प्रिय मित्रों, 11 वर्ष पूर्व, आज ही के दिन बतौर मुख्यमंत्री मुझे गुजरात के लोगों की सेवा करने का अवसर मिला था। 11 वर्षों का यह सफर अत्यंत यादगार और संतोषजनक रहा है। इस दौरान मुझे काफी चीजें सीखने को मिलीं, जो हमेशा मेरे दिल में बसी रहेंगी। सबका साथ-सबका विकासज् मंत्र के साथ आज गुजरात विकास का पर्याय बन चुका है। गुजरात के विकास का एक ऐसा मॉडल हमने विकसित किया है, जो राज्य के सभी नागरिकों की जिन्दगी को स्पर्श करता है। जब मैंने मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला था तब गुजरात 26 जनवरी, 2001 को आए विनाशक भूकंप के असर तले दबा हुआ था। तब लगता था कि मानों गुजरात फिर कभी उठ नहीं पाएगा। लेकिन पुनर्वास और पुनर्निमाण के तेज प्रयासों और पुन: उठ खड़े होने के लोगों के अदम्य जोश और जज्बे के परिणामस्वरूप गुजरात अल्पसमय में ही विकास के मार्ग पर अग्रसर हो गया। उस दौर में गुजरात के पुनर्वास कार्य को रोल-मॉडल के तौर पर स्वीकार किया गया। आज, कच्छ की गणना भारत के सबसे तेज गति से विकास कर रहे जिले के रूप में होती है। वर्ष 2001 के दौरान लोग मुझसे विनती करते थे कि कम से कम शाम को भोजन के दौरान बिजली का इंतजाम कर दीजिए। इस समस्या के समाधान के लिए ज्योतिग्राम योजना बनाई गई, जिसके अंतर्गत गुजरात के गांवों में 24 घंटे अविरत थ्री फेज बिजली आपूर्ति की जाती है। इसके नतीजे अब हर कोई देख सकता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था अब बहुत हद तक सशक्त बनी है और गांवों से शहरों की ओर होने वाले पलायन में भी कमी दर्ज की गई है। इस तरह का कदम उठाने वाला गुजरात देश का सबसे पहला राज्य है। इस वर्ष अप्रैल में एक कदम और आगे बढक़र गुजरात ने 600 मेगावाट सोलर पावर क्षमता राष्ट्र के चरणों में समर्पित कर दी। गैर परम्परागत ऊर्जा के अन्य स्रोतों का उपयोग करने की दिशा में भी हम तेज गति से विकास कर रहे हैं। कई लोग मुझसे पूछते हैं, च्च्मोदी जी, आपका राज्य तो अब पावर-सरप्लस बन चुका है, फिर भी आप इन सबके बारे में विचार कर रहे हैं? मैं उनसे कहता हूं, हम ये सब प्रयास वर्तमान पीढ़ी के लिए नहीं बल्कि आने वाली पीढिय़ों के लिए कर रहे हैं। विद्युतशक्ति के अलावा हमने जलशक्ति का लाभ उठाने के लिए भी कृतनिश्चयी प्रयास किए हैं। वर्ष 2002 में हमने समूचे गुजरात के गांवों में शुद्घ पानी पहुंचाने के उद्देश्य से वास्मो का गठन किया। जनभागीदारी और असरदार जलव्यवस्थापन की वजह से आज गुजरात में 17,700 से भी ज्यादा पानी समितियां कार्यरत हैं। इनमें से ज्यादातर समितियों का प्रशासन महिलाओं के हाथों में है। नवीन प्रणालियों के उपयोग से जनशक्ति को नीति निर्धारण की प्रक्रिया में शामिल करने के लिए वास्मो को संयुक्त राष्ट्र संघ का पब्लिक सर्विस अवार्ड भी मिला है। प्राथमिक शिक्षा, और विशेषकर कन्याओं के लिए शिक्षा का क्षेत्र, एक ऐसा मामला है जिसमें असरदार प्रशासन के जरिए सकारात्मक नतीजे लाने की मेरी मंशा रही है। इसलिए ही 2004 में हमने कन्या केळवणी (शिक्षा) और शाला प्रवेशोत्सव के विराट अभियान शुरू किए। आज, गुजरात में शाला प्रवेश दर सौ फीसदी तक पहुंच चुकी है और ड्रॉप आउट दर पिछले दशक के दौरान घट कर 02 फीसदी तक नीचे आ गई है। सच कहूं तो मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने से भी ज्यादा यादगार क्षण मेरे लिए इन छोटे बच्चों को स्कूल सत्र के पहले दिन उंगली पकड़ कर स्कूल तक ले जाने के रहे हैं। इन कार्यक्रमों के फलस्वरूप अनेक बालकों और उनके परिवार के लिए एक सुंदर भविष्य का निर्माण होगा। गुजरात के विकास में नारीशक्ति का महत्वपूर्ण योगदान है। गुजरात ने सबसे पहली बार महिलाओं के जीवन में बदलाव लाने के लिए और अस्पताल में उन्हें नि:शुल्क चिकित्सकीय उपचार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वर्ष 2005 में चिरंजीवी योजना अमलीकृत की। चिरंजीवी योजना के परिणामस्वरूप माता और शिशुओं के स्वास्थ्य में बड़ा सुधार आया है। नारीशक्ति को विकास की प्रक्रिया में भागीदार बनाने के