किसी भी सरकार के लिए हर वर्ष 1 करोड़ 20 लाख नौकरियां पैदा करना एक चुनौती है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके बारे में अच्छी तरह से जानते हैं।
जहां आलोचक निराशावादी भविष्य की दलीलों पर रंग चढ़ाने में जुटे हैं, वहीं समय की मांग समाधानों पर ध्यान केंद्रित करने और जरूरी कदम उठाने की है। नरेन्द्र मोदी विचारधारा के उस स्कूल से आते हैं जो समस्याओं से टकराने में विश्वास रखता है। हालांकि पूरी तस्वीर हर किसी को दिखाई नहीं दे सकती है, लेकिन अगर कोई इस बेहद जटिल आरी-तिरछी पहेली को छोटे-छोटे टुकड़ों में रखकर देखने की कोशिश करे तो एक पैटर्न उभरने लगता है। क्या यह पैटर्न कामकाज की दुनिया में एक नई तरह की क्रांति का संकेत है जो दस्तक दे रही है? ये क्रांति उस युग में खूब सफल रहेगी जहां मशीन, डिजिटल टेक्नोलॉजी और innovation इंसान की जगह नहीं लेंगे, बल्कि क्षमताओं को बढ़ाने के लिए इंसान के साथ मिलकर काम करेंगे जिससे अधिक से अधिक काम, धन और ज्ञान के अवसर पैदा होंगे।
नरेन्द्र मोदी विचारधारा के उस स्कूल से से आते हैं जो समस्याओं से टकराने में विश्वास रखते हैं।
पीएम मोदी ने डिजिटल टेक्नोलॉजी को जिस तरह से ग्रहण किया है, अपनाया है वैसा किसी और नेता ने नहीं किया है। राजनीति और नीति में उन्होंने जिस तरह से इसका उपयोग किया है उसके कई सबूत मिल चुके हैं। चुनाव अभियान से लेकर एक अरब लोगों के लिए आधार को अपनाने के मामले में इसकी बानगी सामने आ चुकी है। यहां तक कि नोटबंदी के कदम पर जोर डालने का नतीजा ये रहा कि देश भर में डिजिटल लेनदेन को भारी बढ़ावा मिला। ऐसे कदम से ही कामकाज की दुनिया में क्रांति (Work Revolution) के बीज पड़ते हैं। नौकरियां पैदा करने की चुनौती से भी इसके जरिये निपटा जा सकता है।
इस महीने के शुरू में Carnegie India ने व्यक्तिगत डेटा के उपयोग पर एक सेमिनार का आयोजन किया था। इस सेमिनार में इस पर विशेष चर्चा की गई कि users के अपने डिजिटल डेटा पर नियंत्रण रखने के कितने फायदे हैं। नंदन नीलेकणी ने इस बात को उभारा कि पश्चिमी देशों की विपरीत तर्ज पर भारत आर्थिक रूप से समृद्ध राष्ट्र बनने के पहले एक data rich nation बन जाएगा। सवाल है क्या यह एक new work revolution का प्रारंभिक बिंदु हो सकता है? क्या नौकरी सृजन के मामले में इससे बिल्कुल एक नई दुनिया का आगाज हो सकता है? आइये, ऐसी ही कुछ संभावनाओं पर हम गौर करते हैं।
एक अरब डिजिटल फुटप्रिंट
सर्वप्रथम , जिस तरह से टेक्नोलॉजी आगे बढ़ रही है, उससे बहुत जल्द ही लाखों की संख्या में प्रमाणित और मान्यता प्राप्त कुशल कामगारों और service providers के पूल तैयार हो सकते हैं। डिजिटल पैमाने पर किसी ना किसी तरह की काबिलियत रखने वाले एक अरब लोगों में नौकरी का पूरा परिदृश्य ही बदलने की क्षमता हो सकती है। अलग-अलग ऐप और प्लेटफॉर्मों के माध्यम से कुशल कामगार ढूंढ़ने वालों को ये अपने हुनर और क्षमता से प्रभावित कर सकते हैं। ये एक ऐसा महत्वपूर्ण कदम हो सकता है जिससे नौकरी पाने के पारंपरिक तरीके पीछे छूट जाएंगे। Gig economy के रूप में जाना जाने वाला यह trend पहले से जोरों पर है। एक स्टडी बताती है कि 2020 तक चालीस फीसदी अमेरिकी श्रमिक स्वतंत्र कॉन्ट्रैक्टर होंगे। ये वैसे लोग हैं, जिन्हें दफ्तर जाने की ज़रूरत नहीं और वो ऑनलाइन अपनी सेवाएं दे सकते हैं। एक अरब digital footprints के साथ डेटा समृद्ध भारत में भी यह एक वास्तविक संभावना बन सकती है। data explosion के बीच आगे का रास्ता यही होना चाहिए। हमारे यहां रोजगार के क्षेत्र में इस तरफ शायद अभी ध्यान नहीं गया है।
प्रधानमंत्री का जोर इस बात पर है कि कर्मचारियों से आगे बढ़कर अधिक-से-अधिक entrepreneurs और employers तैयार किये जायें।
