मंच पर बिराजमान प्रात:स्मरणीय, वंदनीय, परम श्रद्धेय पूज्य संतगण, माँ भारती की भक्ति में डूबे हुए उपस्थित सभी महानुभाव, जिन संतो के चरणों में बैठना जीवन का एक बहुत बड़ा सौभाग्य होता है, उन संतों के बगल में बैठने का जो अवसर आए, तो बैठने वाले की हालत क्या हुई होगी इसका आप अंदाज कर सकते हैं..! जिनकी वाणी सुनने के लिए मीलों दूर से कष्ट उठा कर के करोड़ों-करोड़ों लोग पहुंचते हैं, शब्द रूपी प्रसाद ग्रहण करने के लिए तपस्या करते हैं ऐसे ओजस्वी, तेजस्वी, तपस्वी, माँ सरस्वती के धनी, जिनके आशीर्वाद से लाभान्वित हुए हैं ऐसे महापुरूषों के बीच खड़े होकर के कुछ कहने की नौबत आए, तो उस कहने वाले का हाल कैसा होता होगा इसका आप भली-भांति अंदाजा कर सकते हैं..! ईश्वर ने जब से मुझे दुनिया को जानने और समझने का सामर्थ्य दिया, तब से जितने भी कुंभ के मेले हुए उन सब में मैं उपस्थित रहा और कभी ये भी सौभाग्य मिला था कि पूरा समय भी मैं वहाँ रहा था। लेकिन इस बार का ये पहला कुंभ का मेला ऐसा था कि जिसमें मैं पहुंच नहीं पाया था। मन में एक कसक थी, एक पीड़ा थी कि मैं ये क्यों कर नहीं पाया..? और जब मुझे गुरू जी अभी मिले तो तुरंत पूछा कि बेटा, इस बार कुंभ में क्यों नहीं दिखाई दिए..? मन में एक कसक तो अभी भी है कि नहीं पहुंच पाया, लेकिन आज इस समारोह में और वो भी गंगा के तट पर हरिद्वार की भूमि में इसी पवित्र स्थल पर इन सभी संतों, आचार्यों और भगवंतों के दर्शन का मुझे सौभाग्य मिला..! शायद ईश्वर की इच्छा होगी कि मेरी वो कसक कम हो, और इसलिए ही ये कुछ व्यवस्था ईश्वर ने बनाई होगी..! ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे आज आप सब लोगों के चरणों में वंदन करने का अवसर मिला है..!

मैं एक बात यहाँ बताना चाहता हूँ। हमारे देश में किसी के लिए कुछ भी कह देना बहुत आसान हो गया है। शब्दों का मूल्य ना समझते हुए, शब्दों का सामर्थ्य ना समझते हुए, किसी के लिए कुछ भी कह देना ये मानों एक नया स्वभाव पनपा है। और इसलिए पता नहीं किस-किस के लिए क्या-क्या कहा गया होगा..! लेकिन एक समृद्व राज्य के इतने वर्षों तक मुख्यमंत्री पद पर रहने के बाद मैं सार्वजनिक रूप से और इन मीडिया वाले मित्रों की हाजिरी में अपने अनुभव से घोषित करना चाहता हूँ। यहाँ एक भी संत महात्मा, एक भी संस्था ऐसी नहीं है जिसने कभी भी, कभी भी गुजरात में मुख्यमंत्री के पास आकर के किसी भी चीज की कभी मांग की हो..! ये देने वाले लोग हैं..! वरना आसानी से यह कह दिया जाता है। और इसलिए आज मैं बड़ी जिम्मेदारी के साथ ये कहना चाहता हूँ कि मेरे 12 साल के कार्यकाल में मुझे एक भी संत महात्मा, एक भी समाज के प्रति समर्पित व्यक्ति ऐसा मिला नहीं है जिसने सरकार से कुछ मांगा हो..! बहुत लोग होंगे जिनको ये बात नजर आना मुश्किल है। संतो की शक्ति ऐसे चश्मों को निर्माण करे, ऐसे ऐनक का निर्माण करे ताकि ऐसे लोगों को कुछ सत्य दिखाई दे..! और उस अर्थ में, उनकी वाणी का सामर्थ्य हजारों गुना बढ जाता है..! उन्होंने जो मर्यादा रेखाएं तय की होती हैं उस मर्यादा रेखाओं के बाहर जाने का साहस कत्तई कोई नहीं कर पाता है, क्योंकि वो सिर्फ शब्द नहीं होते हैं, वो एक साधना का अंश होता है..!

मैं बाबा रामदेव जी को सालों से जानता हूँ। वो जब साइकिल से घूमते थे तब से जानता हूँ और एक छोटी सी पुडिया में से काजू का टुकड़ा देते थे वो भी याद है..! आप कल्पना कर सकते हैं, एक व्यक्ति अहर्निश, एक निष्ठ, अखंड, अविरत, ‘वन लाइफ, वन मिशन’ इस तरह चरैवेति, चरैवेति, चरैवेति... इस देश में लगातार भ्रमण करता रहे..! प्रतिदिन डेढ़-दो लाख लोगों को योग के माध्यम से स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित करते रहें..! अगर बाबा रामदेव जी की ये मूवमेंट दुनिया के किसी और देश में हुई होती, तो ना जाने कितनी यूनिवर्सिटीयों ने उस पर पी.एच.डी. की होती..! मैं ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ वालों को कहना चाहता हूँ कि आपने ना जाने कितने रिकॉर्ड प्रतिस्थापित किये होगें, लेकिन कभी आपने इस रिकॉर्ड की तरफ ध्यान दिया है कि अपने इतने छोटे से काल खंड में एक व्यक्ति ने टीवी के माध्यम से नहीं, फोटो के माध्यम से नहीं, रेडियो के माध्यम से नहीं, टैक्नोलॉजी के माध्यम से नहीं, रूबरू में इतने करोड़ लोगों के साथ आंख में आंख मिला कर के बात की हो ऐसा रिकॉर्ड शायद दुनिया में कहीं नहीं होगा..!

