प्रिय मित्रों,

विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर मैं हार्दिक अभिनंदन देता हूं। हमारी बहनों और भाइयों की उमंग और दृढ़ निश्चय को मैं सलाम करता हूं। बढ़ई, राजमिस्त्री, प्लम्बर, कारीगर, तकनीशियन और टर्नर जैसे अनेक लोगों की कड़ी मेहनत और कौशल के बिना शायद हम इस मुकाम को हासिल नहीं कर पाते।

SALUTING NATION BUILDERS ON VISHWAKARMA JAYANTI

जब आप अपनी नौकरी का पहला इंटरव्यू याद करते हैं, तब इस इंटरव्यू की सफलता का जश्न मनाते हैं। ऐसे में क्या आप उस धोबी को याद करते हैं, जिसने आप की सफेद शर्ट और पेन्ट को धोकर बेदाग बनाकर उसे अच्छी तरह से प्रेस किया था, जिसकी वजह से इंटरव्यू लेने वाले के मन में आपकी एक अच्छी छवि उभरी थी। ठीक इसी तरह, जब हम स्वादिष्ट रसोई का लुफ्त उठाते हैं तब रसोइये की तारीफ करना नहीं भूलते। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह सब भारत के गांव में अथक मेहनत करने वाले एक किसान के कड़े परिश्रम की वजह से संभव बना है। इसीलिए आज हमारे जीवन में इन सभी के अमूल्य योगदान के चलते हमें चाहिए कि हम उनके प्रति आभार एवं कृतज्ञता व्यक्त करें।

हम ‘श्रमेव जयते’ के मंत्र पर यकीन रखते हैं। हमारे लिए प्रत्येक कार्य पूजा के समान है। लिहाजा, इस मंत्र के मुताबिक जो भी कार्य हम करें, उसे पूरी तल्लीनता के साथ और अपनी कार्यक्षमता का बेहतरीन इस्तेमाल करते हुए करें। और यदि किसी ने इस मंत्र को पूर्णतः आत्मसात किया है तो वे हमारे उद्यमशील विश्वकर्मा बंधु हैं।

इतिहास के पन्नों से लेकर आज के दौर तक, विश्वकर्मा के लाखों साधक, जिनके कौशल की बदौलत हमारे समाज ने विकास किया है, वे हमारे समाज का महत्वपूर्ण आधार रहे हैं।

भूतकाल में उनके अहम प्रयासों की वजह से गांव आत्मनिर्भर बने थे। वहीं, आज हमारी अर्थव्यवस्था छोटे और मध्यम उद्योगों की वजह से मजबूत बनी है, जिसमें कौशल, तालीम और अनुभव से लबरेज लाखों लोग जुड़े हुए हैं। आज छोटे और मध्यम कद के उद्योगों की सफलता के पीछे ऐसे अनगिनत कामगार, इलेक्ट्रिशियन, टेक्निशियन, ड्राइवर, प्लम्बर और अन्य कारीगर हैं, जो दिन-रात कड़ा परिश्रम कर यह सुनिश्चित करते हैं कि निर्माण प्रक्रिया से गुजरने के बाद बनी प्रत्येक वस्तु सही तरीके से अपना कार्य करे। उनके अथक प्रयासों के बिना यह संभव नहीं था।

यदि एक राष्ट्र के तौर पर हमें आगे बढ़ना है तो हमें कुशलता की सुसंगतता को समझना होगा। हमारे नागरिक नया कौशल अपनाकर और ज्यादा मजबूत बनने को प्रोत्साहित हों, इसके लिए हमें ठोस कदम उठाने होंगे। इस दिशा में शुरुआत करने के लिए अच्छा होगा यदि हम कौशल विकास पर अपना ध्यान केन्द्रित करें। आईटीआई और इंजीनियरिंग कॉलेजों की बुनियादी सुविधाओं में सुधार से लेकर अभ्यास सामग्री के आधुनिकीकरण के साथ आईटीआई डिप्लोमा को उचित महत्व प्रदान कर हमारे नौजवानों का जीवन बदलनें की दिशा में हम काफी कुछ कर सकते हैं। इसके साथ ही, हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कौशल आधारित नौकरियों को भी योग्य मान-सम्मान मिले, ताकि किसी ‘व्हाइट-कॉलर जॉब’ की तुलना में उसकी कीमत कम न आंकी जाए।