अगर कई लोगों के कहने पर आपका किसी रेस्तरां के खाने का स्वाद लेने का मन करता है तो आपको किसी विशेष क्षेत्र में ऊंची रेटिंग वाले एक फ्रीलांस प्रोफेशनल की सेवाएं लेने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। कुछ मायनों में, यह नया digital employment exchange है जहां नौकरी तलाशने वाला और नौकरी देने वाला तुरंत एक दूसरे को मिल जा रहे हैं और अधिक काम और धन का निर्माण कर रहे हैं। यह work revolution कुशल कामगारों की खोज और उनकी मांग और आपूर्ति पर आधारित है। पीएम मोदी पहले ही अपनी डिजिटल पहल के माध्यम से एक नये भविष्य का बीज बो चुके हैं।
दूसरा, GST एक game changer होगा और इसका एक व्यापक प्रभाव होगा। स्वतंत्र कामगारों और service providers का एक नया पूल, जो पहले नौकरी की गिनती में शामिल नहीं थे, उन्हें अब GST नेटवर्क का उपयोग कर पहचान सकते हैं। यह पूरे भारत में आर्थिक गतिविधि के real time dashboard की संभावना बनाता है। और जब आप इसे डिजिटल फाइनेंस, आधार के साथ पैन कार्ड की मैपिंग और आधार से जुड़े प्रॉपर्टी रिकॉर्ड जैसे कदमों से जोड़ते हैं, तो यह एक एकीकृत डिजिटल आर्थिक गतिविधि का एक map बनाता है जो बदलावों को real time में ट्रैक कर सकता है। एक सामान्य प्लेटफॉर्म से जुड़ा आर्थिक गतिविधि का यह डेटा इसकी भी ज्यादा सही जानकारी देता है कि किस तरह की नौकरियां मांग में हैं। job data के trends के आधार पर यह ‘real world real time’ marketplace के लिए अवसरों की एक पूरी दुनिया भी खोलता है। हमें अब इस जानकारी को innovators को उपलब्ध कराने की जरूरत है जिससे वो बाजार के trends और संबंधित अवसरों की पहचान कर सकें।
GST एक game changer होगा और इसका एक व्यापक प्रभाव होगा। स्वतंत्र कामगारों और service providers का एक नया पूल, जो पहले नौकरी की गिनती में शामिल नहीं थे, उन्हें अब GST नेटवर्क का उपयोग कर पहचान सकते हैं।
यह G2B यानी government to business relationship को भी फिर से परिभाषित करता है। यहां ऐसा कुछ नहीं है जो सरकार को अमेरिका के DARPA (Defense Advanced Research Projects Agency) challenge model की तरह अपने कुछ कामकाज को प्राइवेट सेक्टर के हवाले करने से रोकता हो। कुछ बड़ी समस्याओं का समाधान निजी क्षेत्र के माध्यम से प्राप्त हो सकता है जैसे नोटबंदी के बाद fin-tech sector ने करके दिखाया। Data rich India में ये सब कुछ संभव है।
इंसान + मशीन = नौकरियां
तीसरा, MIT के प्रोफेसर एरिक ब्रायनजोल्फ्सन अपने सहयोगी के साथ लिखी पुस्तक Machine, Platform, Crowd में कहते हैं कि व्यापारिक दुनिया में तीन बड़े बदलाव हुए हैं। Man to Machine, Products to platform और Core to Crowd वाले ये बदलाव रोजगार सृजन की ढेर सारी संभावनाओं को सामने लाते हैं।
सामान्य और ऐसे काम जो जटिल ना हों उन्हें मशीनों के द्वारा किया जा सकता है, वहीं human interfacing jobs में भारत के पास पूरी ताकत और क्षमता मौजूद है। उदाहरण के लिए कुकिंग, कारपेंट्री, नर्सिंग, प्रशिक्षण, टीचिंग जैसे क्षेत्रों के अलावा प्रशिक्षत ड्राइवरों की मांग को पूरा करने में भारत सक्षम है। इसी तरह तकनीक से लैस प्लेटफॉर्मों का उपयोग कर शिक्षण के बेहतर तरीके से बेहतर तकनीकी कौशल के साथ अधिक शिक्षित कामगार तैयार किये जा सकते हैं। टेक्नोलॉजी के बदलते दौर में इससे नई नौकरियों के द्वार खुल सकते हैं। फेसबुक पहले से ही स्थानीय भाषा बोलने वालों को सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री को फ़िल्टर करने के लिए hire कर रहा है। इसी तरह से machine tutor हो सकते हैं जो मशीनों में कुछ विशिष्ट वस्तुओं की छवियों को समझने और पहचानने के कौशल भर सकते हैं। Machine linguists अपने भाषाई कौशल का इस्तेमाल मशीन की भाषाओं को पढ़ाने में करेंगे। गणित में निपुण लोग और सांख्यिकीविद् जिनका आंकड़ों से बड़ा नाता होता है, उन्हें व्यावसायिक जरूरतों के मुताबिक अनुमानित मॉडल तैयार करने के लिए मॉडलर्स के रूप में एक नया मौका मिलेगा।
