"Shri Narendra Modi Addressing the Global Indian Diaspora Through Video Conferencing"

 

प सब को नमस्कार..! थैंक्यू..! आप सब को शिवरात्री की भी बहुत-बहुत शुभकामनाएं..! भारत में आज शिवरात्री के पर्व का शुभ दिवस है और महाकुंभ का आज समापन दिवस भी है। कभी-कभी लगता है कि भारत में जिस प्रकार से इस महाकुंभ का आयोजन होता है, वह महाकुंभ अगर विश्व के किसी और देश में हुआ होता, तो ना जाने कितने विद्-विद पहलुओं पर, इसकी श्रद्धा के संबंध में, इसकी योजना के संबंध में, इतनी बड़ी भारी तादाद में मिलीयन्स ऑफ मिलीयन लोगों का इक्कठा होना... यानि प्रति दिवस ऐसा लगता था कि यूरोप का कोई छोटा देश गंगा के किनारे पर रोज इक्कठा होता है। ये सामान्य घटना नहीं है, सामान्य रूप से उसको देखा नहीं जा सकता। लेकिन पश्चिम के देशों को जिस प्रकार से चीजों को ब्रांडिंग और मार्केटिंग करने का कौशल है। ये इवेंट इतना सामर्थ्यवान होने के बाद भी हम दुनिया के सामने हमारे देश के लोगों की इस शक्ति का परिचय नहीं करवा सकते हैं। आज शिवरात्री है, भगवान शिवजी को पूरा हिन्दुस्तान याद करता है।

मारे देश में अनेक देवी-देवताओं की कल्पना है और उन सभी देवी-देवताओं की कल्पना के माध्यम से हम जीवन से कुछ सीखने की कोशिश करते हैं। आज सारा विश्व ग्लोबल वार्मिंग के कारण परेशान है। हर कोई चिंतित है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण आने वाले दिनों में हालत क्या होगी..! हर एक के मन में एक चिंता का विषय है। लेकिन कभी-कभी हमारे पूर्वजों ने भगवान की जो कल्पना की है, ईश्वर के रूप के प्रति उनके मन का जो भाव जगा है, उसमें एक बात विशेष रूप से ध्यान में आती है। हिन्दुस्तान के जितने भी भगवानों की कल्पनाएं हैं उन सबको प्रकृति के साथ जोड़ा गया है। हमारे कोई ईश्वर की कल्पना ऐसी नहीं है जिनके साथ कोई वृक्ष ना जुड़ा हुआ हो, किसी ना किसी पेड़ को हर ना हर ईश्वर के साथ जोड़ा गया है। इतना ही नहीं, हर एक ईश्वर को, परमात्मा के हर एक रूप को, किसी ना किसी पशु के साथ या पंखी के साथ जोड़ा गया है। और इन चीजों से एक मैसेज देने का प्रयास हुआ है कि परमात्मा के जिस रूप की आप पूजा करते हो, वे परामात्मा प्रकृति को कितना प्रेम करते हैं, वे प्रकृति के साथ कितने जुड़े हुए रहते थे..! अगर आप को भी प्रकृति को छोड़ कर के सिर्फ परमात्मा की पूजा करनी है, तो वो पूर्ण नहीं है। ये टोटल पैकेज डील होता है। अगर शिव जी की पूजा करें, तो बिल्व के वृक्ष की भी, बिल्वा पत्र की भी पूजा होती है। और आप देखिए, शिवजी के परिवार का कमाल..! शिव जी के परिवार की एक विशेषता देखिए..! गणेशजी, कार्तिकेय, शिवजी, पार्वती जी... हमारे यहाँ मान्यता है कि सांप चूहे को खा जाता है। सांप का आहार चूहा होता है। लेकिन शिवजी के परिवार में सांप और चूहा साथ-साथ रहते हैं। गणेश जी का वाहन चूहा है, तो शिव जी के गले में सांप रहता है..! आप कल्पना कर सकते हैं कि को-एग्ज़िस्टेंस के लिए इससे बड़ा मैसेज क्या हो सकता है..! प्रकृति के प्रति प्रेम, प्रकृति का महात्म्य..! और जो वहाँ बैठे हुए लोगों में पुरानी पीढी के लोग होंगे, जो आयुर्वेद को जानते होंगे, उन्हें मालूम होगा कि बिल्वी का एक फल होता है। बिल्वी पत्र से हम शिवजी की पूजा करते हैं। लेकिन आज भी कहते हैं कि शिवजी ने जहर पीया था और जहर पीने के बाद एक बहुत बड़ी संकट की घड़ी से गुजरते हुए वो बाहर निकले थे। लेकिन आज हमारा आयुर्वेद कहता है कि बिल्वी पत्र के साथ एक बिल्वी का फल भी होता है, और उस फल का ज्यूस पेट की हर बीमारी के उत्तम उपचार के रूप में आज भी काम आता है। यानि सहज रूप से ईश्वर के रूप की साधना और आराधना करते-करते किस प्रकार से हमारे यहाँ लोक शिक्षा का काम होता है, पीढ़ियों तक लोगों प्रशिक्षित करने की कैसी परंपरा रही है..! और हिन्दुस्तान के हर कोने में, दुनिया के हर कोने में जहाँ-जहाँ भारतीय बंधु हैं, आज शिवजी की आराधना करते हैं। मैं इस शिवरात्री के शुभ पर्व पर आपको भी बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूँ..!

भाईयो-बहनों, ये 21 वीं सदी है, ज्ञान और विज्ञान की सदी है और आपको लगता होगा कि एक राजनेता, एक राज्य का मुख्यमंत्री, ये सुबह-सुबह शिवजी की कथा सुनाने लग गया..! आपके मन में सवाल उठना बहुत स्वाभाविक है। लेकिन भाइयों और बहनों, सार्वजनिक जीवन में शिवजी से एक प्रेरणा तो जरूर मिलती है, और वो प्रेरणा है जहर पीने की और जहर पचाने की..! ईश्वर हमें शक्ति दे कि हम भी हर प्रकार की कटुता, बुराइयाँ, विकृतियाँ के रूप में जो जहर है, उस जहर को पचा कर के हमारे भीतर से अमृत की वर्षा की संभावना पैदा हो, हमारा मन-मस्तिष्क, हमारा मन-मंदिर अमृत से भरा हुआ हो, ताकि हमारा हर शब्द, हमारी वाणी, हमारा व्यवहार, हमारा आचरण पूरी सृष्टि को अमृत मय अनुभूति करवा सके। और हम हिन्दुस्तानी जिन परंपराओं से जुड़े हुए हैं, हम अगर चाहें, अगर सोचें, अगर तय करें तो आज भी हम लोगों में वो सामर्थ्य है कि हम वो कर सकते हैं। हमारे पूर्वजों का तो वो मंत्र रहा था ‘वयम् अमृतस्य पुत्रा:’..! हम अमृत के रूप हैं, अमृतम् - ये सोच के हम लोग हैं और इसलिए भाइयों-बहनों, जिनके पास ये सामर्थ्य होता है वे बहुत कुछ कर सकते हैं।

भाइयों-बहनों, आज फिर एक बार मुझे शिवरात्री के पावन पर्व पर आपको मिलने का सौभाग्य मिला है। अनेक बार आप लोगों के बीच आने का अवसर मिला है। भारतीय समाज के, गुजराती समाज के अनेकविध कार्यक्रमों में आना हुआ है। इस बार ‘अम्ब्रेला ऑर्गनाइज़ेशन’ के रूप में ‘ओवरसीज फ़्रैंड्स ऑफ बीजेपी’ के मित्रों ने इनिश्यिेटिव लिया। मैं यहाँ सब के नाम तो नहीं गिना रहा हूँ क्योंकि किसी का नाम छूट जाता है तो बुरा लगता है। लेकिन सबने मिल कर के लगातार भारत से जुड़े रहने का प्रयास किया है, लगातार भारत की गतिविधियों के साथ अपने आप को जोड़ने का निरंतर प्रयास किया है ये अपने आप में एक शुभ निशानी है। मित्रों, हम किसी भी देश में रहते हों, कोई भी काम करते हों, लेकिन हमारी धरती के साथ हमारा नाता रहे, हमारी संस्कृति के साथ हमारा नाता रहे, हमारी परंपराओं के साथ हमारा नाता रहे, हमारी भाषा के साथ हमारा नाता रहे, इसका अपना एक माहात्म्य होता है। आज भी आप मॉरिश्यिस चले जाएं, वेस्ट इंडिज चले जाएं, सवा-सौ डेढ-सौ साल पहले मजदूर के रूप में जो लोग गए थे, एक रामायण की चौपाई ने उनको आज भी हिन्दुस्तान के साथ जोड़ कर रखा है। मुझे विश्वास है कि विश्व में फैले हुए मेरे भाई-बहन जिनका भारत के प्रति अपार प्रेम है, अगर उनके पास भारत से कोई भी बुरी खबर आए तो रात भर विदेश में रहने वाले भाई-बहन बैचेन हो जाते हैं, उन्हें पीड़ा होती है, ये आपका जो भारत प्रेम है, आपकी जो भारत भक्ति है, ये निरंतर बनी रहे, निरंतर बढ़ती रहे और ये आपका जो भाव विश्व है वो जब भी मौका मिले, भारत के विकास के लिए काम आए, भारत की उन्नति के लिए काम आए, भारत के गरीब से गरीब लोगों की भलाई के लिए काम आए..!

