निकलते ही यदि आपने ऐसा मान लिया कि आपका विद्यार्थी काल समाप्त हो गया तो इसका मतलब यह हुआ कि आपका जीवन काल समाप्त हो गया और आपका मृत्यु काल प्रारंभ हो गया है. मित्रों, विद्यार्थी जीवनपर्यंत जीवित रहना चाहिए. जीवन के अंत तक विद्यार्थी जिन्दा रहना चाहिए. हमारे भीतर यदि विद्यार्थी जीवित नहीं है तो जीवन की विकास यात्रा असंभव है, जीवन में ठहराव आ जाता है. और कोई भी युवा ऐसा नहीं हो सकता कि जिसके जीवन में ठहराव आए, जीवन में निरंतर विकास यात्रा हो और इसके लिए अनिवार्य है कि प्रत्येक पल मैं विद्यार्थी रहूँ. प्रत्येक पल को जानने की मेरी कोशिश रहे, मेरी जिज्ञासा रहे. प्रत्येक पल मुझ में कुछ सीखने की मनोवृत्ति रहे. और जीवन के मूलभूत तत्त्वों को जीवन के साथ बांधना पड़ता है, उन्हें अपने जीवन का डी.एन.ए. बनाना पड़ता है. विद्यार्थी अवस्था, मन की विद्यार्थी अवस्था हमारा अपना डी.एन.ए. होना चाहिए. और अगर ऐसा हो तो ही जीवन में प्रगति की सम्भावना रहती है.

भाईयों-बहनों, यह वर्ष स्वामी विवेकानंदजी की 150 वीं जयंती का वर्ष है. और 150 वीं जयंती का वर्ष जब मना रहे हैं तब गुजरात ने, राज्य सरकार ने इसे ‘युवा शक्ति वर्ष’ के रूप में मनाने का निश्चय किया है और युवा शक्ति यानि सिर्फ निबंध स्पर्धाएँ या वक्तृत्व स्पर्धाएँ हो, वहीं तक सीमित नहीं है. एक फोकस किया है, कौशल वर्धन पर. हुनर... मित्रों, जीवन में ज्ञान के साथ हुनर की भी उतनी ही आवश्यकता होती है और अगर हुनर न हो तो ज्ञान कई बार गड्ढे में बेकार पड़ा रह जाता है. इस घटना का मैंने कई बार उल्लेख किया है, आज फिर से करना चाहता हूँ. एक बार दादा धर्माधिकारी, जो विनोबाजी के साथी थे, गाँधीजी की विचारधारा के एक अनुयायी थे. उनके कई पुस्तक पढ़ने लायक हैं. दादा धर्माधिकारी ने एक जगह लिखा है कि एक बार एक युवक मुझसे मिलने आया और उसने मुझसे कहा कि, “दादा, कुछ नौकरी का कर दो...”, तो दादा ने उसे पूछा, “भाई, तुझे क्या आता है?”, तो उस युवक ने जवाब दिया, “मैं ग्रैजुएट हूँ” उन्होंने कहा कि ठीक है, लेकिन तुम्हें आता क्या है?” तो उसने फिर से कहा, “मैं ग्रैजुएट हूँ”, और फिर अपनी बैग में से सर्टिफिकेट दिखाए, तो उन्होंने कहा, ”यह सब तो ठीक है, तुम ग्रैजुएट हो लेकिन तुम्हें आता क्या है?” फिर से उसने कहा, “साहब, मैं ग्रैजुएट हूँ”. दादा ने कहा, “भाई, वो सब तो ठीक है, लेकिन मुझे बताओ कि तुम ड्राइविंग करना जानते हो?” तो बोला कि नहीं, “तुम टाइपिंग जानते हो”, तो बोला कि नहीं, “तुम खाना बनाना जानते हो, तैरना जानते हो?”, “नहीं, लेकिन मैं ग्रैजुएट हूँ, मेरे पास सर्टिफिकेट है.” मित्रों, डिग्री के साथ-साथ जीवन कौशल अनिवार्य होता है और इस बात को ध्यान में रखते हुए, गुजरात में स्वामी विवेकानंदजी की 150 वीं जयंती के अवसर पर पूरे राज्य में कौशल वर्धन के लिए एक बड़ा अभियान हम चलाने वाले हैं. हर किसी में कोई न कोई एक्स्ट्रा टैलन्ट हो, कोई न कोई एक्स्ट्रा कौशल हो, कोई न कोई हुनर उसे आता हो, उसे आत्मनिर्भरता से जीने का सामर्थ्य मिले. मित्रों, भारत एक भाग्यशाली देश है और हम सब एक ऐसे युग में हैं कि जिस वक्त हिंदुस्तान दुनिया का सबसे युवा देश है. इस देश के 65% लोग 35 से कम उम्र के हैं. जिस देश के पास इतनी बड़ी युवा शक्ति हो, उसके सपने कितने युवा हो सकते हैं, कितने तेजस्वी हो सकते हैं..! ऐसे युवा सपनों, युवा तेजस्वी सपनों के साथ हमारी भारतमाता विश्वगुरु बने; स्वामी विवेकानंदजी के इस स्वप्न को साकार करने का युग हमारे जीवन काल में आया है. और अगर ऐसी भावनाएँ युवाओं के मन में प्रकट कर सकें तो इतना बड़ा देश, 120 करोड़ की जनसंख्या, 65% नौजवानों से भरा देश, मित्रों, उनके कौशल के द्वारा, उनकी क्षमता के द्वारा, उनकी बुद्धि के द्वारा वह विश्व विजेता बन सके ऐसा सामर्थ्य रखता है. और, विवेकानंदजी का यह स्वप्न था कि “मैं मेरी आँखों के सामने देख सकता हूँ, यह भारतमाता एक न एक दिन जगदगुरु के स्थान पर बिराजमान होगी”. मित्रों, विवेकानंदजी का स्वप्न, 150 साल बीत चुके हैं, उसे पूर्ण करने की जिम्मेदारी हमारे सिर पर है. एक युवा के रूप में संकल्प ले करके हम निकलें तो भारत माता को जगदगुरु के स्थान पर बिराजमान कर सकते हैं.