जब आप digital eco-system के साथ कुशल पेशेवरों के एक पूल को जोड़ते हैं तो एक पूरी नई दुनिया सामने आती है। Automation के कारण नौकरी जाने का डर पालने के बजाय हमें मशीन की ताकत और इंसान के संयोजन पर फोकस करने की जरूरत है जिससे नये-नये और बेहतर आइडिया निकलकर सामने आ सकते हैं।
चुनौतियों का सामना करें
हमारे लिए अपनी ऐसी चुनौतियों को लेकर भी योजना बनाने की जरूरत है जो हमें नये work revolution को आगे ले जाने से रोक सकती हैं।
सबसे पहले तो हमारे प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम डिजिटल युग को गले लगाने लायक तो हैं ही नहीं। जबकि Atal Innovation mission और इसके Atal Tinkering labs एक अच्छी पहल हैं और इसकी गति को बढ़ाये रखने की जरूरत है। Innovators के रूप में 10 लाख बच्चों का लक्ष्य महत्वाकांक्षी है, लेकिन इसे आगे बढ़ाने का यही समय है।
दिल्ली से बाहर निकलने पर आप इस चर्चा को देखेंगे कि अभी इतने सारे entrepreneurs किसी एक बड़े आइडिया पर काम कर रहे हैं। उनके पास job creators बनने की भूख और क्षमता दोनों ही है।
दूसरा, Work Revolution की एक तस्वीर को उच्च शिक्षा के स्तर से जोड़कर भी देखा जा सकता है। क्या हम सरकारी फंड से चलने वाले हजारों विज्ञान और अनुसंधान प्रयोगशालाओं में उन छात्रों को मौका दे सकते हैं जहां उन्हें भविष्य के लिए तैयार विज्ञान और प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों की शिक्षा दी जा सकती है? नए संस्थानों और कॉलेजों का निर्माण एक विस्तृत परियोजना हो सकता है, लेकिन हमारे पास मौजूदा संस्थानों में भी बड़े पैमाने पर जगह है जिसके सदुपयोग से विज्ञान और गणित की टीचिंग में एक नये युग का सूत्रपात होगा।
आखिर में, प्रधानमंत्री को Indian start up eco-system में निवेश के लिए उन लोगों में उत्साह का संचार करने की जरूरत है जो इसमें पूंजी लगाने को रिस्क मानते हैं। हमने देखा है कि भारतीय स्टार्ट-अप में ज्यादातर फंडिंग विदेशी निवेशक करते हैं लेकिन किसी वजह से भारतीय पूंजी इसमें अभी भी नहीं लग पा रही। दरअसल अपने यहां पूंजी लगाने में व्यापार के सफल होने तक इंतजार करने की एक मानसिकता रही है, लेकिन डिजिटल युग में इसे कहीं से अच्छा नहीं कहा जा सकता। जिन लोगों ने औद्योगिक युग में बड़ा योगदान दिया है वो अब इस नई धारा का भी हिस्सा बनना चाहेंगे। नये work revolution में वो मददगार बनकर सामने आ सकते हैं।
इस work revolution की संभावना जहां-जहां मौजूद है, वहां अधिक से अधिक राजनीतिक ऊर्जा लगाने की जरूरत है। दिल्ली से बाहर निकलने पर आप इस चर्चा को देखेंगे कि अभी इतने सारे entrepreneurs किसी एक बड़े आइडिया पर काम कर रहे हैं। उनके पास job creators बनने की भूख और क्षमता दोनों ही है। उन्हें प्रधानमंत्री ने डिजिटल अपनाने की अपनी रणनीति के साथ रास्ता दिखाया है और पहेली के कुछ टुकड़ों को समझने के लिए उनकी जगह पर रख दिया है। अब डिजिटल युग में work revolution लाकर प्रधानमंत्री की पहल को साकार करने का समय है। इसी में न्यू इंडिया की असली अनुभूति भी है।
(शिवनाथ ठुकराल India centre of Carnegie Endowment for International Peace के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं)
ऊपर व्यक्त की गई राय लेखक की अपनी राय है। यह आवश्यक नहीं है कि नरेंद्र मोदी वेबसाइट एवं नरेंद्र मोदी ऐप इससे सहमत हो।