मित्रों, मैं इन दिनों देख रहा हूँ कि मुझे साल में 12-15 डेलिगेशन ऐसे मिलते हैं जो विदेश से आते हैं और कोई ना कोई प्रकल्प लेकर के आते हैं। वो वैकेशन में कहीं टहलने के लिए जाने के बजाए हिन्दुस्तान में आकर के कहीं हैल्थ का कैंप, कहीं डायग्नोसिस का कैंप, कहीं शिक्षा की प्रवृति करते हैं। ये अपने आप में एक अच्छा प्रारंभ हुआ है। इतना ही नहीं, मैं इन दिनों देख रहा हूँ कि जो अमेरिका में पैदा हुए हमारे भारतीय मूल के बच्चे हैं, जिनका उनका जन्म विदेश में कहीं हुआ और जिन्होंने हिन्दुस्तान को देखा भी नहीं था, वे 18-20 साल की उम्र होते होते, आज भारत आते हैं और भारत के गांव-गरीब की सेवा में अपना समय लगाते हैं, हर एक नौजवान एक-एक साल रहते हैं..! ये जो ललक है हमारे देश के लिए कुछ करने की, मैं उसका सम्मान करता हूँ। ऐसे जितने भी नौजवान हिन्दुस्तान के किसी भी कौने में कुछ करने के लिए आते हैं, देश के लिए कुछ ना कुछ करने का प्रयास करते हैं, मानवता के लिए कुछ ना कुछ करने का प्रयास करते हैं, उन सब का भी बहुत मन से अभिनंदन करता हूँ।

भाइयों-बहनों, पूरे विश्व में गत दो-तीन दशक से एक चर्चा लगातार चल रही है। और चर्चा ये चली है कि 21 वीं सदी का नेतृत्व कौन करेगा..? भाइयों-बहनों, 19 वीं शताब्दी यूरोप की रही। जब विश्व में औद्योगिक क्रांति हुई, तब हम गुलाम थे। हमारे पास सारी क्षमताएं होने के बावजूद भी... हमारा ढाका का मलमल सारे विश्व में प्रसिद्ध था, हम औद्योगिक दुनिया में अपनी एक जगह बना चुके थे, लेकिन चूंकि हम एक गुलाम देश थे, अंग्रेज हम पर शासन करते थे, हमें उस औद्योगिक क्रांति का लाभ नहीं मिला। अगर हम उस समय स्वतंत्र होते तो मैं पूरी संभवना देखता हूँ कि उस औद्योगिक क्रांति में पूरे विश्व का नेतृत्व करने का सौभाग्य हमने पाया होता। आज इतिहास के झरोखे से जो भी चीजें प्राप्त होती हैं उससे साफ नजर आता है कि हमारे भीतर वो क्षमता थी, हमने वो उन चीजों को अचीव किया था, हम उसको कर सकते थे लेकिन देश गुलाम होने के कारण वो अवसर हमारे हाथ से निकल गया। भाइयो-बहनों, 20 वीं शताब्दी में अमेरिका ने भांति-भांति अपनी व्यवस्थाओं के द्वारा पूरे विश्व में अपना दबदबा बनाए रखा। चीन ने भी अपना सिर ऊंचा करने की कोशिश की। लेकिन 20 वीं शताब्दी में भी हम आजादी के आंदोलन की तीव्रता पर थे, महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश आजादी के आंदोलन में जुड़ा हुआ था, और उसके कारण 20 वीं सदी भी हमारे नसीब में नहीं आई। लेकिन 20 वीं शताब्दी के सेकन्ड हाफ में हम एक स्वतंत्र भारत के रूप में उभरे थे। सौ करोड का देश दुनिया का ध्यान आकर्षित करे वो होना स्वाभाविक था। विश्व हमारी ओर देख रहा था और 20 वीं शताब्दी का उतरार्ध आते आते पूरे विश्व के पंडितों ने मान लिया था कि 21 वीं सदी एशिया की सदी है। डिबेट ये होती थी कि चाइना लीड करेगा कि हिन्दुस्तान लीड करेगा..! भाइयों-बहनों, जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एन.डी.ए. की सरकार चल रही थी, 20 वीं शताब्दी के आखिरी दिन थे, एक बार देश में और पूरे विश्व में एक माहौल बन चुका था कि हाँ भाई, अब हिन्दुस्तान कुछ करेगा..! और विशेषकर के वाजपेयी जी ने सरकार बनाने के कुछ ही महीनों में जब न्यूक्लियर टैस्ट किया तो विश्व भर में भारत से प्रेम करने वाले लोगों में एक नया विश्वास पैदा हुआ था। उस एक घटना ने विश्व भर में फैले हुए हिन्दुस्तानी, जो बार-बार सिर नीचा करके जीने के लिए मजबूर होते थे, सीना तान कर के खड़े नहीं रह पाते थे, वाजपेयी जी के इस हिम्मत पूर्ण निर्णय के कारण पूरे विश्व में फैले हुए भारतीय समाज में एक नई चेतना का वातावरण बना था। और तब से लेकर के जो यात्रा का आरंभ हुआ था, ऐसा लग रहा था कि 21 वीं सदी का नेतृत्व भारत ही करेगा, हम काफी आगे निकल जाएंगे ये विश्वास पैदा हुआ था। लेकिन हमारा दुर्भाग्य रहा कि 21 वीं सदी के पहले दशक का पिछले छह-सात साल का समय उन घटनाओं की परंपराओं को सहता रहा है, जिसके कारण पूरे विश्व में हमें नीचा देखने की नौबत आई है। अभी एच. आर. शाह ट्रिपल-सी की बात कर रहे थे, वो मैं सुन रहा था।

भाइयों-बहनों, बहुत सी बातें हैं जिसके कारण एक चिंता का माहौल बना हुआ है। एक तरफ इस प्रकार की स्थिति और ऐसे माहौल में जब चारों तरफ अंधेरा हो, तो कहीं दूर-सुदूर भी एक दिया जलता है तो उस पर ध्यान जाना बड़ा स्वाभाविक है। ऐसे माहौल में गुजरात ने वो दिया जलाने का काम किया है। एक आशा का संचार पैदा करने का काम किया है। बहुत तेज गति से ऊपर उठा था हिन्दुस्तान, और 21 वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में ही इस प्रकार से उसकी हालत हो जाए तो किसी को भी चिंता हो जाना स्वाभाविक है। ऐसे समय में गुजरात के विकास यात्रा के चर्चे देश और दुनिया में पहुंचने लगी। विश्व के लोग गुजरात की तरफ देखने लगे। 21 वीं सदी के पहल दशक में पूरी अर्थ व्यवस्था पर दो-दो बार रिसेशन का बहुत बड़ा खतरा पैदा हुआ। अमेरिका जैसे देश भी रिसेशन के कारण हिल गए थे। आर्थिक संकट पूरे विश्व को दबोच रहा था। उस निराशा के माहौल में भी गुजरात ने आर्थिक विकास की कोशिशों को जारी रखा। उस संकट के काल में भी हमने वो स्थितियां अपनाने की कोशिश की, जिससे हम रुके नहीं। मित्रों, जब दुनिया में रिसेशन आया तो हमारे मन में एक विचार आया कि भले ही मंदी का माहौल क्यों ना हो, लेकिन जो व्यापारी है, उद्योगकार है वो अपने कारखाने बंद करना नहीं चाहता। वो कम्पीटिटिव वर्ल्ड के अंदर अपने प्रोडक्ट को सस्ते में तैयार करके खड़ा रहना चाहता है। और इसलिए, अगर मैन्यूफैक्चरिंग प्रोसेस को एफिशियेंट करना, सस्ते में तैयार करने के लिए अगर हम प्लेटफार्म क्रियेट करते हैं, तो दुनिया में मंदी का दौर होने के बाद भी लोग हमारी तरफ आएंगे। हमने इस व्यूह को अपनाया और उस व्यूह का परिणाम ये हुआ कि गुड गवर्नेस के कारण, एफीशियेंसी के कारण, पीसफुल लेबर के कारण, चीप लेबर के कारण, मैन्यूफेक्चरिंग सैक्टर को लगा कि अगर दुनिया में टिकना है और सस्ते में अपना माल तैयार करना है तो हिन्दुस्तान में एक अवसर है और गुजरात निमंत्रण दे रहा है। और उसका हमें फायदा मिला।