मित्रों, गुजरात में शिक्षा की जो मुहिम चलाई है, इसके सुफल देखने को मिल रहे हैं. कन्या शिक्षा का अभियान चलाया, प्रवेशोत्सव चलाया. जिन दिनों मैंने काम की शुरुआत की थी, 7-8 साल पहले, तब लोगों को अंदाज़ा नहीं था कि यह सब क्या चल रहा है. मित्रों, आज स्थिति ऐसी है कि उच्च शिक्षा के लिए इतने बड़े पैमाने पर लोग जा रहे हैं. वंचित, दलित, आदिवासी सभी बड़ी मात्रा में जा रहे हैं. और, इसलिए इस बजट में 100 करोड़ रुपयों जैसी बड़ी राशि सिर्फ दूरवर्ती इलाकों के बच्चे जो पढ़-लिखकर आगे आए हैं, उनके लिए हॉस्टल बनाने के लिए तय की है. गुजरात के बजट में 100 करोड़ जितनी बड़ी राशि का आवंटन सिर्फ हॉस्टल बनाने के लिए किया है, ताकि आंतरिक क्षेत्रों के लोगों को पढ़ने की सुविधा मिले, उन्हें रहने के लिए कहीं जगह मिले, ऐसा एक बड़ा अभियान उठाया है. मित्रों, गुजरात का विकास जिस प्रकार से हो रहा है उसके अनुरूप मानव-शक्ति का विकास हो इस विषय पर हमने ध्यान केंद्रित किया है. 2001 में जब गुजरात की जनता ने मुझे यह जिम्मेदारी सौंपी थी तब इस राज्य में सिर्फ 11 युनिवर्सिटी थीं. भाईयों-बहनों, आज 41 युनिवर्सिटी हैं. पिछली सदी में जितनी कॉलेज थीं, उससे ज्यादा युनिवर्सिटी हैं और उन युनिवर्सिटीयों ने भी विश्व कक्षा की युनिवर्सिटी की दिशा में कदम बढ़ाये हैं और उस दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं.

 

ज जो नौजवान मित्र जीवन की एक नई राह पर कदम रखने जा रहे हैं उन्हें मैं हार्दिक अभिनंदन देता हूँ, शुभकामनाएँ देता हूँ.

 

न्यवाद..!

