केरल के एर्नाकुलन जिले में एकमात्र महिला ऑटो चालक ऊषा बाबू का सपना था कि उनका अपना खुद का एक ऑटोरिक्शा हो। पिछले 12 सालों से उन्होंने किराये पर लेकर ऑटोरिक्शा चलाया और कड़ी मेहनत की लेकिन ये भी खुद का वाहन खरीदने के लिए पर्याप्त नहीं था। इस स्थिति में उनके सपने को फंडिंग करने के लिए सामने आई सिंडिकेट बैंक की षणमुगम शाखा जिसने 1.29 लाख रुपये का मुद्रा ऋण मुहैया कराकर उन्हें अपना खुद का ऑटो रिक्शा खरीदने में मदद की। यहां से ऊषा बाबू ने पीछे मुड़कर नहीं देखा है।

लेकिन ऊषा अकेली नहीं है। अपने बूते कुछ कर दिखाने की प्रतिबिद्धता की ऐसी ही कहानी बबिता की भी है जिन्होंने अपने उद्देश्य को हासिल करने में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का लाभ उठाया। बबिता ने इस योजना के अंतर्गत ऋण लेकर 7 सिलाई मशीनें खरीदीं। आज वो 5 महिलाओं को अपने यहां रोजगार पर रखकर सिलाई और बुनाई का प्रशिक्षण दे रही हैं।

ऊषा और बबिता के अलावा चुपचाप क्रांति कर जाने वाली (silent revolutionaries) महिलाओं की एक बड़ी संख्या है। मेहराज बी ने स्वच्छ भारत अभियान से अपने लिए एक अवसर निकाला। 15,000 रुपये का मुद्रा लोन लेकर उन्होंने हस्तनिर्मित झाड़ुओं को बेचना शुरू किया जिससे उनकी रोजाना की आमदनी करीब 50% बढ़ गई।

भारत में अलग-अलग सामाजिक और आर्थिक स्तरों पर स्वरोजगार की कितनी अलग अहमियत होती है, इसे सुमन के उदाहरण से समझा जा सकता है। आईटी हब बेंगलुरु में सिर्फ एक सिलाई मशीन के सहारे उनका रोजगार चलता है। लेकिन यह स्टार्टअप कैपिटल है, जहां बड़े, छोटे, मध्यम और सूक्ष्म कारोबार के उद्यमियों की हमेशा मांग रहती है। ऐसी  जगहें भी हैं जहां लोन के लिए वित्तीय संस्थानों तक लोगों की पहुंच नहीं जिसके चलते साहूकारों के हाथों अक्सर उनका शोषण होता है। वो ना सिर्फ उधार लिये गए मूलधन पर अत्यधिक ब्याज चुकाते हैं बल्कि हमेशा एक अपारदर्शी कर्ज प्रणाली में किसी की मनमानी का शिकार बनते रहते हैं।

यही वो एक खास स्थिति है जहां प्रधानमंत्री मुद्रा योजना जैसी स्कीमें एक बड़ी भूमिका निभाती हैं। मुद्रा योजना अपनी ताकतवर टैगलाइन 'Funding The Unfunded' को सच साबित करती है। मुद्रा जैसी योजना के तहत हासिल ऋण रोजगार के अवसर तो बढ़ाते ही हैं साथ ही उतनी आमदनी की भी पूरी उम्मीद रहती है जिससे ऋण को आराम से चुकता किया जा सके। मुद्रा योजना में शिशु कैटेगरी के तहत 50,000 रुपये तक के ऋण, किशोर कैटेगरी के तहत 50,000 रुपये से 5 लाख रुपये तक के ऋण और तरुण कैटेगरी के तहत 5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक के ऋण मुहैया कराये जाते हैं।

आइए इस पर गौर करते हैं कि कैसे यह योजना देश भर में महिलाओं को सशक्त कर रही है। महिलाएं परिवारों का पालन-पोषण करती रही हैं, परिवार के लोगों की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में भी उनका अहम योगदान होता है। लेकिन भारत अभी भी एक बेहद पितृसत्तात्मक समाज है, देश के अधिकतर हिस्सों में न केवल लड़के की शिक्षा के सामने लड़कियों की शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं होता बल्कि संपत्ति पर भी अधिकार मुख्यत: पुरुषों का ही होता है। ऐसे में महिलाओं के लिए कर्ज लेना भी आसान नहीं रह जाता क्योंकि वित्तीय संस्थान और बैंक कर्ज देने के लिए व्यक्ति विशेष की आर्थिक क्षमता का आकलन करते हैं।

मुद्रा ऋण 50,000 रुपये से लेकर 10 लाख रुपये तक की जरूरतों के लिए है। ये योजना विशेष रूप से छोटे कारोबार में अपने लिए अवसर तलाशने की इच्छुक महिलाओं की ओर लक्षित है। सरकारी आंकड़ें बताते हैं कि कि प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के जरिए 9 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को 3.5 लाख करोड़ रुपये के ऋण वितरित किये जा चुके हैं। गौर करने वाली बात ये है कि लाभार्थियों में से 76% महिलाएं हैं और उनमें से भी अधिकांश अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक समुदायों से हैं

कहा जाता है कि एक महिला को शिक्षित करने का मतलब होता है एक पूरे परिवार को शिक्षित करना। आर्थिक स्वतंत्रता के पैमाने पर भी यह बात उतनी ही खरी उतरती है। एक आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिला के खर्च के फैसले कहीं अधिक उत्पादक होते हैं, अपने बच्चों की शिक्षा के आसपास केंद्रित होते हैं और इसी में उसके परिवार की सुख-समृद्धि भी है।

भारत में पारंपरिक रूप से महिलाएं निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा नहीं रही हैं जबकि परिवार की रचना वही करती हैं। सरकार की मुद्रा ऋण योजना के माध्यम से होने वाला माइक्रो फाइनेंस समाज पर चढ़े इसी आवरण को बदलने की एक कोशिश है। यह भी एक सच है कि महिलाएं अगर परिवार की आय में हिस्सेदारी करती हैं तो उनके शक्ति और अधिकार भी ज्यादा होते हैं। इस लिहाज से मुद्रा लोन एकल और संयुक्त दोनों तरह के परिवारों के लिए छोटा होकर भी पारिवारिक समीकरणों में आमूलचूल बदलाव लाने में मददगार साबित हो सकता है।

माइक्रो फाइनेंस आम तौर पर स्वयंसेवी समूहों के लिए व्यापक क्षेत्र रहा है, लेकिन यह देखकर बहुत खुशी होती है कि सरकार इस सार्थक कवायद के पीछे अपना पूरा जोर लगा रही है। लेकिन नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना है कि इस लोन के इस्तेमाल पर उन महिलाओं का ही जोर चले जो इसे प्राप्त करती हैं। इन सबके अलावा, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का आकलन सिर्फ एक पारदर्शी ऋण व्यवस्था के रूप में नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि यह तय किया जाना भी जरूरी है कि इसमें सामाजिक बदलाव का निहित उद्देश्य भी पूरा हो रहा हो।

 

(सुप्रिया श्रीनाते ET NOW में Executive Editor-News हैं। पत्रकारिता में उनका 15 वर्ष से अधिक का अनुभव है।)

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