पिछले कुछ वर्षों में हमने गुजरात में इस मामले में अपनी सारी शक्ति और संसाधनों को झोंक दिया है। मुझे यह बताने में खुशी हो रही है कि हमारी कौशल विकास की इस पहल को कई पुरस्कारों से नवाजा गया है, जिसमें प्रधानमंत्री द्वारा प्रदान किया गया एक पुरस्कार भी शामिल है।

हम यह बात लगातार सुनते आ रहे हैं कि, हमारी कुल आबादी में ३५ वर्ष से कम आयु के युवाओं की संख्या ६५ फीसदी है। अब यह हम पर निर्भर है कि इन आंकड़ों को बस हम देखते ही रहें या इसे हमारे युवाओं का कौशल विकास कर उन्हें आज के युग में स्वावलंबी बनाने के लिए सशक्त करने का अवसर मानें। और इसलिए ही २५ सितंबर को हमनें कौशल विकास को लेकर एक राष्ट्रीय परिषद का आयोजन किया है, जिसमें कौशल विकास से संबंधित सभी स्वरूपों का समावेश किया गया है। ‘हर हाथ में काम, हर खेत में पानी’ की परिकल्पना द्वारा हम सभी को प्रोत्साहित करने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्म जयंती के अवसर पर इस परिषद का आयोजन किया गया है। जब तक हम अपने नागरिकों के लिए सुसंगत अवसरों का निर्माण नहीं करेंगे, तब तक हम आराम नहीं कर सकते।

भगवान विश्वकर्मा कलात्मक रचनाओं, कारीगरी और वास्तुशिल्प के देव हैं। महज निर्माण के लिए ही हम उनकी उपासना नहीं करते, बल्कि सौंदर्यशास्त्र और यंत्रशास्त्र के लिए भी हम उनकी आराधना करते हैं। द्वारिका और हस्तिनापुर सहित स्वर्ग भी भगवान विश्वकर्मा की अद्भुत स्थापत्यकला के बेहतरीन नमूनों में शुमार है। इसलिए, आज के दिन हमें नवीन बदलाव और कलात्मक रचना के महत्व को लेकर विचार करना चाहिए। क्या हम दुनिया के आश्चर्यों में ‘मेड इन इंडिया’ का निर्माण नहीं कर सकते? मुझे भरोसा है कि यदि हम नवीन बदलाव और कलात्मक रचनाओं को हमारी शिक्षा और उद्योग के क्षेत्र में अपनाएंगे तो यह संभव बन सकता है।

मुझे यकीन है कि हमारे तेजस्वी भविष्य की सुरक्षा और जन कल्याण के कार्यों के लिए विश्वकर्मा परिवार संभव हो उतने सभी प्रयास करेगा।

आपका,

 

नरेन्द्र मोदी

 

टिप्पणीः

पिछले दो दिनों में आप में से अनेक लोगों ने मेरे जन्म दिवस की शुभकामनाएं प्रेषित की हैं। इन शुभकामनाओं और आपकी प्रार्थनाओं में मुझे शामिल करने के लिए मैं सभी लोगों का आभार व्यक्त करता हूं। इस दिन सामाजिक सेवा जैसे उम्दा कार्य करने के लिए मैं अपने शुभचिंतकों के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूं।

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भारत के रतन का जाना...
November 09, 2024

आज श्री रतन टाटा जी के निधन को एक महीना हो रहा है। पिछले महीने आज के ही दिन जब मुझे उनके गुजरने की खबर मिली, तो मैं उस समय आसियान समिट के लिए निकलने की तैयारी में था। रतन टाटा जी के हमसे दूर चले जाने की वेदना अब भी मन में है। इस पीड़ा को भुला पाना आसान नहीं है। रतन टाटा जी के तौर पर भारत ने अपने एक महान सपूत को खो दिया है...एक अमूल्य रत्न को खो दिया है।