भाइयो-बहनों, आज पूरे विश्व को भी इस स्पर्धा से झूझना पड़ता है। भारत एक ऐसा देश है जिसके पास सर्वाधिक नौजवान हैं। अमेरिका में बैठे मेरे भाइयों-बहनों, आपको ये जान कर खुशी होगी और आनंद होगा कि आज हिन्दुस्तान दुनिया का सबसे नौजवान देश है। हमारी 65% जन संख्या 35 वर्ष से कम उम्र की है। आप कल्पना कर सकते हो कि इतना यौवन से भरा हुआ देश, जिसके नौजवानों के नौजवान सपने होते हैं, जिसमें साहस होता है, सामर्थ्य होता है..! यदि उस शक्ति पर हम कान्सन्ट्रेट करें तो हम कितनी स्थितियों को बदल सकते हैं। भाइयो-बहनों, गुजरात ने युवाओं पर बल देने की दिशा में प्रयास किया है। ये वर्ष स्वामी विवेकानंद जी की 150 वीं जयंति मनाने का अवसर है। ये मेरा सौभाग्य रहा कि शिकागो में विश्व धर्म परिषद में स्वामी विवेकानंद जी के भाषण की जब शताब्दी मनाई जा रही थी, तब मैं अमेरिका में आपके बीच आ करके उस कार्यक्रम में मैं शरीक हुआ था। मेरा सौभाग्य रहा कि शिकागो के उस सभाखंड में जा कर के स्वामी जी को श्रद्धांजलि दे सका था। भाइयों-बहनो, 39 साल की छोटी आयु में स्वामी जी ने विदाई ले ली। लेकिन पूरे विश्व में जहाँ भी भारतीय समाज रहता है, आज भी युवा पीढ़ी स्वामी विवेकानंद जी से प्रेरणा लेती है। उन्होंने आध्यात्म को भारत भक्ति से जोड़ दिया था। उन्होंने भारत भक्ति को ही आध्यात्म की ऊचांई का रास्ता दिखा दिया था। और भाइयो-बहनों, एक गुजराती के नाते मुझे एक और भी गर्व होता है। शायद अमेरीका में रहने वाले बहुत से लोगों के लिए ये जानकारी शायद नई भी हो सकती है। स्वामी विवेकानंद जी जिस धर्म परिषद में आए थे, उस धर्म परिषद में हमारे गुजरात के भी एक नौजवान आए थे। वीरचंद गांधी, भावनगर जिले के रहने वाले थे। बड़े विद्वान थे। और जब वो अमेरिका आए थे तब विश्व धर्म परिषद में उनका भाषण हुआ था। 29 वर्ष की उनकी आयु थी। और अमेरिका में उन्होंने कई वर्षों तक रह कर अमेरिका के सभी बड़े शहरों में भारतीय संस्कृति की बात कही थी। वे विवेकानंद जी से बड़े निकट थे। उनकी पढाई गांधी जी के साथ हुई थी। और आज भी शिकागो में वीरचंद गांधी की प्रतिमा है, बहुत कम लोगों को मालूम होगा। और ये दुर्देव देखिए कि विवेकानंद 39 साल की आयु में हमें छोड़ कर चले गए और वीरचंद गांधी भी 37 साल की उम्र में हमें छोड़ कर चले गए। और हमारे गुजरात में तो एक किताब भी प्रसिद्घ हुई है, ‘गांधी बिफोर गांधी’। मोहनलाल करमचंद गांधी से पहले वीरचंद गांधी ने स्वामी विवेकानंद के साथ जा कर के अमेरिका में किस प्रकार से भारतीय संस्कृति का ध्वज लहराया था..! भाइयो-बहनों, ये इतिहास के पन्ने हैं जिसको पता नहीं क्यों अंधेरे में डाला हुआ है। इन सभी चीजों को उजागर करने से एक गौरव मिलता है, एक प्रेरणा मिलती है, एक आंनद मिलता है, एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है।

भाइयो-बहनों, स्वामी विवेकानंद हमेशा कहते थे कि देश के नौजवान ही देश का भाग्य बदलेंगे। आज वक्त आया है। दुनिया का सबसे युवा देश यदि हिन्दुस्तान है तो युवा शक्ति के बल पर विश्व की भलाई के लिए अपनी शक्ति और सामर्थ्य को एक जुट कर के आगे बढ़ने की नौबत आई है। और मित्रों, भारत का आगे बढ़ना ये विश्व कल्याण का काम है। आज शिवरात्री है और शिव का दूसरा अर्थ भी कल्याण होता है। ‘तनमे मन: शिव संकल्पमस्तु’, ये हम कहते हैं। अच्छे संकल्पों का एक समय होता है। कल्याणकारी संकल्प का एक अर्थ होता है। मानव जात के कल्याण के लिए संकल्प बद्ध हमारे समाज और हमारी युवा पीढ़ी को लेकर के स्वामी विवेकानंद जी की 150 वीं जयंती मनाते हुए एक नई ऊर्जा के साथ देश को कैसे आगे बढ़ा सकते हैं। हमने गुजरात में स्वामी विवेकानंद जी की 150 वीं जयंती को युवा वर्ष के रूप में मनाना तय किया है। और युवा वर्ष भी ‘इन जनरल’ टर्म नहीं। कहने को युवा, इस प्रकार से नहीं। हमने एक स्पेशल फोकस रखा है और हमारा स्पेशल फोकस है, स्किल डेवलपमेंट। लगातार गुजरात के अंदर हमने स्किल डेवलपमेंट पर बहुत बड़ा जोर दिया है। हमारे देश के नौजवान को ईश्वर ने जो भुजाएं दी है उन भुजाओं में अगर स्किल डेवलपमेंट के ज़रिए अगर हम हुनर भर देते हैं, कौशल्य देते हैं, कुछ करने के लिए वैल्यू एडिशन करते हैं तो हमारा नौजवान बहुत बड़ी शक्ति के रूप में उभर सकता है और हिन्दुस्तान की शक्ति की धरोहर बन सकता है।

मैं यहाँ इस मंच का उपयोग किसी सरकार की आलोचना करने के लिए नहीं करना चाहता हूँ। लेकिन सत्य आप लोगों के सामने रखना जरूर चाहता हूँ। इन दिनों भारत सरकार का बजट आया और गुजरात सरकार का भी बजट आया। मैं समझता हूँ कि स्वस्थ मन से इसका तुलनात्मक अध्ययन हमें एक सही दिशा देगा। भाइयों-बहनों, आपको जानकर के हैरानी होगी कि इतना बड़ा हिन्दुस्तान, जिस हिन्दुस्तान के 65% नौजवान 35 साल से कम उम्र के हैं और पूरा विश्व इन दिनों जब स्किल डेवलपमेंट की बात कर रहा है। कुछ दिन पहले प्रेज़िडेंट ओबामा ने जब अपना नया कार्यकाल संभाला और उन्होंने अपने विज़न के रूप में जो अपना पहला भाषण दिया, उसके संबंध में मैंने इंटरनेट पर पढ़ा और देखा तो उसमें भी एक बात उन्होंने बड़े जोरों से कही थी। अमेरिका में स्किल डेवलपमेंट के माहात्म्य को उन्होंने बड़ी गंभीरता से पेश किया था। हम पिछले दो साल से लगातार स्किल डेवलपमेंट का अभियान चला रहे हैं। मैं कहना ये चाहता था कि भारत सरकार का बजट और गुजरात सरकार का बजट... मित्रों, जब कि 21 वीं सदी में सबसे नौजवान देश के रूप में स्किल डेवलपमेंट हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, इतने बड़े हिन्दुस्तान का नेतृत्व कर रही हमारी भारत सरकार का जो बजट है उसमें एक हजार करोड रुपया स्किल डेवलपमेंट के लिए अलॉट किया गया है। गुजरात एक छोटा सा राज्य है, हिन्दुस्तान की तुलना में हम सिर्फ पांच प्रतिशत हैं और एक कोने में हैं। लेकिन भाइयों-बहनों, हमारा कमिटमेंट देखिए..! दिल्ली की भारत सरकार का स्किल डेवलपमेंट बजट 1000 करोड है, गुजरात जैसे छोटे राज्य का स्किल डेवलपमेंट का बजट 800 करोड़ रुपया है। इससे आपको अंदाज आएगा कि हमारा कमिटमेंट क्या है, देश के नौजवानों को किस प्रकार से हम भारत के विकास की यात्रा के अंदर जोड़ना चाहते हैं और हमने उस पर बल दिया है।