ये हमारा दुर्भाग्य है मित्रों, कि हम लोग हमारे देश के सामर्थ्य की चर्चा कभी करते नहीं हैं। किसी ने कल्पना की है कुंभ के मेले की..? कुंभ के मेले की व्यवस्था कितनी जबर्दस्त होती है..! वहाँ संतों मंहतों के एक-एक छोटे नगर बस जाते हैं। और गंगा के किनारे पर हर दिन यूरोप का एक देश इक्कठा हो इतनी भीड़ जमा होती है, इतने भक्तों का जमघट जमा होता है। और उसके बाद भी ना कोई मारकाट, ना कोई लूट, ना कोई अकस्मात, ना कोई मौत, ना कोई बीमारी... और दो-दो, तीन-तीन महीने तक बिना किसी आमंत्रण के बिना किसी सूचना के करोड़ों-करोड़ों लोग पहुंचते हैं..! क्या किसी मैनेजमेंट गुरु ने सोचा है, क्या दुनिया को मैनेजमेंट सिखाने वालों ने कभी सोचा है कि ये कौन सी मैनेजमेंट है, ये कौन सी व्यवस्था है..? ये संत-शक्ति के सामर्थ्य और सहस्त्र वर्षों की परंपरा का परिणाम है। लेकिन हम स्वाभिमान खो चुके हैं। आत्म गौरव के साथ दुनिया के साथ आंख में आंख मिला कर के हमारे सामर्थ्य का परिचय कराने की आदत गुलामी के काल खंड के कारण छूट गई है। और तब जा कर के इस चेतना को विश्व के सामने प्रस्तुत करना हर भारतवासी का सपना हो वो बहुत स्वाभाविक है और मैं भी एक हिन्दुस्तान के छोटे बच्चे के नाते उन महापुरूषों के शब्दों पर भरोसा करता हूँ। श्री अरविंद ने कहा था, जिसे मैं वेद वाक्य मानता हूँ, कि मुझे विश्वास है कि मेरी भारतमाता आजाद तो होगी ही, पर इतना ही नहीं, मेरी भारत माता विश्व कल्याणक बन कर रहेगी..! ये सपना देखा था। आज जब पूरा हिन्दुस्तान स्वामी विवेकानंद जी की 150 वीं जयंती मना रहा है तब, इस महापुरूष के सपनों को पूरा कौन करेगा..? क्या इस देश के एक-एक बच्चे का दायित्व नहीं है, हम सभी भारतवासियों का दायित्व नहीं है, हम सभी नौजवानों का दायित्व नहीं है कि जिस स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि मैं अपनी आंखों के सामने देख रहा हूँ कि मेरी भारत माता जगतगुरू के स्थान पर विराजमान है..! मुझे उस महापुरूष के सपनो में विश्वास है और उन्होंने कहा था कि मेरी आशा देश के नौजवान हैं..! 150 साल हो गए उस महापुरुष के जन्म को, 125 साल पहले ये बात उन्होंने बताई थी और आज पूरे विश्व का सबसे युवा कोई देश है तो वो हिन्दुस्तान है..!

आज पूरे विश्व में चर्चा चल रही है कि 21 वीं सदी हिन्दुस्तान की सदी है। पूरा विश्व ये मानता है कि 21 वीं सदी ज्ञान की सदी है और इसलिए जब-जब मानव जात ने ज्ञान युग में प्रवेश किया है तो उस सभी समय हिन्दुस्तान ने मानव जात का नेतृत्व किया है..! 21 वीं सदी यदि ज्ञान की सदी है तो 21 वीं सदी का नेतृत्व भी ये ज्ञानवान देश के पास होगा, ये हम सबको भरोसा होना चाहिए और उस दिशा में हमें एक नागरिक के नाते, हम जहाँ भी हों, जैसे भी हों, उस कर्तव्य का पालन करने के लिए सवा सौ करोड़ देशवासियों का संकल्प इस आशा-आकांक्षा की परिपूर्ति कर सकता है..!

भाइयो और बहनों, अभी-अभी नवरात्र का पर्व पूरा हुआ है और ये मेरा सौभाग्य रहा कि कुछ कारणवश ऐसे कार्यक्रम बन गए, वैसे मीडिया के मित्र तो उसका ऐसा डिजाइन बना कर के दुनिया को समझा रहे हैं कि मोदी कैसे बड़ी प्लानिंग के साथ आगे बढ़ रहे हैं..! ऐसा बता रहे हैं..! तो ये मैं बताना चाहता हूँ कि कोई प्लानिंग-ब्लानिंग नहीं है..! ईश्वर की इच्छा होगी, मेरा मन करता था बड़े दिनों से कि माँ काली के पास चला जाऊँ, बैलूर मठ चला जाऊँ, जिन संतों के साथ बचपन बिताया था, एक बार फिर उनके पास चला जाऊँ..! और कुछ दिन पहले में बंगाल, कलकत्ता गया और माँ काली के पास गया, रामकृष्ण परमहंस की उस पवित्र भूमि पर गया, बैलूर मठ गया, संतों के बीच समय बिताया..! बाद में सूचना आई केरल से, नारायण गुरू की पवित्र परंपरा के पास दर्शन करने का अवसर आया। नारायण गुरू ने अपना पूरा जीवन वंचितों के लिए, पीड़ितों के लिए, दलितों के लिए, शोषितों के लिए, समाज के निम्न स्तर की भलाई के लिए लगाया था और सौ साल पहले शिक्षा की ऐसी अलख जगाई थी कि उस संत की तपस्या का परिणाम है कि आज पूरे हिन्दुस्तान में सर्वाधिक शिक्षा कहीं है तो उस प्रदेश का नाम केरला है। संत का प्रताप है..! और आज दक्षिण से निकल के मैं सीधा हिमालय की गोद में, गंगा की चरणों में बाबा रामदेव जी जिस गुरूकुल को शुरू कर रहे हैं, आचार्यकुल को शुरु कर रहे हैं, ऐसे एक पवित्र कार्य में जुड़ने का मुझे सौभाग्य मिला है।

मैं जानता हूँ आज के इस अवसर के बाद भांति-भांति की चर्चा हमें सुनने को मिलेगी..! मैं जब छोटा था, तो हमारे कान में एक सवाल पूछा जाता था, हमारे मनो को भ्रमित किया जाता था। कभी-कभी मुझे लगता है कि बाबा रामदेव जी सारे देश को कपालभाति की ओर खींच कर ले गए हैं और उसके कारण जिनके कपाल में भ्रांतियाँ पड़ी हैं, वो ज्यादा परेशान नजर आते हैं..! लेकिन मुझे भरोसा है कि ये कपालभाति कभी ना कभी एक कपाल की भ्रांतियों को भी समाप्त करने का सामर्थ्य दिखाएगी..! हम बचपन में क्या सुनते थे..? हर कोई बोलता था और मैं समझ नहीं पाता था कि ये लोग ऐसा क्यों बोलते हैं और ये अभी भी मेरे मन में है क्योंकि मैं बचपन से किसी संत को देखता था तो बड़ी जिज्ञासा होती थी। कभी उनसे मैं सवाल पूछने चला जाता था, कभी किसी मंदिर में रूके हैं तो खाने-वाने को पूछने चला जाता था, मेरी अपनी एक रुचि थी..! पता नहीं ये ईश्वर ने तय किया होगा मेरे लिए, लेकिन मुझे बड़ा आकर्षण था..! और मैं बहुत छोटे नगर में पैदा हुआ हूँ, मैंने तो गाड़ी भी बचपन में देखी नहीं थी कि कार क्या होती है..! लोग कहते थे कि अरे छोड़ो, ये साधुलोग खाते हैं और सोते हैं, बस। कुछ करते नहीं है, लड्डू खाना बस, और कुछ काम नहीं। और अब जब काम करते हैं तो लोग पूछते हैं कि अरे, आपका ये काम है क्या, क्यों करते हो..? मैं हैरान हूँ..! बाबा रामदेव जी को सबसे बड़ा सवाल ये है कि आप ये सब करते क्यों हो? पहले लोग पूछते थे क्यों नहीं करते हो, अब पूछते हैं कि क्यों करते हो..? क्या इन लोगों को जवाब देना जरूरी बनता है, भाई? इनके लिए समय बर्बाद करने की जरूरत नहीं है। बाबा रामदेव जिस काम को कर रहे हैं, मैं मानता हूँ राष्ट्र की सेवा है। और हमारी पूरी संत परंपरा को देखिए। हर संत ने अपना जीवन उपदेशों तक कभी सीमित नहीं रखा। उन्होंने आचरण पर बल दिया है और कर्त्तव्य भाव से समाज जीवन की पीड़ाओं को दूर करने के लिए उनसे जो कुछ भी उस युग में हो सका, उसे करते रहे। किसी की जेब में एक पैसा ना हो और साल भर हरिद्वार में रहना हो, कोई मुझे बताए, वो भूखा रहेगा..? कौन खिलाता है, ये खिलाने वाले कौन हैं..? ये ही छोटे-मोटे संत हैं, जो अपने यहाँ से किसी भूखे को जाने नहीं देते हैं। मैंने बाबा रामदेव जी से एक बार पूछा था कि मैं तो योग की परंपरा से जुड़ा हुआ इंसान हूँ और दिन-रात दौड़ पाता हूँ उसमें योग का बहुत बड़ा योगदान है। तो, मैंने उनको पूछा एक बार कि योग से ऊर्जा प्राप्त होती है, स्वस्थता प्राप्त होती है, उमंग रहता है, वो सब तो है, लेकिन चारों तरफ से जब इतनी यातनाएं आती हों तो उसको झेलने की ताकत कहाँ से आती है ये तो बताओ..! क्या नहीं बीती बाबा रामदेव पर और क्या गुनाह था उनका..? क्या भारत जैसे लोकतंत्र देश में आपके विचारों से विपरीत विचार कहना गुनाह है..? क्या आपको जो बात पंसद नहीं है वो बात अगर कोई कहे, तो उसके लिए कोई भी अनाप-शनाप शब्द बोलने का आपको अधिकार मिल जाता है..? मैं दिल्ली में बैठे हुए शंहशाहों से पूछना चाहता हूँ, और ये मोदी नहीं पूछ रहा है, देश की भलाई के लिए भक्ति पूर्वक जुल्म के सामने झूझने वाली और जुल्म के सामने ना झुकने वाली माता राजबाला चीख-चीख के पूछ रही है और दिल्ली के शंहशाहों का जवाब मांग रही है..! कुछ लोगों को लगता था कि दमन के दौर से दुनिया को दबोच दिया जाता है। वे लोग कान खोल कर सुन लें, अंग्रेजी सल्तनत भी कभी किसी को दबोच नहीं पाई, आप लोगों की ताकत क्या है..? आप लोग चीज क्या हैं..? एक बार निकलो तो सही, जनता को जवाब देना पड़ जाएगा..!