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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 2025 बस अब तो आ ही गया है, दरवाजे पर दस्तक दे ही रहा है | 2025 में 26 जनवरी को हमारे संविधान को लागू हुए 75 वर्ष होने जा रहे हैं | हम सभी के लिए बहुत गौरव की बात है | हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें जो संविधान सौंपा है वो समय की हर कसौटी पर खरा उतरा है | संविधान हमारे लिए guiding light है, हमारा मार्गदर्शक है | ये भारत का संविधान ही है जिसकी वजह से मैं आज यहाँ हूँ, आपसे बात कर पा रहा हूँ | इस साल 26 नवंबर को संविधान दिवस से एक साल तक चलने वाली कई activities शुरू हुई हैं | देश के नागरिकों को संविधान की विरासत से जोड़ने के लिए constitution75.com नाम से एक खास website भी बनाई गई है | इसमें आप संविधान की प्रस्तावना पढ़कर अपना video upload कर सकते हैं | अलग-अलग भाषाओं में संविधान पढ़ सकते हैं, संविधान के बारे में प्रश्न भी पूछ सकते हैं | ‘मन की बात’ के श्रोताओं से, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों से, कॉलेज में जाने वाले युवाओं से, मेरा आग्रह है, इस website पर जरूर जाकर देखें, इसका हिस्सा बनें |

साथियो,

अगले महीने 13 तारीख से प्रयागराज में महाकुंभ भी होने जा रहा है | इस समय वहां संगम तट पर जबरदस्त तैयारियाँ चल रही हैं | मुझे याद है, अभी कुछ दिन पहले जब मैं प्रयागराज गया था तो हेलिकॉप्टर से पूरा कुम्भ क्षेत्र देखकर दिल प्रसन्न हो गया था | इतना विशाल! इतना सुंदर! इतनी भव्यता!

साथियो,

महाकुंभ की विशेषता केवल इसकी विशालता में ही नहीं है | कुंभ की विशेषता इसकी विविधता में भी है | इस आयोजन में करोड़ों लोग एक साथ एकत्रित होते हैं | लाखों संत, हजारों परम्पराएँ, सैकड़ों संप्रदाय, अनेकों अखाड़े, हर कोई इस आयोजन का हिस्सा बनता है | कहीं कोई भेदभाव नहीं दिखता है, कोई बड़ा नहीं होता है, कोई छोटा नहीं होता है | अनेकता में एकता का ऐसा दृश्य विश्व में कहीं और देखने को नहीं मिलेगा | इसलिए हमारा कुंभ एकता का महाकुंभ भी होता है | इस बार का महाकुंभ भी एकता के महाकुंभ के मंत्र को सशक्त करेगा | मैं आप सबसे कहूँगा, जब हम कुंभ में शामिल हों, तो एकता के इस संकल्प को अपने साथ लेकर वापस आयें | हम समाज में विभाजन और विद्वेष के भाव को नष्ट करने का संकल्प भी लें | अगर कम शब्दों में मुझे कहना है तो मैं कहूँगा...

महाकुंभ का संदेश, एक हो पूरा देश |

महाकुंभ का संदेश, एक हो पूरा देश |

और अगर दूसरे तरीके से कहना है तो मैं कहूँगा...

गंगा की अविरल धारा, न बँटे समाज हमारा ||

गंगा की अविरल धारा, न बँटे समाज हमारा ||

साथियो,

इस बार प्रयागराज में देश और दुनिया के श्रद्धालु digital महाकुंभ के भी साक्षी बनेंगे | Digital Navigation की मदद से आपको अलग-अलग घाट, मंदिर, साधुओं के अखाड़ों तक पहुँचने का रास्ता मिलेगा | यही navigation system आपको parking तक पहुँचने में भी मदद करेगा | पहली बार कुंभ आयोजन में AI chatbot का प्रयोग होगा | AI chatbot के माध्यम से 11 भारतीय भाषाओं में कुंभ से जुड़ी हर तरह की जानकारी हासिल की जा सकेगी | इस chatbot से कोई भी text type करके या बोलकर किसी भी तरह की मदद मांग सकता है | पूरा मेला क्षेत्र को AI-Powered cameras से cover किया जा रहा है | कुंभ में अगर कोई अपने परिचित से बिछड़ जाएगा तो इन कैमरों से उन्हें खोजने में भी मदद मिलेगी | श्रद्धालुओं को digital lost & found center की सुविधा भी मिलेगी | श्रद्धालुओं को मोबाईल पर government-approved tour packages, ठहरने की जगह और homestay के बारे में भी जानकारी दी जाएगी | आप भी महाकुंभ में जाएँ तो इन सुविधाओं का लाभ उठाएँ और हाँ #एकता का महाकुंभ के साथ अपनी selfie जरूर uplaod करिएगा |