लिए हमने 2006 में नारी गौरव नीति लागू की। महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के उद्देश्य से 2010 में मिशन मंगलम योजना की शुरुआत की। आज मुझे यह कहते हुए गर्व की अनुभूति हो रही है कि 2.5 लाख सखी मंडलों के माध्यम से गुजरात की नारीशक्ति 1600 करोड़ रुपये की आर्थिक प्रवृत्तियां संभाल रही हैं। जरा कल्पना तो कीजिए, गुजरात की अनेक महिलाओं के जीवन में इस योजना के जरिए कितना सुंदर बदलाव आया होगा। इससे पूर्व गुजरात अपने उद्योगों के लिए जाना जाता था, लेकिन बारिश और बारह मास बहने वाली नदियों के अभाव के चलते गुजरात और कृषि के बीच मानों कोई नाता ही न था। लेकिन आज तस्वीर बदल चुकी है। कृषि महोत्सव की वजह से गुजरात में कृषि क्षेत्र का कायापलट हो गया है, और गुजरात भारत की दूसरी हरित क्रांति का नेतृत्व कर रहा है। गुजरात की कृषि आय में चार गुना बढ़ोतरी हुई है, इतना ही नहीं, पिछले दशक में राज्य के कृषि क्षेत्र ने 11 फीसदी की रिकार्ड दर से विकास किया है। आप गांवों में जाकर देखेंगे तो पता चलेगा कि कृषि क्षेत्र में हमारे किसान भाई अनेक नवीन प्रयास कर रहे हैं। गत दशक में गुजरात का औद्योगिक विकास असाधारण ऊंचाई पर पहुंचा है। गुजरात में विविध प्रकार के उद्योगों का अस्तित्व दिखाई पड़ता है। 2003 में शुरू हुए द्विवार्षिक वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन के कारण दुनिया भर से गुजरात में बड़े पैमाने पर पंूजी निवेश हो रहा है। असरदार स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराए बिना विकास अपूर्ण ही माना जाएगा। और इसलिए ही, इस वर्ष गुजरात सरकार ने एक अनोखा निर्णय किया है, जिसके मुताबिक मुख्यमंत्री अमृतम् च्माज् योजना के तहत गरीब मरीजों को गंभीर रोगों के इलाज के लिए दो लाख रुपये तक की सहायता दी जाएगी। वर्ष 2007 से सेवारत 108 एंबुलेंस सुविधा को उसके असरदार कार्य के लिए चारों ओर सराहा जा रहा है। 108 एंबुलेंस सुविधा 1.75 लाख लोगों का जीवन बचाने में मददगार साबित हुई है और 10 लाख जितने प्रसूति के मामलों में सहायक हुई है। लोगों को गरीबी के चंगुल से मुक्त करने के लिए 2009 से गरीब कल्याण मेलों की शुरुआत की गई है, जिसके तहत तकरीबन 1000 गरीब कल्याण मेलों के माध्यम से 85 लाख जितने गरीब लाभार्थियों को 13,000 करोड़ रुपये की सहायता प्रदान की गई है। प्रशासनिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर तहसीलों का सशक्तिकरण करने के उद्देश्य के साथ च्आपणो तालुको वाइब्रेंट तालुकोज् (एटीवीटी) कार्यक्रम की शुरुआत की गई और जनसेवा केन्द्रों की स्थापना की गई, जहां लोगों को 124 प्रकार की सेवाएं प्रदान की जाती हैं। मित्रों, इन योजनाओं और कार्यक्रमों की जानकारी के द्वारा मैंने आपको गत 11 वर्षों की विकास यात्रा में गुजरात द्वारा किए गए प्रयासों से रूबरू कराया। मैं हमेशा कहता हूं हमारा एकमात्र उद्देश्य विकास है, और भविष्य में भी वही रहेगा। पिछले ग्यारह वर्षों में हमने कई उपलब्धियां हासिल की, लेकिन अब भी काफी कुछ करना शेष है। मुझे यकीन है कि आप सभी के सहयोग से आने वाले वर्षों में हम एक भव्य और दिव्य गुजरात का निर्माण करेंगे। मैं भारतीय जनता पार्टी के मेरे साथी कार्यकर्ताओं का भी अत्यंत आभारी हूं जिन्होंने मुझे निरंतर अपना सहयोग दिया और मेरे जैसे आम इनसान को गुजरात के लोगों की सेवा का अवसर दिया। टीम गुजरात के छह लाख कर्मचारियों के लगातार सहयोग के बिना 11 वर्ष की यह यात्रा पूरी न हो पाती। उनकी मेहनत और प्रतिबद्घता ने गुजरात को विकास की नई ऊंचाइयां हासिल करने में सक्षम बनाया है। आखिर में, मैं छह करोड़ गुजरातियों के जोश को नमन करता हूं। आपका प्रेम और स्नेह मुझे निरंतर आगे बढऩे की ऊर्जा प्रदान करता है, मुझे और ज्यादा मेहनत करने और राज्य को विकास की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए प्रोत्साहित करता है। मुझे आपके साथ काम करने का अवसर मिला, इसके लिए मैं स्वयं को अत्यंत भाग्यशाली मानता हूं। जय जय गरवी गुजरात नरेन्द्र मोदी