भाइयों-बहनों, लोग सेक्यूलरिज्म की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। एक हिन्दुस्तानी होने के नाते सेक्यूलरिज्म की मेरी बहुत सिम्पल डेफिनिशन है| मैं मानता हूँ मित्रों, एक हिन्दुस्तानी के नाते, हिन्दुस्तान को प्रेम करने वाले एक नागरिक के नाते आप भी मेरी इस डेफिनिशन से सहमत होंगे। मेरी सेक्यूलरिज्म की डेफिनिशन बहुत सिम्पल हैं, इंडिया फर्स्ट..! हम कोई भी निर्णय करें, कोई भी काम करें, तो उसमें भारत सर्वोपरि होना चाहिए, भारत की भलाई से कम कुछ भी नहीं होना चाहिए, अगर ये रहा तो सारा सेक्यूलरिज्म अपने आप हमारी रगो में दौड़ने लग जाएगा। हम भारत का नुकसान कत्तई नहीं होने देंगे। ना भारत की इज्जत का, ना भारत की प्रतिष्ठा का, ना भारत के सपनों का, ना भारत के नौजवानों के भविष्य का..! इंडिया फर्स्ट, इस मिजाज के साथ हिन्दुस्तान के सवा सौ करोड़ नागरिक एक ही मंत्र को लेकर के चलें, तो देखते ही देखते दुनिया के अंदर हमारा डंका बजने लगेगा। और मैं ये बात इसलिए भी कहता हूँ कि मेरी स्वामी विवेकानंद जी के प्रति एक विशेष श्रद्धा रही है, बचपन से मेरे मन पर एक प्रभाव रहा है। और हमने देखा है कि विवेकानंद जी ने अपने काल खंड में जो-जो कहा था वो सही निकला था। जीवन के अंत काल में उन्होंने कहा था कि मैं देश वासियों को कहता हूँ कि अपने सभी देवी-देवताओं को भूल जाओ..! मित्रों, ये छोटी बात नहीं है। एक सन्यासी के मुंह से ये सुनना कि तुम अपने देवी-देवताओं को भूल जाओ..! और ये कहा था कि सारे देवी-देवताओं को भूल जाओ, एक मात्र भारत माता को अपनी देवी के रूप में प्रस्थापित करो और पचास साल तक सारे अपने संप्रदाय, अपने देवी-देवताओं को छोड़ कर के एक मात्र भारत माता की पूजा करो। और आप देखिए, विवेकानंद जी ने कहा था उसके ठीक पचास साल के बाद 1947 में भारत आजाद हुआ था, ठीक पचास साल के बाद..! इस महापुरुष में एक दृष्टि थी। उन्होंने और एक बात कही थी। स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका जाने के उस काल खंड में कहा था कि मैं अपनी आंखों के सामने देख रहा हूँ कि मेरी भारत माता जगदगुरू के स्थान पर विराजमान होगी, मेरी भारत माता दैदिप्यमान होगी और मेरा देश विश्वगुरु के रूप में काम करेगा..! भाइयों-बहनों, विवेकानंद जी के कहने के बाद सवा सौ साल बीत गए। आज जब हम उनकी 150 वीं जंयति मना रहे हैं तब क्या एक हिन्दुस्तानी के नाते हम संकल्प कर सकते हैं, मानव कल्याण के मंत्र को लेकर के चलने वाले हम सभी लोग संकल्प कर सकते हैं कि मानव कल्याण के लिए, विश्व कल्याण के लिए 125 साल पहले स्वामी विवेकानंद जी ने जो सपना देखा था कि मैं भारत माता को जगत गुरू के स्थान पर विराजमान देखना चाहता हूँ, क्या हम अब भी वो संकल्प कर सकते हैं कि हमारे से बनता हर प्रयास करेंगे और विवेकानंद जी के सपने को पूरा करने के लिए हम कुछ ना कुछ करेंगे..! 125 साल भले बीत गए, लेकिन क्या हम इस 150 वीं जयंति के निमित्त वो संकल्प करके आगे बढ़ सकते हैं..?

भाइयों-बहनों, हम दुनिया बदल सकते हैं। एक आत्म विश्वास चाहिए, और हम गुजराती तो इसी के भरोसे चलते हैं, वी कैन एंड वी विल। हम कर सकते हैं और हम करके रहेंगे, इस मंत्र को लेकर के चलना पड़ता है। क्या नहीं है हमारे देश के पास..? विश्व के पास जो कुछ भी है वो सब कुछ हमारे पास भी है। सही समय पर, सही जगह पर, सही दिशा में चीजों को सिर्फ दौड़ाना है और देखते ही देखते परिवर्तन आता है। भाइयों-बहनों, मेरे 12-13 साल के गुजरात एक्सपीरियंस से मैं कहता हूँ कि विकास का मंत्र हमारी सब समस्याओं का समाधान दे सकता है। पहले माना जाता था कि विकास को लेकर के चुनाव नही जीता जा सकता है। मित्रों, गुजरात की जनता ने इस दीर्घदृष्ट्रा का दर्शन करवाया है। समाज कैसा विजनरी होता है ये गुजरात के मतदाताओं ने दिखाया है। और गुजरात के मतदाताओं ने विकास को वोट देने का संकल्प प्रकट किया। मित्रों, आज गुजरात विक्टरी के लिए आपने मेरा अभिनदंन करने के लिए वीडियो कान्फ्रेंसिंग पर मुझे निमंत्रित किया है। भाइयों-बहनों, ये विक्टरी नरेन्द्र मोदी की नहीं है। ये चुनाव विजय, निरन्तर चुनाव विजय, लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री बनना, तीन बार हैट्रिक करना... ये अपने आप में कोई नरेन्द्र मोदी का करिश्मा नहीं है। भाइयो-बहनों, अगर ये विजय है तो ये मेरे गुजरात के नागरिकों का विजय है, गुजरात के मेरे मतदाताओं का विजय है। जिन्होंने विकास पर विश्वास किया, जिन्होने विकास के महात्म को समझा और जिन्होंने पिछले दस-बारह साल के अंदर अनुभव किया कि देर कहीं होती होगी, कुछ कमी रहती होगी, कुछ कठिनाइयाँ रहती होगी लेकिन उसके बावजूद भी विकास का ही रास्ता है जो आज नहीं तो कल हमारी समस्याओं का समाधान करेगा, हमें कठिनाइयों से मुक्त करेगा, हमारे सपनों को साकार करने के लिए यही एक रास्ता काम आएगा, ये गुजरात के मतदाताओं ने स्वीकार किया है। और गुजरात के मतदाताओं ने पूरे देश के अंदर एक विश्वास पैदा करने का एक मैसेज दिया है कि बाकी सब छोड़ कर के एक मंत्र को पकड़ लो, डेवलपमेंट..! गुजरात को विकास भी करना है, गुजरात को आधुनिक भी बनना है। गुजरात को संस्कार की भी चिंता करनी है, गुजरात को संस्कृति की भी चिंता करनी है। और इन सबकी चिंता करते हुए आगे बढ़ने वाले मॉडल को हम प्रस्थापित करना चाहते हैं।

भाइयों-बहनों, कभी गुजरात ने ऐसा नहीं कहा है कि हमारे यहाँ कोई मुसीबत ही नहीं है, हमारे यहाँ कोई कमियाँ नहीं है। लेकिन हमने ये विश्वास पैदा किया है कि हम कमियों को दूर करने के लिए पूरा प्रयास करेंगे। और भाइयों-बहनों, मुझे एक बात की खुशी है, इन दिनों गुजरात की चर्चा क्या होती है..? नरेन्द्र मोदी की चर्चा क्या होती है..? गुजरात सरकार की चर्चा क्या होती थी..? मित्रों, हिन्दुस्तान के अंदर किसी सरकार के करप्शन की चर्चा होती है, किसी सरकार के कोई ना कोई भले-बुरे आचरण की चर्चा होती है, लेकिन गुजरात की चर्चा होती है तो क्या होती है..? कि भाई, गुजरात के अंदर चौबीस घंटे बिजली है लेकिन थोड़ी मंहगी है, कोई कहता है सस्ती है, कोई कहता है अच्छी है..! पानी है तो कोई कहता है कि पहले तो पानी नहीं पहुंचता था लेकिन अभी तो पहुंच रहा है, अभी इतना बाकी है। कोई मालन्यूट्रीशन की चर्चा करता है..! कहने का तात्पर्य ये है कि जब भी गुजरात की चर्चा होती है तो विथ रेफरन्स टू डेवलपमेंट होती है और उसमें हमारी कमियाँ भी उजागर होती है और मैं इसका स्वागत करता हूँ। क्योंकि कोई ये तो दावा नहीं कर सकता कि इतने सालों की सब बुराइयों को कोई एक आदमी ने एक दशक में ही पूरा कर दिया होगा। लेकिन लोग इतना विश्वास करते हैं कि यही रास्ता है जिससे अंधेरा छटने वाला है। और मित्रों, मैं कहता हूँ, ‘ऐश: पंथा:’..! यही रास्ता है और वो रास्ता है, डेवलपमेंट..!