साथियो,

‘मन की बात’ यानि MKB में अब बात KTB की, जो बड़े बुजुर्ग हैं, उनमें से, बहुत से लोगों को KTB के बारे में पता नहीं होगा | लेकिन जरा बच्चों से पूछिए KTB उनके बीच बहुत ही superhit है | KTB यानि कृष, तृष और बाल्टीबॉय | आपको शायद पता होगा बच्चों की पसंदीदा animation series और उसका नाम है KTB – भारत हैं हम और अब इसका दूसरा season भी आ गया है | ये तीन animation character हमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन नायक-नायिकाओं के बारे में बताते हैं जिनकी ज्यादा चर्चा नहीं होती | हाल ही में इसका season-2 बड़े ही खास अंदाज में International Film Festival of India, Goa में launch हुआ | सबसे शानदार बात ये है कि ये series न सिर्फ भारत की कई भाषाओं में बल्कि विदेशी भाषाओं में भी प्रसारित होती है | इसे दूरदर्शन के साथ-साथ अन्य OTT platform पर भी देखा जा सकता है |

साथियो,

हमारी animation फिल्मों की, regular फिल्मों की, टीवी serials की, popularity दिखाती है कि भारत की creative industry में कितनी क्षमता है | यह industry न सिर्फ देश की प्रगति में बड़ा योगदान दे रही है, बल्कि, हमारी economy को भी नई ऊंचाइयों पर ले जा रही है | हमारी Film & Entertainment industry बहुत विशाल है | देश की कितनी ही भाषाओं में फिल्में बनती हैं, creative content बनता है | मैं अपनी film और entertainment industry को इसलिए भी बधाई देता हूँ, क्योंकि उसने ‘एक भारत – श्रेष्ठ भारत’ के भाव को सशक्त किया है |

साथियो,

वर्ष 2024 में हम फिल्म जगत की कई महान हस्तियों की 100वीं जयंती मना रहे हैं | इन विभूतियों ने भारतीय सिनेमा को विश्व-स्तर पर पहचान दिलाई | राज कपूर जी ने फिल्मों के माध्यम से दुनिया को भारत की soft power से परिचित कराया | रफ़ी साहब की आवाज में वो जादू था जो हर दिल को छू लेता था | उनकी आवाज अद्भुत थी | भक्ति गीत हों या romantic songs, दर्द भरे गाने हों, हर emotion को उन्होंने अपनी आवाज से जीवंत कर दिया | एक कलाकार के रूप में उनकी महानता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी युवा-पीढ़ी उनके गानों को उतनी ही शिद्दत से सुनती है - यही तो है timeless art की पहचान | अक्किनेनी नागेश्वर राव गारू ने तेलुगु सिनेमा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है | उनकी फिल्मों ने भारतीय परंपराओं और मूल्यों को बखूबी प्रस्तुत किया | तपन सिन्हा जी की फिल्मों ने समाज को एक नई दृष्टि दी | उनकी फिल्मों में सामाजिक चेतना और राष्ट्रीय एकता का संदेश रहता था | हमारी पूरी film industry के लिए इन हस्तियों का जीवन प्रेरणा जैसा है |

साथियो,

मैं आपको एक और खुशखबरी देना चाहता हूँ | भारत की creative talent को दुनिया के सामने रखने का एक बहुत बड़ा अवसर आ रहा है | अगले साल हमारे देश में पहली बार World Audio Visual Entertainment Summit यानि WAVES summit का आयोजन होने वाला है | आप सभी ने दावोस के बारे में सुन होगा जहां दुनिया के अर्थजगत के महारथी जुटते हैं | उसी तरह WAVES summit में दुनिया-भर के media और entertainment industry के दिग्गज, creative world के लोग भारत आएंगे | यह summit भारत को global content creation का hub बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है | मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि इस summit की तैयारी में हमारे देश के young creators भी पूरे जोश से जुड़ रहे हैं | जब हम 5 trillion dollar economy की ओर बढ़ रहे हैं, तब हमारी creator economy एक नई energy ला रही है | मैं भारत की पूरी entertainment और creative industry से आग्रह करूंगा – चाहे आप young creator हों या established artist, Bollywood से जुड़े हों, या regional cinema से, TV industry के professional हों, या animation के expert, gaming से जुड़े हों या entertainment technology के innovator, आप सभी WAVES summit का हिस्सा बनें |