मित्रों, मैं साफ मानता हूँ कि बाबा रामदेव आज जो कुछ भी कर रहे हैं, मैं नहीं मानता हूँ कि कोई योजना से कर रहे हैं। वो निकले थे तो नागरिकों की स्वस्थता के लिए, वो निकले थे ताकि योग के माध्यम से गरीब से गरीब आदमी अपने आप को स्वस्थ्य रख सके, वो निकले थे क्योंकि महंगी दवा गरीब को बचा नहीं सकती है, योग बचा सकता है और सिर्फ इसलिए निकले थे..! लेकिन दस साल लगातार भ्रमण करते-करते उन्होंने देखा कि नागरिकों के स्वास्थ्य का जितना संकट है, उससे ज्यादा राष्ट्र के स्वास्थ्य का संकट है और तब जा कर के उन्होंने राष्ट्र के लिए आवाज उठाना शुरू किया। और भाइयो-बहनों, इसमें एक सच्चाई है और मुझे विश्वास है कि भले ही उन पर अनेक प्रकार के, भांति-भांति के आरोप लगाने की कोशिश हुई हो... वैसे बाबा रामदेव जी मुझे मिलते हैं तो मुझे कुछ दूसरा कहते हैं। वे मुझे कहते हैं कि मोदी जी, हम दोनों सगे भाई हैं..! मैंने कहा, क्यों..? बोले, जितने प्रकार के जुल्म मुझ पर हो रहे हैं, वो सभी प्रकार के आपके ऊपर भी हो रहे हैं..! तो मैं एक सूची बनाता हूँ कि आज उन पर एक जुल्म हुआ तो मेरी बारी कब आएगी..? क्या शासन का ये काम है..? क्या सद्प्रवृति को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए..? आप बीमारियों की दवाई कहीं और खोज रहे हैं, बीमारी की जड़ों को दूर करने का काम ये संत परंपरा कर रही है और उसी को आप नकार रहे हो तो बुराइयाँ बढ़ती ही जाएगी..! जो श्रेष्ठ है, उत्तम है, सही रास्ता है, इसको नकारने से काम नहीं चलता..!

भाइयो और बहनों, इस देश में ऐसा एक छोटा सा वर्ग है जो ये मानता है कि हिन्दुस्तान का जन्म 15 अगस्त 1947 को हुआ है। और जो लोग ये मानते हैं कि हिन्दुस्तान 15 अगस्त को पैदा हुआ वो सारे गलत रास्ते पर जा रहे हैं..! ये सहस्त्र वर्ष पुराना, एक महान सांस्कृतिक धरोहर वाला, समय के हर पहलु को अनुभव करते हुए, कठिनाइयों से रास्ता खोजते हुए, विश्व कल्याण की कामना करते हुए आगे जा रहा एक समाज है और तभी तो विश्व की अनेक हस्तियाँ मिटने के बाद भी हमारी हस्ती मिटती नहीं है..! जिन चीजों से हम खत्म नहीं हुए हैं, जिसने हमें बचाए रखा है उनको बचाना ये हम लोगों का दायित्व बन जाता है। अगर हम उसको खो देंगे तो समाज कोई भी हो, अगर वो समाज इतिहास की जड़ों से अपने आप को काट डालता है, सांस्कृतिक छाँव से अपने आप को अलग कर देता है, तो उस समाज में इतिहास निर्माण करने की ताकत नहीं रहती है..! इतिहास वही समाज बना सकता है, जो समाज इतिहास में से प्राण शक्ति को प्राप्त करता है..! हम लोग हमारे अपने इतिहास के प्रति शर्मिंदा होते हैं, खुद को इतिहास से अलग रखने का प्रयास करते हैं, सांस्कृतिक विरासत को हम पुराण पंथी कह कर, गालियाँ दे कर के उसका इंकार कर देते हैं... और तब जा कर के स्वस्थ समाज के निर्माण में रुकावटें पैदा होती हैं..!

