प्रधानमंत्री की पिछले दो वर्ष में दूसरी बार रामेश्वरम की यात्रा डॉ कलाम के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा को दर्शाती है। स्मारक के विवरण में उन्होंने गहरी दिलचस्पी ली। यह स्मारक डॉ कलाम के जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रतिबिंबित करता है। इसके केंद्रीय गुंबद की डिजाइन राष्ट्रपति भवन का एक पहलू दिखाती है-जिसके ठीक नीचे और आसपास के वृत्ताकार फलक में संसद का प्रतिबिंब है। यहां पैदा हुए ‘रॉकेट-मैन’ के अंतिम विश्राम स्थल के चारों ओर इंटरलिंकिंग कॉरिडोर के साथ लगे चार स्क्वेयर हॉल हैं।
राजस्थान के नरम गुलाबी पत्थर और संगमरमर, डेक्कन की ग्रेनाइट, आगरा और अन्य जगहों के शिल्पकार, तमिलनाडु के लकड़ी कारीगर और ऐसे ही ना जानें और कितनी विशेषताएं जुड़ी हैं इस स्मारक से। यहां डॉ कलाम के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तस्वीरों का व्यापक संग्रह यह बता जाता है कि कैसे देश के दक्षिणी सिरे से बढ़ता हुआ एक शख्स सबसे बड़े लोकतंत्र के राष्ट्रपति के रूप में सर्वोच्च पद को सुशोभित करता है। जीवन की असामान्य डगर से गुजरते हुए किस तरह डॉ कलाम ने असाधारण उपलब्धियों को हासिल किया, यहां इसकी बानगी भी दिखती है। जहां पहले एक वैज्ञानिक के रूप में उनकी मान्यता रही, वहीं आगे जाकर एक बेहद सम्मानित राष्ट्रपति के रूप में भी वो जाने गए। क्या ऐतिहासिक मौके की उस तस्वीर को कोई कभी भूला सकता है जिसमें डॉ कलाम पोखरण II परमाणु विस्फोट के बारे में तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जानकारी देते नजर आ रहे हैं?
इस यात्रा का एक और महत्त्वपूर्ण पक्ष था। धनुषकोडी, जैसा कि नाम भी बताता है, पम्बन/रामेश्वरम द्वीप का दक्षिणी सिरा है। चेन्नई (तब के मद्रास) से बोटों के जरिये रामेश्वरम आने वाले तीर्थयात्री श्रीलंका के प्राचीन शिवमंदिरों के दर्शन के लिए धनुषकोडी से बोट लिया करते थे। श्रीलंका के तलाईमन्नार ले जाने के लिए बोट का सफर 20 मिनट से भी कम का होता था। ये बोट यात्रा रामसेतु के समानांतर चलती है।
धनुषकोडी के पास अपना एक रेलवे स्टेशन, एक छोटा रेलवे यार्ड, एक पोस्टल और टेलीग्राफ ऑफिस, एक रेलवे अस्पताल, एक प्राथमिक स्कूल और एक बंदरगाह कार्यालय भी था। ये बंदरगाह कार्यालय वहां पहले विश्व युदध की शुरुआत के समय से ही था। लेकिन 1964 में आए एक भयानक समुद्री तूफान में 150 से अधिक यात्रियों को लेकर चली एक ट्रेन के साथ ये तमाम सुविधाएं भी बहकर खत्म हो गईं। उस भयंकर त्रासदी में लगभग 1800 लोग सदा के लिए समुद्र में समा गए थे।
मेरे पास धनुषकोडी की इस त्रासदी के एपिसोड से जुड़ी एक भावुक निजी दास्तान है। उस समुद्री तूफान के वक्त मैं छोटी बच्ची थी और डिप्थीरिया के हमले के चलते विल्लूपुरम के रेलवे अस्पताल में भर्ती थी। हालत बिगड़ते देख मेरी मां से कहा गया कि बच्ची को मद्रास ले जाना पड़ सकता है। रामेश्वरम में ड्यूटी पर तैनात मेरे पिता समुद्री तूफान में घिरे थे, दूसरे कई और लोगों की तरह उनके बारे में भी कुछ पता नहीं चल रहा था। अब उनके सामने रामेश्वरम से लौटने की एक और ड्यूटी थी लेकिन ट्रैक बह चुकी थी और कोई ट्रेन नहीं थी ! हालांकि ये संयोग था कि मेरे पिता किसी तरह सुरक्षित लौटने में सफल रहे।
धार्मिक आस्था रखने वाले लोग इसके बाद भी द्वीप के इस हिस्से में आते रहे। अपने पूर्वजों की याद में समुद्र किनारे वो उसी तरह से धार्मिक अनुष्ठान करते जैसा कि भगवान श्रीराम ने अपने पिता दशरथ के लिए किया था। छोटी-मजबूत जीपें समुद्री लहरों से बने ढेर सारे बालू के टीलों से गुजरते हुए उन्हें रामेश्वरम से यहां तक पहुंचाती थीं। इस दौरान जिस प्रकार से लहरों के उतार-चढ़ाव होते थे उसी प्रकार रास्ते भी बदलते रहते थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान धनुषकोडी को एक all-weather road की सौगात दी। अमृत (AMRUT) स्कीम के तहत रामेश्वरम के साथ धनुषकोडी का भी पुनरुद्धार किया जाएगा। इसी की एक कड़ी के तहत पीएम मोदी ने रामेश्वरम से अयोध्या को जोड़ने वाली श्रद्धा सेतु एक्सप्रेस को भी झंडी दिखाई।
1964 के विनाशकारी समुद्री तूफान के दशकों बाद ये परित्यक्त शहर अब नये रंग-रूप में ढल रहा है। इसके लिए मैं इस क्षेत्र से किसी ना किसी रूप में जुड़े सभी लोगों की ओर से सिर्फ और सिर्फ अपने प्रधानमंत्री का आभार जता सकती हूं।
निर्मला सीतारमण केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं।
ऊपर व्यक्त की गई राय लेखक की अपनी राय है। यह आवश्यक नहीं है कि नरेंद्र मोदी वेबसाइट एवं नरेंद्र मोदी ऐप इससे सहमत हो।