मेरे प्यारे देशवासियो,

आप सभी जानते हैं कि भारतीय संस्कृति का प्रकाश आज कैसे दुनिया के कोने-कोने में फैल रहा है | आज मैं आपको तीन महाद्वीपों से ऐसे प्रयासों के बारे में बताऊंगा, जो हमारी सांस्कृतिक विरासत के वैश्विक विस्तार की गवाह है | ये सभी एक दूसरे से मिलों दूर हैं | लेकिन भारत को जानने और हमारी संस्कृति से सीखने की उनकी ललक एक जैसी है |

साथियो,

Paintings का संसार जितना रंगों से भरा होता है, उतना ही खूबसूरत होता है | आप में से जो लोग टीवी के माध्यम से ‘मन की बात’ से जुड़े हैं, वे अभी कुछ paintings टीवी पर देख भी सकते हैं | इन Paintings में हमारे देवी-देवता, नृत्य की कलाएं और महान विभूतियों को देखकर आपको बहुत अच्छा लगेगा | इनमें आपको भारत में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं से लेकर और भी बहुत कुछ देखने को मिलेगा | इनमें ताजमहल की एक शानदार Painting भी शामिल है, जिसे 13 साल की एक बच्ची ने बनाया है | आपको ये जानकार हैरानी होगी इस दिव्यांग बच्ची ने अपने मुहँ से इस panting को तैयार किया है | सबसे दिलचस्प बात यह है कि इन Painting को बनाने वाले भारत के नहीं, बल्कि Egypt के students हैं, वहाँ के विद्यार्थी हैं | कुछ ही हफ्ते पहले Egypt के करीब 23 हजार students ने एक painting प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था | वहाँ उन्हें भारत की संस्कृति और दोनों देशों के ऐतिहासिक संबंधों को बताने वाली paintings तैयार करनी थी | मैं इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले सभी युवाओं की सराहना करता हूँ | उनकी creativity की जितनी भी प्रशंसा की जाए वो कम है |

साथियो,

दक्षिण अमेरिका का एक देश है पराग्वे | वहाँ रहने वाले भारतीयों की संख्या एक हजार से ज्यादा नहीं होगी | पराग्वे में एक अद्भुत प्रयास हो रहा है | वहाँ भारतीय दूतावास में एरीका ह्युबर free आयुर्वेद consultation देती हैं | आयुर्वेद की सलाह लेने के लिए आज उनके पास स्थानीय लोग भी बड़ी संख्या में पहुँच रहे हैं | एरीका ह्युबर ने भले ही engineering की पढ़ाई की हो, लेकिन उनका मन तो आयुर्वेद में ही बसता है | उन्होंने आयुर्वेद से जुड़े Courses किए थे और समय के साथ वे इसमें पारंगत होती चली गई |

साथियो,

ये हमारे लिए बहुत गर्व की बात है कि दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल है और हर हिन्दुस्तानी को इसका गर्व है | दुनियाभर के देशों में इसे सीखने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है | पिछले महीने के आखिर में फ़िजी में भारत सरकार के सहयोग से Tamil Teaching Programme शुरू हुआ | बीते 80 वर्षों में यह पहला अवसर है, जब फ़िजी में तमिल के Trained Teachers इस भाषा को सिखा रहे हैं | मुझे ये जानकार अच्छा लगा कि आज फ़िजी के students तमिल भाषा और संस्कृति को सीखने में काफी दिलचस्पी ले रहे हैं |

साथियो,

ये बातें, ये घटनाएं, सिर्फ सफलता की कहानियाँ नहीं है | ये हमारी सांस्कृतिक विरासत की भी गाथाएं हैं | ये उदाहरण हमें गर्व से भर देते हैं | Art से आयुर्वेद तक और Language से लेकर Music तक, भारत में इतना कुछ है, जो दुनिया में छा रहा है |