हमारी समाज व्यवस्था को बढ़िया बनाने का और बचाने का सबसे बड़ा काम परिवार संस्था ने किया है। हम धीरे-धीरे देख रहे हैं कि हमारी परिवार संस्था संकट में आ रही है। ज्वाइंट फैमिली से हट-हट के हम माइक्रो परिवार की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं..! बच्चे आया के भरोसे पल रहे हैं..! हमारा सामर्थ्य कितना था, हमारी समाज व्यवस्थाएं क्या थीं, उसमें से कौन सी चीज अच्छी है कौन सी चीज़ें कालबाह्य हैं, जो निकम्मी है उसको उखाड़ फैंकना, ये हमारे समाज की ताकत है..! और मित्रों, आज मैं ये गर्व से कहना चाहता हूँ कि हम ही लोग इतने भाग्यवान हैं, इस भारत भूमि में जन्में हुए हम लोग इतने भाग्यवान है कि हमारी धरती एक ऐसी बहुरत्न वंसुधरा है, हमारी समाज व्यवस्था इतनी जागृत है कि जिसके कारण जब-जब हमारे भीतर बुराइयाँ पैदा हुईं, हमारे अंदर कमियाँ आई तो उन कमियों को दूर करने के लिए, उन बुराइयों की मुक्ति के लिए हमारे ही समाज के भीतर से तेजस्वी, ओजस्वी, प्राणवान महापुरुषों का जन्म हुआ..! अस्पृश्यता को हमने जन्म दिया, तो कोई गांधी आया जिसने अस्पृश्ता के खिलाफ जंग छेड़ा..! हम ईश्वर भक्ति में लीन थे, तब कोई विवेकानंद आया और उसने कहा कि अरे, दरिद्रनारायण की सेवा करो..! हम मंदिर, माता, भगवान उसी में लगे हुए थे, तब कोई विवेकानंद आया और उसने कहा कि अरे छोड़ो सब, तुम्हारे सब भगवानों को डूबा दो, तुम सिर्फ भारत माता की सेवा करो, ये देश तेजस्वी बन कर के निकलेगा..! ये सामर्थ्य है इस समाज का..! विधवाओं के प्रति अन्याय करने वाले इस समाज के खिलाफ इसी कोख से एक महापुरूष पैदा हुए जिन्होंने विधवाओं के कल्याण के लिए अलख जगाई और समाज के खिलाफ लड़ाई लड़े..! ये संतों का, ऋषियों का, मुनियों का, आचार्यों का योगदान है और तब जा कर के हुआ है..! ये देश राजनेताओं ने नहीं बनाया है, ये देश किसी सरकार ने नहीं बनाया है, ये देश ऋषियों ने, मुनियों ने, आचार्यों ने, शिक्षकों ने बनाया है, और तब जा कर के देश आगे बढ़ा है। सारी चीज़ें हमने राज के आस-पास, इर्द-गिर्द हमने इक्कठी कर दी हैं, और इन सारी शक्तियों को हमने नकार दिया है..! आवश्यकता है कि इन सभी शक्तियों को जोड़ें, सब शक्तियों का मिलन हो, सतसंकल्प के साथ सतशक्तियाँ सतपथ पर चलें, तो दुनिया की कोई ताकत ऐसी नहीं है कि इस भारत महामाता को जगदगुरू बनने से रोक सके..!

भाइयो और बहनों, मैं बहुत आशावादी व्यक्ति हूँ। विश्वास मेरी रगों में दौड़ता है। मेरा पसीना विकास मंत्र से पुलकित होता है। और इसलिए मैं कहता हूँ और गुजरात के अनुभव से कहता हूँ कि निराश होने का कोई कारण नहीं है..! मुझे याद है कि 2001 में जब गुजरात में भंयकर भूंकप आया, तब सारा विश्व कहता था कि गुजरात मौत की चादर ओढ कर के सोया है, अब गुजरात खड़ा नहीं हो सकता..! अब गुजरात का कुछ होगा नहीं, अध्याय पूरा हो गया..! जो गुजरात के लिए अच्छा चाहते थे वो भी दु:खी थे, उनको भी लगता था कि परमात्मा ने इतना बड़ा कहर क्यों किया..? लेकिन वही गुजरात ने करके दिखाया..! सारा विश्व कहता है, वर्ल्ड बैंक कहती है कि भयानक भूंकप की आफत में से निकलने में समृद्घ देशों को भी सात साल लगते हैं। हम तो गरीब देशों में गिने जाते हैं, लेकिन गुजरात तीन साल के भीतर-भीतर दौड़ने लग गया था। मित्रों, मैं साफ-साफ कहना चाहता हूँ कि आज जो विश्व भर में गुजरात के विकास की जो चर्चा हो रही है, आज विश्वभर में गुजरात के प्रति संतोष का एक भाव जो प्रकट हो रहा है, उसका कारण नरेन्द्र मोदी नहीं है, नहीं है, नहीं है..! अगर उसका यश भागी कोई है तो छह करेाड़ गुजरातियों का पुरषार्थ है। अगर छह करोड़ गुजरातियों का पुरूषार्थ विश्व के सामने एक आदर्श पैदा कर सकता है, तो सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों का पुरुषार्थ पूरे विश्व में एक नई चेतना पैदा कर सकता है, इस विश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए..!

भाइयो और बहनों, हमने ना कभी जीवन में लेने, पाने, बनने के सपने देखें हैं, ना कभी ऐसे सपने संजोए हैं। हम तो फकीरी को लेकर चलने वाले इंसान हैं..! कल क्या था..? अगर कल कुछ नहीं था तो आने वाले कल में कुछ होना चाहिए इसकी कामना कभी जिंदगी में नहीं की..! और मित्रों, राजा रंतिदेव ने कहा था और ये देश की विशेषता देखिए कि जहाँ एक राजा किस प्रकार की ललकार करता है। राजा रंतिदेव ने कहा था ‘ना कामये राज्यम्, ना मोक्षम्, ना पुर्नभवम्, कामये दु:ख तप्तानाम्, प्राणीनाम् आर्त नाशनम्’... ना मुझे राज्य की कामना है, ना मुझे मोक्ष की कामना है, अगर कामना है तो पीड़ितों के, दुखियारों के, वंचितों के आंसू पोछने की कामना है, ये हमारी पंरपरा रही है..! ‘ना कामये राज्यम्, ना मोक्षम्, ना पुर्नभवम्’, हम उस परंपरा से निकले हैं, जिसने हमें सिखाया है ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा’... हम उस परंपरा से निकले हैं..! कुछ लोग हमारे इरादों पर शक करते हैं। अपने-पराए ऐसी दीवारें खड़ी करने की कोशिश करते हैं। मैं उन सबको कहना चाहता हूँ कि मैं जिस परंपरा में पला हूँ, मैं जिस संस्कारों में बड़ा हुआ हूँ और जिसने मुझे जो मंत्र सिखाया है, उस मंत्र को मैं मेरे राजनीतिक जीवन का मेनिफेस्टो मानता हूँ..! वो मंत्र कहता है, ‘सर्वे अपि सुखिन: संतु, सर्वे संतु निरामया’..! मुझे कभी ये नहीं कहा कि ‘हिन्दु सुखिन: संतु, हिन्दु निरामया’, ऐसा नहीं कहा..! मेरे पूर्वजों ने मुझे कहा है, ‘सर्वे अपि सुखिन: संतु, सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणी पश्यन्तु, माँ कश्चित दु:ख भाग भवेत’... सबके कल्याण की बात, सबके स्वास्थ्य की बात, सबकी समृद्घि की बात, ये मैनिफैस्टो हमें हमारे पूर्वजों ने दिया है। शायद दुनिया में किसी समाज के पास, किसी धर्म के पास, किसी परंपरा के पास दो लाइन में मानव विकास का चित्र खींचा गया हो, सोशल वैलफेयर के कामों का खाका लिया गया हो, ऐसा शायद दुनिया में कहीं नहीं होगा, ये मेरा ज्ञान कहता है..! और इसलिए भाइयो और बहनों, हमारे पास अगर इतनी बड़ी विरासत है, तो भय किस चीज का..?