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राष्ट्र निर्माण के ‘अटल’ आदर्श की शताब्दी
December 25, 2024

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं...लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? अटल जी के ये शब्द कितने साहसी हैं...कितने गूढ़ हैं। अटल जी, कूच से नहीं डरे...उन जैसे व्यक्तित्व को किसी से डर लगता भी नहीं था। वो ये भी कहते थे... जीवन बंजारों का डेरा आज यहां, कल कहां कूच है..कौन जानता किधर सवेरा...आज अगर वो हमारे बीच होते, तो वो अपने जन्मदिन पर नया सवेरा देख रहे होते। मैं वो दिन नहीं भूलता जब उन्होंने मुझे पास बुलाकर अंकवार में भर लिया था...और जोर से पीठ में धौल जमा दी थी। वो स्नेह...वो अपनत्व...वो प्रेम...मेरे जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य रहा है।

आज 25 दिसंबर का ये दिन भारतीय राजनीति और भारतीय जनमानस के लिए एक तरह से सुशासन का अटल दिवस है। आज पूरा देश अपने भारत रत्न अटल को, उस आदर्श विभूति के रूप में याद कर रहा है, जिन्होंने अपनी सौम्यता, सहजता और सहृदयता से करोड़ों भारतीयों के मन में जगह बनाई। पूरा देश उनके योगदान के प्रति कृतज्ञ है। उनकी राजनीति के प्रति कृतार्थ है।

21वीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए उनकी एनडीए सरकार ने जो कदम उठाए, उसने देश को एक नई दिशा, नई गति दी। 1998 के जिस काल में उन्होंने पीएम पद संभाला, उस दौर में पूरा देश राजनीतिक अस्थिरता से घिरा हुआ था। 9 साल में देश ने चार बार लोकसभा के चुनाव देखे थे। लोगों को शंका थी कि ये सरकार भी उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाएगी। ऐसे समय में एक सामान्य परिवार से आने वाले अटल जी ने, देश को स्थिरता और सुशासन का मॉडल दिया। भारत को नव विकास की गारंटी दी।

वो ऐसे नेता थे, जिनका प्रभाव भी आज तक अटल है। वो भविष्य के भारत के परिकल्पना पुरुष थे। उनकी सरकार ने देश को आईटी, टेलीकम्यूनिकेशन और दूरसंचार की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ाया। उनके शासन काल में ही, एनडीए ने टेक्नॉलजी को सामान्य मानवी की पहुंच तक लाने का काम शुरू किया। भारत के दूर-दराज के इलाकों को बड़े शहरों से जोड़ने के सफल प्रयास किये गए। वाजपेयी जी की सरकार में शुरू हुई जिस स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने भारत के महानगरों को एक सूत्र में जोड़ा वो आज भी लोगों की स्मृतियों पर अमिट है। लोकल कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए भी एनडीए गठबंधन की सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसे कार्यक्रम शुरू किए। उनके शासन काल में दिल्ली मेट्रो शुरू हुई, जिसका विस्तार आज हमारी सरकार एक वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रूप में कर रही है। ऐसे ही प्रयासों से उन्होंने ना सिर्फ आर्थिक प्रगति को नई शक्ति दी, बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों को एक दूसरे से जोड़कर भारत की एकता को भी सशक्त किया।