साथियो,

सर्दी के इस मौसम में देश-भर से खेल और fitness को लेकर कई activities हो रही हैं | मुझे खुशी है कि लोग fitness को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना रहे हैं | कश्मीर में Skiing से लेकर गुजरात में पतंगबाजी तक, हर तरफ, खेल का उत्साह देखने को मिल रहा है | #SundayOnCycle और #CyclingTuesday जैसे अभियानों से Cycling को बढ़ावा मिल रहा है |

साथियो,

अब मैं आपको एक ऐसी अनोखी बात बताना चाहता हूँ जो हमारे देश में आ रहे बदलाव और युवा साथियों के जोश और जज्बे का प्रतीक है | क्या आप जानते हैं कि हमारे बस्तर में एक अनूठा Olympic शुरू हुआ है! जी हाँ, पहली बार हुए बस्तर Olympic से बस्तर में एक नई क्रांति जन्म ले रही है | मेरे लिए ये बहुत ही खुशी की बात है कि बस्तर Olympic का सपना साकार हुआ है | आपको भी ये जानकार अच्छा लगेगा कि यह उस क्षेत्र में हो रहा है, जो कभी माओवादी हिंसा का गवाह रहा है | बस्तर Olympic का शुभंकर है – ‘वन भैंसा’ और ‘पहाड़ी मैना’ | इसमें बस्तर की समृद्ध संस्कृति की झलक दिखती है | इस बस्तर खेल महाकुंभ का मूल मंत्र है –

‘करसाय ता बस्तर बरसाए ता बस्तर’

यानि ‘खेलेगा बस्तर – जीतेगा बस्तर’ |

पहली ही बार में बस्तर Olympic में 7 जिलों के एक लाख 65 हजार खिलाड़ियों ने भाग लिया है | यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है – यह हमारे युवाओं के संकल्प की गौरव-गाथा है | Athletics, तीरंदाजी, Badminton, Football, Hockey, Weightlifting, Karate, कबड्डी, खो-खो और Volleyball – हर खेल में हमारे युवाओं ने अपनी प्रतिभा का परचम लहराया है | कारी कश्यप जी की कहानी मुझे बहुत प्रेरित करती है | एक छोटे से गांव से आने वाली कारी जी ने तीरंदाजी में रजत पदक जीता है | वे कहती हैं – “बस्तर Olympic ने हमें सिर्फ खेल का मैदान ही नहीं, जीवन में आगे बढ़ने का अवसर दिया है” | सुकमा की पायल कवासी जी की बात भी कम प्रेरणादायक नहीं है | Javelin Throw में स्वर्ण पदक जीतने वाली पायल जी कहती हैं – “अनुशासन और कड़ी मेहनत से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है” | सुकमा के दोरनापाल के पुनेम सन्ना जी की कहानी तो नए भारत की प्रेरक कथा है | एक समय नक्सली प्रभाव में आए पुनेम जी आज wheelchair पर दौड़कर मेडल जीत रहे हैं | उनका साहस और हौसला हर किसी के लिए प्रेरणा है | कोडागांव के तीरंदाज रंजू सोरी जी को ‘बस्तर youth icon’ चुना गया है | उनका मानना है – बस्तर Olympic दूरदराज के युवाओं को राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाने का अवसर दे रहा है |

साथियो,

बस्तर Olympic केवल एक खेल आयोजन नहीं है I यह एक ऐसा मंच है जहां विकास और खेल का संगम हो रहा है I जहां हमारे युवा अपनी प्रतिभा को निखार रहे हैं और एक नए भारत का निर्माण कर रहे हैं I मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ :

अपने क्षेत्र में ऐसे खेल आयोजनों को प्रोत्साहित करें

#खेलेगा भारत – जीतेगा भारत के साथ अपने क्षेत्र की खेल प्रतिभाओं की कहानियां साझा करें

स्थानीय खेल प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का अवसर दें

याद रखिए, खेल से, न केवल शारीरिक विकास होता है, बल्कि ये Sportsman spirit से समाज को जोड़ने का भी एक सशक्त माध्यम है I तो खूब खेलिए-खूब खिलिए |