मुझे स्मरण है, 2002 में मैं चुनाव जीत कर आया था। कई लोगों के लिए बहुत बड़ा सदमा था, वो बेचारे अभी तक होश में नहीं आए हैं..! 12 साल हो गए..! उस दिन का मेरा एक भाषण है। मैं मीडिया के मित्रों को कहता हूँ कि आप में अगर ईमानदारी नाम की चीज है तो उस समय के यू-टयूब पर जा कर के मेरा वो भाषण देख लीजिए। चुनाव जीतने के बाद मैंने कहा था कि अब चुनाव समाप्त हो चुके हैं, राजनीतिक गहमागहमी समाप्त हो चुकी है, तू-तू, मैं-मैं का दौर खत्म हो चुका है, अब हम सबको मिल कर के गुजरात को आगे बढ़ाना है..! और मैंने कहा था कि जिन्होंने हमें वोट दिए हैं वो भी मेरे हैं, जिन्होंने हमें वोट नहीं दिया वो भी मेरे हैं, और जिन्होंने किसी को वोट नहीं दिया वो भी मेरे हैं..! मैंने ये भी कहा था, ‘अभयम्’, ये मेरा शब्द था उस दिन के भाषण में, 2002 के उस माहौल में..! ये संतो की कृपा रही है, इन्हीं की शिक्षा-दीक्षा रही है कि उस माहौल में भी, इतने विकट वातावरण में भी ईश्वर ने मेरे मुंह से एक शब्द निकाला था और मैंने कहा था कि अब सरकार बन चुकी है और मेरा एक ही मंत्र है, ‘अभयम्’..! भाइयों-बहनों, आज 12 साल हो चुके हैं। जिस गुजरात के अंदर आए दिन दंगे होते थे, निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया जाता था, आज 12 साल हो गए हैं, लेकिन दंगो का नामों-निशान वहां नहीं बचा है, मित्रों..! क्यों..? ‘सर्वे अपि सुखिन: संतु, सर्वे संतु निरामया’, ये मंत्र की साधना की है तब जा कर के ये हुआ है। और इसलिए भाइयों-बहनों, मैं कहना चाहता हूँ कि एक छोटी सी जमात इस राष्ट्र की मूल धारा को ललकारती रही है। हमने उसकी अनदेखी की है, उसके कारण हमें बहुत भुगतना पड़ा है। छोटी सी ही क्यों ना हो, लेकिन सात्विक शक्ति को हमें इतनी उभारनी होगी, ताकि इस प्रकार की विकृतियाँ अपने आप नष्ट हो जाएं।

आयुर्वेद तो यही कहता है..! और आज बहुत बड़ी सेवा की है आचार्य जी ने, इतने बड़े ग्रंथ दिए हैं। देखिए, हमारे यहाँ एक जमाना था, सारा विज्ञान ऋषियों के द्वारा ही आया हुआ है। हमारे ऋषि-मुनि जंगलों में तपस्या करते थे, उसी से तो हमारे सारे ग्रंथ बने थे..! उसी परंपरा की एक छोटी सी कड़ी के रूप में आज इस भूमि पर इतने समृद्घ ग्रंथों का लोकापर्ण किया है और मैंने आचार्य जी से प्रार्थना की है कि इसका डिजिटल फार्म हो ताकि दुनिया, नई पीढ़ी जरा इन्टरनेट पर जाकर देखें कि पेड़-पौधे क्या देते हैं, ये परमात्मा हमें क्या दे रहे हैं..! हमारे लिए सब चीजें मौजूद हैं, उसको जोड़ने का काम आचार्य जी ने इन ग्रंथों के माध्यम से किया है। आने वाली पीढ़ी के लिए सदियों तक काम आने वाला ये उत्तम काम इन्होंने किया है। मैं आपका अभिनंदन करता हूँ, मैं पतंजली योगपीठ का अभिनंदन करता हूँ कि उन्होंने हमारी जो मूलभूत शक्ति है उस पर अत्यन्त भरोसा करते हुए उसका पुनर्जागरण करने का एक अभियान उठाया है..!

भाइयो और बहनों, आज मुझे एक सम्मान पत्र दिया गया। मैं अपने आप से पूछता हूँ कि क्या मैं इसके योग्य हूँ..? मेरी आत्मा कहती है कि नहीं, मैं इसके लिए कत्तई योग्य नहीं हूँ..! लेकिन संत तो मन से माँ के रूप होते हैं, संतों के भीतर माँ का एक विराट रूप का अस्तित्व होता है। और जो संतों के निकट जाता है, उसको संतों की भीतर का जो मातृत्व होता है उसकी अनुभूति होती है। और माँ अपने बच्चे को जब वो चल नहीं पाता है, तो उंगली पकड़ कर चलो-चलो, दौड़ो-दौड़ो, अब बहुत पास में है, ऐसे खींच कर ले जाती है। माँ को मालूम होता है कि बच्चा दौड़ नहीं पाएगा, फिर भी माँ पुचकारती है कि अरे दौड़ो-दौड़ो, आ जाओ-आ जाओ... ऐसा करके दौड़ाती है..! मुझे लगता है कि मेरी दौड़ कुछ कम पड़ रही है, मुझे लगता है कि अभी भी मुझमें कुछ कमियाँ हैं और संतो ने आज मुझे एक अलग ढंग से इंगित किया है कि बेटे, ये सब तुम्हे अभी पूरा करना बाकी है..! ये सम्मान पत्र नहीं है, ये आदेश पत्र है और मेरे लिए ये प्रेरणा पुष्प है..! ये प्रेरणा पुष्प मुझे हर पल कमियों से मुक्ति पाने की ताकत दे..! और मैं संतों से खुले आम कहता हूँ, बुरा मत मानना संतों, मुझे संतों से वो आशीर्वाद नहीं चाहिए जो किसी पद के लिए होते हैं, नहीं चाहिए..! हम उसके लिए पैदा नहीं हुए हैं। मुझे संतो से आशीर्वाद चाहिए और इसलिए चाहिए कि मैं कभी कुछ गलत ना करूँ, मेरे हाथों से कुछ गलत ना हो जाए, मेरे हाथों से किसी का बुरा ना हो जाए..! संत मुझे वो आशीर्वाद दें, गंगा मैया मुझे वो सामर्थ्य दे, राजाधिराज हिमालय मुझे वो प्रेरणा दे और आप सब जनता जर्नादन ईश्वर का रूप होती है, मैं उसके चरणों में नतमस्तक होता हूँ और मैं ईश्चर के चरणों में नमन करता हूँ ताकि 125 करोड़ नागरिकों की तरह एक नागरिक के नाते हम भी कभी भी किसी का बुरा ना करें, किसी के लिए बुरा ना सोचें और जो महान कार्य के लिए यज्ञ चल रहे हैं... आप देखिए, कितनी बड़ी शिक्षा संस्था चला रहे हैं..! मैं तो यहाँ हरिद्वार की धरती पर इस शुभ अवसर पर बाबा रामदेव जी से प्रार्थना करता हूँ कि हिन्दुस्तान में संतों के द्वारा शिक्षा के जो काम हो रहे हैं, एक बार यहीं पर उनका सबसे बड़ा मेला लगना चाहिए और लोग देखें कि कोई पाँच लाख बच्चों को पढ़ा रहा है, कोई दो लाख बच्चों को पढ़ा रहा है और सब संस्कार और शिक्षण दोनों की चिंता कर रहे हैं..! ये छोटे काम नहीं है मित्रों, ये राष्ट्र निर्माण की अमूल्य सेवा है, जो इन महापुरूषों के द्वारा हो रही है..! हम कम से कम देखें तो सही, समझें तो सही, उनका गौरवगान तो करें..! लेकिन नहीं, अगर उनकी राजनीतिक उठापटक में इसका कोई मेल नहीं बैठता है, तो पता नहीं क्या कुछ कह देते हैं..! मैं हैरान हूँ, बाबा रामदेव के लिए क्या-क्या शब्द प्रयोग किए हैं इन लोगों ने, क्या-क्या शब्द बोले हैं, मैं सोच नहीं सकता हूँ, मित्रों..! मन में बड़ी पीड़ा होती है। ईश्वर से हम प्रार्थना करें कि हम सत्संकल्प लिए आगे बढ़ें और स्वामी विवेकानंद जी की 150 वीं जंयति के निमित्त उनके सपनों को पूर्ण करने के लिए ऐसा भारत बनाने के लिए पूरी शक्ति और सामर्थ्य का अनुभव करें, इसी एक प्रार्थना के साथ फिर एक बार इस अवसर पर मुझे आने का अवसर मिला, जीवन की धन्यता के साथ उस ऋण को स्वीकार करते हुए, मैं सभी के चरणों में वंदन करते हुए अपनी वाणी को विराम देता हूँ..!