मित्रों, राजनेता कभी-कभी डरते हैं। हमारे देश में पॉपूलरली कहा जाता है कि ‘गुड इकॉनॉमिक्स इज अ बैड पॉलिटिक्स’, ये बातें मानी गई हैं। डेवलपमेंट से चुनाव नहीं जीते जाते, चुनाव तो जोड़-तोड़ से जीते जाते हैं..! भाइयों-बहनों, चुनाव जीतें या हारें, ये मकसद नहीं होना चाहिए। मकसद ये होना चाहिए कि अगर आपको पाँच साल के लिए जनता ने काम दिया है, तो उन पाँच साल में आप जनता के काम को प्राथमिकता दीजिए, पूरा कीजिए। चुनाव तो बाय प्रोडक्ट होता है। अगर आप अच्छा काम करोगे, निरंतर अच्छा करोगे, बिना स्वार्थ के करोगे तो लोग आपकी गलतियाँ भी माफ कर देते हैं। मतदाता ज्यादा उदार होता है। ऐसा नहीं है कि हमारी सरकार ने कोई गलतियाँ नहीं की होगी। ऐसा नहीं है कि कहीं किसी इलाके में हमारे लिए शिकायत नहीं होगी। लेकिन हमने एक विश्वास पैदा किया है कि गलतियाँ होते हुए भी, कमियाँ रहते हुए भी, अच्छा करने की हमारी निष्ठा पर किसी को शक नहीं हुआ है। अच्छा करने के हमारे प्रयासों में किसी ने कभी हमें कोताही बरतते देखा नहीं है। भाइयों-बहनों, मनुष्य का स्वभाव होता है, एक जगह पर दो-चार साल रहने के बाद उसे एक आदत हो जाती है, एक रुटीन लाइफ बन जाती है। मित्रों, मुझे बारह साल हो चुके हैं लेकिन मैं जिस ऊर्जा से, जिस भक्ति से, जिस तन्मयता से 2001 में इस काम को करता था, इतने सारे विजयों की परंपरा के बाद भी उसी लगन, निष्ठा और तपस्या के साथ आप सब की सेवा में लगा हूँ। भाइयों-बहनों, कोई चंद्रक पाने के लिए नहीं कर रहा हूँ, कोई मान-सम्मान पाने के लिए नहीं कर रहा हूँ। मैं इसलिए कर रहा हूँ कि मैं मेरे गुजरात के गरीबों की गरीबी देख नहीं पाता। अगर किसी गाँव में पानी नहीं पहुंचा है तो मैं बेचैन हो जाता हूँ। किसी बेटी शिक्षा के अभाव में झूझती हो तो मैं उसे झेल नहीं पाता। छह करोड़ गुजरातियों को मैंने अपना परिवार माना है। उनका सुख मेरा सुख है, उनका दु:ख मेरा दु:ख है। और ये जीवन उनके कल्याण के लिए काम आ जाए, उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए ये जो अवसर मिला है उसका उपयोग हो, इससे बड़ा जीवन का सपना क्या हो सकता है..! और अगर एक बार मेरे कार्यकाल में मैं कुछ अच्छा करूंगा, मेरे बाद किसी और का कार्यकाल होगा तो वो कुछ अच्छा करेगा, और अगर हमारी गति तेज होगी तो मित्रों, बहुत जल्द ही हम स्वामी विवेकानंद जी के सपनों को पूरा करने योग्य बन जायेंगे, और कम से कम मेरे गुजरात का हिस्सा तो मैं बना ही लूंगा..! मेरा गुजरात इस ताकत के साथ खड़ा होगा ये मेरा विश्वास है। भाइयों-बहनों, हमें एक नया संकल्प लेकर के आगे बढ़ना है, हमें एक नया विश्वास लेकर के आगे बढ़ना है।

विश्व भर में फैले मेरे भाइयो-बहनों, अब आपको भी गुजरात के प्रति आकर्षण होता होगा। वहाँ गुजरात के बाहर के भी बहुत लोग बैठे हैं। आपने देखा होगा कि गुजरात ने एक क्षेत्र में इन दिनों में अपनी जगह बनाई है। टूरिज्म के मैप पर गुजरात का कभी नामोनिशान नहीं था। द्वादश ज्योर्तिलिंग, दादा सोमनाथ हमारे यहाँ बैठे हुए हों। द्वारका, श्री कृष्ण की नगरी हमारे पास हो। महात्मा गांधी का पोरबंदर हमारे पास हो, साबरमती आश्रम हमारे पास हो। गिर के सिंह हो, कच्छ का सफेद रण हो, 1600 किलोमीटर लंबा समुद्री किनारा हो.. क्या नहीं है? सब कुछ है..! आज भी है और पहले भी था..! लेकिन भाइयो-बहनों, हमने उस तरफ ध्यान नहीं दिया था। गुजरातीज़ आर बेस्ट टूरिस्ट्स, बट गुजरात वाज नेवर अ टूरिस्ट डेस्टिनेशन..! और आप देखिए, दुनिया के किसी भी कोने में जाइए आप, आपको गुजराती लोग मिलेंगे, मिलेंगे और मिलेंगे..! किसी भी तीर्थ क्षेत्र में जाइए, कोई भी टूरिस्ट प्लेस पर जाइए, आपको गुजराती वहाँ मिलेगा ही मिलेगा..! और आप फाइव स्टार होटल में ठहरे होंगे तो आप देखना कि अपने डिब्बे में से थेपला निकाल कर के खाता हुआ गुजराती आपको फाइव स्टार होटल में दिखाई देगा..! वो अपने घर से सूखड़ी और थेपला लेकर आता है। भाइयों-बहनों, हम गुजराती बहुत अच्छे टूरिस्ट हैं, लेकिन गुजरात वाज नेवर अ टूरिस्ट डेस्टिनेशन। पिछले तीन-चार साल से हमने लगातार कोशिश की, और उसका नतीजा क्या है..? आज हर घर में एक बात होती है, ‘कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में..!’, ‘कच्छ नहीं देखा तो कुछ नही देखा..!’, हर कोई बोलने लगा है। मित्रों, टूरिज्म का जो बढ़ावा हुआ है उसके कारण गुजरात में हॉस्पिटालिटी इन्डस्ट्री का बढ़ावा हुआ है। बहुत तेजी से गुजरात का अपना एक आकर्षण बनता जा रहा है। मैं आपको निमंत्रण देता हूँ, आप भी गुजरात को देखने के लिए आइए। फील गुजरात, एंजोय गुजरात..! आपको मैं निमंत्रण देता हूँ। और मैं विश्व में फैले हुए मेरे भारतीय भाइयों को हमेशा विनंती करता हूँ कि हम लोग व्रत मनाएं कि साल में कम से कम दस-पद्रंह नॉन इंडियन फैमिलीज़ को हिन्दुस्तान देखने के लिए प्रेरित करें। उनको भारत देखने के लिए भेजें, समझाएं, आग्रह करें। ताजमहल देखना हो तो ताजमहल देखें, जहाँ जाना है जाए... लेकिन उनको भेजें। मित्रों, सिर्फ विश्व में फैले मेरे हिन्दुस्तान के मित्रों के माध्यम से अगर एक साल में हमारा एक परिवार दस परिवारों को यहाँ भेजता है तो आज हिन्दुस्तान जो टूरिज्म के क्षेत्र में है उससे सौ गुना आगे बढ़ सकता है। आप मुझे कहिए, देश की इतनी बड़ी सेवा होगी की नहीं होगी..? आप कोई डॉलर यहाँ लगाएं तभी देश की सेवा होती है ऐसा नहीं है। आप भारत के प्रति लोगों को आकर्षित करें, भारत देखने के लिए भेजें..! और मित्रों, एक बार टूरिस्ट आने लगेगा तो व्यवस्थाएं भी विकसित होने लगेगी। क्योंकि जो व्यापारी होता है वो ग्राहक की आवश्यकता को समझता है, वो धीरे-धीरे अपना कल्चर और व्यवस्थाओं को विकसित करता है। और देखते ही देखते पूरे विश्व के लिए एक सुप्रीम टूरिस्ट डेस्टिनेशन के रूप में हिन्दुस्तान उभर सकता है। गरीब से गरीब को रोज़ी-रोटी देने का सामर्थ्य उसमें है। मैं आपसे आग्रह करता हूँ, हमारे होटल-मोटल एसोसिएशन के लोग अगर चाहें तो उनके हर क्लाइंट को रोज-रोज अपने रूम के विडियो पर हिन्दुस्तान का नजारा दिखा सकते हैं..! लोग आएंगे, टूरिज्म बढ़ेगा और इन दिनों बढ़ रहा है। बहुत बड़ी मात्रा में विदेश से लोग टूरिस्ट के रूप में हिन्दुस्तान आ रहे है, गुजरात भी आ रहे हैं। मित्रों, गरीब से गरीब लोगों को रोजी-रोटी देने की ताकत इस क्षेत्र में है, इसको बढ़ावा देने का हमारा प्रयास है। भारत का एवरेज जो टूरिज्म ग्रोथ है, उससे गुजरात का टूरिज्म ग्रोथ अनेक गुना ज्यादा होने लगा है। लेकिन उसको हमें और आगे बढ़ाना है। मैं आपको निमत्रंण देता हूँ कि आप इसमें सहयोग दीजिए।

मैं फिर एक बार शिकागो में बैठे हुए मेरे भाइयो-बहनों, न्यू जर्सी में बैठे हुए मेरे भाइयों-बहनों, अमरिका के भिन्न-भिन्न भागों में टी.वी. के माध्यम से इस लाइव कार्यक्रम को देख रहे मेरे भाइयो-बहनों, कनाडा में भी अनेक हिस्सों में देख रहे हैं और भाइयो-बहनों, भारत में भी मैं अभी जब आपके सामने बोल रहा हूँ, हिन्दुस्तान की बीस लीडिंग टीवी चैनल्स आपके इस कार्यक्रम को लाइव टेलिकास्ट कर रही है। पूरा हिन्दुस्तान भी इस कार्यक्रम को देख रहा है और इस अर्थ में ‘ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी’ का ये प्रयास अभिनंदनीय है, सराहनीय है। सभी समाज के लोग जुड़ें, अपने दायरे से ऊपर उठ कर के सबको जोड़ें, अधिकतम, जितने भी समाज हमारे विश्व में फैले हुए हैं, सबको जोड़ें। ‘भारत एकता’ का एक माहौल हम बनाएं और ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का सपना ले कर के हम कैसे आगे बढ़ें..! विश्व में फैले हुए हम सभी भारतीय ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’, इस मंत्र को लेकर के आगे बढ़ें और स्वामी विवेकानंद जी को सच्ची श्रद्धांजलि दें, इसी एक अपेक्षा के साथ, आप लोगों ने मेरा सम्मान किया, ये सम्मान गुजरात की जनता का है, ये विजय गुजरात की जनता का है, ये विजय विकास के प्रयासों का है, ये विजय विकास के मंत्र का है और आपके कारण इस काम को करने की और नई ताकत मिलेगी और नया हौसला बुलंद होगा। फिर एक बार मित्रों, मैं आप सबका बहुत-बहुत आभारी हूँ, ओवरसिज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी का, सभी आर्ग्रेनाइजर्स का, समाज के सभी लोगों का जो भी योगदान मिला है उन सबका मैं आभार व्यक्त करते हुए आपको निमंत्रण देता हूँ कि गुजरात आपका है, जब मन मर्जी पड़े आइए, अपना भाग्य अजमाइए, गुजरात का मजा लिजीए, गुजरात का टूरिज्म देखिए, हमारे शेर देखिए, दुनिया में जाकर के गुजरात के लायन का परिचय करवाइए, इसी अपेक्षा के साथ आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद..!