मेरे प्यारे देशवासियो,

भारत की दो बड़ी उपलब्धियां आज विश्व का ध्यान आकर्षित कर रही हैं I इन्हें सुनकर आपको भी गर्व महसूस होगा I ये दोनों सफलताएं स्वास्थ्य के क्षेत्र में मिली हैं I पहली उपलब्धि मिली है – मलेरिया से लड़ाई में | मलेरिया की बीमारी चार हजार वर्षों से मानवता के लिए एक बड़ी चुनौती रही है I आजादी के समय भी यह हमारी सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक थी I एक महीने से लेकर पांच साल तक के बच्चों की जान लेने वाली सभी संक्रामक बीमारियों में मलेरिया का तीसरा स्थान है I आज, मैं संतोष से कह सकता हूँ कि देशवासियों ने मिलकर इस चुनौती का दृढ़ता से मुकाबला किया है I विश्व स्वास्थ्य संगठन – WHO की रिपोर्ट कहती है – “भारत में 2015 से 2023 के बीच मलेरिया के मामलों और इससे होने वाली मौतों में 80 प्रतिशत की कमी आई है” I यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है I सबसे सुखद बात यह है, यह सफलता जन-जन की भागीदारी से मिली है I भारत के कोने-कोने से, हर जिले से हर कोई इस अभियान का हिस्सा बना है I असम में जोरहाट के चाय बागानों में मलेरिया चार साल पहले तक लोगों की चिंता की एक बड़ी वजह बना हुआ था I लेकिन जब इसके उन्मूलन के लिए चाय बागान में रहने वाले एकजुट हुए, तो इसमें काफी हद तक सफलता मिलने लगी I अपने इस प्रयास में उन्होनें Technology के साथ-साथ Social media का भी भरपूर इस्तेमाल किया है I इसी तरह हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले ने मलेरिया पर नियंत्रण के लिए बड़ा अच्छा model पेश किया I यहां मलेरिया की monitoring के लिए जनभागीदारी काफी सफल रही है I नुक्कड़ नाटक और रेडियो के जरिए ऐसे संदेशों पर जोर दिया गया, जिससे मच्छरों की breeding कम करने में काफी मदद मिली है I देश-भर में ऐसे प्रयासों से ही हम मलेरिया के खिलाफ जंग को और तेजी से आगे बढ़ा पाए है I

साथियो,

अपनी जागरूकता और संकल्प शक्ति से हम क्या कुछ हासिल कर सकते हैं, इसका दूसरा उदाहरण है cancer से लड़ाई I दुनिया के मशहूर Medical Journal Lancet की study वाकई बहुत उम्मीद बढ़ाने वाली है I इस Journal के मुताबिक अब भारत में समय पर cancer का इलाज शुरू होने की संभावना काफी बढ़ गई है I समय पर इलाज का मतलब है – cancer मरीज का treatment 30 दिनों के भीतर ही शुरू हो जाना और इसमें बड़ी भूमिका निभाई है – ‘आयुष्मान भारत योजना’ ने | इस योजना की वजह से cancer के 90 प्रतिशत मरीज, समय पर अपना इलाज शुरू करा पाए हैं | ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि पहले पैसे के अभाव में गरीब मरीज cancer की जांच में, उसके इलाज से कतराते थे I अब ‘आयुष्मान भारत योजना’ उनके लिए बड़ा संबल बनी है I अब वो आगे बढ़कर अपना इलाज कराने के लिए आ रहे हैं I ‘आयुष्मान भारत योजना’ ने cancer के इलाज में आने वाली पैसों की परेशानी को काफी हद तक कम किया है I अच्छा ये भी है, कि आज समय पर, cancer के इलाज को लेकर, लोग, पहले से कहीं अधिक जागरूक हुए हैं I यह उपलब्धि जितनी हमारे Healthcare system की है, डॉक्टरों, नर्सों और Technical staff की है, उतनी ही, आप, सभी मेरे नागरिक भाई-बहनों की भी है I सबके प्रयास से cancer को हारने का संकल्प और मजबूत हुआ है I इस सफलता का credit उन सभी को जाता है, जिन्होनें जागरूकता फैलाने में अपना अहम योगदान दिया है I

Cancer से मुकाबले के लिए एक ही मंत्र है - Awareness, Action और Assurance. Awareness यानि cancer और इसके लक्षणों के प्रति जागरूकता, Action यानि समय पर जांच और इलाज, Assurance यानि मरीजों के लिए हर मदद उपलब्ध होने का विश्वास I आईए, हम सब मिलकर cancer के खिलाफ इस लड़ाई को तेजी से आगे ले जाएं और ज्यादा-से-ज्यादा मरीजों की मदद करें I