भारत माता की जय..!

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भारत और कुवैत का रिश्ता; सभ्यताओं, सागर और कारोबार का है: पीएम मोदी
December 21, 2024
कुवैत में प्रवासी भारतीयों की गर्मजोशी और स्नेह असाधारण है: प्रधानमंत्री
43 वर्षों के बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री कुवैत की यात्रा कर रहा है: प्रधानमंत्री
भारत और कुवैत के बीच सभ्यता, समुद्र और वाणिज्य का रिश्ता है: प्रधानमंत्री
भारत और कुवैत हमेशा एक-दूसरे के साथ खड़े रहे हैं: प्रधानमंत्री
भारत कुशल प्रतिभाओं की वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए पूरी तरह से सुसज्जित है: प्रधानमंत्री
भारत में स्मार्ट डिजिटल प्रणाली अब विलासिता की वस्तु नहीं रह गयी है, बल्कि यह आम आदमी के दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गयी है: प्रधानमंत्री
भविष्य का भारत वैश्विक विकास का केंद्र होगा, दुनिया का विकास इंजन होगा: प्रधानमंत्री
भारत, एक विश्व मित्र के रूप में, विश्व की भलाई के दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ रहा है: प्रधानमंत्री

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

नमस्कार,

अभी दो ढाई घंटे पहले ही मैं कुवैत पहुंचा हूं और जबसे यहां कदम रखा है तबसे ही चारों तरफ एक अलग ही अपनापन, एक अलग ही गर्मजोशी महसूस कर रहा हूं। आप सब भारत क अलग अलग राज्यों से आए हैं। लेकिन आप सभी को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सामने मिनी हिन्दुस्तान उमड़ आया है। यहां पर नार्थ साउथ ईस्ट वेस्ट हर क्षेत्र के अलग अलग भाषा बोली बोलने वाले लोग मेरे सामने नजर आ रहे हैं। लेकिन सबके दिल में एक ही गूंज है। सबके दिल में एक ही गूंज है - भारत माता की जय, भारत माता की जय I

यहां हल कल्चर की festivity है। अभी आप क्रिसमस और न्यू ईयर की तैयारी कर रहे हैं। फिर पोंगल आने वाला है। मकर सक्रांति हो, लोहड़ी हो, बिहू हो, ऐसे अनेक त्यौहार बहुत दूर नहीं है। मैं आप सभी को क्रिसमस की, न्यू ईयर की और देश के कोने कोने में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों की बहुत बहुत शुभकानाएं देता हूं।

साथियों,

आज निजी रूप से मेरे लिए ये पल बहुत खास है। 43 years, चार दशक से भी ज्यादा समय, 43 years के बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री कुवैत आया है। आपको हिन्दुस्तान से यहां आना है तो चार घंटे लगते हैं, प्रधानमंत्री को चार दशक लग गए। आपमे से कितने ही साथी तो पीढ़ियों से कुवैत में ही रह रहे हैं। बहुतों का तो जन्म ही यहीं हुआ है। और हर साल सैकड़ों भारतीय आपके समूह में जुड़ते जाते हैं। आपने कुवैत के समाज में भारतीयता का तड़का लगाया है, आपने कुवैत के केनवास पर भारतीय हुनर का रंग भरा है। आपने कुवैत में भारत के टेलेंट, टेक्नॉलोजी और ट्रेडिशन का मसाला मिक्स किया है। और इसलिए मैं आज यहां सिर्फ आपसे मिलने ही नहीं आया हूं, आप सभी की उपलब्धियों को सेलिब्रेट करने के लिए आया हूं।

साथियों,

थोड़ी देर पहले ही मेरे यहां काम करने वाले भारतीय श्रमिकों प्रोफेशनल्श् से मुलाकात हुई है। ये साथी यहां कंस्ट्रक्शन के काम से जुड़े हैं। अन्य अनेक सेक्टर्स में भी अपना पसीना बहा रहे हैं। भारतीय समुदाय के डॉक्टर्स, नर्सज पेरामेडिस के रूप में कुवैत के medical infrastructure की बहुत बड़ी शक्ति है। आपमें से जो टीचर्स हैं वो कुवैत की अगली पीढ़ी को मजबूत बनाने में सहयोग कर रही है। आपमें से जो engineers हैं, architects हैं, वे कुवैत के next generation infrastructure का निर्माण कर रहे हैं।

और साथियों,

जब भी मैं कुवैत की लीडरशिप से बात करता हूं। तो वो आप सभी की बहुत प्रशंसा करते हैं। कुवैत के नागरिक भी आप सभी भारतीयों की मेहनत, आपकी ईमानदारी, आपकी स्किल की वजह से आपका बहुत मान करते हैं। आज भारत रेमिटंस के मामले में दुनिया में सबसे आगे है, तो इसका बहुत बड़ा श्रेय भी आप सभी मेहनतकश साथियों को जाता है। देशवासी भी आपके इस योगदान का सम्मान करते हैं।

साथियों,

भारत और कुवैत का रिश्ता सभ्यताओं का है, सागर का है, स्नेह का है, व्यापार कारोबार का है। भारत और कुवैत अरब सागर के दो किनारों पर बसे हैं। हमें सिर्फ डिप्लोमेसी ही नहीं बल्कि दिलों ने आपस में जोड़ा है। हमारा वर्तमान ही नहीं बल्कि हमारा अतीत भी हमें जोड़ता है। एक समय था जब कुवैत से मोती, खजूर और शानदार नस्ल के घोड़े भारत जाते थे। और भारत से भी बहुत सारा सामान यहां आता रहा है। भारत के चावल, भारत की चाय, भारत के मसाले,कपड़े, लकड़ी यहां आती थी। भारत की टीक वुड से बनी नौकाओं में सवार होकर कुवैत के नाविक लंबी यात्राएं करते थे। कुवैत के मोती भारत के लिए किसी हीरे से कम नहीं रहे हैं। आज भारत की ज्वेलरी की पूरी दुनिया में धूम है, तो उसमें कुवैत के मोतियों का भी योगदान है। गुजरात में तो हम बड़े-बुजुर्गों से सुनते आए हैं, कि पिछली शताब्दियों में कुवैत से कैसे लोगों का, व्यापारी-कारोबारियों का आना-जाना रहता था। खासतौर पर नाइनटीन्थ सेंचुरी में ही, कुवैत से व्यापारी सूरत आने लगे थे। तब सूरत, कुवैत के मोतियों के लिए इंटरनेशनल मार्केट हुआ करता था। सूरत हो, पोरबंदर हो, वेरावल हो, गुजरात के बंदरगाह इन पुराने संबंधों के साक्षी हैं।

