उत्तराखंड में पहाड़ों की ऊंचाई पर माजखली एक जगह है। यहां रात होते ही आप अपने सिर को उठा सकते हैं और रात के आसमान की ओर अविरल निहार सकते हैं। आप देख सकते हैं कि किस तरह लाखों तारे एक अनंत श्रृंखला बनाकर एक अद्भुत टिमटिमाहट बिखेर रहे हैं। जब कभी मुझे शांतचित्त अनुभव के पल की जरूरत महसूस होती है, मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से एक ट्रेन लेता हूं (शुक्र है कि ये पहले से अब साफ स्टेशन दिखता है) और काठगोदाम जाता हूं, जो कि हिमालय की तराई में बसा एक छोटा स्टेशन है। यहां से भाड़े की टैक्सी मुझे देवदार वृक्षों से भरे घुमावदार रास्तों से ले जाती है। इस दौरान डीजल के धुएं के साथ जगह-जगह ढाबों से आने वाली बासी वनस्पति तेल की बदबू से भी सामना होता रहता है।
माजखली के रास्ते में नीम करोली बाबा का आश्रम है। नीम करोली बाबा के बारे में अधिकतर लोगों ने सुन रखा होगा क्योंकि बाबा से मिलने यहां स्टीव जॉब्स भी आश्रम तक पहुंचे थे, हालांकि उन्हें देर हो गई थी। उससे पहले ही ये संतपुरुष अपने शरीर का त्याग कर चुके थे। लेकिन जॉब्स यहां आए थे ये ढाबा वाले को भी पता है, जिसने एक बार मुझे बताया था ‘’एप्पल वाले आये थे’’, जॉब्स यहां 1974 में आए थे लेकिन कैंची धाम में लोग यही कहते हैं कि ब्लैक पोलो गर्दन वाला कोई यहां आया था।
इस कहानी में एक सीख है। एक ऐसी सीख जिसका टूरिज्म से ज्यादा प्रामाणिकता से नाता है। आंकड़ों से भरे हमारे इस युग में प्रामाणिकता की तलाश सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, जहां मानव नियंत्रण और हस्तक्षेप को लेकर पहले से ज्यादा सवाल किये जा रहे हैं। हम ज्यादा ‘प्रामाणिक’ अनुभव की तलाश करते हैं क्योंकि रोजमर्रा के जीवन का ज्यादातर हिस्सा ether पर आधारित है, algorithms द्वारा संचालित होता है जिन्हें हम मुश्किल से समझते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि ये algorithms हमारी तिथियों से लेकर वाशिंग पाउडर तक सब कुछ तय करते हैं।
प्रामाणिकता के लिए ये इच्छा कहां से आती है? ये इच्छा आती है परंपरा के लिए हमारी भूख से, क्योंकि सभी परंपराएं आधुनिकता द्वारा खत्म की जा चुकी हैं। हंगरी के दार्शनिक एंगेस हेलर कहते हैं कि आधुनिकता की कोई नींव नहीं है क्योंकि ये सभी नींवों के विखंडन और विध्वंस के माध्यम से उभरी है। आंकड़े बताने की प्रक्रिया में लगा जीवन यानी algorithmic life आधुनिक जीवन का चरम बिंदु है, जो अपने चरम स्तर पर पहुंच चुका है। इसमें आश्चर्य बात नहीं कि ज्यादातर लोगों को ये लगे कि इस जीवन की नींव में एक कमी है, जिसे संस्कृति और परंपरा से ही पूरी की जा सकती है। इससे ये गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि परंपरा और संस्कृति आधुनिकता विरोधी हैं। भारतीय उदाहरण ने हमेशा ये बताया है कि संस्कृति और परंपरा में वो गुण है जो बदलते समय और नई वास्तविकताओं के अनुकूल खुद को लगातार ढाल सकें।
यही वजह है कि प्रामाणिकता की इच्छा एकदम से इतनी बढ़ गई है। कुछ महीने पहले ब्यूनस आयर्स में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम यंग ग्लोबल लीडर शिखर सम्मेलन में प्रामाणिकता पर चर्चा में मैं अक्सर गड़बड़ी कर बैठता था। यह एक 'जैविक' चर्चा का मंच है। प्रामाणिकता की इच्छा ही वो वजह है कि 2016 में कई बाजारों में vinyl records ने डिजिटल म्यूजिक की बिक्री को पीछे छोड़ दिया और डाटा से भरे इस दौर में इतिहासकार युवल नूह हरारी हमसे 'अपने आप को जानने' (यानी अधिक प्रामाणिक) का आग्रह कर रहे हैं।