जब भी सर्व शिक्षा अभियान की बात होती है, तो अटल जी की सरकार का जिक्र जरूर होता है। शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मानने वाले वाजपेयी जी ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था, जहां हर व्यक्ति को आधुनिक और गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले। वो चाहते थे भारत के वर्ग, यानि ओबीसी, एससी, एसटी, आदिवासी और महिला सभी के लिए शिक्षा सहज और सुलभ बने।

उनकी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कई बड़े आर्थिक सुधार किए। इन सुधारों के कारण भाई-भतीजावाद में फंसी देश की अर्थव्यवस्था को नई गति मिली। उस दौर की सरकार के समय में जो नीतियां बनीं, उनका मूल उद्देश्य सामान्य मानवी के जीवन को बदलना ही रहा।

उनकी सरकार के कई ऐसे अद्भुत और साहसी उदाहरण हैं, जिन्हें आज भी हम देशवासी गर्व से याद करते है। देश को अब भी 11 मई 1998 का वो गौरव दिवस याद है, एनडीए सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद पोकरण में सफल परमाणु परीक्षण हुआ। इसे ‘ऑपरेशन शक्ति’ का नाम दिया गया। इस परीक्षण के बाद दुनियाभर में भारत के वैज्ञानिकों को लेकर चर्चा होने लगी। इस बीच कई देशों ने खुलकर नाराजगी जताई, लेकिन तब की सरकार ने किसी दबाव की परवाह नहीं की। पीछे हटने की जगह 13 मई को न्यूक्लियर टेस्ट का एक और धमाका कर दिया गया। 11 मई को हुए परीक्षण ने तो दुनिया को भारत के वैज्ञानिकों की शक्ति से परिचय कराया था। लेकिन 13 मई को हुए परीक्षण ने दुनिया को ये दिखाया कि भारत का नेतृत्व एक ऐसे नेता के हाथ में है, जो एक अलग मिट्टी से बना है।

उन्होंने पूरी दुनिया को ये संदेश दिया, ये पुराना भारत नहीं है। पूरी दुनिया जान चुकी थी, कि भारत अब दबाव में आने वाला देश नहीं है। इस परमाणु परीक्षण की वजह से देश पर प्रतिबंध भी लगे, लेकिन देश ने सबका मुकाबला किया।

वाजपेयी सरकार के शासन काल में कई बार सुरक्षा संबंधी चुनौतियां आईं। करगिल युद्ध का दौर आया। संसद पर आतंकियों ने कायरना प्रहार किया। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले से वैश्विक स्थितियां बदलीं, लेकिन हर स्थिति में अटल जी के लिए भारत और भारत का हित सर्वोपरि रहा।

जब भी आप वाजपेयी जी के व्यक्तित्व के बारे में किसी से बात करेंगे तो वो यही कहेगा कि वो लोगों को अपनी तरफ खींच लेते थे। उनकी बोलने की कला का कोई सानी नहीं था। कविताओं और शब्दों में उनका कोई जवाब नहीं था। विरोधी भी वाजपेयी जी के भाषणों के मुरीद थे। युवा सांसदों के लिए वो चर्चाएं सीखने का माध्यम बनतीं।

कुछ सांसदों की संख्या लेकर भी, वो कांग्रेस की कुनीतियों का प्रखर विरोध करने में सफल होते। भारतीय राजनीति में वाजपेयी जी ने दिखाया, ईमानदारी और नीतिगत स्पष्टता का अर्थ क्या है।

संसद में कहा गया उनका ये वाक्य... सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए...आज भी मंत्र की तरह हम सबके मन में गूंजता रहता है।

वो भारतीय लोकतंत्र को समझते थे। वो ये भी जानते थे कि लोकतंत्र का मजबूत रहना कितना जरुरी है। आपातकाल के समय उन्होंने दमनकारी कांग्रेस सरकार का जमकर विरोध किया, यातनाएं झेली। जेल जाकर भी संविधान के हित का संकल्प दोहराया। NDA की स्थापना के साथ उन्होंने गठबंधन की राजनीति को नए सिरे से परिभाषित किया। वो अनेक दलों को साथ लाए और NDA को विकास, देश की प्रगति और क्षेत्रीय आकांक्षाओं का प्रतिनिधि बनाया।