कुवैती व्यापारियों ने गुजराती भाषा में अनेक किताबें भी पब्लिश की हैं। गुजरात के बाद कुवैत के व्यापारियों ने मुंबई और दूसरे बाज़ारों में भी उन्होंने अलग पहचान बनाई थी। यहां के प्रसिद्ध व्यापारी अब्दुल लतीफ अल् अब्दुल रज्जाक की किताब, How To Calculate Pearl Weight मुंबई में छपी थी। कुवैत के बहुत सारे व्यापारियों ने, एक्सपोर्ट और इंपोर्ट के लिए मुंबई, कोलकाता, पोरबंदर, वेरावल और गोवा में अपने ऑफिस खोले हैं। कुवैत के बहुत सारे परिवार आज भी मुंबई की मोहम्मद अली स्ट्रीट में रहते हैं। बहुत सारे लोगों को ये जानकर हैरानी होगी। 60-65 साल पहले कुवैत में भारतीय रुपए वैसे ही चलते थे, जैसे भारत में चलते हैं। यानि यहां किसी दुकान से कुछ खरीदने पर, भारतीय रुपए ही स्वीकार किए जाते थे। तब भारतीय करेंसी की जो शब्दाबली थी, जैसे रुपया, पैसा, आना, ये भी कुवैत के लोगों के लिए बहुत ही सामान्य था।

साथियों,

भारत दुनिया के उन पहले देशों में से एक है, जिसने कुवैत की स्वतंत्रता के बाद उसे मान्यता दी थी। और इसलिए जिस देश से, जिस समाज से इतनी सारी यादें जुड़ी हैं, जिससे हमारा वर्तमान जुड़ा है। वहां आना मेरे लिए बहुत यादगार है। मैं कुवैत के लोगों का, यहां की सरकार का बहुत आभारी हूं। मैं His Highness The Amir का उनके Invitation के लिए विशेष रूप से धन्यवाद देता हूं।

साथियों,

अतीत में कल्चर और कॉमर्स ने जो रिश्ता बनाया था, वो आज नई सदी में, नई बुलंदी की तरफ आगे बढ़ रहा है। आज कुवैत भारत का बहुत अहम Energy और Trade Partner है। कुवैत की कंपनियों के लिए भी भारत एक बड़ा Investment Destination है। मुझे याद है, His Highness, The Crown Prince Of Kuwait ने न्यूयॉर्क में हमारी मुलाकात के दौरान एक कहावत का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था- “When You Are In Need, India Is Your Destination”. भारत और कुवैत के नागरिकों ने दुख के समय में, संकटकाल में भी एक दूसरे की हमेशा मदद की है। कोरोना महामारी के दौरान दोनों देशों ने हर स्तर पर एक-दूसरे की मदद की। जब भारत को सबसे ज्यादा जरूरत पड़ी, तो कुवैत ने हिंदुस्तान को Liquid Oxygen की सप्लाई दी। His Highness The Crown Prince ने खुद आगे आकर सबको तेजी से काम करने के लिए प्रेरित किया। मुझे संतोष है कि भारत ने भी कुवैत को वैक्सीन और मेडिकल टीम भेजकर इस संकट से लड़ने का साहस दिया। भारत ने अपने पोर्ट्स खुले रखे, ताकि कुवैत और इसके आसपास के क्षेत्रों में खाने पीने की चीजों का कोई अभाव ना हो। अभी इसी साल जून में यहां कुवैत में कितना हृदय विदारक हादसा हुआ। मंगफ में जो अग्निकांड हुआ, उसमें अनेक भारतीय लोगों ने अपना जीवन खोया। मुझे जब ये खबर मिली, तो बहुत चिंता हुई थी। लेकिन उस समय कुवैत सरकार ने जिस तरह का सहयोग किया, वो एक भाई ही कर सकता है। मैं कुवैत के इस जज्बे को सलाम करूंगा।

साथियों,

हर सुख-दुख में साथ रहने की ये परंपरा, हमारे आपसी रिश्ते, आपसी भरोसे की बुनियाद है। आने वाले दशकों में हम अपनी समृद्धि के भी बड़े पार्टनर बनेंगे। हमारे लक्ष्य भी बहुत अलग नहीं है। कुवैत के लोग, न्यू कुवैत के निर्माण में जुटे हैं। भारत के लोग भी, साल 2047 तक, देश को एक डवलप्ड नेशन बनाने में जुटे हैं। कुवैत Trade और Innovation के जरिए एक Dynamic Economy बनना चाहता है। भारत भी आज Innovation पर बल दे रहा है, अपनी Economy को लगातार मजबूत कर रहा है। ये दोनों लक्ष्य एक दूसरे को सपोर्ट करने वाले हैं। न्यू कुवैत के निर्माण के लिए, जो इनोवेशन, जो स्किल, जो टेक्नॉलॉजी, जो मैनपावर चाहिए, वो भारत के पास है। भारत के स्टार्ट अप्स, फिनटेक से हेल्थकेयर तक, स्मार्ट सिटी से ग्रीन टेक्नॉलजी तक कुवैत की हर जरूरत के लिए Cutting Edge Solutions बना सकते हैं। भारत का स्किल्ड यूथ कुवैत की फ्यूचर जर्नी को भी नई स्ट्रेंथ दे सकता है।

साथियों,

भारत में दुनिया की स्किल कैपिटल बनने का भी सामर्थ्य है। आने वाले कई दशकों तक भारत दुनिया का सबसे युवा देश रहने वाला है। ऐसे में भारत दुनिया की स्किल डिमांड को पूरा करने का सामर्थ्य रखता है। और इसके लिए भारत दुनिया की जरूरतों को देखते हुए, अपने युवाओं का स्किल डवलपमेंट कर रहा है, स्किल अपग्रेडेशन कर रहा है। भारत ने हाल के वर्षों में करीब दो दर्जन देशों के साथ Migration और रोजगार से जुड़े समझौते किए हैं। इनमें गल्फ कंट्रीज के अलावा जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, मॉरिशस, यूके और इटली जैसे देश शामिल हैं। दुनिया के देश भी भारत की स्किल्ड मैनपावर के लिए दरवाज़े खोल रहे हैं।

साथियों,

विदेशों में जो भारतीय काम कर रहे हैं, उनके वेलफेयर और सुविधाओं के लिए भी अनेक देशों से समझौते किए जा रहे हैं। आप ई-माइग्रेट पोर्टल से परिचित होंगे। इसके ज़रिए, विदेशी कंपनियों और रजिस्टर्ड एजेंटों को एक ही प्लेटफॉर्म पर लाया गया है। इससे मैनपावर की कहां जरूरत है, किस तरह की मैनपावर चाहिए, किस कंपनी को चाहिए, ये सब आसानी से पता चल जाता है। इस पोर्टल की मदद से बीते 4-5 साल में ही लाखों साथी, यहां खाड़ी देशों में भी आए हैं। ऐसे हर प्रयास के पीछे एक ही लक्ष्य है। भारत के टैलेंट से दुनिया की तरक्की हो और जो बाहर कामकाज के लिए गए हैं, उनको हमेशा सहूलियत रहे। कुवैत में भी आप सभी को भारत के इन प्रयासों से बहुत फायदा होने वाला है।