वंदे मातरम्..!

भारत माता की जय..!

य हिन्द..!

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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 'मन की बात', यानि देश के सामूहिक प्रयासों की बात, देश की उपलब्धियों की बात, जन-जन के सामर्थ्य की बात, ‘मन की बात' यानि देश के युवा सपनों, देश के नागरिकों की आकांक्षाओं की बात | मैं पूरे महीने, 'मन की बात' का इंतजार करता रहता हूँ, ताकि, आपसे सीधा संवाद कर सकूँ । कितने ही सारे संदेश, कितने ही messages ! मेरा पूरा प्रयास रहता है कि ज्यादा- से-ज्यादा संदेश को पढूँ, आपके सुझावों पर मंथन करूँ ।

साथियो, आज बड़ा ही खास दिन है - आज NCC दिवस है | NCC का नाम सामने आते ही हमें स्कूल-कॉलेज के दिन याद आ जाते हैं | मैं स्वयं भी NCC Cadet रहा हूँ, इसलिए, पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इससे मिला अनुभव मेरे लिए अनमोल है | 'NCC' युवाओं में अनुशासन, नेतृत्व और सेवा की भावना पैदा करती है । आपने अपने आस-पास देखा होगा, जब भी कहीं कोई आपदा होती है, चाहे बाढ़ की स्थिति हो, कहीं भूकंप आया हो, कोई हादसा हुआ हो, वहाँ, मदद करने के लिए NCC के cadets जरूर मौजूद हो जाते हैं । आज देश में NCC को मजबूत करने के लिए लगातार काम हो रहा है । 2014 में करीब 14 लाख युवा NCC से जुड़े थे | अब 2024 में, 20 लाख से ज्यादा युवा NCC से जुड़े हैं | पहले के मुकाबले पाँच हजार और नए स्कूल-कॉलेजों में अब NCC की सुविधा हो गई है, और सबसे बड़ी बात, पहले NCC में girls cadets की संख्या करीब 25% (percent) के आस-पास ही होती थी | अब NCC में girls cadets की संख्या करीब-करीब 40% (percent) हो गई है | बॉर्डर किनारे रहने वाले युवाओं को ज्यादा से ज्यादा NCC से जोड़ने का अभियान भी लगातार जारी है । मैं युवाओं से आग्रह करूंगा कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में NCC से जुड़ें | आप देखिएगा आप किसी भी career में जाएं, NCC से आपके व्यक्तित्व निर्माण में बड़ी मदद मिलेगी |

साथियो, विकसित भारत के निर्माण में युवाओं का रोल बहुत बड़ा है | युवा मन जब एकजुट होकर देश की आगे की यात्रा के लिए मंथन करते हैं, चिंतन करते हैं, तो निश्चित रूप से इसके ठोस रास्ते निकलते हैं । आप जानते हैं 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर देश 'युवा दिवस' मनाता है । अगले साल स्वामी विवेकानंद जी की 162वीं जयंती है | इस बार इसे बहुत खास तरीके से मनाया जाएगा | इस अवसर पर 11-12 जनवरी को दिल्ली के भारत मंडपम में युवा विचारों का महाकुंभ होने जा रहा है, और इस पहल का नाम है 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue’ | भारत-भर से करोड़ों युवा इसमें भाग लेंगे | गाँव, block, जिले, राज्य और वहाँ से निकलकर चुने हुए ऐसे दो हजार युवा भारत मंडपम में 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue' के लिए जुटेंगे | आपको याद होगा, मैंने लाल किले की प्राचीर से ऐसे युवाओं से राजनीति में आने का आहवान किया है, जिनके परिवार का कोई भी व्यक्ति और पूरे परिवार का political background नहीं है, ऐसे एक लाख युवाओं को, नए युवाओं को, राजनीति से जोड़ने के लिए देश में कई तरह के विशेष अभियान चलेंगे | ‘विकसित भारत Young Leaders Dialogue' भी ऐसा ही एक प्रयास है । इसमें देश और विदेश से experts आएंगे | अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हस्तियाँ भी रहेंगी | मैं भी इसमें ज्यादा-से-ज्यादा समय उपस्थित रहूँगा | युवाओं को सीधे हमारे सामने अपने ideas को रखने का अवसर मिलेगा | देश इन ideas को कैसे आगे लेकर जा सकता है? कैसे एक ठोस roadmap बन सकता है? इसका एक blueprint तैयार किया जाएगा, तो आप भी तैयार हो जाइए, जो भारत के भविष्य का निर्माण करने वाले हैं, जो देश की भावी पीढ़ी हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ा मौका आ रहा है | आइए, मिलकर देश बनाएं, देश को विकसित बनाएं ।

मेरे प्यारे देशवासियों, ‘मन की बात’ में, हम अक्सर ऐसे युवाओं की चर्चा करते हैं | जो निस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम कर रहे हैं ऐसे कितने ही युवा हैं जो लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे हैं | हम अपने आस-पास देखें तो कितने ही लोग दिख जाते है, जिन्हें, किसी ना किसी तरह की मदद चाहिए,कोई जानकारी चाहिए I मुझे ये जानकर अच्छा लगा कुछ युवाओं ने समूह बनाकर इस तरह की बात को भी address किया है जैसे लखनऊ के रहने वाले वीरेंद्र हैं, वो बुजुर्गों को Digital life certificate के काम में मदद करते हैं I आप जानते हैं कि नियमों के मुताबिक सभी Pensioners को साल में एक बार Life Certificate जमा कराना होता है I 2014 तक इसकी प्रक्रिया यह थी इसे बैंकों में जाकर बुजुर्ग को खुद जमा करना पड़ता था आप कल्पना कर सकते हैं कि इससे हमारे बुजुर्गों को कितनी असुविधा होती थी I अब ये व्यवस्था बदल चुकी है I अब Digital Life Certificate देने से चीजें बहुत ही सरल हो गई हैं, बुजुर्गों को बैंक नहीं जाना पड़ता I बुजुर्गों को Technology की वजह से कोई दिक्कत ना आए, इसमें, वीरेंद्र जैसे युवाओं की बड़ी भूमिका है I वो, अपने क्षेत्र के बुजुर्गों को इसके बारे में जागरूक करते रहते हैं I इतना ही नहीं वो बुजुर्गों को tech savvy भी बना रहे हैं ऐसे ही प्रयासों से आज Digital Life certificate पाने वालों की संख्या 80 लाख के आँकड़े को पार कर गई है I इनमें से दो लाख से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनकी आयु 80 के भी पार हो गई है I

साथियो, कई शहरों में ‘युवा’ बुजुर्गों को Digital क्रांति में भागीदार बनाने के लिए भी आगे आ रहे हैं I भोपाल के महेश ने अपने मोहल्ले के कई बुजुर्गों को Mobile के माध्यम से Payment करना सिखाया है I इन बुजुर्गों के पास smart phone तो था, लेकिन, उसका सही उपयोग बताने वाला कोई नहीं था I बुजुर्गों को Digital arrest के खतरे से बचाने के लिए भी युवा आगे आए हैं I अहमदाबाद के राजीव, लोगों को Digital Arrest के खतरे से आगाह करते हैं I मैंने ‘मन की बात’ के पिछले episode में Digital Arrest की चर्चा की थी I इस तरह के अपराध के सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग ही बनते हैं I ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम उन्हें जागरूक बनाएं और cyber fraud से बचने में मदद करें I हमें बार-बार लोगों को समझाना होगा कि Digital Arrest नाम का सरकार में कोई भी प्रावधान नहीं है - ये सरासर झूठ, लोगों को फ़साने का एक षड्यन्त्र है मुझे खुशी है कि हमारे युवा साथी इस काम में पूरी संवेदनशीलता से हिस्सा ले रहे हैं और दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं I