पीएम पद पर रहते हुए उन्होंने विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब हमेशा बेहतरीन तरीके से दिया। वो ज्यादातर समय विपक्षी दल में रहे, लेकिन नीतियों का विरोध तर्कों और शब्दों से किया। एक समय उन्हें कांग्रेस ने गद्दार तक कह दिया था, उसके बाद भी उन्होंने कभी असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया।

उन में सत्ता की लालसा नहीं थी। 1996 में उन्होंने जोड़-तोड़ की राजनीति ना चुनकर, इस्तीफा देने का रास्ता चुन लिया। राजनीतिक षड्यंत्रों के कारण 1999 में उन्हें सिर्फ एक वोट के अंतर के कारण पद से इस्तीफा देना पड़ा। कई लोगों ने उनसे इस तरह की अनैतिक राजनीति को चुनौती देने के लिए कहा, लेकिन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी शुचिता की राजनीति पर चले। अगले चुनाव में उन्होंने मजबूत जनादेश के साथ वापसी की।

संविधान के मूल्य संरक्षण में भी, उनके जैसा कोई नहीं था। डॉ. श्यामा प्रसाद के निधन का उनपर बहुत प्रभाव पड़ा था। वो आपात के खिलाफ लड़ाई का भी बड़ा चेहरा बने। इमरजेंसी केबाद 1977 के चुनाव से पहले उन्होंने ‘जनसंघ’ का जनता पार्टी में विलय करने पर भी सहमति जता दी। मैं जानता हूं कि ये निर्णय सहज नहीं रहा होगा, लेकिन वाजपेयी जी के लिए हर राष्ट्रभक्त कार्यकर्ता की तरह दल से बड़ा देश था, संगठन से बड़ा, संविधान था।

हम सब जानते हैं, अटल जी को भारतीय संस्कृति से भी बहुत लगाव था। भारत के विदेश मंत्री बनने के बाद जब संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण देने का अवसर आया, तो उन्होंने अपनी हिंदी से पूरे देश को खुद से जोड़ा। पहली बार किसी ने हिंदी में संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात कही। उन्होंने भारत की विरासत को विश्व पटल पर रखा। उन्होंने सामान्य भारतीय की भाषा को संयुक्त राष्ट्र के मंच तक पहुंचाया।

राजनीतिक जीवन में होने के बाद भी, वो साहित्य और अभिव्यक्ति से जुड़े रहे। वो एक ऐसे कवि और लेखक थे, जिनके शब्द हर विपरीत स्थिति में व्यक्ति को आशा और नव सृजन की प्रेरणा देते थे। वो हर उम्र के भारतीय के प्रिय थे। हर वर्ग के अपने थे।

मेरे जैसे भारतीय जनता पार्टी के असंख्य कार्यकर्ताओं को उनसे सीखने का, उनके साथ काम करने का, उनसे संवाद करने का अवसर मिला। अगर आज बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है तो इसका श्रेय उस अटल आधार को है, जिसपर ये दृढ़ संगठन खड़ा है।

उन्होंने बीजेपी की नींव तब रखी, जब कांग्रेस जैसी पार्टी का विकल्प बनना आसान नहीं था। उनका नेतृत्व, उनकी राजनीतिक दक्षता, साहस और लोकतंत्र के प्रति उनके अगाध समर्पण ने बीजेपी को भारत की लोकप्रिय पार्टी के रूप में प्रशस्त किया। श्री लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गजों के साथ, उन्होंने पार्टी को अनेक चुनौतियों से निकालकर सफलता के सोपान तक पहुंचाया।

जब भी सत्ता और विचारधारा के बीच एक को चुनने की स्थितियां आईं, उन्होंने इस चुनाव में विचारधारा को खुले मन से चुन लिया। वो देश को ये समझाने में सफल हुए कि कांग्रेस के दृष्टिकोण से अलग एक वैकल्पिक वैश्विक दृष्टिकोण संभव है। ऐसा दृष्टिकोण वास्तव में परिणाम दे सकता है।

आज उनका रोपित बीज, एक वटवृक्ष बनकर राष्ट्र सेवा की नव पीढ़ी को रच रहा है। अटल जी की 100वीं जयंती, भारत में सुशासन के एक राष्ट्र पुरुष की जयंती है। आइए हम सब इस अवसर पर, उनके सपनों को साकार करने के लिए मिलकर काम करें। हम एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जो सुशासन, एकता और गति के अटल सिद्धांतों का प्रतीक हो। मुझे विश्वास है, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के सिखाए सिद्धांत ऐसे ही, हमें भारत को नव प्रगति और समृद्धि के पथ पर प्रशस्त करनें की प्रेरणा देते रहेंगे।