आज भी शहरों, कस्बों से लेकर गांवों तक, लोग उनकी कमी को गहराई से महसूस कर रहे हैं। हम सबका ये दुख साझा है। चाहे कोई उद्योगपति हो, उभरता हुआ उद्यमी हो या कोई प्रोफेशनल हो, हर किसी को उनके निधन से दुख हुआ है। पर्यावरण रक्षा से जुड़े लोग...समाज सेवा से जुड़े लोग भी उनके निधन से उतने ही दुखी हैं। और ये दुख हम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में महसूस कर रहे हैं।

युवाओं के लिए, श्री रतन टाटा एक प्रेरणास्रोत थे। उनका जीवन, उनका व्यक्तित्व हमें याद दिलाता है कि कोई सपना ऐसा नहीं जिसे पूरा ना किया जा सके, कोई लक्ष्य ऐसा नहीं जिसे प्राप्त नहीं किया जा सके। रतन टाटा जी ने सबको सिखाया है कि विनम्र स्वभाव के साथ, दूसरों की मदद करते हुए भी सफलता पाई जा सकती है।

 रतन टाटा जी, भारतीय उद्यमशीलता की बेहतरीन परंपराओं के प्रतीक थे। वो विश्वसनीयता, उत्कृष्टता औऱ बेहतरीन सेवा जैसे मूल्यों के अडिग प्रतिनिधि थे। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह दुनिया भर में सम्मान, ईमानदारी और विश्वसनीयता का प्रतीक बनकर नई ऊंचाइयों पर पहुंचा। इसके बावजूद, उन्होंने अपनी उपलब्धियों को पूरी विनम्रता और सहजता के साथ स्वीकार किया।

दूसरों के सपनों का खुलकर समर्थन करना, दूसरों के सपने पूरा करने में सहयोग करना, ये श्री रतन टाटा के सबसे शानदार गुणों में से एक था। हाल के वर्षों में, वो भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का मार्गदर्शन करने और भविष्य की संभावनाओं से भरे उद्यमों में निवेश करने के लिए जाने गए। उन्होंने युवा आंत्रप्रेन्योर की आशाओं और आकांक्षाओं को समझा, साथ ही भारत के भविष्य को आकार देने की उनकी क्षमता को पहचाना।

भारत के युवाओं के प्रयासों का समर्थन करके, उन्होंने नए सपने देखने वाली नई पीढ़ी को जोखिम लेने और सीमाओं से परे जाने का हौसला दिया। उनके इस कदम ने भारत में इनोवेशन और आंत्रप्रेन्योरशिप की संस्कृति विकसित करने में बड़ी मदद की है। आने वाले दशकों में हम भारत पर इसका सकारात्मक प्रभाव जरूर देखेंगे।

रतन टाटा जी ने हमेशा बेहतरीन क्वालिटी के प्रॉडक्ट...बेहतरीन क्वालिटी की सर्विस पर जोर दिया और भारतीय उद्यमों को ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करने का रास्ता दिखाया। आज जब भारत 2047 तक विकसित होने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, तो हम ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करते हुए ही दुनिया में अपना परचम लहरा सकते हैं। मुझे आशा है कि उनका ये विजन हमारे देश की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और भारत वर्ल्ड क्लास क्वालिटी के लिए अपनी पहचान मजबूत करेगा।

रतन टाटा जी की महानता बोर्डरूम या सहयोगियों की मदद करने तक ही सीमित नहीं थी। सभी जीव-जंतुओं के प्रति उनके मन में करुणा थी। जानवरों के प्रति उनका गहरा प्रेम जगजाहिर था और वे पशुओं के कल्याण पर केन्द्रित हर प्रयास को बढ़ावा देते थे। वो अक्सर अपने डॉग्स की तस्वीरें साझा करते थे, जो उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा थे। मुझे याद है, जब रतन टाटा जी को लोग आखिरी विदाई देने के लिए उमड़ रहे थे...तो उनका डॉग ‘गोवा’ भी वहां नम आंखों के साथ पहुंचा था।

रतन टाटा जी का जीवन इस बात की याद दिलाता है कि लीडरशिप का आकलन केवल उपलब्धियों से ही नहीं किया जाता है, बल्कि सबसे कमजोर लोगों की देखभाल करने की उसकी क्षमता से भी किया जाता है।