मेरे प्यारे देशवासियो, आजकल बच्चों की पढ़ाई को लेकर कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं | कोशिश यही है कि हमारे बच्चों में creativity और बढ़े, किताबों के लिए उनमें प्रेम और बढ़े - कहते भी हैं ‘किताबें’ इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं, और अब इस दोस्ती को मजबूत करने के लिए, Library से ज्यादा अच्छी जगह और क्या होगी | मैं चेन्नई का एक उदाहरण आपसे share करना चाहता हूं | यहां बच्चों के लिए एक ऐसी library तैयार की गई है, जो, creativity और learning का Hub बन चुकी है | इसे प्रकृत् अरिवगम् के नाम से जाना जाता है | इस library का idea, technology की दुनिया से जुड़े श्रीराम गोपालन जी की देन है | विदेश में अपने काम के दौरान वे latest technology की दुनिया से जुड़े रहे | लेकिन, वो, बच्चों में पढ़ने और सीखने की आदत विकसित करने के बारे में भी सोचते रहे | भारत लौटकर उन्होंने प्रकृत् अरिवगम् को तैयार किया | इसमें तीन हजार से अधिक किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए बच्चों में होड़ लगी रहती है | किताबों के अलावा इस library में होने वाली कई तरह की activities भी बच्चों को लुभाती हैं | Story Telling session हो, Art Workshops हो, Memory Training Classes, Robotics Lesson या फिर Public Speaking, यहां, हर किसी के लिए कुछ-न-कुछ जरूर है, जो उन्हें पसंद आता है |

साथियो, हैदराबाद में ‘Food for Thought’ Foundation ने भी कई शानदार libraries बनाई हैं | इनका भी प्रयास यही है कि बच्चों को ज्यादा-से-ज्यादा विषयों पर ठोस जानकारी के साथ पढ़ने के लिए किताबें मिलें | बिहार में गोपालगंज के ‘Prayog Library’ की चर्चा तो आसपास के कई शहरों में होने लगी है | इस library से करीब 12 गांवों के युवाओं को किताबें पढ़ने की सुविधा मिलने लगी है, साथ ही ये, library पढ़ाई में मदद करने वाली दूसरी जरूरी सुविधाएँ भी उपलब्ध करा रही है | कुछ libraries तो ऐसी हैं, जो, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में students के बहुत काम आ रही हैं | ये देखना वाकई बहुत सुखद है कि समाज को सशक्त बनाने में आज library का बेहतरीन उपयोग हो रहा है | आप भी किताबों से दोस्ती बढ़ाइए, और देखिए, कैसे आपके जीवन में बदलाव आता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, परसों रात ही मैं दक्षिण अमेरिका के देश गयाना से लौटा हूं | भारत से हजारों किलोमीटर दूर, गयाना में भी, एक ‘Mini भारत’ बसता है | आज से लगभग 180 वर्ष पहले, गयाना में भारत के लोगों को, खेतों में मजदूरी के लिए, दूसरे कामों के लिए, ले जाया गया था | आज गयाना में भारतीय मूल के लोग राजनीति, व्यापार, शिक्षा और संस्कृति के हर क्षेत्र में गयाना का नेतृत्व कर रहे हैं | गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं, जो, अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं | जब मैं गयाना में था, तभी, मेरे मन में एक विचार आया था - जो मैं ‘मन की बात’ में आपसे share कर रहा हूं | गयाना की तरह ही दुनिया के दर्जनों देशों में लाखों की संख्या में भारतीय हैं | दशकों पहले की 200-300 साल पहले की उनके पूर्वजों की अपनी कहानियां हैं | क्या आप ऐसी कहानियों को खोज सकते हैं कि किस तरह भारतीय प्रवासियों ने अलग-अलग देशों में अपनी पहचान बनाई! कैसे उन्होंने वहाँ की आजादी की लड़ाई के अंदर हिस्सा लिया! कैसे उन्होंने अपनी भारतीय विरासत को जीवित रखा? मैं चाहता हूं कि आप ऐसी सच्ची कहानियों को खोजें, और मेरे साथ share करें | आप इन कहानियों को NaMo App पर या MyGov पर #IndianDiasporaStories के साथ भी share कर सकते हैं |

साथियो, आपको ओमान में चल रहा एक extraordinary project भी बहुत दिलचस्प लगेगा | अनेकों भारतीय परिवार कई शताब्दियों से ओमान में रह रहे हैं | इनमें से ज्यादातर गुजरात के कच्छ से जाकर बसे हैं | इन लोगों ने व्यापार के महत्वपूर्ण link तैयार किए थे | आज भी उनके पास ओमानी नागरिकता है, लेकिन भारतीयता उनकी रग-रग में बसी है | ओमान में भारतीय दूतावास और National Archives of India के सहयोग से एक team ने इन परिवारों की history को preserve करने का काम शुरू किया है | इस अभियान के तहत अब तक हजारों documents जुटाए जा चुके हैं | इनमें diary, account book, ledgers, letters और telegram शामिल हैं | इनमें से कुछ दस्तावेज तो सन् 1838 के भी हैं | ये दस्तावेज, भावनाओं से भरे हुए हैं | बरसों पहले जब वो ओमान पहुंचे, तो उन्होंने किस प्रकार का जीवन जिया, किस तरह के सुख-दुख का सामना किया, और, ओमान के लोगों के साथ उनके संबंध कैसे आगे बढ़े - ये सब कुछ इन दस्तावेजों का हिस्सा है | ‘Oral History Project’ ये भी इस mission का एक महत्वपूर्ण आधार है | इस mission में वहां के वरिष्ठ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं | लोगों ने वहाँ अपने रहन-सहन से जुड़ी बातों को विस्तार से बताया है |

साथियो ऐसा ही एक ‘Oral History Project’ भारत में भी हो रहा है | इस project के तहत इतिहास प्रेमी देश के विभाजन के कालखंड में पीड़ितों के अनुभवों का संग्रह कर रहें हैं | अब देश में ऐसे लोगों की संख्या कम ही बची है, जिन्होंने, विभाजन की विभीषिका को देखा है | ऐसे में यह प्रयास और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है |

साथियो, जो देश, जो स्थान, अपने इतिहास को संजोकर रखता है, उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है | इसी सोच के साथ एक प्रयास हुआ है जिसमें गांवों के इतिहास को संजोने वाली एक Directory बनाई है | समुद्री यात्रा के भारत के पुरातन सामर्थ्य से जुड़े साक्ष्यों को सहेजने का भी अभियान देश में चल रहा है | इसी कड़ी में, लोथल में, एक बहुत बड़ा Museum भी बनाया जा रहा है, इसके अलावा, आपके संज्ञान में कोई manuscript हो, कोई ऐतिहासिक दस्तावेज हो, कोई हस्तलिखित प्रति हो तो उसे भी आप, National Archives of India की मदद से सहेज सकते हैं |

साथियो, मुझे Slovakia में हो रहे ऐसे ही एक और प्रयास के बारे में पता चला है जो हमारी संस्कृति को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने से जुड़ा है | यहां पहली बार Slovak language में हमारे उपनिषदों का अनुवाद किया गया है | इन प्रयासों से भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का भी पता चलता है | हम सभी के लिए ये गर्व की बात है कि दुनिया-भर में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके हृदय में, भारत बसता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, अब मैं आपसे देश की एक ऐसी उपलब्धि साझा करना चाहता हूं जिसे सुनकर आपको खुशी भी होगी और गौरव भी होगा, और अगर आपने नहीं किया है, तो शायद पछतावा भी होगा | कुछ महीने पहले हमने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान शुरू किया था | इस अभियान में देश-भर के लोगों ने बहुत उत्साह से हिस्सा लिया | मुझे ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि इस अभियान ने सौ करोड़ पेड़ लगाने का अहम पड़ाव पार कर लिया है | सौ करोड़ पेड़, वो भी, सिर्फ पाँच महीनों में - ये हमारे देशवासियों के अथक प्रयासों से ही संभव हुआ है | इससे जुड़ी एक और बात जानकर आपको गर्व होगा | ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान अब दुनिया के दूसरे देशों में भी फैल रहा है | जब मैं गयाना में था, तो वहां भी, इस अभियान का साक्षी बना | वहां मेरे साथ गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली, उनकी पत्नी की माता जी, और परिवार के बाकी सदस्य, ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में शामिल हुए |

साथियो, देश के अलग-अलग हिस्सों में ये अभियान लगातार चल रहा है | मध्य प्रदेश के इंदौर में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के तहत, पेड़ लगाने का record बना है - यहां 24 घंटे में 12 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए गए | इस अभियान की वजह से इंदौर की Revati Hills के बंजर इलाके, अब, green zone में बदल जाएंगे | राजस्थान के जैसलमेर में इस अभियान के द्वारा एक अनोखा record बना - यहां महिलाओं की एक टीम ने एक घंटे में 25 हजार पेड़ लगाए | माताओं ने मां के नाम पेड़ लगाया और दूसरों को भी प्रेरित किया। यहां एक ही जगह पर पाँच हज़ार से ज़्यादा लोगों ने मिलकर पेड़ लगाए - ये भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है । ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत कई सामाजिक संस्थाएँ स्थानीय जरूरतों के हिसाब से पेड़ लगा रही हैं । उनका प्रयास है कि जहां पेड़ लगाए जाएँ वहाँ पर्यावरण के अनुकूल पूरा Eco System Develop हो । इसलिए ये संस्थाएँ कहीं औषधीय पौधे लगा रहीं हैं, तो कहीं, चिड़ियों का बसेरा बनाने के लिए पेड़ लगा रहीं हैं । बिहार में ‘JEEViKA Self Help Group’ की महिलाओं ने 75 लाख पेड़ लगाने का अभियान चला रहीं हैं । इन महिलाओं का focus फल वाले पेड़ों पर है, जिससे आने वाले समय में आय भी की जा सके ।