मेरे प्यारे देशवासियो,

आज मैं आपको ओडिशा के कालाहांडी के एक ऐसे प्रयास की बात बताना चाहता हूँ, जो कम पानी और कम संसाधनों के बावजूद सफलता की नई गाथा लिख रहा है | ये है कालाहांडी की ‘सब्जी क्रांति’ | जहां, कभी किसान, पलायन करने को मजबूर थे, वहीं आज, कालाहांडी का गोलामुंडा ब्लॉक एक vegetable hub बन गया है | यह परिवर्तन कैसे आया? इसकी शुरुआत सिर्फ 10 किसानों के एक छोटे से समूह से हुई | इस समूह ने मिलकर एक FPO - ‘किसान उत्पाद संघ’ की स्थापना की, खेती में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया, और आज उनका ये FPO करोड़ों का कारोबार कर रहा है | आज 200 से अधिक किसान इस FPO से जुड़े हैं, जिनमें 45 महिला किसान भी हैं | ये लोग मिलकर 200 एकड़ में टमाटर की खेती कर रहे हैं, 150 एकड़ में करेले का उत्पादन कर रहे हैं | अब इस FPO का सालाना turnover भी बढ़कर डेढ़ करोड़ से ज्यादा हो गया है | आज कालाहांडी की सब्जियां, न केवल ओडिशा के विभिन्न जिलों में, बल्कि, दूसरे राज्यों में भी पहुँच रही हैं, और वहाँ का किसान, अब, आलू और प्याज की खेती की नई तकनीकें सीख रहा है |

साथियो,

कालाहांडी की यह सफलता हमें सिखाती है कि संकल्प शक्ति और सामूहिक प्रयास से क्या नहीं किया जा सकता | मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ :-

अपने क्षेत्र में FPO को प्रोत्साहित करें

किसान उत्पादक संगठनों से जुड़ें और उन्हें मजबूत बनाएं |

याद रखिए – छोटी शुरुआत से भी बड़े परिवर्तन संभव हैं | हमें, बस, दृढ़ संकल्प और टीम भावना की जरूरत है |

साथियो,

आज की ‘मन की बात’ में हमने सुना, कि कैसे हमारा भारत, विविधता में एकता के साथ आगे बढ़ रहा है | चाहे वो खेल का मैदान हो या विज्ञान का क्षेत्र, स्वास्थ हो या शिक्षा – हर क्षेत्र में भारत नई ऊंचाइयों को छू रहा है | हमने एक परिवार की तरह मिलकर हर चुनौती का सामना किया और नई सफलताएं हासिल की | 2014 से शुरू हुए ‘मन की बात’ के 116 episodes में मैंने देखा है कि ‘मन की बात’ देश की सामूहिक शक्ति का एक जीवंत दस्तावेज़ बन गया है | आप सभी ने इस कार्यक्रम को अपनाया, अपना बनाया | हर महीने आपने अपने विचारों और प्रयासों को साझा किया | कभी किसी young innovator के idea ने प्रभावित किया, तो कभी किसी बेटी की achievement ने गौरवान्वित किया | ये आप सभी की भागीदारी है जो देश के कोने-कोने से positive energy को एक साथ लाती है | ‘मन की बात’ इसी positive energy के amplification का मंच बन गया है, और अब, 2025 दस्तक दे रहा है | आने वाले साल में ‘मन की बात’ के माध्यम से हम और भी inspiring प्रयासों को साझा करेगें | मुझे विश्वास है कि देशवासियों की positive सोच और innovation की भावना से भारत नई ऊंचाइयों को छूएगा | आप अपने आस-पास के unique प्रयासों को #Mannkibaat के साथ share करते रहिए | मैं जानता हूँ कि अगले साल की हर ‘मन की बात’ में हमारे पास एक दूसरे से साझा करने के लिए बहुत कुछ होगा | आप सभी को 2025 की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं | स्वस्थ रहें, खुश रहें, Fit India Movement में आप भी जुड़ जाइए, खुद को भी fit रखिए | जीवन में प्रगति करते रहें |

बहुत-बहुत धन्यवाद |