यह प्रामाणिकता है जो यात्री और पर्यटकों, अण्वेषक और विश्वासी को एक-दूसरे से अलग करता है।
दुनिया में शायद एकमात्र अटूट सभ्यता के रूप में भारत के बारे में सोचिए – जहां आज भी लाखों लोग हर सुबह मंत्रोच्चार वैसे ही करते हैं जैसे हजारों साल पहले उनके पूर्वज किया करते थे। ठीक उन्हीं शब्दों का प्रयोग, बिल्कुल अपरिवर्तित और अनछुए - प्रामाणिकता के दौर की ये शुरुआत भारत के लिए एक अनूठा अवसर लेकर आई है। अतुल्य भारत की सुदृढ़ पहचान के बाद हमारे पास एक नया अभियान होना चाहिए: प्रामाणिक भारत। अतुल्य भारत ने हमारे देश को देखने के लिए एक नया नजरिया देने का शानदार काम किया है। एक नवीनता और मनोहारी इंद्रधनुषी छटा बिखेरने वाले देश के तौर पर भारत को देखने का एक दृष्टिकोण बना है। प्रामाणिक भारत इस यात्रा को आगे ले जाएगा।
Artificial Intelligence-AI के युग में, यह हमारी पुरानी-नई यूएसपी है, हमारी अपनी AI यानी कंप्यूटर आधारित बौद्धिकता। Artificial Intelligence की विघटनकारी शक्ति के बारे में बात करते हुए अधिकांश लोग अन्य जमीनी स्तर के अवसरों को नहीं देख रहे हैं जो बहुत दृढ़ता से उभर रहे हैं। ये हैं प्रामाणिक अनुभव, सामग्री, और वस्तु और सेवाओं की ओर बढ़ता रुझान। भारत में यह living wisdom – प्रामाणिकता हर जगह और हर कोने में मौजूद है। यह हर दिन के सैकड़ों अनुष्ठानों में है, यह जीवित स्मारकों में है (यह याद रखना चाहिए कि भारत के महान मंदिर केवल वास्तु चमत्कार नहीं हैं, बल्कि वे जागृत या 'जीवित’ देवताओं के साथ लाखों श्रद्धालुओं के लिए पूजा करने वाले स्थान हैं), इसमें मंत्रोच्चार इस आस्था के साथ हमेशा दोहराया जाता है कि भक्ति भरे शब्दों की गूंज आसमान तक को शुद्ध कर देती है।
प्रामाणिकता की इस भावना के पुनरुद्धार का एक श्रृंखलाबद्ध प्रभाव होगा जो यहां आने वालों को ना सिर्फ अतीत से परिचय कराएगा बल्कि भारत से लेकर दुनिया भर में सांस्कृतिक वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री के साथ इससे अरबों डॉलर के पर्यटन राजस्व भी हासिल होंगे। इसके साथ ही घर में भारतीयों के बीच सांस्कृतिक साक्षरता के गहरे भाव को आगे बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
जरा इस पर सोचिए: नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 149 उत्पादों के पास GI (भौगोलिक संकेत) टैग है। इन उत्पादों में से प्रत्येक का इतिहास, एक घर, एक उपस्थिति, उनके उत्पादन और डिजाइन में हमेशा एक प्रामाणिक झंकार का भाव है। उनमें से प्रत्येक प्रामाणिक भारत के लिए एक राजदूत है।
प्रामाणिकता, क्रांतिकारी ऋषि अरबिंदो के अनुसार पूर्णता की दिशा में पहला कदम है, और एक प्रामाणिक भारत अभियान का समय हमारे लिए है।
(हिंडोल सेनगुप्ता एक अवॉर्ड विजेता पत्रकार, सात पुस्तकों के लेखक और वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम यंग ग्लोबल लीडर हैं।)
ऊपर जो राय व्यक्त की गई है वो लेखक(लेखकों) की अपनी राय है। यह आवश्यक नहीं है कि नरेंद्र मोदी वेबसाइट एवं नरेंद्र मोदी ऐप इससे सहमत हो।