साथियों,

हम दुनिया में कहीं भी रहें, उस देश का सम्मान करते हैं और भारत को नई ऊंचाई छूता देख उतने ही प्रसन्न भी होते हैं। आप सभी भारत से यहां आए, यहां रहे, लेकिन भारतीयता को आपने अपने दिल में संजो कर रखा है। अब आप मुझे बताइए, कौन भारतीय होगा जिसे मंगलयान की सफलता पर गर्व नहीं होगा? कौन भारतीय होगा जिसे चंद्रयान की चंद्रमा पर लैंडिंग की खुशी नहीं हुई होगी? मैं सही कह रहा हूं कि नहीं कह रहा हूं। आज का भारत एक नए मिजाज के साथ आगे बढ़ रहा है। आज भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी इकॉनॉमी है। आज दुनिया का नंबर वन फिनटेक इकोसिस्टम भारत में है। आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम भारत में है। आज भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता देश है।

मैं आपको एक आंकड़ा देता हूं और सुनकर आपको भी अच्छा लगेगा। बीते 10 साल में भारत ने जितना ऑप्टिकल फाइबर बिछाया है, भारत में जितना ऑप्टिकल फाइबर बिछाया है, उसकी लंबाई, वो धरती और चंद्रमा की दूरी से भी आठ गुना अधिक है। आज भारत, दुनिया के सबसे डिजिटल कनेक्टेड देशों में से एक है। छोटे-छोटे शहरों से लेकर गांवों तक हर भारतीय डिजिटल टूल्स का उपयोग कर रहा है। भारत में स्मार्ट डिजिटल सिस्टम अब लग्जरी नहीं, बल्कि कॉमन मैन की रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो गया है। भारत में चाय पीते हैं, रेहड़ी-पटरी पर फल खरीदते हैं, तो डिजिटली पेमेंट करते हैं। राशन मंगाना है, खाना मंगाना है, फल-सब्जियां मंगानी है, घर का फुटकर सामान मंगाना है, बहुत कम समय में ही डिलिवरी हो जाती है और पेमेंट भी फोन से ही हो जाता है। डॉक्यूमेंट्स रखने के लिए लोगों के पास डिजि लॉकर है, एयरपोर्ट पर सीमलैस ट्रेवेल के लिए लोगों के पास डिजियात्रा है, टोल बूथ पर समय बचाने के लिए लोगों के पास फास्टटैग है, भारत लगातार डिजिटली स्मार्ट हो रहा है और ये तो अभी शुरुआत है। भविष्य का भारत ऐसे इनोवेशन्स की तरफ बढ़ने वाला है, जो पूरी दुनिया को दिशा दिखाएगा। भविष्य का भारत, दुनिया के विकास का हब होगा, दुनिया का ग्रोथ इंजन होगा। वो समय दूर नहीं जब भारत दुनिया का Green Energy Hub होगा, Pharma Hub होगा, Electronics Hub होगा, Automobile Hub होगा, Semiconductor Hub होगा, Legal, Insurance Hub होगा, Contracting, Commercial Hub होगा। आप देखेंगे, जब दुनिया के बड़े-बड़े Economy Centres भारत में होंगे। Global Capability Centres हो, Global Technology Centres हो, Global Engineering Centres हो, इनका बहुत बड़ा Hub भारत बनेगा।

साथियों,

हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। भारत एक विश्वबंधु के रूप में दुनिया के भले की सोच के साथ आगे चल रहा है। और दुनिया भी भारत की इस भावना को मान दे रही है। आज 21 दिसंबर, 2024 को दुनिया, अपना पहला World Meditation Day सेलीब्रेट कर रही है। ये भारत की हज़ारों वर्षों की Meditation परंपरा को ही समर्पित है। 2015 से दुनिया 21 जून को इंटरनेशन योगा डे मनाती आ रही है। ये भी भारत की योग परंपरा को समर्पित है। साल 2023 को दुनिया ने इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर के रूप में मनाया, ये भी भारत के प्रयासों और प्रस्ताव से ही संभव हो सका। आज भारत का योग, दुनिया के हर रीजन को जोड़ रहा है। आज भारत की ट्रेडिशनल मेडिसिन, हमारा आयुर्वेद, हमारे आयुष प्रोडक्ट, ग्लोबल वेलनेस को समृद्ध कर रहे हैं। आज हमारे सुपरफूड मिलेट्स, हमारे श्री अन्न, न्यूट्रिशन और हेल्दी लाइफस्टाइल का बड़ा आधार बन रहे हैं। आज नालंदा से लेकर IITs तक का, हमारा नॉलेज सिस्टम, ग्लोबल नॉलेज इकोसिस्टम को स्ट्रेंथ दे रहा है। आज भारत ग्लोबल कनेक्टिविटी की भी एक अहम कड़ी बन रहा है। पिछले साल भारत में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान, भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर की घोषणा हुई थी। ये कॉरिडोर, भविष्य की दुनिया को नई दिशा देने वाला है।

साथियों,

विकसित भारत की यात्रा, आप सभी के सहयोग, भारतीय डायस्पोरा की भागीदारी के बिना अधूरी है। मैं आप सभी को विकसित भारत के संकल्प से जुड़ने के लिए आमंत्रित करता हूं। नए साल का पहला महीना, 2025 का जनवरी, इस बार अनेक राष्ट्रीय उत्सवों का महीना होने वाला है। इसी साल 8 से 10 जनवरी तक, भुवनेश्वर में प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन होगा, दुनियाभर के लोग आएंगे। मैं आप सब को, इस कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करता हूं। इस यात्रा में, आप पुरी में महाप्रभु जगन्नाथ जी का आशीर्वाद ले सकते हैं। इसके बाद प्रयागराज में आप महाकुंभ में शामिल होने के लिए प्रयागराज पधारिये। ये 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलने वाला है, करीब डेढ़ महीना। 26 जनवरी को आप गणतंत्र दिवस देखकर ही वापस लौटिए। और हां, आप अपने कुवैती दोस्तों को भी भारत लाइए, उनको भारत घुमाइए, यहां पर कभी, एक समय था यहां पर कभी दिलीप कुमार साहेब ने पहले भारतीय रेस्तरां का उद्घाटन किया था। भारत का असली ज़ायका तो वहां जाकर ही पता चलेगा। इसलिए अपने कुवैती दोस्तों को इसके लिए ज़रूर तैयार करना है।

साथियों,

मैं जानता हूं कि आप सभी आज से शुरु हो रहे, अरेबियन गल्फ कप के लिए भी बहुत उत्सुक हैं। आप कुवैत की टीम को चीयर करने के लिए तत्पर हैं। मैं His Highness, The Amir का आभारी हूं, उन्होंने मुझे उद्घाटन समारोह में Guest Of Honour के रूप में Invite किया है। ये दिखाता है कि रॉयल फैमिली, कुवैत की सरकार, आप सभी का, भारत का कितना सम्मान करती है। भारत-कुवैत रिश्तों को आप सभी ऐसे ही सशक्त करते रहें, इसी कामना के साथ, फिर से आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद!

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय!

बहुत-बहुत धन्यवाद।