साथियो, इस अभियान से जुड़कर कोई भी व्यक्ति अपनी माँ के नाम पर पेड़ लगा सकता है । अगर माँ साथ है तो उन्हें साथ लेकर आप पेड़ लगा सकते हैं, नहीं तो उनकी तस्वीर साथ में लेकर आप इस अभियान का हिस्सा बन सकते हैं । पेड़ के साथ आप अपनी Selfie भी mygov.in पर पोस्ट कर सकते हैं । माँ, हम सबके लिए जो करती है हम उनका ऋण कभी नहीं चुका सकते, लेकिन, एक पेड़ माँ के नाम लगाकर हम उनकी उपस्थिति को हमेशा के लिए जीवंत बना सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आप सभी लोगों ने बचपन में गौरेया या Sparrow को अपने घर की छत पर, पेड़ों पर चहकते हुए ज़रूर देखा होगा । गौरेया को तमिल और मलयालम में कुरुवी, तेलुगु में पिच्चुका और कन्नड़ा में गुब्बी के नाम से जाना जाता है । हर भाषा, संस्कृति में, गौरेया को लेकर किस्से-कहानी सुनाए जाते हैं । हमारे आसपास Biodiversity को बनाए रखने में गौरेया का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है, लेकिन, आज शहरों में बड़ी मुश्किल से गौरेया दिखती है । बढ़ते शहरीकरण की वजह से गौरेया हमसे दूर चली गई है । आज की पीढ़ी के ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्होंने गौरेया को सिर्फ तस्वीरों या वीडियो में देखा है । ऐसे बच्चों के जीवन में इस प्यारी पक्षी की वापसी के लिए कुछ अनोखे प्रयास हो रहे हैं । चेन्नई के कूडुगल ट्रस्ट ने गौरेया की आबादी बढ़ाने के लिए स्कूल के बच्चों को अपने अभियान में शामिल किया है । संस्थान के लोग स्कूलों में जाकर बच्चों को बताते हैं कि गौरेया रोज़मर्रा के जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है । ये संस्थान बच्चों को गौरेया का घोंसला बनाने की training देते है । इसके लिए संस्थान के लोगों ने बच्चों को लकड़ी का एक छोटा सा घर बनाना सिखाया । इसमें गौरेया के रहने, खाने का इंतजाम किया । ये ऐसे घर होते हैं जिन्हें किसी भी इमारत की बाहरी दीवार पर या पेड़ पर लगाया जा सकता है । बच्चों ने इस अभियान में उत्साह के साथ हिस्सा लिया और गौरेया के लिए बड़ी संख्या में घोंसला बनाना शुरू कर दिया । पिछले चार वर्षों में संस्था ने गौरेया के लिए ऐसे दस हज़ार घोंसले तैयार किए हैं । कूडुगल ट्रस्ट की इस पहल से आसपास के इलाकों में गौरेया की आबादी बढ़नी शुरू हो गई है। आप भी अपने आसपास ऐसे प्रयास करेंगे तो निश्चित तौर पर गौरेया फिर से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगी ।

साथियो, कर्नाटका के मैसुरू की एक संस्था ने बच्चों के लिए ‘Early Bird’ नाम का अभियान शुरू किया है । ये संस्था बच्चों को पक्षियों के बारे में बताने के लिए खास तरह की library चलाती है । इतना ही नहीं, बच्चों में प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा करने के लिए ‘Nature Education Kit’ तैयार किया है। इस Kit में बच्चों के लिए Story Book, Games, Activity Sheets और jig-saw puzzles हैं । ये संस्था शहर के बच्चों को गांवों में लेकर जाती है और उन्हें पक्षियों के बारे में बताती है । इस संस्था के प्रयासों की वजह से बच्चे पक्षियों की अनेक प्रजातियों को पहचानने लगे हैं । ‘मन की बात’ के श्रोता भी इस तरह के प्रयास से बच्चों में अपने आसपास को देखने, समझने का अलग नज़रिया विकसित कर सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आपने देखा होगा, जैसे ही कोई कहता है ‘सरकारी दफ्तर’ तो आपके मन में फाइलों के ढ़ेर की तस्वीर बन जाती है | आपने फिल्मों में भी ऐसा ही कुछ देखा होगा | सरकारी दफ्तरों में इन फाइलों के ढ़ेर पर कितने ही मजाक बनते रहते हैं, कितनी ही कहानियां लिखी जा चुकी हैं | बरसों-बरस तक ये फाइलें Office में पड़े-पड़े धूल से भर जाती थीं, वहां, गंदगी होने लगती थी - ऐसी दशकों पुरानी फाइलों और Scrap को हटाने के लिए एक विशेष स्वच्छता अभियान चलाया गया | आपको ये जानकर खुशी होगी कि सरकारी विभागों में इस अभियान के अद्भुत परिणाम सामने आए हैं | साफ-सफाई से दफ्तरों में काफी जगह खाली हो गई है | इससे दफ्तर में काम करने वालों में एक Ownership का भाव भी आया है | अपने काम करने की जगह को स्वच्छ रखने की गंभीरता भी उनमें आई है |

सथियो, आपने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ये कहते सुना होगा, कि जहां स्वच्छता होती है, वहां, लक्ष्मी जी का वास होता है | हमारे यहाँ ‘कचरे से कंचन’ का विचार बहुत पुराना है | देश के कई हिस्सों में ‘युवा’ बेकार समझी जाने वाली चीजों को लेकर, कचरे से कंचन बना रहे हैं | तरह-तरह के innovation कर रहे हैं | इससे वो पैसे कमा रहे हैं, रोजगार के साधन विकसित कर रहे हैं | ये युवा अपने प्रयासों से sustainable lifestyle को भी बढ़ावा दे रहे हैं | मुंबई की दो बेटियों का ये प्रयास, वाकई बहुत प्रेरक है | अक्षरा और प्रकृति नाम की ये दो बेटियाँ, कतरन से फैशन के सामान बना रही हैं | आप भी जानते हैं कपड़ों की कटाई-सिलाई के दौरान जो कतरन निकलती है, इसे बेकार समझकर फेंक दिया जाता है | अक्षरा और प्रकृति की Team उन्हीं कपड़ों के कचरे को Fashion Product में बदलती है | कतरन से बनी टोपियां, Bag हाथों-हाथ बिक भी रही है |

साथियो, साफ-सफाई को लेकर UP के कानपुर में भी अच्छी पहल हो रही है | यहाँ कुछ लोग रोज सुबह Morning Walk पर निकलते हैं और गंगा के घाटों पर फैले Plastic और अन्य कचरे को उठा लेते हैं | इस समूह को ‘Kanpur Ploggers Group’ नाम दिया गया है | इस मुहिम की शुरुआत कुछ दोस्तों ने मिलकर की थी | धीरे-धीरे ये जन भागीदारी का बड़ा अभियान बन गया | शहर के कई लोग इसके साथ जुड़ गए हैं | इसके सदस्य, अब, दुकानों और घरों से भी कचरा उठाने लगे हैं | इस कचरे से Recycle Plant में tree guard तैयार किए जाते हैं, यानि, इस Group के लोग कचरे से बने tree guard से पौधों की सुरक्षा भी करते हैं|

साथियो, छोटे-छोटे प्रयासों से कैसी बड़ी सफलता मिलती है, इसका एक उदाहरण असम की इतिशा भी है | इतिशा की पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और पुणे में हुई है | इतिशा corporate दुनिया की चमक-दमक छोड़कर अरुणाचल की सांगती घाटी को साफ बनाने में जुटी हैं | पर्यटकों की वजह से वहां काफी plastic waste जमा होने लगा था | वहां की नदी जो कभी साफ थी वो plastic waste की वजह से प्रदूषित हो गई थी | इसे साफ करने के लिए इतिशा स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम कर रही है | उनके group के लोग वहां आने वाले tourist को जागरूक करते हैं और plastic waste को collect करने के लिए पूरी घाटी में बांस से बने कूड़ेदान लगाते हैं |

साथियो, ऐसे प्रयासों से भारत के स्वच्छता अभियान को गति मिलती है | ये निरंतर चलते रहने वाला अभियान है | आपके आस-पास भी ऐसा जरूर होता ही होगा | आप मुझे ऐसे प्रयासों के बारे में जरूर लिखते रहिए |

साथियो, ‘मन की बात’ के इस episode में फिलहाल इतना ही | मुझे तो पूरे महीने, आपकी प्रतिक्रियाओं, पत्रों और सुझावों का खूब इंतजार रहता है | हर महीने आने वाले आपके संदेश मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा देते हैं | अगले महीने हम फिर मिलेंगे, ‘मन की बात’ के एक और अंक में - देश और देशवासियों की नई उपलब्धियों के साथ, तब तक के लिए, आप सभी देशवासियों को, मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं |

बहुत-बहुत धन्यवाद |