रतन टाटा जी ने हमेशा, नेशन फर्स्ट की भावना को सर्वोपरि रखा। 26/11 के आतंकवादी हमलों के बाद उनके द्वारा मुंबई के प्रतिष्ठित ताज होटल को पूरी तत्परता के साथ फिर से खोलना, इस राष्ट्र के एकजुट होकर उठ खड़े होने का प्रतीक था। उनके इस कदम ने बड़ा संदेश दिया कि – भारत रुकेगा नहीं...भारत निडर है और आतंकवाद के सामने झुकने से इनकार करता है।

व्यक्तिगत तौर पर, मुझे पिछले कुछ दशकों में उन्हें बेहद करीब से जानने का सौभाग्य मिला। हमने गुजरात में साथ मिलकर काम किया। वहां उनकी कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर निवेश किया गया। इनमें कई ऐसी परियोजनाएं भी शामिल थीं, जिसे लेकर वे बेहद भावुक थे।

जब मैं केन्द्र सरकार में आया, तो हमारी घनिष्ठ बातचीत जारी रही और वो हमारे राष्ट्र-निर्माण के प्रयासों में एक प्रतिबद्ध भागीदार बने रहे। स्वच्छ भारत मिशन के प्रति श्री रतन टाटा का उत्साह विशेष रूप से मेरे दिल को छू गया था। वह इस जन आंदोलन के मुखर समर्थक थे। वह इस बात को समझते थे कि स्वच्छता और स्वस्थ आदतें भारत की प्रगति की दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण हैं। अक्टूबर की शुरुआत में स्वच्छ भारत मिशन की दसवीं वर्षगांठ के लिए उनका वीडियो संदेश मुझे अभी भी याद है। यह वीडियो संदेश एक तरह से उनकी अंतिम सार्वजनिक उपस्थितियों में से एक रहा है।

कैंसर के खिलाफ लड़ाई एक और ऐसा लक्ष्य था, जो उनके दिल के करीब था। मुझे दो साल पहले असम का वो कार्यक्रम याद आता है, जहां हमने संयुक्त रूप से राज्य में विभिन्न कैंसर अस्पतालों का उद्घाटन किया था। उस अवसर पर अपने संबोधन में, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि वो अपने जीवन के आखिरी वर्षों को हेल्थ सेक्टर को समर्पित करना चाहते हैं। स्वास्थ्य सेवा एवं कैंसर संबंधी देखभाल को सुलभ और किफायती बनाने के उनके प्रयास इस बात के प्रमाण हैं कि वो बीमारियों से जूझ रहे लोगों के प्रति कितनी गहरी संवेदना रखते थे।

मैं रतन टाटा जी को एक विद्वान व्यक्ति के रूप में भी याद करता हूं - वह अक्सर मुझे विभिन्न मुद्दों पर लिखा करते थे, चाहे वह शासन से जुड़े मामले हों, किसी काम की सराहना करना हो या फिर चुनाव में जीत के बाद बधाई सन्देश भेजना हो।

अभी कुछ सप्ताह पहले, मैं स्पेन सरकार के राष्ट्रपति श्री पेड्रो सान्चेज के साथ वडोदरा में था और हमने संयुक्त रूप से एक विमान फैक्ट्री का उद्घाटन किया। इस फैक्ट्री में सी-295 विमान भारत में बनाए जाएंगे। श्री रतन टाटा ने ही इस पर काम शुरू किया था। उस समय मुझे श्री रतन टाटा की बहुत कमी महसूस हुई।

आज जब हम उन्हें याद कर रहे हैं, तो हमें उस समाज को भी याद रखना है जिसकी उन्होंने कल्पना की थी। जहां व्यापार, अच्छे कार्यों के लिए एक शक्ति के रूप में काम करे, जहां प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता को महत्व दिया जाए और जहां प्रगति का आकलन सभी के कल्याण और खुशी के आधार पर किया जाए। रतन टाटा जी आज भी उन जिंदगियों और सपनों में जीवित हैं, जिन्हें उन्होंने सहारा दिया और जिनके सपनों को साकार किया। भारत को एक बेहतर, सहृदय और उम्मीदों से भरी भूमि बनाने के लिए आने वाली पीढ़ियां उनकी सदैव आभारी रहेंगी।